मंगलवार, 11 मार्च 2014

. . . मतलब इस बार धान खरीदी होगी जीरो!

. . . मतलब इस बार धान खरीदी होगी जीरो!
(शरद खरे)
प्रदेश शासन को धान के ई-उपार्जन के लिए केंद्र की ओर से कृषि कर्मण अवार्ड मिला है। यह धान की सबसे ज्यादा खरीद के लिए मिला है। इस बार कितनी धान खरीदी गई?, पिछले साल की कितनी धान की मिलिंग की गई?, पिछले साल की खरीदी हुई कितनी धान इस साल पुनः सरकार को बेच दी गई?, आदि प्रश्न आज भी हवा में अनुत्तरित ही घुमड़ रहे हैं। इन प्रश्नों का जवाब लेने की फुर्सत न तो शासन-प्रशासन को है और न ही सांसद विधायकों को। आखिर इन्हें चिंता क्यों होने लगी। सरकार का धन जाया जो हो रहा है। किसी ने सही कहा है कि भारत वर्ष में वही सुखी और सफल है जो सरकार का पैसा आसानी से हजम कर जाए।
धान की खरीद में हुई गफलतों को समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया ने चित्रों के साथ शासन-प्रशासन के समक्ष रखा। इसका नतीजा सिफर ही निकला। न तो शासन के कानों में जूं रेंगी और न ही जनसेवक ही जाग पाए। वास्तविक किसान को तो इस ई-उपार्जन का बेहद थोड़ा सा ही लाभ हुआ है, असली मलाई तो जमाखोरों और बिचौलियों ने सरकारी नुमाईंदों की जेबें गर्म कर काटी हैं। सिवनी का ही उदाहरण लिया जाए तो सरकारी खबरों को मीडिया के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने के लिए पाबंद जनसंपर्क विभाग ने भी आज तक संबंधितों से पूछकर यह बतलाने की जहमत नहीं उठाई है कि कितनी धान बर्बाद हो गई है। सब मौन धारण किए हुए हैं, मानो सब कुछ ठीक ठाक ही है।
धान का ई-उपार्जन बंद हो गया है। अब बारी आ रही है गेहूं के ई-उपार्जन की। गेहूं के ई-उपार्जन हेतु पंजीयन किए गए हैं। इस बार गेहूं की भी रिकॉर्ड खरीद की तैयारियां की जा रही हैं। पर यह क्या अचानक ही गेहूं की खड़ी फसल पर ओले पाले का कहर बरप गया, फसलें तबाह हो गईं। मीडिया में चीत्कार मची, लोकसभा चुनाव सिर पर हैं। इस सबको देख, सूबे के निजाम शिवराज सिंह चौहान भी हवा में उड़कर सिवनी सहित अनेक प्रभावित जिलों में पहुंचे, और पीड़ित किसानों के जख्मों पर वायदों और लच्छेदार बातों का मरहम लगाने का प्रयास किया।
सिवनी सहित प्रदेश के जिलों में फसलों की नुकसानी का आंकलन जारी है। सोयाबीन की तबाह हुई फसल का मुआवजा मिलना आरंभ हुआ है। इस बार की फसल का मुआवजा कब मिलेगा कहा नहीं जा सकता है। कुल मिलकार वास्तविक किसान तो बुरी तरह परेशान है। अब भी सूदखोर, जमाखोर और बिचौलियों की पौ बारह है।
विडंबना तो देखिए, शासन, प्रशासन एक ओर मुआवजा बांटने के लिए सर्वेक्षण करवा रहा है और दूसरी ओर इसी तबाह फसल को अच्छी मानकर उसके ई-उपार्जन की तैयारी में है। क्या यह संभव है? जी हां, कागजों में सब कुछ संभव है, और हो भी रहा है।  क्या शासन-प्रशासन ने फसलों की नुकसानी के मुआवजे के साथ ही साथ इन किसानों के ई-उपार्जन में रिकॉर्ड का निरीक्षण किया है? अगर किसान ने अपना पंजीयन कराया है और उसे मुआवजा मिलेगा तो यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि उसकी उपज खराब हो गई है। अगर फसल खराब हो गई है तो शासन-प्रशासन को उसकी फसल का ई-उपार्जन का पंजीयन निरस्त कर देना चाहिए।
वस्तुतः इस दिशा में किसी का ध्यान नहीं गया होगा, क्योंकि आज के अधिकारियों का लगाव काम के प्रति कम ही प्रतीत होता है। सरकारी काम को अधिकारी कर्मचारी जवाबदेही के साथ करने के बजाए बोझ के मानिंद करते प्रतीत हो रहे हैं। देश या प्रदेश व्यापी चल रही योजनाओं में कर्मचारी-अधिकारी जिस तरह बला-टालू तरीके से काम करते दिखते हैं, उसे देखकर लगता है कि सरकारी काम को वे बोझ समझकर काम कर रहे हैं।
गेहूं के ई-उपार्जन में इस बार भी बिचौलिए सक्रिय हो जाएंगे। जिन किसानों की फसलें तबाह हुई हैं, उन किसानों के नाम से भी ई-उपार्जन में गेहूं सरकार को बेच दिया जाएगा। हो सकता है कि अन्य प्रांतों से आया घटिया गेहूं भी सरकारी स्तर पर खरीद लिया जाए। जिस तरह इस बार भी अन्य प्रदेशों की धान धड़ाधड़ सरकार को टिका दी गई। बाद में इसमें से अधिकांश धान सड़वाने के आरोप भी लगे हैं।

शासन प्रशासन से अपेक्षा है कि जिन किसानों की फसलें तबाह हुई हैं और उनका नाम सर्वेक्षण में आए, उनके नाम ई-उपार्जन के पंजीयन से डिलीट करवाए जाएं। अन्यथा सदा की ही तरह बिचौलिए इस बार भी गरीब किसानों के नाम पर अधिकारियों के साथ सांठ-गांठ कर बाहर से आए घटिया गेहूं की खरीदी करवा देंगे और गरीब किसान का नाम बदनाम हो जाएगा। इतना ही नहीं जो किसान, सरकार से तबाह फसल का मुआवजा ले चुका हो या लेने वाला हो, उसकी तबाह फसल को अच्छी फसल मानकर कैसे खरीदा जा सकता है।

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