रविवार, 10 नवंबर 2013

सज गया चुनावी मैदान, तैयार हैं योद्धा, माहौल में पसरा है सन्नाटा

सज गया चुनावी मैदान, तैयार हैं योद्धा, माहौल में पसरा है सन्नाटा

कुहासा हटा नहीं चारों विधानसभा में, आखिर किस करवट बैठेगा मतदाताओं के रूझान का ‘ऊंट‘

(लिमटी खरे)

विधानसभा चुनावों के लिए रणभेरी बजे समय बीत चुका है। नाम दाखिल करने का समय भी निकल गया है। अब नाम वापसी की अंतिम तारीख 11 नवंबर का इंतजार है। सभी इसकी राह देख रहे हैं कि कौन कौन सैट होकर या दबाव में आकर अपने अपने नामांकन वापस लेते हैं। असल तस्वीर 11 नवंबर के बाद ही स्पष्ट होगी। 11 तारीख के बाद 24 तारीख तक महज 13 दिनों का ही माना जाएगा विधानसभा चुनाव, क्योंकि 25 को मतदान है। वैसे तो पांच सालों का लेखा जोखा आवश्यक है पर कहा जाता है कि लोगों की याददाश्त बेहद कम होती है, अतः लोग पुरानी बातों पर धूल ही डाल दिया करते हैं। नेता इस बात से भली भांति परिचित हैं, अतः वे भी कम ही समय में अपना सारा करतब दिखा दिया करते हैं।

सिवनी विधानसभा में है जोर आजमाईश
सिवनी विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस की ओर से 2003 के चुनाव में 15 हजार से अधिक से पराजित हो चुके राज कुमार खुराना मैदान में हैं। पेशे से व्यवसाई राज कुमार खुराना राजनीति के अलावा खेल गतिविधियों में भी सक्रिय रहे हैं। राजकुमार खुराना से जनता यह जानना अवश्य ही चाहेगी कि उन्होंने पिछले सालों में आम जनता के दुख दर्द और सिवनी के अधिकारों के लिए क्या जतन किए? वहीं, भाजपा से दो बार के विधायक रहे नरेश दिवाकर मैदान में हैं। नरेश दिवाकर जिला भाजपा के अध्यक्ष और महाकौशल विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष (हो सकता है प्राधिकरण से वे त्यागपत्र दे चुके हों पर यह बात अभी तक उजागर नहीं हो पाई है) भी हैं। जनता के सामने उनके दस साल का बतौर विधायक तथा भाजपा के जिलाध्यक्ष के साथ ही साथ महाकौशल विकास प्राधिकरण का कार्यकाल भी है, इस नाते जनता उनके इस कार्यकाल का हिसाब भी रख रही होगी। नरेश दिवाकर ने 2003 में राजकुमार खुराना को नाकों चने चबवाए थे। इसके बाद 2008 में भाजपा ने उनकी टिकिट काटकर श्रीमति नीता पटेरिया को अपना उम्मीदवार बनाया था। वहीं तीसरी ताकत के रूप में पिछले विधानसभा चुुनावों में लगभग तीस हजार वोट लेने वाले दिनेश राय मैदान में हैं। वे निर्दलीय हैं। दिनेश राय मूलतः लखनादौन के रहने वाले माने जाते हैं, क्योंकि वे वर्तमान में लखनादौन बार एॅसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं। इसके अलावा आशा भलावी, सालिगराम, अकबर खान, अजहर उल अलीम, एम.आर.खान, महमूद खान, राम प्रसाद डेहरिया, मुकेश कुमार सनोडिया, तीरथ सिंह, मो.अशफाक, निहाल सिंह, रामेश्वर, राजेश उपाध्याय एवं घासीदास सनोाडिया आदि भी मैदान में हैं।
सिवनी विधानसभा में जोर आजमाईश सबसे ज्यादा दिखाई दे रही है। इसका कारण यह है कि इस विधानसभा क्षेत्र में जिला मुख्यालय शामिल है। जिला मुख्यालय में किसके पक्ष में वोट डलते हैं या किसकी बयार बहती है, यह बात तो समय आने पर ही पता चलेगा किन्तु अभी सिवनी में सर्दी के मौसम में गिरते पारे के साथ ही चुनावी गर्माहाट भी महसूस नहीं की जा रही है।

हाईटेक प्रचार में पिछड़े प्रत्याशी
एक ओर जहां सोशल नेटवर्किंग वेब साईट्स लोगों विशेषकर युवाओं के सर चढ़कर बोल रहीं हैं, वहीं सिवनी में प्रमुख राजनैतिक दलों के अलावा निर्दलीय या अन्य राजनैतिक दलों के प्रत्याशियों के द्वारा हाईटेक प्रचार में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई जा रही है, संभवतः हो सकता है सोशल मीडिया को पेड न्यूज के दायरे में लाने की कवायद के चलते प्रत्याशी फूंक फूंक कर कदम रख रहे हों।

मीडिया से गायब है सरगर्मी
वहीं दूसरी ओर समाचार पत्र और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी चुनावी सुगबुगाहट अपेक्षाकृत कम ही दिखाई दे रही है। हो सकता है इस बार चुनाव आयोग के पेड न्यूज के संबंध में कड़े निर्देशों के बाद प्रत्याशियों द्वारा किसी किस्म का रिस्क मोल नहीं लिया जा रहा हो। अखबारों में भी जनसंपर्क कार्यालय द्वारा जारी विज्ञप्तियों को, खबरों के रूप में भरपूर स्थान मिल रहा है। एक के बाद एक कर, एमसीएमसी द्वारा दिए जाने वाले नोटिस से मीडिया भी खबरों के मामले में बेहद सावधानी ही बरतता दिख रहा है।

ये हो सकते हैं मुख्य मुद्दे!
इस बार चुनाव में वैसे तो मुद्दों का टोटा ही दिखाई पड़ रहा है, फिर भी स्थानीय स्तर पर भीमगढ़ जलावर्धन योजना का पूरा लाभ सिवनी को न मिल पाना, जिला मुख्यालय में नगर पालिका की लापरवाही से गंदा बदबूदार पानी मिलना, फोरलेन की राह के फच्चर (जिसके लिए कांग्रेस ने भाजपा को तो भाजपा ने कांग्रेस को ही दोषी ठहराया है), ब्रॉडगेज, उद्योग धंधों का अभाव, जिला चिकित्सालय सहित विधानसभा में स्वास्थ्य सुविधाओं की उखड़ती सांसें, आर्युविज्ञान महाविद्यालय (मेडीकल कॉलेज), नर्सिंग ट्रेनिंग सेंटर, खेल सुविधाओं का अभाव (विशेषकर क्रिकेट के लिए स्टेडियम न होना, हाकी के एस्ट्रोटर्फ का लंबे समय बाद लोकार्पण, बेडमिंटन हॉल के बनने के बाद भी लोकार्पण न होना, टेबिल टेनिस के लिए स्थानाभाव, दौड़ के लिए ट्रेक का अभाव, जल क्रीड़ाओं का शून्य होना आदि), बाग बगीचों के शहर में एक भी बगीचा बच्चों के लिए सही हालत में न होना, गांव गांव अवैध शराब का विक्रय, जंगलों में लगातार लगने वाली जुएं की फड़, युवाओं के लिए रचनात्मक शिक्षा और साधनों का अभाव, ट्रांसपोर्ट नगर का अभाव, टाउन एण्ड कंट्री प्लानिंग के स्पष्ट नजरिए का अभाव, फोरलेन के बाद भी एक्सीडेंट की स्थिति में फौरी मदद के लिए ट्रामा यूनिट का न बनना, फोरलेन की हाईवे पेट्रोलिंग का किराना ढोने के लिए होने वाला उपयोग, फोरलेन की एंबूलेंस कभी न दिखना, अधूरी सड़क पर जबरिया टोल का बोझ, अवैध उत्खनन आदि शामिल हैं।

केवलारी में है रोचक मुकाबला!
सिवनी जिले की दूसरी सामान्य विधानसभा सीट केवलारी में मुकाबला रोचक होता दिख रहा है। केवलारी में पिछली बार पराजित हुए चार बार के (परिसीमन के पूर्व बरघाट सामान्य से) विधायक एवं राज्य वित्त आयोग के अध्यक्ष (हो सकता है आयोग से वे त्यागपत्र दे चुके हों पर यह बात अभी तक उजागर नहीं हो पाई है) डॉ.ढाल सिंह बिसेन पर भाजपा ने दुबारा दांव आजमाया है। वहीं, कांग्रेस द्वारा चार बार से केवलारी में कांग्रेस के परचम फहराने वाले स्व.हरवंश सिंह ठाकुर के ज्येष्ठ पुत्र ठाकुर रजनीश सिंह को मैदान में उतारा गया है। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही में कशमकश का दौर चल रहा है। केवलारी विधानसभा के लोग यहां के विकास या अविकसित केवलारी विधानसभा को ही प्रमुख रूप से देख रहे हैं। कुछ लोग आज़ादी के उपरांत केवलारी के द्वारा विकास के सौपान तय किए जाने की कहानियां गढ़ रहे हैं, तो कुछ अविकसित केवलारी का ही राग अलाप रहे हैं। यद्यपि यह सब उजागर तौर पर नहीं हो रहा है, पर सुगबुगाहट कुछ इसी तरह की नजर आ रही है।
इसके अलावा जिला पंचायत के उपाध्यक्ष रहे और कांग्रेस के महामंत्री शक्ति सिंह ने भी केवलारी से बतौर निर्दलीय नामांकन भरा है। शक्ति सिंह के अलावा मूलचंद पटेल, केशव, हिहमायत, रामप्रसाद डेहरिया, अहमद सईद कुरैशी, आनंद, कुसुम ठाकुर, मो.हसीब, रामगुलाम बत्तेलाल, राकेश, श्रीमति मानवती, मंगल सिंह किरार, धर्मराज ठाकुर ओर हेमंतकुमार आदि मैदान में हैं।
देखा जाए तो केवलारी विधानसभा सीट आजादी के उपरांत लगभग कांग्रेस के कब्जे में ही रही है। इस सीट से कांग्रेस की सुश्री विमला वर्मा सबसे अधिक समय तक विधायक रही हैं। विमला वर्मा के उपरांत भाजपा की मुखर नेत्री श्रीमति नेहा सिंह (अब कांग्रेस में) ने भी इस सीट से प्रतिनिधित्व किया है। इसके उपरांत हरवंश सिंह यहां से विधायक रहे हैं। केवलारी विधानसभा क्षेत्र में विकास की गंगा बहाई गई है या फिर अभी भी विकास होना बाकी है, इस बारे में जनता जनार्दन ही बेहतर फैसला कर सकती है। एक तरफ अनुभवी डॉ.ढाल सिंह बिसेन हैं तो दूसरी ओर पहली बार चुनावी समर में उतरे ठाकुर रजनीश ंिसंह हैं।

ये हो सकते हैं चुनावी मुद्दे!
केवलारी विधानसभा क्षेत्र में चुनावी मुद्दों का टोटा नजर आ रहा है। वैसे केवलारी मेें भीमगढ़ बांध का भरपूर पानी होने के बाद भी किसानों को राहत नहीं है। इसके अलावा दो दर्जन से ज्यादा गांव में आज़ादी के बाद बिजली का न आ पाना भी एक मुद्दा है। साथ ही साथ क्षेत्र की अंदरूनी सड़कों और पुल पुलियों के अभाव में बच्चे और नागरिक कहीं पानी में नांव की सवारी गांठ रहे हैं तो कहीं रेल्वे ट्रेक पर चलकर रास्ता नाप रहे हैं, यहां भी ब्रॉडगेज एक मुद्दे से कम नहीं है, शिक्षा के क्षेत्र में भी इस क्षेत्र को पिछड़ा ही कहा जा सकता है। नक्सल प्रभावित इलाकों में विकास भी एक मुद्दा हो सकता है। केवलारी क्षेत्र में बेरोजगारी सबसे बड़ा अभिशाप बनकर उभरी है, क्षेत्र में उद्योग धंधों के अभाव में मजदूर पलायन पर मजबूर हैं। यहां स्वास्थ्य सुविधाएं भी बदहाल ही हैं, आज़ादी के लगभग साढ़े छः दशकों बाद भी केवलारी की तस्वीर सही तरीके से नहीं उकेरी जा सकी है, क्षेत्र में जगह जगह बिकने वाली अवैध शराब भी लोगों के लिए सरदर्द से कम नहीं है। फोरलेन इस विधानसभा से होकर भी गुजर रही है, अतः फोरलेन के रिसते धाव यहां भी दिखाई दे जाएं तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। इस तरह के अनेक मुद्दे आज भी जीवंत बने लग रहे हैं।

बरघाट की तस्वीर
सिवनी की पूर्व सामान्य और परिसीमन के बाद आरक्षित हुए विधानसभा क्षेत्र बरघाट में भाजपा का वर्चस्व लंबे समय से बना हुआ है। यहां से चार बार डॉ.ढाल सिंह बिसेन ने परचम लहराया तो उसके बाद कमल मर्सकोले ने भाजपा के गढ़ को बचाए रखा। इस बार भी कमल मर्सकोले को ही उम्मीदवार बनाया गया है। कमल मर्सकोले के पांच साल के कामों का हिसाब जनता के पास होगा और वह भी मायने ही रखेगा। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस की ओर से अर्जुन काकोड़िया मैदान में हैं। इसके अलावा दिनेश सिंह, रामनरेश सिंह, सीता राजेंद्र सिंह, बिहारी लाल, अशोक सिरसाम, हंसराम आदि भी मैदान में हैं। बरघाट में कांग्रेस के उम्मीदवार कई बार पराजय का सामना कर चुके हैं तो भाजपा के उम्मीदवार को अपने पांच सालों का हिसाब जनता के समक्ष रखना होगा। दोनों ही प्रमुख राजनैतिक दलों में भीतराघात के कयास तेज हो गए हैं।

ये हो सकते हैं चुनावी मुद्दे!
बरघाट विधानसभा वैसे तो पवार बाहुल्य मानी जाती है पर इसमें अरी से लेकर कुरई तक के बेल्ट के जुड़ने से इसमें आदिवासी समुदाय का वर्चस्व देखने को मिल रहा है। बरघाट विधानसभा में चावल उत्पादक किसान की भरमार है, अतः राईस मिल और चावल उत्पादकों की समस्याएं यहां प्रमुख रूप से सामने आ सकती हैं, इसके अलावा क्षेत्र की अंदरूनी सड़कें, जर्जर स्वास्थ्य सुविधाएं, शिक्षा के क्षेत्र में पसरी अराजकता, रोजगार आदि प्रमुख रूप से मुद्दे बन सकते हैं। इसके अलावा फोरलेन इस क्षेत्र के कुरई अंचल से होकर गुजरती है, जो सबसे खराब स्थिति में है। यह मामला सबसे तेजी से इस विधानसभा क्षेत्र में उभर सकता है।

लखनादौन की बिसात!
जिले की दूसरी आरक्षित विधानसभा सीट लखनादौन में भाजपा ने दो बार की विधायक श्रीमति शशि ठाकुर पर पुनः विश्वास जताया है। वहीं कांग्रेस ने पहले सूची में बेनी कुंदन परते का नाम तय किया बाद में नाटकीय तरीके से उसे बदलकर अब हिमाचल की राज्यपाल उर्मिला सिंह के सुपुत्र योगेंद्र बाबा के नाम पर मुहर लगाई है। कांग्रेस के लिए यह दूसरा मौका है जब लखनादौन में कांग्रेस ने टिकिट बदली है। इसके पहले बेनी परते की टिकिट काटकर शोभाराम भलावी को मैदान में उतारा गया था, तब कांग्रेस ने यहां मुंह की खाई थी। इन दोनों के अलावा बेनी कुंदन परते अभी निर्दलीय बतौर मैदान में हैं, साथ ही साथ आनंद इनवाती, सौरभ उईके, देवी प्रसाद कुसराम, रामनरेश सरेयाम, सुखलाल, राजेश्वरी उईके, कांतिलाल धुर्वे, नेपाल सिंह, दशोदी उईके, असाढू आदि भी मैदान में हैं। इस बार श्रीमति शशि ठाकुर को अपने दस साल के कार्यकाल का हिसाब लोगों को देना होगा। इसके अलावा उर्मिला सिंह के पुत्र योगेंद्र बाबा के लिए भी राह आसान नहीं है। उन्हें क्षेत्र में मेहनत करना जरूरी है। रही बात बेनी कुंदन परते की तो अगर वे निर्दलीय के बतौर मैदान में हैं और राजेश्वरी उईके भी मैदान में हैं। दोनों को भी वेतरणी पार करने के लिए मशक्कत करना पड़ सकता है।

चुनावी मुद्दों की है भरमार
लखनादौन विधानसभा क्षेत्र में चुनावी मुद्दे भरे पड़े हैं। क्षेत्र में सबसे बड़ा मुद्दा रोजगार, ब्रॉडगेज और फोरलेन का है। फोरलेन यहां आधी अधूरी पड़ी है। ब्रॉडगेज का भी कमोबेश यही हाल है। रोजगार के लिए साधन नहीं हैं। देश के मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पॉवर लिमिटेड द्वारा यहां 1260 मेगावाट का पॉवर प्लांट डाला जा रहा है। इस पॉवर प्लांट की संस्थापना में अनेकानेक विसंगतियां हैं, मीडिया के माध्यम से चीख चीख कर इन विसंगतियों को उजागर किया गया था। इसके बावजूद विधायक श्रीमति शशि ठाकुर सहित विपक्ष में बैठी कांग्रेस के नुमाईंदों ने कोई पहल नहीं की। क्षेत्र के आदिवासियों को लूटा गया पर सियासी दल खामोश रहे। क्षेत्र में शिक्षा व्यवस्था, स्वास्थ्य सुविधाएं आदि आदि के बुरे हाल हैं। लखनादौन शहर में अनेक काम नियम विरूद्ध हुए पर कांग्रेस भाजपा खामोश बैठी रहीं। भाजपा के मण्डल अध्यक्ष को थाने में अकारण निरूद्ध किया गया, पर भाजपा के संगठन ने इस बारे में कोई कार्यवाही नहीं की।
कुल मिलाकर चारों विधानसभा में स्थिति, नाम वापसी के उपरांत ही स्पष्ट हो पाएगी। नाम वापसी के बाद की तस्वीर को देखकर ही राजनैतिक पंडित अनुमान लगा सकते हैं। अभी तो यह स्पष्ट नहीं है कि कौन चुनाव लड़ेगा और कौन नामांकन वापिस लेगा।  इस सबके बाद भी कार्यकर्ता और मतदाता अपना मौन अभी तक बरकरार रखे हुए हैं जो प्रत्याशियों की हृदयगति को बढ़ाए हुए है। प्रदेश में दस सालों से भाजपा की सरकार है। विपक्ष में बैठी कांग्रेस को भी अपना लेखा जोखा प्रस्तुत करना होगा। इस नाते अब अंतिम क्षणों में यही देखना बाकी है कि ऊंट आखिर किस करवट बैठने वाला है।