बुधवार, 11 सितंबर 2013

राष्ट्रीय स्तर पर उछला नए राज्य का मामला

राष्ट्रीय स्तर पर उछला नए राज्य का मामला

(दादू अखिलेंद्र नाथ सिंह)

सिवनी (साई)। जिला मुख्यालय से प्रकाशित होने वाले जिले के सुधि पाठकों के सजग प्रहरी समाचार पत्रों द्वारा गत सप्ताह में प्रकाशित समाचारों को राष्ट्र्रीय स्तर के प्रतिष्ठित समाचारपत्रों में भी स्थान मिलना प्रारंभ हो गया है। इस बात से ही उन समाचारों के महत्व का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।
गौरतलब होगा कि देश भर में समाचार पत्रों, न्यूज वेब मीडिया आदि में खबरों का संप्रेषण करने वाली समाचार एजेंसी ऑफ इंडियाके द्वारा सिवनी की समस्याओं और खबरों को प्रमुखता के साथ उठाया जा रहा है। पिछले दिनों नए राज्य के मामले को भी उठाया गया है। देश के प्रतिष्ठित और दिल्ली से प्रकाशित नवभारत टाईम्स, दैनिक जागरण, के साथ ही साथ अन्य समाचार वेब पोर्टल्स पर भी यह मुद्दा प्रमुखता के साथ उठा है।
ज्ञातव्य है कि आधी सदी पूर्व तत्कालीन सीपी एण्ड बरार से पृथक होकर मध्यप्रदेश में समाहित होने वाले इस अभागे अंचल को लगातार सक्षम नेतृत्व प्राप्त होने के बावजूद उपेक्षा का जो दंश झेलना पड़ रहा है उसके परिणामस्वरूप संभावित रूप से अति निकट भविष्य में अस्तित्व में आ सकने वाले नये विदर्भ राज्य का अंग बनने को यह अंचल लालायित दिखाई दे रहा है।
मध्यप्रदेश के महाकौशल क्षेत्र के इस उपेक्षित और अभागे अंचल के तीन जिलों सिवनी, बालाघाट और छिंदवाड़ा का यह दुर्भाग्य है कि उसे आजादी के सात दशक बाद भी देश के किसी भी बड़े नगर तक पंहुचने के लिये सीधी रेल सुविधा तक प्राप्त नहीं है। केवल छिंदवाड़ा जिले को कुछ दिनांें पूर्व से दिल्ली के लिये यह सुविधा प्राप्त हो पाई है।
बालाघाट के लोगों को इस हेतु प्रस्तावित विदर्भ के गोंदिया और सिवनी जिले के लोगों को इस हेतु प्रस्तावित विदर्भ की राजधानी नागपुर से यह सुविधा प्राप्त करना पड़ता है। तीनों ही जिलों के लोगों को हवाई सुविधा नागपुर से ही प्राप्त करना पड़ता है। तीन में से दो जिलों सिवनी और ंिछदवाड़ा जिलों की सीमाएं वर्तमान महाराष्ट्र राज्य और प्रस्तावित विदर्भ प्रदेश की राजधानी नागपुर जिले से मिलती है।
यह सब लोग जानते हैं कि किसी भी प्रदेश की राजधानी से संलग्न जिलों के विकास की गति कितनी तेज होती है। मध्यप्रदेश का ही मामला ले लिया जाये तो राजधानी भोपाल से 70 वें किलोमीटर पर स्थित नगर होशंगाबाद को संभाग का दर्जा प्राप्त है, जबकि सिवनी जिला मुख्यालय से दूसरे जिलों छिंदवाड़ा की दूरी 70, बालाघाट जिला मुख्यालय की दूरी 100 जबलपुर की दूरी 145 और मंडला की दूरी 120 किमी हैं।
इतना ही नहीं बालाघाट से संभाग मुख्यालय जबलपुर की दूूरी 250 किमी और छिंदवाड़ा से संभाग मुख्यालय जबलपुर की दूरी 220 किमी है। यही है इस अभागे अंचल की पीड़ा जिसने इन तीन जिलों के निवासियों के मन में अलगाव की भावना को जन्म दिया है।
छः दशक के बाद प्रदेश को एक ऐसा मुख्यमंत्री मिला जिसकी किसी बात को लोग पत्थर की लकीर मानने लगे थे किंतु पांच साल पहले अंचल के विकास को गति दे सकने वाले एक ऐलान को पांच साल बाद भी मूर्तरूप न मिलने से इस अंचल के लोगों को एक बार फिर निराशा के गर्त में डूबने को मजबूर होना पड़ा। इस अंचल के लोगों के मन में एक बार फिर यही प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि अंचल की यह पीड़ा जिसे अंचल की मीडिया और अंचल के लोग आसानी से अनुभव कर रहे हैं।

आखिर उस पीड़ा को इस अंचल के जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों ने अभी तक अनुभव क्यों नहीं किया? अब जब इस अंचल की दयनीय स्थिति और भविष्य की योजना को स्थानीय मीडिया के माध्यम से राष्ट्रीय मीडिया ने पंख लगा दिये हैं तब क्या ऐसी आशा की जा सकती है कि दिल्ली और भोपाल में बैठे अंचल के कर्णधार उस पीड़ा के निदान का प्रयास करेंगे।

केदारनाथ में आज से होगी पूजा आरंभ

केदारनाथ में आज से होगी पूजा आरंभ

(सुमित माहेश्वरी)

नई दिल्ली (साई)। पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती महाराज के निज सचिव, एवं चारधाम विकास परिषद् उत्तराखंड सरकार के उपाध्यक्ष ब्रहमचारी सुबुद्धानंद कल 11सितंबर से प्रारम्भ हो रही केदारनाथ जी की विधिवत पूजा अर्चना मे शामिल होने के लिये आज दिल्ली से रवाना हो गये।
इसके पूर्व बीती रात एक न्यूज चेनल से बातचीत करते हुये पूज्य शंकराचार्य ने स्पष्ट किया कि भगवान शंकर ऐसे देवता हैं, जिनका अभिषेक के द्वारा अर्चन होता है। भोलेनाथ क्षण में प्रसन्न होकर वरदान देते हैं। अतः हम चाहते हैं कि भावपूर्ण पूजा  अर्चना से भगवान प्रसन्न होकर न केवल केदारनाथ क्षेत्र उत्तराखंड बल्कि समूचे देश को उनका वरदान रूपी आशिर्वाद दें।
उन्होने जोर देकर कहा कि जो स्वार्थी लोग मूर्ती हटाने की बात कर रहे थे और अब धमकियों पर उतर आये हैं, उनसे विचलित हुये बगैर पूजा प्रारम्भ होनी चाहिये। उत्तराखन्ड के महामहिम राज्यपाल तथा मुख्यमंत्री 8 सितंबर को दिल्ली में उनसे मिले थे ओर इस विषय में उनका आशिर्वाद सभी के साथ है।
जगतगुरू शंकराचार्य ने दृढ़ता पूर्वक कहा कि चाहे कितनी भी कठिन परिस्थिति आ जाये केदारनाथ की पूजा प्रारम्भ किये जाने में विलम्बनही होना चाहिये, क्योकि यह 6 माह का वक्त श्रद्धालुओं का है, जिसमें अब कुछ ही समय शेष है। फिर 6 माह देवताओं की पूजा के लिये वैसे भी परम्परानुसार केदारनाथ जी के पट बन्द हो जाते है।
कल सर्व सिद्धी अमृत योग ११ सितम्बर से प्रारम्भ हो रही पूजा के बाद एक बार फिर केदारनाथ जी में गूंजेगे बम -बम भोले के स्वर। हालाकि आम श्रद्धालुओ का वहां प्रवेश अभी प्रतिबन्धित रहेगा किंतु उनकी भावनायें पुजारियों के माध्यम से भगवान शंकर  तक पुहंचना प्रारम्भ हो जायेगी। केदार जी की पूजा के साथ प्रलय के दौरान मन्दिर को बचाने वाली उस दिव्य शिला की भी पूजा प्रारम्भ होगी।

सुबुद्धानंद महाराज के अनुसार उत्तराखंड स्थित केदारनाथ के मंदिर को जिस दिव्य शिला ने बचाया वह पूज्य है और उसे यथास्थान संरक्षित किया गया है। कल ११ सितम्बर से मंदिर में प्रारम्भ हो रही पूजा दिवस से ही दिव्य शिला पूजन भी प्रारम्भ किया जाएगा, जो अनवरत जारी रहेगा।

वाटरशेड मिशन में हो रहा करोड़ों का घालमेल!

वाटरशेड मिशन में हो रहा करोड़ों का घालमेल!

(अखिलेश दुबे)

सिवनी (साई)। सिवनी जिले में वाटरशेड मिशन में करोड़ों रूपयों के घालमेल की चर्चाओं से फिजा पट गई है। जिला पंचायत के अधीन कार्यरत वाटरशेड मिशन में अनेक विसंगतियां प्रकाश में आ रही हैं, बावजूद इसके न तो जिला पंचायत अध्यक्ष मोहन चंदेल ही इस मामले में कार्यवाही कर रहे हैं और न ही जिला पंचायत की मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्रीमती प्रियंका दास की ही नजर इस पर पड़ सकी है।
जिला पंचायत के एक अधिकारी ने पहचान उजागर न करने की शर्त पर समाचार एजंेसी ऑफ इंडिया से चर्चा के दौरान कहा कि इस मिशन के तहत तैनात सचिवों का भुगतान किस मद से कितना किया जा रहा है, इस बारे में वाटरशेड मिशन पूरी तरह मौन है। इतना ही नहीं उन्होंने बताया कि हर गांव में इसका एक एक कार्यालय है जिसका किराया भी भारी भरकम निकाला जा रहा है। यह किराया कितना और किस मद से निकाला जा रहा है इस बारे में भी किसी को कुछ नहंीं पता है।
हर गांव के कार्यालय के लिए स्टेशनरी मद में भी भारी भरकम राशि के आहरण की खबर है। मिट्टी परीक्षण के लिए भी प्रति व्यक्ति कितनी राशि ली जाना निर्धारित है, इस बारे में भी कोई मुनादी या विज्ञप्ति अब तक समाचार पत्रों के माध्यम से जारी न किया जाना भी आश्चर्यजनक ही माना जा रहा है।
बताया जाता है कि हर गांव में कार्यालय होने के बाद वहां कितनी बार बैठकों का अयोजन किया गया है, इस संबंध में भी किसी को कोई जानकारी नही है, न ही बैठक के समाचार ही जारी किए जा रहे हैं। किसानों के लिए बीज वितरण की व्यवस्था भी इसके माध्यम से किया जाना प्रस्तावित बताया जाता है, पर कहां कितना बीज वितरित किया गया है, और बीज कहां से कितना आया है, इस बारे में भी विभाग मौन ही है।
जिला परियोजना अधिकारी कार्यालय से कितने कामों की तकनीकि स्वीकृति जारी की गई है? अध्यक्ष एवं सचिव के प्रशिक्षण में कितनी राशि किस मद से खर्च की गई है? स्वसहायता समूहों के माध्यम से क्या काम करवाए गए हैं इस बारे में किसी को कोई भी जानकारी न होना, आश्चर्यजनक ही माना जा रहा है।

यह सब होते हुए भी जिले के सांसद विधायकों सहित जिला पंचायत, जनपद पंचायत, ग्राम पंचायत, नगर पंचायत या नगर पालिकाओं के प्रतिनिधियों को इसकी या तो जानकारी नहीं दी जाती है या फिर जानकारी दी जाती है तो वे किस दबाव में मौन साधे बैठे हैं यह बात भी शोध का विषय ही मानी जा सकती है।

हैवान पिता ने चढ़ा दी अपनी छः वर्षीया बेटी की बलि!

हैवान पिता ने चढ़ा दी अपनी छः वर्षीया बेटी की बलि!

मानसिक विक्षिप्त है या नहीं जांच के बाद पता चलेगा: एसपी, संडास जा रही थी ऋतु: गीता

(विकराल सिंह बघेल)

केवलारी (साई)। इक्कीसवीं सदी में भी टोना टोटका ग्रामीण अंचलों में सिर पर हावी है। आज केवलारी अंचल में एक नरपिशाच पिता ने हैवानियत की हदें पार करते हुए अपनी ही छः साल की पुत्री ऋतु की, गला काटकर इहलीला समाप्त कर दी। बच्ची को मारने के बाद पिता ने मंदिर के प्रांगण में ही पूजन पाठ भी आरंभ कर दिया। बाद में लोगों ने देखा और पुलिस को बुलाया तब जाकर नराधम पिता को पकडा़ जा सका।
प्राप्त जानकारी के अनुसार आदिवासी समुदाय के पूर्व जनपद सदस्य सुतलाल इडपाचे, निवासी ग्राम झोला द्वारा अपनी ही 6 वर्षीय बच्ची की धारदार कुल्हाड़ी से गर्दन में प्राणघातक वार कर, ग्राम के निकट स्थापित खैरमाई चबूतरा में बली चढ़ा दी। उसके पास बैठकर, वह बड़े ही शांत स्वभाव से कहता है कि अभी तो मैंने पूजा किया हंूॅं, सब ठीक हो जायेगा, माता उठेगी और बच्ची को ठीक कर देगी।

कल ही आया था ससुराल
बताया जाता है कि अपनी मासूम बेटी ऋतु की बलि चढ़ाने वाला 35 वर्षीय संतकुमार पिता जगदीश इड़पाचे एक दिन पहले ही अपने गांव झोला से ससुराल तुरर्गा आया था। झोला में राखी के दो दिन पहले से उसकी पत्नी गीताबाई व बेटी ऋतु व 10 साल का बेटा शरद रह रहे थे। मंगलवार की पूर्वान्ह 11 बजे के लगभग वह बेटी को घुमाकर लाने के बहाने गांव के पास खेतों के बीच स्थित खैरमाई के चबूतरे पर ले गया और कुल्हाड़ी का वार कर उसकी गर्दन काट दी।

लोगों को आवाज देकर बुलाया
इस संबंध में ग्रामीणों ने बताया कि घटना की जानकारी तब लगी, जब एक ग्रामीण जंगल से लौट रहा था तो उसे आवाज देकर कहा कि जाओ मेरे ससुराल में मेरी पत्नि को बता दो कि तुम्हें पति ने खैरमाई चबूतरा में बुलाया है। ग्रामीण ने घटना स्थल पर मृत बच्ची को देख अनदेशा लगा लिया था कि इस व्यक्ति ने उसे काट डाला। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि मौके पर सरकटी बच्ची की लाश देखकर लोग घबराकर वहां से यत्र तत्र भागने लगे।

संडास जा रही थी ऋतु
मृतिका ऋतु की पत्नि गीता ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से चर्चा के दौरान बताया कि वह अपने पिता के घर ग्राम तुरर्गा गई हुई थी। मृितका का पिता संतलाल वहां पहुंचा। उसके उपरांत अपरान्ह जब ऋतु ने बताया कि वह संडास जाना चाह रही थी। इस पर उसके पिता ने कहा कि चलो बेटा मैं भी चलता हूं। इसके बाद मृतिका ऋतु, अपने पिता के साथ वहां से चली गई।

कुल्हाड़ी से काट दिया सिर
बताया जाता है कि आज दोपहर दो बजे की बात है, पूर्व जनपद सदस्य संतलाल इ्र्रडपाचे उम्र लगभग 40 वर्ष ग्राम झोला थाना केवलारी निवासी ने अपने ससुराल ग्राम तुरर्गा (थाना केवलारी)के पास जंगल में अपने साथ 6 वर्षीय बच्ची ऋतु इडपाचे को खैरमाई चबूतरा ले जाकर, गर्दन पर धारदार कुल्हाडी से वार करते हुए बली चढ़ा कर वहीं बच्ची के शव के पास शांत बैठा रहा। ग्रामीणांे को जानकारी लगते ही पूरे क्षेत्र में सनसनी फैल गई।

मीडिया पहुंचा पहले, पुलिस पहुंची दो घंटे बाद
भारतीय सिनेमा में पुलिस की छवि यह बनाई गई है कि वह अपराध घटित होने के काफी देर बाद घटना स्थल पर पहुंचती है। ग्राम तुरर्गा में भी बिल्कुल ऐसा ही नजारा देखने को मिला। यहां मीडिया पहले पहुंचा और दो घंटे इंतजार के उपरांत मौके पर पुलिस पहुंची। आज खास बात यह रही कि दो घंटे तक मीडिया कर्मी ग्रामीणों के साथ घटना स्थल पर खड़े होकर केवलारी  पुलिस का इंतजार करते रहे। दो घंटे देरी से पहुंच पुलिस ने कुल्हाडी को अपने कब्जे में लेकर आरोपी को गिरफ्तार किया और थाना केवलारी ले आई। शव का पंचनामा बनाकर, पीएम कराये जाने के बाद परिजनो को साैंपा गया।

टीआई साहब पूजा करने दो-
घटना की जानकारी लगते ही केवलारी थाना प्रभारी एम.ए.कुरैशी जब मौके पर पहंुचे तो आरोपी पिता पूजा करने में जुटा हुआ था। उसने कहा टीआई साहब, बैठिए पहले मैं पूजा कर लूं।

सपने में आई देवी
कलेक्टर भरत यादव व एसपी बी.पी.चंद्रवंशी के अनुसार आरोपी पिता ने पूछताछ में बताया है कि उसे सपने में देवी आई थी, जिसके चलते उसने इस घटना को अंजाम दिया है। कलेक्टर के अनुसार आरोपी की स्थिति सामान्य है। ऐसा लग नहीं रहा कि वह मानसिक रूप से बीमार है। उसके परिजनों व ग्रामीणों ने भी पूछताछ में ऐसी ही जानकारी दी है।

गांव में पसरा सन्नाटा
घटना के बाद से गांव में सन्नाटा पसरा हुआ है। अपनी हंसती-खेलती बेटी को गंवाने वाली मां के रो-रोकर बुरे हाल हैं। केवलारी थाना पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर उसके खिलाफ हत्या का प्रकरण दर्ज कर लिया है। पुलिस उससे पूछताछ में जुटी है।

मौके पर पहुंचे एसडीएम
पुलिस सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि केवलारी से उगली मार्ग पर झोला गांव निवासी पूर्व जनपद सदस्य श्री संतलाल इडपाचे ने 10 सितम्बर 2013 की दोपहर अपने ससुराल पक्ष के गांव तुरर्गा पहुॅचकर यहां स्थित खैरमाई मंदिर में अपनी पुत्री ऋतु इडपाचे (8) वर्ष को लेकर देवी मां के सामने उसकी बलि चढ़ा दी। इस घटना की सूचना मिलते ही केवलारी एसडीएम कौशलेन्द्र विक्रम सिंह तथा थाना प्रभारी एम.ए.कुरैशी पुलिस बल के साथ घटना स्थल पर पहुॅच गये हैं तथा आरोपी पिता को गिरफ्तार कर लिया गया है। पुत्री की बलि चढ़ाने का कारण अज्ञात है।

अंधविश्वास हो सकता है कारण!
एसडीएम कौशलेन्द्र विक्रम सिंह (आईएएस) ने साई न्यूज से चर्चा के दौरान बताया कि प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अंधविश्वास के चलते आरोपी पिता ने अपनी पुत्री की बलि चढ़ाई है। मृतक बालिका के शव को पोस्ट मार्टम हेतु केवलारी लाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि आरोपी पिता ने तुरर्गा गांव के समीप वीरान स्थल पर बने एक चबूतरानुमा खैरमाई मंदिर में अपनी पुत्री की बलि चढ़ाते हुए उसकी गर्दन को धड़ से अलग कर दिया है। बलि के कारणों का पता लगाने का प्रयास किया जा रहा है।

आरोपी विक्षिप्त है अथवा नहीं इस बारे में जांच के बाद ही स्थिति स्पष्ट होगी। इस संबंध में अभी जांच जारी है।

बी.पी.चंद्रवंशी, पुलिस अधीक्षक सिवनी

डेंगू: जरूरी है सावधानी

डेंगू: जरूरी है सावधानी

(शरद खरे)

सिवनी जिले में डेंगू की दस्तक वाकई दुखदायी है। डेंगू का कहर सिवनी के निवासियों ने मीडिया के माध्यम से ही देखा और सुना होगा। डेंगू का डंक वाकई बेहद खतरनाक होता है। मलेरिया से तो जिलावासी रूबरू हो चुके हैं पर अब डेंगू का डंक उनकी परेशानी का सबब बन चुका है। स्वास्थ्य प्रशासन भले ही इस मामले में शुतुरमुर्ग के मानिंद रेत में सर गड़ाकर अपने आप को पाक साफ बताने का प्रयास कर रहा हो पर जमीनी हकीकत है हाल ही में हुई डेंगू से एक मौत!
सिवनी में मलेरिया और डेंगू के मरीज मिलने से हड़कंप मचा हुआ है। ये दोनों ही मच्छर जनित रोग हैं। इसके साथ ही साथ मच्छर जनित चिकन गुनिया भी बेहद ही पीड़ा दायक रोग है। न ही नगर पालिका को, न ही स्थानीय निकाय की अन्य शाखाओं को और न ही स्वास्थ्य विभाग ने इसकी रोकथाम के लिए कोई उपाय किए हैं। यही कारण है कि जिले में स्थिति भयावह हो चुकी है। जिला मुख्यालय सिवनी में जहां देखो वहां पानी के डबरे, पोखर भरे पड़े हैं। लोगों के घरों में भी पानी रूका हुआ है। कहा जाता है कि ठहरा हुआ पानी जानलेवा मलेरिया के लिए जिम्मेदार मच्छरों के लिए उपजाऊ माहौल तैयार करता है। जिला चिकित्सालय में पानी के डबरे निश्चित तौर पर इनके लिए संजीवनी का काम ही कर रहे हैं।
कम ही लोग जानते होंगे कि भारत की आजादी वाले साल यानी 1947 में मलेरिया जैसी घातक जानलेवा बीमारी ने देश में दस लाख से ज्यादा लोगों की इहलीला समाप्त कर दी थी। दरअसल मादा एनाफिलीस़़ मच्छर जब इंसान को काटती है, तब वह एक विशेष तरह का वायरस मनुष्य के अंदर प्रविष्ट करा देती है। यही वायरस मलेरिया को जन्म देता है। इस मादा मच्छर के पास इंसानी त्वचा को भेदने के लिए एक विशेष तरह का हथियार होता है। शोध बताता है कि इसके पास पतले डंक के अंत में सुईनुमा जुड़वा अस्त्र होता है।
यह मादा, इंसान के शरीर में इसे प्रविष्ट कराकर रक्त वाहनियों की तलाश करती है। नहीं मिलने पर यह क्रम जारी रखती है। नस मिलने पर यह मादा इंसान का कुछ रक्त चूस लेती है, और फिर डंक को बाहर निकालने के पहले इसमें एक विशेष तरह का एंजाईम उसमें छोड़ देती है। शोधकर्ताओं की मानें तो यह मादा मच्छर दो दिन में ही 30 से 150 तक अंडे देती है। इन अंडों को सेने के लिए उसे मानव रक्त की आवश्यक्ता होती है।
मलेरिया का स्वरूप विश्व भर में इतना विकराल हो गया है कि इसे दुनिया की तीसरे नंबर की सबसे बड़ी महामारी का दर्जा मिल गया है। कहा जाता है कि एड्स से 15 सालों में जितनी जानें जाती हैं, उतनी जान मलेरिया रोग के कारण महज एक साल में ही चली जाती हैं। मलेरिया का सबसे अधिक प्रकोप पांच साल से कम के बच्चों पर होता है। औसतन हर साल दुनिया भर में 25 लाख से अधिक लोग इस भयानक बीमारी से अपने प्राण गंवा देते हैं।
विश्व हेल्थ आर्गनाईजेशन (डब्लूएचओ) का प्रतिवेदन साफ तौर पर बताता है कि मलेरिया के मरीजों की वृद्धि की दर हर साल 16 फीसदी आंकी गई है। यह तथ्य निश्चित रूप से चिंता का विषय कहा जा सकता है। मलेरिया कितनी गंभीर बीमारी है यह इस बात से ही साफ हो जाता है कि हर साल विश्व भर में 2 अरब डालर से ज्यादा इस पर खर्च कर दिया जाता है। इतना ही नहीं मलेरिया को लेकर होने वाले शोधों पर हर साल 580 लाख डालर खर्च किया जाता है।
सिवनी में डेंगू के मरीजों की पुष्टि स्वास्थ्य विभाग द्वारा आधिकारिक तौर पर की जा चुकी है। डेंगू से एक के बाद एक काल कलवित होने की खबरें भी आने लगी हैं। स्वास्थ्य विभाग, ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत, नगर पंचायत और नगर पालिकाएं अब तक इस मामले को लेकर संजीदा होती नहीं दिख रही है। बारिश अब थम चुकी है इसलिए जगह जगह जमा पानी में मच्छरों के अण्डे पनपेंगे। गिरते पानी में तो इनके बहने की संभावनाएं होती हैं पर अब रूके पानी में तो ये आसानी से अपनी वंशवृद्धि का काम कर सकते हैं।
जिला कलेक्टर के कड़े निर्देशके उपरांत दिखाने को तो स्वास्थ्य विभाग और नगर पालिका प्रशासन ने डेंगू के लार्वा की खोज कर दवा डालने का काम किया, साथ ही साथ प्रभावशाली लोगों के घरों के आसपास फागिंग मशीन का धुआं भी उड़ाया। अगर यह काम ईमानदारी से हो रहा है तो फिर क्या कारण है कि आज भी डेंगू के मरीज और लार्वा मिलने का सिलसिला जारी है। अगर लार्वा और मरीज मिल रहे हैं तो इससे साफ हो जाता है कि काम ईमानदारी से नहीं किया जा रहा है।

सरकारी नुमाईंदों की हिम्मत तो देखिए, भाजपा के दो दो विधायकों के पति सिवनी में जिला चिकित्सालय में पदस्थ हैं। एक विभाग के प्रमुख हैं तो दूसरे के पास मलेरिया विभाग का प्रभार है। बावजूद इसके मच्छर डंक पर डंक मारे जा रहे हैं। इसे क्या समझा जाए? क्या विधायक ही भाजपा के प्रति लोगों को उकसाने का जतन कर रही हैं? अगर नहीं तो कलेक्टर के निर्देशों को कचरे की टोकरी में कैसे डाला जा रहा है, और अगर नहीं डाला जा रहा है तो फिर क्या वजह है कि तीन माह बीतने के उपरांत भी डेंगू का लार्वा और मरीज लगातार मिलते ही जा रहे हैं . . .।