सोमवार, 26 अगस्त 2013

सेल टेक्स का काम कर रही पुलिस!

सेल टेक्स का काम कर रही पुलिस!

आखिर खवासा से कैसे पार हुआ अवैध माल से भरा ट्रक!

(महेश रावलानी)

सिवनी (साई)। खवासा बार्डर के जाम से हलाकान हैं लोग, खवासा में जांच के नाम पर अवैध वसूली की शिकायतें जमकर मिल रही हैं, बावजूद इसके प्रशासन ने अब तक कोई कदम नहीं उठाया है। खवासा में सेलटेक्स की जांच चौकी है। इस जांच चौकी में जांच की रस्म अदायगी किस तरह हो रही है इसकी एक बानगी था गत दिवस पुलिस द्वारा पकड़ा गया ट्रक।
बताया जाता है कि महाराष्ट्र की संस्कारधानी नागपुर से उत्तर प्रदेश जाने वाले एक ओव्हरलोडेड ट्रक को सिवनी की यातायात पुलिस ने पकड़ा। इस ट्रक के दस्तावेज देखने पर पुलिस को गफलत समझ में आई। पुलिस ने सेलटेक्स विभाग में पदस्थ सरोज श्रीवास्तव और सेल टेक्स निरीक्षक श्री सूर्यवंशी को मौके पर बुलाया।
प्राप्त जानकारी के अनुसार सेल टेक्स विभाग के कर्मचारियों को उस वाहन में लदा माल और बिल्टी बाउचर देखने पर माल अवैध लगा। तहकीकात करने के उपरांत वाहन नंबर एमएच 36 एफ 1982 पर सेल टेक्स विभाग ने छः लाख 34 हजार रूपए का जुर्माना मढ़ दिया।
गौरतलब है कि जो ट्रक पकड़ाया था उसमें जीरा, होजरी के सामान, पंखे, प्लास्टिक का सामान और साबुतदाना सहित अन्य सामग्री भरी थी। जिस व्यापारी के नाम से उक्त सामान ले जाया जाना बताया जा रहा था, उसकी पहचान नहीं हो पा रही थी। यातायात पुलिस सिवनी की पहल पर सेल टेक्स विभाग द्वारा किए गए जुर्माने की कार्यवाही से स्पष्ट हो गया है कि यह वाहन खवासा जांच चौकी से रिश्वत देकर ही आगे बढ़ा था।

जांच का विषय तो यह है कि क्या अब सेल टेक्स विभाग द्वारा खवासा की विक्रय कर जांच चौकी द्वारा छोड़े गए इस वाहन पर जुर्माना करने के बाद विभाग या जिला प्रशासन द्वारा जांच चौकी प्रभारी एवं अन्य स्टाफ के खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी कर अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाती है अथवा उन्हें मुनाफे में ही छोड़ दिया जाता है!

भाजपा विधायकों की टिकिट पर संकट के बादल!

भाजपा विधायकों की टिकिट पर संकट के बादल!

(नन्द किशोर)

भोपाल (साई)। भारतीय जनता पार्टी और शिवराज सिंह चौहान अपनी हैट्रिक बनाने के चक्कर में अब नए नए फार्मूलों पर विचार कर रहे हैं। भाजपा के सूत्रों का कहना है कि इस बार सत्तारूढ़ विधायकों में उन पर गाज गिरने की संभावना ज्यादा बताई जा रही है जिनकी जीत का अंतर पंद्रह हजार से कम रहा है।
भारतीय जनता पार्टी के उच्च पदस्थ सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि जिन विधायकों ने 15 हजार से कम जीत का अंतर दर्ज किया है, एवं विधानसभा क्षेत्र में जिनका परफार्मेंस पुअर रहा है उनकी टिकिट काटी जा सकती है। सूत्रों की मानें तो इस बार विधानसभा में अपने अपने क्षेत्र के प्रति विधायक प्रश्न पूछने में कितने ज्यादा जागरूक रहे हैं इसे भी क्राईटेरिया बनाया जा सकता है।
सूत्रों ने साई न्यूज को आगे बताया कि विधायकों द्वारा विधानसभा में अपने विधानसभा क्ष़्ोत्र के प्रति पूरी तरह उदासीन रहने के कारण विधायकों के प्रति क्षेत्र में जमकर नाराजगी देखी जा रही है। यही कारण है कि जिन क्षेत्रों में सत्तारूढ़ विधायकों के खिलाफ माहौल खदबदा रहा है उन क्षेत्रों में नए चेहरों को प्रथमिकता दी जा सकती है।
सिवनी जिले की लखनादौन विधानसभा से शशि ठाकुर को वर्ष 2003 के चुनाव में 36313 मत मिले थे, जबकि उनके प्रतिद्वंदी राजेश्वरी उइके को 34617 मत मिले थे और श्रीमती शशि ठाकुर गोंगपा से महज 1696 वोटों से ही जीती थीं। वर्ष 2008 के चुनाव में श्रीमती शशि ठाकुर को 46209 मत मिले, जबकि उनके प्रतिद्वंदी बेनी परते को 41211 मत मिले, इस हिसाब से 4998 मत से ही जीती।
ऐसी ही स्थिति सिवनी विधानसभा क्षेत्र की है, जहां वर्ष 2003 में भाजपा के नरेश दिवाकर को 53312 मत मिले थे, जबकि कांग्रेस के प्रत्याशी रहे राजकुमार खुराना को 37958 मत मिले थे, जिसमें नरेश दिवाकर राजकुमार खुराना से 15 हजार 354 वोटों से जीते थे। 2008 में भाजपा ने नरेश दिवाकर की टिकिट काटकर श्रीमती नीता पटेरिया को दे दिया, जिसमें श्रीमती पटेरिया को 41928 मत मिले, जबकि उनके प्रतिद्वंदी निर्दलीय चुनाव लड़े दिनेश राय मुनमुन को 29444 मत मिले। इस चुनाव में श्रीमती नीता पटेरिया  को 12 हजार 484 मतों से ही विजयी मिली।
भाजपा के बरघाट विधायक कमल मर्सकोले को 2008 में 61753 मत मिले थे, जबकि उनके प्रतिद्वंदी कांग्रेस के तीरथसिंह बट्टी को 45943 मत मिले थे, जिसमें कमल को 15810 वोटों से जीत मिली थी।

भाजपा ने अगर टिकिट देने में यह फार्मूला अपनाया तो श्रीमती नीता पटेरिया और शशि ठाकुर की टिकिट पर संकट के बादल मण्डरा सकते हैं। वहीं, विधानसभा में क्षेत्र के बारे में प्रश्न पूछने में तीनों ही विधायक पूरी तरह फिसड्डी ही साबित हुए हैं। हो सकता है टिकिट देने के क्राईटेरिए पर एकाध सप्ताह में गाईड लाईन तय हो जाए।

राख से पूरी तरह पट जाएगा घंसौर

आदिवासियों को छलने में लगे गौतम थापर . . . 6

राख से पूरी तरह पट जाएगा घंसौर

(ब्यूरो कार्यालय)

घंसौर (साई)। मध्य प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर से महज सौ किलोमीटर दूर सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य घंसौर तहसील में देश के उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान झाबुआ पावर द्वारा प्रस्तावित बारह सौ साठ मेगावाट कोल आधारित पावर प्लांट की संस्थापना के पहले कंपनी को पर्यावरण की दृष्टि से वृक्षारोपण प्रस्तावित है। कंपनी इस मामले में पूरी तरह मौन है कि वह पर्यावरण को देखते हुए कितने, किस प्रजाति के, कहां पर पौधे लगाएगी।
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के भरोसेमंद सूत्रों ने कहा कि प्रस्तावित संयंत्र द्वारा प्रतिदिन 853 टन राख उत्सर्जित की जाएगी, जिसे बायलर के पास से ही एकत्र किया जा सकेगा। समस्या लगभग 1000 फिट उंची चिमनी से उड़ने वाली राख (फ्लाई एश) की है। इससे रोजाना 3416 टन राख उड़कर आसपास के इलाकों में फैल जाएगी। 1000 फिट की उंचाई से उड़ने वाली राख कितने डाईमीटर में फैलेगी इस बात का अन्दाजा लगाने मात्र से सिहरन हो उठती है। सूत्रों का कहना है कि कंपनी ने अपने प्रतिवेदन में हवा का रूख जिस ओर दर्शाया है, संयंत्र के उस ओर बरगी बांध है।
जानकारों का कहना है कि 3416 टन राख प्रतिदिन उड़ेगी जो साल भर में 12 लाख 46 हजार 840 टन हो जाएगी। अब इतनी मात्रा में अगर राख बरगी बांध के जल भराव क्षेत्र में जाएगी तो चन्द सालों में ही बरगी बांध का जल भराव क्षेत्र मुटठी भर ही बचेगा। यह उड़ने वाली राख आसपास के खेत और जलाशयों पर क्या कहर बरपाएगी इसका अन्दाजा लगाना बहुत ही दुष्कर है। इस बारे में पावर प्लांट की निर्माता कंपनी ने मौन साध रखा है।
इतना ही नहीं प्रतिदिन बायलर के पास एकत्र होने वाली 853 टन राख जो प्रतिमाह में बढकर 26 हजार 443 और साल भर में 3 लाख 11 हजार टन हो जाएगी उसे कंपनी कहां रखेगी, या उसका परिवहन करेगी तो किस साधन से, इस बारे में भी झाबुआ पावर लिमिटेड ने चुप्पी ही साध रखी है। अगर राख को संयंत्र के आसपास ही डम्प कर रखा जाएगा तो वहां के खेतों की उर्वरक क्षमता प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगी और अगर परिवहन किया जाता है तो घंसौर क्षेत्र की सड़कों के धुर्रे उड़ना स्वाभाविक ही है।

इन परिस्थितियों में पर्यावरण के नुकसान को आंकने का काम मध्य प्रदेश के प्रदूषण नियंत्रण मण्डल का था। बताया जाता है कि बिना प्रस्तावित वृक्षारोपण के ही, कागजों पर वृक्ष लगाकर कंपनी ने पाल्यूशन कंट्रोल बोर्ड को साधकर उससे अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त कर लिया है।

डेंगू का निर्दयी डंक और निष्ठुर प्रशासन

डेंगू का निर्दयी डंक और निष्ठुर प्रशासन

(शरद खरे)

सिवनी जिले में डेंगू की दस्तक वाकई दुखदायी है। डेंगू का कहर सिवनी के निवासियों ने मीडिया के माध्यम से ही देखा और सुना होगा। डेंगू का डंक वाकई बेहद खतरनाक होता है। मलेरिया से तो जिलावासी रूबरू हो चुके हैं पर अब डेंगू का डंक उनकी परेशानी का सबब बन चुका है। स्वास्थ्य प्रशासन भले ही इस मामले में शुतुरमुर्ग के मानिंद रेत में सर गड़ाकर अपने आप को पाक साफ बताने का प्रयास कर रहा हो पर जमीनी हकीकत है हाल ही में हुई डेंगू से एक मौत!
सिवनी में मलेरिया और डेंगू के मरीज मिलने से हड़कंप मचा हुआ है। ये दोनों ही मच्छर जनित रोग हैं। इसके साथ ही साथ मच्छर जनित चिकन गुनिया भी बेहद ही पीड़ा दायक रोग है। न ही नगर पालिका को न ही स्थानीय निकाय की अन्य शाखाओं को और न ही स्वास्थ्य विभाग ने इसकी रोकथाम के लिए कोई उपाय किए हैं। यही कारण है कि जिले में स्थिति भयावह हो चुकी है। जिला मुख्यालय सिवनी में जहां देखो वहां पानी के डबरे, पोखर भरे पड़े हैं। लोगों के घरों में भी पानी रूका हुआ है। कहा जाता है कि ठहरा हुआ पानी जानलेवा मलेरिया के लिए जिम्मेदार मच्छरों के लिए उपजाऊ माहौल तैयार करता है। जिला चिकित्सालय में पानी के डबरे निश्चित तौर पर इनके लिए संजीवनी का काम ही कर रहे हैं।
कम ही लोग जानते होंगे कि भारत की आजादी वाले साल यानी 1947 में मलेरिया जैसी घातक जानलेवा बीमारी ने देश में दस लाख से ज्यादा लोगों की इहलीला समाप्त कर दी थी। तब से 2006 तक लगभग आठ लाख 12 हजार लोग इसकी चपेट में आकर जान गंवा चुके हैं। चाहे महानगर हो या छोटा सा कस्बा, लोग आज भी इसके आगोश में हैं।
दरअसल मादा एनाफिलीस़ मच्छर जब इंसान को काटती है, तब वह एक विशेष तरह का वायरस मनुष्य के अंदर प्रविष्ट करा देती है। यही वायरस मलेरिया को जन्म देता है। इस मादा मच्छर के पास इंसानी त्वचा को भेदने के लिए एक विशेष तरह का हथियार होता है। शोध बताता है कि इसके पास पतले डंक के अंत में सुईनुमा जुड़वा अस्त्र होता है।
यह मादा, इंसान के शरीर में इसे प्रविष्ट कराकर रक्त वाहनियों की तलाश करती है। नहीं मिलने पर यह क्रम जारी रखती है। नस मिलने पर यह मादा इंसान का कुछ रक्त चूस लेती है, और फिर डंक को बाहर निकालने के पहले इसमें एक विशेष तरह का एंजाईम उसमें छोड़ देती है। शोधकर्ताओं की मानें तो यह मादा मच्छर दो दिन में ही 30 से 150 तक अंडे देती है। इन अंडों को सेने के लिए उसे मानव रक्त की आवश्यक्ता होती है।
मलेरिया का स्वरूप विश्व भर में इतना विकराल हो गया है कि इसे दुनिया की तीसरे नंबर की सबसे बड़ी महामारी का दर्जा मिल गया है। कहा जाता है कि एड्स से 15 सालों में जितनी जानें जाती हैं, उतनी जान मलेरिया रोग के कारण महज एक साल में ही चली जाती हैं। मलेरिया का सबसे अधिक प्रकोप पांच साल से कम के बच्चों पर होता है। औसतन हर साल दुनिया भर में 25 लाख से अधिक लोग इस भयानक बीमारी से अपने प्राण गंवा देते हैं।
विश्व हेल्थ आर्गनाईजेशन (डब्लूएचओ) का प्रतिवेदन साफ तौर पर बताता है कि मलेरिया के मरीजों की वृद्धि की दर हर साल 16 फीसदी आंकी गई है। यह तथ्य निश्चित रूप से चिंता का विषय कहा जा सकता है। मलेरिया कितनी गंभीर बीमारी है यह इस बात से ही साफ हो जाता है कि हर साल विश्व भर में 2 अरब डालर से ज्यादा इस पर खर्च कर दिया जाता है। इतना ही नहीं मलेरिया को लेकर होने वाले शोधों पर हर साल 580 लाख डालर खर्च किया जाता है।
भारत सरकार इस रोग को लेकर कितनी संजीदा है, यह इस बात से साफ हो जाता है कि देश के स्वास्थ्य बजट का 25 फीसदी हिस्सा मलेरिया की रोकथाम के लिए सुरक्षित रखा जाता है। भारत सरकार के स्वास्थ्य महकमे द्वारा नब्बे के दशक के उत्तरार्ध तक राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम को पृथक से चलाया जाता था। इसके तहत देश के हर जिले मंे मलेरिया नियंत्रण की एक पृथक यूनिट हुआ करती थी।
शनैःशनैः मलेरिया की इकाईयों में कार्यरत सरकारी कर्मियों को शिक्षकों की तरह ही जनसंख्या, पल्स पोलियो आदि के काम में बेगार के तौर पर उपयोग किया जाने लगा। इसके चलते देश भर में एक बार फिर मलेरिया बुरी तरह पैर पसारने लगा है। सरकार द्वारा चलाए जा रहे समग्र स्वच्छता अभियान में भी भ्रष्टाचार का दीमक पूरी तरह लग चुका है। मलेरिया फैलने की मुख्य वजह अज्ञानता मानी जा सकती है। अज्ञानता के चलते साफ सफाई न रख पाने तथा छोटे छोटे पानी के स्त्रोतों के कारण मच्छरों को प्रजनन का उपजाऊ माहौल मिल जाता है।

सिवनी में डेंगू के मरीजों की पुष्टि स्वास्थ्य विभाग द्वारा आधिकारिक तौर पर की जा चुकी है। अब तो डेंगू से दो मरीज की मौत की खबर भी आ गई है। छपारा विकासखण्ड के ग्राम केकड़ा में डेंगू से भाई बहन की मौत से मातम पसरा है। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ.वाय.एस.ठाकुर एवं जिला मलेरिया अधिकारी डॉ.एच.पी.पटेरिया को शायद इस खबर से अंतर न पड़े, पर आने वाला समय भयावह है जिससे इंकार नहीं किया जा सकता है। स्वास्थ्य विभाग के निष्ठुर प्रशासन द्वारा गांव गांव में दवाओं के छिड़काव की बात कही जा रही है। वास्तव में दवाओं का छिड़काव कागजों तक ही सीमित है। अगर ऐसा नहीं होता तो लोगों के बीमार पड़ने या मरने की खबरें नहीं आतीं। अब लोग संवेदनशील जिला कलेक्टर भरत यादव के कड़े निर्देशोंके स्थान पर ठोस कदमकी ही प्रतीक्षा कर रहे हैं।