बुधवार, 21 अगस्त 2013

चोर मस्त, पुलिस पस्त, हो गई पांच लाख की चोरी

चोर मस्त, पुलिस पस्त, हो गई पांच लाख की चोरी

एसपी बंगले से महज सौ मीटर दूर हुई चोरी की वारदात, कलेक्टर बंगले के सामने हो चुकी चार बार चैन स्नेचिंग

(जितेश अवधवाल)

सिवनी (साई)। सिवनी शहर में चोरों के हौसले दिन ब दिन बुलंद होते जा रहे हैं। कोतवाली पुलिस पूरी तरह मुस्तैद होने का दावा करते हैं, नगर कोतवाल शिवराज सिंह। जिले के दो वरिष्ठ अधिकारियों के आवास के आसपास ही चोर और लुटेरे घटनाओं को कारित कर पुलिस की व्यवस्थाओं को सरेआम चुनौति देकर उसके के दावों की पोल खोल रहे हैं।
सिवनी में चुस्त और मुस्तैद पुलिसिंग की कलई उस वक्त खुल गई जब अज्ञात चोर, एसपी बंगले से महज 100 मीटर दूरी पर स्थित एक सूने घर का ताला तोड़कर वहां से लगभग 5 लाख रूपए नगद ले उड़े। यह वारदात रात लगभग एक से दो बजे के बीच की बताई जा रही है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार एसपी बंगले के सामने महज कुछ दूरी पर नवल टेलीकॉम के संचालक नवल किशोर ठाकुर निवास करते हैं। पिछले लगभग आठ दस दिन से उनका परिवार नागपुर में था। उनके एक मकान का निर्माण अन्यत्र हो रहा है जिसके लिए वे रोजाना सुबह ही घर से चले जाया करते थे।
नवल किशोर ने बताया कि वे अपने परिवार को लेने नागपुर गए थे। अमूमन वे जब भी बाहर जाया करते थे रात्रि में बारह बजे तक आ ही जाया करते थे। गत रात्रि नागपुर में बसों में जबर्दस्त भीड़ होने के चलते उन्हें काफी देर बाद बस मिली और वे उसमें बैठकर सिवनी आए। सिवनी में बस ने यात्रियों को बायपास पर उतार दिया। (सिवनी में बस द्वारा यात्रियों को बायपास पर उतारा जाना साफ करता है कि न्यायालयों के रोक के आदेश के उपरांत भी सिवनी से होकर अवैध यात्री बसों का संचालन बेखटके जारी है)
प्राप्त जानकारी के अनुसार जैसे ही नवल ठाकुर वहां उतरे उन्हें उनके एक परिचित पुलिस कर्मी मिल गए जिनके साथ वे घर आए। उन्होंने बताया कि लगभग चार बजे वे घर पहुंचे तो उन्होंने घर के बाजू की लाईट जली देखी। वे आशंकित हो गए और बाजू के दहलान से पीछे अंदर झांका तो उन्हें वहां की लाईट भी जली मिली।
उनके साथ आए पुलिस कर्मी के साथ वे राड लेकर अंदर घुसे तो उन्होंने पाया कि घर के मुख्य द्वार के दो ताले जिसमें एक सेंटर लॉक था टूटा हुआ था एवं घर का सारा सामान बिखरा हुआ था। उन्होंने बताया कि उनके घर में अलमारी में रखे चार लाख पचहत्तर हजार रूपए तथा लगभग पच्चीस हजार रूपए जो अन्य रखे थे वह चोर ले उड़े। चोरों ने उनके घर की एक एक दराज, एक एक सूटकेस यहां तक कि खाद्य सामग्री की भी तबियत से तलाशी ली।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार इस चोरी में मुख्य द्वार के दरवाजे के दो ताले जिस तरह से तोड़े गए हैं उसे देखकर लग रहा है कि यह किसी एक्पर्ट चोर गेंग का ही कारनामा है। मुख्य द्वार का कुंदा ही तोड़ दिया गया है। इसके साथ ही साथ गोदरेज कंपनी का सेंटर लॉक भी जो काफी मजबूत माना जाता है को पूरी तरह उखाड़ दिया गया है।
वहीं दूसरी ओर नवल ठाकुर के घर के सामने स्थित प्लाई जोनके सीसी टीवी केमरे के फुटेज में एक अर्मडा जैसा दिखने वाला चार पहिया वाहन कुछ देर के लिए नवल ठाकुर के घर के सामने रूकता प्रतीत हो रहा बताया जा रहा है। कंप्यूटर की घड़ी में उस समय एक बजकर नौ मिनिट होना बताया जा रहा है। इसके बाद एक बजकर चौदह मिनिट पर नवल ठाकुर के बाजू की लाईट जलना बताया जा रहा है।
अपरान्ह लगभग दो बजे तक पुलिस का दल एक बार मौके पर जाकर वापस आ गया था। बाद में नगर निरीक्षक शिवराज सिंह (9425149768) से संपर्क करने पर उन्होंने बताया कि डॉग स्कॉट इसलिए मौके पर नहीं भेजा जा सकता है, क्योंकि डॉग बीमार है एवं इलाज के लिए भोपाल गया है। साथ ही फिंगर पिं्रट एक्सपर्ट के संबंध में नगर निरीक्षक ने कहा कि वह देहात गया है, वापस आते ही मौके पर पहुंच जाएगा। लगभग ढाई बजे फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट वहां पहुंचे और अपना काम किया।

बारापत्थर में हुई चोरी ने एक बार फिर पुलिस की कार्यप्रणाली की पोल खोलकर रख दी है। गौरतलब है कि 15 अगस्त को कटंगी रोड में स्थित फईम खान के सूने मकान में भी चोरों ने ताला तोड़कर जेवर ले उड़ा थे। इस चोरी से इस बात पर भी प्रश्न चिन्ह लग रहा है कि क्या रात में पुलिस गश्त महज शोभा की सुपारी बनी हुई है।

अदालत का भी खौफ नहीं रहा नगर परिषद् लखनादौन को!

अदालत का भी खौफ नहीं रहा नगर परिषद् लखनादौन को!

स्थगन के बाद चलता रहा काम, एसडीएम, विधायक रहे मूकदर्शक, दबंगई के साथ काम कर रही नगर परिषद् लखनादौन!

(दादू अखिलेंद्र नाथ सिंह)

सिवनंी (साई)। लखन कुंवर की नगरी लखनादौन की नगर परिषद् पूरी दबंगई पर उतर आई है और इसकी दबंगई के सामने लखनादौन में पदस्थ अनुविभागीय दण्डाधिकारी लता पाठक के साथ ही साथ विधायक श्रीमती शशि ठाकुर भी अपने आप को असहाय ही महसूस कर रही हैं।
वैसे तो नगर परिषद अध्यक्ष श्रीमती सुधा राय की छवि एक बेहतर ग्रहणी और समझदार भद्र महिला की है, किन्तु चर्चा है कि नगर परिषद् लखनादौन के अध्यक्ष पद पर बैठी एक महिला श्रीमती सुधा राय की दबंगई इस कदर बढ़ गई है कि उसके सामने दो महिलाएं (एसडीएम लता पाठक और विधायक शशि ठाकुर) कुछ भी करने कहने में सक्षम नजर नहीं आ रही हैं। मामला चाहे पेट्रोल पंप चौराहे से रोटा नाला तक के सड़क निर्माण का हो या सब्जी मण्डी के निर्माण का, हर मामले में नगर परिषद् की दबंगई से सभी हत्प्रभ हैं।

सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का!
नगर परिषद् लखनादौन के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि दरअसल, जिस स्थान पर नगर परिषद् द्वारा सब्जी मण्डी का निर्माण करवाया जा रहा है वह जगह कृषि उपज मण्डी के स्वामित्व वाली है। इस जमीन पर पूर्व में तत्कालीन नगर परिषद् अध्यक्ष दिनेश राय उर्फ मुनमुन के कार्यकाल में अतिक्रमण कर लिया गया था, जबकि नगर परिषद् का काम अतिक्रमण हटाने का होता है। लोगों का कहना है कि अतिक्रमण हटाने वाले ही अतिक्रमण पर अमादा हो जाएं तो कहना ही पड़ेगा, कि सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का।

महज 6 महीने के लिए ली थी जमीन
उधर, कृषि उपज मण्डी समिति लखनादौन के सूत्रों का कहना है कि तत्कालीन नगर परिषद् अध्यक्ष दिनेश राय उर्फ मुनमुन के अध्यक्षीय कार्यकाल में जब इस मण्डी का मामला गर्माया तब नगर परिषद् लखनादौन ने बैक फुट पर आकर इस जमीन को कृषि उपज मण्डी से महज 6 माह के लिए उपयोगार्थ चाही गई थी। सूत्रों की मानें तो अपने कौलके पक्के दिनेश राय उर्फ मुनमुन ने इस जमीन को 6 माह के उपयोग के बाद कृषि उपज मण्डी लखनादौन को वापस करने का लिखित आश्वासन भी दिया था, सूत्रों ने कहा कि वे अपना वचन नहीं निभा पाए।

पहले बिल्ली फिर बन गए शेर
नगर परिषद् लखनादौन द्वारा कथित तौर पर कृषि उपज मण्डी लखनादौन की जमीन पर कब्जा कर लिया गया है। जब यह मामला उलझा तब नगर परिषद् लखनादौन ने अपने आप को निरीह दीन हीन बताया और भीगी बिल्ली बन गया, और इसके उपरांत एक बार फिर परिस्थितियां बदलते ही नगर परिषद् शेर की तरह दहाड़ मारने लगी। चर्चा तो यहां तक है कि लखन कुंवर की नगरी के एक चर्चित ठेकेदार ने यह तक कह डाला है कि नहीं होगी जमीन वापस जो उखाड़ते बने उखाड़ लो

हाई कोर्ट, एसडीएम कोर्ट का है स्थगन!
जिस जमीन पर लखनादौन नगर परिषद् की अध्यक्ष श्रीमती सुधा राय ने गाजे बाजे के साथ कार्यक्रम किया है, जिस सब्जी मण्डी का लोकार्पण होकर मीडिया में समाचार और फोटो छपवाए गए हैं, उस सब्जी मण्डी पर माननीय उच्च न्यायालय और एसडीएम कोर्ट का स्थगन है। लखनादौन नगर परिषद् शायद भारत गणराज्य का हिस्सा नहीं है तभी तो दो दो अदालतों के स्थगन को दरकिनार कर नगर परिषद् अध्यक्ष श्रीमती सुधा राय ने इसका न केवल लोकार्पण कर दिया वरन् बताते हैं कि स्थगन के बाद भी वहां काम जारी रखा। इस मामले को एसडीएम लता पाठक के संज्ञान में लाने के बाद भी नतीजा सिफर ही निकला है।

रातों रात हुआ काम, एसडीएम बनीं शोभा की सुपारी
कृषि उपज मण्डी समिति लखनादौन के सूत्रों ने बताया कि एसडीएम कोर्ट के स्थगन मिलने के साथ ही नगर परिषद् लखनादौन की अध्यक्ष श्रीमती सुधा राय ने इस मण्डी को नगर परिषद् की संपत्ति मानकर रातों रात काम करवाने के आदेश दिए। एसडीएम कोर्ट के निर्देश को धता बताकर श्रीमती सुधा राय ने दबंगई के साथ लखनादौन में नियम विरूद्ध काम करवाते हुए कृषि उपज मण्डी की जमीन पर सब्जी मण्डी का निर्माण करवा दिया।

आडिट में कैसे होगा पास!

अब दूसरे की जमीन के मालिकाना हक के बाद इसमें नगर परिषद् द्वारा कराए गए काम को अंकेक्षण विभाग (आडिट डिपार्टमेंट) के सामने आखिर नगर परिषद् इसे कैसे दर्शाएगी। इस काम का भुगतान भी हो गया बताया जा रहा है, जबकि इस जमीन का मालिकाना हक कृषि उपज मण्डी का बताया जा रहा है। नगर परिषद् लखनादौन की अध्यक्ष श्रीमती सुधा राय की दबंगई के सामने दो अन्य महिलाएं पहली एसडीएम लता पाठक और दूसरी विधायक श्रीमती शशि ठाकुर भी अपने आप को असहाय ही महसूस कर रही हैं।

कांग्रेस ने सदा ही छला है केवलारी वासियों को!

कांग्रेस ने सदा ही छला है केवलारी वासियों को!

विकास की किरण नहीं पड़ पाई हरवंश सिंह की केवलारी विधानसभा में, आजादी के साढ़े़ छः दशकों बाद भी बाबा आदम के जमाने की व्यवस्थाओं से पढ़ने जाते हैं नौनिहाल

(महेश रावलानी/इंजीनियर उदित कपूर/अरूण चंद्रोल)

सिवनी (साई)। सिवनी जिले में केवलारी विधानसभा क्षेत्र को वैसे तो जिले का सबसे समृद्ध विधानसभा क्षेत्र माना जाता है पर यह बाज़ीगरी महज कागज़ों पर ही है। केवलारी विधानसभा क्षेत्र की जमीनी हकीकत कुछ और बयां करती है। इस विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कमोबेश कांग्रेस के पास ही रहा है पर कांग्रेस के रहते भी केवलारी विधानसभा क्षेत्र में विकास की किरण प्रस्फुटित नहीं हो सकी है। इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व पूर्व केंद्रीय मंत्री सुश्री विमला वर्मा, श्रीमती नेहा सिंह के अलावा कांग्रेस के कद्दावर नेता हरवंश सिंह ठाकुर ने सालों साल किया है। हरवंश सिंह को उनके समर्थक और चाटुकारों द्वारा मीडिया में विकास पुरूषकी संज्ञा दी जाती रही है। विडम्बना ही कही जाएगी कि हरवंश सिंह के विधायक रहते भी केवलारी विधानसभा के लोग बाबा आदम की व्यवस्थाओं में जीने पर मजबूर हैं। आज भी शाला जाने के लिए केवलारी के नौनिहालों को कभी रेल की पटरी वाले पुल को पार करने का जोखिम उठाना पड़ता है तो कभी नाव की गांठनी होती है। कांग्रेस विशेषकर हरवंश सिंह ठाकुर द्वारा केवलारी विधानसभा में विकास के प्रतिमान गढ़़ने के दावे अपने चाटुकारों के माध्यम से सदा से ही किए गए हैं पर जमीनी हकीकत से अगर आप रूबरू होंगे तो निश्चित तौर पर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे।
सिवनी जिले का केवलारी विकासखण्ड अपनी ही दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। केवलारी विधानसभा के सुआ, टकटुआ, चिरई डोंगरी, कोपीझोला, पीपरदौन, पाढंरापानी, मशानबर्रा, दामीझोला, बंजर, डंूडलखेड़ा ऐसे गांव हैं जहां आजादी के 66 साल बाद भी बिजली नहीं पहुंच सकी है। यह है विकास पुरूष हरवंश सिंह ठाकुरकी सल्तनत् यानी विधानसभा क्षेत्र, जहां की जनता ने कांग्रेस पर सबसे ज्यादा भरोसा किया है। यहां से हरवंश सिंह चार बार विधायक चुने गए हैं। अब उनके अवसान के उपरांत यह सल्तनत् उनके पुत्र रजनीश सिंह के हाथों हस्तांतरित किए जाने की तैयारी की जा रही है। कांग्रेस के अंदर रजनीश सिंह की ताजपोशी की तैयारियां चल रही हैं। बारिश पानी की तबाही के बीच मंगलगान गाए जा रहे हैं। बारिश में लोगों का अनाज बह गया है, मवेशी बह गए, गांव वालों को खाने के लाले पड़े हैं और हरवंश सिंह के सुपुत्र रजनीश सिंह उन्हें अनाज बांटने के स्थान पर कंबल बांटकर अपने कथित जरखरीद मीडिया में फोटो छपवा रहे हैं।
क्षेत्र के विकासके दावों के पीछे का स्याह सच यह है कि यहां बच्चे रेल्वे के लिए बने पुल पर से स्कूल जाने को मजबूर हैं। ग्राम कंडीपार के हालातों पर समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के विशेष प्रतिनिधि इंजीनियर उदित कपूर की विशेष रपट संडे स्पेशलमें 14 जुलाई को क्या वाकई आजादी के साढ़े छः दशक बीत गए!शीर्षक से प्रकाशित की जा चुकी है। इसमें स्पष्ट तौर पर दर्शाया गया था कि कंडीपार के बच्चे किस तरह जान हथेली पर रखकर रेल के पुल से आना जाना करते हैं। दरअसल, यह है हरवंश सिंह पर लगातार चार बार भरोसा कर उन्हें जनादेश देने का नतीजा।
आज चलिए आपको केवलारी के इस कथित विकाससे रूबरू करवाते हैं। ये दास्तां हैं एक ऐसे सफर की जहां हर पल मौत अपने पंख फैलाए खड़ी रहती है, इस इंतजार में कि कब कश्ती डगमगाए और वो उसमें बैठे लोगों को अपने आगोश में ले ले। ये तस्वीरें हैं मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के केवलारी ब्लॉक की, जहां के लोग हर रोज इसी तरह अपनी जान हथेली पर रखकर नदी को पार करते हैं। दो फीट चौड़ी और सिर्फ कुछ इंच ऊंची नाव जब नदी के बहाव की वजह से डगमगाती है तो नाव पर बैठे लोगों को तो जैसे भगवान याद आ जाते हैं। नाव पर छोटे-छोटे छेद होने की वजह से उसमें पानी भी भरता रहता है जिसे एक-दो चक्कर के बाद खाली करना पड़ता है, और तो और पानी का बहाव तेज होने पर बच्चों को भी नाव चलाने पर मजबूर होना पड़ता है। मौत के इस रास्ते पर सफर करना तो दूर, इसे देखकर ही आपकी रूह कांप जाएगी, लेकिन यहां के बच्चों से लेकर दूसरे बाशिंदे आज़ादी के 66 साल बाद भी नाव के सहारे रास्ता पार करने पर मजबूर हैं। आज भी यहां के नौनिहालों को स्कूल तक का सफर अपनी जान हथेली पर रखकर करना पड़ता है।
समाचार एजंेसी ऑफ इंडिया के ब्यूरो ने जब चलती नाव की सवारी गांठी और नाव में ही एक छात्रा अभिलाषा से पूछा तो उसका कहना था पढ़ाई के लिए नाव पर स्कूल जाना पड़ता है, क्योंकि कोई साधन नहीं है, डर भी लगता है, नाव पर बैठकर जाते हैं, अब क्या करें स्कूल तो जाना पड़ेगा। वहीं एक अन्य छात्रा शीतल से जब सवाल किया गया कि नाव पर स्कूल क्यों जाते हो?, तो उसने  जवाब दिया कि स्कूल तो जाना ही है पढ़ने के लिए, डर लगता है लेकिन कोई साधन नहीं है पुल भी नहीं बना है अभी, दो साल से बन रहा है।
वहीं एक अन्य छात्रा भारती बघेल का कहना था कि यहां कोई पुल नहीं है, आने जाने में बहुत दिक्कत होती है, बहुत डर लगता है। एक अन्य छात्र अंकित बघेल तो मानो बुरी तरह डरा हुआ ही लगा उसने कहा कि डर लगता है बहुत, पानी तेज रहता है, बहाव रहता है और पढ़ना है तो जाना ही पड़ता है, मजबूरी है हमारी, क्या करें।
यहां विचारणीय प्रश्न यह है कि अगर आपके बच्चे को एक दिन भी ऐसा सफर तय करके स्कूल जाना पड़े तो आपका क्या हाल होगा, यहां के लोगों के लिए तो ये रोज की बात है, लेकिन ऐसा नहीं है उन्हें अब डर लगना बंद हो गया है, आज भी बच्चा जब तक स्कूल से ना लौट आए तब तक मां का दिल घबराता ही रहता है।
ग्राम मलारा निवासी अनीता का कहना था कि बच्चे नाव से नदी पारकर जाते हैं, बहुत दिक्कत होती है, बहुत परेशानी से जाते हैं, कभी गिर जाते हैं, गीले होकर वापस आ जाते हैं, बहुत लापरवाही कर रहे हैं, पुल नहीं बना सके, फिसलन रहती है, कीचड़ रहता है, बहुत परेशानी से जाते हैं सभी बच्चे, जब तक बच्चे लौट नहीं आते चिंता लगी रहती है, पानी गिरने लगता है, तो नदी तक देखने जाना पड़ता है। ग्राम की ही उर्मिला बाई का कहना था कि बच्चे नाव से स्कूल जाते हैं, डर लगता है, घबराहट होती है, जब तक आएं ना ऐसा लगता है कि कब आ जाएं, एक तरफ नाला है, एक तरफ गंगाजी (वैनगंगा नदी) हैं, कैसे जाएंगे, कैसे आएंगे।
मौके पर गई साई न्यूज की टीम जब वास्तविकता से दो चार हुई तब लगा मानो इन बच्चों को सर्कस में काम करना चाहिए। क्योंकि खतरा सिर्फ नाव पर बैठने के बाद ही शुरू नहीं होता, नदी तक पहुंचने के लिए भी यहां के लोगों को एक खतरनाक फिसलन भरे ढलान को पार करना होता है, जहां कई बच्चे अक्सर गिर जाते हैं यहां फिसल जाते हैं, तभी तो यहां के लोग कहते हैं कि वो अपने बच्चों को भगवान के भरोसे ही पढ़ने के लिए भेजते हैं।
घुड़सार निवासी हेमू सिंह बघेल का कहना था कि उनकी आयु 64 साल की हो रही है, तब से वे ऐसा ही देख रहे हैं, तब से ही बहुत बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है यहां पर, आने-जाने में बच्चों को पढ़ने में और महिलाओं को परेशानी का सामना करना पड़ता है, बारिश ज्यादा हुई तो पूर्व-पश्चिम दोनों तरफ तो वैनगंगा नदी है, एक तरफ नाला है, चारों तरफ से घुड़सार गांव घिरा रहता है, कई बच्चे गिर जाते हैं फिसल जाते हैं, बहुत जोखिम है यहां आने जाने में, यहां लोग बच्चों को पढ़ाने के लिए भगवान भरोसे ही भेजते हैं।
साई न्यूज की टीम, दो फीट चौड़ी और सिर्फ 9-10 इंच ऊंची नाव के सहारे जब नदी के बीचोबीच पहुंचती है और ऊपर से पानी का बहाव तेज हो जाता है तो ऐसा लगता है जैसे सामने यमराज आ गए होंऐसा नहीं है सरकार या प्रशासन को इस बारे में कोई खबर न हो, यहां नाव चलाने के लिए बाकायदा जनपद पंचायत की ओर से ठेका दिया जाता है, सबसे ज्यादा रकम की बोली लगाने वाले ठेकेदार को सालभर नाव चलाने का ठेका दे दिया जाता है, बस इसके बाद प्रशासन को इस बाद से कोई मतलब नहीं कि ठेकेदार कैसी नाव चला रहा है। जब नाव का साइज ऐसा हो तो लाइफ जैकेट की बात करना तो पूरी तरह बेमानी हो जाता है।
नाव चलाने वाले ठेकेदार मनोज चंद्रोल ने बताया कि उन्हें उनकी आयु का इल्म नहीं है पर उनके पिता नाव का काम किया करते थे। उसके बाद उनके भाई ने यह व्यवसाय संभाला और अब वे कर रहे हैं यह व्यवसाय। उन्होंने बताया कि नाव चलाने का सरकारी ठेका होता है, रोज आने जाने वालों से साल का अनाज लेते हैं, वैसे एक तरफ आने का पांच रूपये, आना-जाना 10 रुपये एक बार का लिया जाता है।
आज़ाद भारत में ऐसा खतरनाक मंजर देखना हो तो हरवंश सिंह और कांग्रेस के केवलारी विधानसभा क्षेत्र का दौरा करिए। ऐसे खतरनाक सफर के लिए भी अगर पैसे देने पड़े तो इससे बड़ी विडम्बना क्या होगी, वैसे साल 2010 में यहां पुल बनाने को मंजूरी मिल गई थी और काम भी शुरू हो गया लेकिन तीन सालों में सिर्फ दो पिलर ही बन पाए, आज़ाद भारत के 66 साल बाद भी इस बुनियादी जरूरत के पूरा न हो पाने की वजह जब प्रशासन से पूछी गई तो उन्होंने फंड की कमी का हवाला देकर पल्ला झाड़ लिया।

66 साल के बारे में क्या स्थितियां रहीं, मैं नहीं कह सकता, लेकिन शासन-प्रशासन के पास फंड की कमी रहती है और प्राथमिकताएं तय करनी पड़ती है कि कहां पहले बनना है, लेकिन जैसा आप बता रहे हैं और ब्रिज कॉर्पोरेशन के एग्ज़िक्यूटिव इंजीनियर से जो बात हुई मेरी, 2010 में पुल बनाने का ठेका हुआ था और काम स्लो चल रहा था तो उन्होंने ठेकेदार को टर्मिनेट कर दिया है, रीटेंडर की कार्यवाही इसमें चल रही है और वो बता रहे हैं कि रीटेंडर एक-दो महीने में हो जाएगा, हमने उनसे बात की है और हम ये चाहते हैं कि अगली बारिश से पहले ये कंप्लीट हो जाए।
भरत यादव, जिला कलेक्टर, सिवनी

वैसे तो सारी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने की जिम्मेदारी सरकार की होती है, लेकिन सरकार तक जानकारी पहुंचे ये जवाबदारी वहां के जनप्रतिनिधियों की होती है, कि यहां पर ये दिक्कत या परेशानी है और इसका निराकरण करना चाहिए, मेरा मानना है कि पिछले 60-70 साल से केवलारी में कांग्रेस के जनप्रतिनिधि रहे हैं, कांग्रेस की सरकार रही है, मेरा ऐसा मानना है कि उनके माध्यम से चाहे मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार हो या केंद्र में कांग्रेस की सरकार हो, वहां पर बात जानी चाहिए थी, और देर से ही सही ये जानकारी पहुंची है और जैसा कि मुझे जानकारी है कि मध्य प्रदेश के ब्रिज कॉर्पोरेशन की वजह से काम स्वीकृत हुआ है।
नरेश दिवाकर, पूर्व विधायक, अध्यक्ष भाजपा सिवनी

जिम्मेदारी तो वर्तमान सरकार की बनती है, क्योंकि पिछले 10 सालों से भारतीय जनता पार्टी का मध्य प्रदेश में शासन रहा है और इन 10 वर्षों में उनको इतना पैसा केंद्र सरकार से विकास के लिए मिल रहा है कि वो अब अपनी गलतियों को कांग्रेस पर थोप नहीं सकते, 10 सालों का कार्यकाल बहुत बड़ा होता है, यहां पिछले दस वर्षों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है और जिस तरह के विकास का ढिंढोरा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पीट रहे हैं पूरे देश में, वैसा विकास धरातल पर कहीं दिखता नहीं है।

राजकुमार खुराना, प्रदेश प्रतिनिधि, एमपीसीसी

सद्भाव ने बिगाड़ा सद्भाव

सद्भाव ने बिगाड़ा सद्भाव

(शरद खरे)

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के समय बनी स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना के अंग उत्तर दक्षिण गलियारे में सिवनी जिले का शुमार किया गया था। यह वाकई सिवनी के लिए सौभाग्य की ही बात थी कि कौओं के कोसने से ढोर नहीं मरतेकी कहावत चरितार्थ करते हुए सिवनी जिले को उत्तर दक्षिण गलियारे में बरकरार रखा गया था। इस सड़क के निर्माण में दिसंबर 2008 में षणयंत्र के ताने बाने बुने गए। सियासी नेताओं को इस षणयंत्र की जानकारी न हो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इस षणयंत्र के लिए जिम्मेदार तत्कालीन जिला कलेक्टर के पत्र को समाचार पत्रों में प्रकाशन के साथ ही साथ विधायक सांसदों को इसकी प्रति भेजी गई थी। न अखबारों में यह खबर आई और न ही सांसद विधायक ने ही इसमें कोई दिलचस्पी दिखाई।
सिवनी से खवासा तक के काम के लिए गुजरात की सद्भाव कंस्ट्रक्शन कंपनी को ठेका दिया गया था। सद्भाव ने सिवनी के साथ सद्भाव नहीं दिखाया। सिवनी के कुछ कथित अगुआ यानी पायोनियर को आर्थिक झंझावत में उलझाकर सद्भाव ने लोगों का ध्यान भटकाया और सिवनी जिले के सीने को छलनी कर दिया। सिवनी में अवैध खनन इस कदर हुआ कि धरती कांप गई। इस अवैध खनन में सिवनी के कथित पायोनियर्स की भूमिका भी संदिग्ध ही रही है। सद्भाव की ओर से ध्यान भटकाकर इन पायोनियर्स ने लोगों को भ्रमित कर गैर जरूरी बातों में उलझाए रखा।
इन पायोनियर्स ने आपस में ही एक छद्म जंग चलाई, जिसका लोगों ने खूब मजा लिया, किन्तु सड़क का मामला पूरी तरह उलझा हुआ ही रहा। सद्भाव ने एक बार फिर सिवनी के लोगों के साथ सद्भाव नहीं दिखाया। सिवनी में काम करने वाले ठेकेदारों के द्वारा जो काम नहीं कराए गएउन कामों के एवज में सद्भाव के संचालकों ने पैसा भी निकाल लिया बताया जाता है। इस राशि में से कुछ ही राशि का उपयोग चौथदेने में किया गया, शेष राशि हजम ही कर ली बताई जा रही है। बताते हैं कि इसी बात को लेकर सद्भाव कंपनी के अंदर का सद्भाव भी बिगड़ गया था।
सिवनी में सद्भाव ने मोहगांव से खवासा तक की सड़क का निर्माण नहीं कराया गया। कभी वन विभाग के डंडे का डर दिखाया गया तो कभी न्यायालय के डंडे का। वस्तुतः न तो वन विभाग ही इसके खिलाफ था न ही न्यायालय ने ही इस काम को रोकने की मंशा जाहिर की थी। सद्भाव ने सिवनी में सड़क न बनाकर किसके इशारे पर सद्भाव बिगाड़ा यह बात तो सद्भाव का सद्भाव बनाने वाले ही बेहतर जानते होंगे किन्तु चर्चा यह है कि सिवनी में सड़क न बनाने के पारितोषक के बतौर सद्भाव को छिंदवाड़ा जिले में सड़क निर्माण के काम प्रदाय कर दिए गए।
यह सब होता रहा और सिवनी के कांग्रेस के तत्कालीन विधायक स्व.हरवंश सिंह, के अलावा भाजपा की विधायक श्रीमती नीता पटेरिया, श्रीमती शशि ठाकुर एवं कमल मर्सकोले अचंभित और किंकर्तव्यविमूढ़ हालत में बैठे रहे। इसका सबसे आश्चर्यजनक पहलू तो यह है कि सिवनी के कांग्रेस के सांसद बसोरी सिंह मसराम और भाजपा के सांसद के.डी.देशमुख भी अपने आप को लोकसभा में बौना ही महसूस करते रहे। दोनों ही सांसदों ने लोकसभा में एक बार भी प्रश्न पूछने की जहमत नहीं उठाई। हो सकता है कि दोनों ही सांसदों को डर रहा होगा कि कहीं प्रश्न पूछने से बलशाली षणयंत्रकारीनाराज न हो जाए। इन सांसदों को बलशाली षणयंत्रकारीके कोप भाजन होने का डर ज्यादा था पर जनता के नाराज होने का भय शायद ही किसी को रहा हो।
यहां एक तथ्य विशेष तौर पर उल्लेखनीय है कि सिवनी जिले से होकर गुजरने वाला यह फोरलेन मार्ग दोनों सांसदों के संसदीय क्षेत्र और चारों विधायकों के विधानसभा क्षेत्र से होकर गुजरता है। अब जबकि विधानसभा चुनाव सर पर हैं तब क्या जनता इनसे यह नहीं पूछेगी कि आखिर क्या कारण था कि इन्होंने अपने कर्तव्यों के निर्वहन के बजाए बलशाली षणयंत्रकारीका साथ क्यों दिया? सिवनी में मीडिया में भी इन सांसद विधायकों की भूमिका चर्चित न रह पाना आश्चर्य का ही विषय है। इस सड़क पर न जाने कितने निर्दोष लोगों की जान गई। लगता है इन निर्दोष लोगों की जान की कीमत इन लोगों की नजरों में कीड़े मकोड़ों से भी गई गुजरी है।
इस मामले में याद पड़ता है कि लखनादौन नगर पंचायत के पूर्व अध्यक्ष, पेशे से अधिवक्ता, राय पेट्रोलियम के संचालक, शराब व्यवसाई रहे, लखनादौन मस्जिद के सरपरस्त दिनेश राय ने लखनादौन जनमंच के बेनर तले एक आंदोलन किया था, इस आंदोलन की समाप्ति तत्कालीन अपर कलेक्टर अलका श्रीवास्तव के द्वारा लिखित आश्वासन कि सड़क का निर्माण जल्द कराया जाएगा, के साथ हुई थी (जैसा दिनेश राय उर्फ मुनमुन ने उस समय मीडिया में प्रचारित करवाया था)। इस आश्वासन पत्र का इसके बाद क्या हुआ, यह किसी को नहीं पता है? लगता है कि यह भी सद्भाव पर दबाव बनाने के लिए ही उठाया गया कदम था।
बहरहाल, सद्भाव द्वारा सड़क नहीं बनाए जाने से सिवनी में न जाने कितनी जानें गईं, सिवनी जिले मेें आपसी सामंजस्य का सद्भाव बिगड़ा, सद्भाव से लाभ लेने के चक्कर में सालों के दोस्त अचानक दुश्मन बन गए, लगा मानो सद्भाव कंपनीनहीं सिवनी में ईस्ट इंडिया कंपनीआ गई हो जो डिवाईड एण्ड रूलकी नीति अपना रही हो। होना यह चाहिए कि सड़क के लिए लड़ने वाले हर व्यक्ति संस्था को (अब विधायक सांसद से उम्मीद बाकी नहीं) कोर्ट में परिवाद पेश करते समय सद्भाव के मालिकों को पार्टी बनाना चाहिए। जब वे स्वयं इस सड़क से होकर गुजरेंगे तब उन्हें सिवनी के दुख दर्द का शायद भान हो पाए।

18 लाख के काम की निविदा जरूरी नहीं!

18 लाख के काम की निविदा जरूरी नहीं!

जो पूछना है अध्यक्ष से पूछें, हम कुछ भी नहीं बता सकते: सीएमओ चौधरी

(दादू अखिलेंद्र नाथ सिंह)

सिवनी (साई)। लखन कुंवर की नगरी में नगर परिषद् के हौसले इतने बुलंद हैं कि दूसरे की जमीन को अपना समझकर उस पर सब्जी मण्डी का निर्माण करवा दिया गया वह भी 18 लाख रूपए की राशि से, और इसके लिए निविदा जारी करना भी उचित नहीं समझा है, नगर पंचायत लखनादौन ने।
जी हां, यह चर्चा है समूचे जिले में। जब इस संबंध में 18 लाख रूपए की राशि की लागत से नवनिर्मित सब्जी मण्डी के बारे में, इसकी निविदा कब जारी हुई, किन समाचार पत्रों में इसका प्रकाशन हुआ, किन तिथियों में प्रकाशन हुआ, समाचार पत्र भारत सरकार के समाचार पत्रों के पंजीयक कार्यालय में पंजीकृत हैं या नहीं, कब निविदा जारी की गई, आदि प्रश्नों के सबंध में नगर परिषद् के मुख्य नगर पालिका अधिकारी राधेश्याम चौधरी का सुर आज बदला हुआ है।

अध्यक्ष से करें चर्चा!
कल तक हर जानकारी देने वाले लखन कुंवर की नगरी के मुख्य नगर पालिका अधिकारी राधेश्याम चौधरी (9424380458) से जब समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया ने कथित तौर पर कृषि उपज मण्डी की जमीन पर नगर परिषद् द्वारा बलात् रूप से दबंगई के साथ सब्जी मण्डी के निर्माण की निविदा के बारे में जानकारी चाही गई तो उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि वे किसी भी तरह की जानकारी नहीं दे सकते हैं। जो भी जानकारी लेना है वह अध्यक्ष से ली जाए! अध्यक्ष का मोबाईल नंबर पूछने के पहले ही उन्होंने मोबाईल काट दिया।

क्या मीडिया को नहीं है जानकारी देने का प्रावधान!
कल तक मीडिया से फ्रेंडली व्यवहार रखने वाले लखनादौन नगर पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी राधेश्याम चौधरी ने आखिर अचानक ही सुर क्यों बदल लिए, यह बात भी लोगों को खटक ही रही है। कहा जा रहा है कि वैसे तो आम जनता में भद्र, ग्रहणी और सज्जन महिला की छवि वाली नगर परिषद् की अध्यक्ष श्रीमती सुधा राय की दबंगई के चलते अब मुख्य नगर पालिका अधिकारी राधेश्याम चौधरी भी खौफजदा हो गए हैं। संभवतः यही कारण है कि उन्होंने अब मीडिया को जानकारी देने केे बजाए जो भी जानकारी लेना है अध्यक्ष से लें का टेपबजाना आरंभ कर दिया है।

नहीं हुआ विधिवत टेंडर
वहीं, नगर परिषद् लखनादौन के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि मूलतः कृषि उपज मण्डी की जमीन को बलात् ही कब्जा कर इसे सब्जी मण्डी में तब्दील करने की गरज से, नगर परिषद् लखनादौन द्वारा आनन फानन ही 18 लाख रूपए का टेंडर निकाल कर अपने चहेते ठेकेदार को यह काम दे दिया गया है। इसकी निविदा किसी को भी, किसी समाचार पत्र में देखने को नहीं मिली है।

सूचना के अधिकार में निकलेगी जानकारी!
वहीं, कुछ आरटीआई एक्टिविस्ट अब इस जानकारी को सूचना के अधिकार के तहत निकालने की तैयारी में लग गए हैं कि आखिर यह गड़बड़झाला हुआ तो हुआ कैसे।

कांग्रेस भाजपा पार्षदों पर शक की सुई!
यह काम अगर नियम विरूद्ध कराया गया तो इस काम को अंजाम देते समय कांग्रेस और भाजपा के पार्षदों की भूमिका पर भी शक की सुई घूम रही है। माना जा रहा है कि सभी पार्षद 53 ग्रेड की सीमेंट के मानिंद ही पूरी तरह सैट होते जा रहे हैं।

देखने लायक है नगर परिषद् की दबंगई

अगर आप चित्रों को देखें तो उसमें अंकित तिथियों में पाठकों को साफ दिखाई दे जाएगा कि अनुविभागीय दण्डाधिकारी कार्यालय लखनादौन के स्थगन के उपरांत भी यहां लखनादौन नगर परिषद् के अध्यक्ष और भद्र तथा कुलीन ग्रहणी की छवि वाली श्रीमती सुधा राय की कथित तौर पर दबंगई के चलते काम जारी रहा। कहा जा रहा है कि समूचे लखनादौन शहर को यह दिखाई देता रहा, पर न जाने क्यों इस पर स्थगन देने वाली अनुविभागीय दण्डाधिकारी लखनादौन लता पाठक की नजर नहीं पड़ पाई।