मंगलवार, 2 जुलाई 2013

जबलपुर रोड़ बंद! धूमा के पास पुल पर फंसा ट्रक

जबलपुर रोड़ बंद! धूमा के पास पुल पर फंसा ट्रक

(नीलेश स्थापक)

लखनादौन (साई)। लखनादौन से धूमा के बीच लगभग दस किलोमीटर आगे पड़ने वाले सेढ़ नदी के पुल पर एक ट्रक फंस जाने से जबलपुर का संपर्क सिवनी जिले से टूट गया है। लखनादौन और धूमा पुलिस की मशक्कत के बाद भी इन पंक्तियों के लिखे जाने तक पुल के दोनों ओर लगभग दस किलोमीटर तक की लंबी लाईन लगी हुई थी।
पुलिस सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि आज शाम लगभग चार बजे सेढ़ नदी के पुल पर एक दस चक्का का एक पहिया पुल की जर्जर सड़क में फंस गया। काफी मशक्कत के बाद भी इस वाहन को पुल से नहीं हटाया जा सका। जिसके चलते दोनों ओर वाहनों की लंबी कतारें लगना आरंभ हो गई।
लखनादौन से जबलपुर मार्ग पर धूमा की ओर लगभग दस किलोमीटर दूर स्थित बड़े पुल के नाम से विख्यात इस पुल की हालत पहले से ही काफी जर्जर बताई जाती है। संबंधितों के ध्यानाकर्षण के बाद भी इस पुल की सुध किसी ने भी नहीं ली है। जिसके चलते आए दिन इस पुल पर आवागमन बाधित हो रहा है।
इन पंक्तियों के लिखे जाने तक पुल के दोनों ओर लगभग दस किलोमीटर तक वाहनों की कतारें लग चुकी थीं। लखनादौन और धूमा पुलिस जाम को हटाने का जतन कर रही हैं, पर उन्हें भी सफलता मिलती नहीं दिख रही है।

दो स्थानों पर हुए झगड़े

लखनादौन कोतवाली से प्राप्त जानकारी के अनुसार क्षेत्र के ग्राम जोबा और चिपकना में गत रात्रि दो गुटों के बीच अलग अलग जमकर विवाद हुआ, जिसमें अनेक घायल हो गए। बताया जाता है कि विवाद का विषय पुरानी रंजिश और जमीनी विवाद है। विस्तृत विवरण प्रतीक्षित है।

दवाओं के लिए भटक रहे पैंशनर्स

दवाओं के लिए भटक रहे पैंशनर्स

सिविल सर्जन की परवाह नहीं कर्मियों को

(महेश रावलानी)

सिवनी (साई)। इंदिरा गांधी के नाम से सुशोभित जिला चिकित्सालय में इन दिनों अंधेरगर्दी का आलम पसरा हुआ है। आलम यह है कि पैंशनर्स को ही दवाएं उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं। पैंशनर्स को मिलने वाली दवाओं में कटौती पहले ही कर दी गई है और अब जो दवाएं अस्पताल प्रशासन के पास उपलब्ध हैं वे भी पैंशनर्स को नसीब नहीं हो पा रही हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार पैंशनर्स जब अस्पताल जाकर अपने हक की दवाईयां लेने सरदार वल्लभ भाई पटेल निःशुल्क दवा योजना में पैंशनर्स, सीनियर सिटीजन्स और विकलांग के लिए बने प्रथक काउंटर में जाते हैं तो उन्हें वहां कोई भी कारिंदा नजर नहीं आता है।
बीते दिवस एक पैंशनर के परिचारक द्वारा दवाएं ना मिलने की शिकायत सिविल सर्जन डॉ.सत्यनारायण सोनी से की गई तो उन्होंने वहां उपस्थित डॉ.पुरूषोत्तम सूर्या को मामले को देखने को कहा गया। डॉ.सूर्या चूंकि अन्य मरीज को देखने में व्यस्त थे अतः डॉ.सोनी स्वयं ही दवा वितरण केंद्र पहुंचे।
जब वे वहां पहुंचे तो वहां उपस्थित दवा वितरण कर रहे कर्मचारी ने डॉ.सोनी के समक्ष ही पैंशनर्स के परिचारक को दो टूक शब्दों में कह दिया कि वे पैंशनर्स को दवाएं नहीं दे सकते। जब इस बात की और सिविल सर्जन डॉ.सोनी का ध्यान आकर्षित कराया गया तो डॉ.सोनी की बोलती ही बंद हो गई।
वस्तुतः डॉ.सत्यनारायण सोनी सिविल सर्जन के पद पर पदस्थ है, और उनका काम अस्पताल में प्रशासनिक व्यवस्था को चाक चौबंद रखना है। डॉ.सोनी जिला चिकित्सालय में लगभग पच्चीस सालों से अधिक समय से निश्चेतक के पद पर पदस्थ हैं। डॉ.सोनी पर निश्चेतना के लिए सौ से एक हजार रूपए तक की रिश्वत लेने के आरोप कई बार लग चुके हैं।
बताया जाता है कि डॉ.सोनी पर पूर्व में भी निजी चिकित्सालयों में जाकर बतौर निश्चेतक सेवाएं देने, जिला चिकित्सालय में शल्य क्रिया के पूर्व रूपयों के लेन देन आदि के आरोप लग चुके हैं। बताया जाता है कि कई बार तो डॉ.सोनी के साथ मारपीट तक की नौबत आ चुकी है।
इस संबंध में अस्पताल के ही एक कर्मचारी ने नाम उजागर ना करने की शर्त पर समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से कहा कि चूंकि डॉ.सत्यनारायण सोनी सालों से सिवनी में ही पदस्थ हैं और उनका पूरा ध्यान बजाए चिकित्सा के कर्म की तरफ होने के, धन उगाही में ही लगा रहता है अतः अस्पताल के कर्मचारी भी डॉ.सोनी की बात को ज्यादा वजन नहीं देते हैं।
इस बात में कितना दम है यह बात तो डॉ.सोनी ही जाने पर प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार बीते दिवस सरदार वल्लभ भाई पटेल निःशुल्क दवा वितरण केंद्र में हुए वाक्ये में ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वहां उपस्थित कर्मचारी सिविल सर्जन हों और डॉ.सोनी वहां दवा बांटने वाले।

इस बात की शिकायत जब मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ.वाय.एस.ठाकुर से की गई तो उन्होंने पूरी बात सुनने के उपरांत कहा कि इस मामले में शो काज नोटिस अवश्य जारी करेंगे। इस संबंध में सोमवार को जब डॉ.ठाकुर का पक्ष जानने का पुनः प्रयास किया गया तो सुबह वे जिला कलेक्टर की टीएल बैठक में व्यस्त थे और शाम को वे पुनः किसी अन्य बैठक में व्यस्त हो गए।

मुख्य धारा में आने का जतन कर रहे हुकुम!

मुख्य धारा में आने का जतन कर रहे हुकुम!

(अखिलेश दुबे)

सिवनी (साई)। एक समय में सिवनी में कांग्रेस के कद्दावर नेता हरवंश सिंह ठाकुर का पौंचा पकड़कर सियासी पायदान में सीढ़ियां चढ़ने वाले कुंवर शक्ति सिंह भले ही जिला कांग्रेस कमेटी के महामंत्री हों पर वे कांग्रेस के अंदर ही मुख्य धारा में आने के प्रयास में दिख रहे हैं। इसी कड़ी में हाल ही में बारापत्थर में अस्पताल के समीप कांग्रेस की सत्ता और शक्ति की धुरी बन चुके एक नेता के साथ उनकी लगभग डेढ़ घंटे हुई चर्चा को जोड़कर देखा जा रहा है।
ज्ञातव्य है कि घंसौर क्षेत्र से आने वाले और मित्रों यारों में हुकुम के नाम से मशहूर कुंवर शक्ति सिंह जिला पंचायत सिवनी के उपाध्यक्ष रह चुके हैं। कहा जाता है कि उस समय हुकुम को जिला पंचायत उपाध्यक्ष का पद हरवंश सिंह ठाकुर के आर्शीवाद से ही प्राप्त हुआ था। इस बात में सच्चाई कितनी है यह बात तो वे ही जानें पर बाद में शक्ति सिंह का कांग्रेस में प्रवेश इन बातों को बल ही देता है।
कहा जाता है कि इसके उपरांत हुकुम और हरवंश सिंह की जुगलबंदी के चलते घंसौर में सियासी समीकरण तेजी से बदलने लगे। घंसौर के कांग्रेस के एक नेता ने नाम उजागर ना करने की शर्त पर समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि वर्तमान हिमाचल प्रदेश की महामहिम राज्यपाल उर्मिला सिंह घंसौर में सियासत में सक्रिय थीं, उस समय हुकुम ने अंदर ही अंदर उर्मिला सिंह का पुरजोर विरोध किया।
कहा तो यहां तक जा रहा है कि सिवनी में कांग्रेस में एकछत्र राज्य स्थापित करने की गरज से तत्कालीन प्रभावशाली क्षत्रप द्वारा अपने समकक्ष के सारे नेताओं को हाशिए पर लाना आरंभ कर दिया था। इसी कड़ी में उर्मिला सिंह को भी किनारे लगाने का काम तेजी से किया जाने लगा था।
हरवंश सिंह के करीबी एक कांग्रेसी नेता ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर कहा कि हरवंश सिंह ठाकुर की उंगली पकड़कर सियासी बियावान में विचरण करने वाले शक्ति सिंह द्वारा उनके अवसान के साथ ही उनके परिजनों को आंखें दिखाना आरंभ कर दिया है। केवलारी विधानसभा क्षेत्र से टिकिट की मांग की खबरें पिछले दिनों समाचार पत्रों में छाई हुई हैं।
कहा जा रहा है कि हरवंश सिंह के निधन के उपरांत केवलारी क्षेत्र में सियासी तौर पर उनके पुत्र रजनीश सिंह ही उत्तराधिकारी हो सकते हैं, पर केवलारी से हुकुम की दावेदारी की खबरें सभी को आश्चर्यचकित कर रही हैं। लोग इसके पीछे के निहितार्थ खोजते नजर आ रहे हैं।
कांग्रेस के कद्दावर नेता हरवंश सिंह के असमय अवसान के उपरांत कुंवर शक्ति सिंह के कदमताल के बाद उनकी स्थिति कांग्रेस में मजबूत नहीं मानी जा रही है। भले ही शक्ति सिंह यह प्रचारित करवाने में सफल रहे हों कि वे कांग्रेस में स्थापित नेता हो चुके हैं, पर जमीनी हकीकत से वे भी संभवतः रूबरू हो चुके होंगे।
कांग्रेस के अंदर चल रही चर्चाओं के अनुसार एकला चलो रे की नीति पर काम करते हुए कुंवर शक्ति सिंह को यह अहसास होने लगा है कि उनकी जमीन भुरभरी होकर खिसक रही है। संभवतः यही कारण है कि पिछले दिनों कमल नाथ के कट्टर समर्थक एक युवा नेता के साथ उन्होंने सार्वजनिक तौर पर अस्पताल के सामने बने काम्पलेक्स में डेढ़ घंटे से अधिक समय तक सार्वजनिक तौर पर चर्चा की। माना जा रहा है कि वे इसके जरिए यह संदेश देना चाह रहे थे कि कांग्रेस के अंदर उभरते नए समीकरणों से वे पूरी तरह वाकिफ हैं और जल्द ही वे किसी नए झंडे के तले अपने आपको खड़ा कर सकते हैं।

(क्रमशः जारी)

आठ को अण्णा का सिवनी आना तय!

आठ को अण्णा का सिवनी आना तय!

(राहुल तेलरांधे)

रालेगण सिद्धि (साई)। सरकार को घुटनों के बल खड़ा करने वाले गांधीवादी समाजसेवी अण्णा हजारे का मध्य प्रदेश का दौरा कार्यक्रम तय हो गया है। वे 5 जुलाई से एमपी की यात्रा पर रहेंगे। अण्णा हजारे 8 जुलाई को सिवनी आएंगे और रात्रिविश्राम सिवनी में ही करेंगे।
ज्ञातव्य है कि अण्णा हजारे का 23 जून से उत्तर प्रदेश दौरा उनकी आंख की तकलीफ के चलते निरस्त कर दिया गया था। अण्णा के करीबी सूत्रों ने साई न्यूज को बताया कि अण्णा की आंख की शल्य क्रिया की गई है। चिकित्सकों ने उन्हें चार सप्ताह तक आराम करने का मशविरा दिया था।
अण्णा की जनतंत्र यात्रा का चौथा चरण 23 जून से 04 जुलाई तक उत्तर प्रदेश से आरंभ होना था, जो निरस्त कर दिया गया था। सूत्रों ने कहा कि उत्तर प्रदेश यात्रा की तिथियां प्रथक से घोषित की जाएंगी। अण्णा की एमपी यात्रा 5 जुलाई से रीवा से आरंभ होकर 17 जुलाई को इंदौर में समाप्त होगी।
अण्णा के करीबी सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि अन्ना हजारे 5 जुलाई को रीवा में एक जनसभा को संबोधित करेेंगे। इसके बाद रात्रि विश्राम रीवा में ही करेंगे। 6 जुलाई को रामपुर, चुरहट एवं सीधी में जनसभा को संबोधित करेंगे, तथा रात्रि विश्राम सीधी में करेंगे। 7 जुलाई को अन्ना हजारे ब्योहारी एवं कटनी में जनसभा को संबोधित करेंगे। रात्रि विश्राम कटनी में करेंगे। 8 जुलाई को अन्ना हजारे जबलपुर पहुंचकर जनसभा को संबोधित करने के बाद सिवनी आयेंगे और रात्रि विश्राम सिवनी में ही करेंगे।
9 जुलाई को सुबह अन्ना हजारे छिंदवाड़ा के लिये प्रस्थान कर जायेंगे और वहां जनसभा को संबोधित करने के बाद मुल्ताई एवं बैतूल में भी जनसभा को संबोधित करेंगे तथा रात्रि विश्राम बैतूल में करेंगे। 10 जुलाई को अन्ना हजारे इटारसी में जनसभा को संबोधित करने के बाद होशंगाबाद प्रस्थान कर जायेंगे जहां जनसभा को संबोधित करने के बाद रात्रि विश्राम भी होशंगाबाद में करेंगे।
अन्ना हजारे 11 जुलाई को भोपाल पहुंचेंगे। भोपाल में जनसभा को संबोधित करने के अलावा अन्ना हजारे प्रेस से भी मिलेंगे।  रात्रि विश्राम भी भोपाल में ही करेंगे। 12 जुलाई को वे विदिशा एवं सागर में जनसभाओं को संबोधित करेंगे, रात्रि विश्राम सागर में करेंगे। 13 जुलाई को अन्ना हजारे शाहगढ़, घुवारा व टीकमगढ़ में जनसभाओं को संबोधित करेंगे, रात्रि विश्राम टीकमगढ़ में ही होगा।
इसके बाद 14 जुलाई को सुबह अन्ना हजारे दतिया एवं ग्वालियर के लिये प्रस्थान कर जायेंगे जहां वे जनसभाओं को संबोधित करेंगे तथा रात्रि विश्राम ग्वालियर में करेंगे। 15 जुलाई को अन्ना शिवपुरी एवं गुना में जनसभाओं को संबोधित कर रात्रि विश्राम गुना में करेंगे।

अन्ना हजारे अपने मध्यप्रदेश दौरे के अंतिम चरणों में 16 जुलाई को ब्यावरा व शाजापुर तथा 17 जुलाई को उज्जैन, देवास एवं इंदौर में जनसभाओं को संबोधित करेंगे। अन्ना 16 जुलाई को शाजापुर में और 17 जुलाई को इंदौर में रात्रि विश्राम करेंगे।

खुल गई शिक्षा की ‘दुकानें‘

खुल गई शिक्षा की दुकानें

(शरद खरे)

वैसे तो शिक्षण सत्र जून में ही आरंभ हो चुका है पर औपचारिक तौर पर शिक्षण सत्र 01 जुलाई से ही आरंभ माना जाता है। एक जुलाई को शिक्षण सत्र आरंभ हो गया है। बच्चों के अंदर स्कूल जाने का उत्साह देखते ही बन रहा है। इसका कारण यह है कि बच्चों को दो माह के अवकाश के उपरांत एक बार फिर से अपने पुराने मित्र दोस्त मिलेंगे, जिनसे वे सारी बातें शेयर करेंगे।
एक समय था जब शिक्षा का स्थान गुरूकुल माना जाता था। गुरूकुल में विद्यार्थी को चाहे वह राजा का पुत्र हो या गरीब का, सभी को समान रूप से काम करने की शिक्षा दी जाती थी। उस समय पाठ्यक्रम के साथ ही साथ बच्चों को प्रायोगिक शिक्षा भी दी जाती थी। बच्चों को आंगन लीपने से लेकर, लकड़ी काटने, भोजन पकाने, मवेशी चराने जैसे काम भी करवाए जाते थे, ताकि उन्हें जीवन की वास्तविकता का भान हो सके।
कालांतर में भारत पर मुगलों और अंग्रेजों के आक्रमण हुए। मुगलों ने अपनी संस्कृति, तो ब्रितानी गोरों ने अपनी परंपराओं को भारत पर थोपा। ब्रितानी अंग्रेजों की पूजा ईबादत रविवार को होती थी अतः उन्होंने सप्ताहिक अवकाश का दिन रविवार ही मुकर्रर किया जो आज भी अनवरत जारी है। सनातन पंथी संगठन इसे बदलकर मंगलवार करने की मांग करते आ रहे हैं पर हुआ कुछ भी नहीं।
आजादी के उपरांत गुरूकुलों और स्कूलों का स्वरूप शनैः शनैः बदलने लगा। अंग्रेजों के जमाने में बनाए गए शिक्षण संस्थानों को हमारी सरकारों नें अंगीकार कर लिया। उनके नाम वही रखे गए जो पूर्व में प्रचलित थे। दशकों तक यही व्यवस्था लागू रही। नब्बे के दशक के उपरांत इनके नाम बदलने का काम आरंभ किया गया।
भारत का संविधान बना, व्यवस्थाएं भी एक के बाद एक बनती गईं। देश में शिक्षा को लागू करने, शिक्षा की नीति रीति बनाने, दिशा दशा तय करने का जिम्मा केंद्र में मानव संसाधन विकास मंत्रालय को सौंपा गया। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि सत्तर के दशक के उपरांत मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने भी शिक्षा में अपनी मनमर्जी को थोपा ही है। कभी किसी एचआरडी मिनिस्टर ने कहा कि शिक्षा में व्याप्त हिंसा को दूर करना होगा! तो कोई कहता सुना गया कि शिक्षा का भगवाकरण कर दिया गया है।
आखिर शिक्षा में हिंसा कैसी? और किसने इस हिंसा को डाला शिक्षा में? शिक्षा का भगवाकरण अगर हो रहा था तो उस समय विपक्ष में बैठे जनता के नुमाईंदे क्या भांग खाकर बैठे थे। देश में जितनी भी सरकारें आई,ं सबने शिक्षा को लेकर नए नए प्रयोग किए। शिक्षा पर उन्होंने वास्तविक स्थिति को सोचे समझे बिना ही अपनी मंशाओं को लादा है।
दो दशकों से शिक्षा की स्थिति बेहद खराब है। आज अधकचरी शिक्षा के चलते, विद्यार्थी भ्रमित ही नजर आ रहे हैं। अब तो लोग यह कहने पर मजबूर हो रहे हैं कि आदमी महज तीन चीजों में निवेश के लिए ही कमा रहा है। एक खाने के लिए, दूसरा चिकित्सक और दवाओं के लिए और तीसरा बच्चों की पढ़ाई के लिए।
आज के समय में नर्सरी से लेकर हायर सेकंड्री तक की पढ़ाई करवाने में पालकों की पतलून ढीली हो रही है। मंहगी फीस, मंहगे गणवेश, मंहगी किताबें पालकों की कमर तोड़ कर रख रही है। उपर से कोचिंग की दुकानों में बच्चों को पढ़ने भेजने में पालकों की बन आती है। गणवेश और किताबें भी शालाओं द्वारा विशेष दुकानों से खरीदने की सलाह दी जाती है। इसमें भी कमीशनखोरी जमकर हो रही है। सिवनी में भी दो तीन ही गणवेश वितरक हैं जिनकी चांदी है। यही आलम किताबों का है।
पता नहीं कैसे शाला में चालीस मिनिट के कालखण्ड के बाद, बच्चों को कोचिंग की आवश्यक्ता पड़ती है। यह बात भी समझ से परे ही है कि चालीस बच्चों को चालीस मिनिट के काल खण्ड में जो शिक्षक बच्चों को समझा नहीं पाता है, वह आखिर कोचिंग में चालीस से ज्यादा बच्चों को, चालीस मिनिट या एक घंटे में उसी चीज को कैसे समझा पाता है। मतलब साफ है कि शिक्षा अब व्यवसाय बन गया है। शिक्षक भी अपना मूल उद्देश्य भूल चुके हैं। शिक्षक भी शालाओं में समय पास करने जाते हैं और अपनी पूरी मेहनत कोचिंग में झोंक देते हैं।
सरकारी शालाओं में यह दायित्व सरकारी नुमाईंदों का बनता है कि वे शाला में बच्चों को सही तरीके से शिक्षा मिले, यह सुनिश्चित करें और निजी तौर पर संचालित होने वाली संस्थाओं में यह दायित्व प्रबंधन का बनता है कि वह यह सुनिश्चित करे कि उसके संस्थान में शिक्षक अपने दायित्वों का निर्वहन पूरी ईमानदारी से करें। इसके लिए जिला प्रशासन को कड़े कदम उठाने ही होंगे।
एक और बात जो सामने आ रही है वह है प्रोजेक्ट की। शालाओं में बच्चों को प्रोजेक्ट दिए जाते हैं। इन प्रोजेक्ट को करवाने के लिए बच्चों की भीड़ सायबर कैफे में दिखाई पड़ जाती है। शासन के निर्देशानुसार हर शाला में एक कंप्यूटर लेब और इंटरनेट कनेक्शन होना चाहिए। अगर शाला में कंप्यूटर लेब है, कंप्यूटर का कालखण्ड है, इंटरनेट कनेक्शन है तो फिर क्या कारण है कि विद्यार्थी शाला के बजाए इंटरनेट कैफे के चक्कर काट रहे हैं!

जिला प्रशासन से अपेक्षा है कि शिक्षा विभाग, आदिवासी शिक्षा विभाग के आफीसर इंचार्ज उप जिलाध्यक्ष को स्पष्ट निर्देश दे कि शालाओं में चाहे वह निजी हो या शासकीय, में अध्ययन अध्यापन का सतत निरीक्षण कर सारी व्यवस्थाएं अप टू द मार्क हों। ओआईसी इसलिए क्योंकि इसके लिए जिम्मेदार जिला शिक्षा अधिकारी और सहायक आयुक्त आदिवासी विकास विभाग अपने दायित्वों का निर्वहन ईमानदारी से नहीं कर पा रहे हैं।