सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

कैग पहरेदार या बाबू!

कैग पहरेदार या बाबू!

(लिमटी खरे)

भारत के लेखा महानियंत्रक अर्थात कैग और सरकार के बीच रार छिड़ी दिख रही है। कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार को कटघरे में खड़ा करने पर कांग्रेस की बयानवीर तोपें एकाएक गरजने लगी हैं। सरकार मौन है पर संगठन द्वारा कैग को निशाने पर लिया जा रहा है। कैग की स्थापना भारत गणराज्य में क्यों और किसलिए की गई थी? क्या कैग का काम क्लर्की और मुनीमी तक ही सीमित है? क्या भारत गणराज्य में कैग को इसीलिए बनाया गया कि वह सरकारी खर्चों का लेखा जोखा ही रखे? दरअसल, हमारे संविधान में कैग की स्थापना सही गलत के अंकेक्षण और सरकार को लगातार चेताने के लिए किया गया है कि सरकार के कोष में जनता के गाढ़े पसीने की कमाई से संचित धन का उपयोग सही किया जा रहा है या उसमें गफलत हो रही है? सरकारी कोष में जमा धन सार्वजनिक होता है उसका दुरूपयोग रोकना कैग की महती जवाबदेही है।

भारत के लेखा महानियंत्रक विनोद राय का कहना एकदम सही और सटीक है कि कैग का काम सिर्फ सरकारी खर्च में हुई अनियमितताओं का प्रतिवेदन बनाकर सरकार को देना भर नहीं है। इतने भर से कैग की जवाबदेही पूरी नहीं हो जाती है। विनोद राय भारत के लेखा महानियंत्रक की जिम्मेदार आसनी पर विराजमान हैं, उन्होंने जो कुछ कहा वह निश्चित तौर पर पूरी जिम्मेदारी और गंभीरता से कहा होगा। विनोद राय को कैग के अधिकार, उसकी कार्यप्रणाली, सीमाएं आदि के बारे में निश्चित तौर पर कांग्रेस के भोंपूओं से ज्यादा माहिती होगी।
भारत के संविधान का गहराई से अध्ययन करने पर पता चलता है कि कैग को मुनीमी या क्लर्की के लिए सृजित नहीं किया गया था। कैग के हवाले अनेक जिम्मेदारियां जिम्मेवारियां हैं। कैग को भारत गणराज्य की लोकतांत्रिक प्रणाली के अधीन ही संवैधानिक तौर पर सृजित किया गया वह पद है जो सरकार को हर कदम पर यह चेतावनी देता रहे कि सार्वजनिक धन का सदुपयोग हो और उसका दुरूपयोग हर स्तर पर रोका जाए।
कैग विनोद राय के वक्तव्यों का विरोध कर उसे गलत दिशा में ले जाने वाले कांग्रेस के भोंपू भी संसद के सदस्य रहे हैं। वे इस बात को भली भांति जानते होंगे कि कैग की सिफारिशों को लोकसभा में पेश किया जाता है, इसके उपरांत संसद की जिम्मेदार लोक लेखा समिति इसका अध्ययन कर इसकी समीक्षा के उपरांत इस पर कार्यवाही की सिफारिश भी करती है। इसकी सिफारिशों से ही देश में भ्रष्टाचार के खात्मे के मार्ग प्रशस्त हो सकते हैं।
भारत गणराज्य ने जिस तरह की लोकतांत्रिक संसदीय प्रणाली अपनाई है उसकी रीढ़ यही है कि सरकारी खजाने में आने वाले सार्वजनिक धन को सही तरीके से खर्च किया जाए और उसमें भ्रष्टाचार ना हो सके। इस धन में बंदरबांट और भ्रष्टाचार रोकने के लिए कैग को पहरेदार की भूमिका में खड़ा किया गया है। इस लिहाज से कैग को इस बात का पूरा अधिकार है कि वह हर मद में खर्च किए गए सरकारी धन के सदुपयोग और दुरूपयोग की समीक्षा कर इस बात को सरकार के संज्ञान में अवश्य लाए कि गफलत आखिर कहां हुई है।
निश्चित तौर पर आजादी के समय भारत देश में परिदृश्य चाहे सामाजिक हो, राजनैतिक हो या आर्थिक, हर दृष्टिकोण से आज से बहुत भिन्न था। जिस वक्त कैग की स्थापना हुई उस समय के परिदृश्य और आज के परिदृश्य में जमीन आसमान का अंतर है। शुरूआती दौर में सरकार द्वारा अपने ही स्तर पर सार्वजनिक कंपनियों को खड़ा किया जा रहा था, पर आज उन कंपनियों को बेचा जा रहा है। सरकार अपनी ही कंपनियों को बेचकर खजाने को भर रही है।
हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि पिछले लगभग दो दशकों से कथित तौर पर महिमा मण्डित किए गए महान अर्थशास्त्री डॉ.मनमोहन सिंह और पलनिअप्पम चिदम्बर का ही अर्थशास्त्र और आर्थिक नीतियों पर चल रहा है भारत गणराज्य फिर भी मंहगाई का ग्राफ सुरसा के मुंह की तरह ही बढ़ता जा रहा है।
कैग को पूरा अधिकार है कि वह सार्वजनिक धन में हुई गफलत की जानकारी भारत गणराज्य के महामहिम राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री और सांसदों को बताए कि आखिर जनता के धन में किसने कहां लूट मचाई है। भारत में होने वाले घपले घोटालों के साथ ही साथ सांसदों को दी जाने वाली सांसद निधि के उपयोग की भी जांच सुनिश्चित होना अनिवार्य है। वहीं सरकार के साथ विपक्ष का होना इसलिए भी आवश्यक होता है क्योंकि सरकार निरंकुश ना हो जाए।
विडम्बना ही कही जाएगी कि आज सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ही मिलकर जनता जनार्दन को बेवकूफ बनाने पर तुले हुए हैं। कामन वेल्थ घोटाले से लेकर अब तक ना जाने कितने घपले घोटाले सामने आ चुके हैं पर विपक्ष थोड़ा बहुत विरोध कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री ही करता नजर आता है। देश में मंहगाई बढ़ रही है, हर पग पर भ्रष्टाचार हो रहा है पर विपक्ष को इसकी चिंता नजर नहीं आती है। इसका कारण यह है कि सांसदों के वेतन भत्ते और सुविधाएं ही देख लें तो आम आदमी बेहोश हो जाए।
कैग के बयान के बाद कांग्रेस के बयानवीरों को लगी मिर्ची समझ से परे है। नेता अब कह रहे हैं कि कैग क्या पीएम बनना चाह रहे हैं। अरे आप जिम्मेदार नेता हैं कम से कम बयान तो जिम्मेदारी के साथ दें। कैग ने क्या गलत कहा यह तो पहले बताया जाए? विपक्ष भी मौन रहकर तमाशाई बना हुआ है। कैग के बारे में कोई भी बयान देने के पहले नेताओं को कम से कम भारत के संविधान में कैग की भूमिका, उसके अधिकार, कर्तव्य, सीमाओं के बारे में जानना आवश्यक है, विडम्बना है कि कोई भी इसके बारे में जाने समझे बिना ही दनादन बयान दे रहा है। भारत के लेखा महानियंत्रक को सार्वजनिक धन का पहरेदार कहा जा सकता है। उसे बाबू या क्लर्क तो कतई नहीं समझा जाना चाहिए। (साई फीचर्स)

एंटी करप्शन मूवमेंट विद वाईन!

एंटी करप्शन मूवमेंट विद वाईन!

(महेश)

नई दिल्ली (साई)। देशवासियों को नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले अन्ना हजारे की टीम के कई लोगों की नैतिकता पर ही सवाल उठने लगे हैं। भले ही अन्ना हजारे शराब को खराब मानते हैं, लेकिन उनकी टीम की एक अहम सदस्य किरन बेदी का एनजीओ लोगों को डिस्काउंट में शराब पीने का ऑफर दे रहा है।
देश में करप्शन खत्म करने के लिए टीम अन्ना पिछले 2 सालों से जबर्दस्त आंदोलन कर रही है। अन्ना करप्शन को खत्म करने के लिए लोगों के नैतिक उत्थान पर भी जोर देते हैं। पूरे देश में शराब पर पाबंदी की मांग करते हैं। रिटायर्ड आईपीएस किरन बेदी अन्ना की टीम की अहम सदस्य हैं। कुछ लोग उन्हें श्लेडी अन्नाश् भी कहते हैं। लेकिन, उन्होंने एक ऐसा कारनामा कर दिखाया है कि न सिर्फ अन्ना, बल्कि आप भी शर्मसार हो जाएंगे।
अन्ना हजारे शराब के सख्त विरोधी हैं। अन्ना ने महाराष्ट्र के कई गांवों में शराबियों को पेड़ से बांध कर पीटा है। लोगों से शराब छुड़वाई है। वहीं, किरन बेदी का एनजीओ (नवज्योति फाउंडेशन) खुलेआम शराब का प्रमोशन कर रहा है। 31 दिसंबर 2012 को नवज्योति फाउंडेशन की 25वीं सालगिरह पर किरन बेदी ने नववर्ष की शुभकामनाएं दीं। इस शुभकामना पत्र में दिल्ली के के हैवंस बार का निमंत्रण पत्र भी संलग्न था। इस निमंत्रण पत्र में नवज्योति का लोगो लगा हुआ था और शराब सहित खाने-पीने की सभी चीजों पर डिस्काउंट की पेशकश की गई थी। सबसे शर्मनाक बात है कि नवज्योति फाउंडेशन नशा और शराब की लत छुड़वाने के लिए काम करता है और इसी का लोगो शराब के डिस्काउंट के लिए इस्तेमाल किया गया।

संचार क्रांति में पिछड़ा जनसंपर्क विभाग

लाजपत ने लूट लिया जनसंपर्क ------------------ 51

संचार क्रांति में पिछड़ा जनसंपर्क विभाग

(अखिलेश दुबे)

सिवनी (साई)। देश भर में पेपरलेस काम के लिए संचार साधनों का इस्तेमाल तेजी से किया जा रहा है वहीं दूसरी ओर मध्य प्रदेश में जनसंपर्क विभाग के जिला स्तरीय कार्यालय में लाईन आर्डर की स्थिति में भी संचार साधनों के बजाए बाबा आदम के जमाने के हस्त लिखित कागजों की फोटोकापी का प्रयोग किया जाना आश्चर्यजनक ही माना जा रहा है। वैसे तो जनसंपर्क विभाग सिवनी द्वारा उसके जिला कार्यालय में एनरोल्ड मीडिया को ईमेल कर खबरों का आदान प्रदान किया जाता है, पर रविवार को एसा नहीं किया गया।
गौरतलब है कि 07 फरवरी की रात्रि में सिवनी शहर में तनाव बढ़ने के चलते प्रशासन द्वारा यहां कर्फ्यू लगा दिया गया था। इसके उपरांत जब जन जीवन पटरी पर आया तो रविवार को स्थिति को देखते हुए प्रशासन ने ढील कुछ और बढ़ाने का निर्णय लिया। बताया जाता है कि रविवार को दोपहर में जिला प्रशासन ने निर्णय लिया कि सोमवार को सुबह से शाम तक इसमें ढील दी जाए और सोमवार को शिक्षण संस्थाएं, सरकारी कार्यालय, बैंक आदि पूर्ववत सुचारू तौर पर संचालित हों।
जिला जनसंपर्क कार्यालय द्वारा अपरान्ह दो बजे एक मेल भेजकर बताया कि कर्फ्यू में कितने बजे से कितने बजे तक ढील दी जाएगी। इसके उपरांत यह संशय बरकरार रहा कि सोमवार को शिक्षण संस्थान खुलेंगे अथवा नहीं। इस संबंध में जिला जनसंपर्क कार्यालय द्वारा ईमेल पर कोई सूचना नहीं जारी की गई। बताया जाता है कि कुछ मीडिया संस्थानों में अवश्य हस्त लिखित विज्ञप्ति जिसमें इस बात का उल्लेख था कि सोमवार को शिक्षण संस्थाएं, सरकारी कार्यालय, बैंक आदि पूर्ववत सुचारू तौर पर संचालित होंगे का वितरण किया गया।
उधर, जिला जनसंपर्क कार्यालय के सूत्रों का कहना है कि चूंकि टाईपिस्ट चला गया था अतः इसे टाईप कर इसको ईमेल करना संभव नहीं था इसलिए हाथ से ही लिखकर इसे बांटा गया। यहां यह उल्लेखनीय होगा कि जिला जनसंपर्क विभाग के प्रमुख को वैसे तो नेट फ्रेंडली होना चाहिए पर शायद उन्हें भी टाईपिंग या इंटरनेट का उपयोग नहीं आता है तभी ईमेल के बजाए हस्तलिखित विज्ञप्ति बांटने की नौबत आई।
वहीं, मीडिया में इस तरह की चर्चाएं भी हो रही हैं कि अगर कर्फ्यू के दौरान जिला जनसंपर्क अधिकारी द्वारा पास की बंदरबांट ना की गई होती तो निश्चित तौर पर किसी ना किसी मीडिया वाले ने इस विज्ञप्ति को टाईप कर पीआरओ को भेज दिया गया होता, जहां से इसे ईमेल द्वारा वितरित कर दिया जाता, वस्तुतः एसा हुआ नहीं। मजे की बात तो यह है कि जिला जनसंपर्क कार्यालय द्वारा इस विज्ञप्ति का ईमेल जनसंपर्क संचालनालय को किया गया है अथवा नहीं इस बारे में भी कुहासा बना हुआ ही है।
वहीं, यह भी कहा जा रहा है कि कर्फ्यू के दौरान जनसंपर्क विभाग की सेवाएं भी अत्यावश्यक सेवाओं में शामिल हो जाती हैं, क्योंकि संवेदनशील मामलों में मीडिया के साथ तालमेल का अभाव अर्थ का अनर्थ भी कर सकता है इन परिस्थितियों में अगर जिला जनसंपर्क अधिकारी कार्यालय द्वारा इस तरह की कोताही बरती गई है तो इसकी जांच अवश्य ही होना चाहिए। वैसे भी पत्रकारों ने पास वितरण में काफी हद तक गड़बडी के आरोप भी लगाए हैं। इस संबंध में सिवनी से प्रकाशित समाचार पत्रों सहित जबलपुर से प्रकाशित समाचार पत्रों ने भी काफी तल्ख टिप्पणियां की हैं।

रेल्वे स्टेशन पर भगदड़ तीन दर्जन से ज्यादा मरे


रेल्वे स्टेशन पर भगदड़ तीन दर्जन से ज्यादा मरे

(निधि श्रीवास्तव)

इलहाबाद (साई)। इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर कल रात मची भगदड़ में २८ महिलाओं सहित ३६ लोगों की मौत हो गई और २५ घायल हैं। ये लोग उन हजारों श्रद्धालुओं में शामिल थे जो महाकुंभ का स्नान करके लौट रहे थे। प्रत्यक्षदर्शियों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि यह घटना उस समय हुई जब तीर्थयात्रियों का भारी समूह फुटऑवर-ब्रिज से प्रस्थाव नं ६ पर पहुंचने का प्रयास कर रहा था कि अचानक उन्हें रोक लिया गया।
कुछ लोगों का यह भी आरोप है कि भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने लाठी चार्ज किया, पर पुलिस अधिकारी इससे इंकार कर रहे हैं। भगदड़ से प्रभावित अधिकांश लोग उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश, दिल्ली और महाराष्ट्र राज्यों के निवासी हैं। जिनकी पहचान नहीं हो सकी है उनके शव इलाहाबाद मेडिकल कॉलेज में रखे गए हैं। क्रू मेला क्षेत्र के सेक्टर १२ में हुई भगदड़ की एक अन्य घटना में एक महिला सहित दो तीर्थयात्रियों के मारे जाने की खबर है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस दुर्घटना पर गहरा दुख व्यक्त किया है और रेल मंत्रालय को सभी संभव सहायता उपलब्ध कराने के निर्देश दिये है। डॉ. सिंह ने केंद सरकार के विभागों को भी निर्देश दिया है कि राहत और बचाव कार्यों में उत्तर प्रदेश सरकार को हर संभव सहायता दें। रेलमंत्री पवन कुमार बंसल ने कहा कि दिल्ली और उत्तरप्रदेश में विशेष हेल्पलाइन सेवा शुरू की गई है।
तीन जगह तो दिल्ली में हमारे न्यू डेली, ऑल्ड डेली और निजामुद्दीन और लखनऊ और कानपुर, इलाहाबाद तो हैं ही हैं। वहां हेल्पलाइन सेटअप की गई हैं। २४ घंटे चलेंगी, लोग उनपर अपनी खबर ले सकते हैं। इलाहाबाद का हेल्पलाइन नंबर है-०५३२१०७२, ०५३२-२४०८१४९ और ०५३२२४०८१२८, झांसी का हेल्पलाइन नंबर है-०५१०१०७२, बांदा का -०५१९२२२७५४३ और ०५१९२२२७५४३, आगरा का -०५६२१०७२ और ०५६२२४२१०४१ और कानपुर का नंबर है-०५१२१०७२ और ०५१२२३२३०१५ ।
उत्तर प्रदेश सरकार ने भगदड़ की घटना के जांच के आदेश दे दिए हैं और रेलवे से श्रद्धालुओं की सुचारू आवाजाही के उचित प्रबंध करने को कहा है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने राजस्व बोर्ड के अध्यक्ष से घटना की जांच करने को कहा है। राज्य सरकार ने इस घटना में मारे गए प्रत्येक व्यक्ति के परिवार को ५ लाख रूपए की अनुग्रह राशि देने की मंजूरी दी है। इलाहाबाद मे कल मौनी अमावस्या के अवसर पर महाकुंभ में स्नान के लिए तीन करोड़ से ज्यादा लोग जमा थे।
वहीं दूसरी ओर, इलाहाबाद में हुए हादसे में यूपी सरकार पर संवेदनहीनता के आरोप भी लग रहे हैं। बताया जा रहा है कि जिस वक्त ये दुर्घटना हुई, उस समय सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव दल-बल के साथ सैफई में मौजूद थे। मुलायम सिंह के गांव सैफई में रविवार रात उनके भाई के बेटे की शादी थी। इस शादी में मुलायम सिंह पार्टी के तमाम बड़े नेताओं के साथ शामिल थे।
हादसे के घंटों बीतने के बाद भी यूपी सरकार की तरफ़ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। काफी वक्त बीत जाने बाद राज्यमंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति सामने आए तो उन्होंने रटा रटाया जवाब दिया कि जांच में दोषी पाए गए लोगों को बख्शा नहीं जाएगा।

बिफरीं ममता कहा मारेंगी थप्पड़!

बिफरीं ममता कहा मारेंगी थप्पड़!

(प्रतुल बनर्जी)

कोलकता (साई)। सुरक्षाकर्मियों को कोड़े मारने का सुझाव देकर विवादों में आई पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दोबारा अपना आपा खो दिया और छाया पत्रकारों को थप्पड़ मारने की धमकी दी। ममता ने यह विवादास्पद बयान वर्धमान जिले में शनिवार को एक महोत्सव के उद्घाटन के दौरान दिया।
यहां माटी उत्सव के दौरान कार्यक्रम स्थल पर ममता का फोटो खींचने के लिए एक दूसरे को ढकेल रहे फोटोग्राफरों को उन्होंने कहा, ‘असभ्य लोगों, मैं तुम्हें थप्पड़ मारूंगी। आपको दिखाई नहीं दे रहा है कि यहां खाना बनाया जा रहा है।यह फुटेज रविवार को टीवी चौनलों पर बार-बार दिखाया गया।
गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के गुस्से के चलते छोटी-छोटी बातों पर लोगों को पुलिस कार्रवाई का सामना करना पड़ रहा है। कभी किसी कार्टूनिस्ट को गिरफ्तारी झेलनी पड़ती है तो कभी किसी छात्र को सवाल पूछने भर से पुलिस जांच का सामना करना पड़ जाता है। हाल में मुख्यमंत्री अपने सुरक्षाकर्मियों पर महज इसलिए सार्वजनिक तौर पर भड़क गई थीं क्योंकि उनकी कार आने में कुछ पलों की देर हो गई।
ताजा वाकया आर्ट फेयर का है जहां मुख्यमंत्री अपनी तस्वीरें खींचते फोटो पत्रकारों पर भड़क गईं। मौके पर मौजूद लोगों के मुताबिक फोटो पत्रकारों ने मुख्यमंत्री को करीब-करीब घेर रखा था। वे उनकी तस्वीरें ले रहे थे। इसी बीच कुछ एक फोटोग्राफर के पैर गलती से वहां रखे एकाध सामान पर पड़ गए। यह देख मुख्यमंत्री खुद आगे आईं और उन्होंने उस फोटोग्राफर को बुरी तरह डांटते हुए कहा, श्मैं तुम्हें थप्पड़ मार दूंगी। तुम्हें ध्यान नहीं है तुम सब कुछ नष्ट कर रहे हो?श्
गौरतलब है कि तीन दिन पहले ही वह अपने सुरक्षाकर्मियों पर सिर्फ इस वजह से भड़क गई थीं क्योंकि उनकी कार आने में थोडी़ देर हो गई थी। उन्होंने सुरक्षाकर्मियों से कहा था, तुम्हें तो थप्पड़ पड़ने चाहिए। सुरक्षाकर्मी ने हाथ जोड़ कर ममता से माफी मांगी थी।

उमर उवाच:अफजल को फांसी देना ठीक नहीं

उमर उवाच:अफजल को फांसी देना ठीक नहीं

(शरद)

नई दिल्ली (साई)। जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अफजल गुरु को फांसी दिए जाने के फैसले से खुद को अलग करते हुए कहा है कि वह इस फैसले से सहमत नहीं हैं। इतना ही नहीं उन्होंने इस कदम के समय और इसके ढंग पर भी सवाल उठाया।
एक समाचार चौनल से बातचीत करते हुए उमर ने रविवार को कहा, एक प्रधानमंत्री और एक मुख्यमंत्री की हत्या के मामले में फांसी की सजा पा चुके लोग अभी जीवित हैं। उनकी सजा पर अमल नहीं किया गया, जबकि उनका अपराध इस घटना से पहले का है। इसके बावजूद उन लोगों से पहले इस फांसी पर अमल कर दिया गया।
उमर को तकलीफ इस बात की भी है कि उन्हें इस मामले में पहले विश्वास में नहीं लिया गया। इससे पहले अजमल कसाब के मामले में उनसे विचार-विमर्श किया गया था। मगर, इस मामले में उन्हें फैसले में शामिल नहीं किया गया। अमल से कुछ घंटे पहले सिर्फ सूचित कर दिया गया। उन्होंने कहा, श्काश हमें परिवार को सूचित करने का अधिकार दिया गया होता।श्
फांसी में बरती गई गोपनीयता पर भी उन्होंने सवाल खड़ा किया। उनके मुताबिक परिवार को पहले बताया जाना चाहिए था। उन्होंने कहा कि ऐसी घटनाओं से जम्मू कश्मीर के लोगों में यह भावना बढ़ेगी कि उनके साथ इंसाफ नहीं होता।

रोज पत्नि को थोड़ा थोड़ा जलाया पिशाच ने!

रोज पत्नि को थोड़ा थोड़ा जलाया पिशाच ने!

(पूनम खरे)

दमोह (साई)। मध्य प्रदेश के दमोह जिले के कुम्हारी में अपनी पहली पत्नी तथा बच्चों को छोडकर दूसरी शादी करने वाले एक व्यक्ति ने बाद में हुए विवाद में दूसरी पत्नी की हत्या कर दी और उसके शव को प्रतिदिन घर में चारा डालकर जलाता रहा। इससे पूरा शव जल गया और केवल कंकाल ही बचा। पडोसी लोगों से जब शव जलाने की बदबू सहन नहीं हुई तो उन्होंने थाना जाकर शिकायत की। तब मामले का खुलासा हुआ।
यह मामला दमोह जिले के ग्राम कुम्हारी का है जहां शनिवार को पुलिस ने सूचना मिलने पर एक मकान की तलाशी ली तो उसमें एक जला हुआ कंकाल मिला। पुलिस सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि पुलिस ने इसकी जानकारी आरोपी वीरेन्द्र चौहान (45वर्ष) से मांगी तो उसने कहा था कि वह तो अपने घर में जडी-बूटियों से दवाएं बना रहा है। हालांकि उसके झूठ का तुरंत ही खुलासा हो गया। कुम्हारी निवासी वीरेन्द्र चौहान को ग्राम बांदकपुर से तीन-चार माह पहले किरण नामक महिला को अपने साथ लेकर कुम्हारी आ गया और नये मकान में उसे रख लिया।
इसकी शिकायत वीरेन्द्र की विवाहिता पत्नी सरोज ने कुम्हारी थाने में 12 दिसंबर 2012 को की थी कि उसका पति एक अन्य महिला को अपने साथ रखे हुए है लेकिन पुलिस ने उसकी शिकायत पर कार्रवाई नहीं की। पुलिस को मौका स्थल पर मृतका का वोटर कार्ड प्राप्त हुआ है जिसमें मृतका का नाम किरण पत्नी हरीलाल निवासी ग्राम बम्हौरी गुबराकला तहसील पाटन जिला जबलपुर अंकित है। इस संबंध में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक जी पी पाराशर का कहना है कि कुम्हारी में घटित इस घटना के संबंध में शिकायत दर्ज कर ली गयी है। एसडीओपी पथरिया एम एल वर्मा इस मामले की जांच कर रहे हैं।

भाजपा को ही तोड़ लेना चाहिए जद यू से नाता

भाजपा को ही तोड़ लेना चाहिए जद यू से नाता

(बी.पी.गौतम)

नई दिल्ली (साई)। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का आधार भारतीय जनता पार्टी है। बड़े घटकों में अकाली दल, शिवसेना और जद यू प्रमुख हैं। यहाँ ध्यान देने की प्रमुख बात यह है कि अकाली दल पंजाब से बाहर की बात नहीं करता, वैसे ही शिवसेना महाराष्ट्र तक सीमित रहती है। भाजपा के अंदरूनी मामलों में यह दोनों ही प्रमुख दल ख़ास रूचि नहीं लेते, पर जद यू की ओर से भाजपा को आये दिन चेतावनी मिलती रहती है। जद यू का बिहार के बाहर ख़ास जनाधार नहीं है, फिर भी चुनाव के दौरान बिहार के बाहर भी हस्तक्षेप करती रहती है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भाजपा में होने वाली अंदरूनी गतिविधियों में भी अपनी टिप्पणी ही नहीं करते, बल्कि चेतावनी देते हुए आये दिन हस्तक्षेप भी करते रहते हैं।
नीतीश कुमार के दबाव में निर्णय लेने को भाजपा मजबूर है, ऐसा कोई अहम् कारण नज़र नहीं आता। नीतीश कुमार के दबाव में भाजपा क्यूं आ जाती है, इसका कोई ख़ास और सटीक कारण भी नज़र नहीं आता। पहली नज़र में देखा जाये, तो यही लगता है कि भाजपा की अंदरूनी राजनीति के चलते नीतीश कुमार को भाजपा के अन्दर से ही शक्ति मिलती होगी और वह भाजपा के ही किसी शीर्ष नेता के हाथों की कठपुतली मात्र हैं। भाजपा के किसी शीर्ष नेता के इशारे पर ही वह भाजपा के अंदरूनी मामलों में बयान देकर उस नेता की राह का काँटा निकालने का प्रयास करते रहते हैं। मुख्य रूप से नरेंद्र मोदी को भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने के मुद्दे पर नीतीश कुमार भाजपा को अक्सर चेतावनी देते रहते हैं। वह खुलकर कहते रहे हैं कि नरेंद्र मोदी को प्रत्याशी घोषित किया गया, तो जदयू राजग से अलग हो जाएगी। यहाँ सवाल यह उठता है कि राजग से अलग होने पर सिर्फ भाजपा को ही नुकसान होगा, जदयू को नहीं होगा। अगर, जद यू को भी नुकसान होगा, तो नीतीश कुमार को राजग से अलग होने का भय क्यूं नहीं होना चाहिए, उनकी चेतावनी पर भाजपा को दबाव में क्यूं आना चाहिए? इसके अलावा सवाल यह भी है नीतीश कुमार को मोदी की छवि से परहेज है, तो कल्याण सिंह और उमा भारती भी कट्टरपंथी छवि वाले नेता हैं, यह दोनों नेता पहले भाजपा में थे, तब भी नीतीश को कोई आपत्ति नहीं थी और अब पुनः भाजपा में आये, तो भी आपत्ति नहीं है, इसी तरह विनय कटियार और नया चेहरा वरुण गाँधी पर भी नीतीश टिपण्णी नहीं करते, जिससे साफ़ है कि नीतीश किसी भाजपा नेता के इशारों पर ही बोलते होंगे। दूसरा कारण यह हो सकता है कि मोदी की लोकप्रियता से नीतीश को व्यक्तिगत तौर पर ईर्ष्या होगी और तीसरा कारण यह नज़र आता है कि लोकप्रिय मोदी पर टिप्पणी कर वह झटके से राष्ट्रीय खबरों में आ जाते हैं, इसलिए चर्चा में आने के लिए भी मोदी पर टिप्पणी करते रहने की संभावना है।
नीतीश कुमार को वास्तव में अल्पसंख्यक समुदाय की चिंता होती, तो नीतीश मोदी के साथ कल्याण सिंह, उमा भारती, विनय कटियार और वरुण गांधी को भी उसी दृष्टि से देख रहे होते, क्योंकि अल्पसंख्यक समुदाय जिस नज़र से मोदी को देखता है, उसी नज़र से इन नेताओं को देखता है। इसके अलावा मोदी हिंदुत्व और राम मंदिर की बात नहीं करते, वह देश को आगे ले जाने की बात करते हैं, विकास की बात करते हैं और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह खुलेआम हिंदुत्व और राम मन्दिर की बात कर रहे हैं, पर नीतीश कुमार को राजनाथ सिंह के बयान पर कोई आपत्ति नहीं है।
खैर, भाजपा में कब, क्या, क्यूं और कैसे होना चाहिए, यह निर्णय भाजपा का ही होना चाहिए, न कि नीतीश कुमार का, इसलिए नीतीश कुमार के दबाव में आने की बजाये भाजपा को स्पष्ट कर देना चाहिए कि भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के साथ कोई भी हो, उससे उनका कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए। नीतीश कुमार जदयू का अपना प्रत्याशी घोषित कर चुनाव में उतरें। राजग को बहुमत मिलने की स्थिति में राजग की बैठक में सांसदों की राय के अनुसार राजग का प्रधानमंत्री चुनाव बाद सर्वसम्मति से पुनः चुन लिया जाये, पर भाजपा की ओर से ऐसा आज तक नहीं कहा गया, जिससे साफ़ है कि नीतीश कुमार से मोदी का विरोध कराया जाता है।  
भाजपा और जद यू के रिश्ते का आंकलन राजनैतिक हानि-लाभ की दृष्टि से किया जाये, तो नरेंद्र मोदी को प्रत्याशी घोषित करने की स्थिति में भाजपा को जद यू से अलग होने में ही लाभ है, क्योंकि मोदी उत्तर प्रदेश और बिहार में गुजरात से अधिक लोकप्रिय हैं। वह प्रत्याशी घोषित हुए, तो इन दोनों राज्यों में भाजपा की लहर होगी, जिसका लाभ गठबंधन की स्थिति में जद यू को भी मिलेगा और भाजपा ने रिश्ता तोड़ लिया, तो उत्तर प्रदेश और बिहार की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए वह स्वतंत्र होगी। कूटनीतिक दृष्टि से देखा जाए, तो आने वाले लोकसभा चुनाव से पहले जदयू का रिश्ता राजग से टूटने की संभावना अधिक हैं, क्योंकि चुनाव बाद राजग की संभावित सरकार के चलते नीतीश कुमार केंद्र की राजग सरकार में दबदबा बनाए रखने की नीयत से जदयू के हिस्से में और अधिक सीटें मांगेंगे, जो भाजपा देने में असमर्थ साबित होगी, तो नीतीश कुमार अल्पसंख्यकों को लुभाने के लिए यही बयान देकर अलग होंगे कि नरेंद्र मोदी को अहमियत देने के कारण वह राजग से रिश्ता तोड़ रहे हैं, इसलिए नीतीश कुमार को राजनैतिक लाभ का अवसर देने से पूर्व ही जदयू से भाजपा को स्वयं नाता तोड़ लेना चाहिए। इससे भाजपा को और भी कई फायदे होने की संभावनाएं हैं। सब से पहले अगर, भाजपा चाहती है, तो लोकप्रिय नरेंद्र मोदी को प्रत्याशी बनाने की सबसे बड़ी बाधा दूर हो जायेगी। दूसरा लाभ चुनाव बाद उसकी सरकार आई, तो नीतीश कुमार बाद में भी लगातार मुश्किलें पैदा करते रहेंगे, जिससे चुनाव पूर्व ही जद यू से छुटकारा पा लेना भाजपा का बेहतर निर्णय माना जायेगा।
राजनाथ सिंह के बयान के अनुसार भाजपा चुनाव में हिंदुत्व और राम मन्दिर मुद्दे के साथ उतरी, तो बिहार में नीतीश कुमार के साथ सयुंक्त जनसभाएं करने में भी असहज करने वाली स्थिति होगी, क्योंकि नीतीश की सोच के साथ भाजपा बिहार में हिंदुत्व और राम मन्दिर की बात नहीं कर पायेगी। इसके अलावा नीतीश कुमार की लोकप्रियता का ग्राफ बिहार में भी गिरा है। जनता में सत्ताधारी दल के प्रति कुछ न कुछ नाराजगी रहती है। गठबंधन की दशा में बिहार के मतदाताओं की नाराजगी का शिकार भाजपा बेवजह हो सकती है, इसलिए भाजपा को जद यू से नाता तोड़ने में अधिक लाभ है। चुनाव के बाद की बात की जाए, तो जद यू के पास भाजपा को समर्थन देने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है।

चोरगिरोह का भांडाफोड़ करते हुए 3 आरोपी गिरफ्तार


चोरगिरोह का भांडाफोड़ करते हुए 3 आरोपी गिरफ्तार

(राजकुमार अग्रवाल)

कैथल (साई)। तितरम पुलिस ने एक चोरगिरोह का भांडाफोड़ करते हुए 3 आरोपी गिरफ्तार किए है। आरोपियों के कब्जा से चोरीशुदा बाईक बरामद करने उपरांत 2 आरोपियों से पुलिस रिमांड दौरान मोबाईल दुकान से चोरीशुदा संपत्ती भी बरामद कर ली गई। दोनों आरोपियों ने गांव उपलाना में भी एक मोबाईल दुकान से रात्री समय सेंधमारी करना कबुला है, जिस बारे वहां की पुलिस को सुचित कर दिया गया। दोनों आरोपियों को कल अदालत में पेश किया जाएगा। पुलिस प्रवक्ता ने बताया एएसआई रमेश चंद की टीम नें तितरम मोड़ पर नाकाबंदी दौरान हिरोहॉडा स्प्लैंडर बाईक पर सवार आरोपी सचिन, प्रदीप व सन्नी वासीयान राहड़ा जिला करनाल को काबु किया। जांच करने पर बाईक चोरीशुदा पाई गई, जिस पर जाली नम्बर प्लेट लगी हुई थी। व्यापक पुछताछ करने उपरांत आरोपी सचिन व प्रदीप ने 19 जनवरी की रात रमाना-रमानी से एक मोबाईल दुकान का शटर तोड़कर चोरी करना व थाना अंसध तहत उपलाना में भी मोबाईल दुकान से चोरी की वारदात कबुल की है। तीनों आरोपियों को अदालत में पेश कर आरोपी सन्नी को न्यायिक हिरासत तथा सचिन व प्रदीप का 11 फरवरी तक पुलिस रिमांड हासिल किया गया। थाना पुंडरी के एएसआई गुरदेव ङ्क्षसह ने सुनील कुमार वासी हाबड़ी की रमाना-रमानी स्थित दुकान से चोरीशुदा संपत्ती बरामद कर ली है।

मना बाबा का स्थापना दिवस


मना बाबा का स्थापना दिवस

(प्रतिभा सिंह)

गोपालगंज (साई)। बिहार के गोपालगंज शहर के जादोपुर रोड के ब्रह्म सती स्थान दुर्गा मंदिर के परिसर में बने साई बाबा मंदिर के प्रथम स्थापना दिवस पर शनिवार को धूमधाम से साई बाबा की शोभा यात्रा निकाली गयी। गाजे-बाजे और हाथियों के साथ निकली यह शोभायात्रा लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी रही। इस दौरान साई बाबा के जयकारे से माहौल भक्तिमय बना रहा। दिन में निकली शोभा यात्रा के बाद मंदिर परिसर में स्थानीय कलाकार साई जागरण की प्रस्तुति कर भक्तिरस में श्रद्धालुओं को डूबते रहे। दो दिवसीय स्थापना दिवस पर रविवार को मंदिर परिसर में पूजनोत्सव के साथ ही भंडारा का आयोजन होगा। इसके साथ ही शाम को गोरखपुर से आए कलाकार साई जागरण पेश करेंगे।
शनिवार की सुबह साई बाबा मंदिर के स्थापना दिवस पर वहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। भक्तों की भारी भीड़ के साथ ही गाजे-बाजे और हाथियो के साथ साई बाबा की शोभा यात्रा शहर के लिए निकल पड़ी। शहर के थाना चौक, मौनिया चौक, पोस्टआफिस चौक, घोष मोड़ होते हुए शोभा यात्रा जिधर से भी गुजरी, लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी रही। इस दौरान साई बाबा के जयकार से माहौल भक्ति मय बना रहा। शोभायात्रा नगर भ्रमण कर फिर से साई बाबा मंदिर पहुंची। जहां श्रद्धालुओं ने पूजा-अर्चना कर मन्नतें मांगी। मंदिर परिसर में स्थानीय कलाकारों की साई जागरण की प्रस्तुति कर श्रद्धालु भक्ति रस में डूबकी लगाते रहे। मंदिर निर्माण समिति के सदस्यों बताया कि दो दिवसीय स्थापना दिवस पर रविवार को पूजनोत्सव और भंडारा का आयोजन होगा। इस दिन शाम को गोरखपुर से आये कलाकार साई जागरण प्रस्तुत करेंगे। इस मौके पर राजमंगल सिंह, शिबू अदक, मोहन राय, राजेश कुमार गुप्ता, रमेशचंद्र श्रीवास्तव, सुनील ओझा, राजेश देवा, नवल केडिया, प्रो। नृपेन्द्र सिंह, रविश कुमार सिंह सहित सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे।

अफज़ल की फॉंसी, छोड़ गई कुछ प्रश्न


अफज़ल की फॉंसी, छोड़ गई कुछ प्रश्न

(श्याम नारायण रंगा अभिमन्यु’)

नई दिल्ली (साई)। हमारे देश की सरकार ने कल आतंक के पर्याय बने और देश की सम्प्रभुता संसद पर हमला करने वाले अफ़जल गुरू को तिहाड़ जेल में फॉंसी के फॅंदे पर लटका दिया। जैसा कि होता है कि इस घटना की पूरे राष्ट्र में प्रशंसा हो रही है और ऐसा ठीक भी है। हम इस देश के कानून व सर्वोच्च न्यायालय सहित राष्ट्रपति के निर्णय का सम्मान करते हैं और मेरा व्यक्तिगत तौर पर ऐसा मानना है कि राष्ट्र की सम्प्रभूता, एकता और अखण्डता से खिलवाड़ करने वाले किसी भी व्यक्ति के साथ ऐसा ही होना चाहिए। चाहे वो अफजल गुरू हो या कसाब और कोई और। लेकिन इस फॉंसी की घटना की हमारे देश में कुछ राजनैतिक पार्टियों द्वारा व कुछ संगठनों द्वारा निंदा भी की जा रही है और इस तरह यह फॉंसी अपने पीछे कईं प्रश्न छोड़ कर गई है।
मैं अपनी बात शुरू करने से पहले एक महत्वपूर्ण बात पर आप सब का ध्यान दिलाना चाहूॅंगा कि अफजल गुरू व कसाब में एक महत्वपूर्ण फर्क है कि कसाब पाकिस्तानी नागरिक था और अफजल गुरू भारत का ही एक नौजवान था। कसाब को जन्मजात ही इस देश व इस देश की व्यवस्था की नफरत ने पाला था लेकिन अफजल गुरू ने इस देश की व्यवस्था, यहां के लोकतंत्र व यहां के स्वतंत्रता दिवस को स्वीकार किया था, तो फिर ऐसा क्या था जिसने अफजल गुरू को कसाब की श्रेणी में ला खड़ा किया।
जैसा कि मैंने इंटरनेट पर पढ़ा कि अफजल गुरू अपनी स्कूल में स्वतंत्रता दिवस की परेड का नेतृत्व करता था लेकिन एक दिन उसने देखा कि सीमा पर तैनात जवान राष्ट्र की सुरक्षा के नाम पर उसके गांव में किसी तरह का अत्याचार कर रहे हैं और वहां से अफजल गुरू की मानसिकता मे बदलाव आया। दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक और एम बी बी एस का विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का एक नौजवान धीरे धीरे इस देश की व्यवस्था से नाराज होता गया और उसका यह सफ़र संसद पर हमले पर जाकर सामने आया और अंततः उसके दिल में उपजी इस नकारात्मक भावना ने उसे फॉंसी पर लटकने को मजबूर कर दिया।
क्या इस देश में अफ़जल गुरू एक ऐसा अकेला आदमी था जो इस व्यवस्था से नाराज था नहीं ऐसा नहीं है अन्ना के आंदोलन में उपजी भीड़, केजरीवाल की आम आदमी की पार्टी से जुड़े नौजवान, दिल्ली रेप केस के मामले में सोसल मीडिया के माध्यम से इंडिया गेट पर इक्ट्ठा हुई भीड़ ऐसे ही व्यवस्था से नाराज नौजवानों की आवाज है जो शायद सत्ता कि सिंहासन पर बैठे हुक्मरानों को सुनाई नहीं दे रही और अगर सुनाई दे भी रही है इसका अहसास हो नहीं पा रहा है।  समय समय पर पूरे देश में उग्र व असंतुष्ट युवा जो आज भी सड़कों पर टायर जलाता है, पुलिस से पानी की बौछारें सहन करता है, लाठीयां खाता है, कुछ समय के लिए गिरफ्तारी देता है, क्या ऐसे नौजवान नहीं है जिसमें अफज़ल जैसे युवा की मानसिकता होगी।
आज हमारी इस व्यवस्था से और इस तंत्र से पूरा देश नाराज है, पूरे देश में इस व्यवस्था व तंत्र को लेकर आवाज उठ रही है। ऐसे में किसी युवा का भटक जाना कोई बड़ी बात नहीं है। अफजल गुरू के साथ गलत ये हुआ कि उसकी इस सोच का पड़ौसी देश ने फायदा उठाया, चूंकि वह सीमांत प्रांत का रहने वाला था तो इसके दिल में अवयवस्था से उपजे बीज को पड़ौसी देश ने पानी दिया और धार्मिक कट्टरता की खाद से पल्लिवत व पुष्पित किया। और दोस्तों धर्म मनुष्य के रग रग में व्याप्त है तो ऐसे में किसी युवा को यह बताना कि तुम्हारी सारी नाराजगी धर्म के रास्ते दूर हो जाएगी जरूर उस युवा को एक दिशा प्रदान करती है। अब यह दिशा सही है या गलत ऐसी सोचने की शक्ति युवा मन की नहीं हो सकती। अफजल ने जो किया निश्चित तौर पर वो गलत था और राष्ट्र विरोधी था।
तो क्या राज्य की सरकार की यह जिम्मेदारी नहीं है कि वो ऐसी व्यवस्था कायम करे कि कोई अफजल पैदा ही न हो, सिर्फ किसी को फांसी पर लटका देने से युवाओं का आक्रोश या व्यवस्था दुरूस्त नहीं हो जाएगी। राज्य की यह जिम्मेदारी है वो ऐसा माहौल पैदा करें कि युवाओं में असंतोष हो ही नहीं और ऐसा क्यों होता है कि हमारा पड़ौसी राष्ट्र हमारे युवाओं को बर्गलाने में सफल हो जाता है, क्यों कोई युवा किसी के बहकावे में आ जाता है क्या इस मूल प्रश्न पर सोचना राज्य की जिम्मेदारी नहीं है।हमारे संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में राज्य को भी जिम्मेदार ठहराया गया है।
मेरा इस आलेख के माध्यम से यह कहने का मतलब है कि राज्य में ऐसी व्यवस्था हो जो कि हमारी इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोक का तंत्र है, यह अहसास दिलाए। जनता को लगे कि जनता का जनता के लिए और जनता के द्वारा राज हो रहा है। व्यवस्था अपनी लगे, खुद की बनाई लगे। सिर्फ दण्ड देना ही अपराध समाप्त करने की निशानी नहीं है, इससे तो अपराधी समाप्त होता है। हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था पाप से घृणा करो, पापी से नहीं। तो अपराधी को सजा मिले इससे ज्यादा जरूरी यह है कि अपराध मूल से नष्ट हो ऐसी व्यवस्था कायम हो।

रियाया पीएम नहीं दुल्हा बनाना चाहती हैं युवराज को


ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)

रियाया पीएम नहीं दुल्हा बनाना चाहती हैं युवराज को
उत्तर प्रदेश के अमेठी की जनता को इस बात की चिंता कम है कि उनके सांसद और कांग्रेस के कथित युवराज राहुल गांधी देश के प्रधानमंत्री बनें। अमेठी की रियाया इस बात को लेकर ज्यादा उत्सुक नजर आ रही है कि उनके युवराज कब दूल्हा बनकर घर बसाएंगे। अमेठी के हाल ही के दौरे में चंदन गारमेंट्स नामक दुकान के मालिक देवी प्रसाद से चर्चा के दौरान देवी प्रसाद ने राहुल से कहा कि अमेठी वासियों की इच्छा उनकी दुल्हन देखने की है। इस सवाल पर राहुल ने मुस्कुराते हुए कहा कि जल्द ही एसा होगा। राहुल के इस बार के अमेठी दौरे के दरम्यान एक बात ही सामने आई, हर कोई राहुल को प्रधानमंत्री से ज्यादा घोड़ी चढ़ दुल्हा बनाने को आतुर नजर आ रहा है। गौरतलब है कि पूर्व में ज्योतिषियों ने राहुल की शादी 48 साल के उपरंात ही होने का दावा किया था।

नाथ की शरण में शिंदे!
केंद्रीय गृहमंत्री को इस समय संसदीय कार्य मंत्री कमल नाथ तारण हार से कम नजर नहीं आ रहे हैं। जयपुर के कांग्रेस चिंतन शिविर में सोनिया और राहुल की नजरों में नंबर बढ़ाने की गरज से उन्होंने भगवा आतंकवाद के मसले को उछाला अवश्य पर अब वे विपक्ष विशेषकर भाजपा के निशाने पर हैं। झंडेवालान स्थित संघ मुख्यालय केशव कुंज के सूत्रों का कहना है कि संघ के शीर्ष नेतृत्व ने इस मसले को गंभीरता से लिया है और भाजपाध्यक्ष राजनाथ सिंह, मुरली मनोहर जोश और सुषमा स्वराज को तलब कर 21 फरवरी से आरंभ होने वाले लोकसभा सत्र में शिंदे को घेरने के हुक्म जारी कर दिए हैं। इसकी कमान सुषमा स्वराज को दी गई है। इस बारे में जब जानकारी शिंदे को मिली तो वे बुरी तरह भयाक्रांत नजर आ रहे हैं। अब फ्लोर मैनजमेंट में माहिर कमल नाथ पर ही जाकर उनकी नजरें आ टिकी हैं। देखना है कि कमल नाथ किस तरह विपक्ष की धार को बोथरा करते हैं।

मैया मो तो चंद्र खिलौना लेंहूं. . .
कांग्रेस के नेता देश चला रहे हैं या फिर बाल हट कर रहे हैं। हर मामले में कमोबेश कांग्रेस का यह रूख साफ दिखाई देता है कि कांग्रेस के मंत्री अपनी हठ के आगे किसी की नहीं सुनना पसंद करते हैं। कितने आश्चर्य की बात है कि दिसंबर में गैंगरेप पीड़िता को सिंगापुर भेजने के पक्ष में खुद स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद नहीं थे पर फिर भी गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने उसे सिंगापुर भेज दिया। शिंदे का कहना था कि इस मामले में प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ नरेश त्रेहन के साथ अनेक विशेषज्ञों से सलाह मशविरा हो चुका है अतः इस फैसले पर पुर्नविचार की आवश्यक्ता ही नहीं थी। कैबनेट की बैठक में एक मंत्री ने यहां तक कहा कि त्रेहन हार्ट स्पेशलिस्ट हैं पर शिंदे थे कि मैया मो तो चंद्र खिलौना लेंहूं का रट लगाकर पीडिता को सिंगापुर भेजने पर आमदा थे। पीडिता को सिंगापुर क्यों भेजा यह आज भी लोगों के लिए अबूझ पहेली ही है। विपक्ष भी इस मसले पर मौन ही है।

पुलक की संजीवनी पर सांसे ले रहे नायर!
पुलक चटर्जी के प्रधानमंत्री कार्यालय आते ही टी.के.नायर को किनारे लगा दिया गया था, पीएमओ में। लोगों को यहां तक कि पीएमओ कव्हर करने वाले मीडिया पर्सन्स को भी यह लगने लगा था कि टी.के.नायर अब काम के नहीं बचे हैं। जमीनी हकीकत इससे उलट ही है। नायर आज भी वहां ताकतवर बने हुए हैं। कहते हैं नायर ने सबसे पहले पुलक चटर्जी को साधा। पुलक चटर्जी की गुड बुक्स मेें आने के उपरांत नायर का रसूख फिर से पुराने जैसा हो गया है। कहते हैं नायर अब पुलक चटर्जी को इनपुट्स देने का काम बखूबी करने लगे हैं। इतना ही नहीं महत्वपूर्ण निर्णयों में भी नायर की महती भूमिका रहती है। पीएमओ के सूत्रों का दावा है कि टी.के.नायर पीएमओ में विदेश मामलो को छोड़कर हर मामले में अपनी राय देते हैं और उनकी राय को महत्व भी दिया जाता है।

रीढ़ तलाशते बिना रीढ़ के नेता!
कांग्रेस में राज्यसभा के रास्ते चुनावी बिसात में कूदने वाले नेता अब बरास्ता लोकसभा राजनीति करने का मन बना रहे हैं। 2014 में जो राज्यसभाई नेता चुनाव लड़ने का मन बना रहे हैं उनमें केंद्रीय मंत्री राजीव शुक्ला, जयंती नटराजन, अश्विनी कुमार, रहमान खान, जी.के.वासन, सुरेश पचौरी आदि प्रमुख बताए जा रहे हैं। एआईसीसी के सूत्रों का कहना है कि राजीव शुक्ला उत्तर प्रदेश से अपनी पसंदीदा सीट पर संभावनाएं तलाश रहे हैं। बरास्ता सतीश मिश्रा उनकी सीधी पहुंच मायावती तक है, इसलिए वे अपने खिलाफ बसपा के वाकोवर के प्रयास में लगे हैं। वहीं जयंती नटराजन तमिलनाडू के श्रीपेरंबदूर, जी.के.वासन मल्लादुराई या चेन्नई के दक्षिण इलाके से, रहमान खान कर्नाटक तो अश्विनी कुमार पंजाब से किस्मत आजमाना चाह रहे हैं। सुरेश पचौरी का मन मध्य प्रदेश के होशंगाबाद से चुनाव लड़ने का बन रहा है।

संघ और भाजपा में खुदी खाई!
भारतीय जनता पार्टी और उसके पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बीच अब रिश्ते बहुत सामान्य नहीं प्रतीत हो रहे हैं। गौरतलब है कि जब अटल आड़वाणी की जोड़ी भाजपा में शीर्ष पर थी तब इन दोनों के रिश्तों की तल्खी पर संघ बारीक नजर रखा करता था। आज हालात एकदम बदल चुके हैं। गड़करी को दूसरा कार्याकाल देने जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर भी संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भाजपा के आला नेताओं को बुलाकर सर जोड़कर बैठाने की जहमत नहीं उठाई है। लगता है संघ का शीर्ष नेतृत्व अब भाजपा के नंबर दो वाले नेताओं के कदमताल और कांग्रेस के प्रति नरम रवैए से नाखुश है। संघ मुख्यालय केशव कुंज के उच्च पदस्थ सूत्रों की मानें तो भारतीय जनता पार्टी ने जनता का ध्यान देने के बजाए अब कांग्रेस के इशारों पर खुद का ज्यादा ध्यान रखना आरंभ कर दिया है। भाजपा भी अब कांग्रेस की ही तरह प्राईवेट लिमिटेड पार्टी के रूप में चलने लगी है।

बेटे को टाईम फ्रेम में बांधा नेताजी ने
नेताजी यानी मुलायम सिंह यादव अपने मुख्यमंत्री पुत्र अखिलेश यादव की कार्यप्रणाली से खासे नाराज बताए जा रहे हैं। मुलायम के करीबी सूत्रों का कहना है कि नेताजी ने अपने पुत्र को सीधे सीधे अल्टीमेटम देकर दो माह में अपना चाल चलन (कार्यप्रणाली) में सुधार करने को कहा है। सूत्रों का कहना है कि खुफिया रिपोर्ट और सर्वे ने नेताजी की नींद उड़ा दी है, जिसमें अखिलेश यादव की कार्यप्रणाली के चलते राज्य में एक बार फिर बसपा का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। मुसलमान भी समाजवादी पार्टी से दूरी बनाते जा रहे हैं। मुलायम सिंह को कार्यकर्ताओं ने भी आगाह किया है। अगर अखिलेश यादव ने अपना तौर तरीका नहीं बदला तो मजबूरी में मुलायम सिंह लोकसभा चुनाव तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन सकते हैं, क्योंकि हालात अगर यही रहे तो लोकसभा में सपा को अपने पुराने 22 सीट को बरकरार रखना भी दुष्कर ही साबित होगा।

उत्तर प्रदेश से प्रफुल्ल का लेना देना!
राकांपा नेता प्रफुल्ल पटेल मूल रूप से महाराष्ट्र से हैं। उत्तर प्रदेश से उनका खास लेना देना नहीं है पर पिछले दिनों कैबनेट की बैठक में वे उत्तर प्रदेश के एक सार्वजनिक उपक्रम स्कूटर्स इंडिया लिमिटेड के लिए बेल आउट पैकेज की मांग करते देखे गए। इसका पुरजोर विरोध किया वित्त मंत्री पलनिअप्पम चिदम्बरम ने। फिर क्या था यंत्रचलित मुद्रा में प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह ने इसमें दखल दिया और कहा कि इसे दो सौ करोड़ा का पैकेज दिया ही जाना चाहिए। कहा जा रहा है कि राहुल गांधी के दबाव में आकर प्रफुल्ल पटेल ने यह कदम उठाया है और चिदम्बरम को इसकी जानकारी नहीं थी, पर राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री को भी साफ तौर पर निर्देश देकर इस पैकेज को जारी करने को कहा था इसीलिए अमूमन साईलेंट मोड में रहने वाले मनमोहन सिंह ने अपना मुंह इस मसले पर खोला था।

चिदम्बरम से परेशान हैं अश्विनी!
कानून मंत्री अश्विनी कुमार इस समय वित्त मंत्री पलनिअप्पम चिदम्बरम से बुरी तरह नाराज बताए जा रहे हैं। इसका कारण चिदम्बरम का सीधा सीधा कानून मंत्रालय में दखल और वर्चस्व बताया जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि कानून मंत्री चाहे जो कर लें, पर अंतिम मुहर चिदम्बरम की ही लगती है। गैंगरेप के मामले में न्यायिक आयोग पर चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री ने अश्विनी कुमार से मुखातिब होकर उनका पक्ष जानना चाहा। छूटते ही अश्विनी कुमार ने मामला चिदम्बरम के पाले में डालते हुए कहा कि इनसे ही पूछ लीजिए कानून मंत्रालय के मामलों में अंतिम फैसला यही करते हैं। अश्विनी कुमार को चिदम्बरम द्वारा सुपरसीट करने पर उनकी पीड़ा पर प्रधानमंत्री ने अपनी चिरपरिचित मुस्कान फैंकते हुए चिदम्बरम की ओर देखा और अंत में चिदम्बरम के ही मश्विरे को अंतिम माना गया।

जयराम और विजय!
ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश इन दिनों काफी परेशान चल रहे हैं। उनकी परेशानी का कारण विजय नाम होना है। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन का फिल्मों में पसंदीदा नाम रहा है विजय! और यही नाम अब जयराम रमेश के लिए परेशानी का सबब बन चुका है। दरअसल, ग्रामीण विकास मंत्रालय में विजय नाम के अनेक अधिकारी हैं। विभाग में एस.विजय कुमार सचिव हैं, अतिरिक्त सचिव हैं विजय आनंद, अतिरिक्त सचिव हैं विजय श्रीवास्तव, तो टी.विजय नाम के दो अफसर हैं संयुक्त सचिव। बताते हैं कि एक विजय के खिलाफ गोपनीय शिकायत पर कार्यवाही के लिए जयराम रमेश ने एक रूक्का दूसरे विजय के पास भेजा। विजय विजय के हेर फेर में वह रूक्का उसी विजय के पास पहुंच गया जिसके खिलाफ वह शिकायत थी। मामला जब जयराम रमेश को पता चला तो उन्होंने अपना सर पीट लिया। अब वे अपने मंत्रालय में विजय एक विजय दो विजय तीन विजय चार जैसे नामकरण करने पर विचार कर रहे हैं।

 धरी रह गई सारी तैयारी!
भारतीय जनता पार्टी के निर्वतमान अध्यक्ष नितिन गड़करी अपने दूसरे कार्यकाल के प्रति इतने आश्वस्त थे कि वे इसके लिए सारी तैयारियां कर चुके थे। 11 अशोक रोड़ स्थित अपने कार्यालय और तीन मूर्ति लेन स्थित उनके आवास को उनके अनुरूप एक बार फिर सजाया गया था। भाजपा मुख्यालय में उनके कार्यालय का नवीनीकरण, कांफ्रेंस हाल का सौंदर्यीकरण, उनके आवास में रंग रोगन सुधार आदि का काम उनके मन मुताबिक हो गया था। इसका भोगमान किसने भोगा यह बात तो गड़करी ही जानते होंगे या इस काम की देख रेख करने वाला किन्तु लाखों रूपए पानी में ही बह गए हैं। इसका कारण यह है कि वर्तमान निजमा राजनाथ सिंह सीधी सादी सोच वाले हैं जबकि गड़करी तड़क भड़क शोशा पसंद करते थे। भाजपा के मुख्यालय में इस बारे में चर्चा गर्म है कि पता नहीं राजनाथ सिंह आगे गड़करी के सुसज्जित लकझक कार्यालय को ही अपनाएंगे या फिर अपने मुताबिक सादगी भरा नया कार्यालय तैयार करवाएंगे।

पुच्छल तारा
सोशल नेटवर्किंग वेब साईट फेसबुक पर तरह तरह के अपडेट आते रहते हैं। इन अपडेट्स के बारे में कुछ सच्चाई तो कुछ झूठी बातों का समावेश रहता है। पिछले दिनों हृदय प्रदेश में भगवान शिव की नगरी मानी जाने वाली सिवनी में कर्फ्यू लगा दिया गया। आश्चर्य इस बात पर हुआ कि मीडिया को ही घरों में कैद कर दिया गया। पता नहीं हालात किस कदर बेकाबू थे या होने को थे कि अखबारों का वितरण तक नहीं होने दिया गया। मीडिया को हालात का जायजा लेने नहीं जाने दिया गया। बाद में मीडिया को शाम पांच बजे तक ही पास दिए गए, सवाल यह है कि अगर सवा पांच बजे कहीं कोई घटना घटती तो मीडिया असहाय रहता। इस मामले में प्रशासन और मीडिया के बीच के सेतु जनसंपर्क के जिला प्रमुख अपने आप को प्रशासन के सामने असहाय बताकर अपनी जान बचा रहे थे। यह शिवराज सिंह चौहान के लिए वाकई शर्मनाक है कि उनके राज में एक जिले में मीडिया पर अघोषित सैंसरशिप लागू कर दी गई। मजे की बात यह है कि समाचार चेनल्स के संवाददाताओं पर घरों से फोन से समाचार भेजने पर प्रतिबंध नहीं था। देश दुनिया में सिवनी वालों के रिश्ते नातेदारों को सोशल मीडिया के सहारे ही खोज खबर लेने देने पर निर्भर रहना पड़ा।