गुरुवार, 14 नवंबर 2013

निष्पक्ष चुनाव और सरकारी नुर्माइंदे

निष्पक्ष चुनाव और सरकारी नुर्माइंदे

(शरद खरे)

भारत निर्वाचन आयोग द्वारा निष्पक्ष चुनाव के लिए अपनी कटिबद्धता सदा ही दुहराई जाती है। चुनाव आयोग की हां में हां मिलाकर सियासी दल के नुर्माइंंदे और सरकारी कर्मचारी भी निष्पक्ष चुनाव की बात कहा करते हैं। निष्पक्ष चुनाव का सीधा मतलब होता है न काहू से दोस्ती न काहू से बैर। अर्थात किसी के पक्ष में न तो प्रचार करना, न ही किसी के खिलाफ पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर काम करना। आज़ाद भारत में शुरूआती दौर में तो सब कुछ ठीक ठाक चला पर कालांतर में मामला कुछ गड़बड़ा गया। सरकारी नुर्माइंंदों ने सियासी दलों के साथ कदमताल मिलाने आरंभ कर दिए।
सिवनी में हाल ही में बरघाट विधानसभा में खण्ड चिकित्सा अधिकारी पर कमलके प्रचार के आरोप लगे। जांच में ये आरोप सत्य पाए गए, यह एक बहुत बड़ा उदाहरण है जिसकी निंदा करने से काम नहीं चलेगा। आखिर क्या वजह है कि सरकारी नुर्माइंंदे अपने मूल काम को छोड़कर किसी नेता या दल विशेष के काम को ही अपनी नौकरी मान लेते हैं, जबकि उन्हें सरकारी काम करने के एवज में पगार मिलती है।
जाहिर है राजनैतिक दलों के नुर्माइंंदों द्वारा उन्हें प्रश्रय दिया जाता होगा। अब प्रश्न यह उठता है कि प्रश्रय की दरकार किसे होती है? शायद उसे जो गलत काम करता हो। वरना सीधी साधी नौकरी करने वाले को किसी नेता के प्रश्रय की क्या दरकार! किसी को क्या परवाह कि उसे जनसेवक सहयोग दे, उसका पक्ष ले या संरक्षण दे। निश्चित तौर पर गलत करने वाले को ही राजनैतिक संरक्षण की दरकार होती है।
चुनाव के दौरान कई बार यह भी देखा गया है कि अगर किसी के द्वारा, किसी सक्षम अधिकारी से किसी प्रत्याशी के द्वारा आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायत की जाती है, तो उस समय अधिकारी द्वारा मौके पर जाने में हीला हवाला किया जाता है। आज का युग संचार क्रांति का युग है। इस युग में सूचना एक स्थान से दूसरे स्थान तक बहुत ही जल्दी और आसानी से पहुंचाई जा सकती है। अनेक बार इस तरह के समाचार भी मिलते हैं कि फलां उम्मीदवार की शिकायत पर फलां अधिकारी के पास वाहन न होने से वह मौके पर विलंब से पहुंचा।
पिछले दिनों बरघाट विधानसभा क्षेत्र के मुख्यालय बरघाट में पदस्थ खण्ड चिकित्सा अधिकारी डॉ.उषा श्रीपाण्डे के खिलाफ कामरेड राजेंद्र चौहान द्वारा एक शिकायत मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी भोपाल को की गई। इस शिकायत की जांच जिला निर्वाचन अधिकारी सिवनी द्वारा करवाई गई। यह शिकायत जांच में सत्य पाई गई और खण्ड चिकित्सा अधिकारी डॉ.उषा श्रीपाण्डे का मुख्यालय सिवनी कर दिया गया।
देखा जाए तो यह एक राजनैतिक दल के प्रति निष्ठा जताने का मामला था एक सरकारी नुमाईंदे का। कोई भी सरकारी नुर्माइंंदा एक आदमी ही होता है और वह किसी दल विशेष या प्रत्याशी के लिए अपने मन में अनुराग या निष्ठा रख सकता है। उसकी निष्ठा व्यक्तिगत होनी चाहिए। उसके कामकाज में अगर वह निष्ठा दिखाई देती है तो इसे उचित किसी भी दृष्टिकोण से नहीं माना जा सकता है। इसके लिए उस सरकारी नुर्माइंंदे को दोषी करार दिया जाकर उससे जवाब तलब करना आवश्यक है। वैसे यह मामला प्रशासनिक स्तर का और प्रशासन के नुर्माइंंदों का है।
अगर जिला निर्वाचन अधिकारी ने यह पाया है कि खण्ड चिकित्सा अधिकारी बरघाट द्वारा भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में चुनाव प्रचार कर मतदाताओं को रिझाया जा रहा है तो यह निश्चित तौर पर बेहद ही संगीन मामला है। इस मामले में भारत निर्वाचन आयोग को तत्काल ही कठोर कार्यवाही करना चाहिए।
जिस तरह मीडिया में भी सियासी दलों ने अपने अपने लोगों की घुसपैठ बना ली है, और मीडिया पथभ्रष्ट होता जा रहा है, उसी तरह नौकरशाही को भी यह दीमक खा रहा है। मीडिया में काम करने वाला किसी दल या प्रत्याशी विशेष का अनुयायी हो सकता है, पर उसकी लेखनी में कभी भी यह अनुराग या प्रेम झलकना नहीं चाहिए। अगर ऐसा होता है तो निश्चित तौर पर वह अपने काम के साथ न्याय नहीं कर रहा है।
कमोबेश यही स्थिति सरकारी कर्मचारियों के साथ होती है। एक बार के वाक्ये का जिकर यहां लाजिमी होगा। सालों पहले चुनावी कव्हरेज में खजुराहो प्रेस टूर के दौरान जब तत्कालीन कलेक्टर से यह सवाल पूछा गया कि वे व्यक्तिगत तौर पर किस पार्टी में दिलचस्पी रखते हैं, किस नेता से वे विशेष रूप से प्रभावित हैं, इस पर उन्होंने कुशलता के साथ छूटते ही जवाब दिया कि प्रशासन सदा ही शासन के साथ होता है, जिसका शासन उसका प्रशासन।अर्थात प्रशासन का कारिंदा किसी दल विशेष में अपनी निष्ठा नहीं रखता है।
खण्ड चिकित्सा अधिकारी बरघाट पर कमल के चुनाव प्रचार की बात साबित हो गई है। इसलिए अब जिला प्रशासन और चुनाव अयोग को अधिक संवेदनशील और सतर्क रहने की आवश्यकता है। अनेक सियासी लोगों और विधायक सांसदों के करीबी रिश्तेदार भी सालों से सिवनी में ही तैनात हैं। वैसे तो इनका तबादला पहले ही हो जाना चाहिए था, पर पता नहीं क्यों इन पर शासन ने अपनी नजरें इनायत नहीं की हैं। अब इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि ये कारिंदे चुनावों को किसी भी दृष्टिकोण से प्रभावित नहीं करेंगे।

हो सकता है कि जिन सरकारी नुर्माइंंदों के रिश्तेदार सियासत में घोषित तौर पर हों उन्हें चुनाव के कार्य से प्रथक रखा गया हो, पर यह तो उनके लिए एक पारितोषक से कम नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि वे चुनाव के काम से मुक्त रहकर और बेहतर तरीके से अपने सगेवालों के पक्ष में माहौल बना सकते हैं। बहरहाल, संवेदनशील जिला कलेक्टर भरत यादव जो सिवनी के जिला निर्वाचन अधिकारी भी हैं, ने हर पहलू पर सारे दृष्टिकोण से विचार अवश्य ही किया होगा, किन्तु बरघाट खण्ड चिकित्सा अधिकारी द्वारा कमल के पक्ष में किए जाने वाले चुनाव प्रचार के साबित होने से चुनाव आयोग की परेशानियां बढ़ जाएं तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

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