शनिवार, 7 सितंबर 2013

नए पुलिस अधीक्षक से अपेक्षाएं

नए पुलिस अधीक्षक से अपेक्षाएं

(शरद खरे)

सिवनी जिला शांति का टापू माना जाता रहा है। आज के समय में सिवनी शहर में आपराधिक गतिविधियां चरम पर हैं। जुंआ, सट्टा, वेश्यावृति, मारपीट, राहजनी, डकैती, फिरौती, हत्या, लूट आदि जैसी वारदातों का सिवनी में तेजी से इजाफा हुआ है। यह सब कुछ पिछले डेढ़ दो दशकों में तेजी से बढ़ा है।
इस बार तो हद ही हो गई 11 दिनों के अंतराल में ही दो निर्मम हत्याएं। जिला मुख्यालय दहल गया है। 26 जून को जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय के समीप सेना के एक जवान की चाकुओं से गोदकर हत्या कर दी गई, वह भी दिन दहाड़े। यह घटना जिले में आपराधिक तत्वों के पैर जमाने और पुलिस की ढ़ीली पकड़ को साबित करने के लिए पर्याप्त मानी जा सकती है।
बीते माह शुक्रवार और शनिवार की मध्य रात्रि में ललमटिया क्षेत्र में भारतीय जनता युवा मोर्चा के नगर मंत्री प्रशांत अग्रवाल उर्फ मुन्ना खैरी का शव जिस हालत में मिला वह वास्तव में दर्दनाक, भयावह, डरा देने वाला माना जा सकता है। इससे साबित हो जाता है कि शहर में पुलिस कितनी मुस्तैदी से गश्त कर रही है।
एक समय था जब सिवनी में घटे अपराध इतिहास बन जाते थे। प्रौढ़ हो रही पीढ़ी आज भी सत्तर के दशक के उत्तरार्ध में हुए धूमा डकैती कांड़ जिसमे अमर सिंह और सज्जाद को फांसी की सजा हुई थी को याद करता है। इसके शहर में पुराने एलआईबी कार्यालय के पास, अमर टाकीज के समीप हुए कत्ल भी सालों साल लोगों की जुबान पर रहे।
सिवनी जिला ऐसा कतई नहीं था जैसा वर्तमान परिवेश में है। सिवनी में लोग हाथ में लट्ठ लेकर भी नहीं चलते दिखे, पर अब तो सरेराह जनसेवक होने का दावा करने वाले कमर में रिवाल्वर टांगकर घूम रहे हैं। यह कौन सी संस्कृति का आगाज हो रहा है, इनका साथ देने वाले भी सिवनी को बिहार बनाने पर आमदा प्रतीत हो रहे हैं।
सिवनी में बंदूक संस्कृति का आगाज शुभ लक्षण कतई नहीं माना जा सकता है। बीते सालों में सिवनी में गोलीबारी की घटनाओं में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है, जो निंदनीय है। कालेज गोली काण्ड, के उपरांत नगर पालिका के सामने ही बरात की घोड़ी पर सवार दूल्हे को ही गोली मार दी जाती है, वह भी शहर कोतवाली से चंद कदम दूरी पर!
क्या कहा जाएगा इसे! निश्चित तौर पर इसके लिए दिशाहीन और स्वार्थपरक राजनीति ही पूरी तरह से जिम्मेदार है। राजनेताओं संरक्षण में असमाजिक तत्व पूरी तरह फल फूल रहे हैं, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। मीडिया जैसे परोपकार और जनसेवा के क्षेत्र में भी आपराधिक तत्वों की आमद एक दुखद संकेत से कम नहीं है।
एक वक्त था, जब गांव में ‘‘जागते रहो‘‘ की आवाज लगाता चौकीदार लालटेन और हाथ में लकड़ी लिए आवाज करता घूमता था। उसकी आवाज में ही इतना दम होता था कि सब चैन से सोया करते थे। आज लोगों का अमन चैन गायब है। शहर की रखवाली के लिए कुछ नेपाली लोग रात भर जागा करते थे। अब उनके दीदार भी मुश्किल ही हैं।
पुलिस के वाहनों से चौकसी की जाती थी। अब तो पुलिस भी साधन संपन्न हो चुकी है। पुलिस के पास कल तक चीता कललाने वाले आज के ब्रेकर मोबाईल हैं। हर क्षेत्र में ये मुस्तैद हैं। बावजूद इसके शहर में अमन चैन कायम नहीं है। लोगों को सुरक्षा देने की जवाबदेही निश्चित तौर पर पुलिस की है।
पुलिस पर नजर रखने का काम कहीं ना कहीं सांसद और विधायकों का है। विडम्बना यह है कि जब सांसद विधायक ही अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ने लगें तो आखिर जनता कहां जाएगी? सांसद विधायक ही जनता की सेवा के बजाए निहित स्वार्थों को प्राथमिकता देने लगे तो इस तरह की अराजकता का वातावरण निर्मित होना लाजिमी ही है।
महज ग्यारह दिनों में देश के लिए अपनी जान लगा देने वाले सेना के एक जवान को सरेराह ढलती शाम को चाकुओं से गोद दिया जाता है। उसके उपरांत प्रदेश में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के अनुषांगिक संगठन के नगर मंत्री को गोलियों से भून दिया जाता है, पर विपक्ष में बैठी कांग्रेस अपना मुंह सिले बैठी है। अगर यही बात दिल्ली या भोपाल में हुई होती तो प्रवक्ताओं का कभी ना थमने वाला विज्ञप्तियों का सिलसिला कबका आरंभ हो चुका होता।
सिवनी में चोरियों की बाढ़ सी आई हुई है। जिले में गौवंश की तस्करी जमकर चल रही है। पुलिस व्यवस्थाएं मुस्तैद होने के दावे किए जाते रहे हैं। विडम्बना है कि पुलिस की व्यवस्थाएं लचर स्तर तक पहुंच चुकी हैं। खवासा में जाम से कराहती रहती है जनता। सभी जानते हैं कि खवासा की जांच चौकियों में जिस तरह से अवैध वसूली होती है वही जाम का प्रमुख कारक है।
कम ही समय में मिथलेश शुक्ला की बिदाई सिवनी से हो गई है। नवागत पुलिस अधीक्षक बी.पी.चंद्रवंशी ने कमान संभाल ली है। वे काफी अनुभवी पुलिस अधिकारी हैं। राजगढ़ और विदिशा दो जिलों की कमान वे संभाल चुके हैं। सिवनी में अनुभवी पुलिस अधिीक्षक की तैनाती सालों बाद हुई है। इसके पहले तो सिवनी को प्रशिक्षण का अड्डा बना दिया गया था। सिवनी को संवेदनशील की श्रेणी में भी रखा जाता रहा है और अधिकारियों को पहले जिले के बतौर यहां पदस्थ कर दिया जाता है।
नवागत पुलिस अधीक्षक बी.पी.चंद्रवंशी से जनापेक्षा है कि सिवनी में लचर पुलिस तंत्र को कसकर ठीक किया जाए यह उनकी पहली प्राथमिकता हो। साथ ही साथ जिले में चोरी पर अंकुश लगना बेहद आवश्यक है। रही बात कानून व्यवस्था की तो सिवनी में अपराध का ग्राफ जिस तेजी से बढ़ा है उस पर अंकुश इसलिए भी लगाना आवश्यक है क्योंकि जल्द ही चुनाव होने वाले हैं, इन परिस्थितियों में जरायमपेशा लोगों का उपयोग सियासी दल करेंगे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। यह पुलिस के लिए एक सरदर्द से कम साबित नहीं होने वाला है।

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