बुधवार, 11 सितंबर 2013

डेंगू: जरूरी है सावधानी

डेंगू: जरूरी है सावधानी

(शरद खरे)

सिवनी जिले में डेंगू की दस्तक वाकई दुखदायी है। डेंगू का कहर सिवनी के निवासियों ने मीडिया के माध्यम से ही देखा और सुना होगा। डेंगू का डंक वाकई बेहद खतरनाक होता है। मलेरिया से तो जिलावासी रूबरू हो चुके हैं पर अब डेंगू का डंक उनकी परेशानी का सबब बन चुका है। स्वास्थ्य प्रशासन भले ही इस मामले में शुतुरमुर्ग के मानिंद रेत में सर गड़ाकर अपने आप को पाक साफ बताने का प्रयास कर रहा हो पर जमीनी हकीकत है हाल ही में हुई डेंगू से एक मौत!
सिवनी में मलेरिया और डेंगू के मरीज मिलने से हड़कंप मचा हुआ है। ये दोनों ही मच्छर जनित रोग हैं। इसके साथ ही साथ मच्छर जनित चिकन गुनिया भी बेहद ही पीड़ा दायक रोग है। न ही नगर पालिका को, न ही स्थानीय निकाय की अन्य शाखाओं को और न ही स्वास्थ्य विभाग ने इसकी रोकथाम के लिए कोई उपाय किए हैं। यही कारण है कि जिले में स्थिति भयावह हो चुकी है। जिला मुख्यालय सिवनी में जहां देखो वहां पानी के डबरे, पोखर भरे पड़े हैं। लोगों के घरों में भी पानी रूका हुआ है। कहा जाता है कि ठहरा हुआ पानी जानलेवा मलेरिया के लिए जिम्मेदार मच्छरों के लिए उपजाऊ माहौल तैयार करता है। जिला चिकित्सालय में पानी के डबरे निश्चित तौर पर इनके लिए संजीवनी का काम ही कर रहे हैं।
कम ही लोग जानते होंगे कि भारत की आजादी वाले साल यानी 1947 में मलेरिया जैसी घातक जानलेवा बीमारी ने देश में दस लाख से ज्यादा लोगों की इहलीला समाप्त कर दी थी। दरअसल मादा एनाफिलीस़़ मच्छर जब इंसान को काटती है, तब वह एक विशेष तरह का वायरस मनुष्य के अंदर प्रविष्ट करा देती है। यही वायरस मलेरिया को जन्म देता है। इस मादा मच्छर के पास इंसानी त्वचा को भेदने के लिए एक विशेष तरह का हथियार होता है। शोध बताता है कि इसके पास पतले डंक के अंत में सुईनुमा जुड़वा अस्त्र होता है।
यह मादा, इंसान के शरीर में इसे प्रविष्ट कराकर रक्त वाहनियों की तलाश करती है। नहीं मिलने पर यह क्रम जारी रखती है। नस मिलने पर यह मादा इंसान का कुछ रक्त चूस लेती है, और फिर डंक को बाहर निकालने के पहले इसमें एक विशेष तरह का एंजाईम उसमें छोड़ देती है। शोधकर्ताओं की मानें तो यह मादा मच्छर दो दिन में ही 30 से 150 तक अंडे देती है। इन अंडों को सेने के लिए उसे मानव रक्त की आवश्यक्ता होती है।
मलेरिया का स्वरूप विश्व भर में इतना विकराल हो गया है कि इसे दुनिया की तीसरे नंबर की सबसे बड़ी महामारी का दर्जा मिल गया है। कहा जाता है कि एड्स से 15 सालों में जितनी जानें जाती हैं, उतनी जान मलेरिया रोग के कारण महज एक साल में ही चली जाती हैं। मलेरिया का सबसे अधिक प्रकोप पांच साल से कम के बच्चों पर होता है। औसतन हर साल दुनिया भर में 25 लाख से अधिक लोग इस भयानक बीमारी से अपने प्राण गंवा देते हैं।
विश्व हेल्थ आर्गनाईजेशन (डब्लूएचओ) का प्रतिवेदन साफ तौर पर बताता है कि मलेरिया के मरीजों की वृद्धि की दर हर साल 16 फीसदी आंकी गई है। यह तथ्य निश्चित रूप से चिंता का विषय कहा जा सकता है। मलेरिया कितनी गंभीर बीमारी है यह इस बात से ही साफ हो जाता है कि हर साल विश्व भर में 2 अरब डालर से ज्यादा इस पर खर्च कर दिया जाता है। इतना ही नहीं मलेरिया को लेकर होने वाले शोधों पर हर साल 580 लाख डालर खर्च किया जाता है।
सिवनी में डेंगू के मरीजों की पुष्टि स्वास्थ्य विभाग द्वारा आधिकारिक तौर पर की जा चुकी है। डेंगू से एक के बाद एक काल कलवित होने की खबरें भी आने लगी हैं। स्वास्थ्य विभाग, ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत, नगर पंचायत और नगर पालिकाएं अब तक इस मामले को लेकर संजीदा होती नहीं दिख रही है। बारिश अब थम चुकी है इसलिए जगह जगह जमा पानी में मच्छरों के अण्डे पनपेंगे। गिरते पानी में तो इनके बहने की संभावनाएं होती हैं पर अब रूके पानी में तो ये आसानी से अपनी वंशवृद्धि का काम कर सकते हैं।
जिला कलेक्टर के कड़े निर्देशके उपरांत दिखाने को तो स्वास्थ्य विभाग और नगर पालिका प्रशासन ने डेंगू के लार्वा की खोज कर दवा डालने का काम किया, साथ ही साथ प्रभावशाली लोगों के घरों के आसपास फागिंग मशीन का धुआं भी उड़ाया। अगर यह काम ईमानदारी से हो रहा है तो फिर क्या कारण है कि आज भी डेंगू के मरीज और लार्वा मिलने का सिलसिला जारी है। अगर लार्वा और मरीज मिल रहे हैं तो इससे साफ हो जाता है कि काम ईमानदारी से नहीं किया जा रहा है।

सरकारी नुमाईंदों की हिम्मत तो देखिए, भाजपा के दो दो विधायकों के पति सिवनी में जिला चिकित्सालय में पदस्थ हैं। एक विभाग के प्रमुख हैं तो दूसरे के पास मलेरिया विभाग का प्रभार है। बावजूद इसके मच्छर डंक पर डंक मारे जा रहे हैं। इसे क्या समझा जाए? क्या विधायक ही भाजपा के प्रति लोगों को उकसाने का जतन कर रही हैं? अगर नहीं तो कलेक्टर के निर्देशों को कचरे की टोकरी में कैसे डाला जा रहा है, और अगर नहीं डाला जा रहा है तो फिर क्या वजह है कि तीन माह बीतने के उपरांत भी डेंगू का लार्वा और मरीज लगातार मिलते ही जा रहे हैं . . .।

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