सोमवार, 5 अगस्त 2013

भूले से भी नहीं लगता मतलब बीएसएनएल

भूले से भी नहीं लगता मतलब बीएसएनएल

(शरद खरे)

सिवनी जिले में भारत संचार निगम लिमिटेड की सेवाएं बद् से बद्तर हो चुकी हैं। सरकारी तंत्र किस कदर जर्जर या कोलेप्स हो चुका है इसका नायाब नमूना है सिवनी जिले में बीएसएनएल की सेवाएं। लेण्ड लाईन में जब चाहे तब डायलटोन गायब रहती है कभी खरखराहट होती है तो मोबाईल माशाअल्लाह, क्या कहने। लगाएंगे राम को बात हो जाएगी रहीम से। डीएनडी करवाईए पर आपको कंपनियों के काल आते ही रहेंगे।
जिले में बीएसएनएल के अधिकारी जब चाहे तब कर्मचारियों का रोना ही रोते रहते हैं। अगर कर्मचारी नहीं हैं तो बीएसएनएल के अधिकारी इसे बंद कराने की सिफारिश सरकार से क्यों नहीं कर देते, कम से कम लोग बीएसएनएल के जरिए लुटने से तो बच जाएंगे। एक ओर तो बीएसएनएल बड़े बड़े आकर्षक विज्ञापनों के जरिए लोगों को नई नई योजनाएं बताकर लुभाता है, वहीं दूसरी ओर उपभोक्ताओं को सिवनी जिले में बीएसएनएल की सेवाएं ना मिल पाना आश्चर्य का ही विषय माना जाएगा।
एक समय था जब बीएसएनएल का एक छत्र राज हुआ करता था देश में। उस समय जिसके घर टेलीफोन के दो तार जाते दिख जाते थे, वह गांव का पटेल कहलाने लगता था। जिसके घर फोन हुआ करते थे वे रसूखदार समझे जाते थे, क्योंकि टेलीफोन का कनेक्शन लेना हर किसी के बस की बात नहीं हुआ करती थी। फोन का नंबर लगाईए और भूल जाईए कम से कम दस साल के लिए। जब आपकी बारी आएगी तब तक आपके सारे अरमान ठंडे हो चुके होंगे।
संचार का काम चूंकि सीधे सीधे केंद्र सरकार के अधीन ही आता है, अतः उस समय में संसद सदस्यों को हर साल बीस लोगों को नए फोन कनेक्शन देने के अधिकार होते थे अपने संसदीय क्षेत्र में। सांसदों द्वारा इस काम को बिना किसी लोभ लालच के किया जाता था। लोग अपने आप को धन्य समझा करते थे कि उन्हें उनके क्षेत्र के सांसद ने एक अदद् फोन की सिफारिश कर दी है, अब उनके घर पर फोन की घंटी घनघनाएगी।
प्रौढ़ हो रही पीढ़ी इस बात को नहीं भूली होगी कि पहले सिवनी में दूरभाष केंद्र वर्तमान पोस्ट ऑफिस के उत्तरी भाग के हिस्से में हुआ करता था। यहां से ही लोग आकर अपने संबंधियों, परिचितों आदि से ट्रंक काल लगाकर बात किया करते थे। लाईटनिंग यानी तत्काल और आर्डनरी यानी सामान्य काल की दरें भी अलग अलग ही हुआ करती थीं। 1993 में जब कुंवर अर्जुन सिंह केंद्र में संचार मंत्री थे तब सिवनी को एसटीडी की सुविधा मिली थी।
कांग्रेस के कद्दावर क्षत्रप रहे स्व.ठाकुर हरवंश सिंह के खाते में सिवनी की इकलौती उपलब्धि एसटीडी ही दिलवाना है, याद नहीं पड़ता कि स्व.हरवंश सिंह द्वारा इसके अलावा सिवनी को कुछ अच्छी सौगातदी हो। उनकी बाकी सौगातें जैसे भीमगढ़ जलावर्धन योजना आज भी सिवनी के लोगों के लिए सरदर्द से कम नहीं है। एक ही स्थान पर सैकड़ों पत्थर रखकर भूमिपूजन या शिलान्यास का अनोखा तरीका भी स्व. हरवंश सिंह की ही देन है, जिससे नेता और जनता के बीच का फासला तेजी से बढ़ गया है।
बहरहाल, कालांतर में सिवनी में आए सीडाट एक्सचेंज ने यहां विकास के नए प्रतिमान स्थापित किए हैं। एक के बाद एक करके अधिकारी बदलते गए और बीएसएनएल की सेवाएं गर्त में ही जाती गईं। आज अगर आपका टेलीफोन का इंस्ट्रूमेंट खराब हो जाए तो आपको बाज़ार से इसे खरीदना पड़ेगा। इस तरह की व्यवस्था बीएसएनएल के अधिकारियों द्वारा बताई जाती हैं। उनका कहना है कि विभाग में इंस्ट्रूमेंट की सप्लाई बंद हो गई है। पर अगर सांसद, विधायक, कलेक्टर के घर का फोन खराब हो जाए तब क्या वे इनसे यही बात कह पाएंगे कि बाज़ार से खरीद लीजिए!
ज़ाहिर है, नहीं कह पाएंगे। इसका तात्पर्य यह है कि सिवनी में टेलीफोन इंस्ट्रूमेंट हैं। हो सकता है कि ये सीमित मात्रा में हों पर हैं तो सही। अगर आप नया कनेक्शन लें तो सिवनी में ही आपको नया डब्बा मिल जाएगा। आप उसे एक माह चलाएं फिर कटवा दें, फिर नया कनेक्शन ले लें, तब आपको दूसरा नया डिब्बा मिल जाएगा। यह बात समझ से परे है कि आखिर यहां पदस्थ अधिकारी किस नीति की बात करते हैं। विभाग का लाईन स्टाफ अपने काम को छोड़कर अन्य कामों में लगा हुआ है।
सबसे ज्यादा समस्या इंटरनेट की है। सिवनी शहर में एसपी बंग्ले के पास वाले मोबाईल के टॉवर की समस्या को हल कराने में एक उपभोक्ता को सिवनी से चीफ जनरल मैनेजर भोपाल तक के कार्यालय को हिलाना पड़ा। हर कदम पर उसे नई इबारत पढ़ने और सीखने को मिली। मामला चूंकि तकनीकि है इसलिए उपभोक्ता भी निरीह निरूत्तर ही रहते हैं। लोगों को मोबाईल के सिग्नल नहीं मिल रहे हैं, विभाग के अधिकारी आराम फरमा रहे हैं।

इंटरनेट विशेषकर ब्रॉड बैंड जब चाहे तब बैठ जाता है। विभाग से पूछने पर एक रटा रटाया जवाब सामने आता है कि जबलपुर वाले एंड पर प्रॉब्लम है। उपभोक्ता को इस बात से लेना देना नहीं है कि प्रॉब्लम किस एंड पर है। उपभोक्ता तो पैसा अदा कर रहा है उसे सेवाएं चाहिए, वह भी बिना रूके बिना समस्या के। यह विभाग की प्रॉब्लम है कि किस एंड पर है। रही बात हमारे सांसद के.डी.देशमुख और बसोरी सिंह मसराम की, तो इन दोनों को सिवनी से लेना देना ही नहीं है, एक मण्डला में मस्त हैं तो दूसरे बालाघाट में व्यस्त हैं। सिवनी की जनता समस्याओं से दो चार हो रही है तो होती रहे, इनकी बला से . . .।

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