सोमवार, 26 अगस्त 2013

राख से पूरी तरह पट जाएगा घंसौर

आदिवासियों को छलने में लगे गौतम थापर . . . 6

राख से पूरी तरह पट जाएगा घंसौर

(ब्यूरो कार्यालय)

घंसौर (साई)। मध्य प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर से महज सौ किलोमीटर दूर सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य घंसौर तहसील में देश के उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान झाबुआ पावर द्वारा प्रस्तावित बारह सौ साठ मेगावाट कोल आधारित पावर प्लांट की संस्थापना के पहले कंपनी को पर्यावरण की दृष्टि से वृक्षारोपण प्रस्तावित है। कंपनी इस मामले में पूरी तरह मौन है कि वह पर्यावरण को देखते हुए कितने, किस प्रजाति के, कहां पर पौधे लगाएगी।
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के भरोसेमंद सूत्रों ने कहा कि प्रस्तावित संयंत्र द्वारा प्रतिदिन 853 टन राख उत्सर्जित की जाएगी, जिसे बायलर के पास से ही एकत्र किया जा सकेगा। समस्या लगभग 1000 फिट उंची चिमनी से उड़ने वाली राख (फ्लाई एश) की है। इससे रोजाना 3416 टन राख उड़कर आसपास के इलाकों में फैल जाएगी। 1000 फिट की उंचाई से उड़ने वाली राख कितने डाईमीटर में फैलेगी इस बात का अन्दाजा लगाने मात्र से सिहरन हो उठती है। सूत्रों का कहना है कि कंपनी ने अपने प्रतिवेदन में हवा का रूख जिस ओर दर्शाया है, संयंत्र के उस ओर बरगी बांध है।
जानकारों का कहना है कि 3416 टन राख प्रतिदिन उड़ेगी जो साल भर में 12 लाख 46 हजार 840 टन हो जाएगी। अब इतनी मात्रा में अगर राख बरगी बांध के जल भराव क्षेत्र में जाएगी तो चन्द सालों में ही बरगी बांध का जल भराव क्षेत्र मुटठी भर ही बचेगा। यह उड़ने वाली राख आसपास के खेत और जलाशयों पर क्या कहर बरपाएगी इसका अन्दाजा लगाना बहुत ही दुष्कर है। इस बारे में पावर प्लांट की निर्माता कंपनी ने मौन साध रखा है।
इतना ही नहीं प्रतिदिन बायलर के पास एकत्र होने वाली 853 टन राख जो प्रतिमाह में बढकर 26 हजार 443 और साल भर में 3 लाख 11 हजार टन हो जाएगी उसे कंपनी कहां रखेगी, या उसका परिवहन करेगी तो किस साधन से, इस बारे में भी झाबुआ पावर लिमिटेड ने चुप्पी ही साध रखी है। अगर राख को संयंत्र के आसपास ही डम्प कर रखा जाएगा तो वहां के खेतों की उर्वरक क्षमता प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगी और अगर परिवहन किया जाता है तो घंसौर क्षेत्र की सड़कों के धुर्रे उड़ना स्वाभाविक ही है।

इन परिस्थितियों में पर्यावरण के नुकसान को आंकने का काम मध्य प्रदेश के प्रदूषण नियंत्रण मण्डल का था। बताया जाता है कि बिना प्रस्तावित वृक्षारोपण के ही, कागजों पर वृक्ष लगाकर कंपनी ने पाल्यूशन कंट्रोल बोर्ड को साधकर उससे अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त कर लिया है।

1 टिप्पणी:

Arun sathi ने कहा…

सच तो यही है कि यहां पुजीपतियों के आगे किसी की नहीं चलती...