गुरुवार, 11 जुलाई 2013

अपराध की अंधी सुरंग में सिवनी का युवा!

अपराध की अंधी सुरंग में सिवनी का युवा!

(लिमटी खरे)

सिवनी जिला एक समय में शांति का टापू माना जाता था। कहा जाता है कि एक समय था जब सरकारी नुमाईंदे जिनकी सिवनी पदस्थापना होती थी वह सिवनी में महज छः माह ही बिताने के उपरांत यह सोच लेता था कि सिवनी में ही बसा जाए, क्योंकि सिवनी में आपसी सौहाद्र, भाईचारा और शांति उसके लंबे जीवन के लिए वाकई सुकून दे सकती है।
कालांतर में नब्बे के दशक के आगाज के साथ ही सिवनी में अपराधिक तत्वों ने दस्तक दी। सिवनी में अपराध का ग्राफ शनैः शनैः तेज गति से बढ़ता ही चला गया। दरअसल राजनैतिक संरक्षण के चलते आपराधिक तत्वों के हौसले बुलंदी पर आए और लोगों का जीना मुहाल हो गया।
इक्कीसवीं सदी के आगाज के साथ ही सिवनी में जुंआ, सट्टा, विशेषकर क्रिकेट का सट्टा सर चढ़कर बोलने लगा। जंगलों में जुंए की फड़ जमने लगी, गौकशी के लिए गौवंश का निर्यात जोरों पर हुआ, क्रिकेट में भी सट्टे ने लोगों के घरों को बर्बाद कर दिया, शराब का प्रचलन जमकर हो गया। कुल मिलाकर सिवनी जिले में अमन चैन पूरी तरह समाप्त ही प्रतीत होने लगा।
सिवनी में एक के बाद एक हाईटेक क्रिकेट सट्टा पकड़ाए गए, पुलिस ने इनकी मश्कें कसीं, फिर भी वर्तमान में क्रिकेट का सट्टा चरम पर ही कहा जा रहा है। कम समय में ज्यादा पैसा कमाने की चाह में सिवनी के युवा क्रिकेट के सट्टे के मकड़जाल में उलझकर रह गए हैं।
यही आलम जुंए का है। जंगलों में जुंए की फड़ें जम रही हैं। वहां खेलने वालों को सारी सुविधाएं भी दिए जाने की खबरें हैं। कहते हैं जुंए में जो जीता वह जुंआ खिलाने वाले को नाल देता है और हारने वाले के लिए स्पाट फाईनेंस की सुविधा है सो अलग। कहा जाता है कि महाजनी ब्याज दर से कई गुना ज्यादा ब्याज दर पर स्पाट फाईनेंस की सुविधा भी है।
बीते दिवस भाजयुमो के एक कार्यकर्ता को गोलियों से भून दिया गया, जिससे शहर दहल गया। पुलिस ने इस केस को सुलझाने का दावा किया है। इसमें तीन आरोपी अभी फरार हैं। अपनी पीठ ठोंकने वाली पुलिस द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि आरोपी बबलू सरदार को कार में बिठाकर फलां घर ले गया जहां से वह मोटर सायकल से घटना स्थल पहुंचा।
क्या यह सिवनी पुलिस की कार्यप्रणाली है जो खुद को ही आईना दिखाने के लिए पर्याप्त कही जा सकती है। इसके पहले मिशन स्कूल में हुई घटना में बबलू सरदार फरार बताया जा रहा है। पुलिस का खुफिया तंत्र कैसा है कि फरार आरोपी खुद ही अपने घर जाता है और फिर मोटर सायकल पर बैठकर एक जघन्य हत्या जैसे अपराध में शामिल होकर अंजाम देता है?
कहा जा रहा है कि उक्त आरोपी फरारी के दौरान तीन दिन तक जिला चिकित्सालय में उपचार हेतु भर्ती रहा! कहा तो यहां तक भी जा रहा है कि अगर पुलिस के कुछ मुलाजिमों के मोबाईल फोन के इन दिनों के काल रिकार्ड निकाल लिए जाएं तो अफसर दांतों तले उंगली दबा लेंगे। इन बातों में कितनी सच्चाई है यह नहीं कहा जा सकता है, और यह देखना पुलिस के आला अधिकारियों की जांच का विषय है।
गत दिवस पुलिस ने जिन आठ लोगों को इस हत्याकाण्ड में पकड़ा है, उनमें से सभी की आयु लगभग 20 से 25 साल के बीच है, जो चिंता का विषय है। हमें यह सोचना आवश्यक है कि आखिर हम सिवनी के युवाओं को किस रास्ते पर धकेल रहे हैं। जिस उमर में युवाओं के सर पर पढ़ाई का भूत सवार होना चाहिए उस आयु में युवा आखिर कैसे माउजर और हथियार लेकर घूम रहे हैं?
आखिर क्या वजह है कि इन युवाओं के पालकों को भी इनके भविष्य की चिंता नहीं सता रही है? एक दशक पहले जब ये बच्चे रहे होंगे तब इनके पालकों ने निश्चित तौर पर यही सोचा होगा कि आगे चलकर ये शहर के जिम्मेदार नागरिक बनेंगे! पर आज का परिदृश्य कुछ और ही नजर आ रहा है।
शहर के जिम्मेदार नागरिक बनने के बजाए इनमें से अधिकांश कम समय में ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने की चाहत मन में पालते दिख रहे हैं। इनमें से अधिकांश राजनैतिक तौर पर किसी ना किसी को माईबाप बनाए हुए हैं। इसका तातपर्य यह हुआ कि राजनैतिक तौर पर सक्रिय साहेबान भी सिवनी को बिहार बनाने पर ही अमादा हैं। कोई जनसेवक बनने की चाह मन में रख रहा है और कमर में रिवाल्वर टांगे घूम रहा है तो कोई अवैध कट्टों को खिलौने की तरह उपयोग करने वालों के सर पर अपना हाथ रखे हुए है!
मोबाईल और इंटरनेट के युग के सकारात्मक परिणाम तो हैं पर युवा पीढ़ी इनके नकारात्मक परिणामों की ओर बढ़ती दिख रही है। माता पिता की चोरी से युवा वर्ग अपने न जानने वाले किसी साथी से भी घंटो बतियाते रहते हैं। अंत में यह रिश्ता अवैध शारीरिक संबंधों में तब्दील हो जाता है। फिर आरंभ होता है युवती को ब्लेकमेल करने का सिलसिला, अपनी इज्जत को बचाने के चक्कर में किशोरियां तबाह हो जाती हैं। ऐसे एक नहीं, अनेकों वाक्ये शहर की फिजां में तैर रहे हैं।
आज हमें ही सोचना होगा, सिवनी के हर प्रौढ़ और उमर दराज व्यक्ति को सोचना ही होगा कि आखिर क्या वजह है कि युवा पीढ़ी पढ़ाई लिखाई से दूर भागकर हाथ में हथियार उठाने को फैशन मानने लगी है। आज समाज को इस दिशा में सोचना अत्यावश्यक है, वरना सिवनी के युवा जिस अंधेरी सुरंग में तेजी से दौड़ लगा रहे हैं, उसका दूसरा मुहाना बंद है। इस तरह की दौड़ की परिणिति बीच बीच में इस तरह के हत्याकांड के रूप में सामने आए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
यह वाकई बेहद संवेदनशील मामला है। इसके लिए समाज को ही आगे आना होगा। सामाजिक तौर पर ही नैतिक पतन के क्षरण को रोकने की बात होना चाहिए। सांसद विधायक सहित सभी जनसेवक और जनसेवक बनने का सपना देखने वालों को भी यह सोचना आवश्यक है कि इस तरह के कारनामो को सियासी प्रश्रय न दिया जाए। आखिर उनके बच्चे भी कल जवां होंगे और वे भी इसी परिवेश में ही पलेंगे तब उनका क्या हाल होगा यह बात भी उन्हें ध्यान में रखना अहम ही है।

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