शुक्रवार, 19 जुलाई 2013

पीटो ताली, हो गए 9 लाख 40 हजार जमा!

पीटो ताली, हो गए 9 लाख 40 हजार जमा!

(लिमटी खरे)

जनपद पंचायत सिवनी में हुए गबन के नौ लाख चालीस हजार रूपए जमा करा दिए गए हैं। आधी आधी राशि मुख्य कार्यपालन अधिकारी कंचन डोंगरे और लेखापाल बाल मुकुंद श्रीवास्तव द्वारा जमा करवा दी गई है। जब इसकी जांच पूरी होगी तब इसका खुलासा हो सकेगा कि गबन किसने किया था और राशि किसे जमा करना है। अगर आरोपी कोई और होगा तब संभवतः इन दोनों को राहत मिलेगी और इनकी जमा राशि भी वापस हो सकेगी।
सब ओर शांति है, सभी प्रसन्न हैं कि सरकारी धन में अमानत में खयानत की राशि वापस सरकार के खाते में आ गई है। कोई इस बात को ना देख और ना ही सोच रहा है कि आखिर दो सरकारी कर्मचारियों के पास आखिर एक नंबर में सफेद धन के बतौर चार लाख सत्तर हजार रूपए की राशि आई कहां से? क्या इनकी नौकरी में इन्होंने अपने आयकर रिर्टन्स में इतनी राशि का बचाया जाना दर्शाया है?
आज पैसा तो सबके पास है पर वह काला धन है। सरकार को आयकर जमा करने के बाद कितने लोग ऐसे हैं जो एक नंबर में लाखों रूपयों की राशि दर्शा सकते हैं? क्या एक सरकारी कर्मचारी के पास एक नंबर में दर्शाने के लिए लाखों रूपए हैं? जाहिर है इसका जवाब नकारात्मक ही होगा।
जेल के भय से दोनों ही सरकारी नुमाईंदों ने कथित गबन की नौ लाख चालीस हजार रूपए की राशि जमा करा दी है। राशि जमा हो चुकी है। अब इस बात की जांच भी आवश्यक है कि इतनी मात्रा में राशि आई कहां से? क्या इन्होंने अपनी जमा पूंजी से यह राशि जमा की है, या फिर किसी से उधार लेकर? और अगर राशि को उधार लिया गया है तो फिर क्या धनादेश (चेक) के माध्यम से लिया गया है? जिसने यह राशि दी है उसकी एक नंबर की आवक क्या है? उसकी जमा पूंजी कितनी है?
मामला अगर निजी तौर पर होता तो इसकी जांच की ज्यादा आवश्यकता शायद नहीं पड़ती, पर यह मामला दो सरकारी नुमाईंदों से जुड़ा हुआ हैै। माननीय न्यायालय के आदेश और जेल के भय से आनन फानन दोनों ही के द्वारा बड़ी मात्रा में राशि को सरकारी खजाने में जमा करवा दिया गया है। अगर इन्होंने किसी से राशि उधार लिया जाना दर्शाया है तो निश्चित तौर पर यह राशि चेक द्वारा ही ली गई होगी।
सरकारी नुमाईंदों के पास अकूत दौलत पाई जाने लगी है। प्रदेश में एक के बाद एक लोकायुक्त, आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा (ईओडब्लू) आदि के छापों में सरकारी कर्मचारियों की तिजोरियां जमकर धन उगल रही हैं, इस लिहाज से इन सरकारी कर्मचारियों के पास लाखों रूपए होना कोई बड़ी बात नहीं है, पर विचारणीय प्रश्न यही है कि आखिर इनके पास लाखों रूपयों की राशि एक नंबर में आई तो आई कैसे?
2011 में एक चेक के गायब होने की सूचना बैंक को आखिर क्यों नहीं दी गई, यह वाकई शोध का ही विषय है। उस वक्त जनपद पंचायत सिवनी में सीईओ के पद पर सविता कांबले पदस्थ थीं। इसके बाद कंचन डोंगरे यहां तैनात हुंईं। आखिर सविता काम्बले के समय गायब हुए चेक पर सविता डोंगरे के हस्ताक्षर कैसे?
इस मामले में विपक्ष में बैठी कांग्रेस ने अपने चिरपरिचित अंदाज में मौन साधा हुआ है। भ्रष्टाचार का यह अनूठा मामला प्रदेश सरकार को घेरने के लिए पर्याप्त माना जा सकता है, पर पता नहीं कांग्रेस इस तरह के स्वर्णिम मौकों को भुनाने में परहेज क्यों करती है। लगता है हरवंश सिंह ठाकुर के अवसान के उपरांत कांग्रेस पूरी तरह दिग्भ्रमित होकर रह गई है।
जादूगर पी.सी.सरकार भी इस तरह का जादू शायद ना दिखा पाएं जिस तरह का जादू जनपद पंचायत सिवनी में दिखाया गया है। दोनों ही आरोपी गबन की नौ लाख चालीस हजार रूपए एवं निजी मुचलका जमा कर जेल से छूट गए हैं। अब यह भी देखना होगा कि ये दोनों मिलकर जांच को प्रभावित ना कर पाएं। वैसे आज के समय चारों ओर भ्रष्टाचार की गंगा बह रही है। कमोबेश हर सरकारी कर्मचारी अधिकारी इसमें आकण्ठ डूबा हुआ है। इन परिस्थितियों में बहुत पुरानी कहावत चरितार्थ हो रही कि जो पकड़ा गया वो चोर बाकी सब साहूकार!

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