सोमवार, 19 नवंबर 2012

उबाऊ चेहरों से घिरे राहुल


उबाऊ चेहरों से घिरे राहुल

(शरद खरे)

नई दिल्ली (साई)। मीडिया में जिस तरह कांग्रेस की नजर में भविष्य के वजीरे आजम राहुल गांधी को बड़ी भूमिका के लिए महिमा मण्डित किया जा रहा है वह कहीं भी देखने को नहीं मिल पा रहा है। भले ही राहुल गांधी को कांग्रेस ने चुनाव समन्वय समिति की जवाबदेही सौंप दी हो पर कार्यकर्ताओं में उस्ताह और जोश का संचार अब भी नहीं हो पाया है। इसका कारण राहुल गांधी के इर्द गिर्द एक बार फिर से सोनिया गांधी के टेस्टेड किन्तु उबाऊ चेहरों का होना है।
कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ (बतौर सांसद श्रीमति सोनिया गांधी को आवंटित सरकारी आवास) के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि राहुल गांधी की इस नई ताजपोशी के बाद के समीकरणों से सोनिया गांधी बहुत ज्यादा उत्साहित नजर नहीं आ रही हैं। सोनिया गांधी को लगने लगा है कि राहुल गांधी की रीलांचिंग भी फुस्स हो गई है। सूत्रों ने कहा कि सोनिया गांधी को बताया गया है कि दरअसल, राहुल के लिए बड़े रोल की मांग कर रहे पार्टी नेता और कार्यकर्ता उन्हें ऐसी भूमिका में देखना चाहते हैं जहां वे नेताओं, कार्यकर्ताओं और आम लोगों से मिलने के लिए उपलब्ध हों।
उधर, राहुल गांधी के करीबी सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि वर्तमान में 12 तुगलक लेन के जिस बंगले से राहुल अपना ऑफिस चला रहे हैं, वहां पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के लिए भी राहुल से मिलना और आमने-सामने बैठ कर देर तक बात कर पाना संभव नहीं हो पाता। कई बार लॉन में बड़े नेता कुर्सियों पर बैठे रहते हैं और राहुल उनसे एक साथ या घूमते हुए बात कर लेते हैं।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने पहचान उजागर ना करने की शर्त पर कहा कि राजनति को कार्पोरेट या अपने मनमाने ढंग से चलाने की कोशिश आत्मघाती ही साबित होगी। राजनीति तौर तरीकों से ही चला करती है। राहुल गांधी जिन चंद नेताओं से घिरे हुए हैं उन सारे नेताओं की छवि आम जनता और कार्यकर्ताओं में बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती है।
सोनिया के करीबी सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑॅफ इंडिया को बताया कि राहुल गांधी की कमियों से सोनिया अच्छी तरह वाकिफ हो चुकी हैं। सोनिया चाहती हैं कि राहुल की कमियों को दूर भी कर दिया जाए और इसका किसी को भान भी ना हो। संभवतः यही कारण है कि सोनिया गांधी ने अपने सारे अजमाए हुए लोगों से ही राहुल गांधी को घेर दिया है।
टीम में राहुल के बाद पहला नाम सोनिया के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल का है, जिन्हें पार्टी में एपी के नाम से जाना जाता है। वह कांग्रेस अध्यक्ष के आंख और कान हैं। बड़े केंद्रीय मंत्रियों से लेकर मुख्यमंत्रियों तक की लाइन आधी रात को उनके घर पर लगी रहती है। रात को काम करने के लिए मशहूर एपी के खिलाफ उनके समकक्ष नेताओं ने कई बार बड़ा माहौल बनाया। मगर वह सोनिया के विश्वास पात्र बने हुए हैं। इसी तरह दिग्विजय सिंह के खिलाफ भी कांग्रेस में एक लॉबी हमेशा सक्रिय रहती है। लेकिन इससे बेफिक्र वह सोनिया और राहुल दोनों के विश्वास पात्र बने हुए हैं। जयराम रमेश भी विवादों को दावत देते हैं, मगर उनके नए विचार पार्टी को पसंद आ रहे हैं।

पत्रकारिता को बदनाम करने के बजाए खोल लें परचून की दुकान: लिमटी खरे


आज की पत्रकारिता सूर्पणखा वाली: शलभ भदौरिया

पत्रकारिता को बदनाम करने के बजाए खोल लें परचून की दुकान: लिमटी खरे

गैर पत्रकारों को ना बनाया जाए संघ का सदस्य: शिरीष

(शिवेश नामदेव)

सिवनी (साई)। ‘‘पत्रकारिता के मापदण्डों की कसौटी को देखकर उसे परखककर ही अपनी लेखनी का उपयोग करना चाहिए। आज सूर्पणखा वाली पत्रकारिता पूरी तरह हावी है। एक समय था जब श्वेत पन्नों पर काली स्याही की चार लाईन की खबर ही तहलका मचा देती थी, पर आज रंगीन पूरे पेज की खबर भी कोई असर नहीं डाल पा रही है। हमें सोचना होगा एसा क्यों हुआ? आखिर पत्रकारिता के मायने क्यों बदलते जा रहे हैं।‘‘ उक्ताशय की बात श्रमजीवि पत्रकार संघ के सम्मेलन में प्रदेशाध्यक्ष शलभ भदौरिया द्वारा कही गईं।
जिला मुख्यालय सिवनी के नेशनल लॉन में आयोजित इस सम्मेलन में श्री भदौरिया ने कहा कि पहले तीन तरह की पत्रकारिता होती थी। एक थी नारद जी वाली, जिनका सम्मान असुर भी करते थे। देवराज इंद्र जब विलासिता में डूब जाते तब नारद जी जाकर असुरों से कहते कि यही सही समय है हमला कर दो। नारद जी का चहुंओर सम्मान का कारण उनकी सत्यवादिता थी। दूसरी पत्रकारिता हनुमान जी वाली थी। जिन्हें भगवान राम ने सीता माता को खोजने भेजा था। सीता माता के हाल सुनकर भगवान राम के हाल उन्हें बताए और वे वापस आ गए। हनुमान जी चाहते तो सीता माता को लेकर आ जाते, किन्तु उन्हें जो कहा गया था वही किया। आज का समय सूर्पणखा वाला आ गया है। सूर्पणखा ने गलत जानकारी रावण को दी और अर्थ का अनर्थ ही हो गया।
उन्होंने पत्रकारों से आव्हान करते हुए कहा कि अपने निजी हितों स्वार्थों एक ओर रखकर पत्रकारिता के मापदण्डों को अपनाने की बात कही। उन्होंने बताया कि श्रमजीवि पत्रकार संघ 1952 से अस्तित्व में है एवं वे इसके 17वें अध्यक्ष हैं। श्री भदौरिया ने कहा कि संघ ने 21 मांगे सरकार के समक्ष रखीं थीं, जिनमें से 19 मांगें स्वीकार कर ली गई हैं। उन्होंने इस तरह के आयोजन तहसील और ब्लाक स्तर पर कराने की बात भी कही। श्री भदौरिया ने कहा कि नवीन सदस्यता अभियान के लिए जिला, तहसील और ब्लाक स्तर पर तीन तीन सदस्यीय छानबीन समिति बनाने के उपरांत ही वास्तविक पत्रकारों की सदस्यता कराई जाए।
इस अवसर पर प्रदेश सरकार के मंत्री नाना भाउ माहोड ने कहा कि पत्रकार और समाचार पत्रों के कारण ही सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं की जानकारी घरों घर तक पहुंच रही है। उन्होंने पत्रकारों का आव्हान करते हुए कहा कि पत्रकारिता जैसे पुनीत पेशे को अपनी और अपने परिवार की आवश्यक्ताओं के लिए बदनाम ना करें। महाकौशल विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष नरेश दिवाकर ने इस तरह के आयोजन के लिए पत्रकार संघ को बधाई दी।
इस अवसर पर मध्य प्रदेश भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष श्रीमति नीता पटेरिया ने कहा कि नेताओं को अब समाज में अच्छी नजारों से नहीं देखा जाता और पत्रकारों की भी कमोबेश यही स्थिति है। पत्रकारों को उन्होंने आचरण सुधारने की नसीहत परोक्ष तौर पर दे डाली।
इस अवसर पर पत्रकारों को संबोधित करते हुए वरिष्ठ पत्रकार लिमटी खरे ने कहा कि पत्रकारों को अपनी सीमाओं का ज्ञान होना अवश्यक है। उन्होंने श्रीमति नीता पटेरिया के कथन से इत्तेफाक जताते हुए कहा कि नीता पटेरिया जी नेताओं को संभाल लें पत्रकारों को संभालने का जिम्मा पत्रकार स्वयं ही उठा लेंगे। उन्होंने कहा कि सांसद विधायकों से विज्ञापन लेकर उसका बिल विधायक सांसद की जनसंपर्क निधि से प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर लेना निंदनीय है। इस तरह की परंपरा से पत्रकारिता जैसा पवित्र पेशा बदनाम होता है। उन्होंने कहा कि पत्रकार स्वयं किसी दल विशेष के प्रति अपना झुकाव रख सकता है किन्तु उसके अखबार या मीडिया संस्थान पर इसका असर नहीं पड़ना चाहिए वरना मीडिया की साख नष्ट होने से कोई नहीं रोक सकता है।
समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक श्री खरे ने कहा कि आज पत्रकारिता का ग्लेमर इतना ज्यादा है कि जहां देखो वहां वाहनों पर प्रेस लिखा दिख जाता है। उन्होंने श्रमजीवी पत्रकार संघ के अध्यक्ष से अनुरोध किया कि वे सरकार के समक्ष यह बात अवश्य रखें कि जिस तरह अधिमान्यता प्राप्त पत्रकारों का हर साल नवीनीकरण के समय औपचारिकताएं करवाई जाती हैं उसी तरह की औपचारिकताएं जिला स्तर पर अवश्य करवाई जाए ताकि वास्तविक और छद्म पत्रकारों की पहचान हो सके। आज पुलिस, आरटीओ, टोल टेक्स आदि से बचने के लिए लोग प्रेस शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिस पर रोक लगनी चाहिए। इस तरह से इस पवित्र पेशे को बदनाम करने वाले, अनैतिक तरीके से धन कमाने वाले छद्म पत्रकारों से लिमटी खरे ने गुजारिश की कि इस पवित्र पेशे को बदनाम करने के बजाए इससे बेहतर तो यह है कि वे परचून की दुकान खोलकर पैसा कमाएं।
इस अवसर पर ब्लाक अध्यक्ष शिरीष अग्रवाल ने एक सनसनीखेज खुलासा करते हुए कहा कि जब वे अपने एक परिचित के पास गए और उनके घर पर पत्रकार का परिचय पत्र देखा और उन्होंने जब उनसे इस बारे में पूछा तो उनके परिचित ने कहा कि यह बडे काम की चीज है इससे टोलटेक्स में बचत, आरटीओ, पुलिस आदि के झमेले से मुक्ति और समाज में रसूख बढ़ता है। अतः कोई भी समाचार पत्र का परिचय पत्र जारी करने के पहले इसकी पड़ताल अवश्य की जाए कि उसे पाने वाला सच्चा हकदार है अथवा नहीं।
इस अवसर पर नगर पालिका अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी ने पत्रकारों की बहुप्रतिक्षित मांग के मार्ग प्रशस्त कर दिए। श्री त्रिवेदी ने पत्रकार भवन के लिए सिवनी शहर में जमीन निशुल्क देने की घोषणा कर दी। वहीं दूसरी ओर भाजपा के जिलाध्यक्ष, पूर्व विधायक और महाकौशल विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष नरेश दिवाकर, विधायक श्रीमति नीता पटेरिया, कमल मस्कोले ने प्रत्यक्ष तौर पर इसके निर्माण के लिए पांच पांच लाख रूपए तो मोबाईल पर विधायक श्रीमति शशि ठाकुर द्वारा भी भाजपाध्यक्ष को पांच लाख रूपए की सहमति प्रदान कर दी गई। भाजपाध्यक्ष नरेश दिवाकर ने सांसद के.डी.देशमुख से भी इसके निर्माण के लिए पर्याप्त आर्थिक सहायता दिलवाने का भरोसा जताया गया। लिमटी खरे द्वारा भाजपा के द्वारा पत्रकारों के हित में उठाए गए इस कदम के लिए भाजपा जिला अध्यक्ष और विधायकों एवं नगर पालिका अध्यक्ष का आभार व्यक्त करते हुए यह आग्रह किया कि इस काम को समय सीमा में बांध दिया जाए, वरना यह कहीं चुनावी वायदा ना बनकर रह जाए।

खजाने - प्प योजना से जुड़ेगा कर्नाटक


खजाने - प्प योजना से जुड़ेगा कर्नाटक

(श्वेता यादव)

बंग्लुरू (साई)। कर्नाटक सरकार के राजस्व विभाग ने एक अत्याधुनिक एकीकृत वित्तीय प्रबन्धन प्रणाली स्थापित करने की योजना शुरू की है। खजाने-प्प् नाम की इस ई-प्रशासन पहल से राज्यभर में चल रहे राजकोष के २२० केन्द्रों को आपस में जोडा जाएगा। बताया जाता है कि यह परियोजना अगले वर्ष के शुरू में पूरी तरह से लागू कर दी जाएगी।
सरकारी सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि सरकार के विभिन्न कार्यालयों को आपस में जोड़ने के लिए कर्नाटक स्टेट वाइड एरिया नेटवर्क का इस्तेमाल किया जाएगा। ज्ञातव्य है कि कर्नाटक सरकार ने खजाना-एक सॉफ्वेयर को दस साल पहले आरंभ किया था। इस पुराने सॉफ्टवेयर में कई आधुनिक सुविधा न होने की वजह से, सरकार द्वारा खजाना-२ योजना पिछले साल आरंभ किया गया।
सरकारी सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि नये सॉफ्टवेयर की मदद से अकाउंटेंट जनरल, रिजर्व बैंक और कई सरकारी विभाग, हर एक दिन चलने वाले सरकारी लेन-देन पर नजर रख पायेंगे और घोटालों पर रोक लगा सकेंगे। इस नयी सुविधा से सात लाख राज्य सरकारी और ग्रांटीन एक उद्योगपतियों को, चार लाख पेंशनधारों को और पंद्रह लाख से ज्यादा समाज कल्याण भोगियों को सुविधा पहुंचेगी।

बैंक खाते के लिए अब आईडी प्रूफ की अनिवार्यता समाप्त!


बैंक खाते के लिए अब आईडी प्रूफ की अनिवार्यता समाप्त!

(महेश रावलानी)

नई दिल्ली (साई)। गरीब परिवारों के लिए यह खबर खुशखबरी से कम नहीं है कि गरीबों के लिए बैंक खाता खोलने की प्रक्रिया को सरकार ने और सरल कर दिया है। रिजर्व बैंक के नये निर्देशों के तहत अब इसके लिए किसी प्रकार का आइडी प्रूफ यानी पहचान का प्रमाण नहीं मांगा जायेगा। सादे कागज पर दी गयी जानकारी पर ही बैंक को खाता खोलना होगा। गरीब परिवारों के लिए पहचान पत्र, आधार कार्ड, राशन कार्ड व दूसरी अनिवार्यता वाली शर्तें भी हटा दी गयी हैं। इन शर्तों के हटने से अब अस्थायी रूप से रह रहे लोग भी अपना खाता खुलवा पायेंगे।
जीरो बैलेंस पर खुलने वाले इस खाते में एक साल के दौरान एक लाख रुपये तक का लेन-देन ही किया जा सकेगा। इन खातों में अधिकतम 50 हजार रुपये तक की रकम जमा रह सकती है। बैंकों को मिले निर्देशों में स्पष्ट है कि गरीब परिवारों का यह खाता एक वर्ष के लिए प्रभावी होगा। इसके नवीनीकरण के लिए उपभोक्ता को केवाइसी की शर्तें पूरी करनी होंगी।
आइडी प्रूफ के बिना खुलने वाले इन खातों पर उपभोक्ताओं को एटीएम कार्ड जारी नहीं होंगे। इसी तरह बैंक उपभोक्ता को चेकबुक भी जारी नहीं करेगा। ग्राहक को बैंक की शाखा में पहुंच कर फार्म भर कर ही लेन-देन करना होगा।

शिवराज की ही परवाह नहीं जनसंपर्क को

लाजपत ने लूट लिया जनसंपर्क ------------------ 14

शिवराज की ही परवाह नहीं जनसंपर्क को

भोपाल (साई)। मध्यप्रदेश में जनसंपर्क संचालनालय में जमकर घमासान मचा हुआ है। जबसे सारी शक्तियां अतिरिक्त संचालक लाजपत आहूजा के इर्दगिर्द आकर समटी हैं, तबसे जनसंपर्क संचालनालय में मनहूसियत छाने लगी है। वरिष्ठ अधिकारियों के बीच अब वर्चस्व की अघोषित जंग तेज हो गई है। इसका सीधा असर भारतीय जनता पार्टी की शिवराज सिंह सरकार पर पड़ता दिख रहा है।
हाल ही में न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र लोक सेवा दिवस पर मध्य प्रदेश को सम्मानित किया गया। इसकी खबर जनसंपर्क संचालनालय द्वारा जारी ही नहीं की गई जबकि यह मध्य प्रदेश विशेषकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए बहुत गौरव की बात थी। चर्चाओं को सही मानें तो सरकार की छवि चमकाने के लिए पाबंद एमपी पब्लिसिटी डिपार्टमेंट की कमान सत्ता के बजाए संगठन के हाथों में चली गई है जिसके चलते अब विभाग का ध्यान सत्ता के बजाए संगठन की छवि चमकाने में लग गया है। आरोपित है कि इसके पहले दिल्ली स्थित विभाग के कार्यालय द्वारा भी इसी तरह की कवायद की गई थी।
उधर न्यूयार्क में शिवराज सिंह चौहान प्रदेश का डंका पीट रहे थे तो इधर जनसंपर्क गाफिल हो अपने में ही मस्त दिखाई दे रहा है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा के प्रभाव से प्रदेश के जनसंपर्क की कमान थामने आये लाजपत आहूजा सीएम से ज्यादा प्रभात झा से अपना रिश्ता ठीक रखना चाहते हैं क्योंकि वे यह जानते हैं कि अगर प्रभात झा का हाथ उनके सिर पर रहेगा तो सीएम भी उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकते। वैसे भी भोपाल के राजनीतिक गलियारों में अक्सर अफवाहें तो उड़ती ही रहती हैं कि अगले चुनाव में सीएम पद पर दावेदारी करने के लिए प्रभात झा अभी से गोटियां बिछा रहे हैं और पहला कब्जा उन्होंने मध्य प्रदेश जनसंपर्क पर किया है ताकि अपनो को उपकृत करने के साथ ही अपनी छवि को चमका सकें। ऐसे में जनसंपर्क अगर सीएम को भी ठेंगा दिखा देता है तो इसमें हर्ज क्या है? (विस्फोट डॉट काम से साभार)।

भोपाल में टंकी ढही, 7 मरे, 33 घायल


भोपाल में टंकी ढही, 7 मरे, 33 घायल

(नन्द किशोर)

भोपाल (साई)। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के नए शहर के 11 नंबर बस स्टॉप के पास रविवार देर रात 12.30 बजे पानी की ऊंची टंकी गिर जाने से सात लोगों की मौत हो गई और 33 घायल हो गए। प्रत्यक्षदर्शियों ने 20 से 22 और लोगों के मलबे में दबे होने की आशंका जताई है। टंकी सीधे आसपास स्थित झुग्गियों पर गिरी। बताया गया कि पानी की टंकी का बड़ा हिस्सा बिजली की डीपी पर गिरा। इससे तेज चिंगारियों के बाद क्षेत्र की बिजली गुल हो गई।
प्राप्त जानकारी के अनुसार ई-6 अरेरा कालोनी में स्थित महर्षि दयानंद हायर सेकंडरी स्कूल के पीछे स्थित 40 से 45 फीट ऊंची पानी की टंकी थी। रहवासियों के अनुसार इसमें में करीब पांच लाख गैलन पानी आता था। इस पानी की टंकी से सटी अनेक झुग्गियां थी। रविवार की रात तकरीबन साढ़े बारह बजे जब क्षेत्रीय रहवासी नींद में थे, तभी टंकी भरभराकर गिर गई। टंकी गिरने से धमाका इतना तेज था कि लोग दहशत में आ गए। इससे पहले कि लोग कुछ समझ पाते उनके घरों में पानी घुसने लगा।
प्रत्यक्ष दर्शियों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि इसी बीच टंकी गिरने से लाखों गैलन पानी सड़कों पर बह निकला। करीब आधा घंटे तक सड़कों पर घुटने तक पानी भरा रहा, जिससे राहत कार्य में भी बाधा आई। सूचना मिलने पर आसपास के सभी थानों का स्टाफ और फायर ब्रिगेड के तमाम केंद्रों से दमकलें मौके पर पहुंच गई थी। राहतकर्मियों ने आठ से दस घायलों को बचाकर जेपी अस्पताल भेजा। शुरूआती समाचार में अस्पताल में वर्षा (19) पुत्री लालाराम और सुरेश (40) पिता रामप्रसाद की मौत की पुष्टि हुई।

महाबली कुसमरिया ने मारे कई डाकू!


महाबली कुसमरिया ने मारे कई डाकू!

(राजेश शर्मा)

भोपाल (साई)। शिवराज सरकार के गण अब आत्म प्रशंसा में इतने मुग्ध हो चुके हैं कि उन्हें सच्चाई और झूठ में कोई अंतर ही समझ में नहीं आ रहा है। मध्य प्रदेश के कृषिमंत्री रामकृष्ण कुसमरिया अपनी तारीफ करने में इतने मशगूल हो गए कि यह तक कह डाला कि उन्होंने अपने जमाने में कई डाकुओं को मौत के घाट उतारा है। रविवार को उन्होंने कहा, ष्बुंदेलखंड में जब डाकुओं का बोलबाला था। कोई भी सुरक्षित नहीं था।
उन्होंने कहा कि कॉलेज से निकलने के बाद उन्होंने नौकरी नहीं की, बल्कि जहां डाकुओं का डेरा था, एसी जगह पर जमीन ली। मैं खुद की तारीफ नहीं कर रहा, लेकिन मैंने अनेक डाकुओं को अपने हाथों से मारा है और पुलिस को सुपुर्द कर दिए, जिससे उनके प्रमोशन हुए हैं। अब बुंदेलखंड में एक भी डाकू नहीं है। कुसमरिया गायत्री शक्तिपीठ द्वारा आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे। कृप्रष मंत्री ने कहा कि हम रावण दहन दशहरे के दिन करते हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि आज भी कई आसुरी शक्तियां शक्तिशाली होकर खड़ी हैं, उन्हें खत्म करने के लिए आध्यात्मिकता की आवश्यकता है। उन्होंने गायत्री परिवार द्वारा चलाए जा रहे अभियान एवं सेवा कार्याे की प्रशंसा की।
उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति को गायत्री परिवार ने पूरे विश्व में एक स्वरूप दिया है। जिस तरह स्वामी विवेकानंद जी ने शिकागो में भारत की ध्वज पताका लहराई थी, उसी तरह यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि गायत्री परिवार द्वारा कितने स्वामी विवेकानंद तैयार किए जा रहे हैं, इसकी गणना नहीं कर सकते।
इस मौके पर राजधानी की अनेक संस्थाओं द्वारा अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रमुख डॉ. प्रणव पंडया का अभिनंदन किया गया। गायत्री शक्तिपीठ में हिमालय की दुर्लभ वनौषधियों से युक्त नवनिर्मित श्रीराम स्मृति उपवन, एक्युप्रेशर पथ, नवग्रह वाटिका, नक्षत्र, राशि एवं वास्तु वाटिका का लोकार्पण भी किया गया। 

डीबी पावर पर लगा तगड़ा जुर्माना


डीबी पावर पर लगा तगड़ा जुर्माना

(अभय नायक)

रायपुर (साई)। केंद्रीय कोयला मंत्रालय ने दैनिक भास्कर पत्र समूह की कम्पनी डीबी पॉवर को आवंटित कोल ब्लॉक पर तगड़ा जुर्माना किया है। जुर्माने के तौर पर डीबी पॉवर की बैंक गारंटी राशि में से 5.104 करोड़ रूपए की कटौती की गई है। यही नहीं, मंत्रालय ने कोयला खदान डेवलप करने और उत्पादन शुरू करने के लिए कम्पनी को फरवरी 2013 तक की ही मोहलत दी है।
उधर, समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के दिल्ली ब्यूरो से अमित कौशल ने बताया कि कोयला मंत्रालय ने इस तरह के संकेत भी दिए हैं कि निर्धारित अवधि में काम शुरू नहीं हुआ तो खदान आवंटन रद्द भी किया जा सकता है। डीबी पॉवर को धरमजयगढ़ स्थित दुर्गापुर-सरिया कोल ब्लॉक आवंटित है।
इसके अलावा कोयला मंत्रालय ने बड़ी कार्रवाई करते हुए इलेक्ट्रोथर्म व ग्रासिम सीमेंट को रायगढ़ में मिले कोल ब्लॉक के आवंटन को रद्द कर दिया है। दोनों कम्पनियों को संयुक्त रूप से भास्करपारा कोयला खदान दी गई थी। मंत्रालय ने यह फैसला कोल ब्लॉक आवंटन की जांच के लिए गठित अंतर मंत्रालयीन समूह (आईएमजी) की सिफारिश पर लिया है।
आईएमजी की समीक्षा बैठक में डीबी पॉवर की ओर से बताया गया कि उन्होंने खदान के लिए 23 में से 17 एकड़ निजी जमीन का अधिग्रहण कर लिया है। पॉवर प्लांट स्थापित करने में कम्पनी करीब 3927 करोड़ रूपए खर्च रही है। इसलिए आईएमजी ने कोल ब्लॉक रद्द करने के बजाय कम्पनी को एक और मौका देने का फैसला किया। और आधार पर कोयला मंत्रालय ने जुर्माने की कार्रवाई की।
कोल ब्लॉक आवंटन के लिए जमीन अधिग्रहण व पर्यावरण स्वीकृति के लिए हुई जनसुनवाई के दौरान स्थानीय लोगों ने इसका जमकर विरोध किया था। 28 फरवरी 2011 को हुई जनसुनवाई में भी प्रभावितों ने प्रोजेक्ट का विरोध किया। डीबी पॉवर के प्रोजेक्ट के खिलाफ कोर्ट में याचिका लगा रखी है। जनवरी-13 में अंतिम सुनवाई होनी है।

छग में हुआ एक हजार करोड़ का नुकसान


छग में हुआ एक हजार करोड़ का नुकसान

(आंचल झा)

रायपुर (साई)। छत्तीसगढ़ विद्युत उत्पादन कंपनी ने दस करोड़ की मशीन के लिए एक हजार करोड़ रूपए का नुकसान उठाया। डीएसपीएम पॉवर प्लांट को करीब सवा साल बाद जनरेटर उपलब्ध हुआ।उत्पादन कंपनी के डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी थर्मल पॉवर प्लांट की 250 मेगावाट क्षमता वाली यूनिट क्रमांक दो का जनरेटर ट्रांसफार्मर पिछले साल 20 जून को बर्स्ट हो गया था।
कंपनी ने नया जीटी खरीदने के बजाय एचटीपीपी प्लांट में स्पेयर में रखे कम क्षमता वाला जीटी लगा दिया। इससे 250 मेगावाट क्षमता वाली यूनिट से 210 मेगावाट बिजली उत्पादन हो रहा है। करीब सवा साल से रोजाना 40 मेगावाट कम उत्पादन होने से कंपनी को एक हजार करोड़ रूपए से भी अधिक का नुकसान हो चुका है। ऊर्जा विभाग ने प्लांट को नया जीटी उपलब्ध कराने के बजायनिजी कंपनियों से बिजली खरीद ज्यादा मुनासिब समझा।
ऊर्जा विभाग के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी थर्मल पॉवर प्लांट को 17 महीने बाद जीटी उपलब्ध कराया है। बीएचईएल के हरिद्वार प्लांट से जीटी रवाना होकर रविवार को कोरबा पहुंचा। इसकी लागत 10 करोड़ रूपए बताई गई है। ऊर्जा सचिव अमन सिंह जीटी का निरीक्षण करने कोरबा पहुंच रहे हैं। वे सोमवार को अधिकारियों की बैठक भी लेंगे।
वहीं दूसरी ओर सचिवालयीन सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि जीटी बर्स्ट होने के मामले में जिन अधिकारियों को दोषी पाया गया था, उनके खिलाफ अभी तक कार्रवाई नहीं की गई, बल्कि उन्हें पदोन्नति दे दी गई है। कंपनी ने इसकी जांच के लिए चार सदस्यीय कमेटी गठित की थी। कमेटी ने तत्कालीन कार्यपालन अभियंता डी महतो समेत तीन को दोषी ठहराया था। इनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई, वरन् महतो को पदोन्नत कर मुख्य अभियंता का प्रभार सौंप दिया गया है।

छग में हुआ एक हजार करोड़ का नुकसान


छग में हुआ एक हजार करोड़ का नुकसान

(आंचल झा)

रायपुर (साई)। छत्तीसगढ़ विद्युत उत्पादन कंपनी ने दस करोड़ की मशीन के लिए एक हजार करोड़ रूपए का नुकसान उठाया। डीएसपीएम पॉवर प्लांट को करीब सवा साल बाद जनरेटर उपलब्ध हुआ।उत्पादन कंपनी के डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी थर्मल पॉवर प्लांट की 250 मेगावाट क्षमता वाली यूनिट क्रमांक दो का जनरेटर ट्रांसफार्मर पिछले साल 20 जून को बर्स्ट हो गया था।
कंपनी ने नया जीटी खरीदने के बजाय एचटीपीपी प्लांट में स्पेयर में रखे कम क्षमता वाला जीटी लगा दिया। इससे 250 मेगावाट क्षमता वाली यूनिट से 210 मेगावाट बिजली उत्पादन हो रहा है। करीब सवा साल से रोजाना 40 मेगावाट कम उत्पादन होने से कंपनी को एक हजार करोड़ रूपए से भी अधिक का नुकसान हो चुका है। ऊर्जा विभाग ने प्लांट को नया जीटी उपलब्ध कराने के बजायनिजी कंपनियों से बिजली खरीद ज्यादा मुनासिब समझा।
ऊर्जा विभाग के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी थर्मल पॉवर प्लांट को 17 महीने बाद जीटी उपलब्ध कराया है। बीएचईएल के हरिद्वार प्लांट से जीटी रवाना होकर रविवार को कोरबा पहुंचा। इसकी लागत 10 करोड़ रूपए बताई गई है। ऊर्जा सचिव अमन सिंह जीटी का निरीक्षण करने कोरबा पहुंच रहे हैं। वे सोमवार को अधिकारियों की बैठक भी लेंगे।
वहीं दूसरी ओर सचिवालयीन सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि जीटी बर्स्ट होने के मामले में जिन अधिकारियों को दोषी पाया गया था, उनके खिलाफ अभी तक कार्रवाई नहीं की गई, बल्कि उन्हें पदोन्नति दे दी गई है। कंपनी ने इसकी जांच के लिए चार सदस्यीय कमेटी गठित की थी। कमेटी ने तत्कालीन कार्यपालन अभियंता डी महतो समेत तीन को दोषी ठहराया था। इनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई, वरन् महतो को पदोन्नत कर मुख्य अभियंता का प्रभार सौंप दिया गया है।

सुषमा से समर्थन मांगा ममता ने


सुषमा से समर्थन मांगा ममता ने

(प्रतुल बनर्जी)

कोलकता (साई)। केंद्र सरकार को घेरने के मसले में अब त्रणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी के तेवर काफी तीखे लगने लगे हैं। ममता बनर्जी ने लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज को फोन किया और केंद्र की संप्रग सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने में उनका सहयोग मांगा।
भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने कोलकाता प्रेस क्लब में कहा, ‘सुश्री बनर्जी ने सुषमा स्वराज से संपर्क किया है। जोशी से पूछा गया था कि क्या बनर्जी ने भाजपा नीत राजग से समर्थन मांगा है जिस पर उन्होंने कहा, ‘बाल ठाकरे के अंतिम संस्कार में हिस्सा लेने स्वराज मुंबई गई हुई हैं और जब वह दिल्ली लौटेंगी तो हम बैठकर इस पर विचार-विमर्श करेंगे।लोकसभा के सदस्य जोशी ने कहा, ‘राजग की बैठक कल या परसों होगी और इस पर निर्णय किया जाएगा।
खुदरा क्षेत्र में एफडीआई और भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर बनर्जी ने संप्रग सरकार पर प्रहार किया था और कहा था कि तृणमूल कांग्रेस संसद के आगामी शीत सत्र में अविश्वास प्रस्ताव लाएगी। उन्होंने संप्रग के सहयोगियों और वामपंथी पार्टियों से भी सहयोग मांगा। उन्होंने भाजपा से वार्ता करने की इच्छा भी जताई थी।
यह पूछने पर कि क्या इस वक्त अविश्वास प्रस्ताव जीतने के लिए उनके पास पर्याप्त संख्या बल है तो पूर्व भाजपा अध्यक्ष ने कहा, ‘इसलिए हम बैठकर विचार करेंगे। अगर पर्याप्त संख्या नहीं है और प्रस्ताव विफल हो जाता है तो सरकार अगले छह महीने के लिए सुरक्षित हो जाएगी और इस दौरान दूसरा अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता।उन्होंने कहा, ‘अगर प्रस्ताव पास हो जाता है और सरकार गिर जाती है तो आपको आगे की कार्रवाई पर विचार करना होगा।

चिरनिंद्रा में लीन हिन्दुत्व का पुरोधा!


चिरनिंद्रा में लीन हिन्दुत्व का पुरोधा!

(निधि गुप्ता)

मुंबई (साई)। चार दशकों तक देश की व्यवसायिक राजधानी मुंबई पर एकछत्र राज करने वाले हिन्दुत्व के पुरोधा बाला साहेब ठाकरे चिरनिंद्रा में लीन हो गए। शिवाजी पार्क में रविवार देर शाम जब उद्धव ठाकरे ने बाल ठाकरे की चिता को मुखाग्नि दी, तो पास ही खड़े उनके चचेरे भाई और एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे बेहद भावुक हो गए। हमेशा बेहद सख्त नजर आने वाले राज चाचा की चिता के बगल में काफी देर तक सुबकते रहे। राज रोते हुए घुटने के बल बैठ गए और उन्होंने बाल ठाकरे की जलती चिता को हाथ जोड़कर प्रणाम किया। बाल ठाकरे के अंतिम संस्कार के वक्त पूरा शिवाजी पार्क खचाखच भरा था। हर किसी की आंखें नम थीं। पुलिस के मुताबिक शिवाजी पार्क में करीब 20 लाख लोग बाल ठाकरे के अंतिम दर्शन के लिए मौजूद थे।
अंतिम दर्शन के लिए लौटेः इससे पहले शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे की शवयात्रा को बीच में छोड़कर घर गए एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे अंतिम संस्कार से ठीक पहले शिवाजी पार्क पहुंचे। शाम करीब साढ़े चार बजे वह एमएनएस के नेताओं के साथ शिवाजी पार्क में पहुंचे। वहां वह उद्धव ठाकरे के साथ बातचीत करते देखे गए। राज ठाकरे के शवयात्रा से जाने पर कयास लगाए जा रहे थे कि भले ही बाला साहेब राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे को एक साथ मिलना चाहते थे, लेकिन दोनों के बीच की दूरी कम नहीं हुई है। जिस वक्त उद्धव बिलखते हुए दिखाई दे रहे थे, तब उन्हें सहारा देने के लिए राज ठाकरे आसपास मौजूद नहीं थे।
शवयात्रा बीच में छोड़ीः अंतिम यात्रा के दौरान जहां उद्धव और परिवार के करीबी लोग बाला साहेब के पार्थिव शरीर के साथ ट्रक पर सवार थे, वहीं राज ठाकरे महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के समर्थकों के साथ पैदल चल रहे थे।बाद में अपने समर्थकों के साथ राज ठाकरे ने अलग रास्ता पकड़ लिया। वह उस रास्ते से नहीं गए, जहां से अंतिम यात्रा गुजर रही थी। कुछ देर बाद वह शव यात्रा को बीच में छोड़कर घर की ओर रवाना हो गए।
राज के अचानक शव यात्रा से लौटने से कयास लगाए जाने लगे कि राज और उद्धव को एक करने का बाल ठाकरे का सपना क्या पूरा होगा। कई मौकों पर बाल ठाकरे के भाषणों से इस तरह के संकेत मिले थे कि वह राज ठाकरे के अलग होकर नई पार्टी बनाने के फैसले से दुखी थे। वह चाहते थे किदोनों भाई एक साथ आ जाएं। उन्होंने दोनों को साथ मिलकर काम करने की सलाह भी दी थी। बताया जा रहा है कि उन्होंने राज और उद्धव से कहा था कि एक हो जाओ, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। राज ठाकरे ने भले ही अलग पार्टी बना ली हो, लेकिन वह बाला साहेब के नक्शे कदम पर ही चले। पार्टी के नाम से लेकर पार्टी के काम करने का तरीका और मुद्दे भी एक जैसे ही थे। बाल ठाकरे की तरह राज ने भी श्मराठी माणुसश् की राजनीति की। काफी हद तक राज ठाकरे ने शिवसेना के वोट बैंक में भी सेंध लगाई। लोग राज ठाकरे में बाला साहेब की छवि देखते हैं।
भले ही राज ने बाला साहेब से नाराज होकर अलग पार्टी बनाई हो, लेकिन उनके दिल में अपने चाचा और भाई के प्रति प्यार और सम्मान कम नहीं हुआ था। पिछले दिनों जब उद्धव हॉस्पिटल में ऐडमिट हुए थे, तब भी राज ठाकरे खुद उन्हें अपनी कार से घर लाए थे। एक निजी चेनल को दिए इंटरव्यू में राज ठाकरे कहा था, श्परिवार का मामला अलग है और राजनीति का अलग। मैं हर मोड़ पर अपने परिवार के साथ हूं।श् साथ ही भविष्य में एक साथ आने के सवाल को लेकर भी उन्होंने कहा था कि भविष्य की बात भविष्य में देखेंगे।
बाला साहेब के जाने के बाद उनके और राज ठाकरे के समर्थकों के मन में कई सवाल उठ रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या राज ठाकरे की शिवसेना में वापसी होगी और क्या राज और उद्धव दोनों साथ मिलकर काम करेंगे? लेकिन जानकारों का मानना है बाला साहेब के रहते हुए ही राज और उद्धव एक हो सकते थे, लेकिन अब यह श्प्रैक्टिकलीश् संभव नहीं दिखता।
प्रभावशाली संदेश वाले कार्टून बनाने से लेकर महाराष्ट्र के राजनीतिक मंच पर बेहद अहम भूमिका निभाने वाले बाल ठाकरे मराठी गौरव और हिंदुत्व के प्रतीक थे, जिनके जोशीले अंदाज ने उन्हें शिवसैनिकों का भगवान बना दिया। शिवसेना के 86 वर्षीय प्रमुख को उनके शिवसैनिक भगवान की तरह पूजते थे और उनके विरोधी भी उनके इस कद से पूरी तरह वाकिफ थे। अपने हर अंदाज से महाराष्ट्र की राजनीति की दिशा बदलने वाले ठाकरे दोस्तों और विरोधियों को हमेशा यह मौका देते रहे कि वह उन्हें राजनीतिक रूप से कम करके आंकें, ताकि वह अपने इरादों को सफाई से अंजाम दे सकें। वह अकसर खुद बड़ी जिम्मेदारी लेने की बजाय किंगमेकर बनना ज्यादा पसंद करते थे। कुछ के लिए महाराष्ट्र का यह शेर अपने आप में एक सांस्कृतिक आदर्श था।
एक इशारे से मुंबई की रौनक को सन्नाटे में बदलने की ताकत रखने वाले बाल ठाकरे ने आर. के. लक्ष्मण के साथ अंग्रेजी अखबार फ्री प्रेस जर्नल में 1950 के दशक के अंत में कार्टूनिस्ट के तौर पर अपना करियर शुरू किया था, लेकिन 1960 में उन्होंने कार्टून साप्ताहिक श्मार्मिकश् की शुरुआत करके एक नए रास्ते की तरफ कदम बढ़ाया। इस साप्ताहिक में ऐसी सामग्री हुआ करती थी, जो श्मराठी मानुषश् में अपनी पहचान के लिए संघर्ष करने का जज्बा भर देती थी और इसी से शहर में प्रवासियों की बढ़ती संख्या को लेकर आवाज बुलंद की गई।
ठाकरे की यह बात कि श्महाराष्ट्र मराठियों का है,श् स्थानीय लोगों में इस कदर लोकप्रिय हुई कि उनकी पार्टी ने 2007 में बीजेपी के साथ पुराना गठबंधन होने के बावजूद राष्ट्रपति के चुनाव में अलग राय बनाई और यूपीए की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल का समर्थन किया, जो महाराष्ट्र से थीं। उन्होंने 2009 में सचिन तेंडुलकर की आलोचना कर डाली, जिन्होंने कहा था कि मुंबई पूरे भारत की है। ठाकरे ने 19 जून 1966 को शिवसेना की स्थापना की और उसके बाद मराठियों की तमाम समस्याओं को हल करने की जिम्मेदारी अपने सिर ले ली।
ठाकरे ने खुद कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन शिवसेना को एक पूर्ण राजनीतिक दल बनाने के बीज बोए जब उनके शिव सैनिकों ने बॉलिवुड सहित विभिन्न उद्योगों में मजदूर संगठनों पर नियंत्रण करना शुरू किया। शिवसेना ने जल्द ही जड़ें जमा लीं और 1980 के दशक में मराठी समर्थक मंत्र के सहारे बृहनमुंबई नगर निगम पर कब्जा कर लिया। बीजेपी के साथ 1995 में गठबंधन करना ठाकरे के राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा मौका था और इसी के दम पर उन्होंने पहली बार सत्ता का स्वाद चखा।
बहुत से लोगों का मानना है कि 1993 के मुंबई विस्फोटों के बाद हुए सांप्रदायिक दंगों में शिवसैनिकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके चलते सेना-बीजेपी गठबंधन को हिंदू वोट जुटाने में मदद मिली। उन्होंने कहा था, श्इस्लामी आतंकवाद बढ़ रहा है और हिंदू आतंकवाद ही इसका जवाब देने का एकमात्र तरीका है। हमें भारत और हिंदुओं को बचाने के लिए आत्मघाती बम दस्ते की जरूरत है।श् प्रवासी विरोधी विचारों के कारण ठाकरे को हिंदी भाषी राजनीतिज्ञों की नाराजगी झेलनी पड़ती थी। बिहारियों को देश के विभिन्न भागों के लिए श्बोझश् बताकर उन्होंने खासा विवाद खड़ा कर दिया था। हालांकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के वह प्रशंसक थे।
शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए शिवाजी पार्क में बड़ी संख्या में प्रमुख हस्तियां पहुंचीं। इनमें राजनीति, फिल्म और कॉर्पाेरेट जगत के दिग्गज शामिल हैं। दादर में शिवसेना मुख्यालय से कुछ मीटर की दूरी पर स्थित शिवाजी पार्क मैदान में ठाकरे के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए पहुंचे प्रमुख लोगों में एनसीपी प्रमुख शरद पवार, बीजेपी के सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी, लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज, ऐक्टर अमिताभ बच्चन और उद्योगपति अनिल अंबानी शामिल थे।
इसके साथ ही वहां पर बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, मेनका गांधी और शाहनवाज हुसैन, सीनियर कांग्रेस नेता डॉ। डी। वाई। पाटिल और महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता एकनाथ खडसे भी उपस्थित थे। इसके अलावा केंद्रीय मंत्री प्रफुल्ल पटेल, सीनियर बीजेपी नेता अरुण जेटली, वीएचपी नेता प्रवीण तोगड़िया, कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला और महाराष्ट्र के लोकनिर्माण मंत्री छगन भुजबल भी मौजूद थे।
इस मौके पर बॉलिवुड अभिनेता नाना पाटेकर, महेश मांजरेकर, संजय दत्त और रितेश देशमुख भी उपस्थित थे। ठाकरे की शवयात्रा मुंबई की प्रमुख सड़कों से गुजरते हुए 6 घंटे में शिवाजी पार्क मैदान पहुंची। इस शवयात्रा में लाखों शिवसैनिक और ठाकरे के समर्थक शामिल थे।
फिल्मों के बाद बाल ठाकरे का दूसरा सबसे पसंदीदा विषय था क्रिकेट। सुनील गावस्कर से सचिन तेंडुलकर तक, सभी उनका आशीर्वाद लेते रहे हैं। अपने दाहिने हाथ मनोहर जोशी के जरिये ठाकरे ने मुंबई क्रिकेट असोसिएशन (एमसीए) पर दो दशक तक एकछत्र राज रखा। एमसीए पर शिवसेना के दबदबे के वक्त वह दलबल के साथ वानखेड़े स्टेडियम जाया करते थे। प्रेस बॉक्स के आगे खुले में बने प्रेसिडेंट्स बॉक्स में उनका चुरुट पीता चेहरा आज भी नहीं भूलता।
पाकिस्तान का विरोध शिवसेना की क्रिकेट राजनीति की धुरी रहा है। 1991 में पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के मुंबई दौरे का शिवसेना ने मुखर विरोध किया था, लेकिन सरकार गाफिल होकर तैयारी में लगी रही। पाक टीम मुंबई पहुंच गई और प्रैक्टिस में लग गई तो शिवसेना के तत्कालीन विभाग प्रमुख शिशिर शिंदे की अगुवाई में छह शिवसैनिकों ने वानखेड़े स्टेडियम में तैनात डेढ़ सौ से अधिक पुलिसकर्मियों को चकमा देते हुए पिच ही खोद डाली। इस घटना के बाद पाकिस्तान के खिलाफ आज तक मुंबई में कोई टेस्ट मैच नहीं खेला जा सका है।
2009 में सचिन तेंडुलकर के श्मुंबई पूरे भारत कीश् वाले बयान पर बाल ठाकरे ने नाराजगी जाहिर की थी। उन्होंने सचिन को कांग्रेस की श्डर्टी पिक्चरश् बताया था। जब शाहरुख खान ने आईपीएल में पाकिस्तानी क्रिकेटरों को खिलाने की बात कही तो नाराज बाल ठाकरे का मूड देखकर श्माई नेम इज खानश् की रिलीज पर बादल छा गए थे। मानमनौव्वल के बाद कहीं जाकर मामला ठीक हुआ। बाल ठाकरे का क्रिकेट प्रेम तो अब पोते तक पहुंच गया है। आदित्य ठाकरे हाल ही में मुंबई क्रिकेट असोसिएशन से संबंधित क्लब यंग फ्रेंड्स यूनियन के अध्यक्ष चुने गए हैं।
बाल ठाकरे की कम्यूनिकेशन स्किल गजब की थी। अपने दौर में वह देश के आला कार्टूनिस्ट्स में शुमार होते थे। अगर ठाकरे के अंतर्मन में झांकना हो तो उनके बनाए कार्टूनों को देखा जा सकता है। महंगाई, गरीबी, भ्रष्टाचार, अलगाववाद, छुआछूत और सीमा विवाद जैसे मुद्दों पर उनके कार्टून सिस्टम की पोल खोलकर रख देते हैं। उनके कार्टूनों में आक्रोश भी झलकता है। अपने कार्टून संग्रह पर आधारित कॉफी टेबल बुक श्फटकारेश् में बाल ठाकरे ने लिखा है कि उन्होंने कार्टून बनाना सीखने के लिए कोई डिग्री नहीं ली।
कार्टूनिस्ट से शिवसेना प्रमुख बने बाल ठाकरे को सिनेमा से काफी लगाव था। अपने भाषणों में वह कभी-कभी सिनेमा के सुपरहिट डायलॉग्स का इस्तेमाल कर दिल जीत लेते थे। बॉलिवुड के कई सितारों से उनके घरेलू रिश्ते थे। दिलीप कुमार, लता मंगेशकर और अमिताभ बच्चन उनके दिल के काफी करीब थे।
किसी ज़माने में दिलीप कुमार के साथ वह मातोश्री की छत पर बैठकर बियर की चुस्कियों के साथ घंटों गपशप किया करते थे। लता मंगेशकर ने जब भी अपने किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम में उन्हें आमंत्रित किया, ठाकरे जरूर शामिल हुए। अमिताभ बच्चन जब श्कुलीश् की शूटिंग के दौरान घायल हुए थे और इमरजेंसी ऑपरेशन के लिए उन्हें बेंगलुरु से मुंबई लाया गया था, तो हवाई अड्डे से ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल ले जाने के लिए एंबुलेंस का प्रबंध खुद बालासाहेब ने किया था।
अमिताभ जब मौत के मुंह से बाहर निकले, तो ठाकरे ने हॉस्पिटल में उनसे मुलाकात की और अपने हाथों से बनाया एक खास कार्टून उन्हें भेंट किया था, जिसमें बताया गया था यमराज को अमिताभ ने पराजित कर दिया! इस यादगार कार्टून को बिग बी ने बड़े प्यार से संभालकर रखा है। अमिताभ उस दिन उनके मुरीद हो गए थे, जिस दिन ठाकरे ने भारत सरकार से उन्हें भारत रत्न देने की मांग की थी।

चिरनिंद्रा में लीन हिन्दुत्व का पुरोधा!


चिरनिंद्रा में लीन हिन्दुत्व का पुरोधा!

(निधि गुप्ता)

मुंबई (साई)। चार दशकों तक देश की व्यवसायिक राजधानी मुंबई पर एकछत्र राज करने वाले हिन्दुत्व के पुरोधा बाला साहेब ठाकरे चिरनिंद्रा में लीन हो गए। शिवाजी पार्क में रविवार देर शाम जब उद्धव ठाकरे ने बाल ठाकरे की चिता को मुखाग्नि दी, तो पास ही खड़े उनके चचेरे भाई और एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे बेहद भावुक हो गए। हमेशा बेहद सख्त नजर आने वाले राज चाचा की चिता के बगल में काफी देर तक सुबकते रहे। राज रोते हुए घुटने के बल बैठ गए और उन्होंने बाल ठाकरे की जलती चिता को हाथ जोड़कर प्रणाम किया। बाल ठाकरे के अंतिम संस्कार के वक्त पूरा शिवाजी पार्क खचाखच भरा था। हर किसी की आंखें नम थीं। पुलिस के मुताबिक शिवाजी पार्क में करीब 20 लाख लोग बाल ठाकरे के अंतिम दर्शन के लिए मौजूद थे।
अंतिम दर्शन के लिए लौटेः इससे पहले शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे की शवयात्रा को बीच में छोड़कर घर गए एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे अंतिम संस्कार से ठीक पहले शिवाजी पार्क पहुंचे। शाम करीब साढ़े चार बजे वह एमएनएस के नेताओं के साथ शिवाजी पार्क में पहुंचे। वहां वह उद्धव ठाकरे के साथ बातचीत करते देखे गए। राज ठाकरे के शवयात्रा से जाने पर कयास लगाए जा रहे थे कि भले ही बाला साहेब राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे को एक साथ मिलना चाहते थे, लेकिन दोनों के बीच की दूरी कम नहीं हुई है। जिस वक्त उद्धव बिलखते हुए दिखाई दे रहे थे, तब उन्हें सहारा देने के लिए राज ठाकरे आसपास मौजूद नहीं थे।
शवयात्रा बीच में छोड़ीः अंतिम यात्रा के दौरान जहां उद्धव और परिवार के करीबी लोग बाला साहेब के पार्थिव शरीर के साथ ट्रक पर सवार थे, वहीं राज ठाकरे महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के समर्थकों के साथ पैदल चल रहे थे।बाद में अपने समर्थकों के साथ राज ठाकरे ने अलग रास्ता पकड़ लिया। वह उस रास्ते से नहीं गए, जहां से अंतिम यात्रा गुजर रही थी। कुछ देर बाद वह शव यात्रा को बीच में छोड़कर घर की ओर रवाना हो गए।
राज के अचानक शव यात्रा से लौटने से कयास लगाए जाने लगे कि राज और उद्धव को एक करने का बाल ठाकरे का सपना क्या पूरा होगा। कई मौकों पर बाल ठाकरे के भाषणों से इस तरह के संकेत मिले थे कि वह राज ठाकरे के अलग होकर नई पार्टी बनाने के फैसले से दुखी थे। वह चाहते थे किदोनों भाई एक साथ आ जाएं। उन्होंने दोनों को साथ मिलकर काम करने की सलाह भी दी थी। बताया जा रहा है कि उन्होंने राज और उद्धव से कहा था कि एक हो जाओ, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। राज ठाकरे ने भले ही अलग पार्टी बना ली हो, लेकिन वह बाला साहेब के नक्शे कदम पर ही चले। पार्टी के नाम से लेकर पार्टी के काम करने का तरीका और मुद्दे भी एक जैसे ही थे। बाल ठाकरे की तरह राज ने भी श्मराठी माणुसश् की राजनीति की। काफी हद तक राज ठाकरे ने शिवसेना के वोट बैंक में भी सेंध लगाई। लोग राज ठाकरे में बाला साहेब की छवि देखते हैं।
भले ही राज ने बाला साहेब से नाराज होकर अलग पार्टी बनाई हो, लेकिन उनके दिल में अपने चाचा और भाई के प्रति प्यार और सम्मान कम नहीं हुआ था। पिछले दिनों जब उद्धव हॉस्पिटल में ऐडमिट हुए थे, तब भी राज ठाकरे खुद उन्हें अपनी कार से घर लाए थे। एक निजी चेनल को दिए इंटरव्यू में राज ठाकरे कहा था, श्परिवार का मामला अलग है और राजनीति का अलग। मैं हर मोड़ पर अपने परिवार के साथ हूं।श् साथ ही भविष्य में एक साथ आने के सवाल को लेकर भी उन्होंने कहा था कि भविष्य की बात भविष्य में देखेंगे।
बाला साहेब के जाने के बाद उनके और राज ठाकरे के समर्थकों के मन में कई सवाल उठ रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या राज ठाकरे की शिवसेना में वापसी होगी और क्या राज और उद्धव दोनों साथ मिलकर काम करेंगे? लेकिन जानकारों का मानना है बाला साहेब के रहते हुए ही राज और उद्धव एक हो सकते थे, लेकिन अब यह श्प्रैक्टिकलीश् संभव नहीं दिखता।
प्रभावशाली संदेश वाले कार्टून बनाने से लेकर महाराष्ट्र के राजनीतिक मंच पर बेहद अहम भूमिका निभाने वाले बाल ठाकरे मराठी गौरव और हिंदुत्व के प्रतीक थे, जिनके जोशीले अंदाज ने उन्हें शिवसैनिकों का भगवान बना दिया। शिवसेना के 86 वर्षीय प्रमुख को उनके शिवसैनिक भगवान की तरह पूजते थे और उनके विरोधी भी उनके इस कद से पूरी तरह वाकिफ थे। अपने हर अंदाज से महाराष्ट्र की राजनीति की दिशा बदलने वाले ठाकरे दोस्तों और विरोधियों को हमेशा यह मौका देते रहे कि वह उन्हें राजनीतिक रूप से कम करके आंकें, ताकि वह अपने इरादों को सफाई से अंजाम दे सकें। वह अकसर खुद बड़ी जिम्मेदारी लेने की बजाय किंगमेकर बनना ज्यादा पसंद करते थे। कुछ के लिए महाराष्ट्र का यह शेर अपने आप में एक सांस्कृतिक आदर्श था।
एक इशारे से मुंबई की रौनक को सन्नाटे में बदलने की ताकत रखने वाले बाल ठाकरे ने आर. के. लक्ष्मण के साथ अंग्रेजी अखबार फ्री प्रेस जर्नल में 1950 के दशक के अंत में कार्टूनिस्ट के तौर पर अपना करियर शुरू किया था, लेकिन 1960 में उन्होंने कार्टून साप्ताहिक श्मार्मिकश् की शुरुआत करके एक नए रास्ते की तरफ कदम बढ़ाया। इस साप्ताहिक में ऐसी सामग्री हुआ करती थी, जो श्मराठी मानुषश् में अपनी पहचान के लिए संघर्ष करने का जज्बा भर देती थी और इसी से शहर में प्रवासियों की बढ़ती संख्या को लेकर आवाज बुलंद की गई।
ठाकरे की यह बात कि श्महाराष्ट्र मराठियों का है,श् स्थानीय लोगों में इस कदर लोकप्रिय हुई कि उनकी पार्टी ने 2007 में बीजेपी के साथ पुराना गठबंधन होने के बावजूद राष्ट्रपति के चुनाव में अलग राय बनाई और यूपीए की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल का समर्थन किया, जो महाराष्ट्र से थीं। उन्होंने 2009 में सचिन तेंडुलकर की आलोचना कर डाली, जिन्होंने कहा था कि मुंबई पूरे भारत की है। ठाकरे ने 19 जून 1966 को शिवसेना की स्थापना की और उसके बाद मराठियों की तमाम समस्याओं को हल करने की जिम्मेदारी अपने सिर ले ली।
ठाकरे ने खुद कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन शिवसेना को एक पूर्ण राजनीतिक दल बनाने के बीज बोए जब उनके शिव सैनिकों ने बॉलिवुड सहित विभिन्न उद्योगों में मजदूर संगठनों पर नियंत्रण करना शुरू किया। शिवसेना ने जल्द ही जड़ें जमा लीं और 1980 के दशक में मराठी समर्थक मंत्र के सहारे बृहनमुंबई नगर निगम पर कब्जा कर लिया। बीजेपी के साथ 1995 में गठबंधन करना ठाकरे के राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा मौका था और इसी के दम पर उन्होंने पहली बार सत्ता का स्वाद चखा।
बहुत से लोगों का मानना है कि 1993 के मुंबई विस्फोटों के बाद हुए सांप्रदायिक दंगों में शिवसैनिकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके चलते सेना-बीजेपी गठबंधन को हिंदू वोट जुटाने में मदद मिली। उन्होंने कहा था, श्इस्लामी आतंकवाद बढ़ रहा है और हिंदू आतंकवाद ही इसका जवाब देने का एकमात्र तरीका है। हमें भारत और हिंदुओं को बचाने के लिए आत्मघाती बम दस्ते की जरूरत है।श् प्रवासी विरोधी विचारों के कारण ठाकरे को हिंदी भाषी राजनीतिज्ञों की नाराजगी झेलनी पड़ती थी। बिहारियों को देश के विभिन्न भागों के लिए श्बोझश् बताकर उन्होंने खासा विवाद खड़ा कर दिया था। हालांकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के वह प्रशंसक थे।
शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए शिवाजी पार्क में बड़ी संख्या में प्रमुख हस्तियां पहुंचीं। इनमें राजनीति, फिल्म और कॉर्पाेरेट जगत के दिग्गज शामिल हैं। दादर में शिवसेना मुख्यालय से कुछ मीटर की दूरी पर स्थित शिवाजी पार्क मैदान में ठाकरे के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए पहुंचे प्रमुख लोगों में एनसीपी प्रमुख शरद पवार, बीजेपी के सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी, लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज, ऐक्टर अमिताभ बच्चन और उद्योगपति अनिल अंबानी शामिल थे।
इसके साथ ही वहां पर बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, मेनका गांधी और शाहनवाज हुसैन, सीनियर कांग्रेस नेता डॉ। डी। वाई। पाटिल और महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता एकनाथ खडसे भी उपस्थित थे। इसके अलावा केंद्रीय मंत्री प्रफुल्ल पटेल, सीनियर बीजेपी नेता अरुण जेटली, वीएचपी नेता प्रवीण तोगड़िया, कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला और महाराष्ट्र के लोकनिर्माण मंत्री छगन भुजबल भी मौजूद थे।
इस मौके पर बॉलिवुड अभिनेता नाना पाटेकर, महेश मांजरेकर, संजय दत्त और रितेश देशमुख भी उपस्थित थे। ठाकरे की शवयात्रा मुंबई की प्रमुख सड़कों से गुजरते हुए 6 घंटे में शिवाजी पार्क मैदान पहुंची। इस शवयात्रा में लाखों शिवसैनिक और ठाकरे के समर्थक शामिल थे।
फिल्मों के बाद बाल ठाकरे का दूसरा सबसे पसंदीदा विषय था क्रिकेट। सुनील गावस्कर से सचिन तेंडुलकर तक, सभी उनका आशीर्वाद लेते रहे हैं। अपने दाहिने हाथ मनोहर जोशी के जरिये ठाकरे ने मुंबई क्रिकेट असोसिएशन (एमसीए) पर दो दशक तक एकछत्र राज रखा। एमसीए पर शिवसेना के दबदबे के वक्त वह दलबल के साथ वानखेड़े स्टेडियम जाया करते थे। प्रेस बॉक्स के आगे खुले में बने प्रेसिडेंट्स बॉक्स में उनका चुरुट पीता चेहरा आज भी नहीं भूलता।
पाकिस्तान का विरोध शिवसेना की क्रिकेट राजनीति की धुरी रहा है। 1991 में पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के मुंबई दौरे का शिवसेना ने मुखर विरोध किया था, लेकिन सरकार गाफिल होकर तैयारी में लगी रही। पाक टीम मुंबई पहुंच गई और प्रैक्टिस में लग गई तो शिवसेना के तत्कालीन विभाग प्रमुख शिशिर शिंदे की अगुवाई में छह शिवसैनिकों ने वानखेड़े स्टेडियम में तैनात डेढ़ सौ से अधिक पुलिसकर्मियों को चकमा देते हुए पिच ही खोद डाली। इस घटना के बाद पाकिस्तान के खिलाफ आज तक मुंबई में कोई टेस्ट मैच नहीं खेला जा सका है।
2009 में सचिन तेंडुलकर के श्मुंबई पूरे भारत कीश् वाले बयान पर बाल ठाकरे ने नाराजगी जाहिर की थी। उन्होंने सचिन को कांग्रेस की श्डर्टी पिक्चरश् बताया था। जब शाहरुख खान ने आईपीएल में पाकिस्तानी क्रिकेटरों को खिलाने की बात कही तो नाराज बाल ठाकरे का मूड देखकर श्माई नेम इज खानश् की रिलीज पर बादल छा गए थे। मानमनौव्वल के बाद कहीं जाकर मामला ठीक हुआ। बाल ठाकरे का क्रिकेट प्रेम तो अब पोते तक पहुंच गया है। आदित्य ठाकरे हाल ही में मुंबई क्रिकेट असोसिएशन से संबंधित क्लब यंग फ्रेंड्स यूनियन के अध्यक्ष चुने गए हैं।
बाल ठाकरे की कम्यूनिकेशन स्किल गजब की थी। अपने दौर में वह देश के आला कार्टूनिस्ट्स में शुमार होते थे। अगर ठाकरे के अंतर्मन में झांकना हो तो उनके बनाए कार्टूनों को देखा जा सकता है। महंगाई, गरीबी, भ्रष्टाचार, अलगाववाद, छुआछूत और सीमा विवाद जैसे मुद्दों पर उनके कार्टून सिस्टम की पोल खोलकर रख देते हैं। उनके कार्टूनों में आक्रोश भी झलकता है। अपने कार्टून संग्रह पर आधारित कॉफी टेबल बुक श्फटकारेश् में बाल ठाकरे ने लिखा है कि उन्होंने कार्टून बनाना सीखने के लिए कोई डिग्री नहीं ली।
कार्टूनिस्ट से शिवसेना प्रमुख बने बाल ठाकरे को सिनेमा से काफी लगाव था। अपने भाषणों में वह कभी-कभी सिनेमा के सुपरहिट डायलॉग्स का इस्तेमाल कर दिल जीत लेते थे। बॉलिवुड के कई सितारों से उनके घरेलू रिश्ते थे। दिलीप कुमार, लता मंगेशकर और अमिताभ बच्चन उनके दिल के काफी करीब थे।
किसी ज़माने में दिलीप कुमार के साथ वह मातोश्री की छत पर बैठकर बियर की चुस्कियों के साथ घंटों गपशप किया करते थे। लता मंगेशकर ने जब भी अपने किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम में उन्हें आमंत्रित किया, ठाकरे जरूर शामिल हुए। अमिताभ बच्चन जब श्कुलीश् की शूटिंग के दौरान घायल हुए थे और इमरजेंसी ऑपरेशन के लिए उन्हें बेंगलुरु से मुंबई लाया गया था, तो हवाई अड्डे से ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल ले जाने के लिए एंबुलेंस का प्रबंध खुद बालासाहेब ने किया था।
अमिताभ जब मौत के मुंह से बाहर निकले, तो ठाकरे ने हॉस्पिटल में उनसे मुलाकात की और अपने हाथों से बनाया एक खास कार्टून उन्हें भेंट किया था, जिसमें बताया गया था यमराज को अमिताभ ने पराजित कर दिया! इस यादगार कार्टून को बिग बी ने बड़े प्यार से संभालकर रखा है। अमिताभ उस दिन उनके मुरीद हो गए थे, जिस दिन ठाकरे ने भारत सरकार से उन्हें भारत रत्न देने की मांग की थी।