सोमवार, 12 नवंबर 2012

घपले घोटालों के प्रकाश में गुम गया घोषणापत्र


फेरबदल से क्या अलीबाबा . . . . 6

घपले घोटालों के प्रकाश में गुम गया घोषणापत्र

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। कांग्रेसनीत केंद्र सरकार द्वारा आठ सालों से देश पर शासन किया जा रहा है। दो बार चुनाव जीतने के बाद भी कांग्रेस के घोषणा पत्र के वायदे आज भी कोरे ही वायदे साबित हो रहे हैं कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व रणनीतिकारों यहां तक के संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार के घटक दलों को भी इस घोषणापत्र से कुछ लेना देना नहीं है जिसके आधार पर कांग्रेसनीत संप्रग सरकार के घटक दल आज सत्ता की मलाई चख रहे हैं।
कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10, जनपथ (बतौर सांसद सोनिया गांधी को आवंटित बड़ा सा सरकारी आवास) के उच्च पदस्थ सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि संगठन द्वारा केंद्र सरकार के मंत्रियों को कांग्रेस के घोषणा पत्र के आधे अधूरे वायदों को अमली जामा पहनाए जाने का एजेंडा अवश्य ही थमा दिया किन्तु मंत्री हैं कि कांग्रेस के इस घोषणा पत्र की बजाए निहित स्वार्थों को पूरा करने में ही लगे हुए हैं।
सूत्रों ने कहा कि केंद्र में मंत्री इस बात को लेकर भ्रम में हैं कि कुछ मामलों में वे क्या कार्यवाही करें, क्योंकि उन मसलों पर सोनिया गांधी का नजरिया ही साफ नहीं है। सूत्रों ने कहा कि तेलंगाना के साथ ही साथ अन्य क्षेत्रीयता वाले मामले, युवाओं को पंचायत में आरक्षण, जीएसटी लागू करना, महिला आरक्षण विधेयक जैसे मामले आज भी जस के तस ही पड़े हुए हैं। इन सभी की वेटिंग आज भी इसलिए कंफर्म नहीं हो पाई है क्योंकि इसमें शीर्ष नेतृत्व ने कोई फैसला ही नहीं लिया है।
सोनिया गांधी के करीबी सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को यह भी बताया कि चुनाव की पदचाप और राज्यों में कांग्रेस के औंधे मुंह गिरने से कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व अब बैकफुट पर आकर चिंताग्रस्त हो गया है। शीर्ष नेतृत्व को लगने लगा है कि जिस तरह उत्तर प्रदेश, गुजरात और मध्य प्रदेश में संगठन की कमर बुरी तरह टूट चुकी है उसी तरह कहीं देश में कांग्रेस का नामोनिशान ही ना मिट जाए।
कांग्रेस मुख्यालय में पदस्थ एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने नाम उजागर ना करने की शर्त पर समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से कहा कि दरअसल, सोनिया गांधी रीढ़ विहीन लोगों से घिरी हुईं हैं, जिसके चलते कांग्रेस सर्वनाश के मार्ग पर आगे बढ़ चुकी है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को अपना घोषणापत्र देखना चाहिए और उसमें आम आदमी से किए गए वायदों को प्रथमिकता के आधार पर पूरा करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि वैसे तो तेलंगाना को आंध्र प्रदेश से अलग कर प्रथक राज्य बनाने की बात कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में नहीं कही थी किन्तु अब हालात बहुत ही ज्यादा बदल चुके हैं। आंध्र प्रदेश के कांग्रेस के नेता ही इस मामले में शीर्ष नेतृत्व की चुप्पी के चलते बुरी तरह कसमसा रहे हैं। दरअसल, तेलंगाना राज्य की जनता इन नेताओं को लंबे समय से कोस रही है, लोकसभा में इस मामले को पुरजोर तरीके से ना उठा पाने के चलते अनेक कांग्रेस के नेताओं की बुरी गत हो रही है।
उक्त वरिष्ठ पदाधिकारी ने याद दिलाते हुए समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से कहा कि वर्ष 2009 के घोषणा-पत्र में कांग्रेस ने कहा था, कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस यह मानती है कि कुछ बड़े राज्यों के पिछड़े इलाकों का समग्र विकास नहीं हो पाया है। इसकी वजह से अलग राज्य की मांग भी उठी है। हमने इन क्षेत्रों के लिए कई विशेष योजनाएं और कार्यक्रम शुरू किए हैं। ऐसे इलाकों में अलग-अलग प्रकार की समस्याओं के निराकरण भी अलग तरीकों से ही किया जा सकता है। इसलिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इन क्षेत्रों की मांग को पूरा करने का भरपूर प्रयास करेगी। तेलंगाना से जुड़े नेताओं का कहना है कि पार्टी को क्षेत्रीय आकांक्षाओं को पूरा करने का अपना वादा पूरा करना चाहिए। लेकिन बार-बार नई समयसीमा देकर धैर्य की सलाह दी जाती है।
इसके साथ ही साथ कांगेस ने यह वायदा भी अपने घोषणा पत्र के किया था कि वह देश में स्कूलों की पाठ्य-सामग्री के लिए एक राष्ट्रीय संस्था का गठन करेगी। पार्टी ने यह भी वादा किया था कि देश भर में स्कूलों की सभी पाठ्य-सामग्री को एक राष्ट्रीय संस्था के अंतर्गत लाएगी, भले स्कूल की स्थापना किसी संस्था या संप्रदाय ने की हो। लेकिन अंदरूनी विवादों के चलते सरकार नेशनल टेक्स्ट बुक काउंसिल बनाने का प्रस्ताव अमल में नहीं ला सकी। अभी भी इस मसले पर कोई जोर नहीं।
पार्टी के घोषणा पत्र में अनेक वायदे ऐसे हैं जिनकी अभी इबारत भी नहीं लिखी गई है। कहा जा रहा है कि लूट सके तो लूट की तर्ज पर मंत्रियों ने कांग्रेस के इस घोषणा पत्र पर धूल डालकर अपने निहित स्वार्थ ही साधे गए हैं। कांग्रेस के एक अन्य पदाधिकारी ने भी पहचान उजागर ना करने की शर्त समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से कहा कि कांग्रेस में अब अराजकता हावी हो गई है। पार्टी में अब आलाकमान नाम की ही चीज नहीं बची है। किसी को भी पार्टी आलाकमान का खौफ ही नहीं बचा है।
हाल ही में कांग्रेस के सांसद सज्जन सिंह वर्मा ने पार्टी के आला नेताओं को आड़े हाथों लेते हुए कहा था कि पार्टी के शीर्ष नेता दिल्ली के वातानुकूलित कक्षों से बाहर ही नहीं निकलना चाहते हैं। पार्टी के नेता जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं के हाल चाल जानने का प्रयास भी नहीं करते हैं। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से दूरभाष पर चर्चा के दौरान सांसद सज्जन सिंह वर्मा ने कहा कि पार्टी के आला नेता यह अवश्य कहते फिरते हैं कि पार्टी में कोई गुटबाजी नहीं है, वास्तव में गुटबाजी ये आना नेता ही फैलाते हैं।
श्री वर्मा ने आगे कहा कि पार्टी के नेताओं को जगाना ही होगा वरना आने वाले दिनों में कांग्रेस का नामलेवा ही नहीं बचेगा। कार्यकर्ताओं के बीच में जाने से ही वास्तविकता का भान हो सकेगा। दिल्ली में वातानुकूलित कक्षों में बैठकर कागजी घोड़े दौड़ाने से किसी का फायदा नहीं होने वाला है। ज्ञातव्य है कि मध्य प्रदेश में 2003 के बाद कांग्रेस का नामलेवा भी नहीं बचा है। लगातार नौ साल तक सत्ता से बाहर रहने के चलते अब कांग्रेस का झंडा और डंडा उठाने वालों का टोटा भी साफ दिखने ही लगा है।

पटवा को बधाई, हरवंश को भूली सरकार!


लाजपत ने लूट लिया जनसंपर्क ------------------ 11

पटवा को बधाई, हरवंश को भूली सरकार!

(राजेश शर्मा)

भोपाल (साई)। मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार वैसे तो दलगत भावना से उपर उठकर काम करने की बात कहती है पर जब इसे अमली जामा पहनाने की बारी आती है तब भाजपा का सगा और सौतेला होने का भान अपने आप होने लगा है। मध्य प्रदेश सरकार के जनसंपर्क विभाग द्वारा 11 नवंबर को जारी विज्ञप्तियों में पूर्व मुख्यमंत्री सुंदर लाल पटवा को उनके जन्म दिन पर तो बधाई प्रेषित की गई किन्तु मध्य प्रदेश विधानसभा के उपाध्यक्ष और कांग्रेस विधायक हरवंश सिंह के मामले में जनसंपर्क विभाग ने मौन ही साध लिया है।
मध्य प्रदेश सरकार की जनहितकारी योजनाओं के प्रचार और प्रसार के लिए पाबंद जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी खबर के अनुसार राज्यपाल श्री राम नरेश यादव ने प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री सुंदरलाल पटवा को 11 नवंबर को उनके जन्म-दिवस पर आत्मीय शुभकामनाएँ और बधाई दी हैं। राज्यपाल श्री यादव ने अपने शुभकामना संदेश में कहा है कि श्री पटवा का जीवन सुदीर्घ, सुखी, समृद्ध और यशस्वी हो। उन्होंने आशा व्यक्त है कि श्री पटवा सुदूर भविष्य तक युवा पीढ़ी का मार्गदर्शन करते रहेंगे।
वहीं एक जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी एक अन्य खबर के अनुसार मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान ने आज पूर्व मुख्यमंत्री श्री सुंदरलाल पटवा के निवास पहुँचकर जन्म-दिन की बधाई दी।
मुख्यमंत्री श्री चौहान ने श्री पटवा को पुष्प-गुच्छ भेंट कर उनके स्वस्थ तथा दीर्घ जीवन की कामना की। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि श्री पटवा का मार्गदर्शन हमेशा मिलता रहा है। श्री पटवा ने प्रदेश की जनता की अविस्मरणीय सेवा की है तथा मध्यप्रदेश के विकास में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने अपनी पत्नी श्रीमती साधना सिंह और बेटों कुणाल और कार्तिक के साथ श्री पटवा के निवास पहुँचकर शुभकामनाएँ दीं। इस अवसर पर श्री पटवा की धर्मपत्नी श्रीमती फूलकुँवर तथा बड़ी संख्या में कार्यकर्ता और पदाधिकारी मौजूद थे।
जनसंपर्क विभाग की वेब साईट एमपी इन्फो डॉट ओआरजी को पूरा खंगालने पर भी कांग्रेस के विधायक किन्तु मध्य प्रदेश विधानसभा के उपाध्यक्ष जैसे संवैधानिक पद की आसनी पर विराजे हरवंश सिंह ठाकुर के जन्म दिवस के बारे में कुछ भी उल्लेख नहीं मिलना इस बात का घोतक है कि भाजपा सरकार के नियंत्रण वाला जनसंपर्क विभाग भाजपाईयों के साथ सगा और विपक्षी दलों के साथ सौतेला व्यवहार ही कर रहा है।
समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के पूना ब्यूरो से विनीता विश्वकर्मा ने बताया कि अपने जन्म दिवस पर हरवंश सिंह ठाकुर महाराष्ट्र प्रदेश के अहमदनगर जिले के पवित्र कस्बे शिरडी में साई बाबा के समक्ष रहे। वहीं दूसरी ओर कुछ समाचार पत्रों में विधानसभा के जनसंपर्क अधिकारी दीपक दुबे के हवाले से अवश्य ही हरवंश सिंह का किसानी से राजनीति तक का सफरप्रकाशित किया गया है।


दो दर्जन मुन्ना और मुन्नी भाई रिमांड पर!

(विक्की आनंद)

चंडीगढ़ (साई)। केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो ने मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं में धांधली में अत्याधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल करने के एक रैकेट का भंडाफोड़ करते हुये सात लड़कियों समेत १४ लोगों को १५ नवंबर तक रिमांड पर लिया है। सीबीआई के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि १४ लोगों को चंडीगढ़ में गिरफ्तार किया गया जो कथित रूप से पोस्ट ग्रेजुएड इंस्टीट्यूट- पीजीआई  चंडीगढ़ की स्नातकोत्तर परीक्षा के प्रश्नपत्र हल करवाने के लिए हरेक उम्मीदवार से ५० लाख रुपये लिया करते थे।
सीबीआई ने तीन लोगों को पटना में और एक व्यक्ति को हैदराबाद में भी इस सिलसिले में हिरासत में लिया है। सीबीआई अधिकारियों ने परीक्षा केंद्रों पर छापा मारकर सात व्यक्तियों को गिरफ्तार किया जो ब्लूटूथ उपकरण लगाकर प्रश्नों के उत्तर लिख रहे थे। छापों  के दौरान यह भी पाया गया कि कुछ महिला उम्मीदवार कैमरा, फोन, ब्लूटूथ जैसे उपकरणों का इस्तेमाल कर चंडीगढ़ के पीजीआई की एमडी प्रवेश परीक्षा के प्रश्नों को परीक्षा केंद्र के बाहर मौजूद लोगों तक पंहुचा रहीं थीं।

पाक ने किया था आतंकियों को प्रशिक्षित!


पाक ने किया था आतंकियों को प्रशिक्षित!

(साई इंटरनेशनल डेस्क)

रावलपिण्डी (साई)। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई पर हुए अब तक के सबसे आतंकी हमले में पाकिस्तान का हाथ होन के अनेक सबूतों के बाद भी पाकिस्तान ने इस बारे में अपनी ओर से किसी भी तरह की स्वीकरोक्ति नहीं की थी। अब पाकिस्तान ने ही इस बात को स्वीकार किया है कि उसका मुंबई हमले में हाथ है।
समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को प्राप्त जानकारी के अनुसार पाकिस्तान के अधिकारियों ने स्वीकार किया है कि लश्करे तैयबा ने २६ नवम्बर के मुंबई हमले के आतंकियों को प्रशिक्षण दिया था। संघीय जांच एजेंसी और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आई एस आई के अधिकारियों ने रावलपिंडी की विशेष अदालत में अपना बयान दिया है कि मुंबई हमले के आतंकियों को सिंध और खैबर पख्तूनवा प्रांतों तथा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में प्रशिक्षित किया गया। उन्होंने अदालत को बताया कि लश्करे तैयबा के प्रशिक्षण शिविर कराची और मानशेरा जिले में बट्टल तथा पाकिस्तान कब्जे वाले कश्मीर में मुजफ्फराबाद में चल रहे थे।

जेल की कार्यवाही नरसंहार!


जेल की कार्यवाही नरसंहार!

(एन.विश्वनाथन)

नई दिल्ली (साई)। हाल ही में वेलीकाड़ा जेल में कथित तौर पर हुए गुटीय संघर्ष को रोकने की गई कार्यवाही को श्रीलंका के विपक्षी दलों ने नरसंहर की संज्ञा दी है। श्रीलंका के मुख्य विपक्षी दल ने वेलीकाड़ा जेल में हुए दंगों से निपटने में सुरक्षाबलों की कार्रवाई की कड़ी निंदा की है और इसे सुरक्षा कर्मियों के हाथों नरसंहार बताया है।
यूनाइटेड नेशनल पार्टी ने इन दंगों में २७ कैदियों की मौत की संसदीय जांच की मांग की है। भारतीय उच्चायोग के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि उच्चायोग के अधिकारी भारतीय कैदियों के बारे में जानने के लिए राजनयिक प्रयास जारी रखे हुए हैें,
यूएनसी पार्टी प्रवक्ता मंगला समरवीरा ने कहा कि सरकार द्वारा गठित जांच कमेटी की बजाय निष्पक्ष जांच होनी जरूरी है।  भारतीय उच्चायुक्त श्री अशोक कांत ने समाचार एजेंसी ऑॅफ इंडिया को बताया कि श्रीलंका सरकार के अनुसार लूटे गए हथियार बरामद होने और जेल में स्थिति पूरी तरह सामान्य होने पर भारतीय अधिकारियों को कैदियों से मिलने के लिए ले जाया जा सकता है। खबरों के अनुसार लूटे हुए हथियारों की संख्या ८० से कई अधिक हो सकती है कितने कैदी लापता है इसकी पुष्टि अभी तक नहीं हो सकी है।
वहीं पुलिस ने दंगों के दौरान जेल से भाग निकले कैदियों की संख्या की न तो पुष्टि की है और न ही मरने वालों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट जारी की है।

सफेद चादर से ढक गए पूर्वोत्तर के पहाड़

(दीपमाला दत्ता)

शिमला (साई)। हिमाचल प्रदेश के पर्वतीय इलाकों में मौसम इन दिनों खुशनुमा है। राज्य की पर्वत श्रृंखलाओं में बर्फ की सफेद चादर से नजारा मनमोहक हो उठा है। बर्फबारी से राज्य के कुछ इलाकों में आवागमन पर इसका बुरा असर पड़ा है। ऊंची पहाडिय़ों पर बर्फबारी के कारण मनाली-लेह मार्ग पर वाहनों की आवाजाही बंद हो गई है। ठंड से बारालाचा दर्रे सहित भरतपुर सीटी से दारचा तक मार्ग जोखिम भरा हो गया है।
बीआरओ के जवान रोहतांग दर्रे में थोड़ी बहुत बर्फबारी होने पर रोहतांग मार्ग को खुला रखने का प्रयास करेंगे। बीआरओ का कहना है कि जवान बारालाचा दर्रे के भरतपुर सीटी और दारचा सहित रोहतांग मार्ग को खोलने में जुटे हैं। मौसम ने साथ दिया तो कुछ दिनों बाद सड़क पर फिर गाडिय़ों दौड़ेंगी।
उधर, मनाली से समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के ब्यूरो ने बताया कि पर्यटक स्थल रोहतांग सहित लाहौल और मनाली की ऊंची पहाडिय़ों पर बर्फबारी का क्रम शुरु हो गया है। इसको देखते हुए लाहुलियों ने मनाली का रुख करना शुरु कर दिया है। शनिवार को रोहतांग सहित घाटी की ऊंची चोटियों में बर्फ की चांदी बिछ गई।
रोहतांग सहित भृगु और दशौहर की पहाडिय़ों, धुंधी जोत, मनालसू जोत, हनुमान टिब्बा, मकरवेद, शिकरवेद और इंद्र किला सहित घाटी की ऊंची चोटियों में हिमपात हुआ। ठंड बढ़ती देख घाटी के लोग लकड़ी व अन्य गर्म उपकरणों की व्यवस्था में जुट गए हैं। गैस आसानी से नहीं मिलने के कारण घाटी में लकड़ी की कीमतें आसमान छू रही हैं।
मौसम खराब होने से सैलानियों ने भी गर्म कपड़ों की दुकानों का रुख कर लिया है। गर्म कपड़ों की दुकानों सहित बिजली की दुकानों में भी चहल-पहल बढ़ गई है। बाजार के दुकानदारों का कहना है कि मौसम खराब होने से हीटर सहित बिजली के गर्म उपकरणों की मांग बढ़ गई है।

18 को बद्रीविशाल जाएंगे आराम फरमाने


18 को बद्रीविशाल जाएंगे आराम फरमाने

(अर्जुन कुमार)

देहरादून (साई)। गढवाल में स्थित प्रसिद्ध बद्रीनाथ धाम के आगामी 18 नवंबर को कपाट बंद होने के मौके पर आसमान से हेलीकाप्टर द्वारा फूल बरसाये जायेंगे। बरेली से फूलों को लाकर सेना के हेलीकाप्टर कपाट बंद होने के मौके पर बद्रीनाथ मंदिर पर आसमान से फूल बरसायेंगे।
बद्रीनाथ समिति के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के गढ़वाल ब्यूरो ने बताया कि इस कार्यक्रम को सेना के साथ मिलकर अंतिम रुप दे दिया गया है। कपाट बंद होने पर बद्रीनाथ मंदिर को गेंदे के फूलों से सजाने की परंपरा रही है और इन कार्यक्रमों का आयोजन बद्रीनाथ समिति और सेना मिलकर करते रहे हैं।
अब तक सेना के बैंड और निशुल्क भोजन की व्यवस्था कपाट बंद होने और खुलने वाले दिन रहा करती थी, लेकिन इस बार नजारा कुछ बदला बदला रहेगा जब सेना के हेलीकाप्टर आसमान से फूलों की बारिश भी करेंगे। इस कार्यक्रम को देखने के लिये श्रद्धालुओं की भारी भीड जुटने की संभावना है।

असावधानी के चलते पटाखा बजार स्वाहा


असावधानी के चलते पटाखा बजार स्वाहा

(अभय नायक)

रायपुर (साई)। छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में असावधानी के चलते पटाखा बाजार में ही आग लग गई। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के अंबिकापुर ब्यूरो से मिली जानकारी के अनुसार पीजी कॉलेज ग्राउंड में लगे पटाखा बाजार में रविवार देर शाम लगभग पौने आठ बजे अचानक आग लग गई।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनसुार चंद मिनटों में ही विकराल हुई आग में 23 दुकानें जलकर खाक हो गई, जिसमें लगभग 50 लाख रूपए का नुकसान हो गया। पटाखे खरीदने आए लोगों की 8 मोटरसाइकिलें भी जल गई। इसमें कोई हताहत नहीं हुआ। आग भड़कती देख आनन-फानन में शेष 59 दुकानों को खाली करा लिया गया।
आग लगने का कारण चाइनीज बंदूक में टेस्टिंग के दौरान विस्फोट को बताया जा रहा है। पीजी कॉलेज ग्राउंड में 82 पटाखा दुकानें लगी थीं। देर शाम अचानक यहां आग भड़क गई, जिसमें 23 दुकानें खाक हो गई। आग की सूचना मिलते ही फायर ब्रिगेड की तीन गाडियां मौके के लिए निकलीं, लेकिन दो ही आग बुझाने के काम आ सकीं। 

‘फोर्ब्स’ की सूची में दो स्वदेशी


फोर्ब्सकी सूची में दो स्वदेशी

(यशवंत)

न्यूयार्क (साई)। फोर्ब्स पत्रिका ने डेटाविंडकंपनी के भारतीय मूल के मुख्य कार्यपालक अधिकारी सुनीत सिंह टुली और मैसाचुसेट्स प्रौद्योगिकी संस्थान एमआईटी के प्रोफेसर अनंत अग्रवाल को उन शीर्ष 15 लोगों की सूची में शामिल किया है, जो नवीन प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव लाए हैं।
डेटाविंड वह कंपनी है जिसने भारत में सबसे कम कीमत वाले आकाशटैबलेट का निर्माण किया है। पत्रिका ने कहा है कि 44 वर्षीय सुनीत विश्व के सबसे सस्ते टैबलेट कंप्यूटर आकाशके मुख्य योजनाकार हैं, जिसमें ‘‘विकासशील देशों में शिक्षा में क्रांतिकारी बदलाव लाने की क्षमता है।’’ गौरतलब है कि इस कंपनी के पास लाखों लोगों ने आकाशकी बुकिंग के आवेदन दिए हुए हैं। पत्रिका के अनुसार सुनील ने कहा, ‘‘मुझे आईपैड से प्रतिद्वंदिता की कोई परवाह नहीं है। मुझे उन तीन अरब लोगों की परवाह है, जिनको इसकी जरुरत है।’’
सूची में शामिल दूसरे भारतीय एवं एमआईटी के कंप्यूटर विज्ञान विभाग में प्रोफेसर अनंत अग्रवाल एडएक्सके प्रमुख भी हैं। एडएक्स हावर्ड, एमआईटी, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय और टेक्सासा विश्वविद्यालय की ओर से इंटरनेट के जरिए पढाने का नया संयुक्त प्रयास है। मौजूदा वक्त में विश्व भर में चार लाख से भी अधिक लोग इस शैक्षिक कार्यक्रम से जुडे हुए हैं।
इस साल मई में एडएक्सके प्रमुख बनने वाले प्रोफेसर अग्रवाल ने कहा, ‘‘हमने विश्व भर में विद्यार्थियों को बडे पैमाने पर उपलब्धता दिलाई है। आनलाइन पढाई में बदलाव कर हम परिसर की अपनी क्षमता में बडा सुधार ला सकते हैं।’’ फोर्ब्स पत्रिका के अनुसार शिक्षा के क्षेत्र के इन 15 अन्वेषकों ने प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से स्नातक विद्यालयों में पढाने के तरीके से लेकर अगली पीढी के शिक्षकों को प्रशिक्षित करने तक में बदलाव लाया है।
इस सूची में शामिल अन्य लोगों में खान अकादमी के बांग्लादेशी-अमेरिकी संस्थापक सलमान खान भी शामिल हैं। खान अकादमी आनलाइन शिक्षा के क्षेत्र की बहुचर्चित संस्था है। एमआईटी और हावर्ड से पढाई कर चुके 36 वर्षीय खान ने मुख्यतरू विज्ञान एवं गणित की शिक्षा संबंधी ती हजार 400 वीडियो बनाए हैं, जिसे अबतक 20 करोड से भी अधिक लोग देख चुके हैं। यूट्यूबपर खान अकादेमी के चार लाख से भी अधिक उपभोक्ता हैं।

राखी ने जमकर कोसा दिग्गी राजा को!


राखी ने जमकर कोसा दिग्गी राजा को!

(निधि गुप्ता)

मुंबई (साई)। अपने तीखे और विवादित बयानों के लिए मशहूर कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने राखी सावंत की तुलना अरविंद केजरीवाल से करके बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया है। दिग्विजय सिंह के माफी मांगने के बाद भी राखी का गुस्सा शांत नहीं हुआ है और उन्होंने कांग्रेस महासचिव के खिलाफ मानहानि का मुकदमा करने की बात कही है।
गौरतलब है कि दिग्विजय सिंह ने रविवार को कोलंबिया यूनिवर्सिटी के एक छात्र के ट्वीट के हवाले से कहा था कि अरविंद केजरीवाल और राखी एक समान हैं। दोनों सिर्फ एक्सपोज करते हैं और उनके पास दिखाने-बताने को कुछ नहीं होता। हालांकि, दिग्विजय ने इस तरह की टिप्पणी करने के लिए बाद में राखी से माफी भी मांगी ली। दिग्विजय ने ट्वीट में राखी का मजाक न उड़ाने की मंशा जाहिर करते हुए लिखा, कि वे इसके लिए उनसे माफी चाहते हैं और वे उनके पुराने फेन हैं।
कांग्रेस महासचिव के इस बयान के बाद राखी सावंत उनसे नाराज हैं। उन्होंने दिग्गी को जमकर कोसते हुए कहा, कि वह अपना काम क्यों नहीं करते? मेरी बॉडी, मैं जैसे चाहूं काम करूं। दिग्विजय सठिया गए हैं, केजरीवाल और मुझ में जमीन-आसमान का अंतर है।
राखी ने यह भी कहा, कि नेता लोग लड़कियों के विडियो देखते हैं, मेरे भी देखते होंगे। कभी कोई मिक्का-चिक्का, कभी दिग्विजय। अभी तो उन्होंने मुझे छेड़ा है। उन्हें समझ आ जाना चाहिए, जनता भूखी मर रही है। काम करो काम . . .। दिग्विजय को कानूनी कार्रवाई की धमकी देते हुए राखी ने कहा, उन्हें अब पता चलेगा कि मैं क्या कर सकती हूं। वकील से मैं बात कर रही हूं। मैं उनके खिलाफ कोर्ट में मानहानि का दावा करूंगी। उन्हें मेरे लिए इस तरह बोलने का कोई हक नहीं था, वह अपने गिरेबां में क्यों नहीं झांकते।

दिल्ली में प्लेटफार्म टिकिट बंद!


दिल्ली में प्लेटफार्म टिकिट बंद!

(महेश रावलानी)

नई दिल्ली (साई)। दीपावली और छठ पर्व के मौके पर यात्रियों की अतिरिक्त भीड़ को नियंत्रित करने के उद्देश्य से उत्तर रेलवे ने राजधानी दिल्ली के चार प्रमुख स्टेशनों पर प्लेटफार्म टिकटों की बिक्री पर अस्थायी रूप से रोक लागने का निर्णय किया है। उत्तर रेलवे के प्रवक्ता ने समाचार एजेंसी ऑॅफ इंडिया को बताया कि सोमवार सुबह ग्यारह बजे से नयी दिल्ली, पुरानी दिल्ली, आनंद विहार और हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशनों पर प्लेटफार्म टिकटों की बिक्री बंद रहेगी। प्लेटफार्म टिकटों की बिक्री पर यह रोक 23 नवम्बर को ग्यारह बजे दिन तक जारी रहेगी। उन्होंने कहा कि त्यौहारों के दौरान स्टेशनों पर भीड़ भाड़ को नियंत्रित करने के उद्देश्य से राजधानी के इन चार स्टेशनों पर प्लेटफार्म टिकटों की बिक्री पर रोक लगायी गयी है।

4 दिसम्बर को दिल्ली में गरजेंगे वीएम सिंह


4 दिसम्बर को दिल्ली में गरजेंगे वीएम सिंह

(सचिन धीमान)

मुजफ्फरनगर। (साई)। रंगराजन रिपोर्ट के विरोध में तथा गन्ना किसानों को उनका हकों को वापिस दिलाने हेतु गन्ना किसानों से राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय संयोजक एवं पूर्व विधायक वीएम सिंह ने एक बार फिर कमर कस ली है। वीएम सिंह एक बार फिर चीनी मिल मालिकों को उनके चाल से पलटवार करने जा रहे है। इस बार चीनी मिल मालिकों को रंगराजन रिपोर्ट को लागू न होने देकर किसानों को महाराष्ट्र व गुजरात के किसानों की तरह गन्ने का भुगतान दिलाने में जुटे है। इस बार वीएम सिंह ने अपनी ताकत को बढाने व केन्द्र सरकार द्वारा रंगराजन रिपोर्ट को रद्द कर किसानों को राहत न दी तो वह लाखों किसानों के साथ 4 दिसम्बर को दिल्ली कूच कर जायेंगे और रंगराजन रिपोर्ट के रद्द होने तक दिल्ली में आंदोलन करेंगे।
राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय संयोजक एवं पूर्व विधायक वीएम सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि  वह पिछले 20 वर्षों से किसानों के हकों के लिए हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में जाकर लड़ाई लड़ी उनके उनके पक्ष में कई आदेश पारित किए गए। जिनमें एक सोसाइटी में एक रेट, राज्य सरकार को गन्ना मूल्य तय करने का अधिकार, 14 दिन की देरी के बाद गन्ना भुगतान पर 15 फीसदी ब्याज, जब तक गन्ना मूल्य ना दिया जाए तब तक किसानों के खिलाफ कृषि वसूली पर रोक (अ) जब तक करार किया गया गन्ना ना पेरा जाए तब तक मीलों का चलना अनिवार्य और मील के ना पेरने पर खड़े गन्ना का पैसा देने के आदेश व शुरूआती वैराइटी जारी रहेगी। आदि। उन्होंने कहा कि इस आदेश के बाद सैंकड़ों साल किसान खड़ा रहे और सरकारी एवं मील मालिकों की लूट से बच सकेगा परंतु मील मालिकों की सोच मुझसे बहुत विपरित थी। वो किसानों को किसी भी कीमत परे लूटना चाहते हैं। 2004 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने केन्द्र सरकार के रेट एसएमपी को न्यूनतम माना और राज्य सरकार को गन्ना मूल्य (एसएपी) तय करने का अधिकार दिया। मिल मालिकों को तब 1996-97 एवं 2002-03 और 2003-04 में लगभग 1000 करोड़ रुपए डेफर पेमेन्ट देना पड़ा। जिसके बाद मील मालिकों ने केन्द्र सरकार के साथ मिलकर नई रणनीति बनाई। उन्होंने बताया कि केन्द्र ने कानून में संशोधन करके एसएमपी के बदले एफआरपी (उचित एवं लाभकारी मूल्य कर दिया। 2011 में सुप्रीम कोर्ट जब 2003-04 से 2008-09 गन्ना मूल्य की अपील सुन रहा था मिल मालिकों ने एफआरपी देने की मांग की। (एफआरपी, एसएपी से लगभग 40 फीसदी कम होता है।) मिल मालिकों को 17।जनवरी 2012 को झटका लगा जब सुप्रीम कोर्ट ने एसएपी और एसएमपी के विवाद को 7 जजों की बैंच को भेजा पर वीएम सिंह की समझौता मूल्य और एक सोसाइटी में एक रेट की दलील को मानते हुए आपको 2006-07 का एवं 2007-08 का 7 रुपए एवं 15-20 रुपए क् लगभग 1300 करोड़ के डेफर पेमेंट का आदेश दिया। जिसके बाद मील मालिकों को अहसास हुआ कि अब उन्हें किसानों को हराने के लिए कोई और रणनीति अपनानी पड़ेगी। उन्हें एहसास हुआ कि वीएम सिंह के होते हुए किसानों को हराना नामुमकिन है। उन्होंने नई रणनीति बनाते हुए 20 जनवरी 2012 को प्रधानमंत्री कार्यालय ने सी।रंगराजन समिति का गठन किया और उस समिति ने उत्तर-प्रदेश एवं उत्तर-भारत के प्रांतों के विरोध के बावजूद अपनी 05 अक्टूर 2012 की रिपोर्ट में गन्ना किसानों को बर्बाद और मिल मालिकों को आबाद करने की योजना प्रस्तुत की। जहां किसानों की लड़ाई गन्ना रेट की होती है, इस रिपोर्ट में ये भी साफ किया गया है कि राज्य सरकार अपना गन्ना मूल्य (एसएपी) घोषित नहीं करेगी, साथ में आरक्षण और उसके साथ जुड़े फार्म सी का समझौता खत्म करने की सिफारिश और जो राज्य सरकार आरक्षण करना चाहे तो कम-से-कम तीन साल या पांच साल का आरक्षण मिल को देना होगा, वहीं दूसरी तरफ मिल मालिकों को लेवी शुगर, रिलीज आर्डर में केन्द्र सरकार का दखल खत्म करना, आयात-निर्यात पर छूट एवं मिलों को हर कहीँ से लाभ देने का काम किया। उन्होंने बताया कि लेवी शुगर के खत्म करने से मिलों को एक साल में 3000 करोड़ रुपए का फायदा होगा। उन्होंने कहा कि हमें मिलों के पक्ष की सिफारिश से मतलब नहीं है। हमें तो अपने-आपको बचाना है। चीनी मिल इन 20 सालों के हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों से दुखी हैं। वीएम सिंह ने कहा कि कानून का तोड़ उनके पास नहीं था। इसलिए रंगराजन समिति ने डीकंट्रोल के नाम पर अपनी रिपोर्ट में कानून खत्म करने की ही सिफारिश कर दी। ना रहेगा बांस, ना बजेगी बांसुरी उनका कहना है कि किसान मिल मालिक से खरीद-फरोख्त की सीधी बात करें। इससे किसान को लाभ होगा। राज्य सरकार एसएपी निर्धारित नहीं करेगी। मील मालिक जो भी रेट तय करें पर उन्हें कम-से-कम केन्द्र सरकार का एफआरपी देना होगा जो की इस सीजन का 170 रुपए प्रति क्विंटल है और साथ-साथ किसानों के बेवकूफ बनाने के लिए कहा गया कि 1031 प्रतिशत रिकवरी पर चीनी का 70 प्रतिशत मूल्य गन्ना मूल्य में देना होगा। जहां तक इस रिपोर्ट का सवाल है यह रिपोर्ट पूरी तरह खारिज नहीं हो सकती क्योंकि कर्नाटक, तमिलनाडु, गुजरात और आंध्र-प्रदेश में जहां आपसे एक एकड़ में दोगनी पैदावार होती है और आपकी 9 फीसदी रिकवरी के बदले में उनके यहां 12 से 14 फीसदी रिकवरी होती है। इसलिए उनको इस रिपोर्ट से कोई नुकसान नहीं है बल्कि 1031 फीसदी चीनी रिकवरी पर चीनी के 70 फीसदी दाम मिलने की बात पर उनको तो 85 फीसदी चीनी का रेट मिलेगी जो कि अंदाज से चीनी का रेट 30-32 रुपए मानते हुए गन्ने का रेट लगभग  250 रुपए मिलेगा। वहीं उत्तर-भारत में नौ फीसदी रिकवरी पर चीनी का 50-52 फीसदी मिलेगा जो कि लगभग एफआरपी 170 से भी कम होगा। अब आप देखिए बिना आरक्षण के, बिना राज्य सरकार के रेट के आपकी चीनी मीलें क्रशर या कोल्हू की तरह खरीद करेंगी। जिससे किसान फिर 50 साल पीछे चले जाओगे, जहां कुछ साल पहले आप अपनी पर्ची साहूकार के पास रखकर गन्ने के पैसे लेते थे। जहां तक रेट का सवाल है जितनी लंबी लाइन लग जाएगी, लाइन देखते ही मील मालिक कोल्हू एवं क्रशर जैसे गन्ने का रेट कम कर देंगे। भाईयों, आज जब कानून भी है। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश किसानों हक में भी है। तब भी सरकार किसानों का साथ नहीं देती। इसी साल किसानों ने देखा कि जब 20 अपै्रल 2012 को सुप्रीम कोर्ट ने मिल मालिकों को 3 किस्तों में 2011-12 का गन्ना मूल्य का बकाया 5400 करोड़ रुपए देने का आदेश दिया और कहा कि किस्त टूटने पर देने का आदेश दिया और कहा कि किश्त टूटने पर मिल मालिकों से रिकवरी की जाए परंतु वहीं दूसरी किस्त टूटने पर भी किसी की रिकवरी नहीं की जाए। पर दूसरी किश्त टूटने पर भी किसी की रिकवरी नहीं की गई। उन्होंने कहा कि 6 अगस्त 2012 के हाईकोर्ट के आदेश के तहत किसानों की वसूली पर रोक तो लग गई पर भुगतान में 14 दिन की देरी के बाद ब्याज आज तक नहीं मिला। सरकार उन आदेशों को लागू नहीं कराती। आज भी कुछ मिलों ने गन्ना मूल्य नहीं दिया। कल जब कानून नहीं रहेगा। वीएम सिह ने किसानों को चेताया कि हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट के आदेश लागू नहीं रहेंगे तो किसान अपने गन्ने का मूल्य कैसे लोगे। मिल मालिक किसानों को पटकनी पर पटकनी लगाते रहेंगे। उन्होंने कहा कि कोई राजनीतिक लोग आपको बहकाने की बात करें कि भाई राज्य सरकार इस रिपोर्ट को नहीं मानेगी और कोई फर्क नहीं पड़ेगा। ये गलत है। राज्य सरकार की रिपोर्ट मानने या नहीं मानने से फर्क नहीं पड़ता क्योंकि ये रिपोर्ट दिल्ली द्वारा गठित की गई समिति की है। उन्होंने कहा कि कंट्रोल आर्डर 1966 में संसद से संशोधन की बात कही है और संशोधन होने पर यह राज्य सरकार पर बाध्य होगी।
उन्होंने किसानों से किसानों से कहा कि मैंने जिंदगी में कोशिश तो की थी कि आपके हक दिलाने के लिए ऐसे प्रयास कर जाऊं  कि यहां ना रहने पर आपको, आपकी आने वाली पीढ़ियों को उसका लाभ मिले। मुझे उम्मीद नहीं थी कि सरकार हमें बर्बाद करने वाली रिपोर्ट लागू करेगी पर 12 अक्टूबर को केन्द्र के खाद्य मंत्री ने इस रिपोर्ट को स्वीकार करने की बात कही, तब मेरे पैरों से जैसे जमीन खिसक गई हो। उन्होंने कहा कि इसके बाद ऐसा लगा कि अब किसानों को खुद दिल्ली आकर अपनी बात स्वंय कहनी पड़ेगी। इस सम्बंध में लिखित में 2 नवंबर 2012 को प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर मांग की गयी थी कि उत्तर-भारत को इस रिपोर्ट से अलग कर दिया जाए और हमारी पुरानी व्यवस्था को ही रखा जाए। और हमारी पुरानी व्यवस्था में थोड़ी और मजबूती लाएं जिससे हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट के आदेश लागू हो सकें। साथ में प्रधानमंत्री को पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है। उन्होंने कहा कि था कि अगर हमारी व्यवस्था बहाल नहीं होती तो हम सब मिलकर 4 दिसंबर को दिल्ली कूच करेंगे। संसद का घेराव करेंग। सरकार एवं संसद के सदस्यों को बताएंगे कि यह रिपोर्ट लागू करने पर हमारे साथ कितना बड़ा अन्याय और विश्वासघात होगा। आपको अपना कानून सुरक्षित रखना होगा। क्योंकि जब कानून ही नहीं रहेगा तो आपकी लड़ाई कैसे लड़ पाएंगे। और हकीकत में क्रशर एवं कोल्हू की तरह मील मालिक अपनी मोनोपोली का फायदा उठाएंगे एवं हमें बर्बादी के रास्ते पर ले जाएंगे। उन्होंने किसानों से अपील करते हुए कहा कि आगामी 4 दिसंबर को हर काम छोड़कर एक दिन अपनी हाजिरी दिल्ली में लगाएं, जिससे आपकी आवाज उन बहरे कानों तक पहुंच पाए और आपकी एवं आपकी अगली पीढ़ी की जिंदगी सुरक्षित हो सके।

4 दिसम्बर को दिल्ली में गरजेंगे वीएम सिंह


4 दिसम्बर को दिल्ली में गरजेंगे वीएम सिंह

(सचिन धीमान)

मुजफ्फरनगर। (साई)। रंगराजन रिपोर्ट के विरोध में तथा गन्ना किसानों को उनका हकों को वापिस दिलाने हेतु गन्ना किसानों से राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय संयोजक एवं पूर्व विधायक वीएम सिंह ने एक बार फिर कमर कस ली है। वीएम सिंह एक बार फिर चीनी मिल मालिकों को उनके चाल से पलटवार करने जा रहे है। इस बार चीनी मिल मालिकों को रंगराजन रिपोर्ट को लागू न होने देकर किसानों को महाराष्ट्र व गुजरात के किसानों की तरह गन्ने का भुगतान दिलाने में जुटे है। इस बार वीएम सिंह ने अपनी ताकत को बढाने व केन्द्र सरकार द्वारा रंगराजन रिपोर्ट को रद्द कर किसानों को राहत न दी तो वह लाखों किसानों के साथ 4 दिसम्बर को दिल्ली कूच कर जायेंगे और रंगराजन रिपोर्ट के रद्द होने तक दिल्ली में आंदोलन करेंगे।
राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय संयोजक एवं पूर्व विधायक वीएम सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि  वह पिछले 20 वर्षों से किसानों के हकों के लिए हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में जाकर लड़ाई लड़ी उनके उनके पक्ष में कई आदेश पारित किए गए। जिनमें एक सोसाइटी में एक रेट, राज्य सरकार को गन्ना मूल्य तय करने का अधिकार, 14 दिन की देरी के बाद गन्ना भुगतान पर 15 फीसदी ब्याज, जब तक गन्ना मूल्य ना दिया जाए तब तक किसानों के खिलाफ कृषि वसूली पर रोक (अ) जब तक करार किया गया गन्ना ना पेरा जाए तब तक मीलों का चलना अनिवार्य और मील के ना पेरने पर खड़े गन्ना का पैसा देने के आदेश व शुरूआती वैराइटी जारी रहेगी। आदि। उन्होंने कहा कि इस आदेश के बाद सैंकड़ों साल किसान खड़ा रहे और सरकारी एवं मील मालिकों की लूट से बच सकेगा परंतु मील मालिकों की सोच मुझसे बहुत विपरित थी। वो किसानों को किसी भी कीमत परे लूटना चाहते हैं। 2004 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने केन्द्र सरकार के रेट एसएमपी को न्यूनतम माना और राज्य सरकार को गन्ना मूल्य (एसएपी) तय करने का अधिकार दिया। मिल मालिकों को तब 1996-97 एवं 2002-03 और 2003-04 में लगभग 1000 करोड़ रुपए डेफर पेमेन्ट देना पड़ा। जिसके बाद मील मालिकों ने केन्द्र सरकार के साथ मिलकर नई रणनीति बनाई। उन्होंने बताया कि केन्द्र ने कानून में संशोधन करके एसएमपी के बदले एफआरपी (उचित एवं लाभकारी मूल्य कर दिया। 2011 में सुप्रीम कोर्ट जब 2003-04 से 2008-09 गन्ना मूल्य की अपील सुन रहा था मिल मालिकों ने एफआरपी देने की मांग की। (एफआरपी, एसएपी से लगभग 40 फीसदी कम होता है।) मिल मालिकों को 17।जनवरी 2012 को झटका लगा जब सुप्रीम कोर्ट ने एसएपी और एसएमपी के विवाद को 7 जजों की बैंच को भेजा पर वीएम सिंह की समझौता मूल्य और एक सोसाइटी में एक रेट की दलील को मानते हुए आपको 2006-07 का एवं 2007-08 का 7 रुपए एवं 15-20 रुपए क् लगभग 1300 करोड़ के डेफर पेमेंट का आदेश दिया। जिसके बाद मील मालिकों को अहसास हुआ कि अब उन्हें किसानों को हराने के लिए कोई और रणनीति अपनानी पड़ेगी। उन्हें एहसास हुआ कि वीएम सिंह के होते हुए किसानों को हराना नामुमकिन है। उन्होंने नई रणनीति बनाते हुए 20 जनवरी 2012 को प्रधानमंत्री कार्यालय ने सी।रंगराजन समिति का गठन किया और उस समिति ने उत्तर-प्रदेश एवं उत्तर-भारत के प्रांतों के विरोध के बावजूद अपनी 05 अक्टूर 2012 की रिपोर्ट में गन्ना किसानों को बर्बाद और मिल मालिकों को आबाद करने की योजना प्रस्तुत की। जहां किसानों की लड़ाई गन्ना रेट की होती है, इस रिपोर्ट में ये भी साफ किया गया है कि राज्य सरकार अपना गन्ना मूल्य (एसएपी) घोषित नहीं करेगी, साथ में आरक्षण और उसके साथ जुड़े फार्म सी का समझौता खत्म करने की सिफारिश और जो राज्य सरकार आरक्षण करना चाहे तो कम-से-कम तीन साल या पांच साल का आरक्षण मिल को देना होगा, वहीं दूसरी तरफ मिल मालिकों को लेवी शुगर, रिलीज आर्डर में केन्द्र सरकार का दखल खत्म करना, आयात-निर्यात पर छूट एवं मिलों को हर कहीँ से लाभ देने का काम किया। उन्होंने बताया कि लेवी शुगर के खत्म करने से मिलों को एक साल में 3000 करोड़ रुपए का फायदा होगा। उन्होंने कहा कि हमें मिलों के पक्ष की सिफारिश से मतलब नहीं है। हमें तो अपने-आपको बचाना है। चीनी मिल इन 20 सालों के हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों से दुखी हैं। वीएम सिंह ने कहा कि कानून का तोड़ उनके पास नहीं था। इसलिए रंगराजन समिति ने डीकंट्रोल के नाम पर अपनी रिपोर्ट में कानून खत्म करने की ही सिफारिश कर दी। ना रहेगा बांस, ना बजेगी बांसुरी उनका कहना है कि किसान मिल मालिक से खरीद-फरोख्त की सीधी बात करें। इससे किसान को लाभ होगा। राज्य सरकार एसएपी निर्धारित नहीं करेगी। मील मालिक जो भी रेट तय करें पर उन्हें कम-से-कम केन्द्र सरकार का एफआरपी देना होगा जो की इस सीजन का 170 रुपए प्रति क्विंटल है और साथ-साथ किसानों के बेवकूफ बनाने के लिए कहा गया कि 1031 प्रतिशत रिकवरी पर चीनी का 70 प्रतिशत मूल्य गन्ना मूल्य में देना होगा। जहां तक इस रिपोर्ट का सवाल है यह रिपोर्ट पूरी तरह खारिज नहीं हो सकती क्योंकि कर्नाटक, तमिलनाडु, गुजरात और आंध्र-प्रदेश में जहां आपसे एक एकड़ में दोगनी पैदावार होती है और आपकी 9 फीसदी रिकवरी के बदले में उनके यहां 12 से 14 फीसदी रिकवरी होती है। इसलिए उनको इस रिपोर्ट से कोई नुकसान नहीं है बल्कि 1031 फीसदी चीनी रिकवरी पर चीनी के 70 फीसदी दाम मिलने की बात पर उनको तो 85 फीसदी चीनी का रेट मिलेगी जो कि अंदाज से चीनी का रेट 30-32 रुपए मानते हुए गन्ने का रेट लगभग  250 रुपए मिलेगा। वहीं उत्तर-भारत में नौ फीसदी रिकवरी पर चीनी का 50-52 फीसदी मिलेगा जो कि लगभग एफआरपी 170 से भी कम होगा। अब आप देखिए बिना आरक्षण के, बिना राज्य सरकार के रेट के आपकी चीनी मीलें क्रशर या कोल्हू की तरह खरीद करेंगी। जिससे किसान फिर 50 साल पीछे चले जाओगे, जहां कुछ साल पहले आप अपनी पर्ची साहूकार के पास रखकर गन्ने के पैसे लेते थे। जहां तक रेट का सवाल है जितनी लंबी लाइन लग जाएगी, लाइन देखते ही मील मालिक कोल्हू एवं क्रशर जैसे गन्ने का रेट कम कर देंगे। भाईयों, आज जब कानून भी है। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश किसानों हक में भी है। तब भी सरकार किसानों का साथ नहीं देती। इसी साल किसानों ने देखा कि जब 20 अपै्रल 2012 को सुप्रीम कोर्ट ने मिल मालिकों को 3 किस्तों में 2011-12 का गन्ना मूल्य का बकाया 5400 करोड़ रुपए देने का आदेश दिया और कहा कि किस्त टूटने पर देने का आदेश दिया और कहा कि किश्त टूटने पर मिल मालिकों से रिकवरी की जाए परंतु वहीं दूसरी किस्त टूटने पर भी किसी की रिकवरी नहीं की जाए। पर दूसरी किश्त टूटने पर भी किसी की रिकवरी नहीं की गई। उन्होंने कहा कि 6 अगस्त 2012 के हाईकोर्ट के आदेश के तहत किसानों की वसूली पर रोक तो लग गई पर भुगतान में 14 दिन की देरी के बाद ब्याज आज तक नहीं मिला। सरकार उन आदेशों को लागू नहीं कराती। आज भी कुछ मिलों ने गन्ना मूल्य नहीं दिया। कल जब कानून नहीं रहेगा। वीएम सिह ने किसानों को चेताया कि हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट के आदेश लागू नहीं रहेंगे तो किसान अपने गन्ने का मूल्य कैसे लोगे। मिल मालिक किसानों को पटकनी पर पटकनी लगाते रहेंगे। उन्होंने कहा कि कोई राजनीतिक लोग आपको बहकाने की बात करें कि भाई राज्य सरकार इस रिपोर्ट को नहीं मानेगी और कोई फर्क नहीं पड़ेगा। ये गलत है। राज्य सरकार की रिपोर्ट मानने या नहीं मानने से फर्क नहीं पड़ता क्योंकि ये रिपोर्ट दिल्ली द्वारा गठित की गई समिति की है। उन्होंने कहा कि कंट्रोल आर्डर 1966 में संसद से संशोधन की बात कही है और संशोधन होने पर यह राज्य सरकार पर बाध्य होगी।
उन्होंने किसानों से किसानों से कहा कि मैंने जिंदगी में कोशिश तो की थी कि आपके हक दिलाने के लिए ऐसे प्रयास कर जाऊं  कि यहां ना रहने पर आपको, आपकी आने वाली पीढ़ियों को उसका लाभ मिले। मुझे उम्मीद नहीं थी कि सरकार हमें बर्बाद करने वाली रिपोर्ट लागू करेगी पर 12 अक्टूबर को केन्द्र के खाद्य मंत्री ने इस रिपोर्ट को स्वीकार करने की बात कही, तब मेरे पैरों से जैसे जमीन खिसक गई हो। उन्होंने कहा कि इसके बाद ऐसा लगा कि अब किसानों को खुद दिल्ली आकर अपनी बात स्वंय कहनी पड़ेगी। इस सम्बंध में लिखित में 2 नवंबर 2012 को प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर मांग की गयी थी कि उत्तर-भारत को इस रिपोर्ट से अलग कर दिया जाए और हमारी पुरानी व्यवस्था को ही रखा जाए। और हमारी पुरानी व्यवस्था में थोड़ी और मजबूती लाएं जिससे हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट के आदेश लागू हो सकें। साथ में प्रधानमंत्री को पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है। उन्होंने कहा कि था कि अगर हमारी व्यवस्था बहाल नहीं होती तो हम सब मिलकर 4 दिसंबर को दिल्ली कूच करेंगे। संसद का घेराव करेंग। सरकार एवं संसद के सदस्यों को बताएंगे कि यह रिपोर्ट लागू करने पर हमारे साथ कितना बड़ा अन्याय और विश्वासघात होगा। आपको अपना कानून सुरक्षित रखना होगा। क्योंकि जब कानून ही नहीं रहेगा तो आपकी लड़ाई कैसे लड़ पाएंगे। और हकीकत में क्रशर एवं कोल्हू की तरह मील मालिक अपनी मोनोपोली का फायदा उठाएंगे एवं हमें बर्बादी के रास्ते पर ले जाएंगे। उन्होंने किसानों से अपील करते हुए कहा कि आगामी 4 दिसंबर को हर काम छोड़कर एक दिन अपनी हाजिरी दिल्ली में लगाएं, जिससे आपकी आवाज उन बहरे कानों तक पहुंच पाए और आपकी एवं आपकी अगली पीढ़ी की जिंदगी सुरक्षित हो सके।

4 दिसम्बर को दिल्ली में गरजेंगे वीएम सिंह


4 दिसम्बर को दिल्ली में गरजेंगे वीएम सिंह

(सचिन धीमान)

मुजफ्फरनगर। (साई)। रंगराजन रिपोर्ट के विरोध में तथा गन्ना किसानों को उनका हकों को वापिस दिलाने हेतु गन्ना किसानों से राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय संयोजक एवं पूर्व विधायक वीएम सिंह ने एक बार फिर कमर कस ली है। वीएम सिंह एक बार फिर चीनी मिल मालिकों को उनके चाल से पलटवार करने जा रहे है। इस बार चीनी मिल मालिकों को रंगराजन रिपोर्ट को लागू न होने देकर किसानों को महाराष्ट्र व गुजरात के किसानों की तरह गन्ने का भुगतान दिलाने में जुटे है। इस बार वीएम सिंह ने अपनी ताकत को बढाने व केन्द्र सरकार द्वारा रंगराजन रिपोर्ट को रद्द कर किसानों को राहत न दी तो वह लाखों किसानों के साथ 4 दिसम्बर को दिल्ली कूच कर जायेंगे और रंगराजन रिपोर्ट के रद्द होने तक दिल्ली में आंदोलन करेंगे।
राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय संयोजक एवं पूर्व विधायक वीएम सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि  वह पिछले 20 वर्षों से किसानों के हकों के लिए हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में जाकर लड़ाई लड़ी उनके उनके पक्ष में कई आदेश पारित किए गए। जिनमें एक सोसाइटी में एक रेट, राज्य सरकार को गन्ना मूल्य तय करने का अधिकार, 14 दिन की देरी के बाद गन्ना भुगतान पर 15 फीसदी ब्याज, जब तक गन्ना मूल्य ना दिया जाए तब तक किसानों के खिलाफ कृषि वसूली पर रोक (अ) जब तक करार किया गया गन्ना ना पेरा जाए तब तक मीलों का चलना अनिवार्य और मील के ना पेरने पर खड़े गन्ना का पैसा देने के आदेश व शुरूआती वैराइटी जारी रहेगी। आदि। उन्होंने कहा कि इस आदेश के बाद सैंकड़ों साल किसान खड़ा रहे और सरकारी एवं मील मालिकों की लूट से बच सकेगा परंतु मील मालिकों की सोच मुझसे बहुत विपरित थी। वो किसानों को किसी भी कीमत परे लूटना चाहते हैं। 2004 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने केन्द्र सरकार के रेट एसएमपी को न्यूनतम माना और राज्य सरकार को गन्ना मूल्य (एसएपी) तय करने का अधिकार दिया। मिल मालिकों को तब 1996-97 एवं 2002-03 और 2003-04 में लगभग 1000 करोड़ रुपए डेफर पेमेन्ट देना पड़ा। जिसके बाद मील मालिकों ने केन्द्र सरकार के साथ मिलकर नई रणनीति बनाई। उन्होंने बताया कि केन्द्र ने कानून में संशोधन करके एसएमपी के बदले एफआरपी (उचित एवं लाभकारी मूल्य कर दिया। 2011 में सुप्रीम कोर्ट जब 2003-04 से 2008-09 गन्ना मूल्य की अपील सुन रहा था मिल मालिकों ने एफआरपी देने की मांग की। (एफआरपी, एसएपी से लगभग 40 फीसदी कम होता है।) मिल मालिकों को 17।जनवरी 2012 को झटका लगा जब सुप्रीम कोर्ट ने एसएपी और एसएमपी के विवाद को 7 जजों की बैंच को भेजा पर वीएम सिंह की समझौता मूल्य और एक सोसाइटी में एक रेट की दलील को मानते हुए आपको 2006-07 का एवं 2007-08 का 7 रुपए एवं 15-20 रुपए क् लगभग 1300 करोड़ के डेफर पेमेंट का आदेश दिया। जिसके बाद मील मालिकों को अहसास हुआ कि अब उन्हें किसानों को हराने के लिए कोई और रणनीति अपनानी पड़ेगी। उन्हें एहसास हुआ कि वीएम सिंह के होते हुए किसानों को हराना नामुमकिन है। उन्होंने नई रणनीति बनाते हुए 20 जनवरी 2012 को प्रधानमंत्री कार्यालय ने सी।रंगराजन समिति का गठन किया और उस समिति ने उत्तर-प्रदेश एवं उत्तर-भारत के प्रांतों के विरोध के बावजूद अपनी 05 अक्टूर 2012 की रिपोर्ट में गन्ना किसानों को बर्बाद और मिल मालिकों को आबाद करने की योजना प्रस्तुत की। जहां किसानों की लड़ाई गन्ना रेट की होती है, इस रिपोर्ट में ये भी साफ किया गया है कि राज्य सरकार अपना गन्ना मूल्य (एसएपी) घोषित नहीं करेगी, साथ में आरक्षण और उसके साथ जुड़े फार्म सी का समझौता खत्म करने की सिफारिश और जो राज्य सरकार आरक्षण करना चाहे तो कम-से-कम तीन साल या पांच साल का आरक्षण मिल को देना होगा, वहीं दूसरी तरफ मिल मालिकों को लेवी शुगर, रिलीज आर्डर में केन्द्र सरकार का दखल खत्म करना, आयात-निर्यात पर छूट एवं मिलों को हर कहीँ से लाभ देने का काम किया। उन्होंने बताया कि लेवी शुगर के खत्म करने से मिलों को एक साल में 3000 करोड़ रुपए का फायदा होगा। उन्होंने कहा कि हमें मिलों के पक्ष की सिफारिश से मतलब नहीं है। हमें तो अपने-आपको बचाना है। चीनी मिल इन 20 सालों के हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों से दुखी हैं। वीएम सिंह ने कहा कि कानून का तोड़ उनके पास नहीं था। इसलिए रंगराजन समिति ने डीकंट्रोल के नाम पर अपनी रिपोर्ट में कानून खत्म करने की ही सिफारिश कर दी। ना रहेगा बांस, ना बजेगी बांसुरी उनका कहना है कि किसान मिल मालिक से खरीद-फरोख्त की सीधी बात करें। इससे किसान को लाभ होगा। राज्य सरकार एसएपी निर्धारित नहीं करेगी। मील मालिक जो भी रेट तय करें पर उन्हें कम-से-कम केन्द्र सरकार का एफआरपी देना होगा जो की इस सीजन का 170 रुपए प्रति क्विंटल है और साथ-साथ किसानों के बेवकूफ बनाने के लिए कहा गया कि 1031 प्रतिशत रिकवरी पर चीनी का 70 प्रतिशत मूल्य गन्ना मूल्य में देना होगा। जहां तक इस रिपोर्ट का सवाल है यह रिपोर्ट पूरी तरह खारिज नहीं हो सकती क्योंकि कर्नाटक, तमिलनाडु, गुजरात और आंध्र-प्रदेश में जहां आपसे एक एकड़ में दोगनी पैदावार होती है और आपकी 9 फीसदी रिकवरी के बदले में उनके यहां 12 से 14 फीसदी रिकवरी होती है। इसलिए उनको इस रिपोर्ट से कोई नुकसान नहीं है बल्कि 1031 फीसदी चीनी रिकवरी पर चीनी के 70 फीसदी दाम मिलने की बात पर उनको तो 85 फीसदी चीनी का रेट मिलेगी जो कि अंदाज से चीनी का रेट 30-32 रुपए मानते हुए गन्ने का रेट लगभग  250 रुपए मिलेगा। वहीं उत्तर-भारत में नौ फीसदी रिकवरी पर चीनी का 50-52 फीसदी मिलेगा जो कि लगभग एफआरपी 170 से भी कम होगा। अब आप देखिए बिना आरक्षण के, बिना राज्य सरकार के रेट के आपकी चीनी मीलें क्रशर या कोल्हू की तरह खरीद करेंगी। जिससे किसान फिर 50 साल पीछे चले जाओगे, जहां कुछ साल पहले आप अपनी पर्ची साहूकार के पास रखकर गन्ने के पैसे लेते थे। जहां तक रेट का सवाल है जितनी लंबी लाइन लग जाएगी, लाइन देखते ही मील मालिक कोल्हू एवं क्रशर जैसे गन्ने का रेट कम कर देंगे। भाईयों, आज जब कानून भी है। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश किसानों हक में भी है। तब भी सरकार किसानों का साथ नहीं देती। इसी साल किसानों ने देखा कि जब 20 अपै्रल 2012 को सुप्रीम कोर्ट ने मिल मालिकों को 3 किस्तों में 2011-12 का गन्ना मूल्य का बकाया 5400 करोड़ रुपए देने का आदेश दिया और कहा कि किस्त टूटने पर देने का आदेश दिया और कहा कि किश्त टूटने पर मिल मालिकों से रिकवरी की जाए परंतु वहीं दूसरी किस्त टूटने पर भी किसी की रिकवरी नहीं की जाए। पर दूसरी किश्त टूटने पर भी किसी की रिकवरी नहीं की गई। उन्होंने कहा कि 6 अगस्त 2012 के हाईकोर्ट के आदेश के तहत किसानों की वसूली पर रोक तो लग गई पर भुगतान में 14 दिन की देरी के बाद ब्याज आज तक नहीं मिला। सरकार उन आदेशों को लागू नहीं कराती। आज भी कुछ मिलों ने गन्ना मूल्य नहीं दिया। कल जब कानून नहीं रहेगा। वीएम सिह ने किसानों को चेताया कि हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट के आदेश लागू नहीं रहेंगे तो किसान अपने गन्ने का मूल्य कैसे लोगे। मिल मालिक किसानों को पटकनी पर पटकनी लगाते रहेंगे। उन्होंने कहा कि कोई राजनीतिक लोग आपको बहकाने की बात करें कि भाई राज्य सरकार इस रिपोर्ट को नहीं मानेगी और कोई फर्क नहीं पड़ेगा। ये गलत है। राज्य सरकार की रिपोर्ट मानने या नहीं मानने से फर्क नहीं पड़ता क्योंकि ये रिपोर्ट दिल्ली द्वारा गठित की गई समिति की है। उन्होंने कहा कि कंट्रोल आर्डर 1966 में संसद से संशोधन की बात कही है और संशोधन होने पर यह राज्य सरकार पर बाध्य होगी।
उन्होंने किसानों से किसानों से कहा कि मैंने जिंदगी में कोशिश तो की थी कि आपके हक दिलाने के लिए ऐसे प्रयास कर जाऊं  कि यहां ना रहने पर आपको, आपकी आने वाली पीढ़ियों को उसका लाभ मिले। मुझे उम्मीद नहीं थी कि सरकार हमें बर्बाद करने वाली रिपोर्ट लागू करेगी पर 12 अक्टूबर को केन्द्र के खाद्य मंत्री ने इस रिपोर्ट को स्वीकार करने की बात कही, तब मेरे पैरों से जैसे जमीन खिसक गई हो। उन्होंने कहा कि इसके बाद ऐसा लगा कि अब किसानों को खुद दिल्ली आकर अपनी बात स्वंय कहनी पड़ेगी। इस सम्बंध में लिखित में 2 नवंबर 2012 को प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर मांग की गयी थी कि उत्तर-भारत को इस रिपोर्ट से अलग कर दिया जाए और हमारी पुरानी व्यवस्था को ही रखा जाए। और हमारी पुरानी व्यवस्था में थोड़ी और मजबूती लाएं जिससे हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट के आदेश लागू हो सकें। साथ में प्रधानमंत्री को पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है। उन्होंने कहा कि था कि अगर हमारी व्यवस्था बहाल नहीं होती तो हम सब मिलकर 4 दिसंबर को दिल्ली कूच करेंगे। संसद का घेराव करेंग। सरकार एवं संसद के सदस्यों को बताएंगे कि यह रिपोर्ट लागू करने पर हमारे साथ कितना बड़ा अन्याय और विश्वासघात होगा। आपको अपना कानून सुरक्षित रखना होगा। क्योंकि जब कानून ही नहीं रहेगा तो आपकी लड़ाई कैसे लड़ पाएंगे। और हकीकत में क्रशर एवं कोल्हू की तरह मील मालिक अपनी मोनोपोली का फायदा उठाएंगे एवं हमें बर्बादी के रास्ते पर ले जाएंगे। उन्होंने किसानों से अपील करते हुए कहा कि आगामी 4 दिसंबर को हर काम छोड़कर एक दिन अपनी हाजिरी दिल्ली में लगाएं, जिससे आपकी आवाज उन बहरे कानों तक पहुंच पाए और आपकी एवं आपकी अगली पीढ़ी की जिंदगी सुरक्षित हो सके।