सोमवार, 20 अगस्त 2012

गीत मानवीय संवेदनाओं को सहजता से अभिव्यक्त करते हैं - राज्यपाल

गीत मानवीय संवेदनाओं को सहजता से अभिव्यक्त करते हैं - राज्यपाल

(नन्‍द किशोर) 

भोपाल (साई)। राज्यपाल श्री रामनरेश यादव ने कहा कि गीत मानवीय संवेदनाओं को बहुत सरलता और सहजता से अभिव्यक्त तथा सम्प्रेषित करते हैं। राज्यपाल आज यहाँ भारत भवन में चौथे ‘राष्ट्रीय गीत उत्सव’ का शुभारंभ कर रहे थे। राज्यपाल श्री यादव ने कहा कि भारतीय समाज में जीवन के प्रत्येक पड़ाव पर गीत गाने की समृद्ध परम्परा है। उन्होंने कहा कि सृष्टि के प्रारंभ से ही ‘नाद’ के रूप में गीत अस्तित्व में रहा है। हमारे वेद-पुराण, शास्त्र और उपनिषद के आख्यान गीत के फार्मेट में ही हैं। राज्यपाल ने कहा कि ऋचाएँ, श्लोक और मंत्र आदि गाये जाते हैं। यही गेयता गीत की पहचान है। ‘गीत उत्सव’ का आयोजन छन्द और गीत विधा पर केन्द्रित ‘साहित्य सागर’ के 11वें वर्ष में प्रवेश के अवसर पर किया गया था।
कार्यक्रम में राज्यपाल श्री रामनरेश यादव ने भोपाल की गीतकार श्रीमती मघु शुक्ला को ‘नटवर गीत सम्मान’ से अलंकृत किया। उन्होंने श्रीमती शुक्ला को शाल-श्रीफल, प्रशस्ति-पत्र और 11 हजार रुपये की राशि भेंट की। यह सम्मान पत्रिका के पितृ-पुरुष श्री राधिका प्रसाद वर्मा ‘नटवर’ की स्मृति में पिछले 4 वर्ष से दिया जा रहा है। राज्यपाल श्री यादव ने लम्बी साहित्य-साधना के लिये वयोवृद्ध साहित्यकार श्री रामगोपाल चतुर्वेदी ‘निश्छल’, पं. गंगाराम शास्त्री, श्री यतीन्द्रनाथ यादव ‘राही’, श्री देवीसरन और श्री नवल जायसवाल को ‘सुदीर्घ सेवा सम्मान’ से सम्मानित किया। उन्होंने जनसंपर्क विभाग के संयुक्त संचालक और साहित्यकार श्री सुरेन्द्र भारद्वाज को जीवन के 60वें वर्ष में प्रवेश करने पर ‘हीरक सम्मान’ से विभूषित किया।
इस अवसर पर राज्यपाल श्री रामनरेश यादव ने साहित्य सागर पत्रिका के गीत विशेषांक और गीत अष्टक संग्रह-2 का लोकार्पण भी किया। राज्यपाल श्री यादव ने सम्पादक श्री कमलकांत सक्सेना द्वारा हिन्दी साहित्य की सेवा के सफल प्रयासों की सराहना भी की।
रायबरेली, उत्तर प्रदेश के डॉ. ओमप्रकाश सिंह ने कहा कि दुनिया के सभी देशों की अलग-अलग संस्कृतियों को मिलाकर एक विश्व संस्कृति बनाये जाने की आवश्यकता है। कार्यक्रम के अध्यक्ष कवि श्री चन्द्रसेन विराट ने कहा कि गीत लिखा नहीं, रचा जाता है। इसलिये गीत हमेशा हमारे दिलों में उपस्थित रहता है। शारजाह से आयीं ‘अभिव्यक्ति’ की सम्पादक श्रीमती पूर्णिमा वर्मा ने गीत विधा के विकास और विस्तार पर प्रकाश डाला।
कार्यक्रम का शुभारंभ रामप्रकाश अनुरागी की सरस्वती वंदना से हुआ। स्वागत भाषण सम्पादक श्री कमलकांत सक्सेना ने दिया। कार्यक्रम का संचालन पुणे से आये गजलकार श्री भवेश ‘दिलशाद’ ने किया। श्री अशोक दुबे ‘अशोक’ ने आभार प्रदर्शन किया।

राहुल प्रियंका में बंटी कांग्रेस


राहुल प्रियंका में बंटी कांग्रेस

अगले चुनाव किसकी अगुआई में संशय बरकरार

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। आने वाले आम चुनाव किसकी अगुआई में लड़े जाएंगे इस बात को लेकर कांग्रेस में अंर्तद्वंद बरकरार है। राहुल या प्रियंका के प्रश्न पर कांग्रेस बंटी हुई नजर आ रही है। कांग्रेस का एक धड़ा प्रियंका गांधी को तो दूसरा राहुल गांधी को आगे करने की हिमायत करता नजर आ रहा है। यह तय माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस की कमान सोनिया के हाथों से अगली पीढ़ी को हस्तांतरित हो जाएगी।
घपले, घोटाले, भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी कांग्रेसनीत केंद्र सरकार के लिए अगला आम चुनाव किसी बड़ी चुनौति से कम नहीं है। इस चुनाव में कांग्रेस का परचम लहराने के लिए आवश्यक है कि वह सत्ता और संगठन में अपना चेहरा मोहरा बदले। एक तरफ भ्रष्टाचार पर अंकुश ना लगा पाने और संगठन के अंदर अराजकता के पनपने के चलते लोगों का विश्वास कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी पर से उठ गया है, वहीं दूसरी ओर भ्रष्टाचार के ईमानदार संरक्षक बने वज़ीरे आज़म डॉ.मनमोहन सिंह के चेहरे से भी लोग उब चुके हैं।
कांग्रेस का एक धड़ा राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने का ताना बाना बुन रहा है। अगले आम चुनावों में राहुल गांधी की अगुआई सुनिश्चित करने इस धड़े द्वारा समय से पूर्व ही चुनाव करवाने की जुगत लगाई जा रही है। राहुल के लिए लाबिंग करने वालों में नए नवेले नेता पुत्रों की लंबी फेहरिस्त है।
वहीं, दूसरी ओर राहुल को ना चाहने वालों की तादाद भी कांग्रेस में कम नहीं है। एआईसीसी सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि एक उद्योगपति सांसद ने तो यहां तक कह डाला कि कल का छोकरा राहुल हमारा नेतृत्व करेगा? अरे हमने उनके पिता और दादी के साथ काम किया है। अब राहुल के पास जाकर अपने कामों के लिए चिरोरी करना निश्चित तौर पर हमारी गरिमा के प्रतिकूल ही होगा। केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने तो राहुल को केंद्रीय रंगमंच पर कभी कभार अवतरित होने वाले की संज्ञा भी दे डाली थी।
उधर, अब यह भी तय माना जा रहा है कि सोनिया गांधी के उत्तराधिकारी के बतौर रायबरेली की सीट पर उनकी पुत्री प्रियंका वढ़ेरा ही होंगीं। जिस तरह से मीडिया में रायबरेली संसदीय क्षेत्र को लेकर उनके जनता दरबार की बात उछाली जा रही है वह किसी प्रायोजित खबर से कम नहीं है। आने वाले दिनों में प्रियंका वढ़ेरा को रायबरेली की कमान सौंपी जाना तय है।
सूत्रों की मानें तो दरअसल, कांग्रेस का एक धड़ा चाह रहा है कि प्रियंका वढ़ेरा राजनीति में आएं। इसके लिए वे प्रियंका को वैकल्पिक नेता की भूमिका में लाने की हिमायत कर रहे हैं। राहुल गांधी और सोनिया गांधी का मिथकीय जादू उत्तर प्रदेश के चुनावों में साफ हो गया है। अब कांग्रेस को उम्मीद बची है तो बस प्रियंका वढ़ेरा की छवि की। किन्तु प्रियंका के साथ भी उनके पति राबर्ट वढ़ेरा की कारगुजारियां पीछा नहीं छोड़ रही हैं।
इस सबके बीच वर्तमान वज़ीरे आज़म डॉ.मनमोहन सिंह नीरो के मानिंद आज भी चैन की बंसी बजा रहे हैं। पिछली कई मर्तबा मनमोहन सिंह ने सिंह गर्जना कर कहा गया कि वे अभी रिटायर नहीं हो रहे हैं, उन्हें अभी अपने बचे हुए काम निपटाने हैं। अपने कामों को निपटाने में सिंह जल्दबाजी में भी नहीं दिख रहे हैं।

अफवाहें फैलाने भारत ने पाक को चेताया


अफवाहें फैलाने भारत ने पाक को चेताया

(शरद खरे)

नई दिल्ली (साई)। भारत ने पाकिस्तान से इस बात पर गहरी चिन्ता व्यक्त की है कि उसके यहां मौजूद तत्व सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जरिए पूर्वाेत्तर के लोगों में डर फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। गृहमंत्री सुशील कुमार शिन्दे ने पाकिस्तान के गृहमंत्री रहमान मलिक के साथ टेलीफोन पर बातचीत में ऐसे तत्वों पर अंकुश लगाने और उनका सफाया करने में पाकिस्तान से पूरा सहयोग मांगा।
उन्होंने कहा कि ये तत्व सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर भ्रामक तस्वीरें और खबरें फैलाकर भारत में साम्प्रदायिक भावनाएं भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। श्री शिन्दे ने पाकिस्तान के गृहमंत्री और वहां की जनता को ईद की बधाई देते हुए आशा व्यक्त की कि दोनों देशों के बीच संबंध सुधरेंगे।
ज्ञातव्य है कि दोनों नेताओं के बीच पहली बार सीधा सम्पर्क हुआ है। पाकिस्तान के गृहमंत्री रहमान मलिक ने श्री शिंदे को पूरा सहयोग देने का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि उन्होंने मुझे ये कहा कि असम के सिलसिले में कुछ उनके पास इनफोर्मेशन है कि शायद जो एसएमएस चले हैं वो पाकिस्तान से चले हैं। अगर इंडिया के पास कोई भी इनफोर्मेशन है जिसमें उनको यह पता लगे कि यह ऐसे मैसेजेस जो हैं असम की मास माइग्रेशन टू द कैम्पस हैं तो डेफिनेटली हम उसको इंवेस्टिगेट भी करेंगे और इंशाह अल्ला उनको पूरी इनफोर्मेशन भी देंगे।
इससे पहले केन्द्रीय गृह सचिव आर के सिंह ने कहा था कि कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में पूर्वाेत्तर राज्यों के निवासियों में डर फैलाने वाली अधिकतर अफवाहें पाकिस्तान से शुरू हुई थीं। सरकार ऐसी ७४ वैबसाइट पर रोक लगा चुकी है, जिन पर पाकिस्तान से भ्रामक तस्वीरें अपलोड की गई थीं।
गृहमंत्रालय ने जो रिपोर्ट तैयार की है उसके अनुसार यह अफवाहें फैलाने और भ्रामक तस्वीरें सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर डालने में पाकिस्तान स्थित एक कट्टरपंथी गुट का हाथ होने का संदेह है।
0 हेट कैंपेन के पीछे आईएसआई?
इस हेट कैंपेन के पीछे पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ होने की भी खबरें हैं। गृह मंत्रालय की रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है कि किस तरह पाकिस्तान से हेट कैंपेन शुरू हुआ। तिब्बत, थाइलैंड के भूकंप और म्यांमार में हिंसा के विडियो को फर्जी तरीके से असम में हिंसा दिखाकर धमकी भरे एमएमएस और एसएमएस भारी संख्या में भेजे गए। इसके पीछे पाकिस्तान के एक कट्टरपंथी संगठन का हाथ होने का शक है। ऐसे ज्यादातर कॉन्टेंट 13 जुलाई से ऑनलाइन होना शुरू हुए थे।
0 इंटरनेट पर लगाम
अफवाहों को फैलने से रोकने के लिए सरकार ने फेसबुक, गूगल और ट्विटर के 80 से ज्यादा पेज और यूजर अकाउंट्स ब्लॉक करवा दिए हैं। शनिवार को 76 वेबसाइट ब्लॉक करने के निदेर्श सरकार ने दिए थे।

लोगों से काम पर लौटने की अपील की सीएम ने


लोगों से काम पर लौटने की अपील की सीएम ने

(पुरबालिका हजारिका)

गोवहाटी (साई)। असम के मुख्यमत्री तरूण गोगाई ने जिला परिषदें और पंचायतों के सदस्यों सहित सभी लोकसेवकों से आग्रह किया है कि वे लोगों को अपने काम की जगह पर लौटने के लिए राजी करें। उन्होंने हाल की अफवाहों के बाद राज्य में अपने घर लौटे लोगों से भी अपील की है वे विभिन्न राज्यों में अपने काम की जगहों पर लौट जाएं।
आंध्रप्रदेश और कर्नाटक की सरकारों ने भी पूर्वाेत्तर के लोगों को भरोसा दिलाया है कि लौटने पर उन्हें वापस काम पर रख लिया जाएगा। कर्नाटक के मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टर ने कहा है कि किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए सभी एहतियाती उपाय किए गए हैं।
उन्होंने कहा कि उन्होंने पूरी सुरक्षा प्रदान की है और साथ ही एहतियाती उपाय भी किए हैं। अफवाहों की वजह से लोग यहां से चले गए थे और जब वो गुवाहाटी पहुंचे तो वापस बैंगलौर आना चाहते हैं क्योंकि वो कर्नाटक को अपना ही राज्य मानते हैं।
पिछले २४ घंटों में कहीं से भी किसी अप्रिय घटना का समाचार नहीं मिला है। हैलिकॉप्टर के साथ विशेष कमांडो बल को निगरानी रखने के लिए तैनात किया गया है। संवेदनशील और अतिसंवेदनशील क्षेत्रों में सुरक्षाबलों की १५ कम्पनियां तैनात की गयी हैं। राहत शिविरों में ईद-उल-फित्र का त्यौहार पारम्परिक श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाने के भी विशेष प्रबंध किये गये हैं।

एमपी में गरीबों के स्वास्थ्य पर शिव की नजर


एमपी में गरीबों के स्वास्थ्य पर शिव की नजर

(सोनल सूर्यवंशी)

भोपाल (साई)। मध्यप्रदेश के स्वास्थ्य केन्दों में मरीजों को मुफ्त जेनेरिक दवाईयां उपलब्ध कराने के उद्देश्य से जल्दी ही मुख्यमंत्री निःशुल्क औषधि वितरण योजना शुरू की जायेगी। हमारे संवाददाता ने बताया है कि इस योजना के माध्यम से अस्पतालों में दवाओं की उपलब्धता बनाये रखने पर विशेष ध्यान दिया जायेगा।
 सरकारी सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि योजना के अंतर्गत प्रदेश में एक हजार पांच सौ ९५ स्वास्थ्य संस्थाओं में दवा वितरण केन्द्रों को और मजबूत बनाया जाएगा। इन केन्द्रों में सबसे अधिक उपयोग में आने वाली दवाईयां चरण बद्ध तरीके से उपलब्ध कराई जाएंगी। जिसमें पहले चरण में दो सौ चालीस दवाएं उपलब्ध कराई जाएंगी।
इन वितरण केन्द्रों से दवाईयों के अलावा इंजेक्शन और सर्जिकल सामग्री भी निःशुल्क दी जाएगी। यहां सभी भी वर्गों के एपीएल और बीपीएल श्रेणी के मरीजों को यह सुविधा मिल सके।

आंदोलनों पर रामदेव ने खर्च किये आठ करो


आंदोलनों पर रामदेव ने खर्च किये आठ करो

(महेश रावलानी)

नई दिल्ली (साई)। बाबा रामदेव दिल्ली के रामलीला मैदान आये और अपने दोनों आंदोलनों को सफल बनाने के लिए पानी की तरह पैसा बहाया। इधर बाबा रामदेव कालेधन पर सरकार को चुनौती दे रहे थे तो उधर सरकार खुफिया तरीके से उनके आय व्यय पर नजर बनाये हुई थी। अब इन्ही खुफिया रपटों में बताया गया है कि बाबा रामदेव ने अपने आंदोलनों को सफल बनाने के लिए 8 करोड़ रुपया खर्च किया। ये पैसे आंदोलन से लोगों को जोड़ने के नाम पर जुटाये गये। आंदोलन से जुड़ने के लिए प्रति सदस्य 51 रूपये से लेकर 11 लाख रूपये तक की फीस वसूली की गई।
बाबा रामदेव के ऊपर पहले ही यह आरोप है कि वे आंदोलन के नाम पर अपने कंपनियों के उत्पाद को बेचने के लिए ग्रामीण इलाकों में विपणन केन्द्र खोल रहे हैं। इस बार रामलीला मैदान में बड़ी संख्या में ऐसे कार्यकर्ता मौजूद थे जिनके कंधों पर स्वदेशी केन्द्र का झोला लटक रहा था। इन कार्यकर्ताओं ने जो जैकेट पहन रखा था उस पर भारत की आर्थिक समृद्धि के अभियान का संदेश साफ तौर पर पढ़ा जा सकता था। यह स्वदेशी केन्द्र असल में बाबा रामदेव की देशभर में खुल रही दुकाने हैं। खुफिया एजंसियों, आर्थिक गुप्तचर व्यूरो का आंकलन है कि इस दौरान बाबा रामदेव ने 600 जिलों की 4000 तहसीलों तक अपने स्वदेशी केन्द्र और भारत स्वाभिमान की शाखाओं का विस्तार कर लिया है।
आंदोलन के नाम पर छह सौ जिलों में स्वाभिमान ट्रस्ट के तहत जिन लोगों को जोड़ा गया उनसे 51 रूपये से लेकर 11 लाख रूपये तक वसूल किये गये। कारपोरेट मेम्बर बनने के लिए 11 लाख रूपये फीस ली गई, संस्थापक सदस्य बनने के लिए 5 लाख, संरक्षक सदस्य बनने के लिए ढाई लाख, आजीवन सदस्य बनने के लिए एक लाख, विशिष्ट सदस्य बनने के लिए 11 सौ और समर्थन देने के नाम पर 51 रूपये वसूल किये गये। अभी यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि बाबा ने आंदोलन के नाम पर कमाई कितनी की है लेकिन खर्च का अनुमान सामने आ गया है कि उन्होंने करीब आठ करोड़ रूपये खर्च किये हैं। रामदेव के आंदोलनों में जिस तरह से पानी की तरह पैसा बहाया जाता था, उसे देखकर यह बहुत ज्यादा नहीं लगता है।
इसके साथ ही राजस्व विभाग ने योगगुरू बाबा रामदेव से जुड़े ट्रस्टों का अंतिम कर आकलन का काम शुरू कर दिया है। हाल ही में सेवा और आयकर अधिकारियों ने कथित कर अपवंचचन मामले में इन ट्रस्टों की विशेष जांच की थी। वित्त मंत्रालय के आयकर और सेवा कर विभागों ने हाल ही में इन ट्रस्टों को नोटिस जारी किया था जिनका रामदेव विरोध कर रहे हैं। केंद्रीय आर्थिक गुप्तचर ब्यूरो और केंद्रीय उत्पाद खुफिया महानिदेशालय (डीजीसीईआई) रामदेव संचालित ट्रस्टों की आय और सेवा कर देनदारियों की गणना कर रहे हैं।
सूत्रों ने कहा, ‘‘प्रथम दृष्ट्या लगता है कि ट्रस्टों द्वारा योग शिविर में शिरकत करने के लिए कूपन की बिक्री और रामेदव द्वारा संचालित पतंजलि योग पीठ द्वारा उत्पादों की बिक्री जैसे वाणिज्यिक गतिविधियों को अंजाम दिया गया है। विभाग उनका आकलन कर रहा है।’’ अधिकारियों ने कहा कि आयोजकों से जुड़े सूचना और रामदेव के ट्रस्टों द्वारा पूरे देश में संचालित विभिन्न कार्यक्रमों में इस्तेमाल किए गए धन के स्रोत के बारे में जानकारी हासिल की जा रही है। जब रामदेव के प्रवक्ता एसके तिजारवाला से संपर्क किया गया तो उन्होंने दावा किया कि ये ट्रस्ट कर दायरे से बाहर हैं, क्योंकि ये धर्मार्थ गतिविधियों से जुड़े हैं न कि वाणिज्यिक कामों से। तिजारावाला का कहना है कि, ‘‘हम सभी एजेंसियों को जांच में सहयोग करेंगे। हमारे पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है। योग शिविरों को सेवा कर के भुगतान से बाहर रखा गया है क्योंकि इनके जरिये लोगों का चिकित्सा राहत दिलाया जाता है।’’
देश में कालेधन के खिलाफ आंदोलन चला रहे रामदेव एक संगठन के मुखिया हैं जो अनेक ट्रस्टों का संचालन करता है। ये ट्रस्ट भारत और विदेशों में आयुर्वेदिक दवाओं के निर्माण और बिक्री करते हैं। इसके साथ ही रामदेव ने देशभर में स्वेदशी केन्द्र खोला है जिसमें उनकी फैक्ट्रियों में बने माल बेचे जाते हैं। सेवा कर विभाग पहले ही योग शिविर में भाग लेने के लिए कूपन जारी करने के एवज में पतंजलि योग पीठ को नोटिस जारी कर चुका है। विदेशी विनिमय नियमों के उल्लंघन को लेकर प्रवर्तन निदेशालय भी रामदेव के ट्रस्टों पर नजर रखे हुए है।

कांग्रेस की कम्युनल पॉलिटिक्स और अजमल के हवाले असम


कांग्रेस की कम्युनल पॉलिटिक्स और अजमल के हवाले असम

(संजय तिवारी)

ये अजमल कसाब तो नहीं है लेकिन इनका काम अजमल कसाब से भी खतरनाक है। इनका नाम है बदरुद्दीन अजमल कासिम। आसाम के एक स्थानीय पार्टी आल इंडिया युनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के अध्यक्ष हैं और धुबरी से लोकसभा का प्रतनिधित्व करते हैं। आसाम का वही धुबरी जहां से आसाम के दंगों की शुरूआत हुई। धुबरी में 75 फीसदी से अधिक मुस्लिम आबादी है इसलिए बदरूद्दीन अजमल इस इलाके के बेताज बादशाह हैं।
आसाम में जो ताजा दंगे शुरू हुए उनके बारे में रपटें बताई गईं कि 19 जुलाई को कोकराझार में दो मुस्लिम छात्र नेताओं रातुल अहमद और सिद्दीक शेख पर हमला कर दिया जिसके बाद दंगे की शुरूआत हुई। ये दोनों ही छात्र नेता एक अल्पसंख्यक मुस्लिम संगठन से जुड़े हुए थे जिसका नाम है आल आसाम माइनारिटी स्टूडेन्ट यूनियन। इस संस्था के बारे में इतना ही जानना काफी है कि वह आसाम में मुसलमानों के हित के लिए काम करती है। इसी छात्र संगठन पर तथाकथित बोडो नेताओं के हमले के बाद रातों रात प्रतिक्रियावाद और बदला लेने की जो शुरूआत हुई उसका परिणाम यह हुआ कि 20 जुलाई को आसाम का कोकराझार, धुबरी इलाका पूरी तरह से जल उठा। हजारों लोगों को उनके घरों से या तो बाहर निकाल दिया गया या फिर वे अपने घरों को छोड़कर अज्ञात स्थान की ओर आगे बढ़ गये। यह खबर तो आई लेकिन यह खबर दब गई कि बोडो चरमपंथियों ने इन छात्र नेताओं पर हमला क्यों किया? यह जानकारी बहुत कम सामने आ पाई कि असम में जून महीने से ही बोडो लोगों पर छुटपुट हमले हो रहे थे। आज शरणार्थी शिविरों में जो लोग रहे हैं उसमें कई लोगों ने स्वीकार किया है कि उनके ऊपर मुस्लिम दंगाइयों ने जून में हमला किया था और उनके घरों को आग लगा दी थी।
फिर भी अगर मान भी लें कि दंगों की शुरूआत तथाकथित तौर दो मुस्लिम छात्र नेताओं पर हमले से शुरू हुई तो दंगों का विस्तार करने के लिए राजनीतिक रोटियां भी जमकर सेंकी गई। आसाम से लौटकर आई एक फैक्ट फाइंडिग कमेटी ने 10 अगस्त को जो रिपोर्ट सार्वजनिक किया उसके अनुसार आसाम में दंगों की आग भड़काने में कांग्रेस के तीन मुस्लिम मंत्री जिम्मेदार हैं। इसके साथ ही इस फैक्ट फाइडिंग कमेटी ने दो सांसदों को भी इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है। इनके नाम हैं रानी नारा और बदरूद्दीन अजमल। कांग्रेस के मंत्रियों और शीर्ष नेताओं की राजनीति बाद में पहले जरा बदरुद्दीन महाशय के बारे में।
बदरुद्दीन ही वह शख्स हैं जिनके प्रभाव के कारण पूरे देश के मुसलमानों में गुस्से की लहर दौड़ गई है। मुंबई में दंगा भड़कते भड़कते रह गया। लखनऊ और इलाहाबाद में स्थितियां तनावपूर्ण बन चुकी हैं। हैदराबाद में 18 अगस्त को मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन ने एक बड़ी रैली आयोजित करके आसाम के मुसलमानों के लिए पूरे मुस्लिम समाज से सहयोग करने की अपील की। अगर अंदर ही अंदर देशभर में मुस्लिम संगठन आसाम दंगों पर अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं और रहकर उनका गुस्सा फूट रहा है तो स्वाभाविक तौर पर सवाल उठता है कि आखिर आसाम दंगों के बारे में वे जानकारियां मुसलमानों तक कैसे पहुंच रही हैं जो मीडिया से भी नदारद हैं? यह अजमल की कद काठी का कमाल है जो कि आसाम में अतरवाले के नाम से भी जाने जाते हैं। यह अतरवाला अजमल आज की तारीख में न सिर्फ आसाम का रसूखदार और पैसेवाला मुसलमान है बल्कि उसका शिक्षा कारोबार आसाम से लेकर मुंबई तक फैला हुआ है। शिक्षा के कारोबार को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने बाकायदा एक एनजीओ मरकज उल मआरीफ बना रखा है। वे देवबंद की केन्द्रीय सलाहकार परिषद में भी हैं तो जमात-ए-उलमा-ए-हिन्द की सेन्ट्रल वर्किंग कमेटी के भी मेम्बर हैं। अजमल अपने इन्हीं संबंधों का फायदा उठा रहे हैं उनके दिये संदेशों को देश के दो बड़े मुस्लिम संस्थान अपने अपने संपर्कों के जरिए शेष देश के मुसलमानों में पहुंचा रही हैं और मुसलमान आसाम के सवाल पर उद्वेलित हो रहा है।
लेकिन इस आर्थिक और धार्मिक ताकत के अलावा भी अजमल आसाम में अपने लिए मजबूत राजनीतिक जमीन तैयार कर रहे हैं। फिलहाल तो उनकी अपनी राजनीतिक पार्टी है और वे उनकी पार्टी यूपीए का एक घटक दल भी है जो केन्द्र में कांग्रेस को सपोर्ट कर रहा है जबकि राज्य में वह मुख्य विपक्षी दल है। कांग्रेस के अंदर तरुण गोगोई का धड़ा अजमल के खिलाफ रहता है। गोगोई और अजमल का यह विरोध 2001 से चल रहा है जब गोगोई ने अजमल की पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया था। अजमल वैसे तो सबके सामने तरुण गोगोई को अपना दोस्त बताते हैं लेकिन अंदरखाने वे सोनिया गांधी को जब तब अप्रोच करके गोगोई को हटाने की सिफारिशें करते रहते हैं। क्योंकि वे जमात-ए-उलमा-ए-हिन्द के सेन्ट्रल वर्किंग कमेटी के मेम्बर है जिसका सोनिया गांधी पर अच्छा प्रभाव है इसलिए सोनिया दरबार में अजमल गोगोई का राजनीतिक गला घोटने की कई बार कोशिश कर चुका है। लेकिन अब तक वह असफल ही रहा है।
इस बार भी आसाम दंगों के बहाने अजमल अपनी राजनीति कर रहे हैं। कांग्रेस में इन दिनों अजमल हिमन्त शर्मा के करीबी हैं। हिमन्त शर्मा कुछ महीनों पहले तक तरुण गोगोई के सबसे खास मंत्री हुआ करते थे लेकिन हिमन्त को मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब आने लगे। हो सकता है अजमल ने हिमन्त को यह ख्वाब दिखाया हो, या कारण कुछ और हो लेकिन हिमन्त शर्मा अपने राजनीतिक आका दिग्विजय सिंह के जरिए तरुण गोगोई को हटाकर उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का दबाव बनाने लगे। आसाम से लेकर दिल्ली तक दबाव बढ़ता जा रहा था। दवाब कितना जबर्दस्त था कि दंगों के बाद कोकराझार के दौरे पर गये दिग्विजय सिंह ने कह दिया दंगों में राहत काम के लिए 2001 की जनगणना को नहीं बल्कि 2011 की जनगणना को आधार बनाया जाएगा। इसके बाद हालात और बिगड़ गये। निश्चित रूप से दिग्विजय सिंह ने यह बयान मुस्लिम नेताओं को खुश करने के लिए दिया था जिसका की असमी जनता पहले से विरोध कर रही थी। लेकिन क्योंकि असम से लेकर देश के दूसरे प्रदेशों में अजमल कांग्रेस से वोटों का सौदा कर रहा था इसलिए यह सच्चाई जानते हुए कि असम के लोगों को यह बात नहीं भायेगी, दिग्विजय सिंह ने कम्युनल पॉलिटिक्स का दामन नहीं छोड़ा। इसके अलावा ऐसे और कई कारण है जो असम में कांग्रेस और अजमल की कम्युनल जोड़ी बनाते हैं। अजमल कासिम लगातार दबाव बनाता रहा है कि बोडोलैण्ड टेरिटोरियल काउंसिल भंग कर दिया जाए जो कि बोडो लोगों को विशेष अधिकार देती है। लेकिन गोगोई के विरोध के कारण इस बारे में बात आगे नहीं जा पाती है।
शायद यही कारण है कि अजमल ने एक तरफ जहां तरुण गोगोई को कमजोर करने के लिए उन्हीं के विश्वासपात्र हिमन्त शर्मा को आगे बढ़ाया वहीं दूसरी ओर अपने संबंधों और संपर्कों का इस्तेमाल करते हुए कांग्रेस की वोटबैंक की राजनीति का सौदा भी करता रहा। यह तो भला हो सोनिया गांधी का जिन्होंने दबाव के बाद भी अपने असम दौरे के दौरान तरुण गोगोई को हटाने से मना कर दिया। इसके बाद से ही हिमन्त शर्मा अपने दफ्तर नहीं आ रहे हैं जिसके बाद इस बात की अफवाह फैली है कि उन्होंने इस्तीफा दे दिया है। हालांकि आधिकारिक तौर पर उनके इस्तीफे की कोई पुष्टि नहीं हुई है। बल्कि कांग्रेस के अंदर से ये खबरें जरूर बाहर आई हैं कि गोगई से गृह मंत्रालय वापस लेकर किसी और को यह जिम्मा दिया जा सकता है क्योंकि अभी गोगोई के पास गृह मंत्रालय के साथ साथ वित्त मंत्रालय भी है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि आसाम में वर्तमान दंगों के इतिहास में कांग्रेस की मुस्लिमपरस्त राजनीति ही नजर आती रही है। लेकिन दंगों के बीच भी कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति कम नहीं हुई। यह नहीं हो सकता कि दिग्विजय सिंह को न पता हो कि अजमल कासिम आसाम में क्या चाहता है? फिर भी वे हिमन्त शर्मा के जरिए अजमल कासिम को पनाह दे रहे हैं तो कांग्रेस की कम्युनल पॉलिटिक्स की ही पोल खुलती है। असम में बोडो और मुस्लिमों के बीच जमीन का संघर्ष पांच दशक से भी अधिक पुराना हो गया है। यह बोडो लोगों का दुर्भाग्य ही है कि भूटान और नेपाल के बीच वे लगातार सिकुड़ते जा रहे हैं, शायद यही कारण है कि वे अपनी खोती जमीन को बचाने के लिए एक बार हिंसक हो चले हैं। लेकिन कांग्रेस क्या कर रही है? अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने के लिए वह एक ऐसे आदमी को बढ़ावा दे रही है जो प्रदेश की सत्ता को अपने कब्जे में लेना चाहती है। अजमल खुद कहता रहा है कि गोगोई उसकी पार्टी को नेस्तनाबूत करना चाहते हैं। जाहिर है, इसके बाद वह भी गोगोई को चौन से कहां बैठने देगा? तो क्या अब वक्त नहीं है कि कांग्रेस अगर सचमुच राज्य में शांति चाहती है तो अपने मुख्यमंत्री का साथ दे और उस अजमल पर लगाम लगाये जो कांग्रेस की आंतरिक राजनीति का इस्तेमाल अपने राजनीतिक फायदे के लिए कर रहा है लेकिन इसका खामियाजा पूरे आसाम को भुगतना पड़ रहा है।

(लेखक विस्फोट डॉट काम के संपादक हैं)

सोशल मीडिया पर जायज है सवाल


सोशल मीडिया पर जायज है सवाल

(तेजवानी गिरधर)

नई दिल्ली (साई)।  आज जब सोशल मीडिया के दुरुपयोग की वजह से उत्तर पूर्व के लोगों का देश के विभिन्न प्रांतों से बड़े पैमाने पर पलायन हो रहा है और सरकार की ओर से सुरक्षा की बार-बार घोषणा का भी असर नहीं हो रहा तो लग रहा है कि वाकई सोशल मीडिया पर नियंत्रण की मांग जायज है। इससे पूर्व केन्द्रीय दूरसंचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री कपिल सिब्बल ने जैसे ही यह कहा था कि उनका मंत्रालय इंटरनेट में लोगों की छवि खराब करने वाली सामग्री पर रोक लगाने की व्यवस्था विकसित कर रहा है और सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स से आपत्तिजनक सामग्री को हटाने के लिए एक नियामक व्यवस्था बना रहा है तो बवाल हो गया था।
अभिव्यक्ति की आजादी के पैरोकार बुद्धिजीवी इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश के रूप में परिभाषित करने लगे, वहीं मौके का फायदा उठाकर विपक्ष ने इसे आपातकाल का आगाज बताना शुरू कर दिया था। अंकुश लगाए जाने का संकेत देने वाले केन्द्रीय मंत्री कपिल सिब्बल को सोशल मीडिया पर जम कर गालियां बकी जा रही थीं कि वे नेहरू-गांधी परिवार के तलुए चाट रहे हैं। सिब्बल के बयान को तुरंत इसी अर्थ में लिया गया कि वे सोनिया व मनमोहन सिंह के बारे में आपत्तिजनक सामग्री हटाने के मकसद से ऐसा कर रहे हैं। एक न्यूज चौनल ने तो बाकायदा न्यूज फ्लैश में इसे ही हाइलाइट करना शुरू कर दिया, हालांकि दो मिनट बाद ही उसने संशोधन किया कि सिब्बल ने दोनों का नाम लेकर आपत्तिजनक सामग्री हटाने की बात नहीं कही है। हालांकि सच यही था कि नेहरू-गांधी परिवार पर अन्ना हजारे व बाबा रामदेव के समर्थकों सहित हिंदूवादी संगठन अभद्र और अश्लील टिप्पणियां कर रहे थे और अब भी कर रहे हैं, इसी वजह से अंकुश लगाए जाने का ख्याल आया था। यह बात दीगर है कि बीमार मानसिकता के लोग अन्ना व बाबा को भी नहीं छोड़ रहे। सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने वाली सामग्री के साथ अश्लील फोटो भी खूब पसरी हुई है।
ऐसा लगता है कि सोशल मीडिया के मामले में हम अभी वयस्क हुए नहीं हैं। हालांकि इसका सदुपयोग करने वाले भी कम नहीं हैं, मगर अधिसंख्य यूजर्स इसका दुरुपयोग कर रहे हैं। केवल राजनीतिक टिप्पणियां ही नहीं, बल्कि अश्लील सामग्री भी जम कर परोसी जा रही है। लोग बाबा रामदेव और अन्ना तक को नहीं छोड़ रहे। लोगों को लग रहा है कि जो बातें प्रिंट व इलैक्ट्रॉनिक मीडिया पर आचार संहिता की वजह से नहीं आ पा रही, सोशल मीडिया पर बड़ी आसानी से शेयर की जा सकती है। और शौक शौक में लोग इसके मजे ले रहे हैं। साथ ही असामाजिक तत्व अपने कुत्सित मकसद से उसका जम कर दुरुपयोग कर रहे हैं।
आपको याद होगा कि चंद माह पहले ही भीलवाड़ा में भी एक धर्म विशेष के बारे में घटिया टिप्पणी की वजह से सांप्रदायिक तनाव उत्पन्न हो गया था। मगर चूंकि कोई बड़ी वारदात नहीं हुई, इस कारण न तो सरकार चेती न ही इंटरनेट कंपनियां। उलटे अभिव्यक्ति की आजादी की पैरवी करने वाले हावी हो रहे थे कि सरकार केवल नेहरू-गांधी परिवार को बचाने के लिए ही अंकुश की बातें कर रही है। आज जब इसी सोशल मीडिया का उत्तर पूर्व के लोगों को धमकाने के लिए किया जा रहा है और वे अखंड भारत में अपने राज्य की ओर पलायन करने को मजबूर हैं तो राजनीतिक दलों को भी लग रहा है कि इस पर अंकुश लगाया जाना चाहिए। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव सहित अन्य ने तो बाकायदा संसद में मांग उठाई। सरकार ने भी इंटरनेट कंपनियों को नफरत फैलाने वाली सामग्री हटाने को कहा है। गृह मंत्रालय ने फेसबुक, ऑरकुट व ट्विटर जैसे सोशल साइट पर भी नजर रखने को कहा है। कुछ जागरूक फेसबुक यूजर्स भी दुरुपयोग नहीं करने की अपील कर रहे हैं।
आपको याद होगा कि पूर्व में जब सोशल मीडिया पर लगाम कसने की खबर आई तो उस पर देशभर के बुद्धिजीवियों में जम कर बहस छिड़ गई थी। लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की दुहाई देते हुए जहां कई लोग इसे संविधान की मूल भावना के विपरीत और तानाशाही की संज्ञा दे रहे थे, वहीं कुछ लोग अभिव्यक्ति की आजादी के बहाने चाहे जिस का चरित्र हनन करने और अश्लीलता की हदें पार किए जाने पर नियंत्रण पर जोर दे रहे थे।
वस्तुतः पिछले कुछ सालों में हमारे देश में इंटरनेट व सोशल नेटवर्किंग साइट्स का चलन बढ़ रहा है। आम तौर पर प्रिंट और इलैक्ट्रॉनिक मीडिया पर जो सामग्री प्रतिबंधित है अथवा शिष्टाचार के नाते नहीं दिखाई जाती, वह इन साइट्स पर धड़ल्ले से उजागर हो रही है। किसी भी प्रकार का नियंत्रण न होने के कारण जायज-नाजायज आईडी के जरिए जिसके मन जो कुछ आता है, वह इन साइट्स पर जारी कर अपनी कुंठा शांत कर रहा है। अश्लील चित्र और वीडियो तो चलन में हैं ही, धार्मिक उन्माद फैलाने वाली सामग्री भी पसरती जा रही है।
जहां तक अभिव्यक्ति की आजादी का सवाल है, मोटे तौर पर यह सही है कि ऐसे नियंत्रण से लोकतंत्र प्रभावित होगा। इसकी आड़ में सरकार अपने खिलाफ चला जा रहे अभियान को कुचलने की कोशिश कर सकती है, जो कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए घातक होगा। लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या अभिव्यक्ति की आजादी के मायने यह है कि फेसबुक, ट्विटर, गूगल, याहू और यू-ट्यूब जैसी वेबसाइट्स पर लोगों की धार्मिक भावनाओं, विचारों और व्यक्तिगत भावना से खेलने तथा अश्लील तस्वीरें पोस्ट करने की छूट दे दी जाए? व्यक्ति विशेष के प्रति अमर्यादित टिप्पणियां और अश्लील फोटो जारी करने दिए जाएं? किसी के खिलाफ भड़ास निकालने की खुली आजादी दे दी जाए? सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर इन दिनों जो कुछ हो रहा है, क्या उसे अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर स्वीकार कर लिया जाये?
राजनीतिक दृष्टिकोण से हट कर भी बात करें तो यह सवाल तो उठता ही है कि क्या हमारा सामाजिक परिवेश और संस्कृति ऐसी अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर आ रही अपसंस्कृति को स्वीकार करने को राजी है? माना कि इंटरनेट के जरिए सोशल नेटवर्किंग के फैलते जाल में दुनिया सिमटती जा रही है और इसके अनेक फायदे भी हैं, मगर यह भी कम सच नहीं है कि इसका नशा बच्चे, बूढ़े और खासकर युवाओं के ऊपर इस कदर चढ़ चुका है कि वह मर्यादाओं की सीमाएं लांघने लगा है। अश्लीलता व अपराध का बढ़ता मायाजाल अपसंस्कृति को खुलेआम बढ़ावा दे रहा है। जवान तो क्या, बूढ़े भी पोर्न मसाले के दीवाने होने लगे हैं। इतना ही नहीं फर्जी आर्थिक आकर्षण के जरिए धोखाधड़ी का गोरखधंधा भी खूब फल-फूल रहा है। साइबर क्राइम होने की खबरें हम आए दिन देख-सुन रहे हैं। जिन देशों के लोग इंटरनेट का उपयोग अरसे से कर रहे हैं, वे तो अलबत्ता सावधान हैं, मगर हम भारतीय मानसिक रूप से इतने सशक्त नहीं हैं। ऐसे में हमें सतर्क रहना होगा। सोशल नेटवर्किंग की  सकारात्मकता के बीच ज्यादा प्रतिशत में बढ़ रही नकारात्मकता से कैसे निपटा जाए, इस पर गौर करना होगा।

प्रणव, सिंह ने पंडित जी को दी श्रृद्धांजली


प्रणव, सिंह ने पंडित जी को दी श्रृद्धांजली

(प्रियंका श्रीवास्तव)

नई दिल्ली (साई)। भारत के पूर्व राष्ट्रपति स्व0 डा0 शंकर दयाल शर्मा की 94वीं जयन्ती के अवसर पर यहां उनकी समाधि स्थल कर्मभूमि पर उन्हें पुष्पांजलि अर्पित की गयी। इस अवसर पर भजनों का आयोजन किया गया। मध्यप्रदेश शासन द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखजी, प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह, केन्द्रीय गृहमंत्री श्री सुशील कुमार शिन्दे और मध्यप्रदेश सरकार की ओर से जनसंपर्क एवं संस्कृति मंत्री श्री लक्ष्मीकांत शर्मा सहित गणमान्य नागरिकोें ने समाधि स्थल कर्मभूमि पहुंचकर स्व0 डा0 शर्मा के चित्र पर पुष्प्प अर्पित किये। समारोह में स्व0 डा0 शंकर दयाल शर्मा की धर्मपत्नी श्रीमती विमला शर्मा, उनके पुत्र श्री आशुतोष दयाल शर्मा, उनके परिवारजन, मध्यप्रदेश की आवासीय आयुक्त श्रीमती स्नेहलता कुमार सहित गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।

मध्यप्रदेश के विकास कार्यों की सराहना


मध्यप्रदेश के विकास कार्यों की सराहना

(महेंद्र देशमुख)

नई दिल्ली (साई)। मध्यप्रदेश आठ वर्ष पहले पिछड़े राज्यों में गिना जाता था, वह आज तेजी से विकास करने वाले प्रदेशों की कतार में आ गया है। आज प्रदेश में किसानों को उनकी मेहनत का सही मूल्य मिल रहा है, महिलाओं के अधिकार पूरी तरह सुरक्षित हुए हैं और अधोसंरचना विकास को सही दिशा मिली है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान आज यहां आयोजित भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में सम्बोधित कर रहे थे।
विकास की चर्चा करते हुए मुख्यमंत्री ने बताया कि प्रदेश में अनेक कीर्तिमान बनाये हैं मसलन 102 प्रतिशत की दर से 11वीं पंचवर्षीय योजना में सकल घरेलू उत्पाद हासिल किया जबकि पूरे देश का सकल घरेलू उत्पाद 7 से 8 प्रतिशत ही रहा। पिछले वित्तीय वर्ष में मध्यप्रदेश की विकास दर 1198 प्रतिशत की रही जबकि राष्ट्रीय विकास दर केवल 65 प्रतिशत ही रही। प्रदेश में कृषि विकास दर 9 प्रतिशत की रही। साथ ही महिला सशक्तिकरण, जन स्वास्थ्य सेवाएं, सड़कों का फैलता जाल हो या बिजली उत्पादन में बढ़ोत्तरी। हर क्षेत्र में मध्यप्रदेश राष्ट्रीय औसत से आगे ही रहा।
वित्तीय प्रबंधन के बारे में बताते हुए श्री चौहान ने कहा कि सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में राजस्व की प्राप्ति सन् 2005-06 में जो 165 प्रतिशत थी अब 2012-13 में बढ़कर 2079 प्रतिशत हो गयी है। राजस्व कर जो पिछले पांच सालों में अन्य राज्यों से कम रहा करता था वह अब बढ़कर 842 प्रतिशत हो गया है जबकि पूरे देश का करीब 7 प्रतिशत ही है। कुल राजस्व में ब्याज का प्रतिशत जो 2005-06 में 16 प्रतिशत हुआ करता था वह अब गिरकर 9 प्रतिशत रह गया है। श्री चौहान ने बताया कि 2005-06 से राज्य का बजट आय से ज्यादा ही रहा।
मुख्यमंत्री श्री चौहान ने इसका श्रेय प्रदेश की जनता को देते हुए कहा कि प्रदेश के विकास की प्रक्रिया में वह हर समय शामिल हैं। आज प्रदेश का हर नागरिक अपने प्रदेश के निर्माण के लिए तैयार है और उनके सहयोग से ही प्रदेश का भविष्य  उज्जवल बनेगा। बैठक में अधोसंरचना विकास, महिला सशक्तिकरण- लाडली लक्ष्मी योजना, बेटी बचाओ अभियान, गांव की बेटी, मुख्यमंत्री कन्यादान योजना आदि, मुख्यमंत्री मजदूर सुरक्षा योजना - गैर संगठित श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजना, मातृत्व अवकाश, बीमा योजना, छात्रवृत्ति आदि देना, अटल बाल आरोग्य एवं पोषण मिशन, मुख्यमंत्री बाल हृदय रोग उपचार योजना, कृषि कैबिनेट का गठन और कृषि को लाभ का धंधा बनाने, मध्यप्रदेश में सड़कों का विकास पी।पी।पी। के माध्यम द्वारा, मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना आदि के बारे में मुख्यमंत्री श्री चौहान ने विस्तार से बताया।  उन्होंने विशेष रूप से सुशासन के प्रयासों जैसे मध्यप्रदेश लोक सेवा गारंटी अधिनियम, विकेन्द्रीकृत जिला योजना, जनदर्शन कार्यक्रम, समाधान आन लाइन, समाधान एक दिन, के अलावा मुख्यमंत्री निवास पर आयोजित करीब 25 पंचायतों के आयोजन की विशेष रूप से जानकारी दी।

0 मुख्यमंत्री के कार्यों की सराहना

बैठक में उपस्थित सभी पदाधिकारियों और मुख्यमंत्रियों ने मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यों की सराहना की। गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने प्रदेश में सर्वहारा वर्ग के कल्याण एवं आर्थिक मजबूती के लिए शुरू किये गये कार्यों की विशेष प्रशंसा की और कहा कि मध्यप्रदेश सहित अन्य भाजपा मुख्यमंत्रियों के विशेष कार्यक्रमों पर एक फिल्म बनाई जाय और उसे विदेशों में दिखाया जाना चाहिए ताकि दुनिया यह जान सके कि भाजपा सर्वहारा वर्ग के विकास के लिए प्रतिबद्ध है। श्री मोदी के इस सुझाव पर सभी ने अपनी सहमति व्यक्त की।

डा० हरक सिंह रावत के खिलाफ मंत्री प्रसाद नैथानी किसकी शह पर कठपुतली बने


डा० हरक सिंह रावत के खिलाफ मंत्री प्रसाद नैथानी किसकी शह पर कठपुतली बने

सतपाल महाराज जैसे धनकुबेर बाबा का शिष्य

(चंद्रशेखर जोशी)

देहरादून (साई)। उत्तराखण्ड में निर्दलीय विधायक कैबिनेट मंत्री बनकर कांग्रेस के रसूखदार नेता से उलझकर कांग्रेस की किरकिरी करा रहे हैं। राजनीतिक गलियारों में इस बात को लेकर जोरों पर चर्चा जारी है कि नैथानी को इस जंग में पर्दे के पीछे एक बडे राजनेता का संरक्षण मिला हुआ है और यही कारण है कि निर्दलीय होने के बावजूद नैथानी सीएम की दौड म सबसे आगे रहे हरक सिंह रावत को नीचा दिखाने की रणनीति तैयार करते हुए किसी बडे षडयंत्र में लगे हुए हैं। वहीं चर्चा यह भी है कि कांग्रेस पार्टी के ही कुछ नेता हरक सिंह रावत के पार्टी में बढते कद को कम करने की जुगत में लगे हुए हैं। वहीं मुख्यमंत्री बहुगुणा की रहस्यमय चुप्पी को लेकर भी कई प्रकार की चर्चाएं हो रही है ऐसे में प्रदेश के राजनीतिज्ञों में नए समीकरणों के बनने और राजनीतिक अस्थिरता को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं। मुख्यमंत्री द्वारा इस प्रकार रहस्यमय चुप्पी साधने पर सरकार की साख को धक्का लग रहा है और निर्दलीय विधायक मंत्री प्रसाद नैथानी किस नेता के हाथ की कठपुतली बनकर हरक सिंह रावत के खिलाफ षडयंत्र का मोहरा बन रहे हैं, इसकी चर्चा जोरों पर हैं। वहीं एक अधिकारी को लेकर शिक्षा मंत्री के रूप में मंत्री प्रसाद नैथानी ने इसे नाक का सवाल बना दिया, वहीं इस प्रकरण के लम्बा खिंचने के पीछे बडे नेताओं का क्या मकसद है, इस बारे में राजनीतिक प्रेक्षक की राय एकमत होकर सामने आ रही है कि डा० हरक सिंह रावत के पीछे फिर वरिष्ठ कांग्रेसियों का षडयंत्र का ताना बाना तो नहीं बुना जा रहा है, वहीं आमजन के अनुसार उत्तराखण्ड में इस प्रकार की घटना को किसी भी सूरत में जायज नहीं ठहराया जा सकता है। इतना ही नहीं दोनों मंत्रियों के बीच बढे इस विवाद में मुख्यमंत्राी स्तर से भी कोई पहल न होने से साफ जाहिर हो रहा है कि सीएम भी किसी दबाव में नजर आ रहे हैं। प्रदेश के कैबिनेट मंत्रियों में इस आपसी द्वंद को लेकर कई प्रकार की चर्चाएं हो रही है। मुख्यमंत्री की दौड में शामिल रहे हरक सिंह रावत को निर्दलीय होने के बावजूद मंत्राी प्रसाद नैथानी जिस तरह से आंखे तरेर रहे हैं उसमें यह तो तय है कि मंत्री प्रसाद नैथानी के पीछे किसी बडे राजनेता का संरक्षण है और अपनी ही पार्टी के कुछ नेता हरक सिंह रावत के पार्टी म बढते कद को कम करने की जुगत में लगे हुए हैं। वहीं मीडिया के कुछ लोगों द्वारा इस मामले को तूल व चटकारे देकर प्रकाशित किया जाना यह साबित करता है कि कांग्रेस के नेताओं में आपसी गलाकाट प्रतिद्वंद्विता का ही यह परिणाम है जिसमें मीडिया के कुछ लोग मोहरा बन रहे हैं। सूबे के दो कैबिनेट मंत्रिय की इस आपसी द्वंद से उत्तराखण्ड ही नहीं पूरे देश में भी गलत संदेश जा रहा है। पार्टी में अपनी मजबूत पकड रखने वाले और प्रदेश अध्यक्ष पद के दावेदार माने जा रहे हरक सिंह रावत को नीचा दिखाने के लिए पार्टी के ही एक दिग्गज नेता को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म  बना हुआ है। माना जा रहा है कि इस दिग्गज नेता के ही इशारे पर मंत्री प्रसाद नैथानी हरक सिंह रावत को आंखे तरेरने में जुटे हुए हैं। शह और मात के इस खेल में पूरे प्रदेश की भद पिट रही है और इस प्रकार का यह विवाद पूरे प्रदेश में गलत संदेश देने के लिए पर्याप्त है। सूबे के विकास के लिए प्रदेश के मंत्रियों को अधिक ध्यान देने की जरूरत है न कि उन्हें किसी मुद्दे को लेकर उसे नाक की लडाई बनाने की। लोग का कहना है कि जिस प्रकार से दोनो नेताओं ने एक दूसरे के सामने तालवारें निकाली है यदि उसी प्रकार से वे जनता को होने वाली समस्या के खिलाफ एकजुट होकर उसके त्वरीत निदान की बात करते और जिस अवधरणा को लेकर उत्तराखण्ड का गठन किया गया था उसे पूरा करने का प्रयास करते तो शायद उनके लिए यह बडी उपलब्ध् होती। लेकन किसी बडे राजनेता के ईशारों पर कार्य करते हुए प्रदेश के मंत्रियों के बीच द्वंद का वातावरण किसी भी सूरत में प्रदेश हित में नहीं है। ऐसे म मुख्यमंत्राी विजय बहुगुणा की इस प्रकरण में चुप्पी भी किसी सूरत में उचित नहीं है। उन्हें इस प्रकार के वातावरण से निजात दिलाने के लिए अपने स्तर से ठोस पहल करने की जरूरत थी। लेकिन उन्होंने ऐसा न करके यह साबित कर दिया कि वे किसी न किसी दबाव में कार्य कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर लेखक रू इन्द्रेश मैखुरी  गढ्वाल के युवा नेता ने मंत्री प्रसाद नैथानी की पोल पटटी व्घ्यंग्घ्य के माध्घ्यम से खोली है,उन्घ्होंने मंत्री प्रसाद नैथानी के बारे में लिखा है कि एक हैं मंत्री भाई, जतो नाम, ततो गुण।ऐसा तो कम ही पाया जाता है वरना तो हमारे यहाँ आँख के अन्धों का नाम नैनसुख होने का चलन रहा है, करोड़ों की संपत्ति वाले का नाम गरीबदास होने की रवायत है और लक्ष्मी प्रसाद झोपड़े में दिन काटता है।पर मंत्री भाई के साथ ऐसा नहीं है,उनका नाम मंत्री है तो हैं भी मंत्री।

0 मंत्री भाई बड़े कारसाज आदमी हैं,सुखिऱ्यों में कैसे रहना है,

इस नुस्खे के वे माहिर खिलाड़ी हैं। उनके करतबों के कारण उनके विरोधी उन्हें मदारी भी कहते हैं। बीते विधानसभा चुनाव में तो मंत्री भाई ने राष्ट्रीय ख्याति अर्जित की।पूरे देश ने उन्हें टी।वी।पर दहाडें मार-मार कर रोते देखा, ऐसा रुंदन- क्रंदन मचाया  उन्होंने  कि प्रोफेशनल  रुदालियाँ  भी  उनके सामने पानी भरें। आंसुओं के बीच बहती नाक पोंछते हुए उन्होंने कहा-ष्मैं गरीब हूँ ना, इसलिए कांग्रेस ने मेरा टिकट काट दियाष्। जनता ने सोचा-सपा, उक्रांद से लेकर कांग्रेस तक की यात्रा किया हुआ आदमी और गरीब, सतपाल महाराज जैसे धनकुबेर बाबा का शिष्य, गरीब-ये  तो बहुत नाइंसाफी है।जो आदमी उत्तर प्रदेश में विधायक रहा हो,उत्तराखंड में मंत्री रहा हो और फिर भी गरीब ही रह गया तो इससे बड़ी शर्मिंदगी और क्या हो सकती है,इस बेचारे के लिए। जल्द ही इसकी गरीबी दूर ना की गयी तो हो ना हो कि कांग्रेसी नेताओं की जमात में ये उपेक्षित हो जाए और फ्रस्ट्रेट हो कर कहीं आत्महत्या कर बैठा तो इसका पाप होगा-जनता के सर ! अरे भई,तुम एक वोट देकर किसीकी गरीबी दूर कर सकते हो तो कर दो,किसी के बाप का क्या जाता है।
वैसे भी देवप्रयाग क्षेत्र की जनता बड़ी उदारमना है।पत्नी के मरने के बाद अगले चुनाव में दिवाकर भट्ट आये और उन्होंने कहा कि वोट नहीं दोगे तो चिता में लकड़ी देने आना। लोगों ने कहा अरे मरता क्यूँ है ? लेजा वोट और इस तरह भट्ट साहब की गरीबी दूर हो गयी। तो मंत्री भाई के रुदन पर भी देवप्रयाग क्षेत्र की जनता पसीज गयी और जिता के भेज दिया विधानसभा। मंत्री भाई जनता के पक्के वफादार आदमी हैं,जनता ने उन्हें गरीबी पर पसीज कर गरीबी दूर करने के लिए वोट दिया है। इसलिए जिन महकमों के वो मंत्री हैं, उनकी चिंता से ज्यादा मंत्री भाई को जनता के गरीबी दूर करने के आदेश की चिंता है। आखिर जब पांच साल बाद जनता को क्या मुंह दिखाएँगे। जनता दुत्कारेगी नहीं कि ष्तू फिर आ गया गरीब का गरीब वापस ,दुर्रष् इसलिए गाँव-शहर में पानी के लिए हाहाकार मचे, कोई बात नहीं, गर्मी में नलके से नहीं तो बरसात में आसमान से तो पानी आ ही जायेगा। मास्टरों के ट्रान्सफर का लफडा इतने सालों नहीं सुल्टा, उनके कार्यकाल में भी नहीं सुल्टा तो कोई पहाड़ थोड़े टूट पडेगा। पर अपनी गरीबी वे दूर करके रहेंगे।
पुराने समय में गरीबी दूर करना काफी मुश्किल था, बरसों तक तपस्या आदि करनी पड़ती थी और फिर भी देवता उलटा-सीधा वरदान दे देते थे। पर नए ज़माने के देवता ऐसे ढीठ नहीं हैं। ये नए ज़माने के देवता तो बस अपने प्रति वफादारी से ही प्रसन्न होकर मालामाल कर देते हैं। मंत्री भाई के विधानसभा क्षेत्र के चौरास नामक इलाके में भी 6 वर्षों से पी।वी।प्रसन्ना रेड्डी नाम के ऐसे ही कृपालु देवता विराजमान हैं। रेड्डी देवता को जनता के विकास की इतनी चिंता है कि वो कहते हैं- हे जनता तुम मुझसे घूस में जितना चाहे रुपया ले जाओ पर मुझे अपना विकास करने दो। ऐसा नेक कृपालु देवता कोई और हो सकता है भला, जो जनता का विकास करने के लिए जनता को ही घूस देता हो-नहीं, कदापि नहीं। तो अपने मंत्री भाई भी रेड्डी देवता को प्रसन्न करने निकल पड़ें हैं। रेड्डी देवता को प्रसन्न करने के लिए वे उसी पार्टी की सरकार के खिलाफ धरना देने चले गये, जिस पार्टी की सरकार में वो उत्तराखंड में मंत्री, जब रेड्डी देवता को प्रसन्न करना हो सरकार क्या चीज है, खुद निर्णय लेकर अपने ही खिलाफ भी धरने पर बैठा जा सकता है। गरीबी दूर करने का सवाल जो है ! फिर रेड्डी देवता जैसा दयानिधान देवता और कहाँ मिलेगा। मंत्री भाई, रेड्डी देवता की कृपा का प्रसाद पा सकें, इस हेतु मंत्री भाई के धरने में जनता की भीड़ का बंदोबस्त भी रेड्डी देवता ने खुद कर दिया, जनता के दिल्ली जानेके लिए बसों का इंतजाम भी रेड्डी देवता का और लाखों रुपये के अखबारी विज्ञापन भी रेड्डी देवता ने ही दिए। मंत्री भाई को तो बस जंतर-मंतर पर रेड्डी देवता की भेजी जनता के सामने बैठना भर है, फोटो खिंचवानी है और रेड्डी देवता के कृपा उन पर ओवरफ्लो होकर बहेगी और रेड्डी देवता की ऐसी कृपा रही तो अगले चुनाव में मंत्री भाई को अपने अमूल्य आंसू, तुच्छ जनता के वोटों के लिए बर्बाद नहीं करने पड़ेंगे। रेड्डी देवता की कृपा मंत्री भाई पर बनी रहे !  रेड्डी भक्ति जिंदाबाद, रेड्डी पटाओ,गरीबी हटाओ !

अखिलेश सरकार के मंत्रियों को मुलायम की फटकार


अखिलेश सरकार के मंत्रियों को मुलायम की फटकार

(दीपांकर श्रीवास्तव)

लखनऊ (साई)। मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश सरकार के मंत्रियों को फटकार लगाते हुए उन्घ्हें अपना कामकाज सुधारने की चेतावनी दी है।
मुलायम सिंह यादव ने यूपी के मंत्रियों को चेतावनी देते हुए कहा कि वे अपने कामकाज का तौर-तरीका सुधारें और सार्वजनिक बयानबाजी से बचें। मुलायम ने कहा कि असली चुनौती लोकसभा चुनाव है, जिसे घ्यान में रखना बहुत जरूरी है। जाहिर है कि मुलायम सिंह यादव लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अपनी पार्टी और यूपी सरकार की छवि धूमिल होने से हर हाल में बचाना चाहते हैं। सियासी गलियारों में मुलायम के ताजा बयान को इसी की पहल के रूप में देखा जा रहा है।

कांडा भोग रहा व्हीआईपी सुविधाएं


कांडा भोग रहा व्हीआईपी सुविधाएं

(अनेशा वर्मा)

गुडगांव (साई)। गीतिका शर्मा सूइसाइड केस में आरोपी और हरियाणा के पूर्व गृह राज्य मंत्री गोपाल कांडा ने रविवार को गुड़गांव में करीब 4 घंटे आराम से बिताए। भले ही वह दिल्ली पुलिस की गिरफ्त में हो, लेकिन रविवार को उसको घर जैसा माहौल मिला। इतना ही नहीं उसने बाकायदा घर का बना लंच किया और कपड़े भी बदले।
एमडीएलआर के ऑफिस में उसने वकीलों से करीब एक घंटे तक चर्चा भी की। उसने मीडिया के सामने अपने आप को निर्दाेष बताया। उसने कहा कि पुलिस अपना काम कर रही है। जांच के बाद यह साबित हो जाएगा कि उसका इस केस से कोई लेना-देना नहीं है।
रविवार दोपहर दिल्ली पुलिस की 3 पीसीआर वैन गोपाल कांडा को लेकर सिविल लाइन के एमडीएलआर ऑफिस आई। कांडा उस समय पूरी तरह से थका हुआ लग रहा था। उसने काली लाइन वाली शर्ट पहनी हुई थी। अपने कंधों पर नीले रंग का टावल डाल रखा था। पीसीआर से उतरने के बाद वह 3 पुलिस अधिकारियों के साथ लिफ्ट से ऑफिस में ऊपर गया। इसके बाद जब वह करीब सवा तीन बजे ऑफिस से निकला तो बिल्कुल फ्रेश दिख रहा था। उसके चेहरे पर थकान नहीं थी। उसने काले रंग की शर्ट पहन रखी थी।
कांडा के इस ऑफिस में पहुंचने के आधे घंटे बाद एक राजस्थान नंबर की सेंट्रो कार आई। बताया जा रहा है कि उसमें उसकी बहन अपने परिजनों के साथ खाना लेकर आई थी। उसने यहां पर घर का खाना खाया। कपड़े चेंज किए। इतना ही नहीं उसने अपने दो वकीलों से करीब एक घंटे तक बातचीत की।
यह बातचीत डेढ़ से ढाई बजे की बीच हुई। इसके बाद दिल्ली पुलिस की टीम उसे उसके सिविल लाइन स्थित निवास पर ले गई। यहां पर आधा घंटा रहने के बाद टीम दिल्ली के लिए रवाना हो गई। लोगों में कांडा को लेकर कई तरह की चर्चाएं थी। कांडा को देखने के लिए लोगों की भीड़ उसके ऑफिस व निवास स्थान पर जमा थी।

बिहार में महिलाएं असुरक्षित


बिहार में महिलाएं असुरक्षित

(प्रतिभा सिंह)

पटना (साई)। बिहार में महिलाएं असुरक्षित हैं। छोटी-छोटी स्कूली छात्रएं गैंगरेप की शिकार हो रही हैं। महिलाओं के साथ गैंगरेप व हिंसा के मामलों में वृद्धि हो रही हैं। उनकी सुरक्षा को लेकर पुलिस व प्रशासन की चुप्पी हिंसा को बढ़ावा दे रही है। लड़कियों को साइकिल देने की योजना किस काम की ,अगर उनकी इज्जत ही सुरक्षित नहीं।
यह कहना है राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य डॉ चारुवाली खन्ना का। वह शुक्रवार को मीडियाकर्मियों को संबोधित कर रही थीं। डॉ खन्ना बीते माह पटना में एक स्कूली छात्र के साथ गैंग रेप व रोहतास के बिक्रमगंज में लड़कियों के साथ छेड़खानी मामलों की जांच करने आयी थीं ।
उन्होने कहा कि बिहार में महिलाओं के साथ गैंगरेप व हिंसा के मामलों में वृद्धि हो रही हैं। उनकी सुरक्षा को लेकर पुलिस व प्रशासन की चुप्पी हिंसा को बढ़ावा दे रही है। बिहार में जंगल राज स्थापित हो गया है।