रविवार, 5 अगस्त 2012

उत्तराखण्ड में बादल फटने से तबाही


उत्तराखण्ड में बादल फटने से तबाही

(अर्जुन कुमार)

देहरादून (साई)। उत्तराखंड में उत्तरकाशी जिले में कल अचानक आई बाढ़ में मरने वालों की संख्या ३१ हो गई है। यह संख्या बढ़ने की आशंका है, क्योंकि कई इलाकों तक पहुंचना अब भी मुश्किल है और जिला मुख्यालय से दूरसंचार संपर्क टूट गया है। उत्तरकाशी जिले के ऊपरी पहाड़ी इलाके में बादल फटने के बाद जल विकास निगम लिमिटेड की अस्सी गंगा पनबिजली परियोजना के १९ मजदूरों के लापता होने की खबर है।
मौके से लौटकर समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संवाददाता ने बताया कि भारत-तिब्बत सीमा पुलिस और सेना के दस्ते राहत और बचाव कार्य में जुटे हैं। मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने बताया कि दूर-दराज के गांवों में राहत पहुंचाने के लिए प्रशासन हरसंभव उपाय कर रहा है। उन्होंने बताया कि प्रमुख नदियों के तट पर बसे गांवों में चेतावनी जारी कर दी गई है, क्योंकि नदियों में पानी बढ़ रहा है। हमारे संवाददाता ने ख़बर दी है कि बाढ़ के कारण अनेक मकान ढह गए हैं। कई तीर्थ यात्री रास्ते में फंसे हैं।
प्रभावित क्षेत्रों में बचा हुआ राहत कार्य जोरों पर है। प्रदेश के काबिना मंत्री प्रीतम सिंह पंवार उत्तरकाशी जिला मुख्यालय में स्वयं राहत कार्य का निरीक्षण कर रहे हैं। जिलाधिकारी को निर्देशित किया गया है कि वे दूरस्थ क्षेत्रों में बसे ग्रामीणों की सूचना उपलब्ध कराये तथा उनके लिए खाद्यान्न की व्यवस्था करायें।
उधर, जनपथ मुख्यालय के संपर्क अति वृष्टि प्रभावित क्षेत्र अस्सी गंगा एवं उपला सकवार आदि इलाकों से कट चुका है जिसके चलते वहां हुई जानमाल की हानि का सही आकलन नहीं लग पा रहा है। दूसरी तरफ स्थानीय स्तर पर तैनात राज्य कर्मचारी भी किसी प्रकार की सूचना मुख्यालय तक पहुंचाने में असमर्थ हैं क्योंकि अति वृष्टि के चलते दूरसंचार विद्युत, पेयजल, राजमार्ग आदि सभी प्रभावित हैं। इधर प्रशासन से खबर मिली है कि भागीरथी नदी के जलस्तर में कल के मुकाबले कम आई है।
भागीरथी और गंगा उफान पर हैं। रुद्रप्रयाग, चमोली और अल्मोड़ा जिले भारी बारिश से प्रभावित हैं। स्थिति में सुधार होने तक, राज्य की सभी बड़ी पनबिजली परियोजनाओं को बंद कर दिया गया है। उत्तरकाशी में अगले पांच दिन के लिए स्कूल बंद कर दिए गए हैं। राज्य सरकार ने गंगा के तटवर्ती इलाकों में रेड अलर्ट जारी किया है। खराब मौसम के कारण चार धाम यात्रा स्थगित कर दी गई है।
नेपाल और उत्तराखंड के ऊंचे इलाकों से पानी के भारी बहाव के कारण उत्तर प्रदेश में कई नदियां ऊफान पर हैं। पलिया कलां में शारदा, फर्रूखाबाद में रामगंगा और गंगा तथा कृष्णानगर में बूढ़ी राप्ती नदियों में पानी बढ़ रहा है। बाराबंकी, गोण्डा और बस्ती में गंगा ख़तरे के निशान को पार कर गई है। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के गोरखपुर संवाददाता ने ख़बर दी है कि आज सवेरे राज्य के कई पूर्वी जिलों में तीन सेंटीमीटर तक वर्षा हुई।
नेपाल के गिरिजापुरी और बनबसा बैराजों से थोडे-थोडे अंतराल पर छोडे जा रहे पानी की वजह से घाघरा और शारदा नदियों में उफान आ गया है। घाघरा, बाराबंकी में खतरे के निशान से ५५ सेंटीमीटर उपर पहुंच गई है। कुशीनगर में बूढी रापती उफान पर है। वहां नदी अपने तटबंधों पर दबाव बना रही है। बस्ती के विक्रमजोध धुसवा तटबंध पर घाघरा का दबाव बढ गया है।
इस बीच प्रदेश के राहत आयुक्त एल वेंकटेश्वरूलू ने देवी पाटन मंदिर के चार जिलो में बाढ की स्थिति का जायजा लिया है। जहां घाघरा नदी की बाढ का प्रकोप जारी है। प्रभावित इलाकों में बाढ चौकियों को सक्रिय कर दिया गया है। राज्य के सिंचाई मंत्री शिवपाल यादव ने तटवर्ती इलाकों में चौबीसों घंटे सर्तकता बरतने और पीड़ित लोगों को तुरंत राहत पहुंचाने के आदेश दिए हैं।
उत्तर प्रदेश में नेपाल और उत्तराखंड के ऊंचे इलाकों से पानी के भारी बहाव के कारण तराई के कुछ जिलों और पूर्वी जिलों में बाढ़ की स्थिति बिगड़ गई है। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संवाददाता ने बताया है कि अधिकांश नदियां ऊफान पर हैं और कुछ स्थानों पर नदियों का जल स्तर खतरे के निशान से ऊपर है।
पीलीभीत में शारदा नदी उफान पर है। यह स्थिति नेपाल की ढांचुला में बादल फटने की घटना के कारण नदी में आये पानी से पैदा हुई है। वहां एक दर्जन से ज्यादा गांव बाढ़ के पानी से घिर गए हैं। जबकि कई सड़के बाढ़ के पानी में डूबी हुई हैं। घाघरा नदी, गोंडा, बस्ती और बाराबंकी में खतरे के निशान से ऊपर चली गई है। इन जिलों के पचास से अधिक गांव बाढ़ से प्रभावित हैं। प्रशासन ने प्रभावित क्षेत्रों में बाढ़ चौकियां स्थपित कर दीं हैं, जबकि तटबंधों की मरम्मत और उनकी निगरानी का काम भी तेज$ कर दिया गया है।

जम्मू श्रीनगर मार्ग बहाल


जम्मू श्रीनगर मार्ग बहाल

(विनोद नेगी)

जम्मू (साई)। जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर यातायात आज से फिर शुरु हो गया है। रामबन जिले में कई स्थानों पर भारी बारिश के बाद जमीन धंसने के कारण कल से यातायात बंद कर दिया गया था। दो दिन से जारी भारी बारिश के कारण कई मकानों और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा है। साई संवाददाता के अनुसार जम्मू-पठानकोट राष्ट्रीय राजमार्ग और कई अन्य मार्गों पर यातायात में बाधा उत्पन्न हुई है।
प्रशासन ने सेना आदि की सहायता से तवी उच्च प्रसन्नतर आदि नदियों में फंसे कम से कम ४० लोगों को सुरक्षित निकाल लिया है। संभाग में अलर्ट घोषित कर दिया गया है। जनाब तबी उच्च प्रसन्नतर नदियों में जल स्तर खतरें के निशान के पास पहुंच गया है। इसके इलाकों और नदियों के किनारे रहने वाले लोगों को नालों वगैहरा से दूर रहने की चेतावनी जारी की गई है। प्रशासन ने सेना आदि की सहायता से तवी उच्च प्रसन्नतर आदि नदियों में फंसे कम से कम ४० लोगों को सुरक्षित निकाल लिया है। संभाग में अलर्ट घोषित कर दिया गया है।

सूखे का आंकलन के लिए बुधवार को होगी बैठक


सूखे का आंकलन के लिए बुधवार को होगी बैठक

(प्रियंका श्रीवास्तव)

नई दिल्ली (साई)। सूखे की स्थिति का जायजा लेने के लिए, केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार की अध्यक्षता में बनाए गए, अधिकार प्राप्त मंत्री समूह की बैठक बुधवार को होगी। इस बैठक मे, मॉनूसन की कम वर्षा से निपटने के उपायों पर फैसला किया जाएगा। मंत्री समूह में शामिल श्री पवार और ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेष ने सूखे जैसी स्थिति का सामना कर रहे चार राज्यों - कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान- का दौरा किया है।
इस दौरे के बाद यह बैठक बुलाई गई है। इन राज्यों में सूखे के कारण खरीफ की फसलों, चारे और पानी की आपूर्ति पर बुरा असर पड़ा है। श्री पवार, वर्षा की कमी के असर का आकलन करने के लिए फिलहाल महाराष्ट्र के षोलापुर, सतारा और पुणे जैसे भीतरी इलाकों का दौरा कर रहे हैं।
ज्ञातव्य है कि मंत्री समूह की यह दूसरी बैठक होगी। पहली बैठक ३१ जुलाई को हुई थी। उसमें सूखे जैसी स्थिति का सामना कर रहे राज्यों को करीब २० अरब रूपये के राहत पैकेज सहित विभिन्न उपायों की घोषणा की गई थी। खरीफ की फसल को बचाने के लिए किसानों को डीजल की खरीद पर ५० प्रतिषत सब्सिडी देने की घोषणा भी की गई।
मौसम विभाग ने इस वर्ष सूखे जैसी स्थिति की आषंका प्रकट की है। मॉनसून की वर्षा ९० प्रतिषत से कम रहने का अनुमान है। अब तक मॉनसून की वर्षा में २० प्रतिषत कमी दर्ज की गई है। कम वर्षा के कारण खरीफ की फसलों की बुआई में भी १० प्रतिषत कमी आई है। पिछले वर्ष के ८ करोड़ २७ लाख ६० हजार हेक्टेयर की तुलना म,ें इस वर्ष, पिछले षुक्रवार तक सात करोड़ ४८ लाख ८० हजार हेक्टेयर क्षेत्र में खरीफ फसलों की बुआई हुई है।

राहत शिवरों के लिए अलर्ट जारी

राहत शिवरों के लिए अलर्ट जारी

(धरती श्रुति गोस्वामी)

गुवहाटी (साई)। असम सरकार ने हिंसाग्रस्त जिलों के राहत शिविरों में किसी तरह की महामारी को फैलने से रोकने के लिए अलर्ट जारी कर दिया है। राहत शिविरों में १३ लोगों की जान जा चुकी है। इनमें पांच बच्चे भी हैं। स्वास्थ्य मंत्री हेमंत विश्व सरमा ने बताया है कि केन्द्र और असम से एक सौ १७ डॉक्टर राहत शिविरों में भेजे गए हैं।
समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को प्राप्त जानकारी के अनुसार इन शिविरों में रहने वाले हजारों लोग, बुखार, आंत्रशोध, दस्त का शिकार हैं। राहत शिविरों में मौजूद ९३ हजार लोगों का बुखार, दस्त और डिसेंट्री का ईलाज किया गया है। मलेरिया के १०० मामले भी सामने आये हैं। दो हजार पांच सौ गर्भवती महिलाओं की देखभाल पर खास ध्यान दिया जा रहा है।
असम सरकार दो वर्ष से कम आयु के आठ हजार बच्चों में विशेष किट बांट रही है। इस बीच हिंसाग्रस्त जिलों के स्कूलों में गर्मी की छुटट्यिां १५ अगस्त तक बढा दी गई है। अब तक ७३ हजार लोग राहत शिविरों से अपने घर लौट गये हैं। हिंसाग्रस्त जिलों में अब तक ५२ राहत शिविर भी बंद कर दिए गए हैं।

कांग्रेस का पतन सुनिश्चित: आणवाणी


कांग्रेस का पतन सुनिश्चित: आणवाणी

(शरद खरे)

नई दिल्ली (साई)। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने अपने ताजा ब्लाग पोस्ट में भविष्यवाणी की है कि आनेवाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो जाएगा. आडवाणी की भविष्यवाणी है कि कांग्रेस अपने इतिहास की सबसे हार का सामना करने जा रही है. आडवाणी के अनुसार आपातकाल के बाद हुए आम चुनाव में कांग्रेस की हार को उसके राजनीतिक इतिहास की सबसे बड़ी हार करार दिया जाता है लेकिन आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की जो हार होगी वह उसके राजनीतिक इतिहास की अब तक की सबसे बड़ी हार होगी. कांग्रेस 100 सीटों तक भी नहीं पहुंच पायेगी.
अपने ब्लाग आड़वाणी ने में लिखा है कि कांग्रेस शासन के प्रति जो नाराजगी है उसे देखते हुए उसे इतिहास की सबसे बड़ी हार के लिए तैयार हो जाना चाहिए. आडवाणी लिखते हैं कि यह ऐसा पहला मौका होगा जब कांग्रेस दहाई के आंकड़े में सिमट जाएगा और वह सैकड़े की संख्या को भी नहीं छू सकेगी.
अभी कुछ दिन पहले पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के विदाई समारोह में दो वरिष्ठ केन्द्रीय मंत्रियों से हुई बातचीत के आधार पर एलके लिखते हैं कि कांग्रेस के अंदर भी बैचेनी है. आडवाणी उन केन्द्रीय मंत्रियों के हवाले से यह संकेत भी देते हैं कि लोकसभा चुनाव 2013 में भी हो सकते हैं और 2014 में भी. आडवाणी का कहना है कि केन्द्रीय मंत्री मान रहे थे कि आगामी लोकसभा चुनाव में न तो कांग्रेस की सरकार बनेगी और न ही भाजपा की. उनके हिसाब से तीसरे मोर्चे की सरकार बन सकती है. उनके हवाले से आडवाणी लिखते हैं कि सरकार तीसरे मोर्चे की बनेगी जिसे इन दोनों बड़े दलों (भाजपा और कांग्रेस) में से किसी एक का समर्थन हासिल होगा. आडवाणी इस संभावना को खारिज करते हुए लिखते हैं कि तीसरे मोर्चे की सरकार नहीं बनेगी. आडवाणी का कहना है कि पिछले ढाई दशक में राष्ट्रीय राजनीति ने जैसी शक्ल अख्तियार कर ली है उसे देखते हुए अब यह कल्पना भी नहीं की जा सकती कि भाजपा या कांग्रेस के समर्थन के बिना तीसरा मोर्चा अपनी सरकार बना लेगा.
हालांकि आडवाणी एक संभावना पर जरूर अपनी राय देते हैं कि प्रधानमंत्री गैर कांग्रेसी और गैर भाजपाई हो सकता है जिसे इन दोनों दलों में से किसी एक का समर्थन हासिल होगा. लेकिन इस संभावना को भी आडवाणी यह कहते हुए खारिज कर देते हैं कि बीते समय का अनुभव ऐसा है कि गैर कांग्रेसी और गैर भाजपाई प्रधानमंत्री केन्द्र में स्थाई सरकार नहीं दे पाया है. चौधरी चरण सिंह, चंद्रशेखर, देवेगौड़ा, गुजराल और विश्वनाथ प्रताप सिंह का हवाला देते हुए लिखते हैं कि ऐसे प्रयोग पहले हुए हैं लेकिन असफल साबित हो गये हैं.
मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार की आलोचना करते हुए आडवाणी लिखते हैं कि केन्द्र में यूपीए की सरकार इसलिए चल रही है क्योंकि उसके पास सीबीआई है. सीबीआई को कांग्रेस का सबसे विश्वसनीय सहयोगी बताते हुए आडवाणी लिखते हैं कि इसी साथी का इस्तेमाल करके कांग्रेस अब तक लोकसभा चुनावों से बचती आ रही है.

मीडिया के मेगा इवेन्ट की अकाल मौत


मीडिया के मेगा इवेन्ट की अकाल मौत

(एस.राजन टोडरिया / विस्फोट डॉट काम)

नई दिल्ली (साई)। भारतीय टीवी इतिहास के सबसे बड़े टीवी शो का जंतर मंतर पर आकस्मिक निधन हो गया। न्यूज चौनलों के इतिहास के इस मेगा मीडिया इवेंट के अचानक यूं खत्म हो जाने के बाद से इस पर प्रतिक्रियाओं का दौर जारी है। देश के सारे न्यूज चौनलों में इस इवेंट के आकस्मिक निधन की खबरें और नाराजी छाई रही। देश में लगभग डेढ़ साल से चल रहे भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की भस्म और अस्थियों से अन्ना हजारे ने एक नए दल के गठन का ऐलान क्या किया कि सारे न्यूज चौनल सकते में आ गए। लगभग सभी चौनलों पर शोकधुनें बजने लगीं। दुखी एंकरों के कंठ भरे हुए थे और उनकी आवाजों में एक मीडिया इवेंट की अकाल मृत्यु से उपजी निराशा को पढ़ा जा सकता था।
अन्ना हजारे द्वारा राजनीतिक दल बनाने के ऐलान के बाद विभिन्न तबकों पर जबरदस्त प्रतिक्रिया हो रही है। सबसे दिलचस्प प्रतिक्रिया न्यूज चौनलों से हे। सारे के सारे चौनल अन्ना हजारे के पीछे पड़ गए हैं जैसे अन्ना और उनकी टीम ने कुफ्र कह दिया हो। हमारे अन्ना हजारे और उनकी राजनीति से मतभेद हो सकते हैं लेकिन राजनीति में आने के उनके नागरिक अधिकार पर हम कैसे सवाल उठा सकते हैं। वो कैसी राजनीति करेंगे,सफल होंगे या विफल होंगे, इस पर आज फैसला कैसे सुनाया जा सकता है। दरअसल, इस देश के कारपोरेट मीडिया के लिए अन्ना का आंदोलन महज एक इवेंट था जिसके जरिये वे चर्चायें करते रह सकते थे और भ्रष्टाचार से तंग मध्यवर्ग में अपनी टीआरपी बढ़ा सकते थे। इस चर्चा के बीच विज्ञापनों का छौंक और उससे भी कमाई। ऐसा इवेंट चलता रहे और कमाई होती रहे, इससे न्यूज चौनलों का प्रसन्न होना स्वाभाविक था।
अन्ना का आंदोलन भले ही इस देश के मीडिया का उत्पादन रहा हो लेकिन मीडिया को पहली बार यह पता चल गया कि वह अपने न्यूज रुम में आंदोलन पैदा करने के बावजूद उसे अपने रिमोट से नियंत्रित नहीं कर सकता। टीम अन्ना और मीडिया ने जमकर एक दूसरे का इस्तेमाल किया। टीम अन्ना के सामने अपना राजनीतिक मकसद पहले ही दिन से स्पष्ट था। अन्यथा टीम अन्ना सरकार के लोकपाल पर राजी हो जाती और उसके कामकाज की समीक्षा करने के बाद या उससे आम लोगों का मोहभंग होने का इंतजार करती। लेकिन टीम अन्ना 2014 के लोकसभा चुनाव को लक्ष्य मानकर अपने पत्ते खेल रही थी। कामनवेल्थ, दूरसंचार और आदर्श घोटालों को उठा रहे मीडिया को भी सड़क पर एक दबाव समूह चाहिए था ताकि वह दो लगातार चुनावी विजयों से अहंकार ग्रस्त कांग्रेस की नाक में नकेल डाल सके।
मीडिया और अन्ना की टीम को अपने-अपने कारणों से एक दूसरे की जरुरत थी। इसलिए दोनों ने हाथ मिला लिया और कैमरों और कई कॉलमों में फैली खबरों ने पूरे देश में एक बड़े जनांदोलन का भ्रम खड़ा कर दिया। हालत यह हो गई कि भ्रष्टाचार विरोधी जुलूस अखबारों और चौनलों के दफ्तरों की ओर मुड़ने लगे। भ्रष्टाचार विरोधी जुलूस 24 घंटे के कार्यक्रम में बदल गए। टीवी चौनलों के उदय के बाद पिछले बीस सालों में यह सबसे विराट मीडिया इवेंट था जिसे जनसंचार  के महारथियों ने बेहद बारीकी से बुना था। मीडिया के इस अभूतपूर्व दबाव ने कांग्रेस नेतृत्व के विवेक को भी हर लिया। अहंकार ग्रस्त कांग्रेस का नेतृत्व इस दबाव में बिखर गया। वह अचानक इतनी कंन्फ्यूज्ड और बौखलाई हुई दिखने लगी कि लगा ही नहीं कि यह वही पार्टी है जिसने अपने सवा सौ साल के इतिहास में पता नहीं कितनी बार इससे बड़ी चुनौतियों का सामना किया। हालत यह हो गई कि उसके मंत्रियों ने पहले टीम अन्ना के सामने घुटने टेके और फिर सारी यूपीए सरकार ने। पूरी सरकार अपराधबोध में डूबी हुई नजर आने लगी।
हाल के वर्षों मे यह असाधारण राजनीतिक कामयाबी थी। इसी से देश में अन्ना का वो आभामंडल तैयार हुआ जिसने देश की राजनीति में आए खालीपन को एक झटके में भर दिया। लोगों को लगा कि निर्द्वंद यूपीए को सड़क की राजनीति के जरिये भी हराया जा सकता है। कांग्रेस की राजनीतिक अपरिपक्वता और भाजपा से लेकर कम्युनिस्टों तक विपक्ष के अति उत्साही समर्थन ने टीम अन्ना की ऐसी करिश्माई अजेय छवि बना दी कि देश के लोगों को लगा कि टीम अन्ना के पास ही वह जादुई छड़ी है जिससे उन्हे रोजमर्रा के भ्रष्टाचार से छुटकारा मिल सकता है। पिछले बीस सालों में पहले,दूसरे और तीसरे मोर्चे की सरकारों की विफलता से जनता के बीच नेताओं की साख पहले रसातल में जा चुकी थी। ऐसी नाउम्मीदी में टीम अन्ना ने जब नेताओं को डकैत से लेकर उन्हे बेईमान,चोर बताया तो लोगों को लगा कि जैसे टीम अन्ना उनके भीतर जमा हुए गुस्से को आवाज दे रही हो। आम लागों की नफरत को आवाज देने का यह करिश्मा इससे पहले कांशीराम कर चुके थे। उन्होने जब तिलक,तराजू वाला नारा दिया था तब भी दलितों को लगा था कि कोई हिम्मत कर सदियों से जमा हुए उनके गुस्से को चौराहों पर आवाज दे रहा है।
लेकिन आज वही मीडिया टीम अन्ना के फैसले से सर्वाधिक खफा है। सर्वाधिक सवाल उसी मीडिया द्वारा उठाए जा रहे  हैं जिसने भ्रष्टाचार विरोधी जनभावना को अन्ना की व्यक्तिपूजा के आंदोलन में बदल दिया था। जिसने आंदोलन के भीतर जनतंत्र पैदा ही नहीं होने दिया बल्कि टीवी कैमरों और अलौकिक महिमामंडन के जरिये बदलाव की इच्छा को लेकर आए लोगों को भेड़ों के ऐसे रेवड़ में बदल दिया जिसके एकमात्र गडरिया अन्ना हजारे थे और भेड़ों के इस झुंड को हांकने में मदद करने वाली कुछ स्वयंभू सहायक ही थे। मीडिया किस तरह से जनांदोलनों से तार्किकता गायब कर उन्हे व्यक्तिपूजकों के झुंड में बदल देता है,यह आंदोलन इसका शानदार उदाहरण है। जिंदा लोगों को भेड़ों में बदलने वाली लोककथाओं की रहस्यमयी जादूगरनियां आज के इसी मीडिया की ही पुरुखिने रही होंगी। देश के कारपोरेट मीडिया का दुख है कि हर साल खबरिया चौनलों की टीआरपी को आसमान पर पहुंचाने वाले एक इवेंट का आकस्मिक निधन जंतर मंतर पर हो गया। टीम अन्ना भ्रष्टाचार विरोधी इस आंदोलन की अस्थियां और एशेज लेकर चुनावी मैदान में उतरेगी लेकिन मीडिया फिर से ऐसी इवेंट पैदा नहीं कर पाएगा। मीडिया को डबल घाटा हुआ है। एक तो टीआरपी बढ़ाने वाली उसकी इवेंट काल कवलित हो गई और दूसरा यूपीए को अन्ना का डर दिखाकर उससे वसूली करने का धंधा भी टीम अन्ना ने चौपट कर दिया।
दूसरी ओर भाजपा के लिए भी टीम अन्ना का राजनीतिक दल बनाना घाटे का सौदा है। भाजपा अभी तक यही सोच रही थी कि टीम अन्ना अपने भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से उसके लिए वोटों की फसल बो रही है। टीम अन्ना के आंदोलन अभिकेंद्र उत्तरी भारत के वे राज्य हैं जिनमें भाजपा का कांग्रेस से सीधा चुनावी मुकाबला होना है। भाजपा का आकलन था कि अन्ना के आंदोलन की तीव्रता जितनी बढ़ेगी भाजपा की सीटों की तादाद उसी तेजी से बढ़ जाएगी। टीम अन्ना का गैर राजनीतिक बने रहने से सर्वाधिक लाभ भाजपा को ही होना था। राज्यसभा में लोकपाल के खिलाफ वोटिंग कर भाजपा ने साफ भी कर दिया था कि वह आगामी लोकसभा चुनाव तक लोकपाल को लटकाये रखेगी ताकि टीम अन्ना सन् 2014 तक आंदोलन जारी रखे। जेपी आंदोलन का भी सबसे ज्यादा लाभ तत्कालीन जनसंघ ने ही उठाया था। क्योंकि उसके पास जमीनी स्तर पर लाभ उठाने वाला आरएसएस का कार्यकर्ता तंत्र मौजूद है। इसीलिए भाजपा ने टीम अन्ना द्वारा किए जा रहे हमलों के बावजूद संयम बरते रखा। हालांकि आरएसएस को यह भान पहले ही हो गया था कि अन्ना का इरादा जेपी बनना नहीं बल्कि एक राजनीतिक पार्टी खड़ा करना है।
इसीलिए पिछले साल के आंदोलन के बाद आरएसएस ने अन्ना हजारे के आंदोलन में भीड़ बढ़ाने के लिए अपने कार्यकर्ता भेजने बंद कर दिए। आरएसएस ने टीम अन्ना के आंदोलन को फीका करने के लिए रामदेव को खुला समर्थन देना शुरु कर दिया। आरएसएस ने ऐसा इसलिए भी किया क्योंकि अन्ना हजारे के आंदोलन में एक धड़ा चरम वामपंथियों का भी है। अन्ना हजारे द्वारा राजनीतिक दल बनाने के ऐलान से भाजपा की निराशा को समझा जा सकता है। क्योंकि टीम अन्ना का मूलाधार भी वही नाराज मध्यवर्ग है जो कांग्रेस से खफा होकर कभी भाजपा के पाले में तो कभी भाजपा से नाराज होकर कांग्रेस के पाले में चला जाता है। अभी तक भाजपा यह सोचकर खुश थी कि अन्ना हजारे उसके लिए आम का पेड़ लगा रहे हैं। उसेयकीन था कि पेड़ तो अन्ना पालेंगे और फल भाजपा खाएगी। लेकिन अन्ना ने रणनीति पलट दी। उनका कहना है कि पेड़ मैं लगाऊंगा तो आम आडवाणी या मोदी क्यों खायें?
अरविंद और प्रशांत भूषण क्यों न खायें। अब जो आम का पेड़ लगाएगा फल भी वही खाएगा। इस झटके के बाद अब टीम अन्ना पर भाजपा के हमले तेज होने वाले हैं। टीम अन्ना को इस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए कि उसने राजनीतिक कौशल के साथ अपने पत्ते खेले और उसे कठपुतली बनाने का सपना देख रहे मीडिया और भाजपा दोनों को उसने एक ही तुरुप के पत्ते से चित कर दिया। टीम अन्ना ने पूरी चालाकी के साथ इस बार ऐसे मुद्दों पर अनशन किया जिनका हल तो दूर उन पर बातचीत करना भी यूपीए के लिए आत्मघात करने जैसा था। तमाम प्रयासों के बावजूद मीडिया पिछले साल की तरह इसे मेगा मीडिया इवेंट तो नहीं बना पाया। मीडिया की इस नाकामी में टीम अन्ना के लिए भी भविष्य के संकेत छुपे हुए हैं।
(पूर्व संपादक, दैनिक भास्कर, हिमाचल प्रदेश)