रविवार, 22 अप्रैल 2012

केयर कंप्यूटर दस साल का हुआ

केयर कंप्यूटर दस साल का हुआ

सिवनी (साई)। कंप्यूटर की दुनिया में जाना माना नाम लिनिवो कंप्यूटर कंपनी एक्सक्लूसिव स्टोर्स, एप्शन कंपनी फोटो प्रिंटर, लेजर प्रिंटर्स एवं कलर फोटो कापी प्रिंटर, एच पी कंपनी के लेजर प्रिंटर, कलर प्रिंटर एवं इंकजेट एवं लेजर टोनर कर्टरेजेस के अधिकृत विक्रेता एवं एंटी वायरस आदि के विक्रेता मेसर्स केयर कंप्यूटर्स को 23 अप्रेल को दस साल पूरे हो जाएंगे।
केयर कंप्यूटर्स के संचालक विपिन सिंह राजपूत ने बताया कि सिवनी में कंप्यूटर लिट्रेट लोगों की तादाद में जबर्दस्त इजाफा हुआ है। पिछले एक दशक में जिले के हर आयु वर्ग के लोगों के बीच कंप्यूटर के प्रति जिज्ञासा और लगाव देखते ही बन रहा है। विशेषकर युवा वर्ग को कंप्यूटर काफी भाने लगा है। श्री राजपूत ने कहा कि कल तक अंग्रेजी भाषा में काम करने वाले कंप्यूटर और इंटरनेट पर अब हिन्दी भाषा बेहद समृद्ध हो चुकी है।
केयर कंप्यूटर्स के संचालक ने बताया कि जब उन्होंने अपना व्यवसाय 2002 में आरंभ किया था तब कंप्यूटर सुधरवाने और खरीदने के लिए लोगों को जबलपुर और नागपुर पर ही निर्भर रहना होता था। केयर कंप्यूटर्स की स्थापना के साथ ही श्री राजपूत ने सिवनी में प्रशिक्षित तकनीशियनों के माध्यम से कंप्यूटर के क्षेत्र को समृद्ध किया।
विपिन राजपूत ने कहा कि उनका एकमात्र व्यवसाय कंप्यूटर बेचना नहीं वरन सिवनी के लोगों को कंप्यूटर के मामले में पूरी तरह जानकारी देना और समद्ध करना था। यही कारण है कि उन्होंने कंप्यूटर्स के क्षेत्र में आने वाली हर तकनालाजी को समझने के लिए अपने कर्मचारियों को समय समय पर प्रशिक्षण के लिए बाहर भेजा जाता है।
सिवनी के निवासियों में कंप्यूटर लिट्रेसी के लिए केयर कंप्यूटर्स का नाम अब नया नहीं है। लगभग पांच साल से लोगों की जुबान पर यह नाम छा गया है। मीडिया जगत में भी केयर कंप्यूटर्स की सहज सरल और हर समय उपलब्ध सेवाओं के लिए मीडिया से जुडे लोग भी केयर कंप्यूटर्स को काफी सराहते रहते हैं। सरकारी कार्यालयों में भी केयर कंप्यूटर्स की ईमानदार छवि के सभी कायल हैं।

जाने के पहले अग्रवाल को ठिकाने लगाकर जाएंगी शीला


जाने के पहले अग्रवाल को ठिकाने लगाकर जाएंगी शीला

संदीप रहे चुनावों में पूरी तरह निष्क्रिय

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमति शीला दीक्षित और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के निजाम जे.पी.अग्रवाल के बीच लंबे समय से चल रहा शीत युद्ध नगर निगम चुनावों के एन पहले विस्फोटक दौर में पहुंचा जिससे संगठन मृत प्राय हो गया और कांग्रेस दिल्ली में चारों खाने चित्त गिर पड़ी। वहीं दूसरी ओर शीला दीक्षित के सांसद पुत्र संदीप दीक्षित भी नगरीय निकायों के चुनावों से कटे कटे नजर आए।
सियासी हल्कों में चल रही चर्चाओं के अनुसार दिल्ली में लगभग डेढ़ दशक तक राज करने वाली श्रीमति शीला दीक्षित को कांग्रेस अब बदलकर किसी नए चेहरे को लाना चाह रही है ताकि वह इस बार विधानसभा चुनावों में अपना गढ बचा सके। कांग्रेस के सियासी कदम तालों को देखकर लगने लगा है कि अब शीला को केंद्रीय राजनीति में लाकर संगठन में उनका उपयोग किया जा सकता है पर केंद्र में लाल बत्ती के सहारे।
प्रदेश कांग्रेस कमेटी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने नाम उजागर ना करने की शर्त पर कहा कि दिल्ली में चुनावी हार का ठीकरा सत्ता और संगठन दोनों पर ही फूटना चाहिए। उन्होंने कहा कि मार्च के आखिरी सप्ताह में कांग्रेस की स्टेंडिंग कमेटी की बैठक के बाद से ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जे.पी.अग्रवाल घर बैठ गए थे। प्रत्याशियों के पक्ष में चुनाव प्रचार से उन्होंने अपने आप को बहुत ही दूर कर लिया था।
उन्होंने कहा कि अग्रवाल को तो यह कहते भी सुना गया कि मां (मुख्यमंत्री श्रीमति शीला दीक्षित) बेटे (सांसद संदीप दीक्षित) की जोड़ी को चुनाव में हार का स्वाद चखने दो फिर देखेंगे। इसके साथ ही साथ अग्रवाल गुट द्वारा मां बेटे पर पार्षद की टिकिटें भी करोड़ों रूपयों में बेचने के आरोप लग रहे हैं।
उक्त पदाधिकारी ने यह भी कहा कि पूर्वी दिल्ली के सांसद संदीप दीक्षित नगरीय निकायों के चुनाव जीतने की मंशा नहीं रखते थे। उन्होंने कहा कि मीडिया से ही ऑफ द रिकार्ड उन्हें यह जानकारी मिली है। दरअसल, संदीप दीक्षित ने अपने कुछ मीडिया मित्रों से यह कहा होगा कि वे यह चुनाव जीतना ही नहीं चाहते हैं।
कहा जा रहा है कि संदीप दीक्षित की दलील थी कि अगर कांग्रेस नगर निगम के चुनावों में बेहतर परफार्मेंस दिखाती है तो आने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। अगर यह चुनाव भाजपा जीतती है तो फिर कांग्रेस दिल्ली विधानसभा चुनावों में अपने आप को कंफर्टेबल महसूस करेगी।
उधर, मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खेमे से छन छन कर बाहर आ रही खबरों के अनुसार शीला की दिल्ली राज्य से पदोन्नति कर उन्हें कें्रद्रीय राजनीति में ले जाने का प्रयास हो रहा है, जिसकी उन्होंने सैद्धांतिक सहमति दे दी है। शीला दीक्षित एक तीर से दो शिकार करना चाह रही हैं। वे दिल्ली पर काबिज रहें या केंद्र की राजनीति में जाएं, पर हर हाल में वे दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष जे.पी.अग्रवाल का शमन चाह रही हैं।

मीडिया की भूमिका से नाराज हैं ममता!


मीडिया की भूमिका से नाराज हैं ममता!

(शरद खरे)

नई दिल्ली (साई)। दुनिया को लोहा मनवाकर ताकतवर महिलाओं में शामिल हुईं पश्चिम बंगाल की निजाम सुश्री ममता बनर्जी इन दिनों मीडिया की भूमिका से खफा नजर आ रही हैं। कल तक मीडिया के जिस काम की वे तारीफें करते थकती नहीं थीं आज मीडिया का वही काम उन्हें कांटों के मानिंद चुभता नजर आ रहा है। ममता चाह रहीं हैं कि मीडिया उनके सुर में सुर मिलाकर उनकी थापर पर ही कत्थक करे।
गौरतलब है कि ममता बनर्जी जब तक विपक्ष में रहीं तब तक वाम दल की सरकार की गलत नीतियों को जनता के सामने लाने के मामले में मीडिया की भूमिका की उन्होंने सदा ही भूरी भूरी प्रशंसा की। बड़े बड़े औद्योगिक घरानों की तर्ज पर नब्बे के दशक से बने मीडिया हाउस भी चाहे देश में जैसी बयार बहाते रहे हों पर पश्चिम बंगाल में उन्होंने वाम दलों को सदा ही आड़े हाथों लिया है।
ममता बनर्जी को सत्ता में आने के पहले ही आभास हो गया था कि अब वाम दलों का लाल किला कभी भी धसक सकता है। यही कारण था कि उन्होंने चुनाव के आसपास ही मीडिया मैनेजमेंट आरंभ कर दिया था। ममता के करीबी सूत्रों का कहना है कि ममता बनर्जी के विश्वस्त रहे मुकुल राय और दिनेश त्रिवेदी ने ममता को यह विश्वास दिलाया था कि दीदी के शपथ लेते ही मीडिया अपनी स्वतंत्र निगरानी को पूरी तरह बंद कर देगा।
सूत्रों ने बताया कि मीडिया हाउस तो कुछ हद तक चंद दिनों के लिए खामोश रहे, किन्तु अचानक ही इंटरनेट के माध्यम से हुई संचार क्रांति के बाद अस्तित्व में आए सोशल मीडिया ने अपना काम नहीं रोका। इस मामले में जब ममता बनर्जी के एक करीबी उद्योगपति के कुछ कारनामे उजागर किए गए तो किसी छोटे से ब्लागर ने अपने ब्लाग पर रपट लिख दी। कहा जाता है कि इससे त्रणमूल सुप्रीमो ममता इतनी नाराज हुंईं कि उक्त ब्लागर को कंपनी ने एक अरब रूपए की मानहानि का नोटिस दे मारा। किसी के ब्लाग पर लिखी टिप्पणी को महज दो पांच सौ लोग बमुश्किल से पढ़ते होंगे उसमें भी एक सौ करोड़ रूपए की मानहानि होना आश्चर्य का ही विषय माना जा रहा है।
बहरहाल, मीडिया हाउसेस द्वारा भी जब ममता की गलत नीतियों रीतियों के मामले में उन्हें आंख दिखाई गई तब ममता का गुस्सा सातवें आसमान पर बताया जा रहा है। एक कार्टून बनाने पर ममता ने एक व्यक्ति को जेल भेजकर मीडिया को संदेश देने का प्रयास किया है कि महाराष्ट्र में जिस तरह प्रजातंत्र पर ठाकरे ब्रदर्स का राज हावी है उसी तरह अब पश्चिम बंगाल में भी हिटलरशाही लागू हो चुकी है।
ममता विरोधी अब इस बात को हवा देने में लगे हैं कि मीडिया के द्वारा वाम दलों की सरकारों की गलत नीतियों के विरोध का ममता यह मतलब कतई ना निकालें कि मीडिया ममता बनर्जी का समर्थन करता है। ममता ने मीडिया समूहों को झटका देने के लिए अब तक छोटे अखबारों के तीन पत्रकारों को राज्यसभा के रास्ते केंद्रीय राजनीति में भेजकर अपनी तल्ख नाराजगी का इजहार कर दिया है।

तहसीलदार कर रहे थापर की देहरी पर कत्थक!


0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . .  83

तहसीलदार कर रहे थापर की देहरी पर कत्थक!

आरटीआई में नहीं मिल रही जमीन नामांतरण की जानकारी

(अखिलेश दुबे)

सिवनी (साई)। देश के मशहूर दौलतमंद उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के द्वारा मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य विकास खण्ड घंसौर में स्थापित किए जाने वाले 1200 मेगावाट के कोल आधारित पावर प्लांट के मसले पर जिला प्रशासन सिवनी की भूमिका पर सवालिया निशान लगते जा रहे हैं।
22 अगस्त 2009 और 22 नवंबर 2011 को संपन्न हुई लोक सुनवाई में जिला प्रशासन सिवनी की भूमिका संदिग्ध होने के आरोप लग रहे हैं। आरोपति है कि दोनों ही बार ही जिले के लोगों को भ्रमित कर सारी कार्यवाही को अंजाम दे दिया गया। जब इसकी शिकायत मुख्यमंत्री से की गई तो जिला प्रशासन ने गेंद प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के पाले में डालते हुए कार्यवाही का क्षेत्राधिकारी मण्डल के जबलपुर स्थित क्षेत्रीय कार्यालय के सर मढ़ दिया।
क्षेत्र में व्याप्त चर्चाओं के अनुसार सिवनी में लगने वाले इस पावर प्लांट से सिवनी का कुछ भी भला नहीं होने वाला है। इस तरह की बातें लोगों के द्वारा बार बार की जा रही हैं। वहीं चंद नेताओं द्वारा इस पावर प्लांट की प्रत्यक्ष और परोक्ष तौर पर तरफदारी की जा रही है। कारण चाहे जो भी हो पर जिस तरह सिवनी जिला मुख्यालय में पावर ग्रिड की स्थापना के बाद सिवनी की झोली में कुछ भी नहीं आया उसी तरह घंसौर में डलने वाले तीन पावर प्लांट के बाद सिवनी की झोली में शायद ही कुछ आ सके।
गौतम थापर के इस पावर प्लांट में जमीन की खरीद फरोख्त में लंबा खेल खेले जाने के आरोप लगने के बाद रवि अग्रवाल नामक उत्साही युवा ने तहसीलदार घंसौर के पास जाकर वर्ष 2010 से मार्च 2012 तक के बीच क्षेत्र में हुए जमीनो के नामांतरण की जानकारी मांगी। इस पर तहसीलदार ने चुप्पी साध ली।
बाद में जब उक्त युवा ने सूचना के अधिकार कानून में उक्त जानकारी चाही गई है। अपने आवेदन में आवेदक ने कहा है कि वह इसमें होने वाले सारे खर्च वहन करने को तैयार है फिर भी तहसीलदार द्वारा उसे वांछित जानकारियां देने में हीला हवाला किया जा रहा है। इसकी शिकायत आवेदक द्वारा जिला कलेक्टर सिवनी से भी की गई है।
आश्चर्य तो इस बात पर हो रहा है कि सारी स्थितियां सांसद विधायकों के सामने होने के बावजूद भी न तो कांग्रेस और न ही भाजपा के जनसेवकों के कानों में जूं रेंग रही है। कुल मिलाकर केंद्र सरकार की छटवीं अनुसूची में अधिसूचित सिवनी जिले के घंसौर विकासखण्ड के आदिवासियों, जल जंगल और जमीन को परोक्ष तौर पर दौलतमंद गौतम थापर के पास रहन रख दिया गया है और बावजूद इसके केंद्र सरकार का वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, मध्य प्रदेश सरकार, मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल, जिला प्रशासन सिवनी सहित भाजपा के सांसद के.डी.देशमुख विधायक श्रीमति नीता पटेरिया, कमल मस्कोले, एवं क्षेत्रीय विधायक जो स्वयं भी आदिवासी समुदाय से हैं श्रीमति शशि ठाकुर, कांग्रेस के क्षेत्रीय सांसद बसोरी सिंह मसराम एवं सिवनी जिले के हितचिंतक माने जाने वाले केवलारी विधायक एवं विधानसभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ठाकुर चुपचाप नियम कायदों का माखौल सरेआम उड़ते देख रहे हैं।
जनादेश प्राप्त नुमाईंदे अगर वाकई आदिवासियों और जिले के हित चिंतक होते तो निश्चित तौर पर चार विधायकों ने विधानसभा तो दो सांसदों ने लोकसभा में इस मामले को इस तरह उठाया होता कि उसकी गूंज की अनुगूंज से गौतम थापर और उनके इशारों पर कठपुतली की तरह नाच करने वाले जनसेवक और नौकरशाह थर्रा उठते, वस्तुतः यह गूंज निहित स्वार्थों में दबकर रह गई प्रतीत होती है।