शनिवार, 24 मार्च 2012

अर्जुन सिंह ने डुबाई दिनेश की लुटिया!

ममता को रास नहीं आया अर्जुन का रेल मंत्रालय में दखल


(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। देश के संभवतः पहले रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी जो बजट प्रस्तुत कर उसे पास करवाने के पहले ही रूखसत हो गए के जाने के कारणों की पड़ताल अब सियासी बियावान में तेज हो गई है। रेल मंत्रालय में चल रही चर्चाओं पर अगर यकीन किया जाए तो दिनेश त्रिवेदी की रेल मंत्री की कुर्सी खाने वाला शख्स कोई और नहीं अर्जुन सिंह (कांग्रेस के वरिष्ठ नेता स्व.कुंवर अर्जुन सिंह नहीं) ही है। अर्जुन सिंह कौन है इस बारे में अब पड़ताल तेज हो गई है।
पिछले दिनों रेल मंत्रालय में यह चर्चा ज़ोरों पर थी कि अगर किसी को भी कोई ठेका चाहिए तो वह अर्जुन सिंह से संपर्क करे। रेल्वे बोर्ड के उच्च पदस्थ सूत्रों का दावा है कि नए पुराने ठेकेदार अर्जुन सिंह से मिलने के जुगाड़ खोजते रहते थे। कहा जाता है कि अर्जुन सिंह और कोई नहीं वरन् पूर्व रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी के संसदीय क्षेत्र बर्राकपुर के तहत आने वाले विधानसभा क्षेत्र भजपरा के त्रणमूल कांग्रेस से विधायक हैं।
सिंह को दिनेश त्रिवेदी का खासुलखास माना जाता है। उधर, त्रणमूल कांग्रेस सुप्रीमो सुश्री ममता बनर्जी के करीबी सूत्रों का कहना है कि दिनेश त्रिवेदी द्वारा सारे काम अर्जुन सिंह के माध्यम से कराए जाने की खबरें जैसे ही ममता बनर्जी को मिलीं उनकी भवें तन गईं। सूत्रों ने कहा कि ममता बनर्जी के कार्यकाल में मलाई खाने वाले ठेकेदारों को दिनेश त्रिवेदी के कार्यकाल में सूखी छाछ भी नसीब नहीं हो पा रही थी। जब इसकी शिकायत ममता बनर्जी से हुई तो उनका गुस्सा त्रिवेदी के प्रति और भी बढ़ गया।
ममता के करीबी सूत्रों का कहना है कि रेल मंत्रालय के हाल ही में किए गए सौदे या ठेके ममता बनर्जी को नागवार गुजरे और त्रिवेदी एवं ममता के बीच खाई और गहरी हो गई। यह अलहदा बात है कि अर्जुन सिंह अब त्रणमूल के विधायक हैं पर ममता बनर्जी शायद ही उस बात को भूल पा रही हों जब अर्जुन सिंह ने अधीर चौधरी और शंकर सिंह के साथ मिलकर ममता बनर्जी को फंसाकर हलाकान किया था। ममला इस कदर बढ़ गया था कि ममता को कांग्रेस छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था।
सूत्रों ने यह भी कहा कि ममता बनर्जी द्वारा दिनेश त्रिवेदी से त्यागपत्र लेने और मुकुल राय को नया रेल मंत्री बनाने के पीछे अर्जुन सिंह का रेल मंत्रालय पर परो़़क्ष तौर पर कब्जा ही जिम्मेवार बताया जा रहा है। सूत्रों के अनुसार पहले ममता को कांग्रेस से खदेड़ने वाले अर्जुन सिंह अब कांग्रेस के रणीनतिकारों के हाथों की कठपुुतली बनकर त्रणमूल में सेंध लगाने का प्रयास कर रहे हैं।

प्रभावी लोकपाल का आश्वासन दिया पीएम ने


प्रभावी लोकपाल का आश्वासन दिया पीएम ने

(शरद खरे)

नई दिल्ली (साई)। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सभी दलों के नेताओं को आश्वासन दिया है कि लोकपाल विधेयक के बारे में उनके द्वारा उठाये गए मुद्दों पर सरकार ने ध्यान दिया है। डा० मनमोहन सिंह ने कल नई दिल्ली में लोकपाल विधेयक पर मतभेद दूर करने और आम सहमति बनाने के लिए हुई सर्वदलीय बैठक में कहा कि यू .पी. ए. सरकार प्रभावी लोकपाल विधेयक लाने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने सभी दलों के नेताओं से सहयोग और मार्गदर्शन देने को कहा।
उधर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि बातचीत सकारात्मक रही और कई मुद्दों पर आम सहमति बनी। उन्होंने कहा कि राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति, लोकपाल को हटाने की प्रक्रिया और जांच एजेंसियों की निगरानी सहित कई मुद्दों पर चर्चा हुई। लोकपाल विधेयक पर संसद के बजट सत्र के दूसरे हिस्से में राज्यसभा में चर्चा होने की उम्मीद है। इस बैठक में मौजूद नेताओं ने कहा कि सदभावपूर्वक और खुलकर विचार-विमर्श हुआ। शुक्रवार को हुई बैठक में २१ दलों ने भाग लिया।

तिवारी के हंटर से सहम गए माननीय!


तिवारी के हंटर से सहम गए माननीय!

(रवीन्द्र जैन)

भोपाल। मप्र के मुख्य सूचना आयुक्त पीपी तिवारी ने इस पद से रिटायर होने से एक घंटा पहले एक फैसला लिखकर प्रदेश के तमाम विधायकों को मायूस कर दिया है। तिवारी ने अपने फैसले में जहां एक ओर विधायकों के यात्रा भत्ते से संबंधित जानकारियां अपीलकर्ता को निशुल्क देने का आदेश दिया है वहीं स्पीकर से अनुरोध भी किया है कि विधायकों की निष्ठा को संदेह से परे रखने के लिए उनके टीए बिल से संबंधित सभी जानकारियां विधानसभा की वेबसाइट पर डाली जाना चाहिए। इस फैसले के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। मजेदार बात यह है कि मुख्य सूचना आयुक्त ने भी यह फैसला सुनवाई के लगभग एक साल बाद लिखा है।
आरोप है कि मध्यप्रदेश विधानसभा के कई विधायक विधानसभा की कार्रवाई में शामिल होने फ्री कूपन से  रेल की यात्रा करते हैं और अपने निजी वाहन का बिल बनाकर विधानसभा सचिवालय से भुगतान भी ले लेते हैं। इस तरह कई वर्षों से कई विधायक एक ही यात्रा का रेल और वाहन दोनों का भुगतान ले लेते हैं। इस धांधली को सबसे पहले रवीन्द्र जैन (मैंने) ने खबर छापकर उजागर किया था, लेकिन एक दर्जन विधायकों ने मुझे विशेषाधिकार हनन का नोटिस थमा दिया। मैंने अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए विधानसभा सचिवालय से सूचना के अधिकार के तहत छह बिन्दुओं पर जानकारी मांगी। इस संबंध में मैंने दो अलग-अलग आवेदन विधानसभा सचिवालय के लोक सूचना अधिकारी को दिये। लेकिन उन्होंने निर्धारित 30 दिन में कोई कार्यवाही नहीं की तो मैंने विधानसभा सचिवालय के अपीलीय अधिकारी के समक्ष प्रथम अपील की लेकिन उन्होंने भी मेरी अपील यह कहते हुए खारिज दी कि इस जानकारी के प्रकट होने से विधायकों के विशेष अधिकार का हनन होगा। मैंने द्वितीय अपील राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त से की। मुख्य सूचना आयुक्त ने 7 अप्रैल 2011 को दोनों पक्षों की सुनवाई की और फैसला सुरक्षित रख लिया।
22 मार्च 2012 को मुख्य सूचना आयुक्त पीपी तिवारी सेवानिवृत्त होने वाले थे अपनी सेवानिवृत्ति के ठीक एक घंटे पहले तिवारी ने इस बहुचर्चित मुद्दे पर फैसला देते हुए लिखा है कि चाही गई जानकारी विधानसभा में माननीय विधायकों के कार्यों से संबंधित नहीं है। अपितु उनके देयकों से संबंधित है जो कि विधानसभा सचिवालय के अधीन एक प्रशासकीय कार्य है। अतरू इस जानकारी से विधायकों का विशेषाधिकार हनन संबंधित दलील सारहीन और निराधार है जिसे अमान्य किया जाता है। मुख्य सूचना आयुक्त ने अपने फैसले में विधानसभा के लोक सूचना अधिकारी को निर्देश दिया है कि अपीलार्थी उक्त जानकारी पाने का हकदार है। अतरू उसे 15 दिवस के अंदर सभी छह बिन्दुओं की जानकारी निशुल्क प्रदाय की जाए। मुख्य सूचना आयुक्त ने अपने फैसले में यह भी लिखा है कि सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 एक क्रांतिकारी कानून है जिसकी उद्देशिका स्पष्ट तौर पर कहती है कि हमारे संविधान ने लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना की है जो ऐसी सूचना में पारदर्शिता की अपेक्षा करता है जो उसके कार्यकरण तथा भ्रष्टाचार को रोकने के लिए अनिवार्य है।

वेबसाइट पर डालिए

अपने इस फैसले में मुख्य सूचना आयुक्त ने विधानसभा अध्यक्ष से अनुरोध किया है कि सभी लोक सेवकों की संनिष्ठा और आचरण संदेह से परे होना चाहिए। जन प्रतिनिधियों के मामले में तो यह और आवश्यक है कि उनके आचरण और संनिष्ठा पर किचित मात्र भी संदेह न हो। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए माननीय स्पीकर विधायकों के देयकों से संबंधित सभी जानकारियां सार्वजनिक करें और उन्हें वेबसाइट पर डालने हेतु उचित आदेश करने का कष्ट करें।

विधायकों में मायूसी

मुख्य सूचना आयुक्त के इस फैसले से प्रदेश के ऐसे 100 से अधिक विधायकों में मायूसी छा गई है जो पिछले कई वर्षों से धड़ल्ले से एक ही यात्रा के दो-दो बिलों का भुगतान ले रहे थे। मेरा दावा है कि इसकी निष्पक्ष और उच्चस्तरीय जांच हो जाए तो प्रदेश लगभग सवा सौ विधायकों की न केवल सदस्यता खत्म हो जायेगी बल्कि उन पर इस कृत्य के लिए आपराधिक प्रकरण भी दर्ज हो सकता है।

दूरगामी परिणाम होंगे

मुख्य सूचना आयुक्त के इस फैसले से न केवल मप्र विधानसभा बल्कि देश की तमाम विधानसभाओं में इसका असर दिखेगा जहां विधायक रेल और वाहन दोनों का भुगतान ले रहे हैं।

(साई फीचर्स)