शनिवार, 3 मार्च 2012

संगठन को ताक पर रख शुक्ला ने रखी थापर की चिमनी की आधारशिला!


0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . .  76]

संगठन को ताक पर रख शुक्ला ने रखी थापर की चिमनी की आधारशिला!

स्थानीय विधायक और जिला संगठन को दिखाया झाबुआ पावर ने ठेंगा!

भाजपा में दो फाड़ करवाने की जुगत में थापर



(महेंद्र सोलंकी)

घंसौर जिला सिवनी (साई)। मध्य प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर से महज सौ किलोमीटर दूर सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य घंसौर विकासखण्ड के ग्राम बरेला में लगभग 6800 करोड़ रूपए की लागत से बनने वाले कोल आधारित पावर प्लांट के प्रथम चरण में निर्माणाधीन 275 मीटर (लगभग एक हजार फिट उंची चिमनी) एवं अन्य कामों की आधारशिला मध्य प्रदेश सरकार के उर्जा और खनिज मंत्री राजेन्द्र शुक्ल ने शनिवार को अपरान्ह रखी। इस कार्यक्रम में भाजपा की स्थानीय विधायक श्रीमति शशि ठाकुर सहित जिला भाजपा की अनुपस्थिति खासी चर्चा का विषय बनी रही।
उर्जा मंत्री राजेंद्र शुक्ल शनिवार अपरान्ह हेलीकाप्टर से बरेला स्थित पावर प्लांट के संयंत्र स्थल पहुंचे। संयंत्र स्थल पर जाकर उन्होंने संयंत्र प्रबंधन द्वारा पूर्व निर्धारित लगभग 1000 फिट उंची चिमनी एवं प्रेशर पार्ट इक्यूपमेंट की अधारशिला रखी। इसके अलावा उर्जा मंत्री ने संयंत्र स्थल पर वृक्षारोपण भी किया। गौरतलब है कि संयंत्र प्रबंधन पर आदिवासियों की उपेक्षा और पर्यावरण मानकों का माखौल उड़ाने के संगीन आरोप लग रहे हैं।
यहां यह उल्लेखनीय है कि इस कार्यक्रम में स्थानीय विधायक श्रीमति शशि ठाकुर सहित मध्य प्रदेश में सत्ता पर काबिज भाजपा के जिला संगठन के पदाधिकारी नदारत थे। प्राप्त जानकारी के अनुसार भाजपा सरकार के इस कथित विकास के आयाम जुड़ने के दरम्यान स्थानीय विधायक श्रीमति शशि ठाकुर इस जबलपुर में किसी कार्यक्रम में व्यस्त रहीं। इतना ही नहीं जिला भाजपा संगठन के पदाधिकारी भी इस कार्यक्रम में उपस्थित नही रहे, जिसे लेकर तरह तरह की चर्चाएं व्याप्त हैं।
मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा आदिवासी बाहुल्य घंसौर विकास खण्ड के ग्राम बरेला में स्थापित होने वाले इस संयंत्र में अनेक अनियमितताओं की शिकायत के बाद भी संयंत्र प्रबंधन द्वारा जिस तरह से सरकार को साधकर स्थानीय विधायक और जिला भाजपा की उपेक्षा की जा रही है उसे लेकर माना जा रहा है कि गौतम थापर द्वारा जिला भाजपा और स्थानीय विधायक को उपेक्षित कर भाजपा में दो फाड़ करने का प्रयास किया जा रहा है।
मौके पर जब मीडिया ने इस बात को उर्जा मंत्री राजेन्द्र शुक्ल के संज्ञान में यह बात लाई गई तो बात को लगभग संभालते हुए उन्होंने कहा कि यह उनकी बिजनिस विजिट थी और इस संबंध में संगठन के पदाधिकारियों से उनकी चर्चा हुई है और भविष्य में संयंत्र में होने वाले कार्यक्रमों में संगठन की महती भूमिका रखी जाएगी। भाजपा सरकार द्वारा संगठन की जबर्दस्त उपेक्षा के परिणाम भविष्य में अगर भाजपा को देखने को मिलें तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
भाजपा की उपेक्षा सरकार द्वारा इस कदर की गई कि स्थानीय पदाधिकारियों द्वारा भी इस कार्यक्रम का लगभग बहिष्कार ही किया। कार्यकर्ताओं के रोष और असंतोष का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि संयंत्र प्रबंधन द्वारा क्षेत्र के आदिवासी बहुल्य समुदाय के बच्चों के लिए प्राईमरी, मिडिल, हाई या हायर सेकेन्डरी स्कूल खोलने के स्थान पर औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आईटीआई) में चालीस सीटें आरंभ कराई गईं हैं, के उद्यघाटन का कार्यक्रम कार्यकर्ताओं के विरोध के चलते रद्द करना पड़ा।

(क्रमशः जारी)

द्विवेदी, माकोड़े की सेवाएं कांट्रेक्ट पर लेगा जनसंपर्क


द्विवेदी, माकोड़े की सेवाएं कांट्रेक्ट पर लेगा जनसंपर्क

सरकार के बजाए संगठन की सेवा से उपकृत हो रहे सेवानिवृत अधिकारी



(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। शिवराज सिंह चौहान को सरकार की छवि बनाने के लिए पाबंद जनसंपर्क विभाग के मौजूदा अधिकारियों के बजाए सेवानिवृत अधिकारियों पर ज्यादा भरोसा नजर आ रहा है। यही कारण है कि सेवानिवृत्ति के बाद भी अधिकारियों का मोह सरकार नहीं छोड़ पा रही है। दिल्ली स्थित राज्य सूचना केंद्र से सेवानिवृत हुए संयुक्त संचालक सुरेंद्र कुमार द्विवेदी को अब जनसंपर्क विभाग में एक साल के लिए कांट्रेक्ट पर लेने की कवायद की जा रही है।
मध्य प्रदेश जनसंपर्क विभाग के आला दर्जे के सूत्रों का कहना है कि शिवराज सिंह चौहान सरकार की छवि चमकाने के बजाए भाजपा संगठन और विशेषकर मध्य प्रदेश भाजपा के निजाम प्रभात झा की चाकरी में ज्यादा समय बिताने वाले अधिकारियों को उपकृत करने की कवायद की जा रही है।
गौरतलब है कि देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली के मंहगे व्यवसायिक इलाके कनाट सर्कस के बाबा खड़क सिंह मार्ग पर  स्थित मध्य प्रदेश सरकार के सूचना केंद्र के प्रभारी रहे सुरेंद्र कुमार द्विवेदी के कार्यकाल में सूचना केंद्र पर अघोषित तौर पर भाजपा कार्यालय बनने के आरोप मीडिया में जब तब लगते रहे हैं। कहा जाता है कि दिल्ली में मध्य प्रदेश बीट कव्हर करने वाले पत्रकारों को सूचना केंद्र द्वारा सुविधाएं सहूलियत देने के बजाए भाजपा के सांसद और विधायकों पर अपना ध्यान केंद्रित रखा गया था।
आरोप तो यहां तक भी हैं कि मध्य प्रदेश सरकार से अपात्र लोगों को अधिमान्यता की अनुशंसा भी सूचना केंद्र के तत्कालीन प्रभारी सुरेंद्र कुमार द्विवेदी द्वारा की गई है। चर्चा है कि चहेतों को रेवड़ी बांटने के चक्कर में सूचना केंद्र प्रभारी द्विवेदी द्वारा अपात्र लोगों को मध्य प्रदेश सरकार के जनसंपर्क विभाग से अधिमान्यता करवा दी गई। वहीं दूसरी ओर असल और पात्र मीडिया कर्मियों की अधिमान्यता के बारे में श्री द्विवेदी ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।
दिल्ली में मध्य प्रदेश बीट कव्हर करने वाले पत्रकार उस वक्त हैरान रह जाते जब किसी मंत्री या मुख्यमंत्री की पत्रकार वार्ता की सूचना उन्हें दूसरे दिन समाचार पत्रों के माध्यम से उनके जाने के उपरांत मिलती। कहा जाता है कि भाजपा मानसिकता वाले मीडिया कर्मियों को ही सूचना केंद्र द्वारा पूरी तवज्जो, सहूलियत और सुविधाएं प्रदान की जाती रही हैं।
चर्चाएं तो यहां तक हैं कि श्री द्विवेदी के कार्यकाल में मध्य प्रदेश सूचना केंद्र द्वारा मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार की छवि निखारने, सरकार की योजनाओं की जानकारी देने के बजाए इसे अघोषित तौर पर भाजपा और उसके अनुषांगिक संगठनों के क्रिया कलापों के प्रचार प्रसार का अड्डा बना दिया गया था।
भाजपा संगठन के सूत्रों का कहना है कि सरकार के बजाए संगठन की सेवा के सम्मान के पारितोषक के बतौर सुरेंद्र कुमार द्विवेदी को सेवानिवृत्ति के पहले ही उपकृत करने का ताना बाना बुना जाने लगा। सूत्रों के अनुसार पहले श्री द्विवेदी को माखन लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्व विद्यालय में भेजने की कवायद की गई किन्तु उनके भारी विरोध के चलते यह योजना परवान नहीं चढ़ सकी।
सूत्रों ने बताया कि इसके बाद संगठन के दबाव में सरकार ने सेवानिवृत्त संयुक्त संचालक सुरेंद्र कुमार द्विवेदी को दिल्ली स्थित संसदीय प्रकोष्ठ का प्रभारी नियुक्ति करने का मन बनाया। इस बार भी उनके मंसूबे इसलिए कामयाब नहीं हो पाए चूंकि यह सरकारी पद था और इसमें कांग्रेस के एक कद्दावर सांसद ने अपना पुरजोर विरोध दर्ज करवा दिया था।
सूत्रों ने बताया कि सरकार के बजाए संगठन पर ज्यादा ध्यान देने के उपहारस्वरूप अब भाजपा संगठन द्वारा शिवराज सिंह चौळान पर श्री द्विवेदी की सेवाएं जनसंपर्क विभाग द्वारा कांट्रेक्ट पर लेने की सैद्धांतिक सहमति बना दी गई है। सूत्रों ने कहा कि जल्द ही दिल्ली स्थित सूचना केंद्र के सेवानिवृत्त संयुक्त संचालक सुरेंद्र कुमार द्विवेदी एवं भोपाल के श्री माकोड़े की सेवाएं मध्य प्रदेश सरकार का जनसंपर्क विभाग एक साल के लिए कांट्रेक्ट पर लेने जा रहा है। सूत्रों की मानें तो श्री द्विवेदी की सेवाएं दिल्ली स्थित जनसंपर्क विभाग के सूचना केंद्र और श्री माकोड़े की सेवाएं भोपाल में ली जाएंगी।

(क्रमशः जारी)


बजट तक शायद चलें मनमोहन. . . 
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मध्यावधि चुनावों की तैयारी में जुटे पुलक चटर्जी

अचानक ही तेवर तल्ख हो गए हैं बाबू मोशाय के

संजय गांधी की पसंद थे पुलक बाबू


(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। देश के सबसे ताकतवर कार्यालय के सिरमोर बन चुके उत्तर प्रदेश काडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा के 1974 बैच के वरिष्ठ अधिकारी पुलक चटर्जी इन दिनों मध्यावधि चुनावों की तैयारियों में व्यस्त दिख रहे हैं। पीएमओ में उनके तेवर और भाव भंगिमाएं काफी सख्त ही नजर आ रही हैं। चटर्जी के मशविरे पर वज़ीरे आज़म डॉ.मनमोहन सिंह ने भी मध्यावधि चुनाव का मन बना लिया है।
प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि पुलक चटर्जी ने सभी मंत्रालयों पर मश्कें कसना आरंभ कर दिया है। पुलक चटर्जी इस समय आधारभूत अधोसंरचना वाले मंत्रालय विशेषकर उर्जाकोयलाभूतलशिपिंगखननसामाजिक न्यायपर्यावरणवाणिज्य आदि पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। चटर्जी ने साफ तौर पर कहा दिया है कि सभी मंत्रालय अपना अपना लक्ष्य निर्धारित समय सीमा में पूरा कर लें।
सूत्रों ने आगे कहा कि मूलतः उत्तर प्रदेश काडर के आईएएस पुलक चटर्जी ने साफ तौर पर अधिकारियों को हिदायत दे दी है कि अगर वे निर्धारित समय सीमा में काम पूरा नहीं कर सकते हैं तो बेहतर होगा वे त्यागपत्र दे दें। पिछले माह के दूसरे पखवाड़े में पुलक चटर्जी ने सचिव स्तर की बैठक में भी अधिकारियों को आड़े हाथों लिया था।
उधरकांग्रेस की सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10, जनपथ (कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी का सरकारी आवास) के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि पुलक चटर्जी के तेवरों में बदलाव इसलिए आया है क्योंकि पिछले दिनों सोनिया गांधी ने उन्हें कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने के लिए रोड़मेप तैयार करने के निर्देश दिए थे। अब मध्यावधि चुनाव किन परिस्थितियों में होगा इस बारे में सूत्रों ने कोई खुलासा नही किया है।
मध्य प्रदेश काडर के आईएएस अलका सिरोहीके.एम.आचार्यसुषमा नाथराघवेंद्र सिंह सिरोहीराकेश बंसल और रंजना चौधरी के बैच के अधिकारी पुलक चटर्जी की खोज अस्सी के दशक में संजय गांधी द्वारा ही की गई थी। बताते हैं कि अस्सी के दशक में संजय गांधी को सुल्तानपुर के लिए एक अदद जिला दण्डाधिकारी (डीएम) की तलाश थी। उस वक्त सूबे के तत्कालीन निजाम विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पुलक चटर्जी को सुल्तानपुर का डीएम बनाने की सिफारिश की।
पुलक चटर्जी कभी संजय गांधी से नहीं मिल सके किन्तु पूर्व प्रधानमंत्री स्व.राजीव गांधी के अमेठी आने के बाद भी चटर्जी का नेहरू गांधी परिवार से नाते का पौधा कब वटवृक्ष बन गया पता ही नहीं चला। राजीव गांधी के साथ पीएमओराजीव गांधी फाउंडेशन और सोनिया के आफिस में काम करने के बाद पुलक आज पीएमओ की नाक का बाल बने हुए हैं।

(क्रमशः जारी)

सोनिया के विदेशी मूल का मुद्दा पहुंचा कोर्ट


सोनिया के विदेशी मूल का मुद्दा पहुंचा कोर्ट

(शरद खरे)

नई दिल्ली (साई)। कांग्रेस और उसकी नेशनल प्रेजीडेंट श्रीमति सोनिया गांधी की मुसीबतें आने वाले दिनों में बढ़ सकती हैं। सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा एक बार फिर सर उठाता दिख रहा है। इस बार सोनिया के विदेशी मूल के मामले को उच्चतम न्यायालय ने एक याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया गया है।
याचिका में सवाल किया गया है कि क्या विदेशी मूल का कोई भी व्यक्ति सार्वजनिक पद पर आसीन हो सकता है। न्यायमूर्ति एच एल दत्तू और न्यायमूर्ति सी के प्रसाद ने इस मुद्दे की सुनवाई को तेजी से किये जाने का समर्थन किया जिसे एक सामाजिक राजनीतिक संगठन राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा ने उठाया है।
मोर्चा ने दिल्ली उच्च न्यायालय के एक फैसले के खिलाफ अपील दायर की थी जिसने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया था। इसमें कहा गया था कि इटली मूल की होने के नाते वह किसी भी संवैधानिक पद को संभालने की हकदार नहीं हैं।
अपनी याचिका में आरएमएम ने इस बात पर आपत्ति जताई थी कि वर्ष 1999 में राजग सरकार द्वारा संसद में विश्वास मत खो देने के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को केंद्र में सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया। शीर्ष न्यायालय ने इस मुद्दे पर अप्रैल 2007 में केंद्र और और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया था। इस बीच केंद्र ने अभी तक कोई शपथ पत्र दाखिल नहीं किया है और शीर्ष अदालत से इसको अंतिम सुनवाई के लिए रखने को कहा है। चुनाव आयोग ने कहा था कि जो केंद्र का दृष्टिकोण होगा वहीं उनका भी दृष्टिकोण होगा।

टूजी मामले की समीक्षा की गुहार


टूजी मामले की समीक्षा की गुहार

(प्रियंका श्रीवास्वत)

नई दिल्ली (साई)। केंद्र सरकार ने टू-जी स्पेक्ट्रम के एक सौ २२ लाइसेंसों को रद्द करने के उच्चतम न्यायालय के फैसले की समीक्षा के लिए याचिका दायर की है। सरकार ने टू-जी स्पेक्ट्रम के आबंटन में पहले आओ, पहले पाओ की नीति अपनाने को असंवैधानिक करार देने पर भी सवाल उठाया है। याचिका में कहा गया है कि न्यायालय ने ऐसे क्षेत्र में प्रवेश किया है, जो बिल्कुल कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में आता है और जो न्यायिक समीक्षा की सीमा से बाहर है।
समीक्षा याचिका में कहा गया है कि स्पेक्ट्रम सहित सभी प्राकृतिक संसाधनों का आबंटन केवल नीलामी के जरिये करने का न्यायालय का आदेश संविधान में वर्णित अधिकारों के बंटवारे के सिद्धांत के विपरीत है। कोई विवेकपूर्ण प्राधिकरण सभी मामलों में ऐसा नहीं कर सकता। प्राकृतिक संसाधन सबसे अधिक बोली लगाने वाले को दिये जाने चाहिए।
सरकार ने कहा कि टू-जी स्पेक्ट्रम लाइसेंसों को रद्द करने का २ फरवरी के आदेश की समीक्षा जरूरी है, क्योंकि इसमें कई गलतियां हैं। न्यायमूर्ति जी.एस. सिंघवी और ए.के. गांगुली की पीठ द्वारा दिये गए फैसले की समीक्षा के लिए और भी पर्याप्त कारण हैं। सरकार ने नीति सम्बन्धी फैसले में हस्तक्षेप करने के लिए भी उच्चतम न्यायालय पर सवाल उठाये हैं और कहा है कि नीति के बारे में फैसला स्थापित कानून के विपरीत है।
उधर, पूर्व दूरसंचार मंत्री ए. राजा ने टू-जी स्पेक्ट्रम के लाइसेंसों को रद्द करने के बारे में उच्चतम न्यायालय के फैसले की समीक्षा करने की मांग की है। राजा ने आज न्यायालय से कहा कि लाइसेंसों को रद्द किया जाना सामान्य न्याय और न्यायिक तौर-तरीकों के सिद्धांत का उल्लंघन है, क्योंकि उन्हें अपनी बात कहने का मौका दिये बिना, दोषी ठहराया गया है। उन्होंने कहा कि उनके खिलाफ फैसले के निष्कर्ष से, टू-जी स्पेक्ट्रम आबंटन घोटाले मामले में उनका बचाव पक्ष प्रभावित हो सकता है। राजा इस मामले में एक साल से अधिक समय से जेल में हैं।

बेदी बने फर्जी मुठभेड़ जांच समिति के अध्यक्ष


बेदी बने फर्जी मुठभेड़ जांच समिति के अध्यक्ष

(यशवंत श्रीवास्तव)

नई दिल्ली (साई)। उच्चतम न्यायालय ने पूर्व न्यायाधीश एच.एस. बेदी को गुजरात में २००२ से २००६ के बीच कथित फर्जी मुठभेड़ों में २२ लोगों के मारे जाने के मामलों की जांच के लिए गठित निगरानी प्राधिकरण का अध्यक्ष नियुक्त किया है। उच्चतम न्यायालय ने गुजरात सरकार की इस दलील को खारिज कर दिया कि न्यायालय ने मानवाधिकार मामले पर किसी एक को चुना है और यही मानदंड अन्य राज्यों में इस तरह के मामलों के लिए नहीं अपनाया है।
न्यायमूर्ति आफ़ताब आलम और न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई की खंडपीठ ने कहा कि अगर अन्य राज्यों से मानवाधिकार हनन के मामले उसके सामने लाये जाते हैं तो उतनी ही तत्परता से उन पर भी कार्रवाई की जायेगी। न्यायालय ने कहा कि वह चाहता है कि इन मामलों की जांच की निगरानी कोई ऐसा व्यक्ति करे, जिसकी निष्ठा पर किसी तरह का कोई संदेह न हो।
न्यायालय ने अध्यक्ष की नियुक्ति का मुद्दा तय करने की समय सीमा १२ मार्च तक बढ़ाने का सरकार का अनुरोध भी नामंजूर कर दिया। पीठ ने कहा कि निगरानी प्राधिकरण तीन महीने में अंतरिम रिपोर्ट दे देगा। माना जा रहा है कि बेदी के अध्यक्ष बनने के बाद जांच में तेजी आ सकती है।