बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

दम तोड़ता विजन ट्वंटी ट्वंटी


दम तोड़ता विजन ट्वंटी ट्वंटी

(लिमटी खरे)

देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस वैसे तो देश को इक्कीसवीं सदी में ले जाने की बात कहती है, किन्तु जब अमली जामा पहनाने की बात आती है, तो वह इस ओर ध्यान देना मुनासिब नहीं समझती है। आज इंटरनेट का जादू सर चढ़कर बोल रहा है फिर भी देश के 61 जिलों की अपनी वेवसाईट ही नहीं है। सेट फारमेट के अभाव में अलग अलग जिलों की वेब साईट भी विभिन्न तरह की ही हैं। करोड़ों अरबों रूपए पानी में बहाने के बाद भी अनेक जिलों की वेव साईट तो हैं पर अपडेट नहीं होती।


बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में भविष्यदृष्टा की अघोषित उपाधि पाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सबसे पहले इक्कीसवीं सदी में जाने की परिकल्पना कर लोगों को अत्याधुनिक उपकरणों आदि के बारे में सपने दिखाए थे। आज वास्तव में उनकी कल्पनाएं साकार होती दिख रही हैं। विडम्बना यह है कि स्व.राजीव गांधी की अर्धांग्नी पिछले एक दशक से अधिक समय से कांग्रेस की कमान संभाले हुए हैं किन्तु कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार ही आज इक्कीसवीं सदी में नहीं पहुंच सकी है।
आधुनिकता के इस युग में जब कम्पयूटर और तकनालाजी का जादू सर चढकर बोल रहा है, तब भारत गणराज्य भी इससे पीछे नहीं है। भारत में आज कंप्यूटर इंटरनेट का बोलबाला हर जगह दिखाई पड जाता है। जिला मुख्यालयों में भले ही बिजली कम ही घंटों के लिए आती हो पर हर एक जगह इंटरनेट पार्लर की धूम देखते ही बनती है। शनिवार, रविवार और अवकाश के दिनों में इंटरनेट पार्लर्स पर जो भीड उमडती है, वह जाहिर करती है कि देशवासी वास्तव में इंफरमेशन तकनालाजी से कितने रूबरू हो चुके हैं।
भारत गणराज्य की सरकार द्वारा जब भी ई गवर्नंसकी बात की जाती है तो हमेशा एक ही ख्वाब दिखाया जाता है कि ‘‘अब हर जानकारी महज एक क्लिक पर‘‘, किन्तु इसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। देश के कुल 626 जिलों में से 565 जिलों की अपनी वेव साईट है, आज भी 61 जिले एसे हैं जिनके पास उनकी आधिकारिक वेव साईट ही नहीं है। भारत में अगर किसी जिले के बारे में कोई जानकारी निकालना हो तो इंटरनेट पर खंगालते रहिए, जानकारी आपको मिलेगी, पर आधिकारिक तौर पर कतई नहीं, क्योंकि वेव साईट अपडेट ही नहीं होती है।
ई गवर्नंस के मामले में सबसे खराब स्थिति बिहार की है। बिहार के 38 जिलों में से महज 6 जिलों की ही आधिकारिक वेव साईट है, जबकि यहां के मुख्यमंत्री नितीश कुमार खुद ही अपने ब्लाग पर लोगो से रूबरू होते हैं। इसी तरह आंध्र प्रदेश के 23 में से 19, असम के 27 में से 24, छत्तीसगढ के 18 में से 16, झारखण्ड के 24 में से 20, कर्नाटक के 28 में से 27, मध्य प्रदेश के 50 में से 49, मिजोरम में 8 में पांच, पंजाब में 20 में 18 और तमिलनाडू के 31 में से 30 जिलों की अपनी वेव साईट है।
भारत गणराज्य के जिलों में आधिकारिक वेव साईट के मामले में सबसे दुखदायी पहलू यह है कि केंद्र सरकार के डंडे के कारण वेव साईट तो बना दी गई हैं, किन्तु इन्हें अद्यतन अर्थात अपडेट करने की फुर्सत किसी को नहीं है। जिलों में बैठे अप्रशिक्षित कर्मचारियों के हाथों में इन वेव साईट्स को अपडेट करने का काम सौंपा गया है, जिससे सब ओर अपनी ढपली अपना राग का मुहावरा ही चरितार्थ होता नजर आ रहा है।
वस्तुतः समूचा मामला ही केंद्रीय मंत्रालयों के बीच अहं की लडाई का है। अदूरदर्शिता के चलते सारा का सारा गडबडझाला सामने आने लगा है। जब नेशनल इंफरमैटिक संेटर (एनआईसी) का गठन ही कंप्यूटर इंटरनेट आधारित प्रशासन को चलाने के लिए किया गया है तब फिर इस तरह का घलमेल क्यों? एनआईसी का कहना है कि उसका काम मूलतः किसी मंत्रालय या जिले की अथारिटी के मशविरे के आधार पर ही वेव साईट डिजाईन करने का है। इसे अद्यतन करने की जवाबदारी एनआईसी की नहीं है।
देखा जाए तो एनआईसी के जिम्मे ही वेव साईट को अपडेट किया जाना चाहिए। जब देश के हर जिले में एनआईसी का एक कार्यालय स्थापित है तब जिले की वेव साईट पर ताजा तरीन जानकारियां एनआईसी ही करीने से अपडेट कर सकता है। चूंकि इंटरनेट  और कम्पयूटर के मामले में जिलों में बहुत ज्यादा प्रशिक्षित स्टाफ की तैनाती नहीं है इसलिए या तो ये अपनी अपनी वेव साईट अपडेट नहीं कर पाते हैं, या फिर तकनीक की जानकारी के अभाव के चलते करने से कतराते ही हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में गौतम बुद्ध नगर पूर्व में (नोएडा) में न्यू का एक साईन लिए टेंडर नोटिस लगा हुआ है, जिसमें 2008 का एक टेंडर जो 2009 में जारी कर दिया गया है आज भी विद्यमान है। इसी तरह अनेक जिलों की वेव साईट में भी सालों पुरानी जानकारियां आज भी लगी हुई हैं।
इसके अलावा एक और समस्या मुख्य तौर पर लोगों के सामने आ रही है। हर जिले की वेव साईट अलग अलग स्वरूप या फार्मेट में होने से भी लोगों को जानकारियां लेने में नाकों चने चबाने पड जाते हैं। फार्मेट अलग अलग होने से लोगों को जानकारियां जुटा पाना दुष्कर ही प्रतीत होता है। अगर शिक्षा पर ही जानकारियां जुटाना चाहा जाए तो अलग अलग जिलों में प्रदेश के शिक्षा बोर्ड और कंेद्रीय शिक्षा बोर्ड के अधीन कितने स्कूल संचालित हो रहे हैं, उनमें कितने शिक्षक हैं, कितने छात्र छात्राएं हैं, यह जानकारी ही पूरी तरीके से उपलब्ध नहीं हो पाती है।
दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू काश्मीर, केरल, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, उडीसा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पश्चिम बंगाल आदि सूबों में शत प्रति जिलों की अपनी वेव साईट हैं, पर यह कोई नहीं बात सकता है कि ये कब अद्यतन की गई हैं। लचर व्यवस्था के चलते सरकारी ढर्रे पर चलने वाली इन वेव साईट्स से मिलने वाली आधी अधूरी और पुरानी जानकारी के कारण लोगों में भ्रम की स्थिति निर्मित होना आम बात है।
देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस जिसने देश पर आधी सदी से अधिक तक राज किया है को चाहिए कि देश भर के समस्त जिलों, संभागों की आधिकारिक वेव साईट को एक सेट फार्मेट में बनाए, और इसको अपडेट करने की जवाबदारी एनआईसी के कांधों पर डालें क्योंकि इंफरमेशन टेक्नालाजी के मामले में एनआईसी के बंदे ही महारथ हासिल रखते हैं। इसके साथ ही साथ केंद्र सरकार को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि ये वेव साईट समय समय पर अपडेट अवश्य हों, इसके लिए जवाबदेही तय करना अत्यावश्यक ही है, वरना आने वाले समय में लोग कांग्रेस के भविष्य दृष्टा स्व.राजीव गांधी के बाद वाली नेहरू गांधी परिवार की पीढी को बहुत इज्जत, सम्मान और आदर की नजर से देखेंगे इस बात में संदेह ही है।

(साई फीचर्स)

क्या है बसोरी, केडी की खामोशी का राज!


0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . .  73

क्या है बसोरी, केडी की खामोशी का राज!

सिवनी के हितों को लोकसभा में उठाने से हिचकते क्यों हैं सांसद!

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। अकूत धनसंपदा के मालिक मशहूर दौलतमंद उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के द्वारा मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य विकास खण्ड घंसौर में स्थापित किए जाने वाले 1200 मेगावाट के कोल आधारित पावर प्लांट में पर्यावरण एवं वन के नियम कायदों का खुलकर माखौल उड़ाया जा रहा है और सिवनी जिले के कांग्रेस और भाजपा के सांसद इस मामले में मौन ही साधे बैठे हैं।
गौरतलब है कि सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य विकासखण्ड घंसौर में स्थापित होने वाले इस कोल आधारित पावर प्लांट की लोकसुनवाई में गंभीर अनियमितताएं होने के आरोप लगे हैं। पहले चरण की लोकसुनवाई के बाद भी आपत्तियों के निराकरण के बिना ही मध्य प्रदेश सरकार के अधीन काम करने वाले प्रदूषण नियंत्रण मण्डल और केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने इसकी पर्यावरणीय अनुमति प्रदान कर दी है।
इतना ही नहीं मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के पास जमा कराए गए कार्यकारी सारांश में बरेला संरक्षित वन शून्य किलोमीटर पर होना दर्शाया गया है। वन विभाग के सूत्रों के अनुसार शून्य किलोमीटर का तात्पर्य यह है कि पावर प्लांट बरेला संरक्षित वन में ही संस्थापित किया जा रहा है, जो नियमों का खुला उल्लंघन है।
इस संबंध में जब क्षेत्रीय कांग्रेस के सांसद बसोरी सिंह मसराम से संपर्क करने का प्रयास किया गया तो उनके एमपी और दिल्ली के मोबाईल सदा की ही भांति स्विच्ड ऑफ मिले साथ ही साथ दिल्ली के लेण्ड लाईन पर नो रिप्लाई ही हुआ। श्री मसराम के डिंडोरी जिले के करंजिया ब्लाक के ग्रमा बोदर में भी उनका दूरभाष बंद मिला।
उधर, सिवनी जिले के दूसरे सांसद के.डी.देशमुख से संपर्क करने पर उनके निज सचिव श्री शर्मा ने बताया कि सांसद महोदय अभी क्षेत्र के भ्रमण पर हैं अतः उनसे चर्चा नही हो सकी।
जानकारों का मानना है कि आदिवासियों के नाम पर राजनैतिक रोटियां सेंकने वाले कांग्रेस और भाजपा के सांसदों को इस मामले को लोकसभा में उठाना चाहिए, किन्तु इस मामले में कांग्रेस के बसोरी सिंह और भाजपा के के.डी.देशमुख ने मौन साधा हुआ है जिससे तरह तरह की चर्चाओं का बाजार गर्मा गया है।
यहां इस बात का उल्लेख करना लाज़िमी होगा कि सिवनी के सांसदों (सुश्री विमला वर्मा को छोड़कर) ने सिवनी के हितों को सदा ही गौड रखा है। सांसद और केंद्रीय मंत्री रहते पंडित गार्गी शंकर मिश्र, प्रहलाद सिंह पटेल, रामनरेश त्रिपाठी, श्रीमति नीता पटेरिया आदि ने सिवनी के हितों को लेकर कभी भी आवाज बुलंद नहीं की है। इस बार में सिवनी का इतिहास लगभग मौन ही है।
संसदीय गलियारों में चल रही चर्चाओं के अनुसार देश में संभवतः सिवनी ही एसा जिला है जहां के सांसदों ने सिवनी के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया है। सिवनी को लेकर लोकसभा में प्रश्न लगाने से यहां के सांसद गुरेज ही करते हैं। परिसीमन के बाद सिवनी संसदीय क्षेत्र का अवसान हो गया और फिर इस जिले के आधे हिस्से को मण्डला तो आधे को बालाघाट संसदीय क्षेत्र का भाग बना दिया गया है।
वर्तमान में लोकसभा के साथ ही साथ मध्य प्रदेश का विधानसभा का बजट सत्र भी चल रहा है। इसके वावजूद सिवनी जिले के चार विधायकों द्वारा इस मामले को विधानसभा में न उठाया जाना और दो सांसदों को अपने दामन में सहेजने वाले सिवनी जिले के आदिवासी हित के इस ज्वलंत मुद्दे को संसद में न उठाया जाना आश्चर्यजनक ही माना जा रहा है। यहां उल्लेखनीय होगा कि सिवनी जिले के हितों के लिए जिले के सांसदों ने कभी संसद में आवाज बुलंद नहीं की। नैनपुर से सिवनी छिंदवाड़ा अमान परिवर्तन का मामला भी 2005 में बिलासपुर के सांसद पुन्नू लाल माहौले ने ही उठाया था।

(क्रमशः जारी)

बजट तक शायद चलें मनमोहन. . . 95

. . . तो क्यों पाल रही है पीआईबी सफेद हाथी!

सरकारी नुमाईंदे के बाजाए निजी क्षेत्र से क्यों चुन रहे पीएम अपना एडवाईजर

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। देश के वज़ीरे आज़म डॉ.मनमोहन सिंह की ईमानदार छवि पूरी तरह धूल धासारित हो चुकी है। आम जनता के बीच यह चर्चा आम हो चुकी है कि इस तरह की ईमानदारी आखिर किस काम की। पीएम ईमानदार हो सकते हैं किन्तु उनके सामने अलीबाबा चालीस चोर की मण्डली देश को तबियत से लूट रही है। आखिर क्या वजह है कि जनता के बीच अपनी छवि निर्माण के लिए प्रधानमंत्री को सरकारी नुमाईंदे के बजाए निजी क्षेत्र से अपना मीडिया एडवाईजर चुनने को मजबूर होना पड़ रहा है।
शास्त्री भवन स्थित सूचना प्रसारण मंत्रालय के पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा कि सूचना प्रसारण मंत्रालय के पास मीडिया मैनेज करने के लिए एक से बढ़कर एक महारथी हैं। इनमें से अनेक अफसरों को विभिन्न मंत्रियों ने अपने पास मीडिया मैनेजमेंट के लिए रखा हुआ है। यहां तक कि महामहिम राष्ट्रपति की छवि निर्माण के लिए भी श्रीमति प्रतिभा पाटिल ने भारतीय सूचना सेवा के अफसरों पर ही भरोसा किया है।
उन्होंने कहा कि फिर आखिर क्या वजह है कि प्रधानमंत्री को भारतीय सूचना सेवा के अफसरों पर भरोसा नहीं है। क्या वजह है कि मनमोहन सिंह ने पहले हरीश खरे फिर पंकज पचौरी को नौकरी पर रखा है? अगर एसा है तो सूचना प्रसारण मंत्रालय ने मोटी पगार और तमाम सुख सुविधाओं वाले सफेद हाथी क्यों पाल रखे हैं? मीडिया मैनेजमेंट के लिए अगर आउट सोर्स की आवश्यक्ता पड़ रही है तो फिर केंद्र सरकार को सूचना प्रसारण मंत्रालय का पत्र सूचना कार्यालय ही बंद कर देना चाहिए?
देखा जाए तो इन बातों में दम दिखाई पड़ रहा है। सूचना प्रसारण मंत्रालय के पत्र सूचना कार्यालय में मीडिया मैनेजमेंट के महारथियों की खासी फौज होने के बाद भी भारत गणराज्य के वज़ीरे आज़म को मीडिया को मैनेज करने के लिए आउट सोर्स कर एक अदद मीडिया एडवाईजर लाने पर मजबूर होना पड़ रहा है, यह बात लोगों को आसानी से गले नहीं उतर रही है।
कहा जा रहा है कि हो सकता है कि सूचना प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी और प्रधानमंत्री के बीच खाई गहरी हो गई हो, जिसके चलते उन्हें अपने मातहत मंत्री के विभाग के आला अफसरों पर भी यकीन नहीं हो रहा हो। बहरहाल, जो भी हो प्रधानमंत्री को निजी क्षेत्र से किसी को बतौर मीडिया एडवाईजर चुनने से पीएम की साख काफी प्रभावित हुए बिना नहीं है।

(क्रमशः जारी)

रहस्यमय बीमारी का चेकप कराने सोनिया विदेश में!


रहस्यमय बीमारी का चेकप कराने सोनिया विदेश में!

बीमारी के बारे में कांग्रेस का मौन संदिग्ध!

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। हर क्षेत्र में आरक्षण की प्रबल समर्थक अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में जब भी कोई बड़ा नेता बीमार पड़ता है तो वह स्वदेशी चिकित्सकों पर ज़रा भी एतबार नहीं जताता है। इसी तर्ज पर कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी भी अपनी रहस्यमय बीमारी की शल्य चिकित्सा के छः माहों बाद एक बार फिर विदेश रवाना हुई हैं। कांग्रेस इसे रूटीन चेकप का नाम दे रही है।
विदेश में सर्जरी कराने के तकरीबन 6 महीने बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी रूटीन चेकअप के लिए विदेश गई हैं। कांग्रेस महासचिव जर्नादन द्विवेदी ने मंगलवार को कहा, कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी अपने इलाज के 6 महीने बाद सामान्य जांच के लिए देश से बाहर गई हैं।
उन्होंने कहा कि सोनिया गांधी 4-5 दिनों में वापस आएंगी। पार्टी सूत्रों ने बताया कि सोनिया गांधी सोमवार रात विदेश रवाना हुई हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या उनकी अनुपस्थिति में पार्टी का काम देखने के लिए कोई टीम बनाई गई है, सूत्रों ने कहा कि चूंकि यह बहुत ही छोटी विदेश यात्रा है इसलिए इस तरह की व्यवस्था की जरूरत नहीं है।
गौरतलब है कि 65 वर्षीय सोनिया गांधी पिछले साल अगस्त में अपनी बीमारी के इलाज के लिए विदेश गई थीं। उनकी बीमारी के बारे में खुलासा नहीं किया गया था। यक्ष प्रश्न अब भी वही खड़ा हुआ है कि सामान्य चेकप के लिए जहां 121 करोड़ देशवासी हिन्दुस्तान के चिकित्सकों पर निर्भर हैं तो फिर कांग्रेस की राजमाता लाखों करोड़ों रूपए खर्च कर विदेश जाकर अपना इलाज कराकर देशवासियों को क्या संदेश देना चाह रही हैं?
इसके पहले उनकी बीमारी के मामले में कांग्रेस और कांग्रेसनीत केंद्र सरकार मौन ही रही है। पूर्व में जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रम्हाण्यम स्वामी ने सोनिया गांधी पर अमेरिका में हुई सर्जरी में हुए खर्च पर सवाल उठाया था। बताया जाता है कि सर्जरी के बाद टीम सोनिया जिस अपार्टमेंट में रूकी थी उसका किराया अठ्ठारह लाख रूपए रोजना था।
वैसे तो सोनिया गांधी की बीमारी उनका निजी मामला है, किन्तु व्हीव्हीआईपी पर्सन्स के हर कदम को जानने के लिए रियाया उत्सुक रहती है। सोनिया की बीमारी पर कांग्रेस की चुप्पी ने लोगों की उत्सुकता बढ़ा दी है। कांग्रेस मुख्यालय के अंदरखाने से छन छन कर बाहर आ रही खबरों पर अगर यकीन किया जाए तो इस साल जून में वे अपनी बीमार मां का हाल जानने नहीं अपना ही इलाज करवाने विदेश गईं थीं।
कांग्रेस की सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ (सोनिया का सरकारी आवास) के सूत्रों का कहना है कि सोनिया गांधी का आपरेशन न्यूयार्क स्थित मेमोरियल स्लोन केटरिंग कैंसर सेंटर में हुआ है। उनका आपरेशन साधारण नहीं था और उनकी सर्जरी लगभग सात घंटे से अधिक समय तक चली। अपुष्ट समाचारों के अनुसार सोनिया को पेंक्रियाज में कैंसर था। इस तरह का कैंसर असामान्य ही माना जाता है क्योंकि यह लाखों लोगों में एक को होता है।
बहरहाल, सूत्रों के अनुसार आपरेशन के बाद सोनिया गांधी अपने लाव लश्कर के साथ वे न्यूयार्क के प्लस मैनहट्टन अपार्टमेंट में दो मंजिला आवास में रूकी थीं। सूत्रों ने यह भी बताया कि सोनिया गांधी के द्वारा किराए पर लिए इस आवास का किराया 40 हजार अमरीकि डालर अर्थात लगभग 18 लाख रूपए प्रतिदिन था।
गौरतलब है कि अभी ज्यादा दिन नहीं बीते हैं जबकि कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी और युवराज राहुल गांधी द्वारा कांग्रेसियों को सादगी बरतने की नसीहत दी गई थी। सोनिया गांधी ने इसे अपनाते हुए दिल्ली से मुंबई तक की हवाई यात्रा इकानामी क्लास में बीस सीट खाली कराकर (सुरक्षा का हवाला देकर) और राहुल गांधी ने दिल्ली से चंडीगढ़ तक शताब्दी रेल में एक पूरी की पूरी बोगी बुक कराकर (सुरक्षा कारणों के चलते) सादगी का अद्भुत परिचय दिया था।
कहा जा रहा है कि सोनिया के इस लंबे चौड़े खर्च का भोगमान सोनिया के पीहर की ही एक फर्म ने भोगा है। अब देखना महज इतना है कि इस मसले पर विपक्ष क्या रूख अपनाता है? विपक्ष को यह एक बेहतरीन मुद्दा मिला है जिस पर वह कांग्रेस और सरकार को बुरी तरह घेर सकती है।

खरबों के शेयर बेचेगी सरकार


खरबों के शेयर बेचेगी सरकार

(शरद खरे)

नई दिल्ली (साई)। सरकार ने तेल और प्राकृतिक गैस निगम - ओएनजीसी में अपने पांच प्रतिशत शेयर बेचने का फैसला किया है। पहली मार्च को होने वाली इस कंपनी के शेयरों की बिक्री से सरकार को करीब एक खरब बीस अरब रूपये मिलेंगे। कल नई दिल्ली में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में अधिकार प्राप्त मंत्री समूह की बैठक के बाद पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री जयपाल रेड्डी ने यह जानकारी दी।
उन्होंने कहा कि ओएनजीसी में सरकार की ७४ दशमलव एक चार प्रतिशत हिस्सेदारी है और पांच प्रतिशत इक्विटी यानी ४२ करोड ७७ लाख ७० हजार शेयरों की बिक्री का प्रस्ताव है।श्री रेड्डी ने कहा कि ईरान से कच्चे तेल की खरीद के मुद्दे पर भारत किसी बाहरी दबाव का सामना नहीं कर रहा है।
ईरान के साथ भारत के दोस्ताना संबंध हैं और वहां से तेल का आयात जारी रहेगा।ईरान के विवादास्पद परमाणु कार्यक्रम के मुद्दे पर पश्चिमी देशों और ईरान के बीच हाल में तनाव के बाद अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें बढ़ गई हैं। वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि चिन्ता का कारण है, लेकिन अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि देश की अर्थव्यवस्था पर इसका क्या असर होगा।
उधर, वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि कच्चे तेल की कीमतों में बढोतरी चिंता का विषय है। श्री मुखर्जी ने आज नई दिल्ली में कहा कि अभी यह कहना तो जल्दबाजी होगी कि इस बढोतरी का अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा। ईरान के विवादास्पद परमाणु कार्यक्रम को लेकर ईरान और पश्चिमी देशों में तनाव के बाद अंतर्राष्ट्रीय बाजार में हाल ही में कच्चे तेल की कीमतों में उछाल आया है। इस बीच, पेट्रोलियम मंत्री एस जयपाल रेड्डी ने कहा है कि भारत पर ईरान से कच्चा तेल खरीदने के बारे में किसी तरह का बाहरी दबाव नहीं है।

श्रमिक संघ की हड़ताल का मिला जुला असर


श्रमिक संघ की हड़ताल का मिला जुला असर

(प्रियंका श्रीवास्तव)

नई दिल्ली (साई)। केन्द्रीय मजदूर संघों द्वारा सरकार की कथित श्रमिक विरोधी नीतियों और महंगाई के विरोध में की गई राष्ट्रव्यापी हड़ताल का मिलाजुला असर रहा। कुछ राज्यों में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के कामकाज और परिवहन सेवाओं में रुकावट आई, लेकिन आमतौर पर जनजीवन आम दिनों की तरह रहा। विमान सेवाएं सामान्य थीं जबकि पूर्वी रेलवे और दक्षिण पूर्व रेलवे के कुछ डिवीजनों में प्रदर्शनकारियों के धरने के कारण रेल सेवाएं बाधित रहीं।
मुंबई साई ब्यूरो अतुल खरे ने बताया कि देश की आर्थिक राजधानी में केवल वित्तीय संस्थान हड़ताल से प्रभावित रहे, लेकिन विशेषरूप से सार्वजनिक परिवहन जैसी अनिवार्य सेवाएं सामान्य रहीं। केरल में जनजीवन पर हड़ताल का असर रहा क्योंकि वाहन नहीं चले तथा दुकानें बंद रहीं। पंजाब, चंडीगढ़ और हरियाणा में भी बैंकिंग तथा परिवहन सेवाएं ठप्प रहीं।
दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन और मेट्रो सेवाएं जारी रहीं और निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार उड़ानें भी सामान्य रहीं। दिल्ली सरकार ने हड़ताल को ध्यान में रखते हुए अनिवार्य सेवा अधिनियम- एस्मा लागू किया। पश्चिम बंगाल में आमतौर से हड़ताल के कारण जन-जीवन पर कोई असर नहीं रहा। राज्य सरकार की बसें, टैक्सियां, ट्राम, रेलगाड़ियां और मेट्रो रेल सेवाएं सामान्य रूप से चलती रहीं। लेकिन निजी बसें कुछ ही मार्गों पर चलीं। विमान सेवाएं सामान्य रहीं। उत्तर-पूर्वी राज्यों में हड़ताल का असर कम रहा।

सिवनी को मिली आयुर्विज्ञान महाविद्यालय की सौगात


सिवनी को मिली आयुर्विज्ञान महाविद्यालय की सौगात

हो गई मेडीकल की घोषणा, नहीं पता चला जनसेवकों को!

(नंद किशोर)

भोपाल (साई)। प्रदेश सरकार ने इस साल पेश किए बजट सत्र में सिवनी जिले को मेडीकल कालेज की सौगत मिल गई है। बजट आया पर किसी को इस बात का भान ही नहीं हुआ कि बजट में सिवनी को यह उपलब्धि मिली है। यही कारण है कि मंगलवार को पेश किए गए बजट के बाद बुधवार को समाचार पत्र इस मामले में कांग्रेस और भाजपा के विज्ञापनों से रीते हैं।
मध्य प्रदेश में चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने की दृष्टि से शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने जननिजी भागीदारी के माध्यम से सिवनी, रतलाम, सतना, विदिशा एवं देवास में जिला चिकित्सालयों की सुविधाओं से संबंद्ध कर पांच नये मेडिकल कालेज खोले जाने का सैद्धांतिक निर्णय लिया गया है।
मध्य प्रदेश का बजट प्रस्तुत करते हुए वित्त मंत्री राघवजी ने इस बात की घोषणा की। इसमें सबसे अहम बात यह है कि मेडीकल कालेज खोलने का निर्यण लिया गया है, किन्तु इसके लिए राशि का प्रावधान नहीं किए जाने से यह निर्णय एक झुनझुना ही साबित हो सकता है। इसके लिए जन निजी भागीदारी के माध्यम से कार्य कराया जाना प्रस्तावित है।
जानकारों का मानना है कि इसके लिए पहले धनाड्यों को खोजना होगा जो मेडीकल कालेज खोलने में दिलचस्पी दिखाएं। इसके उपरांत मेडीकल कॉउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) के कड़े मापदण्डों में इस आर्युविज्ञान महाविद्यालय को खरा उतरना होगा। वैसे सिवनी का जिला चिकित्सालय तत्कालीन मंत्री सुश्री विमला वर्मा की सिवनी वासियों को दी गई अनुपम सौगात है जिसे उनके सक्रिय राजनीति से किनारा करने के बाद आए विधायक सहेजकर नहीं रख पाए। यही कारण है कि आज चिकित्सकों और पेरामेडीकल स्टाफ के अभाव में जिला चिकित्सालय खुद ही बीमारी से कराह रहा है।
बहरहाल, इसी माह में फोरलेन में खवासा से मोहगांव तक के टूलेन मार्ग के 16 करोड़ 41 लाख रूपए की निविदा जारी होने के बाद यह दूसरा मौका है जब किसी भी बात का श्रेय लेने के प्यासे कांग्रेस और भाजपा के विधायकों द्वारा उपलब्धि पर मौन रहा गया हो। दरअसल, किसी को उम्मीद नहीं थी कि बजट में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस तरह की दरियादिली दिखा पाएंगे।
मंगलवार को पेश किए गए मध्य प्रदेश के बजट में पांच आयुर्विज्ञान महाविद्यालय खोलने की घोषणा के बाद भी सिवनी जिले में राजनैतिक हलचल न होना आश्चर्यजनक ही माना जा रहा है। छोटी छोटी बात पर विज्ञप्ति और विज्ञापन के माध्यम से श्रेय बटोरने वाले विधायकों ने बजट को पढ़ना ही संभवतः मुनासिब नहीं समझा। संभवतः यही कारण है कि सिवनी के मेडीकल कालेज की घोषणा पर सभी खामोश बैठे हैं।

कमाल के गुण हैं अदरख में


हर्बल खजाना ----------------- 33

कमाल के गुण हैं अदरख में

(डॉ दीपक आचार्य)

अहमदाबाद (साई)। आम घरों के किचन में पाया जाने वाला अदरख खूब औषधिय गुणों से भरपूर है। सम्पूर्ण भारत में इसकी खेती की जाती है। अदरख का वानस्पतिक नाम ज़िन्ज़िबर आफ़ीसिनेल है। सभी प्रकार के जोड़ों की समस्याओं में रात्रि में सोते समय लगभग ४ ग्राम सूखा अदरख, जिसे सोंठ कहा जाता है, नियमित लेना चाहिए।
स्लिपडिस्क या लम्बेगो में इसकी इतनी ही मात्रा चूर्ण रूप में मधु के साथ ली जानी चाहिए। आदिवासियों के अनुसार बरसात में खान पान में हल्का भोजन करना चाहिये और भोजन के साथ मे आधा निंबू का रस तथा अदरख जरूर खाना चाहिये। नींबू और अदरख बरसात समय होने वाली अनेक तकलीफों का निवारण स्वतरू ही कर देते है।
दो चम्मच कच्ची सौंफ और ५ ग्राम अदरख  एक ग्लास पानी में डालकर उसे इतना उबालें कि एक चौथाई पानी बच जाये। एक दिन में ३-४ बार लेने से पतला दस्त ठीक हो जाता है। गैस और कब्ज में भी लाभदायक होता है। गाउट और पुराने गठिया रोग में अदरख एक अत्यन्त लाभदायक औषधि है।
अदरख लगभग (५ ग्राम) और अरंडी का तेल (आधा चम्मच) लेकर दो कप पानी में उबाला जाए ताकि यह आधा शेष रह जाए। प्रतिदिन रात्रि को इस द्रव का सेवन लगातार किया जाए तो धीमें धीमें तकलीफ़ में आराम मिलना शुरू हो जाता है। आदिवासियों का मानना है कि ऐसा लगातार ३ माह तक किया जाए तो पुराने से पुराना जोड दर्द भी छू-मंतर हो जाता है।

(साई फीचर्स)