शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

ओले पाले पर सवार शिवराज की विकास यात्रा!


ओले पाले पर सवार शिवराज की विकास यात्रा!



(लिमटी खरे)

मध्य प्रदेश में कांग्रेस के निराशजनक प्रदर्शन, कमजोर विपक्ष के बल पर भाजपा अपने नौ साल का शासन पूरा करने जा रही है। सूबे में भाजपा की विकास यात्रा निकल रही है। भाजपा कहती है यह विकास यात्रा संगठन की है, सत्ता को इससे कुछ लेना देना नहीं है। उधर, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पगड़ी वाली फोटो के साथ सूबे का जनसंपर्क महकमा पूरे पेज के मंहगे रंगीन विज्ञापन जारी कर विकास यात्रा का गुणगान करता है। यह बात समझ से परे है कि विकास यात्रा सत्ता की है या संगठन की! इस मामले में कांग्रेस को मानो सांप सूंघ गया है। सिवनी जिला मुख्यालय में विकास यात्रा का आगाज 17 फरवरी से किया गया, 15 फरवरी को ग्रामीण अंचलों में ओले से गरीब अन्नदाता किसानों की फसलें खराब हुईं, भाजपा पर सेठ साहूकारों की पार्टी होने का आरोप भी है अब भाजपा शहर के सेठ साहूकारों से पूछती फिर रही है कि उन्हें कितना नुकसान हुआ है! गरीब गुरबों की सुध लेने वाला कोई भी नहीं है। अभी 2010 में हुई अतिवृष्टि ओला वृष्टि का मुआवजा भी नहीं मिल पाया है।

भारतीय जनता पार्टी की किस्मत वाकई मध्य प्रदेश में बेहद अच्छी कही जा सकती है, क्योंकि 2003 में मध्य प्रदेश में कांग्रेस के मुंह की खाने के उपरांत किसी भी नेता ने इसे उठाने का जतन नहीं किया। तत्कालीन अध्यक्ष सुभाष यादव, उसके बाद सुरेश पचौरी और अब कांतिलाल भूरिया भी कमजोर विपक्ष के सूत्रधार माने जा सकते हैं। मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार द्वारा कांग्रेस को न जाने कितने लुभावने मौके दिए जिन पर अगर कांग्रेस अड़ जाती तो शिवराज सिंह चौहान को बैकफुट पर जाने पर मजबूर होना पड़ता। विडम्बना यह है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस बिना रीढ़ की हो चुकी है।
मीडिया में कांग्रेस पर ‘‘मैनेज‘‘ होने के आरोप लग रहे हैं। विदिशा में लोकसभा चुनावों में कांग्रेस प्रत्याशी राजकुमार पटेल अपना फार्म ही दाखिल नहीं कर पाते हैं। जनता हैरान हुई, राजकुमार पटेल जो दिग्विजय सिंह के खासुल खास हैं और मध्य प्रदेश सरकार में शिक्षा राज्य मंत्री रहे हैं, उनसे इस तरह की गल्ति की उम्मीद नहीं की जा सकती। जनता परेशान पर कांग्रेस के नेता तो नीरो के मानिंद बजाते ही रहे बांसुरी।
भाजपा की विकास यात्रा के बारे में सरकार के आधिकारिक प्रवक्ता नरोत्तम मिश्रा कहते हैं कि यह यात्रा सरकारी नहीं संगठन की है। सरकार को इससे कुछ लेना देना नहीं है। नरोत्तम मिश्रा के बयान के तीन दिन बाद ही अखबारों में भर पेज के रंगीन विज्ञापन जारी कर दिए जाते हैं पब्लिसिटी डिपार्टमेंट द्वारा। क्या माना जाए? यह विकास यात्रा सरकारी है या पार्टी की? इस मसले पर भी कांग्रेस ने अपना मुंह सिल रखा है। यह सरकारी पैसे के दुरूपयोग का मामला है। कांग्रेस और भाजपा की नूरा कुश्ती में मध्य प्रदेश की जनता पिस रही है।
विधायक और सांसद विकास यात्रा में जी जान से जुटे हैं कहीं कहीं सांसदों विधायकों के कन्नी काटने की खबर भी है। कुल मिलाकर विकास यात्रा में शिवराज सिंह चौहान ने सरकारी मशीनरी को पूरी तरह झोंक दिया है। विकास यात्रा की आड़ में केंद्र सरकार से आई इमदाद का मद ही बदलकर उसे बलराम योजना का नाम दिया जाकर हर गांव में भूमिपूजन का प्रोग्राम किया जा रहा है। एकाध जिले को छोड़कर बाकी हर जिले में कांग्रेस यहां तक कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी इस मामले में अपना मौन तोड़ने को तैयार नहीं दिख रही है।
मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में भी शिवराज सिंह का विकास रथ दौड़ रहा है। गति इस कदर तेज है मानो आंधी आ रही हो। परिसीमन में समाप्त हुई सिवनी लोकसभा की अंतिम सांसद और जिला मुख्यालय सिवनी को अपने में समाहित करने वाली सिवनी विधानसभा की विधायिका श्रीमति नीता पटेरिया द्वारा एक सप्ताह में दौ सौ गांवों का दौरा कर लिया जाता है। देश भर के लोग हैरान हैं कि आखिर किस गति से विधायिका जी ने शिव के रथ को दौड़ाया?
कहा जाता है कि श्रीमति पटेरिया में गजब की संगठनात्मक ताकत है। वे गजब की तेजी से जनसंपर्क करतीं हैं। पूर्व में सांसद रहते श्रीमति पटेरिया के बारे शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष इमरान पटेल ने आरोप लगाया है कि उन्होंने एक सरकारी अधिकारी के परिजन के नाम से आरटीओ पंजीबद्ध निजी वाहन को अपना बताकर एक दिन में सात सौ किलोमीटर का जनसंपर्क पर डीजल भी ले लिया था। जबकि डीजल उन्हें उनके अपने वाहन के नाम पर ही मिल सकता है। तत्कालीन जिलाधिकारी सिवनी रहे पिरकीपण्डला नरहरि को शायद इस बात की भनक थी, पर वे मजबूरी में शांत रहे। तत्कालीन सांसद का साथ देने का ईनाम उन्हें अब मिला और वे आज ग्वालियर जैसे संभागीय मुख्यालय में कलेक्टर की आसनी पर विराजमान हैं।
सिवनी शहर से लगे ग्राम डोरली छतरपुर के आसपास एक शेरनी और दो शावकों के होने की खबर है। एक बुजुर्ग के शिकार की चर्चा भी इस शेरनी द्वारा किए जाने की है। इस मामले में मीडिया चीख पुकार कर रहा है, पर सांसद विधायक को अब तक शिवराज सिंह चौहान की विकास यात्रा से फुर्सत नहीं मिल पाई कि वे वन विभाग से इस बारे में मालुमात कर सकें। जबकि विकास यात्रा में पूरा सरकारी अमला विधायक सांसद के साथ कदम से कदम मिलाकर ही चल रहा है।
15 फरवरी को सिवनी में गजब का तूफान आया। ओलों ने किसानों की खड़ी फसले और वृक्षों पर बैठे परिन्दों को अपनी चपेट में ले लिया। चौतरफा हाहाकार मचा हुआ है। अब चूंकि विकास यात्रा में  परिसीमन में समाप्त हुई सिवनी लोकसभा की अंतिम सांसद और जिला मुख्यालय सिवनी को अपने में समाहित करने वाली सिवनी विधानसभा की विधायिका श्रीमति नीता पटेरिया अपनी विधानसभा के दो सौ से भी ज्यादा गांवों का दौरा करके आ चुकीं हैं अतः दुबारा किसानों का दुख दर्द भला वे कैसे पूछने जाएं।
विकास यात्रा का अंतिम चरण यानी शहर में यह यात्रा आरंभ हो चुकी है। अमूमन शहर में संपन्न किसान यानी सेठ साहूकार ही बसते हैं जिनके पास जमीनों की कमी नहीं है। क्या इन परिस्थितियों में यह माना जाए कि सेठ साहूकारों की पार्टी होने का तमगा पीठ पर लगाने वाली भारतीय जनता पार्टी अब सेठ साहूकारों से उनकी फसलों की नुकसानी जानने आतुर है।
वस्तुतः होना तो यह चाहिए था कि सिवनी में भाजपा को अपनी विकास यात्रा का रूख शहर के बजाए गांव की ओर करना चाहिए था। सरकारी अधिकारी और कर्मचारी को साथ लेकर देश के अन्नदाता किसान की रिसते घावों पर मरहम लगाना था। कुछ दिन पूर्व भी बरघाट के विधायक कमल मस्कोले और सिवनी विधायिका श्रीमति नीता पटेरिया ने किसानों से हमदर्दी बताकर दौरा करने की बात मीडिया में सुर्खियों में आई थी। होना तो यह चाहिए था कि विधायकों को विकास यात्रा के इस ढकोसले को तजकर अब तक प्रशासन से मिलकर आनावारी तक तय करवा दी जानी चाहिए थी। वस्तुतः एसा हुआ नहीं है।
वैसे मध्य प्रदेश के किसान इस बात को अभी नहीं भूले होंगे कि वर्ष 2010 में उनकी फसलें ओला पाला से नष्ट हो गईं थीं। इसके बाद लुभावने वादे करने में अग्रणी सूबे के निजाम शिवराज सिंह चौहान ने चार सौ करोड़ रूपयों से ज्यादा बांटने की बात बुरदलोई मार्ग पर स्थित मध्य प्रदेश भवन में पत्रकारों से रूबरू होकर कहीं थीं। उन्होने कहा था कि कांग्रेसनीत केंद्र सरकार द्वारा मुआवजा नहीं दिया जा रहा है।
वास्तविकता यह थी कि ओला पाला प्राकृतिक आपदा में शामिल ही नहीं है। इन परिस्थितियों में केंद्र सरकार आखिर मध्य प्रदेश के किसानों को कैसे मदद करती। 2011 के शुरूआती माहों में जब भी शिवराज सिंह चौहान दिल्ली आए उन्होंने केंद्र से मुआवजा नहीं देने के आरोपों को मीडिया के सामने जमकर उछाला। वस्तुः शिवराज सिंह चौहान को यह मांग प्रधानमंत्री से करना था कि आला पाला को प्राकृतिक आपदा में शामिल किया जाए ताकि भविष्य में किसानों को इसका लाभ मिले।
शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में सरकार और प्रभात झा के नेतृत्व में भाजपा संगठन विकास यात्रा पर है। यह विकास यात्रा में 2010 में ओला पाला प्रभावित किसानों के रिसते घावों पर मरहम लगाएगी या नकम छिड़केगी, यह तो वक्त ही बताएगा पर सिवनी जिले में विकास यात्रा का रूख पुनः गांव की ओर कर किसानों को सांत्वना देने के बाजए सेठ साहूकारों के बीच जाकर भाजपा आखिर साबित क्या करना चाह रही है यह प्रश्न अवश्य ही विचारणीय कहा जा सकता है।

सिवनी को क्या हालिस हुआ पावर ग्रिड से!


0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . .  68

सिवनी को क्या हालिस हुआ पावर ग्रिड से!

विकास के नाम पर विनाश के ठेकेदार हैं क्यों मौन



(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। देश के मशहूर दौलतमंद उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के द्वारा मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य विकास खण्ड घंसौर में स्थापित किए जाने वाले 1200 मेगावाट के कोल आधारित पावर प्लांट से सिवनी जिले को आखिर क्या मिलेगा? विकास की दुहाई देने वाले जिले के सियसी नेता आखिर इस मामले में शांत क्यों हैं कि सिवनी शहर के पास स्थापित पावर ग्रिड के बावजूद सिवनी की झोली में आखिर क्या आया।
गौरतलब है कि देश के सबसे बड़े पावर ग्रिड की स्थापना मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में की गई है। यह पावर ग्रिड सिवनी शहर की उत्तर दिशा में शहरी सीमा से महज तीन किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में नेशनल हाईवे पर अवस्थित है। इस पावर ग्रिड के लिए बड़ी मात्रा में जमीन का अधिग्रहण किया गया है। इसके बनने के उपरांत इसे राष्ट्र को समर्पित किए बिना ही आरंभ कर दिया गया है।
माना जा रहा था कि इसके बनने से यहां आबादी रहेगी और सिवनी के बाजार को प्रत्यक्ष तौर पर इसका लाभ मिलेगा। विडम्बना है कि इसका कोई भी लाभ प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर सिवनी को नहीं मिल पा रहा है। यही नहीं सिवनी में स्थापित होने के बाद भी एक यूनिट बिजली भी सिवनी को इससे नहीं मिल पा रही है।
सिवनी में जबसे थापर के पावर प्लांट का विरोध आरंभ हुआ है तबसे सियासी नेजा संभालने वालों के पेट में मरोड़ उठने लगी है। चौक चौराहों पर ‘‘बताओ यार, विकास का विरोध कर रहे हैं‘‘ जैसे जुमले आम हो चुके हैं। जिले की जनता इन सियासी नेताओं से इस प्रश्न का उत्तर चाहती है कि आखिर पावर ग्रिड से सिवनी को क्या हासिल हुआ जो पावर प्लांट से होगा?
आज भी पावर प्लांट को लेकर यक्ष प्रश्न बने हुए हैं कि क्या इससे उतपन्न होने वाली बिजली का कोई भाग या प्रतिशत सिवनी जिले को मिलेगा? क्या जिला मुख्यालय सिवनी में संयंत्र प्रबंधन ने तीन साल में अपना कोई कार्यालय खोला है? क्या सिवनी के लोगों को इससे कोई लाभ होगा? सिवनी जिले के कितने कुशल और अकुशल कर्मचारियों को अब तक संयंत्र प्रबंधन ने रोजगार दिया है? संयंत्र प्रबंधन ने प्रत्यक्ष और परोक्ष तौर पर नरसिंहपुर और जबलपुर के प्रभावशाली लोगों को ही इससे लाभ पहुंचाया है।
अगर यह सब सच है तो फिर ये सियासी नेता सिवनी को कर्मभूमि बनाने के बजाए बेहतर होगा कि नरसिंहपुर या जबलपुर जाकर नेतागिरी करें। सच्चाई यह है कि गौतम थापर के कोल आधारित पावर प्लांट से सिवनी जिले में कहर बरपेगा। इतना ही नहीं गौतम थापर के पावर प्लांट के उपरांत दो और कोल आधारित पावर प्लांट केंद्र सरकार की छटवीं अनुसूची में अधिसूचित घंसौर विकास खण्ड में लगने की तैयारी में हैं।
कुल मिलाकर घंसौर के आदिवासियों के सीनों को छलनी करने का ताना बाना बुना जा रहा है और यह सब देखने सुनने के बाद भी केंद्र सरकार का वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, मध्य प्रदेश सरकार, मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल, जिला प्रशासन सिवनी सहित भाजपा के सांसद के.डी.देशमुख विधायक श्रीमति नीता पटेरिया, कमल मस्कोले, एवं क्षेत्रीय विधायक जो स्वयं भी आदिवासी समुदाय से हैं श्रीमति शशि ठाकुर, कांग्रेस के क्षेत्रीय सांसद बसोरी सिंह मसराम एवं सिवनी जिले के हितचिंतक माने जाने वाले केवलारी विधायक एवं विधानसभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ठाकुर चुपचाप नियम कायदों का माखौल सरेआम उड़ते देख रहे हैं।

(क्रमशः जारी)

सियासी गलियरे की पसंद नहीं बन पाए पचौरी


बजट तक शायद चलें मनमोहन. . . 90

सियासी गलियरे की पसंद नहीं बन पाए पचौरी

पीएम के नए मीडिया सलाहकार की तलाश तेज



(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। तीक्ष्ण बुद्धि के धनी वज़ीरे आज़म के मीडिया सलाहकार हरीश खरे को भले ही पीएमओ से विदा कर उनके स्थान पर पंकज पचौरी को बिठा दिया गया हो, पर पीएमओ के सबसे ताकतवर अधिकारी पुलक चटर्जी को अभी भी मनमोहन सिंह के लिए उचित मीडिया सलाहकार की तालश है। दरअसल, यह तलाश मनमोहन सिंह के लिए नहीं वरन्, संभावित प्रधानमंत्री राहुल गांधी के लिए जारी है।
भगवान किसन की नगरी मथुरा मूल के पंकज पचौरी की लाटरी कैसे लगी इस बारे में अभी शोध थमा नहीं है। लोग पचौरी की पीएमओ में आमद को लेकर तरह तरह की शंकाएं कुशंकाएं अनुमान लगा रहे हैं। कहा जा रहा है कि पंकज पचौरी को न तो पुलक चटर्जी को यस बॉसकहने में और ना ही भाषाई पत्रकारों से मेल जोल में कोई एतराज था इसलिए फिलहाल उन्हें पीएमओ में एक कमरा दे दिया गया है।
पचौरी की इन विशेषताओं के अलावा एक और विशेषता भी सियासी गलियारों में चर्चित है। पचौरी की पत्नि मराठी मूल की हैं। इसलिए मराठी पत्रकार लाबी भी उनसे प्रसन्न ही रहेगी। हिन्दी के छोटे बड़े पत्रकारों से पंकज की अच्छी बनती है इसलिए उन्हें हिन्दी भाषी पत्रकारों का सहयोग भी मिल सकता है। पीएमओ में चल रही चर्चाओं पर अगर यकीन किया जाए तो पुलक चटर्जी की अंतिम पसंद के बतौर पंकज पचौरी नहीं हैं, चटर्जी को सटीक मीडिया सलाहकार की आवश्यक्ता है जिसकी खोज वे कर रहे हैं।
पीएमओ की इस तरह की चर्चाएं प्रधानमंत्री के कार्यालय से बाहर भी आ चुकी हैं। संभवतः यही कारण है कि पीएम के नए मीडिया सलाहकार पंकज पचौरी सियासी गलियारे में अपने पैर नहीं जमा पाए हैं। पीएमओ के भरोसेमंद सूत्रों का दावा है कि पंकज पचौरी ने वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी और भाजपा के वयोवृद्ध नेता एल.के.आड़वाणी से औपचारिक मुलाकात के लिए वक्त मांगा। दोनों ही घाघ नेताओं ने फिजां की ठण्डक को पहचानते हुए पचौरी को समय ही नहीं दिया।
खबर है कि अब पचौरी ने नया दांव खेलना आरंभ किया है। पत्रकारों को बरास्ता राज्य सभा आगे बढ़ाने के लिए पचौरी ने नए शिगूफे छोड़े हैं। कहा जा रहा है कि कांग्रेस के एजेंडे को जनता के सामने पकाकर परोसने वाले पत्रकारों को पचौरी की यह चाल बहुत रास आ रही है।
चर्चा है कि राज्यसभा से रास्ते संसदीय सौंध तक पहुंचने की मंशा जिनके दिल में कुलांचे मार रहीं हैं उनमें विनोद मेहता, आलेक मेहता, विनोद शर्मा, मृणाल पाण्डे, बरखा दत्त, राजदीप सरदेसाई के साथ ही साथ मध्य प्रदेश से प्रकाशित एक दैनिक के मालिक जैसी हस्तियां शामिल हैं। इनमें से कुछ ने 10 जनपथ के अति करीब सुमन दुबे की परिक्रमा भी आरंभ कर दी है।

(क्रमशः जारी)

एनसीटीसी पर राज्यों से होगी बातचीत


एनसीटीसी पर राज्यों से होगी बातचीत

(प्रियंका श्रीवास्तव)

नई दिल्ली (साई)। केन्द्र सरकार ने कहा है कि वह राष्ट्रीय आतंकवादरोधी केन्द्र (एनसीटीसी) के गठन का विरोध कर रहे राज्यों से बातचीत कर इस मुद्दे को हल करने की कोशिश करेगा। प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री वी नारायणसामी ने कहा कि सरकार इस मुद्दे पर इन राज्यों के साथ चर्चा करेगी। केन्द्रीय गृहसचिव आर के सिंह ने नई दिल्ली में कहा कि आतंकवाद से कारगर तरीके से निपटने में विभिन्न एजेंसियों के बीच बेहतर तालमेल बनाने के लिए इस केन्द्र का गठन किया जा रहा है।
नारायण सामी ने कहा कि जो सरकार के ऑपरेशन्स होते रहे हैं, पिछले वर्षों में उस पर सरकार ने देखा कि डिफरेन्ट एजेन्सी जो यहां काम करती है, उनको एक एजेन्सी को यह जानकारी नहीं रहती कि दूसरी एजेन्सी क्या कर रही है। एक एजेन्सी और दूसरी एजेन्सी के बीच में कोर्डिनेशन के अभाव में कुछ टेररिस्ट भाग जाते हैं। अभी हाल ही कुछ ऐसी घटना हुई इससे पहले भी हुई है।
गृहसचिव ने कहा कि इसकी अधिसूचना जारी करने से पहले राज्यों से परामर्श करने की कोई जरूरत नहीं थी, क्योंकि इसका गठन वर्तमान कानूनों के तहत ही किया जा रहा है। भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रीय आतंकवादरोधी केन्द्र के गठन को संघीय स्वायत्तता के विरुद्ध बताया है। पार्टी प्रवक्ता राजीव प्रताप रूड़ी ने कहा कि केन्द्र सरकार जिस तरह काम कर रही है उससे राज्य खुश नहीं हैं।
भाजपा नेता अरुण जेटली ने इस मसले पर अपनी राय व्यक्त करते हुए कहा कि आतंकवाद से संघर्ष और संघीय ढांचे का सम्मान साथ-साथ किया जाना चाहिए। कांग्रेस का कहना है कि इस केन्द्र के गठन का विरोध कर रहे कुछ दल एन डी ए का हिस्सा रह चुके हैं, जिसने वर्ष २००२ में विवादास्पद पोटा कानून पारित किया था।
उधर, पार्टी प्रवक्ता रेणुका चौधरी ने कहा कि एन डी ए सरकार में उस समय कई सहयोगी दल थे, जब इस प्रकार के सख्त कानून पारित किए गये थे। ममता बनर्जी, जयललिता, नवीन पटनायक और रमण सिंह सहित कई मुख्यमंत्रियों ने एन सी टी सी के गठन का विरोध किया है।

शिवसेना का मुंबई पर कब्जा बरकरार


शिवसेना का मुंबई पर कब्जा बरकरार

गढ़ में गडकरी ने दिखाई ताकत

(अतुल खरे)

मुंबई (साई)। शिवसेना-भारतीय जनता पार्टी गठबंधन का बृहन मुंबई नगर निगम में लगातार चौथी बार कब्जा निश्चित लग रहा है। बृहन मुंबई नगर निगम के २२७ वार्डों में से शिवसेना ने ७५, भारतीय जनता पार्टी ने ३२, कांग्रेस ने ५० और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने १४ सीटों पर जीत हासिल की है।
राज ठाकरे के नेतृत्व में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने २८ वार्डों में, जबकि निर्दलीय और अन्य ने भी २८ वार्डों में जीत दर्ज की है।  बहुमत के लिए शिवसेना-भाजपा-आर पी आई गठबंधन के पास कुछ सीटें कम हैं। गठबंधन को भरोसा है कि उसे कुछ निर्दलीय उम्मीदवारों का समर्थन मिलेगा।
नागपुर नगर निगम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। कुल १४५ सीटों में से भाजपा को ६२ सीटें मिली हैं, जबकि कांग्रेस ने ४१ सीटों पर जीत दर्ज की है। बहुजन समाज पार्टी को १२ सीटें मिली हैं, जबकि शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने छह-छह सीटें जीती हैं। दस सीटें निर्दलीय उम्मीदवारों के हिस्से में आई हैं। अमरावती और अकोला नगर निगमों में खण्डित जनादेश सामने आया है। यहां किसी भी राजनीतिक दल को बहुमत नहीं मिला है।
विदर्भ क्षेत्र में जिला परिषद् और पंचायत समिति के चुनावों में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने चंद्रपुर, गड़चिरौली, अमरावती, वर्धा और यवतमाल जिलों में अपने परम्परागत प्रतिद्वंद्वियों भाजपा और शिवसेना पर अपना प्रभुत्व बरकरार रखा है। नागपुर जिला परिषद् में भाजपा ने कांग्रेस को पीछे छोड़ा है जबकि अकोला में दोनों ही पार्टियों की स्थिति एक जैसी है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा है कि कांग्रेस पार्टी के लिए ये नतीजे चौंकाने वाले हैं।

यूपी में चौथे चरण का मतदान कल

(दीपांकर श्रीवास्तव)

लखनऊ (साई)। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के चौथे चरण का मतदान कल होगा। मतदान के सारे प्रबंध कर लिए गए हैं। मतदान दल आज मतदान केंद्रों के लिए रवाना होंगे। सुरक्षा बल निर्धारित स्थान पर पहुंच गए हैं और उन्होंने कई क्षेत्रों में लैग मार्च किया। सुबह सात बजे से शाम पांच बजे के बीच वोट डाले जाएंगे। हमारे संवाददाता ने खबर दी है कि चौथे चरण में ११ जिलों में विधानसभा की ५६ सीटों के लिए ९१ महिलाओं समेत ९६७ उम्मीदवारों के बीच मुकाबला है।
इस चरण में कई महत्वपूर्ण राजनीतिक नेता, बाहूबली और नेताओं के नजदीकी रिश्तेदार चुनाव मैदान में है। एक करोड़ ७४ लाख से ज्यादा मतदाताओं के लिए १८ जहार पांच सौ ज्यादा मतदान केन्द्र बनाए गए हैं। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए सुरक्षा की चाक चौबंध व्यवस्था की गई है। संवेदनशील चित्रकूट, बांदा, प्रतापगढ़ और लखनऊ जिलों में सुरक्षा की विशेष व्यवस्था की गई है। केन्द्रीय अर्द्ध सैनिक बलों और पीएसी की सात सौ साठ कम्पनियां तैनात की गई है।

हर्बल खजाना ----------------- 28

सौंफ़: सिर्फ़ एक मसाल नहीं



(डॉ दीपक आचार्य)

अहमदाबाद (साई)। भोजन संपन्न होने के बाद खाना पचाने के तौर पर ली जाने वाली सौंफ़ गजब के औषधिय गुणों वाली होती है। सौंफ़ को लगभग हर भारतीय घरों में किचन में मसाले की तरह और पानदान मुखवास की तरह देखा जा सकता है। सौंफ़ का वानस्पतिक नाम फ़ीनीकुलम वलगेयर है।
सौंफ में कैल्शियम, सोडियम, फास्फोरस, आयरन और पोटेशियम जैसे कई अहम तत्व पाए जाते हैं। आदिवासियों का मानना है कि सौंफ़ के निरन्तर उपयोग से आखों की रौशनी बढती है और मोतियाबिन्द की शिकायत नहीं होती। प्रतिदिन दिन में तीन से चार बार सौंफ के बीजों की कुछ मात्रा चबाने से खून साफ होता है और त्वचा का रंग भी साफ हो जाता है।
डाँग गुजरात के अनुसार सौंफ़ के नित सेवन से शरीर पर चर्बी नही चढती और कोलेस्ट्राल भी काफ़ी हद तक काबू किया जा सकता है और इस बात की प्रमाणिकता आधुनिक विज्ञान भी साबित कर चुका है। अपचन और खाँसी होने की दशा में एक कप पानी में एक चम्मच सौंफ को उबालकर दिन में तीन से चार बार पिया जाए तो समस्या समाप्त हो जाती है।
हाथ-पाँव में जलन की शिकायत होने पर सौंफ के साथ बराबर मात्रा में धनिया के बीजों और मिश्री को कूट कर खाना खाने के पश्चात 5-6 ग्राम मात्रा में लेने से कुछ ही दिनों में आराम हो जाता है।

(साई फीचर्स)