शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

. . . . तो टापू बनकर रह जाएगी शिव की नगरी


. . . . तो टापू बनकर रह जाएगी शिव की नगरी

(लिमटी खरे)



महाकौशल के जबलपुर संभाग में आने वाले सिवनी जिले में राजनैतिक नेतृत्व का अभाव इस कदर खलने लगा है कि अब लोग इसे जिला मुख्यालय के बजाए ग्राम पंचायत का दर्जा देने की बात कहने लगे हैं। पहले राजनैतिक मिलीभगत के चलते लोकसभा सीट और घंसौर विधान के अवसान के रिसते घावों में फोरलेन न बनने देने का नमक छिड़क दिया गया और अब छिंदवाड़ा से मण्डला फोर्ट बरास्ता नैनपुर रेलमार्ग में नैनपुर मण्डला रेलखण्ड का काम आरंभ करवाकर इन घावों पर मिर्च भी भुरकी जा रही है। कमजोर और स्वार्थी राजनैतिक नेतृत्व के चलते सिवनी जिले को एक टापू में तब्दील करने की साजिश रची जा रही है। सिवनी के नागरिक अगर अभी नहीं चेते तो आने वाले समय में इसकी तुलना अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह से की जाने से कोई नहीं रोक सकता है।

तीस साल पुरानी सिवनी लोकसभा सीट को स्थानीय स्तर पर जिले को दिशा और दशा देने वाले राजनेताओं ने अपने निहित स्वार्थ के लिए बलिदान कर दिया। आरोप प्रत्यारोप के दौर के बीच सभी नेतृत्व कर्ताओं ने अपने स्वार्थ जमकर साधे। वर्तमान में अगर उनसे इस बारे में बात की जाए तो -‘‘यार, अपन क्या कर सकते थे, फलां ने खेल खेल दिया, हमने तो फलां को कहा था कि सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगा दो, पर उसने नहीं लगाई‘‘, जैसे बहाने बनाकर अपनी खाल बचाने का प्रयास किया जाता है।

इसके उपरांत 2008 के विधानसभा चुनावों के दौरान अटल बिहारी बाजपेयी के शासनकाल की महात्वाकांक्षी स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना के अंग उत्तर दक्षिण गलियारे मेें सिवनी जिले में पेंच नेशनल पार्क का फच्चर फसाया जा रहा था तब भी सिवनी के स्थानीय नेतृत्वकर्ता मौन साधे रहे। बाद में इन नेताओं ने इस मसले में जमकर राजनैतिक रोटियां सेंकी। लोग आश्चर्यचकित हैं कि फोरलेन बचाने सर्वोच्च न्यायालय की चौखट पर जाया जा सकता है किन्तु लोकसभा बचाने के मामले में सर्वोच्च न्यायालय जाने की महज सलाह ही दी जा सकती है।

सिवनी से होकर गुजर रहे उत्तर दक्षिण गलियारे का काम इसलिए रोका गया था क्योंकि जिला मुख्यालय से दक्षिण की ओर यह सड़क लगभग नौ किलोमीटर के हिस्से में उस स्थान से गुजर रही है जो पेंच कान्हा वाईल्ड लाईफ कारीडोर का कथित तौर पर हिस्सा है। इसी के चलते तत्कालीन जिला कलेक्टर पिरकीपण्डला नरहरि ने 18 दिसंबर 2008 को दिए और 19 दिसंबर 2008 को पृष्ठांकित आदेश में मोहगांव से खवासा तक 22 किलोमीटर में वृक्ष कटाई को रोक दिया गया था।

देखा जाए इससे गंभीर मसला तो पड़ोसी जिले छिंदवाड़ा में है। छिंदवाड़ा से सौंसर होकर नागपुर जाने वाले नवीन नेशनल हाईवे का काम आरंभ किया जा रहा है। इसमें पर्यावरण या वाईल्ड लाईफ अथवा वन का कोई फच्चर ही नहीं है। वस्तुतः एसा नहीं है। छिंदवाड़ा जिले का यह नवीन नेशनल हाईवे मूलतः सतपुड़ा, पेंच और मेलघाट के टाईगर रिजर्व का मार्ग काट रहा है, जो वाईल्ड लाईफ कारीडोर है। इस वाईल्ड लाईफ कारीडोर पर मध्य प्रदेश सरकार द्वारा दो साल पूर्व तक एक हजार करोड़ रूपए खर्च किए जा चुके हैं।

हाल ही में समीपवर्ती नक्सल प्रभावित बालाघाट जिले में जिला कलेक्टर विवेक पोरवाल द्वारा मध्य प्रदेश शासन की ओर से उत्तर समान्य वन मण्डल के माध्यम से अपनी अनापत्ति प्रस्तुत कर दी है जिससे बालाघाट से बरास्ता नैनपुर, जबलपुर अमान परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त हो गया है। राज्य शासन द्वारा 19.822 हेक्टेयर भूमि जो वन एवं आरक्षित वन भूमि थी को रेल्वे के प्रयोजन के लिए प्रदाय कर दिया गया है।

इस रेल मार्ग में उत्तर सामान्य वन मण्डल बालाघाट के वन क्षेत्र की ग्राम पंचायत टिटवा के ग्राम कटेगांव के कक्ष नंबर 1389 का आरक्षित रकबा 0.800 हेक्टेयर, ग्राम मातेगांव के कक्ष नंबर 1283 का आरक्षित रकबा 1.005 हेक्टेयर, लामता के कक्ष नंबर 1278 का आरक्षित रकबा 0.536 हेक्टेयर, परसवाड़ा के कक्ष नंबर 1243 का आरक्षित रकबा 1.473 हेक्टेयर, ग्राम पंचायत अरनामेटा के ग्राम महकाफाटा व ढीमरूटोला के वनखण्ड चमरवाही के कक्ष नंबर 1275 का आरक्षित रकबा 0.246 आदि शामिल है।

अब यक्ष प्रश्न यही खड़ा हुआ है कि सिवनी जिला वासियों से क्या खता हो गई है कि मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली सरकार और केंद्र की कांग्रेस नीत संप्रग सरकार द्वारा सिवनी के लोगों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जा रहा है। पेंच से कान्हा प्रस्तावित और काल्पनिक वाईल्ड लाईफ कारीडोर के बीच से सिवनी नागपुर फोरलेन सड़क के आलवा, सिवनी कटंगी सड़क मार्ग, सिवनी बालाघाट सड़क मार्ग, सिवनी मण्डला सड़क मार्ग गुजर रहा है। इसके अलवा इस काल्पनिक वाईल्ड लाईफ कारीडोर को नैनपुर से बालाघाट का रेखण्ड भी काट रहा है।

लाख टके का सवाल यही है कि क्या इस वाईड लाईफ कारीडोर से गुजरने वाले रेल मार्ग में समतल पार बनाई जाएगी और सूचना पटल भी लगेगा जानवरों के लिए कि रेल लाईन है सावधानी से दोनों ओर देखकर रेलमार्ग पार करें! जब सड़क मार्ग इन वन्य जीवों के लिए खतरनाक है तो फिर रेल मार्ग की अनुमति आखिर किस आधार पर दी गई है? अगर इसी कारीडोर में रेल मार्ग की अनुमति दी जा सकती है तो फिर सिवनी से खवासा फोरलेन बनाने की अनुमति तो दी ही जानी चाहिए, क्योंकि यह सड़क साढ़े चार सौ साल पहले मुगल बादशाह शेरशाह सूरी द्वारा बनवाई गई थी। इस लिहाज से तो यह मार्ग एतिहासिक महत्व का है।

बताते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी और महाकौशल के क्षत्रप केंद्रीय मंत्री कमल नाथ की व्यक्तिगत रूचि के चलते अब नैनपुर से मण्डला फोर्ट तक ब्राडगेज अमान परिवर्तन के लिए जमीन अधिग्रहण का काम भी आरंभ हो गया है। एक तरफ सिवनी जिले में छटवी अनुसूचि में अधिसूचित घंसौर तहसील में आवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के लिए कोयला आपूर्ति के लिए जबलपुर से बरेला तक अमान परिवर्तन का काम युद्ध स्तर पर किया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर बालाघाट से जबलपुर तथा नैनपुर से मण्डला फोर्ट तक अमान परिवर्तन हेतु जमीन अधिग्रहण का काम किया जा रहा है, जिससे अब नैनपुर से सिवनी होकर छिंदवाड़ा के अमान परिवर्तन की राह धुंधली ही दिखाई पड़ रही है।

लोकसभा सीट सिवनी एवं घंसौर विधानसभा सीट के अवसान, फोरलेन में जबरन के फच्चर के बाद अब आसपास के जिला मुख्यालयों को ब्राडगेज से जोड़ने की बात आकार लेने लगी है। इसे देखकर लगने लगा है कि आने वाले दिनों में सिवनी जिला एक टापू की तरह ही हो जाएगा। इसके लिए यहां का स्वार्थी राजनैतिक नेतृत्व ही पूरी तरह जवाबदेह होगा।

नरसिंहराव को रह रह कर याद कर रहे हैं मनमोहन


बजट तक शायद चलें मनमोहन . . . 54

नरसिंहराव को रह रह कर याद कर रहे हैं मनमोहन

मदाम गिने चुने चाटुकारों के बीच हैं कैद



(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। मनमोहन सिंह के खिलाफ तलवार पजाने वालों से आजिज आकर देश के प्रमुख पंत प्रधान डॉ.मनमोहन सिंह अब रह रह कर पूर्व प्रधानमंत्री स्व.नरसिंहराव के कार्यकाल को याद करते नजर आ रहे हैं। सुधारवादी कार्यों में राव ने मनमोहन का मन से साथ दिया था। नरसिंहराव के कार्यकाल में मनमोहन सिंह के उदारवादी कार्यों का ही असर है कि आज देश की अर्थव्यवस्था फल फूल रही है।

इस तरह की बातें अब मनमोहन जुंडाली द्वारा तेजी से सियासी गलियारों में फैलाई जा रही हैं। मंत्रीमण्डल, सरकार, और कांग्रेस में प्रधानमंत्री के कट्टर समर्थक एफडीआई मुद्दे को टालने के लिए नेहरू गांधी परिवार (महात्मा गांधी नहीं) की वर्तमान पीढ़ी सोनिया और राहुल सहित एफडीआई विरोधी लाबी को आड़े हाथों लिए हुए हैं। मनमोहन समर्थकों ने अब सोनिया और राहुल पर परोक्ष हमले तेज कर दिए हैं।

पीएमओ के सूत्रों का कहना है कि अब तो मनमोहन समर्थक यहां तक कहने लगे हैं कि सोनिया गांधी का अब कांग्रेस पर वश ही नहीं रह गया है। बीमार हो चुकी सोनिया गांधी अब अपने गिने चुने चाटुकार समर्थकों की बैसाखी पर ही चल रही हैं। ये चाटुकार अपना हित साधने के चक्कर में सोनिया और राहुल को भरमाने से नहीं चूक रहे हैं। सोनिया और राहुल के सलाहकार ही हैं जो कांग्रेस के इन दोनों सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्रों को गुमराह कर रहे हैं।

सूत्रों ने कहा कि कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी और युवराज राहुल गांधी को घेरने वाले चाटुकार इन दोनों को ही न तो ठीक से काम करने दे रहे हैं और न ही इन दोनों को स्वतंत्र तौर पर कोई फैसला ही लेने दे रहे हैं। यही कारण है कि मदाम अपने हिसाब से काम नहीं कर पा रही हैं। अब तक के सबसे खराब दौर में पहुंच चुकी देश की अर्थव्यवस्था की न तो सोनिया को ही समझ है और न ही राहुल को। इन दोनों के दबाव में अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह, वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी और आर्थिक मामलों के जानकार पलनिअप्पम चिदम्बरम भी कुछ करने की स्थिति में नहीं हैं।

(क्रमशः जारी)

नए प्रांत बनने से हो सकता है सतपुड़ा संभाग का अभ्युदय


0 महाकौशल प्रांत का सपना . . . 11

नए प्रांत बनने से हो सकता है सतपुड़ा संभाग का अभ्युदय

राजनैतिक बिसात की सीढ़ियां चढ़ उतर रहा है संभागीय मुख्यालय



(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। अपने अंदर आकूत प्राकृतिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक संपदाएं सहेजने वाले महाकौशल प्रांत का अगर गठन कर दिया जाता है तो सालों से लटक रहे सतपुड़ा संभाग के गठन के मार्ग प्रशस्त होने से कोई रोक नहीं सकता है। वर्तमान में इसके संभागीय मुख्यालय को कहां रखा जाए इसे लेकर मामला अटका हुआ बताया जा रहा है।

मौटे तौर पर महाकौशल प्रांत की जो परिकल्पना लोगों के दिमाग में है उसमें वर्तमान में जबलपुर, रीवा, शहडोल और प्रस्तावित सतपुड़ा संभाग शामिल है। सतपुड़ा संभाग में सिवनी बालाघाट और छिंदवाड़ा जिलों को शामिल किया जाना प्रस्तावित है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की घोषणा के बाद भी महाकौशल का सतपुड़ा संभाग अस्तित्व में नही आ पा रहा है।

वस्तुतः देखा जाए तो इन तीन जिलों को मिलाकर प्रस्तावित सतपुड़ा संभाग में झगड़ा संभागीय मुख्यालय का है। भौगोलिक दृष्टि से इन तीनों जिलों का केंद्र सिवनी है, इस लिहाज से संभागीय मुख्यालय के लिए सिवनी एकदम मुफीद है, पर कमजोर और षणयंत्रकारी राजनैतिक नेतृत्व सिवनी के संभागीय मुख्यालय बनने में आड़े आ रहा है।

मध्य प्रदेश काडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान चाहते हैं कि सतपुड़ा संभाग का मुख्यालय छिंदवाड़ा बने किन्तु केंद्रीय मंत्री कमल नाथ अपने संसदीय क्षेत्र जिला छिंदवाड़ा में दो पावर सेंटर (कलेक्टर और कमिश्नर) नहीं चाहते हैं। यही कारण है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सूबे के निजाम होने के बाद भी सतपुड़ा संभाग का संभागीय मुख्यालय अब तक तय नहीं कर पाए हैं।

उक्त अधिकारी ने आगे कहा कि 2003 दिसंबर में जब प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर उमा भारती बैठीं और उस समय उनके सबसे विश्वस्त प्रहलाद पटेल को कमल नाथ ने 2004 लोकसभा चुनावों में शिकस्त दी तब उमा भारती, कमल नाथ से जमकर खफा हो गईं थीं। यही कारण था कि कमल नाथ की इच्छा के खिलाफ उमा भारती ने छिंदवाड़ा में पुलिस उप महानिरीक्षक के कार्यालय की स्थापना कर दी थी।

भाजपाई गलियारों में यह बात चटखारे लेकर हो रही है कि प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान स्थानीय शासन मंत्री बाबूलाल गौर द्वारा कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के क्षेत्र से ज्यादा तवज्जो दी जा रही है, एवं मुख्यमंत्री चाहकर भी सतपुड़ा संभाग का संभागीय मुख्यालय छिंदवाड़ा में नहीं बना पा रहे हैं। अब तो यही संभवनाएं दिखाई पड़ रही हैं कि अगर महाकौशल प्रांत बना तभी सतपुड़ा संभाग के अस्तित्व में आने के मार्ग प्रशस्त हो सकेंगे।

(क्रमशः जारी)

वन एवं पर्यावरण मंत्री के दरबार में झाबुआ के खिलाफ गुहार!


0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . . 32

वन एवं पर्यावरण मंत्री के दरबार में झाबुआ के खिलाफ गुहार!

समाधान ऑन लाईन में होंगी झाबुआ पावर और पीसीबी की शिकायतें

सरकारी ईपोर्टल पर लगेगा शिकायतों का तांता



(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। मध्य प्रदेश शासन के ईपोर्टल पर समाधान ऑन लाईन के तहत अब देश के मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा छटवीं अनुसूची में अधिसूचित सिवनी जिले की आदिवासी तहसील घंसौर में डलने वाले 1260 मेगावाट (कागजों पर 1200 मेगावाट) के पावर प्लांट में 22 अगस्त 2009 और 22 नवंबर 2011 को प्रदूषण नियंत्रण मण्डल द्वारा संपन्न कराई गई लोकसुनवाई में गफलतों की शिकायतें अब समाधान ऑन लाईन से होने का सिलसिला चल पड़ा है। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री को भी इसकी शिकायतें भेजी गई हैं।



प्राप्त जानकारी के अनुसार सिवनी जिले के नागरिकों द्वारा अपने इंटरनेट फ्रेंडली होने का लाभ उठाकर मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा घंसौर के ग्राम बरेला में डलने वाले पावर प्लांट के प्रथम चरण की 22 अगस्त 2009 को संपन्न जनसुनवाई में हुई अनियमितताओं और 22 नवंबर 2011 को संपन्न जनसुनवाई की सूचना एमपीपीसीबी की वेब साईट पर न डाले जाने की शिकायत करने का मन बना लिया है। अनेक नागरिकों ने इस आशय की लिखित शिकायत मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, सहित केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन को प्रेषित की है।

केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन के करीबी सूत्रों का कहना है कि चंद शिकायतें तो इस प्रकार की प्राप्त हुईं हैं जिसमें मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड और मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल की मिलीभगत से मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड को लाभ पहुंचाने की बात कही गई है। इन दिनों चूंकि जयंती नटराजन कुछ अधिक व्यस्त हैं इसलिए उनके संज्ञान में यह बात नहीं लाई जा सकी है किन्तु जल्द ही इस बारे में वन मंत्री के संज्ञान में यह बात लाई जाएगी।

उधर कांग्र्रेस के नेशलन हेडक्वार्टर में जब इस बारे में चर्चा चली तो वरिष्ठ कांग्रेसियों ने इस बात पर आश्चर्य ही व्यक्त किया कि कांग्रेस के हाथ मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार के खिलाफ इतना बढ़िया मामला मिला है, फिर भी कांग्रेस खामोश कैसे बैठी है? निश्चित तौर पर इस मामले में सख्त रवैया अपनाकर शिवराज सरकार को घेरा जा सकता है। यह मुद्दा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के हवाले कर इस मामले को उठाकर शिवराज सरकार के खिलाफ जनमत भी तैयार किया जा सकता है कि शिवराज सरकार किसानों की नहीं पूंजीपतियों के इशारों पर चलने वाली सरकार है

(क्रमशः जारी)

बीज पैक हुआ नहीं और बाजार में बिकने आ गया!


बीज पैक हुआ नहीं और बाजार में बिकने आ गया!

पैकिंग डेट जनवरी 2012 और बिक रहा दिसंबर 2011 में!



(अब्दुल काबिज)

सिवनी। क्या यह संभव है कि कोई बीज अभी प्रमाणीकरण के लिए टेस्ट न किया गया हो और अभी वह पैकेट में पेक भी न किया गया हो और बाजार में बिकने आ जाए? निश्चित तौर पर नहीं! किन्तु सिवनी जिले में इस तरह का करिश्मा हो रहा है। दिसंबर 2011 में सिवनी जिले में वह बीज बाजार में मुहैया है जिसके पैकेट पर जनवरी 2012 में टेस्ट किया जाना और पैक किया जाना दर्शाया गया है।



देश के अन्नदाता किसान के साथ होने वाले इस तरह के घालमेल की शिकायतें जब तब मिलती रहती हैं पर पहला मौका होगा जब किसी के द्वारा इसे संज्ञान में लाया गया। इसके पहले दिल्ली में खाद्य पदार्थों की पैकेट बंद दुनिया में तहलका मचाने वाले सिरमौर हल्दीराम के द्वारा इस तरह का चमत्कार कर दिखाया गया था। उनके द्वारा दिसंबर में वह मिठाई बाजार में बेची जा रही थी जिसे दो माह बार फरवरी में पैक किया जाना दर्शाया गया था।

प्राप्त जानकारी के अनुसार सिवनी के एक प्रतिष्ठान से लोकी के बीज जब खरीदे गए तो किसान को आश्चर्य हुआ कि उस बीज के पैकेट पर बीज प्रमाणीकरण के लिए किए गए परीक्षण की तिथि एक जनवरी 2012 अंकित थी जिसे आने में अभी पंद्रह दिन से भी अधिक का समय बाकी था। इतना ही नहीं उस पैकेट में पैकिंग तिथि 10 जनवरी 2012 अंकित थी। किसानों को छलने वाले इस तरह के बड़े बीज निर्माता प्रतिष्ठानों के खिलाफ कार्यवाही का साहस न तो केंद्र सरकार ही जुटा पाती है और न ही राज्य सरकार।

किस काम का है नपुंसक नेतृत्व


किस काम का है नपुंसक नेतृत्व

(लिमटी खरे)
  
‘‘भारत गणराज्य में पहली बार एसी सरकार केंद्र में विराजी है जो न तो निर्णय लेने में सक्षम है और ना ही कड़े कदम उठाने में। दो दशक पहले मलेरिया जैसे बुखार के लिए कुनैन की कड़वी गोली को बलात गटकना होता था। आज देश उसी तरह के ज्वर से तप रहा है, कुनैन जैसी कड़वी गोली की दरकार है, पर सरकार है कि उसे गुटकने को राजी नहीं है। सरकार कहती है कि उसके पास वह सूची है जिसमें विदेशों में काला धन जमा है, पर उसे वह उजागर नहीं कर सकती है। विपक्ष अड़ा है नाम उजागर करने को। विपक्ष को चाहिए कि वह सरकार से नाम उजागर करने की जिद न करे। बेहतर होगा कि मुद्दे को राह से न भटकाए विपक्ष। इस फेहरिस्त में विपक्ष के ‘‘अपने चहेतों के नाम‘‘ भी होंगे। विदेश में जो धन जमा है वह काला है इस बात से इसलिए इंकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि उस धन पर सरकार को आयकर या अन्य कर प्राप्त नहीं हुए हैं। सरकार बेशक इनके नाम सार्वजनिक न करे, किन्तु इन काले धन की सूची वालों पर कार्यवाही से क्यों हिचक रही है?‘‘



इक्कीसवीं सदी के स्वयंभू योग गुरू रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव ने विदेशों में जमा कलेधन के मामले को 2008 में उठाना आरंभ किया था। इसके बाद यह मामला गति पकड़ता गया और फिर अंततः अब यह मामला पूरी तरह सुलग चुका है। सरकार को मजबूरी में स्विस बैंक से खाताधारकों की सूची बुलवानी पड़ी। इस सूची में कितने नाम हैं इस बारे में आधिकारिक तौर पर तो कुछ भी सामने नही आया है, किन्तु कहा जा रहा है कि इसमें 26 हजार लोगों के नाम हैं। काले धन के मामले में सरकार ने एक बात दावे के साथ कह दी कि इसमें पंद्रहवीं लोकसभा के किसी भी सांसद का नाम शामिल नहीं है।

विदेशों में जमा काला धन वाकई एक गंभीर मुद्दा है। अगर कोई भी व्यक्ति भारत से धन लेकर विदेश जा रहा है तो एयरपोर्ट और बंदरगाहों पर तैनात सुरक्षा कर्मी क्या देखते रह गए। निश्चित तौर पर खामी हमारे सिस्टम में ही कहीं रही है। ग्रीन चेनल का लाभ उठाकर हमारे माननीय विदेशों से न जाने क्या क्या आपत्तिजनक वस्तुओं का आयात निर्यात करते रहे। कई बार तो माननीयों को इसके चलते शर्मिंदगी भी उठानी पड़ी।

सरकार ने साफ कर दिया कि विभिन्न देशों के साथ हुए समझौतों की शर्तों के तहत वे विदेशों में जमा काले धन के बारे में जानकारी मिलने पर भी सार्वजनिक नहीं करने के लिए बाध्य हैं। संतोष की बात यह मानी जा सकती है कि सरकार ने इस बात को तो स्वीकार किया कि विदेशों में देश का धन जमा है और उसके संग्रहकर्ताओं की फेहरिस्त उसके हाथ में है। जिस धन को काला धन कहा जा रहा है उस धन पर सरकार को किसी प्रकार का कर नहीं मिला है जिससे यह काले धन की श्रेणी में आ जाता है। अब सवाल यह है कि इस तरह देश की जनता के गाढ़े पसीने की कमाई को चंद पूंजीपतियों ने सरकार की आंख से काजल चुराने के मानिंद इसे ले जाकर विदेशों में सुरक्षित रखवा दिया है।

देश को इस तरह की नपुंसक सरकार की आवश्यक्ता हमारे हिसाब से कतई नहीं है। यह तो वह मिसाल हो गई कि हमें पता है कि चोरी किसने की है। हमारे पास पक्के सबूत हैं किन्तु कुछ शर्तों के कारण हम उनके नाम उजागर नहीं कर सकते हैं। विपक्ष का रवैया भी आश्चर्यजनक ही माना जा सकता है। विपक्ष इन काले धन के संग्रहकर्ताओं के नाम उजागर करने पर आमदा है। पूरा मामला नाम उजागर करने की बहस पर आकर टिका है और यहीं यह दम तोड़ देगा।

जब सरकार के पास काले धन के जमाकर्ताओं के नाम हैं तो सरकार अपनी एजेंसियों के माध्यम से उनके कामकाज का परीक्षण क्यों नहीं करवा लेती। अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। सरकार को पता चल जाएगा कि फलां पूंजीपति कितनी कर चोरी कर रहा है? सरकार के पास संसाधनों की कमी तो नहीं है। सरकार चाहे तो अपनी विभिन्न एजेंसियों को इन पूंजीपतियों के पीछे लगा दे और इन देश द्रोहियों के नाम उजागर किए बिना ही एक नजीर पेश कर सकती है।

वस्तुतः इसमें सियासी दलों को चंदा देने वाले बहुतायत में होंगे इसलिए न तो सरकार और न ही विपक्ष चाहेगा कि इस मामले में कोई कठोर कदम उठाया जाए। सत्ता और विपक्ष द्वारा इस मामले में जमकर लड़ाई का स्वांग रचा जाकर देशवासियों को गुमराह करने का ही प्रयास किया जाएगा। सरकार अपनी एजेंसियों को बतौर ट्रबल शूटर उपयोग करती है। लालू प्रसाद यादव जब सरकार को धमकाते हैं तो सीबीआई का शिकंजा कस जाता है। मायावती जब सरकार की गर्दन तक हाथ पहुंचाती हैं तो उनके खिलाफ मामले खुल जाते हैं। बाबा रामदेव जब सरकार के खिलाफ गरजते हैं तो सरकार उनकी जांच आरंभ कर देती है। ये सारे लोग जब सरकार के खिलाफ एक्सीलेटर कम कर देते हैं तो इनके खिलाफ जांच भी लंबित ही हो जाती हैं? क्या विपक्ष को यह नहीं दिखता? दिखता है पर क्या करें हमाम में सभी निर्वस्त्र ही हैं।

एक और संभावना अत्यंत बलवती होती दिख रही है। और वह है कि चूंकि सरकार के पास काले धन के संग्रहकर्ताओं की सूची आ गई है तो अब सरकार कहीं पुलिस कोतवाल की भूमिका में न आ जाए। कोतवाल के हाथ जब सटोरियों, जुआं खिलाने वालों, अवैध शराब बेचने वालों की सूची आ जाती है और अगर वह उन्हें न पकड़ना चाहे तो वह उन्हें बुलाकर धमकाता है और चौथ वसूली करता है। डर है कि केंद्र सरकार इन पूंजीपतियों से पार्टी और निजी फंड में इजाफे के मार्ग न प्रशस्त कर दे।

वित्त मंत्री बड़ी ही शान से कहते हैं कि काले धन की समस्या 1948 से ही है, फिर इस पर तत्काल चर्चा की क्या आवश्यक्ता है? वित्त मंत्री भूल जाते हैं कि 1948 के बाद आधी सदी से ज्यादा देश पर राज किया है कांग्रेस ने। वर्तमान में भी केंद्र में कांग्रेसनीत संप्रग सरकार है। अगर 1948 से समस्या है और अब तक समस्या का हल नहीं निकाला जा सका तो इसके लिए जिम्मेदार कोई और नहीं कांग्रेस ही है। आज गठबंधन अस्तित्व में है, पर तब क्या था जब कांग्रेस ही पूरे बहुमत में सरकार पर काबिज होती थी? मुखर्जी शायद इस मामले को और पचास साल के लिए टालना चाह रहे हैं, जब भी काले धन पर तत्काल चर्चा की बात होगी तो यही कहा जाएगा कि अभी इसकी क्या जरूरत है।

इसकी जरूरत है प्रणव मुखर्जी साहेब, आज और अभी! देश का हर एक नागरिक जो सुबह उठने से लेकर रात को सोते वक्त तक जो कर अदा करता है यह उसी से अर्जित राजस्व का धन है, जिसके बारे में जनता को जानने और उसे वापस लाने का हक है भारत गणराज्य आजाद भारत गणराज्य के हर एक करदाता को, चाहे वह प्रत्यक्ष तौर पर या परोक्ष तौर पर कर अदा कर रहा हो। आप जनता के सेवक हैं शासक नहीं आपको जनता की भावनाओं की उनकी पस्थितियों की कद्र करनी होगी, वरना यह वही जनता है जिसने आपको सर माथे पर बिठाया है। देर नहीं लगेगी जब यही जनता आपको सत्ता के गलियारे से उठाकर बाहर फेंक देगी।

वर्चस्व की जंग में शिवराज का पड़ला भारी


बजट तक शायद चलें मनमोहन . . . 53

वर्चस्व की जंग में शिवराज का पड़ला भारी

अंत्योदय मेले में खुद जा रहे शिवराज

भारत निर्माण से दूर हैं मन के गण



(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। केंद्र सरकार भले ही अरबों खरबों रूपए देश की भलाई के लिए खर्च कर रही हो पर जब इसके प्रचार प्रसार की बारी आती है केंद्र सरकार के मंत्री वास्तव में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सामने बौने ही नजर आते हैं। मध्य प्रदेश सरकार द्वारा गांव गांव में अंत्योदय मेले का आयोजन कर केंद्र पोषित योजनाओं को भी परोक्ष तौर पर अपनी उपलब्धि बताने से नहीं चूक रही है, वहीं दूसरी ओर केंद्र के मंत्री केंद्र के महात्वाकांक्षी भारत निर्माण अभियान से अपने आप को दूर ही रखे हुए हैं।

गौरतलब है कि केंद्र सरकार द्वारा जनता के लिए चलाई जा रही अनेक महात्वाकांक्षी योजनाओं की जानकारी के प्रचार प्रसार हेतु भारत निर्माण अभियान का आगाज किया था। इस अभियान पर अब तक खरबों रूपए व्यय किए जा चुके हैं। सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तहत चलाए जा रहे इस अभियान में केंद्र सरकार की योजनाओं की जानकारी जन जन तक पहुंचाने का प्रयास किया जाता है।

मध्य प्रदेश में भारत निर्माण अभियान में होने वाले कार्यक्रमों में तत्कालीन आदिवासी विभाग के मंत्री कांति लाल भूरिया ने महज एकाध बार ही शिरकत की है। इसके अलावा तत्कालीन केंद्रीय मंत्री अरूण यादव, कुंवर अर्जुन सिंह, सुरेश पचौरी आदि ने इसमें दिलचस्पी नहीं दिखाई। आश्चर्यजनक तथ्य तो यह उभरकर सामने आया है कि केंद्रीय मंत्री कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र जिला छिंदवाड़ा और ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव वाले क्षेत्रों में भारत निर्माण अभियान के कार्यक्रमों का इन्होंने अघोषित तौर पर बहिष्कार किया है। इन मंत्रियों को अपने संसदीय क्षेत्र में केंद्र सरकार की योजनाओं की जानकारी वाले भारत निर्माण अभियान में जाने की फुर्सत भी नहीं मिली। इतना ही नहीं कांग्रेस के सांसद और विधायकों को भी इससे कोई ज्यादा सरोकार नजर नहीं आता है।

वहीं दूसरी ओर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा अपने राजनैतिक कौशल का पूरा पूरा दोहन करते हुए केंद्र सरकार की योजनओं के बारे में प्रदेश सरकार के अंत्योदय मेलों में बढ़ चढ़कर जानकारी प्रदाय की जा रही है। चूंकि मुख्यमंत्री खुद इन मेलों में व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित होते हैं अतः ग्रामीणों में यह संदेश आसानी से जा रहा है कि ये सारी योजनाएं मध्य प्रदेश की भाजपा की सरकार द्वारा ही चलाई जा रही हैं।

केंद्र में कांग्रेसनीत संप्रग सरकार है। मध्य प्रदेश में आठ साल से सत्ता का स्वाद भूल चुकी कांग्रेस आज भी सत्ता के किस मद में चूर है कि वह अपनी ही केंद्र सरकार की योजनाओं को जन जन तक पहुंचाने में शर्म महसूस कर रही है। कांग्रेस के वर्तमान निजाम कांतिलाल भूरिया अपने आप को दिल्ली और मालवा तक ही केंद्रित किए हुए हैं। दो सिंहों (मनमोहन सिंह और शिवराज सिंह) की जंग में अब शिवराज सिंह ही मजबूती के साथ अपना पड़ला भारी किए नजर आ रहे हैं।

(क्रमशः जारी)

महाकौशल के सपने को पलीता लगाते बिसेन!


0 महाकौशल प्रांत का सपना . . . 10

महाकौशल के सपने को पलीता लगाते बिसेन!

बालाघाट को छत्तीसगढ़ में शामिल करने कर दी मांग!



(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। अपने अंदर अकूत प्राकृतिक संपदाओं को समेटने वाले महाकौशल प्रांत के सपने को खण्डित करने के कुत्सित प्रयास आरंभ हो गए हैं। बालाघाट कोटे से मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने महाकौशल अंचल के अभिन्न अंग नक्सल प्रभावित बालाघाट जिले को वर्तमान के मध्य प्रदेश से प्रथक कर इसे छत्तीगढ़ में शामिल करने की मांग कर डाली है। इसके लिए वे बाकायदा प्रयास में भी लग गए हैं।

मध्य प्रदेश के सहकारिता मंत्री गौरी शंकर बिसेन ने छत्तीगढ़ की राजधानी रायपुर में आयोजित सहकारिता की राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन समारोह में यह कहकर ठहरे हुए पानी में कंकर मारकर हलचल पैदा कर दी कि मध्य प्रदेश के बालाघाट और छत्तीसगढ़ की संस्कृति एक समान है अतः इसे मध्य प्रदेश से प्रथक कर छत्तीगढ़ का हिस्सा बना देना चाहिए। मामले की गंभीरता को देखते हुए छत्तीगढ़ के निजाम डॉ.रमन सिंह ने भी आग में घी डालते हुए कह दिया कि अगर बालाघाट के लोग राज्य परिवर्तन चाहते हैं तो उनका स्वागत है। केंद्रीय मंत्री चरण दास महंत ने भी बिसेन की मांग का स्वागत कर दिया है।

सियासी गलियारों में इस मामले को विभिन्न दृष्टिकोण से देखा जाने लगा है। लोगोें का मानना है कि एमपी के सहकारिता मंत्री गौरी शंकर बिसेन का यह वक्तव्य वस्तुतः मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ बगावत का बिगुल है। माना जा रहा है कि अपनी कार्यप्रणाली के कारण सदा से ही चर्चा में रहने वाले गौरी शंकर बिसेन को मंत्रीमण्डल विस्तार में लाल बत्ती से महरूम रखने की जुगत लगाई जा रही है।

मुख्यमंत्री के करीबी सूत्रों का कहना है कि सीएम शिवराज सिंह चौहान पर संगठन का दवाब है कि उन्हें जल्द ही पदमुक्त किया जाए। कभी पटवारी को उठक बैठक लगावाकर कभी आदिवासियों को जातिसूचक शब्द कहकर तो कभी पंडितों का अपमान करने वाले बिसेन मंत्री बनने के बाद से ही चर्चाओं में हैं। बिसेन के इस नए तीर से शिवराज विरोधी अब सक्रिय हो गए हैं। जानकारों का मानना है कि शिवराज की कैबनेट के एक कबीना मंत्री द्वारा इस तरह का वक्तव्य दिए जाने का सीधा अर्थ यही लगाया जाएगा कि शिव के गण ही उनके बजाए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह की रीति नीति से ज्यादा इत्तेफाक रख रहे हैं।

माना जा रहा है कि अगर प्रथक महाकौशल प्रांत का गठन होता है तो उसमें भाजपा के पहली पंक्ति के नेताओं में पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते ही प्रमुख होंगे। सदा से प्रहलाद पटेल का विरोध करने वाले बिसेन द्वारा इस नए राग के पीछे यह भी माना जा रहा है कि किसी भी स्थिति में महाकौशल प्रांत का गठन न हो सके और अगर हो भी तो बिसेन के प्रभाव वाले बालाघाट जिले को महाकौशल में शामिल न किया सके, ताकि वे भी स्वच्छंद होकर अपनी राजनैतिक बिसात बिछा सकें।

(क्रमशः जारी)

प्रदूषण के मानकों को ताक पर रख दिया झाबुआ पावर ने


0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . . 31

प्रदूषण के मानकों को ताक पर रख दिया झाबुआ पावर ने

निर्माण कार्य और कार्यकारी अवस्था में प्रदूषण के मामले में मौन है झबुआ पावर

प्रदूषण नियंत्रण मण्डल का मौन संदिग्ध



(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। सफल और मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान झाबुआ पावर लिमिटेड के द्वारा मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के छटवीं अनूसूची में अधिसूचित आदिवासी तहसील घंसौर में डाले जा रहे 1260 मेगावाट (कागजों में 1200 मेगावाट) के पावर प्लांट में पर्यावरण के नियम कायदों मानकों की सरेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। इसके बावजूद मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल का मौन आश्चर्यजनक ही माना जा रहा है।



गौरतलब है कि 22 अगस्त 2009 को इस संयंत्र के प्रथम चरण के लिए 600 मेगावाट के पावर प्लांट की लोकसुनवाई में मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा जो कार्यकारी सारांश जमा किया गया था उसमें संयंत्र की लागत 2900 करोड़ रूपए एवं जमीन की आवश्यक्ता 600 हेक्टेयर दर्शाई गई थी। इस समय कार्यकारी सारांश की कंडिका क्रमांक आठ में कंपनी ने साफ किया था कि वह निर्माण कार्य के समय 181 करोड़ पचास लाख रूए और कार्यकारी अवस्था में 9 करोड़ पांच लाख रूपए की राशि का प्रावधान पर्यावरणीय प्रदूषण की रोकथाम के लिए कर रही है।

इसके उपरांत इसके दूसरे चरण की लोकसुनवाई 22 नवंबर 2011 को संपन्न हुई। इस लोकसुनवाई के दूसरे दिन मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल की आधिकारिक वेब साईट पर कंपनी का वही (22 अगस्त 2009 वाला) कार्यकारी सारांश डाल दिया गया। इसमें दूसरे चरण के लिए भी कंपनी को 600 हेक्टेयर जमीन की आवश्यक्ता दर्शाई गई है। इसमें भी कार्यकारी सारांश की कंडिका क्रमांक आठ में कंपनी ने साफ किया था कि वह निर्माण कार्य के समय 181 करोड़ पचास लाख रूए और कार्यकारी अवस्था में 9 करोड़ पांच लाख रूपए की राशि का प्रावधान पर्यावरणीय प्रदूषण की रोकथाम के लिए कर रही है।

22 नवंबर 2011 को घंसौर के गोरखपुर में हुई लोकसुनवाई में प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के क्षेत्रीय अधिकारी जबलपुर के समक्ष मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के महाप्रबंधक ए.एन.मिश्रा ने स्पष्ट शब्दों में स्वीकार किया था कि कंपनी अपने निर्माण के आरंभ से 22 नवंबर 2011 तक क्षेत्र में वृक्षारोपण करने में असफल रही। पीसीबी के अधिकारियों के समक्ष मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के प्रबंधन की स्वीकारोक्ति के बाद भी मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल द्वारा मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के उपर शस्ति आरोपित न करना पीसीबी और कंपनी की मिली भगत की ओर साफ इशारा कर रही है।

(क्रमशः जारी)

सरकार से केवल वेतन लेने के लिए है सरकारी अमला!


सरकार से केवल वेतन लेने के लिए है सरकारी अमला!

भ्रष्टाचार का शिकार हो रहा है पेंच नेशनल पार्क



(शिवेश नामदेव)

सिवनी। पेंच नेशनल पार्क सिवनी जिले के विकास की फोरलेन सड़क के निर्माण में अनावश्यक बाधा तो पहुँचा ही रहा है साथ ही पार्क प्रशासन के घनघोर भ्रष्टाचार, शर्मनाक लापरवाही और बेलगाम अफसरशाही ने पार्क के वन्यप्राणियों के जीवन को भी खतरे में डाल दिया है। चार सौ से ज्यादा कर्मचारी और अधिकारियों की फौज होने के बावजूद भी पार्क प्रशासन के संरक्षण में पार्क के अंदर वन्यप्राणियों का अवैध शिकार और कटाई धड़ल्ले से जारी है। पेंच पार्क के अंदर मछलियों के अवैध शिकार के समाचार के संबंध में जनमंच के सदस्य संजय तिवारी ने अपनी विज्ञप्ति के माध्यम से उक्त प्रतिक्रिया व्यक्त किया है।

संजय तिवारी ने जानकारी देते हुए बताया कि 200 से ज्यादा सुरक्षा श्रमिक, 8 रेंजर, 12 डिप्टी रेंजर, 60 वनपाल, 3 सहायक वन संरक्षक, 2 आई.एफ.एस. स्तर के अधिकारी, मिलिट्री के सेवा निवृत्त जवान, एक कमान्डेंट को मिलाकर 400 से ज्यादा कर्मचारी-अधिकारी मिलकर 292 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में फैले पेंच नेशनल पार्क को महफूज नहीं रख पा रहे हैं। इसका सीधा मतलब है पार्क के प्रति एक वर्ग कि.मी. पर एक से ज्यादा वन कर्मचारी पार्क की सुरक्षा के लिये सरकारी खजाने से प्रतिमाह वेतन तो पा रहे है परंतु अपनी जिम्मेदारी को सही ढंग से नहीं निभा पा रहे हैं। गंभीर बात तो यह है कि सिवनी और छिंदवाड़ा जिले में फैले पेंच नेशनल पार्क की सुरक्षा के लिये 99 ईको विकास समिति और उनके सैंकड़ों सदस्य मौजूद हैं।

पेंच नेशनल पार्क के कुल 292 वर्ग कि.मी. का क्षेत्र जिसे कोर क्षेत्र भी कहते हैं, में 54 वर्ग कि.मी. क्षेत्र पेंच नदी पर बने तोतलाडोह बांध के डूब क्षेत्र में आता है जहां 24 घंटे मछलियों का अवैध रूप से शिकार होकर प्रतिदिन हजारों क्ंिवटल मछली नागपुर, सिवनी और अन्य जिलों में भेजी जा रही हैं। पेंच नेशनल पार्क प्रशासन के पास अवैध रूप से मछली पकड़ने वालों को धर दबोचने के लिये इंजिन, फाईबर और चप्पू वाली बोट है परंतु शायद ही ये बोट पानी में कभी तैर पाई होंगी। जबकि इंजिन वाली बोटों के लिये शासन से नियमित रूप से डीजल और पेट्रोल प्राप्त किया जाता है। बोटों के अलावा घने जंगलों में वन्यप्राणियों के शिकारियों को पकड़ने के लिये हाथियों की भी व्यवस्था है। परंतु पिछले पांच वर्षों में पार्क प्रशासन ने कितने शिकारियों को पकड़कर कार्यवाही किया है किसी को जानकारी नहीं है। वन अधिनियम 1972 के अनुसार आरक्षित वन क्षेत्रो के तालाब, नदियों और बांधों की मछलियां भी वन्यप्राणी हैं जिनका शिकार करना गैर जमानती अपराध है एवं 7 वर्ष तक की सजा का प्रावधान है। आरक्षित और संरक्षित वन क्षेत्रों में मछलियों के अवैध शिकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट की स्पष्ट रूलिंग है।

अब जरा इस तथ्य पर गौर करिये। पेंच नेशनल पार्क प्रशासन के पास पार्क के मात्र 249 वर्ग कि.मी. की सुरक्षा और चौकसी के लिये छोटे-बड़े 22 से ज्यादा वाहन हैं। वहीं दूसरी ओर सिवनी मुख्य वन संरक्षक के अंतर्गत जांच वृन्द वन वृत्त (फ्लाईंग स्कॉट) के पास दो जिलों के सैंकड़ों वर्ग कि.मी. में फैले वनों की सुरक्षा, चौकसी और गश्ती के लिये मात्र एक वाहन है। अब यह समझना मुश्किल है कि दोनों में से कौन अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से निभा रहा है। पेंच नेशनल पार्क के सिवनी के हिस्से वाले तेलिया, कोहका, कोदाझिर, खामरीठ इत्यादि एवं छिंदवाड़ा के हिस्से वाले मरजादपुर, पुलपुल डोह, दूधगांव, गुमतरा, जमतरा, कडैया जैसे पार्क सीमा के अंदर बसे ग्रामों के ग्रामीणों को संयुक्त विकास प्रबंधन के अंतर्गत इको समिति बनाकर पार्क और वन्यप्राणियों की सुरक्षा के साथ जोड़ा गया है। पार्क के वनों पर इनकी निर्भरता कम से कम करने के लिये उक्त ग्रामों पर 14 करोड़ रूपये से भी ज्यादा खर्च किये जा चुके हैं परंतु नतीजा सिफर रहा। सूत्र बताते हैं कि वन्यप्राणियों और मछलियों के शिकारी उक्त गांवों के आस पास ठिकाना बनाये हुये हैं और मौका पाते ही पार्क के अंदर घुसकर बाघ जैसे दुर्लभ और शानदार वन्यप्राणी का शिकार कर लेते हैं।

पेंच पार्क के डायरेक्टर और डिप्टी डायरेक्टर के पास पार्क के अंदर बाघों या मछलियों के शिकार के मामले में एक ही रटा रटाया जवाब होता है कि अवैध शिकार पेंच नेशनल पार्क के महाराष्ट्र क्षेत्र में होता है जबकि सच्चाई यह है कि शिकारी पार्क के म.प्र. वाले हिस्से में अंदर तक घुसकर बाघ समेत कई दुर्लभ वन्यप्राणियों का शिकार कर रहे हैं। सवाल यह भी उठता है कि जब पेंच पार्क प्रशासन राष्ट्रीय पार्क के अंदर के बाघों को ही नहीं बचा पा रहा तो पेंच-कान्हा नेशनल पार्क के बीच कथित असुरक्षित, खतरनाक, नक्सल प्रभावित वन गलियारे में आवागमन करने वाले बाघों को कैसे बचा पायेगा। पेंच नेशनल पार्क के डूब क्षेत्र में मछलियों को पकड़ने के बहाने वन्यप्राणियों के शिकारी भी पार्क में प्रवेश कर रहे हैं। यह जानकारी पेंच पार्क के डायरेक्टर और डिप्टी डायरेक्टर दोनों को है यदि नहीं है तो उन्हें पुलपुलडोह वृत्त के कोरमट्टा रेस्ट हाऊस के पास बने वॉच टावर के ऊपर खड़े होकर देखना चाहिये, बांध के डूब क्षेत्र में उन्हें मछली पकड़ने वाली कम से कम सौ नाव दिखायी देंगी।