बुधवार, 23 नवंबर 2011

पर्यावरण के नियमों को बलात ताक पर रख दिए हैं झाबुआ पावर ने


0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . . 23

पर्यावरण के नियमों को बलात ताक पर रख दिए हैं झाबुआ पावर ने

वायदे के बाद अब तक एक भी पौधा नहीं लगाया कंपनी ने

पिछली लोकसुनवाई की आपत्तियों का नहीं हो पाया निराकरण

अधिसूचित क्षेत्र के नियमों का उड़ रहा माखौल

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाली अवंथा ग्रुप की सहयोगी कंपनी झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा छटवीं अनुसूची में अधिसूचित आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र घंसौर में डाले जा रहे 1260 मेगावाट के दो पावर प्लांट में पर्यावरण के नियमों को बलाए ताक रख दिया गया है। आश्चर्य इस बात पर है कि इसमें शासन प्रशासन सहित मध्य प्रदेश और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मण्डल भी गौतम थापर के कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं। देश के हृदय प्रदेश में एक तरफ उत्तर दक्षिण फोरलेन गलियारे में वन्य जीवों का आवागमन पेंच बना हुआ है तो दूसरी और दुर्लभ प्रजाति के काले हिरणों का घंसौर में डलने वाले इस संयंत्र के आसपास के क्षेत्र से पलायन भी मंत्री संत्रियों की जबरिया नींद में खलल नहीं डाल पा रहा है।

ज्ञातव्य है कि अवंथा समूह के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी गौतम थापर हैं। अवंथा समूह पेपर निर्माण, फुड प्रोसेसिंग, इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग, बिल्डिंग मैटेरियल जैसे क्षेत्र में काम करने वाला समूह है जिसकी परिसंपत्तियां खरबों रूपए से ज्यादा बताई जाती हैं। देश के मशहूर दून स्कूल में पले गौतम थापर की गिनती देश के सफलतम उद्योगपतियों में की जाती है।

घंसौर को देश की छटवीं अनूसूची में अधिसूचित क्षेत्र घोषित किया गया है। बावजूद इसके मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ने इस क्षेत्र को झुलसाने के लिए पर्याप्त व्यवस्था और सुरक्षा के उपाय किए बिना ही कोल आधारित तीन तीन पावर प्लांट को अनुमति दे दी है। इनमें से एक पावर प्लांट के तार तो टूजी घोटाले के मुख्य आरोपी आदिमत्थू राजा से सीधे सीधे जुड़े बताए जा रहे हैं। संभवतः यही कारण है कि राजा के जेल में रहने के कारण इस पावर प्लांट का काम अभी थाम दिया गया है।

मंगलवार को ग्राम गोरखपुर में हुई जनसुनवाई अनेक जीवंत प्रश्न छोड़ गई है। लोक सुनवाई में ग्रामीणों द्वारा इस बात पर पुरजोर आपत्ति की गई की इस जनसुनवाई की मुनादी नहीं पिटी। उन्हें इस बारे में स्थानीय समाचार पत्रों में जब खामियों की खबरें प्रकाशित हुई तब जानकारी मिल पाई। ग्रामीणों ने इस बारे में भी आपत्ति दर्ज की कि 2009 में 22 अगस्त को हुई कार्यवाही का विवरण भी देखने को नहीं मिला। मीडिया ने भी इस बात पर आपत्ति दर्ज की कि मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल की वेब साईट पर भी कार्यवाही के विवरण की बेहद ही धुंधली फोटोकापी स्केन कर डाली गई है।

प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के आला अफसरान के सामने ही कंपनी प्रबंधन ने इस बात को स्वीकारा कि वर्ष 2009 से अब तक उनके द्वारा वृक्षारोपण नहीं किया गया है। इतना ही नहीं कंपनी प्रबंधन ने इस बात को भी स्वीकारा कि अगर तब पौधे लगा दिए गए होते तो निश्चित तौर पर उनमें से साठ से सत्तर फीसदी पौधे आज जिंदा होते और उनकी उंचाई तीन चार फिट से ज्यादा हो गई होती। कंपनी ने हरित पट्टी बनाने कटिबद्धता तो दर्शाई पर इच्छुक कतई दिखाई नहीं दी। हरित पट्टी कब बनेगी इस बारे में कंपनी का मौन आश्चर्यजनक ही माना जा रहा है।

कंपनी ने आरंभ में अपने कार्यकारी सारांश में वायदा किया था कि पानी के स्त्रोत के लिए वह रानी अवंती बाई सागर परियोजना जबलपुर के बरगी बांध डूब क्षेत्र के गड़ाघाट और पायली गांव जो संयंत्र से दस किलोमीटर दूर दर्शाया गया है पर ही निर्भर करेगी। जब ग्रामीणों ने स्थानीय स्तर पर ही पानी के दोहन की बात कही तो कंपनी प्रबंधन चुप्पी साध गया। पर्यावरण के प्रभावों के बारे में कंपनी ने कोई चर्चा ही नहीं की।

गौतम थापर के स्वामित्व वाली कंपनी के सहयोगी प्रतिष्ठान द्वारा आदिवासी बाहुल्य घंसौर में लगाए जाने वाले इस संयंत्र में स्थानीय लोगों को रोजगार न दिया जाना आश्चर्यजनक ही है, जबकि जमीन अधिग्रहण के वक्त कंपनी ने लोक लुभावने वायदे किए थे। ग्रामीणों का आरोप है कि अब प्रबंधन के संयंत्र स्थित कारिंदे यह कहकर ग्रामीणों को भगा देते हैं कि वह वायदा उस वक्त के संयंत्र प्रमुख श्री चितले ने किया था जो अब नहीं हैं। वर्तमान साईट प्रमुख श्री मिश्रा को इससे कोई लेना देना ही नहीं है।

ग्रामीणों ने जब गौतम थापर के स्वामित्व वाली कंपनी के सहयोगी प्रतिष्ठान द्वारा आदिवासी बाहुल्य घंसौर में लगाए जाने वाले पावर प्लांट के जिला मुख्यालय सिवनी के बजाए संभागीय मुख्यालय जबलपुर में कार्यालय होने की बात कही गई तो कंपनी प्रबंधन मौन ही रहा।

पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव में विशेष रूप से दुर्लभ प्रजाति के काले हिरण चिंकारा के पलायन की बात की गई। जिलावासियों के बीच चल रही चर्चा के अनुसार एक तरफ तो वन्य जीवों की आड़ लेकर केंद्र सरकार द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के प्रधानमंत्रित्वकाल की महात्वाकांक्षी स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना के अंग उत्तर दक्षिण गलियारे में फच्चर फसा दिया गया है, वहीं दूसरी ओर दुर्लभ प्रजाति के काले हिरणों के इस संयंत्र के कारण होने वाले पलायन पर केंद्र और राज्य सरकार सहित इतना सब कुछ होने पर भी भाजपा के सांसद के.डी.देशमुख विधायक श्रीमति नीता पटेरिया, कमल मस्कोले, एवं क्षेत्रीय विधायक जो स्वयं भी आदिवासी समुदाय से हैं श्रीमति शशि ठाकुर, कांग्रेस के क्षेत्रीय सांसद बसोरी सिंह मसराम एवं सिवनी जिले के हितचिंतक माने जाने वाले केवलारी विधायक एवं विधानसभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ठाकुर का मौन आखिर किसी न किसी दिशा में तो इशारा कर ही रहा है।

(क्रमशः जारी)

प्रणव पजा रहे मन से तलवार


बजट तक शायद चलें मनमोहन . . . 33

प्रणव पजा रहे मन से तलवार

मनमोहन की आर्थिक नीतियां बनीं विवाद का विषय

आर्थिक नीतियों पर पुर्नविचार का दबाव

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के बीच रार बढ़ती ही जा रही है। मनमोहन सिंह की बाजारोन्नमुखी नीतियों पर कांग्रेस के अंदर एक बहस आरंभ हो गई है। नासाज तबियत वाली सोनिया गांधी पर अब मौजूदा आर्थिक नीतियों पर पुर्नविचार का दबाव बढ़ता ही जा रहा है। कांग्रेस के मीडिया प्रभारियों के सुर भी अब वजीरे आजम के खिलाफ परोक्ष तोर पर मुखर होते दिख रहे हैं।

कल तक मनमोहन सिंह की उदार बाजारोन्नमुखी अर्थव्यवस्था के खुले समर्थक और अनियमित तौर पर पेट्रोल के बढ़े दामों का समर्थन करने वाले वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के सुर भी अब बदलते दिख रहे हैं। पिछले दिनों उन्होंने मशहूर नोबेल पुरूस्कार प्राप्त आर्थिक विश्लेषक जोसस इयूजिन स्टिगलिट्स को भारत आने का न्योता देकर सभी को चौंका दिया है।

स्टिगलिट्स को एक संस्था के दीक्षांत समारोह में भारत न्योता गया है। स्टिगलिट्स मशहूर अर्थशास्त्री हैं। इन्होंने ही अमेरिका और यूरोप में आई आर्थिक मंदी की भविष्य वाणी की थी। उनका मिजाज सख्त बाजार समीक्षक का भी है। जानकारी इस न्योते को वजीरे आजम की मौजूदा बाजार नीति के खिलाफ प्रणव की पहल के तौर पर देख रहे हैं।

गौरतलब है कि कांग्रेस के मीडिया सेल के प्रभारी जनार्दन द्विवेदी पूर्व में प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह के खिलाफ अघोषित जंग का एलान कर चुके हैं। जनार्दन द्विवेदी ने मीडिया के सामने ऑन रिकार्ड यह कह डाला था कि कोई भी एसी नीति जो जनता के हितों का संरक्षण न कती हो, साथ ही मनमाफिक नतीजे न दे उस नीति को बदलना ही बेहतर है। दरअसल पेट्रोल की बार बार बढ़ती कीमतों पर मीडिया की घेरा बंदी से द्विवेदी बुरी तरह परेशान लग रहे थे।

(क्रमशः जारी)

दूरसंचार नीति में उलझ गया आईडिया


एक आईडिया जो बदल दे आपकी दुनिया . . .  28

दूरसंचार नीति में उलझ गया आईडिया

एयरटेल ओर वोडाफोन पर भी ट्राई की तिरछी नजर

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। थ्री जी इंट्रा सर्किल रोमिंग के मामले में आदित्य बिरला के स्वामित्व वाली आईडिया सेल्युलर और भारती एयरटेल एवं वोडाफोन ने अब सरकार को धमकाना आरंभ कर दिया है। तीनों कंपनियों ने कहा है कि थ्री जी रोमिंग विवाद नहीं सुलटा तो वे उन्हें आवंटित स्पेक्ट्रम को वापस कर देंगी। तीनों कंपनियों ने कहा है कि उन्हें उनके द्वारा जमा की गई राशि ब्याज के साथ वापस दिलाई जाए।

तीन प्रमुख टेलीकॉम कंपनियों भारती एयरटेल, आइडिया और वोडाफोन ने थ्रीजी रोमिंग समझौता विवाद का निपटारा करने में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से दखल की मांग की है। उन्होंने चेताया है कि यदि इस मुद्दे को नहीं सुलझाया जाता है तो वे आवंटित स्पेक्ट्रम को वापस कर देंगी। तीनों कंपनियों ने एक पत्र में कहा है कि थ्री जी इंट्रा सर्किल रोमिंग (आईसीआर) की अनुमति अब मुश्किल दिखती है।

पत्र में कहा गया है कि ऐसे में यह उनके कांट्रैक्ट और नीलामी से पहले सरकार की ओर से दी गई सहमति का उल्लंघन होगा। इस पत्र पर भारती एयरटेल के सुनील मित्तल, आइडिया के कुमार मंगलम बिड़ला और वोडावान ग्रुप के सीईओ विटोरियो कोलाव के दस्तखत हैं। तीनों ने आगे कहा है कि यदि ऐसा नहीं हो पाता तो हमारा आग्रह है कि स्पेक्ट्रम के लिए हमारी से ओर से किया गया भुगतान ब्याज समेत वापस कर दिया जाए।

दूरसंचार मंत्रालय और नियामक ट्राई ने तीनों कंपनियों के रोमिंग समझौते को अवैध करार दिया है। इनका कहना है कि यह स्पेक्ट्रम साझा करने जैसा है, जबकि दूरसंचार नीति इसकी अनुमति नहीं देती। पिछले साल हुई थ्रीजी स्पेक्ट्रम की नीलामी से सरकार को 68 हजार करोड़ रुपये हासिल हुए थे। इनमें दूरसंचार कंपनियों को निश्चित सर्किल मिले थे, लेकिन बाद में उन्होंने आपस में एक दूसरे से उन सर्किलों के लिए भी रोमिंग समझौता कर लिया, जहां के लिए नीलामी में स्पेक्ट्रम हासिल नहीं हुआ था।

(क्रमशः जारी)

भ्रष्टाचार: केंद्र के मामले में मौन पर माया पर मेहरबान हैं युवराज


भ्रष्टाचार: केंद्र के मामले में मौन पर माया पर मेहरबान हैं युवराज

आखों के सामने लूट ले इंडिया पर राहुल का मौन संदिग्ध

उत्तर प्रदेश में दिख रहा भारी भ्रष्टाचार

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी इन दिनों उत्तर प्रदेश में सियासी बिछात बिछा रहे हैं। उत्तर प्रदेश की निजाम मायावती पर हर पल निशाना साधते हुए वे भ्रष्टाचार के मुद्दे पर मायावती को घेरने का असफल प्रयास कर रहे हैं। केंद्र पोषित योजनाओं में भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर राहुल गांधी सुर्खियां बटोर रहे हैं। कांग्रेस के ही अंदरखाने में राहुल के दो चेहरों पर वाद विवाद चल पड़ा है।

हाल ही में कांग्रेस महासचिव और सांसद राहुल गांधी ने कहा कि उत्तर प्रदेश में गरीबों का पैसा मंत्री, अफसर और ठेकेदार खाये जा रहे हैं। केंद्र यूपी की जरूरतों के मुताबिक पूरा पैसा भेजता है, लेकिन वह नीचे तक नहीं पहुंचता। मनरेगा हो या स्वास्थ्य योजनाएं अथवा कर्ज माफी का पैसा हो, सब इन्होंने हजम कर लिया। राहुल गांधी ने जनता का आह्वान किया कि हालात बदलने के लिए प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाइए, दस साल में यूपी को नंबर वन बना देंगे।

कांग्रेस के अंदर चल रही चर्चाओं के अनुसार सिर्फ वोट पाने के लिए राहुल का इस तरह का चेहरा ज्यादा दिन चलने वाला नहीं। अगर किसी ने राहुल से कलमाड़ी, आदिमत्थू राजा, एस बेण्ड, आदर्श सोसायटी आदि घोटालों के बारे में पूछ लिया तो राहुल बगलें झांकते नजर आएंगे। चर्चाओं के अनुसार राहुल अभी राजनैतिक तौर पर परिपक्व नहीं हुए हैं यही कारण है कि वे बिना दूरगामी प्रभावों के कुछ भी कदम उठाए जा रहे हैं।