शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

दवाओं की बेलगाम कीमतों पर कोर्ट की वाजिब चिंता


दवाओं की बेलगाम कीमतों पर कोर्ट की वाजिब चिंता

(लिमटी खरे)

देश में इस वक्त अगर किसी की कीमतों में आग लगी है तो वह है पेट्रोल और दवाएं। नियंत्रण मुक्त होने के कारण दोनों ही की कीमतें आसमान छू रही हैं। देश की सबसे बड़ी अदालत ने देश की सबसे बड़ी पंचायत को इनकी कीमतें और न बढ़ने देने का मशविरा दिया है। देश में इस समय सबसे ज्यादा परेशानी से जूझ रहे हैं मरीज। मरीजों की जेब में डाका डाल रहीं हैं दवा कंपनियां। इनके औजार बने हुए हैं भगवान धन्वंतरी के वंशज यानी चिकित्सक। चिकित्सा जैसी व्यवसायिक पढ़ाई के दाखिले के दरम्यान चिकित्सकों को पीडित मानसिकता की सेवा का संकल्प दिलाया जाता है। जब तक ये पढ़ाई पूरी करते हैं तब तक तो इन्हें यह कौल याद रहता है किन्तु जैसे ही इनकी जेब में मरीजों को देखकर फीस आने लगती है इनका ईमान डोल जाता है। दवा कंपनियां भी मौज कर रही हैं। चिकित्सकों को भारी भरकम पैकेज देकर उनसे मनमानी दवा लिखवाकर मुनाफा कमाने से नहीं चूक रही हैं दवा कंपनिया। अनेक दवा कंपनियां तो चिकित्सकों के घर का पूरा खर्च तक उठा रही हैं। चिकित्सक भी जेनरिक दवाओं के बजाए ब्रांडेड दवाएं लिख रहे हैं। एक दवा बाजार में अगर आठ पैसे की है तो वही दवा नामी कंपनी की होकर अस्सी रूपए की हो जाती है। हाल ही में राजस्थान उच्च न्यायालय का एक फैसला इस मामले में नजीर साबित हो सकता है जिसमें चिकित्सकों को जेनरिक दवाएं ही लिखने को ताकीद किया गया है।

देश के सर्वोच्च न्यायालय ने दवाओं की आसमान छूती कीमतों पर चिंता जताते हुए गुरूवार को कहा कि दवाओं की कीमतें अब और अधिक नहीं बढ़ना चाहिए। न्यायमूर्ति जी.एस.सिंघवी और न्यायमूर्ति एस.के.मुखोपाध्याय की खण्डपीठ ने सरकार की प्रस्तावित औषधि मूल्य निर्धारण नीति को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई के दौरान सरकार को मशविरा दिया कि देश में वैसे भी दवाओं की कीमतें आम आदमी की पहुंच से बाहर हैं इन्हें और बढ़ाने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। ढेर सारे गैर सरकारी संगठनों के समूह ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क ने सरकार की दवा मूल्य निर्धारण नीति को चुनौती दी थी।

दरसअल, पीडित मानवता की सेवा का संकल्प लेने वाले हिन्दुस्तान के चिकित्सकों की मानवता कभी की मर चुकी है। आज के युग में चिकित्सा का पेशा नोट कमाने का साधन बन चुका है। आज के समय को देखकर कहा जा सकता है कि मरीज की कालर एक डाक्टर द्वारा बिस्तर पर ही पकडी जाती है। दवा कंपनियों की मिलीभगत के चलते मरीजों की जेब पर सीधे सीधे डाका डाला जा रहा है।

चिकित्सकों और दवा कंपनियों ने मिलकर तंदरूस्ती हजार नियामत की पुरानी कहावत पर पानी फेरते हुए अपना नया फंडा इजाद किया है कि स्वास्थ्य के नाम पर जितना लूट सको लूट लो। इसी तारतम्य में स्वयंभू योग गुरू बाबा रामदेव ने बिना मेडीकल रिपर्जेंटेटिव ही स्वास्थ्य की उपजाउ भूमि पर न केवल अपना साम्राज्य स्थापित किया है, वरन् अब तो वे देश पर राज करने का सपना भी देखने लगे हैं। संस्कृत की एक पुरानी कहावत है, ‘‘न दिवा स्वप्नं कुर्यात‘‘ अर्थात दिन में सपने नहीं देखना चाहिए, किन्तु बाबा रामदेव को लगता है कि योग के बल पर उन्होंने जो आकूत दौलत और शोहरत एकत्र की है, उसे वे भुना सकते हैं।

बहरहाल मेडीकल काउंसलि ऑफ इंडिया द्वारा इसी माह एक कोड लाने की तैयारी की जा रही है, जिसके तहत दवा कंपनियों से तोहफा लेने वाले चिकित्सकों का लाईसेंस रद्द किए जाने का प्रावधान है। एमसीआई द्वारा स्वास्थ्य के देवता भगवान धनवंतरी के वर्तमान वंशजों अर्थात चिकित्सकों पर लगाम कसने की कवायद की जा रही है। एमसीआई अपने इस कोड के निर्णय को अमली जामा कैसे पहनाती है, यह तो वक्त ही बताएगा किन्तु इस सबमें दवा कंपनियों की मश्कें कसने की बात कहीं भी सामने नहीं आई है। अर्थात कहीं न कहीं चोरी करने के लिए थोडी सी जमीन जरूर छोड दी गई है।

एमसीआई कोड के अनुसार चिकित्सक और उसके परिजन अब दवा कंपनियों के खर्चे पर सेमीनार, वर्कशाप, कांफ्रेंस आदि में नहीं जा सकेंगे। कल तक अगर चिकित्सक एसा करते थे, तब भी वे उजागर तौर पर तो किसी को यह बात नहीं ही बताते थे। इसके अलावा दवा कंपनियों के द्वारा चिकित्सकों को छुट्टियां बिताने देश विदेश की सैर कराना प्रतिबंधित हो जाएगा। चिकित्सक किसी भी फार्मा कंपनी के सलाहकार नहीं बन पाएंगे तथा मान्य संस्थाओं की मंजूरी के उपरांत ही शोध अथवा अध्ययन के लिए अनुदान या पैसे ले सकेंगे।
एमसीआई कोड भले ही ले आए पर चिकित्सकों के मुंह में दवा कंपनियों ने जो खून लगाया है, उसके चलते चिकित्सक इस सबके लिए रास्ते अवश्य ही खोज लेंगे। देखा जाए तो दुनिया का चौधरी अमेरिका इस मामले में बहुत ही ज्यादा सख्त है। अमेरिका में अनेक एसे उदहारण हैं, जिनको देखकर वहां के चिकित्सक और दवा कंपनी वालों की हिम्मत मरीजों की जेब तक हाथ पहुंचाने की नहीं हो पाती है। अमेरिका की एली लिली कंपनी ने तीन हजार चार सौ चिकित्सकों और पेशेवरों के लिए 2.20 करोड डालर (एक अरब रूपए से अधिक) दिए, बाद में गडबडियों के लिए उस कंपनी को 1.40 अरब डालर (64.40 अरब रूपए से अधिक) की पेनाल्टी भरनी पडी।

इसी तरह फायजर कंपनी ने चिकित्सकों और पेशेवरों के माध्यम से गफलत करने पर 2.30 अरब डॉलर (एक सौ पांच अरब रूपए से अधिक) का दण्ड भुगता। ग्लेक्सोस्मिथक्लाइन ने 30909 डालर (14 लाख रूपए से अधिक) के औसत से 3700 डॉक्टर्स को 1.46 करोड डालर (6.71 अरब रूपए से अधिक) दिए तो मर्क ने 1078 पेशेवरों को 37 लाख डालर (सत्रह करोड रूपए से अधिक) का भुगतान किया।

अमेरिका में फिजिशियन पेमेंट सानशाइन एक्ट लाया जा रहा है, जिसके तहत दवा कंपनियों को हर साल 100 डालर से अधिक के भुगतान की जानकारी देनी होगी। जानकारी देने में नाकाम या आनाकानी करने वाली कंपनी को हर भुगतान पर कम से कम 1000 डालर और जानबूझकर जानकारी छिपाने के आरोप में कम से कम दस हजार डालर का भोगमान भुगतना पडेगा।

दरअसल पेंच चिकित्सकों द्वारा लिखी जाने वाली दवाओं में है। निहित स्वार्थ और लाभ के लिए चिकित्सकों द्वारा कंपनी विशेष की दवाओं को प्रोत्साहन दिया जाता है। दवा कंपनी द्वारा अनेक लीडिंग प्रेक्टीशनर्स को पिन टू प्लेन सारी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। चिकित्सकों के बच्चों की पढाई लिखाई से लेकर घर तक खरीदकर देती हैं, दवा कंपनियां। इसी बात से अंदाज लगाया जा सकता है कि दवा कंपनियों द्वारा चिकित्सकों के साथ मिलकर किस कदर मोनोपली मचाई जाती है, और मरीजों की जेब किस तरह हल्की की जाती है।

चिकित्सकों द्वारा सस्ती दवाएं नहीं लिखी जातीं हैं, क्योंकि जितनी मंहगी दवा उतना अधिक कमीशन उसे मिलता है। वहीं दूसरी ओर देखा जाए तो चिकित्सकों पर होने वाले खर्चे के कारण ही दवाओं की कीमतें आसमान छू रहीं हैं। बीते साल में ही दवाओं की कीमतों में 20 से 30 फीसदी तक इजाफा हुआ है। हृदय रोग के काम आने वाली दवाएं तो 70 फीसदी तक उछाल मार चुकीं हैं। कहा जाता है कि लगभग पचास फीसदी दवाएं तो अनुपयुक्त ही हैं। मर्क कंपनी की अथर्राइटिस की दवा वायोक्स के साईड इफेक्ट के मामले में कंपनी ने मौन साध लिया था। इसके सेवन से हार्ट अटैक की संभावनाएं बहुत ज्यादा हो जाती थीं। अनेक मौतों के बाद इस दवा को वापस लिया गया था।

महानगरों सहित लगभग समूचे हिन्दुस्तान के बडे शहरों में चिकित्सा की दुकानें फल फूल रही है, आम जनता कराह रही है, सरकारी अस्पताल उजडे पडे हैं, पर सरकारें सो रहीं हैं। नर्सिंग होम में चिकित्सकों के परमानेंट पेथालाजी लेब, एक्सरे आदि में ही टेस्ट करवाने पर चिकित्सक उसे मान्य करते हैं, अन्यथा सब बेकार ही होता है। कितने आश्चर्य की बात है कि सरकारी अस्पतालों में होने वाले टेस्ट को इन्हीं चिकित्सकों द्वारा सिरे से खारिज कर दिया जाता है। अगर वाकई सरकारी अस्पताल के टेस्ट मानक आधार पर सही नहीं होते हैं तो बेहतर होगा कि सरकारी अस्पतालों से इन विभागों को बंद ही कर देना चाहिए। यहां तक कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज के संसदीय क्षेत्र और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कर्मभूमि विदिशा में जिला चिकित्सालय में पदस्थ सिविल सर्जन श्रीमति जैन के पास इतना समय है कि वे अस्पताल के ठीक गेट के सामने अपनी निजी चिकित्सा की दुकान चलाती हैं, और जनसेवक चुपचाप देख सुन रहे हैं।

चिकित्सकों पर अंकुश लगाने के लिए एमसीआई द्वारा नियमावली बनाई जा रही है, कहा जा रहा है कि मार्च माह में उसे लागू भी कर दिया जाएगा। इसके लिए विशेषज्ञों से सुझाव भी आमंत्रित करवाए जा रहे हैं। इस पाबंदी से डायरी, पेन, पेपवेट, कलेंडर जैसी चीजों को मुक्त रखा गया है। वैसे दवा कंपनियों से डी कंट्रोल श्रेणी की दवाओं के मूल्य निर्धारण का अधिकार छीनकर कुछ हद तक भ्रष्टाचार को रोका जा सकता है।

जब तक सरकार द्वारा चिकित्सकों के साथ ही साथ दवा कंपनियों पर अंकुश नहीं लगाया जाता तब तक मरीजों की जेब में डाका डालने का सिलिसिला शायद ही थम पाए। सरकार को अमेरिका जैसा कानून ‘‘सख्ती‘‘ से लागू कराना होगा। दवा कंपनियों से यह कहना होगा कि वे किसी चिकित्सक विशेष के बजाए मेडीकल एसोसिएशन या चिकित्सकों की टीम के लिए स्पांसरशिप कर नई दवाओं की जानकारी दे। इसके अलावा एमसीआई को चिकित्सकों और जांच केंद्रों के बीच की सांठगांठ के खिलाफ कठोर पहल करनी होगी। मार्च माह में लागू किए जाने वाले कोड और आचार संहिता का पालन सुनिश्चित करने के लिए कठोर कदम ही उठाने आवश्यक होंगे।

राजस्थान उच्च न्यायालय ने ब्रांडेड जीवन रक्षक दवाओं की आसमान छूती कीमतों पर काबू करने के उद्देश्य से दायर की गई जनहित याचिकाओं का निस्तारण करते हुए सरकारी और निजी चिकित्सकों को साफ हिदायत दी है कि वे जेनेरिक दवाएं ही लिखें। उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश अरूण मिश्र और न्यायधीश कैलाश चंद जोशी की युगल पीठ ने आदेश दिया है कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के नियम एवं राज्य सरकार के आदेश दिनांक 7 अक्टूबर 2010 के तहत जेनेरिक दवाएं नहीं लिखने वाले चिकित्सकों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जाएगी।

दरअसल देश और प्रदेशों में ज्यादातर इस्तेमाल होने वाली दवाएं एसी हैं जिनकी कीमतों पर सरकारों का कोई नियंत्रण ही नहीं है। इन दवाओं के मूल्यों का निर्धारण दवा कंपनियां स्वयं ही करती हैं यह डीकंट्रोल्ड ड्रग्स की श्रेणी में आता है। इन दवाओं की तादाद पांच सौ से उपर बताई जा रही है। इन दवाओं में कमीशन के खेल का भोगमान अंततः मरीज को ही भुगतना पड़ता है। उधर कंट्रोल्ड दवाओं की श्रेणी में महज सौ से भी कम दवाएं हैं।

भगवान धनवंतरी के आधुनिक वंशजों द्वारा मानवता की सेवा के लिए लिए गए संकल्प को पूरी तरह से भुला दिया गया है। आज सरकारी और गैरसरकारी चिकित्सकों द्वारा मरीजों को जमकर लूटा जा रहा है। चिकित्सकों और दवा कंपनियों द्वारा अपनी इस लूट से ‘‘जनसेवकों‘‘ को मुक्त रखा गया है। कोई भी जनसेवक जब बीमार पडता है तो उसे देखने जाने वाले चिकित्सक द्वारा सैंपल में मिली दवाएं इंजेक्शन दिए जाते हैं, जिससे जनसेवक को पता ही नहीं चल पाता कि आम आदमी की कमर इन दोनों ही ने किस कदर तोडकर रखी है। इसके अलावा अगर चिकित्सकों को दिए जाने वाले नाट फार सेल वाले सैंपल और बाजार में मिलने वाली दवाओं के कंटेंट्स को ही मिला लिया जाए तो गुणवत्ता की कलई खुलने में समय नहीं लगे। एमसीआई द्वारा पहल जरूर की जा रही है, पर यह परवान चढ सकेगी इस बात में संदेह ही नजर आता है।

नीता को भाव नहीं दे रहे शिवराज


नीता को भाव नहीं दे रहे शिवराज

रेल मंत्री से चर्चा में भी सिवनी की हुई घोर उपेक्षा

क्या आश्वासन ही है सिवनी की असली धरोहर

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेस की गलत नीतियों के कारण डेढ़ दशकों से भाजपा का गढ़ बन चुके सिवनी जिले की हालिया सूबे के निजाम शिवराज सिंह चौहान द्वारा लगातार उपेक्षा ही की जा रही है। सिवनी वासियों के सामने बड़े बड़े वायदे करने और फिर भाजपा द्वारा समय समय पर विज्ञप्तियों के माध्यम से उन वायदों को जिंदा रखने के बाद भी शिवराज सिंह चौहान ने रेल मंत्री के मध्य प्रदेश दौरे के दौरान सिवनी जिले की रेल परियोजनाओं की चर्चा न किया जाना आश्चर्यजनक ही है।

गौरतलब है कि रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी गुरूवार को एक दिवसीय यात्रा पर देश के हृदय प्रदेश की राजधानी भोपाल गए थे। भोपाल में मध्य प्रदेश के समस्त सांसदों को आमंत्रित किया गया था। इस दौरान परिसीमन में समाप्त हुई सिवनी लोकसभा के खण्ड बालाघाट सिवनी के भाजपाई सांसद के.डी.देशमख ने तो अपनी आमद दी किन्तु मण्डला सिवनी संसदीय क्षेत्र के सांसद बसोरी सिंह मसराम बैठक से गायब रहे।

यहां उल्लेखनीय होगा कि सिवनी जिले में केवलारी विधानसभा को छोड़कर शेष सारी विधानसभाओं में कांग्रेस की गलत नीतियों का फायदा भाजपा द्वारा उठाया जाता रहा है। सिवनी में सांसद, विधायक, नगर पंचायत, यहां तक कि जिला मुख्यालय की नगर पालिका परिषद पर भी भाजपा का कब्जा है। बावजूद इसके मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार के निजाम शिवराज सिंह चौहान द्वारा सिवनी के साथ लगातार सौतेला व्यवहार ही किया जा रहा है।

यहां उल्लेखनीय है कि जिला मुख्यालय को अपने आप में समाहित करने वाले सिवनी विधानसभा क्षेत्र की विधायक और परिसीमन में समाप्त हुई लोकसभा की अंतिम सांसद श्रीमति नीता पटेरिया द्वारा इसके पूर्व अनेकों बार रेल, सड़क और पेंच के मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से आग्रह कर चुकी हैं। इस बारे में विज्ञप्तिवीर भाजपा के नुमाईंदों ने भी दिल खोल कर श्रीमति पटेरिया की तारीफों में कशीदे गढ़े जाते रहे हैं।

अब चर्चा यह है कि मध्य प्रदेश भाजपा महिला मोर्चा की प्रदेशाध्यक्ष श्रीमति नीता पटेरिया द्वारा अगर बार बार मुख्यमंत्री को सिवनी की समस्याओं के बारे में चेताया जाता रहा है तो फिर क्या कारण है कि मुख्यमंत्री श्रीमति पटेरिया की बात पर कान नहीं दे रहे हैं। वे दिल्ली वन मंत्री से मिले तो सिवनी जिले की फोरलेन की वनबाधा दूर करने की बात नहीं की।

मध्य प्रदेश सरकार के जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी आधिकारिक समाचार में कहा गया है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी के साथ बैठक के दौरान मध्य प्रदेश में रेल सुविधाओं के लिए अपना मांग पत्र सौंपा। आधिकारिक खबर में जिन रेल मार्गों का हवाला दिया गया है उनमें महाकौशल क्षेत्र की इकलौती रेल परियोजना जबलपुर गोंदिया का जिकर किया गया है। इसमें छिंदवाड़ा से नैनपुर बरास्ता सिवनी का न होना साफ जाहिर करता है कि वे भारतीय जनता पार्टी के एक मोर्चे की प्रदेश अध्यक्ष श्रीमति नीता पटेरिया को कितना भाव दे रहे हैं।

सरकारी विज्ञप्ति में बालाघाट के सांसद के.डी.देशमुख के खाते में बालाघाट से नागपुर नई रेल सेवा की मांग को रखा गया है। इसके आलावा आदिवासी बाहुल्य बालाघाट और सुरक्षित मण्डला संसदीय क्षेत्र के बारे में आधिकारिक तौर पर कोई बात नहीं कही गई है। मण्डला के सांसद बसोरी सिंह मसराम सदा की भांति ही इस बार भी रेल मामले में मौन साधते हुए बैठक से नदातर ही रहे।

फिर उलझा फोरलेन का मसला!


फिर उलझा फोरलेन का मसला!

राजनैतिक सक्रियता में गेंद एक दूसरे के पाले में फेंकने लगी कांग्रेस भाजपा

नौ दिन चले अढ़ाई कोस

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। धवल छवि के धनी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की राजग सरकार की महात्वाकांक्षी स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना के अंग उत्तर दक्षिण गलियारे में पेंच का पेंच अब भी नहीं निकाला जा सका है। पूर्व भूतल परिवहन एवं वर्तमान शहरी विकास मंत्री कमल नाथ के जन्म दिवस की पूर्व संध्या पर कांग्रेस के आधा दर्जन सेकड़ा प्रतिनिधिमण्डल की वनमंत्री और भूतल परिवहन मंत्री से भेंट का कोई हल निकलता नहीं दिख रहा है।

गौरतलब है कि तत्कालीन जिलाधिकारी पिरकीपण्डला नरहरि के 18 दिसंबर 2008 के आदेश क्रमांक 3266/फो.ले./2008 जिसे 19 दिसंबर को पृष्ठांकित किया गया था के द्वारा राज्य सरकार से आदेश मिलने की प्रत्याशा में पूर्व कलेक्टर द्वारा सिवनी जिले में मोहगांव से खवासा तक के भाग में सड़क चौड़ीकरण हेतु जारी वन एवं गैर वन क्षेत्रों की वनों की कटाई पर रोक लगा दी थी। इसके उपरांत सड़क की राजनीति के गर्म तवे पर न जाने कितने ही शैफ (मुख्य रसोईए) आए और अपनी अपनी रोटियां सैंकते चले गए। न्यायालयीन प्रक्रियाओं के चलते इस सड़क पर हाथ लगाने से हर कोई घबरा रहा था।

इसके बाद जब मामला इस साल के आरंभ में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर वाईल्ड लाईफ बोर्ड के पास गया तब से यह ठंडे बस्ते के ही हवाले है। राज्य सरकार द्वारा पेंच नेशनल पार्क और कान्हा नेशनल पार्क के वाईल्ड लाईफ कारीडोर के बारे में क्या प्रतिवेदन भेजा है भेजा भी है अथवा नहीं इस बारे में सभी मौन हैं। सिवनी के चार विधायक और दो सांसदों का भी मौन आश्चर्यजनक ही है। वस्तुतः इन्हें राज्य सरकार और केंद्र सरकार से पत्र लिखकर इस मामले की वास्तविकता को पता करना था और जनता के समक्ष रखना था, किन्तु एक बाहुबली क्षत्रप से भयाक्रांत कांग्रेस और भाजपा के नेताओं ने एक साथ इस मामले में तलवारें कतार बद्ध होकर रेते में गड़ा रखी हैं।

कांग्रेस की नजरों में भविष्य के वजीरे आजम राहुल गांधी के वरद हस्त प्राप्त केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री सी.पी.जोशी के करीबी सूत्रों का कहना है कि सिवनी जिले से आए प्रतिनिधिमण्डल की मांग पर उन्होंने दो टूक कह दिया कि राज्य सरकार से प्रास्ताव आने पर वे इस बारे में विचार करेंगे। मतलब साफ है कि एक साल से मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार और उसके विधायक फोरलेन मामले में कुंभकर्णीय निंद्रा में हैं। रही बात कांग्रेस की तो वह तो मृत्यु शैया पर ही है, कांग्रेस की ओर से इस मामले को विधानसभा या लोकसभा में उठाए जाने की कल्पना करना बेमानी ही है।

सिवनी में लगेगा प्रदेश का पहला परमाणु बिजली घर


0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . . 18

सिवनी में लगेगा प्रदेश का पहला परमाणु बिजली घर

कैसे होगा परमाणु कचरे का निष्पादन?

शिव की प्रयोगशाला बना सिवनी जिला

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा सरकार द्वारा विकास के नाम पर विनाश को न्योता दिया जा रहा है। बिना दूरगामी प्रभावों का अध्ययन किए हुए शिवराज सरकार ने भगवान शिव के सिवनी जिले को प्रयोगशाला बना लिया है। मध्य प्रदेश की जीवन रेखा पुण्य सलिला नर्मदा नदी को जहरीला करने के साथ ही साथ सिवनी जिले में प्रदेश के पहले परमाणु बिजली घर का काम गुपचुप तरीके से अस्तित्व मेें है।

इन सब के बावजुद अमरकंटक से समुद्र में मिलने तक नर्मदा के तट के निकट करीब 18 थर्मल पावर प्लांट लगाने की तैयारी है। जबलपुर से होशंगाबाद तक पांच पावर प्लांट को सरकारों ने मंजूरी दे दी है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सूत्रों के अनुसार इनमें सिवनी जिले के चुटका गांव में बनने वाला प्रदेश का पहला परमाणु बिजली घर भी शामिल है। यह बरगी बांध के कैचमेंट एरिया में है। परमाणु ऊर्जा का मुख्य केंद्र रहा अमेरिका अब परमाणु कचरे का निष्पादन नहीं कर पा रहा है।

इसके बावजूद भारत में इन परियोजनाओं से निकलने वाले परमाणु कचरे की निष्पादन की बात सरकारें नहीं कर रही हैं। इन परियोजनाओं के लिए नर्मदा का पानी देने का करार हुआ है। नरसिंहपुर के पास लगने वाले पावर प्लांट की जद में आने वाली जमीन एशिया की सर्वाेत्तम दलहन उत्पादक है। कोल पावर प्लांट के दुष्परिणामों का अंदाजा सारणी के आसपास जंगल और तवा नदी के नष्ट होने से लगाया जा सकता है।

सूत्रों ने आगे बताया कि दो हजार हैक्टेयर में बनने वाले चुटका परमाणु पावर प्लांट की जद में 36 गांव आएंगे। इनमें से फिलहाल चुटका, कुंडा, भालीबाड़ा, पाठा और टाडीघाट गांव को हटाने की तैयारी है। निर्माण एजेंसी न्यूक्लियर पावर कारपोरेशन और स्थानीय प्रशासन इस बाबत नोटिस दे चुका है। 1400 मेगावाट क्षमता के दो रिएक्टर वाले इस प्लांट में 100 क्यूसेक पानी लगेगा। एक अनुमान के मुताबिक चुटका परमाणु पावर प्लांट में जितना पानी लगेगा, उससे हजारों हैक्टेयर खेती की सिंचाई की जा सकती है। परमाणु बिजली के संयंत्र के ईंधन के रूप में यूरेनियम का इस्तेमाल किया जाता है। इसकी रेडियोधर्मिता के दुष्परिणाम जन, जानवर, जल, जंगल और जमीन को स्थायी रूप से भुगतने पड़ते हैं। इसका अंदाजा रावतभाटा परमाणु संयंत्र की अध्ययन रिपोर्ट से लगाया जा सकता है।

जानकारों के मुताबिक परमाणु कचरे की उम्र 2.5 लाख वर्ष है। इसे नष्ट करने के लिए जमीन में गाड़ दिया जाए तो भी यह 600 वर्ष तक बना रहता है। इस दौरान भूजल प्रदूषित करता है। चुटका में प्लांट बनने से नर्मदा व सहायक नदियों के प्रदूषित होने की आशंका है। इतना ही नहीं, भूकंप की आशंका भी बढ़ जाती है। वहीं, चुटका में निर्माण एजेंसी अपनी आवासीय कॉलोनी प्लांट से करीब 14 किलोमीटर दूर बना रही है। प्लांट के लिए भूमि सर्वे और भूअर्जन की कोशिश जारी है, लेकिन आदिवासी और मछुआरे हटने को तैयार नहीं हैं। दरअसल ये सभी बरगी से विस्थापित हैं। हालांकि कंपनी के इंजीनियर करीब 40 फीट गहरा होल करके यहां की मिट्टी और पत्थरों का अध्ययन कर चुके हैं।

(क्रमशः जारी)

मिनी आम चुनावों की चिंता में दुबली होती कांग्रेस


बजट तक शायद चलें मनमोहन . . . 30

मिनी आम चुनावों की चिंता में दुबली होती कांग्रेस

घाटे से उबरना है सबसे बड़ी समस्या

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों को कांग्रेस मिनी आम चुनाव से कम नहीं आंक रही है। घपले, घोटाले, भ्रष्टाचार के ईमानदार संरक्षक की अघोषित उपाधि पा चुके वजीरे आजम डॉक्टर मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस अपने आप को असहज महसूस कर रही है। कांग्रेस को चिंता है कि अगर मनमोहन मिनी आम चुनाव तक रहे तो उसका बंटाधार तय है।

कांग्रेस के सत्ता और शीर्ष केंद्र 10, जनपथ (श्रीमति सोनिया का सरकारी आवास) के सूत्रों का दावा है कि कांग्रेस के रणनीतिकार लंबे समय से इसी जुगत में हैं कि मनमोहन से मुक्ति कैसे पाई जाए। इसके लिए वे हर संभव दृष्टिकोण को खंगाल रहे हैं। फिर समस्या यह भी है कि हालात इतने बदतर हैं कि राहुल गांधी को प्रधानमंत्री अभी तत्काल नहीं बनाया जा सकता है। इसलिए मनमोहन का विकल्प कौन होगा।

कांग्रेस के सामने एक और समस्या बहुत बड़ी यह उभरकर सामने आ रही है कि घाटे से कैसे उबरा जाए। संप्रग सरकार के कार्यकाल में फिजूल खर्ची, घपले घोटाले और भ्रष्टाचार से सरकारी खजाना रिक्त हो गया है। सरकार की आर्थिक नीतियों का खामियाजा देश को भुगतना पड़ रहा है। प्रधानमंत्री पद पर नजर गड़ाए वित्त मंत्री भी अपने मंत्रालय पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पा रहे हैं, इसलिए उनका मंत्रालय भी अफसरों की मनमर्जी पर ही सांसें ले रहा है।

(क्रमशः जारी)

नेटवर्क कंजेशन आम है आईडिया में


एक आईडिया जो बदल दे आपकी दुनिया . . .  26

नेटवर्क कंजेशन आम है आईडिया में

काल न लगने पर मोबाईल घूरने का आईडिया

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। आदित्य बिरला के स्वामित्व वाली आईडिया सेल्यूलर के उपभोक्ताओं को नेटवर्क न मिलने या व्यस्त होने की समस्या से अक्सर दो चार होना पड़ता रहा है। बार बार शिकायतें मिलने के बाद भी आईडिया ने अपने नेटवर्क की क्वालिटी में सुधार नहीं किया है। भले ही आईडिया बेहतर नेटवर्क और साफ आवाज का दावा करता हो, पर हकीकत इससे कहीं अलग है।

आईडिया के एक भुक्तभोगी उपभोक्ता का कहना है कि उसने आईडिया का 7.2 एमबीपीएस का नेट सेटर खरीदा। इस नेटसेटर के डेमो के वक्त उसे अच्छी खासी स्पीड मिल रही थी। जैसे ही वह घर गया और उसे लगाया तो नेट सेटर लगने पर उसके कंपयूटर में नेट घिसट घिसट कर चलने लगा। उपभोक्ता का कहना था कि उसने सोचा उस वक्त शायद कनेक्टिविटी कम हो बाद में ठीक हो जाएगा।

जब एक सप्ताह तक लगातार उस उपभोक्ता को वही स्पीड मिली तब उसने इसकी शिकायत करना चाहा तो आईडिया के हर रिटेलर और आईडिया प्वाईंट पर उसे दुत्कार ही मिली। लुटा पिटा उपभोक्ता इसके बाद आईडिया में अपने संपर्कों के माध्यम से कुछ आगे बढ़ा तो आईडिया के कारिंदों ने नए आईडिया के साथ उसे यह कह दिया कि उसका घर शैडो झोन में है इसलिए वहां सिग्नल अच्छे मिलना संभव नहीं है।

(क्रमशः जारी)