बुधवार, 16 नवंबर 2011

हिमाचल से भोपाल बरास्ता दिल्ली


हिमाचल से भोपाल बरास्ता दिल्ली

भाजपा शासित राज्य के अधिकारी कर रहे दिल्ली में रहकर भोपाल से पीएचडी

एमपी के अधिकारी दे रहे संरक्षण

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। भाजपा शासित हिमाचल प्रदेश के एक अधिकारी दिल्ली में नौकरी करते हुए आश्चर्यजनक तौर पर रोजाना हृदय प्रदेश की राजधानी भोपाल में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। यह चमत्कार वे अपने भाजपा शासित मध्य प्रदेश के एक अधिकारी मित्र के जरिए कर रहे हैं। उप संचालक स्तर के उक्त अधिकारी अपने ही समकक्ष तथा समान विभाग के अधिकारी के माध्यम से पत्रकारिता में शोध के काम को अंजाम दे रहे हैं।

प्राप्त जानकारी के मुताबिक भाजपा शासित हिमाचल प्रदेश के एक उप संचालक स्तर के अधिकारी दिल्ली में पदस्थ हैं। उन्हें अचानक ही जर्नलिज्म में पीएचडी करने का भूत सवार हुआ। उन्होंने अपने समान विभाग के एक अन्य अधिकारी जो सेवानिवृति की कगार पर ही हैं से संपर्क साधा और अपनी बात रखी। मध्य प्रदेश काडर के उक्त अधिकारी द्वारा चुटकी बजाते हुए उन्हें आश्वस्त किया कि वे दिल्ली में अपनी नौकरी करें, मध्य प्रदेश के माखन लाल चतुर्वेदी जर्नलिज्म प्रतिष्ठान में वे उनके लिए जुगाड़ लगवा देंगे।

फिर क्या था उक्त उप संचालक महोदय ने अपना पत्रकारिता में शोध का काम आरंभ कर दिया। भोपाल में अनुपस्थित रहते हुए उनका यह शोध लोगों के लिए शोध का विषय बन गया है। गौरतलब है कि पूर्व में मध्य प्रदेश के उक्त अधिकारी द्वारा सेवा वृद्धि की लालच में अपने कार्यालय को भाजपा संगठन का कार्यालय बना दिया था। इस कार्यालय से भाजपा की विज्ञप्ति आदि का वितरण भी किए जाने के आरोप लगे थे। जब मामला सार्वजनिक हुआ तब भाजपा के आला नेताओं ने उक्त सरकारी अधिकारी से किनारा कर लिया।

कहा जा रहा है कि मध्य प्रदेश काडर के सेवानिवृति की कगार पर खड़े उक्त अधिकारी को अब सेवा वृद्धि मिलने की गुंजाईश समाप्त हो गई है। अब उक्त अधिकारी का यह प्रयास जारी है कि वे किसी भी तरह माखन लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता प्रतिष्ठान में पुर्ननियुक्ति पा जाएं ताकि सेवानिवृति के उपरांत भी वे सरकारी सुविधाओं का लाभ ले सकें।

लोकायुक्त कराएंगे शिवराज की किरकिरी


लोकायुक्त कराएंगे शिवराज की किरकिरी

सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई है पेंडिंग

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेस भले ही मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के इशारों पर मुजरा कर रही हो पर लोकायुक्त के मामले में शिवराज सिंह चौहान घिर चुके हैं। सर्वोच्च न्यायालय में इस मामले में सुनवाई होना अभी बाकी है, इन परिस्थितियों में लोकायुक्त पी.पी.नावलेकर को अगर त्यागपत्र देना पड़ा तो शिवराज सिंह चौहान की बुरी तरह किरकिरी होने से कोई नहीं बचा सकता है। मध्य प्रदेश के राज्यपाल भी इस मामले में अब दिलचस्पी लेने लगे हैं।

लोकायुक्त के मामले में मध्य प्रदेश का रिकार्ड बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता है। जस्टिस नावलेकर तीसरे लोकायुक्त हैं जिन पर आरोप लगे हैं। इसके पूर्व अस्सी के दशक में समाजवादी नेता रघु ठाकुर ने तत्कालीन लोकायुक्त जस्टिस पी.के. तारे पर तत्कालीन निजाम कुंवर अर्जनसिंह की कठपुतली बनने का आरोप लगाया था।

प्रदेश में दस साल लगातार शासन करने वाले राजा दिग्विजय सिंह के मुख्य मंत्रित्व काल में लोकायुक्त नियुक्त हुए जस्टिस रिपुसूदन दयाल को लेकर काफी विवाद रहा। जस्टिस दयाल पर आरोप लगे कि उन्होंने अपने प्रभाव का उपयोग करके भोपाल में स्वयं, पत्नि एवं अपने पुत्रों के नाम पर मप्र गृह निर्माण मंडल से तीन आवास आवंटित कराए हैं। इनमें से दो आवास रिवेयरा टाउन में और एक बाग मुगालिया में है।

तत्कालीन लोकायुक्त जस्टिस दयाल एवं मप्र के मुख्य सूचना आयुक्त पी.पी. तिवारी के बीच भी हुआ विवाद भी भोपाल के महारणा प्रताप नगर के थाने तक पहुंच गए थे। आरोप है कि जस्टिस दयाल ने सूचना के अधिकार के तहत एक मामले में पीपी तिवारी को उनके खिलाफ फैसला देने से रोकने का प्रयास किया था। इसके लिए जस्टिस दयाल तिवारी के घर पहुंचे थे और तिवारी ने इस सब का उल्लेख अपने फैसले की आर्डरशीट में भी लिखा है।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को डंपर मामले में क्लीन चिट देने वाले जस्टिस नावलेकर तब सुर्खियों में आए जब उनके व्यवसायी पुत्र संदीप नावलेकर ने मुख्यमंत्री के साथ चीन की यात्रा की। इससे जाने अनजाने में यह संकेत गया कि डम्पर मामले में क्लीन चिट मिलने के कारण ही मुख्यमंत्री चौहान लोकायुक्त के पुत्र संदीप को चीन यात्रा पर लेकर गए थे।

झाबुआ पावर करेगा पहले से ही प्रदूषित नर्मदा को और गंदा


0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . . 16

झाबुआ पावर करेगा पहले से ही प्रदूषित नर्मदा को और गंदा

नर्मदा का पीएच दर्ज किया गया 9.02

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। तरह तरह के प्रदूषणों के चलते पुण्य सलिला नर्मदा अपने उदगम अमरकंटक से दाहोद के बीच बुरी तरह प्रदूषित हो चुकी है। इसका पीएच 9.02 दर्ज किया गया है जो मानक से कहीं अधिक है। संस्कारधानी जबलपुर के समीप बरगी बांध के मुहाने पर लगने वाले झाबुआ पावर लिमिटेड के कोल आधारित पावर प्लांट से इसका प्रदूषण कई गुना बढ़ने की उम्मीद है।

प्रचलित मान्यता यह है कि यमुना का पानी सात दिनों में, गंगा का पानी छूने से, पर नर्मदा का पानी तो देखने भर से पवित्र कर देता है। साथ ही जितने मंदिर व तीर्थ स्थान नर्मदा किनारे हैं उतने भारत में किसी दूसरी नदी के किनारे नहीं है। लोगों का मानना है कि नर्मदा की करीब ढाई हजार किलोमीटर की समूची परिक्रमा करने से चारों धाम की तीर्थयात्रा का फल मिल जाता है। परिक्रमा में करीब साढ़े सात साल लगते हैं।

जाहिर है कि लोगों की परंपराओं और धार्मिक विश्वासों में रची-बसी इस नदी का महत्व कितना है। लेकिन दुर्भाग्य से जंगल तस्करों, बाक्साइट खदानों और हमारी विकास की भूख से यह वादी इतनी खोखली और बंजर हो चुकी है कि आने वाले दिनों में उसमें नर्मदा को धारण करने का सार्म्थय ही नहीं बचेगा। इसकी शुरुआत नर्मदा के मैलेपन से हो चुकी है।

मजे की बात है कि सरकार का जल संसाधन विभाग और प्रदूषण नियंत्रण मंडल नदी जल में प्रदूषण की जांच करता है और प्रदूषण स्तर के आंकड़े कागज़़ों में दर्ज कर लेता है, लेकिन प्रदूषण कम करने के लिए सरकार कोई भी गंभीर उपाय नहीं कर पाता है। सरकारी सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार अमरकंटक और ओंकारेश्वर सहित कई स्थानों पर नर्मदा जल का स्तर क्षारीयता पानी में क्लोराईड और घुलनशील कार्बनडाईऑक्साइड का आंकलन करने से कई स्थानों पर जल घातक रूप से प्रदूषित पाया गया।

भारतीय मानक संस्थान ने पेयजल में पीएच 6.5 से 8.5 तक का स्तर तय किया है, लेकिन अमरकंटक से दाहोद तक नर्मदा में पीएच स्तर 9.02 तक दर्ज किया गया है। इससे स्पष्ट है कि नर्मदाजल पीने योग्य नहीं है और इस प्रदूषित जल को पीने से नर्मदा क्षेत्र में गऱीब और ग्रामीणों में पेट से संबंधित कई प्रकार की बीमारियां फैल रही है, इसे सरकारी स्वास्थ्य विभाग भी स्वीकार करता है। जनसंख्या बढऩे, कृषि तथा उद्योग की गतिविधियों के विकास और विस्तार से जल स्त्रोतों पर भारी दबाव पड़ रहा है।

(क्रमशः जारी)

चुनावों के मद्देनजर पेट्रोल की घटी कीमतें


बजट तक शायद चलें मनमोहन . . . 28

चुनावों के मद्देनजर पेट्रोल की घटी कीमतें

इस मसले पर सैट विपक्ष का हो सकता है मुंह बंद

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस ने प्रधानमंत्री पर खासा दबाव बनाया और अंततः सरकार को पेट्रोल के बढ़े हुए दामों में कुछ कमी करनी ही पड़ी। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के दाम घटे नहीं पर देश में पेट्रोल की कीमतें कम कर दी गईं। विपक्ष के हाथ यह नायाब मुद्दा लग तो चुका है पर कांग्रेस के इशारों पर चलने वाले विपक्ष से इस मामले में उम्मीद करना बेमानी ही होगा।

सरकार ने पेट्रोल की कीमतों को नियंत्रण से मुक्त ही बताया हुआ है। यही कारण है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के मूल्य बढ़ते ही सरकार की नवरत्न कंपनियों में शुमार तेल कंपनियां भी पेट्रोल की कीमतें बढ़ा देती हैं। पेट्रोल की कीमतें बढ़ने से देश में हाहाकर मच जाता है। सरकार सफाई देती है कि उसने तो कीमतों को नियंत्रण से मुक्त रखा हुआ है।

मंगलवार और बुधवार की दर्मयानी रात से पेट्रोल की कीमतों में कमी की गई है। विपक्ष चाहे तो इस मामले को भुना सकती है। विपक्ष संसद के सत्र में सरकार को इस मामले में घेर सकती है और पूछ सकती है कि आखिर क्या वजह है कि पेट्रोल की कीमतों में कमी की गई है। उधर कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10, जनपथ के सूत्रों का कहना है कि भाजपा के आला नेता अंततः कांग्रेस के पे रोलपर ही हैं, अतः इस मामले में वे चुप्पी ही साधे रहेंगे।

(क्रमशः जारी)

चहुंओर त्रस्त हैं आईडिया के उपभोक्ता


एक आईडिया जो बदल दे आपकी दुनिया . . .  24

चहुंओर त्रस्त हैं आईडिया के उपभोक्ता

हर सेवा में उपभोक्ताओं को लूटने का आईडिया

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। देश के मशहूर उद्योगपति आदित्य बिरला के स्वामित्व वाली आईडिया सेल्यूलर कंपनी अपने उपभोक्ताओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार कर ही है। एक समय में एकाधिकार करने वाले क्षेत्रीय मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियों को खरीदकर आईडिया में तब्दील करने के बाद इस कंपनी ने उपभोक्ताओं की जेब हल्का करने के नए नए प्रयोग आरंभ किए हैं।

राजधानी के हजारो मोबाईल उपभोक्ता जो आईडिया सेल्लुलर कंपनी की सर्विसेस से आजकल बुरी तरह से परेशान है, जिनकी कही सुनवाई नही है। प्रीपेड उपभोक्ताओ के पैसे कही ये कम्पनी मेसेज के नाम तो कही रिंग टोन के नाम पर तो कही इन्टरनेट ब्राउसिंग के नाम पर हड़प रही है। वही दूसरी और जो उपभोक्ता पोस्ट पैड है जिन्होंने मिनिमम मासिक प्लान पर आईडिया का पोस्ट पैड प्लान लिया हुआ है उन उपभोक्ताओ को भी भारीभरकम बिल थमा कर आईडिया चूना लगा रहा।

जब इस तरह की शिकायत को लेकर ग्राहक आईडिया के आउट लेट पर जाते है तो वहा बैठे कस्टमर केयर एग्जीक्यूटिव द्वारा उपभोक्क्ताओं को उनकी तकलीफों को तुरंत हल करने के बजाये कंपनी के मुख्यालय मेसेज भेज कर ग्राहक को चलता कर देते है। जिलों में आईडिया प्वाईंट्स पर उपभोक्ताओं की सुनवाई भी नहीं हो पा रही है। जब आईडिया प्वाईंट पर ग्राहक जाता है तो उसे पोस्ट पेड या प्री पेड के चक्कर में ही उलझा दिया जाता है।

दस दस बार उपभोक्ता इन आउटलेट पर चक्कर लगाता रहता है मगर कोई सुनवाई नही होती। आईडिया की ग्राहक सेवा पर भी कोई शिकायत दर्ज करने के लिए अगर फोन लगाया जाता है तो पहले उससे बिना बात के दस विज्ञापन झेलने पड़ते है तब जाकर कंपनी का कोई पकाऊ बंदा फ़ोन अटैंड करता है। इन सब प्रक्रियाओ से ग्राहक को हर तो चार दिन में एक बार सामना करना पड़ता है मगर फिर भी समस्या जस की तस रहती है आईडिया के इस चूना लगाने की योजना ने ग्राहक को परेशानी में डाल रखा है लगता है जब तक कोई ग्राहक अपनी परेशानी के लिए अदालत की शरण में नही जायेगा तब तक शायद आईडिया ग्राहकों को चूना लगाने से बाज़ आने वाला नही।

(क्रमशः जारी)