मंगलवार, 12 जुलाई 2011

अभी ‘बहुत कुछ‘ सीखना है युवराज को

अभी ‘बहुत कुछ‘ सीखना है युवराज को

(लिमटी खरे)

कांग्रेस के सुकुमार युवराज राहुल गांधी उत्तर प्रदेश में पदयात्रा पर गए और उन्होंने कहा कि उन्होंने संसद मंे जो नहीं सीखा वह ग्रामीणों के बीच जाकर सीखने को मिला। मतलब साफ है कि राहुल गांधी जमीन से जु़ड़े नेता नहीं हैं। देश का एक आम आदमी जिसे देश की रीढ़ किसान के दुख दर्द के बारे में बखूबी मालुम है उसमें और राजनीति में पैदा नहीं वरन् ‘‘अवतरित‘‘ हुए राहुल गांधी मंे अंतर स्वाभाविक ही है। कांग्रेसी नेताओं की राजनीति नेहरू गांधी परिवार के बलबूते चलती है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। यही कारण है कि रामलीला मैदान में बाबा रामदेव के साथ हुई रावणलीला और अण्णा हजारे प्रकरण में चुप्पी साधने वाले राहुल गांधी की पदयात्रा के दरम्यान थैलियों के मुंह खोल दिए गए और मीडिया को गजब तरीके से खरीद लिया गया। सारे समाचार चेनल राहुल के स्तुतिगान और महिमा मण्डन में लगे थे, किसी ने भी राहुल से रामदेव या हजारे के मामले में पूछने का साहस नहीं जुटाया। दरअसल निहित स्वार्थों के चलते कुछ मीडिया मुगल इन नेताओं के घरों की चैखट पर मुजरा करते नजर आ रहे हैं।

कांग्रेस के आला नेता चाहते हैं कि देश की राजनीति कें सक्रिय हुए नेहरू गांधी परिवार की पांचवी पीढ़ी के सदस्य राहुल गांधी प्रधानमंत्री का पद संभालें। आज भी सामंती प्रथा लागू नजर आती है। कितने आश्चर्य की बात है कि कांग्रेस के महासचिव राजा दिग्विजय सिंह सरेआम यह कहते हैं कि राहुल गांधी शादी कर लें और देश की बागडोर संभालें। सामंती व्यवस्थाओं में रियाया को समय समय पर अनेक सूचनाएं दी जाती थीं। इनमें महत्वपूर्ण होती थी कि अब फलां राजकुमार जवान हो गए हैं और अब वे राजकाज संभालने के योग्य हो गए हैं। फिर उनका राज्याभिषेक कर दिया जाता था। कांग्रेस भी उसी तर्ज पर ही चल रही है।

राजा दिग्विजय सिंह अब देश की प्रजा को बता रहे हैं कि नेहरू गांधी परिवार के युवा सदस्य राहुल गांधी अब बड़े हो गए हैं और वे राजकाज संभालने के योग्य हो गए हैं। क्या दिग्विजय सिंह ने कभी यह सोचा है कि उनके इस कथन का तातपर्य क्या निकल सकता है। इसका मतलब साफ है कि वजीरे आजम डाॅ.मनमोहन सिंह आपका समय पूरा अब आप प्रधानमंत्री आवास यानी 7, रेसकोर्स रोड़ से अपना बोरिया बिस्तर समेट लो। भले ही मनमोहन सिंह के राज में सबसे अधिक घपले और घोटाले हुए हों, किन्तु आज भी देश का एक बहुत बड़ा वर्ग उन्हें ईमानदार ही मानता है। अनेक बुद्धिजीवी मनमोहन सिंह को ‘भ्रष्टाचार के ईमानदार संरक्षक‘ भी मानते हैं।

कांग्रेस के प्रधानमंत्रियों में नरसिंहराव ही इकलौते ऐसे चेहरे हैं जिन्होंने कांग्रेस को नेहरू गांधी परिवार से दूर रखकर अपने बल पर खड़े होने की सीख दी। मनमोहन सिंह राज्य सभा से हैं उनका जनाधार नहीं है, इसलिए मनमोहन पूरी तरह कांग्रेस के पिट्ठू माने जाते हैं। पिछले कुछ दिनों से उन्होंने जो रवैया अख्तियार किया है उससे साफ होने लगा है कि अब मनमोहन भी नरसिंहराव की तर्ज पर चलने का प्रयास कर रहे हैं। मनमोहन के प्रयास अगर सफल हुए तो कांग्रेस के कार्यकर्ता सोनिया राहुल के आभा मण्डल से निकलकर धरातल पर आ सकेंगे।

कल तक देश पर एक छत्र राज्य करने वाली कांग्रेस चंद सूबों मंे ही सिमटकर रह गई है। गुजरात, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश तीन एसे बड़े राज्य हैं जहां कांग्रेस का नामलेवा भी नहीं बचा है। यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि गुजरात से सोनिया गांधी के राजनैतिक सचिव अहमद पटेल तो मध्य प्रदेश से राहुल गांधी के अघोषित गुरू राजा दिग्विजय सिंह हैं। साथ ही साथ उत्तर प्रदेश से राहुल और सोनिया खुद हैं।

बड़े नेताओं ने अपने अपने क्षेत्र बांट लिए हैं। हर नेता के क्षेत्र में कांग्रेस का बट्टा बैठा हुआ है। सच है कि अगर किसी नेता के क्षेत्र मंे दूसरा कांग्रेस का दबंग विधायक या संसद सदस्य चुनकर आ गया तो फिर उसकी पूछ परख कम होना लाजिमी है। यही कारण है कि मध्य प्रदेश का ही उदहारण अगर लिया जाए तो दिग्गी राजा के मालावांचल, ज्योतिरादित्य के चम्बल, कमल नाथ के महाकौशल में कांग्रेस की सांसे जमकर फूल चुकी हैं।

यह था कांग्रेस का राष्ट्रव्यापी परिदृश्य। इन परिस्थितियों के बाद भी राहुल गांधी पता नहीं किस रंग का चश्मा लगाकर देश और अपने मतदाता को देख रहे हैं। उत्तर प्रदेश में वे पदयात्रा करते हैं। कभी किसी दलित के घर रात बिताते हैं। मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले के टपरियन गांव जाकर वहां एक बेसहारा की बेटी के विवाह के लिए बीस हजार रूपए देने का वादा करते हैं, फिर भूल जाते हंै। राहुल का वादा सूबे के भाजपाई निजाम शिवराज सिंह चैहान द्वारा पूरा किया जाता है। यह है कांग्रेस के संगठन की जमीनी हकीकत।

अपनी पदयात्रा में राहुल कहते हैं कि संसद से ज्यादा उन्हें यहां सीखने को मिला। राहुल सच कह रहे हैं, वकई उन्हें जमीन से जुड़ने पर काफी कुछ सीखने को मिला होगा, वरना तय शुदा प्रोग्राम और चापलूसों से घिरे रहने के अलावा राहुल करते भी क्या हैं। उनके कार्यालय में अत्याधुनिक संचार साधन हैं, किन्तु सभी जमीनी हकीकत से कोसों दूर हैं। लेपटाप और ब्लेक बैरी फोन से सुदूर ग्रामीण अंचलों की वास्तविक स्थिति का भान नहीं हो सकता है।

कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी और युवराज राहुल गांधी के इर्द गिर्द जमा भीड़ में पंचानवे फीसदी लोग बिना रीढ़ अर्थात जनाधार वाले हैं। जिनका जनाधार ही नहीं हैं, उन बैसाखियों पर चलकर मां बेटा सोच रहे हैं कि वे कांगे्रस को मजबूत बना लेंगे। जो लोग जनता के सामने जाकर चुनाव लड़कर संसद या विधानसभाओं में पहुंचने का माद्दा नहीं रखते वे कुशल प्रबंधक हो सकते हैं पर देश की किस्मत नहीं बदल सकते। बुंदेलखण्ड की एक कहावत इन पर चरितार्थ होती है कि ‘‘सूपा तो सूपा, अब चलनी बोले, जिसमें 172 छेद‘‘।

ब्रितानी हुकूमत के पहले तक देश में प्रजा का सही हाल जानने के लिए राजाओं द्वारा भेस बदलकर असलियत से रूबरू हुआ जाता था। आज के समय में राहुल गांधी औचक दौरे तो करते हैं किन्तु उनके ये दौरे कितने औचक होते हैं इस बारे में वे खुद भी भली भांति जानते हैं। एसपीजी और कांग्रेस के प्रबंधकों का दल उनके दौरे के पहले उनके अनुकूल माहौल तैयार कर देते हैं। अब इन परिस्थितियों में भला राहुल गांधी जमीनी हकीकत से कैसे दो चार हो सकते हैं।

राहुल गांधी ने इशारों ही इशारों में बयान वीरों को भी समझा दिया है कि वे अभी राजकाज संभालने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हो पाए हैं। जिस तरह गैर राजनैतिक राजीव गांधी जब प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे तो उनके सारे मित्रों ने उन्हें घेर लिया और फिर चल पड़ा था लूट का सिलसिला। अनुभवहीन राजीव गांधी को बोफोर्स मामले में जबरन ही फसा दिया गया था। बोफोर्स तोप मामले में नेहरू गांधी परिवार को जितनी शर्मिंदगी झेलनी पड़ी उतनी शायद ही कभी किसी ने झेली हो। राहुल गांधी अभी पूरी तरह परिपक्व नहीं माने जा सकते हैं। उन्हें अपने इर्द गिर्द चाटूकारों के बजाए जनाधार वाले लोगों को स्थान देना होगा, वरना नेहरू गांधी परिवार की साख और मीडिया को खरीद कर उनका महिमा मण्डन आखिर कब तक हो पाएगा?

आज फेंटेंगे मनमोहन अपने पत्ते

आज फेंटेंगे मनमोहन अपने पत्ते

मध्य प्रदेश से कमल नाथ और ज्योतिरादित्य बचे

भूरिया, अरूण यादव मंत्रीमण्डल के बाहर

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। रेल हादसों के कारण सोमवार को टला मंत्रीमण्डल विस्तार आज शाम पांच बजे होगा, जिसमें कुछ चेहरों को पदोन्नति, कुछ नए चेहरे तो दिखाई देंगे ही साथ ही कुछ मंत्रियों को बाहर का रास्ता भी दिखाया जाएगा।

प्रधानमंत्री कार्यालय के भरोसे मंद सूत्रों का कहना है कि वी.किशोर चंद्र देव, बेनी वर्मा, दिनेश त्रिवेदी, जयराम रमेश को कबीना मंत्री बनाया जाएगा। इसके अलावा श्रीकांत जैना, जयंती नटराजन, पवन सिंह घटवार और गुरूदास कामत को राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार बनाया जा रहा है।

सूत्रों ने आगे बताया कि राज्य मंत्रियों की सूची में सुदीप बंदोपाध्याय, चरण दास महंत, जितेंद्र सिंह, मिलिन्द देवड़ा एवं राजीव शुक्ला शामिल किए गए हैं। जिन मंत्रियों के विभाग बदलने की अनुशंसा की गई है उनमें वी.के.सी.देव को आदिवासी मामले और पंचायती राज, बेनी प्रसाद वर्मा को स्टील, दिनेश त्रिवेदी को रेल, जयराम रमेश को ग्रामीण विकास विभाग का केबनेट मंत्री बनाया गया है। राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार में श्रीकांत जैना को सांख्यिकी, केमीकल और फर्टीलाईजर्स, जयंती नटराजन को वन एवं पर्यावरण, पवन सिंह को पूर्वात्तर क्षेत्र विकास, गुरूदास कामथ को पेयजल और सेनीटेशन का राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार, तथा राज्य मंत्रियों में नए मंत्रियों में सुदीप बंदोपाध्याय को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, चरण दास महंत को फुड प्रोसेसिंग और एग्रीकल्चर, जितेंद्र सिंह को होम अफेयर्स, मिलिंद देवड़ा को कम्यूनिकेशन और इंफरमेशन टेक्नालाजी, राजीव शुक्ला को पार्लियमेंट्री अफेयर्स मंत्रालय सौंपा गया है।

जिन मंत्रियों के विभाग बदले गए हैं उनमें विलास राव देशमुख को साईंस एण्ड टेक्नालाजी, वीरप्पा मोईली को कार्पोरेट अफेयर्स, आनंद शर्मा को वाणिज्य और उद्योग के साथ ही वस्त्र मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार, पवन बंसल को संसदीय कार्य के साथ ही साथ वाटर रिसोर्स का अतिरिक्त प्रभार, सलमान खुर्शीद को कानून मंत्रालय के साथ ही साथ अल्पसंख्यक कल्याण का अतिरिक्त कार्य सौंपा गया है। राज्य मंत्रियों में ई.अहमद को विदेश मंत्रालय और मानव संसाधन मंत्रालय, वी.नारायण सामी को कार्मिक और प्रधानमंत्री कार्यालय, हरीश रावत को एग्रीकल्चर फुड प्रोसेसिंग के साथ ही साथ संसदीय कार्य, मुकुल राय को शिपिंग, अश्विनी कुमार को योजना, साईंस और टेक्नालाजी का प्रभार बतौर राज्य मंत्री सौंपा गया है।

सूत्रों ने पुख्ता जानकारी देते हुए कहा कि दयानिधी मारन, मुरली देवड़ा, बी.के.हाण्डिक, अरूण यादव, कांति लाल भूरिया, ए.साई.प्रसाद और एम.एस.गिल की लाल बत्ती छीन ली गई है। गौरतलब होगा कि पहले यह विस्तार सोमवार को प्रस्तावित था किन्तु दो बड़े रेल हादसों की वजह से इसे टाल दिया गया था। सोमवार को दोपहर तक इस बात पर सहमति नहीं बन पाई थी कि विस्तार मंगलवार को किया जाए या बुधवार को। जानकारों के अनुसार महूर्त देखकर शाम को तय किया गया कि टिकाऊ, स्थाई और मजबूत सरकार के लिए मंगलवार का दिन ही सबसे उपयुक्त है।

सबसे मंहगी रसोई गैस है मामा के घर!

सबसे मंहगी रसोई गैस है मामा के घर!

एमपी में रसोई गैस मंहगी, पर कांग्रेस खामोश!

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। मध्य प्रदेश के सारे बच्चों के मामा राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान के राजकाज में रसाई गैस के दाम देश में सबसे अधिक होने के बाद भी कांग्रेस अध्यक्ष और आदिवासी बच्चों के मामा कांतिलाल भूरिया के नेतृत्व में कांग्रेस खामोशी के साथ जनता को लुटते देख रही है। भाजपा के नेतृत्व वाली गुजरात, उत्तराखण्ड और छत्तीसगढ़ में रसाई गैस की दरें 410 रूपए से कम हैं किन्तु शिवराज के राज में इनकी 452 रूपए का मिल रहा है एक सिलेंडर!

भाजपा शासित राज्यों में मध्य प्रदेश में 452, झारखण्ड में 425 रूपए पचास पैसे, पंजाब में 420, हिमाचल में 411 रूपए 15 पैसे, कर्नाटक में 411 रूपए दस पैसे, गुजरात में 409 रूपए पच्चीस पैसे, बिहार में 407, छत्तीसगढ़ में 403 रूपए चार आने तो उत्तराखण्ड में 394 रूपए तीस पैसे की दर से सिलेंडर मिल रहे हैं।

वहीं अगर कांग्रेस शासित राज्यों में देखा जाए तो हरियाणा में सर्वाधिक 419 रूपए 48 पैसे तो असम में 403 रूपए, महाराष्ट्र में 398 रूपए 45 पैसे, राजस्थान में 398 रूपए पांच पैसे, दिल्ली में 395 रूपए तीस पैसे, आंध्र प्रदेश में 394 रूपए तीस पैसे प्रति सिलेंडर की दर है। ममता बनर्जी के राज में पश्चिम बंगाल और मायावती के राज में उत्तर प्रदेश में गैस की कीमत 401 रूपए है।

मध्य प्रदेश में रसोई गैस के मंहगे होने का कारण इस पर करों का लदा होना है। यहां रसाई गैस पर 6.47 प्रतिशत की दर से 24 रूपए पचास पैसे प्रवेश कर तो पांच फीसदी की दर से 20 रूपए 16 पैसे वैट लिया जा रहा है। मजे की बात यह है कि उक्त दोनों ही टेक्स मदिरा पर आहूत नहीं हो रहे हैं।

2003 के बाद सत्ता से गायब होने वाली कांग्रेस भी भाजपा की गरीब विरोधी नीतियों पर मौन साधे हुए है। इसके पूर्व सूबे के कांग्रेस संगठन के निजाम सुभाष यादव और सुरेश पचैरी के कार्यकाल में कांग्रेस पूरी तरह निष्क्रीय ही बैठी रही। वर्तमान अध्यक्ष कांति लाल भूरिया ने भी शिवराज सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने का मन अभी तक नहीं बनाया है। यही कारण है कि प्रदेश के निवासियों को देश में सबसे मंहगी रसाई गैस खरीदने पर मजबूर होना पड़ रहा है।

शादी कर हड़प लेते हैं आदिवासियों की जमीन




शादी कर हड़प लेते हैं आदिवासियों की जमीन


(हिमांशु कौशल)

सिवनी (म.प्र.)। आदिवासियों से उनकी जमीने न छिने इसे लेकर सरकार ने जो कठोर नियम बनाये हैंैं वे उनकी जमीन बचाने के लिये तो पर्याप्त हैं ही नहीं बल्कि इन नियमों के कारण गाँवों में आदिवासी परिवारों की युवतियाँ असुरक्षित हो गयी हैं वहीं दूसरी तरफ शहरों में आदिवासियों की जमीनों को हड़पने के लिये दलाल, पटवारी, उप पंजीयक सी सक्रिय हैं.

गाँव के ग्रामीण हो या शहर के शहरी शोषण तो आदिवासियों का हो ही रहा है पर अंतर इतना है कि पहले गाँव में पुलिस का ऐसे लोगों को संरक्षण होता है तो शहर में प्रशासनिक अंग के अधिकारी ऐसे लोगों से मिले हुए होते हैं जो आदिवासियों का शोषण करते हैं.

0 गाँव में शादी करके हड़प लेते हैं जमीन

सिवनी जिला आदिवासी बहुल है. यहाँ के आदिवासियों के पास पुश्तैनी जमीने बहुत हैं. आदिवासियों की पुश्तैनी जमीन हड़पने के लिये गाँव के अन्य समुदाय, वर्गों के लोग किसी ऐसे आदिवासी परिवार जिसके पास जमीन होती है, की बेटी को प्रेम का, शादी का प्रलोन दे फँसाते हैं और अपने साथ रख लेते हैं या फिर कई बार तो आदिवासी परिवार की लड़की को गा कर ले जाते हैं और उसकी अस्मत लूट उसे अपने पास रख लेते हैं और बाद में उसपर व उसके परिवार वालों पर दबाव डाल जमीन हड़पने की कोशिश करते हैं और ऐसे मामलों में कई बार तो महिला स्वयं ी अपने माता पिता ाई के विरूद्ध हो जाती है.


0 हिरणदास की हत्या: एक उदाहरण

अी हाल ही में समीपस्थ ग्राम ईंदावाड़ी निवासी हिरणदास गेडाम की हत्या इसका उदाहरण है. हिरणदास की बहन हिरंतीबाई अपने पिता व परिवार की इच्छा के विरूद्ध मुस्लिम समुदाय के ग्राम विजय पानी निवासी गुलजार के साथ चली गयी थी जिसके खफा होकर उसके पिता स्व. देवाजी गेडाम ने अपने पैसे से खरीदी गयी जमीन अपने पुत्र एवं पोतों के नाम लिख दी थी. हिरंतीबाई और गुलजार जमीन पर हिस्सा चाहते थे पर हिरणदास अपने पिता की वसीयत के मुताबिक कोई हिस्सा नहीं देना चाहता था फलस्वरूप हिरंतीबाई एवं उसके पति ने षड़यंत्र कर ग्राम विजयपानी स्थित खेत को जोतना चाहा जिसमें विवाद हुआ है और हिरणदास की हत्या कर दी गयी जबकि उसके दोनों पुत्र जो कि उसके बाद जमीन के मालिक होते पर ी प्राणघातक हमले किये गये. हालाकि हिरंतीबाई की शादी बहुत पहले हुई थी और शादी के समय जमीन शायद कोई मुद्दा नहीं था पर हिरंतीबाई के ाई की हत्या का कारण जमीनी विवाद ही था और यह अी ी बहस का मुद्दा है कि उस जमीन पर हिरंतीबाई का हक बनता है या नहीं जिसका निर्णय अदालत करेगी.

0 कई बार तो शादी ी नहीं करते हैं

अनुसूचित जाति जनजाति के परिवार की जमीन हड़पनव उस परिवार की लड़की को गा ले जाने वाले तो कई बार तो लड़की से विधिवित शादी ी नहीं करते हैं बस उसे यूँ ही अपने पास रख लेते हैं और उसकी अस्मत लूट लूट कर उसे प्रताडि़त करते हैं तथा पिता व ाइयों को मजबूर करते हैं कि वे अपनी जमीन का हिस्सा उनके नाम कर दें.

लड़की के पिता व ाई किसी कीमत में पुनः लड़की को अपने घर वापस नहीं रखते क्योंकि आदिवासी लोग परंपरा रीति रिवाज के मामले में आज ी कट्टर हैं. मजबूर होकर लड़की को पति के सामने समर्पण करना ही पड़ता है.

0 पुलिस ी नहीं देती साथ

जब आदिवासी लड़की को उसके परिवार वाले पुनः अपने पास रखने को तैयार नहीं होते और पति उसे प्रताडि़त करता है तो वो पुलिस की शरण में जाती है. यहाँ पुलिस वाले उसे उलटा परेशान करना शुरू करते हैं उससे पूछते हैं शादी कब करी जब वह बताती है कि इतने साल पहले हुई तो कहते हैं कि कहाँ शादी की थी वहाँ का प्रमाण पत्र ला, फोटो ला, शादी का कार्ड ला इत्यादि इत्यादि. अब जब पुरूष ने उससे विधिवत शादी की ही नहीं होती है तो प्रमाण पत्र और कार्ड होते ही नहीं और जब महिला ये सब प्रस्तुत नहीं कर पाती तो पुलिस वाले स्वयं महिला पर चारित्रिक लांक्षन लगा उसे गा देते हैं.

दूसरी परिस्थिति में कई बार महिला शादी के कुछ सबूत पेश कर ी देती है तो इन सबूतों का इस्तेमाल पुलिस अपना चंदा बढ़वाने में कर लेती है. हालाकि घरेलू हिंसा महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 बहुत मजबूत है पर इसके तहत मामलों की कायमी बहुत कम होती है फिर इसके दुरूपयोग की संावना ी अधिक है.

0 क्या कहता है कानून

ारतीय कानून कहता है जिस प्रकार जन्म और मृत्यु का पंजीयन होना चाहिये उसी प्रकार शादियों का ी पंजीयन होना ही चाहिये. पहले ारत में शादियों का पंजीयन अनिवार्य नहीं था किन्तु 25 अक्टूबर गुरूवार 2005 में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरिजित पश्यत और एस.एच. कपाडि़या की युगलपीठ ने अपने एक 14 पृष्ठीय फैसले में केन्द्र सरकार और राज्य सरकार को आदेशित किया है कि वे ारत में शादियों का पंजीयन अनिवार्य करें.

इस आदेश के बाद पहले जिले में अपर कलेक्टर या डिप्टी कलेक्टर लेवल का एक मैरिज रजिस्ट्रर होता था पर अब सरकार ने नगरीय क्षेत्रों के लिये नगर पालिका और ग्रामीण क्षेत्रों के लिये सरपंच सचिवों को शादियों के रजिस्ट्रेशन हेतु अधिकृत कर दिया है पर 10 फीसदी लोग ी अपनी शादियों का रजिस्ट्रेशन नहीं कराते हैं और प्रशासन ी इसके लिये पहल नहीं करता है.

0 टूट रही धार्मिक व्यवस्था

ारत में पुरातन काल से हर धर्म में शादी का पंजीयन कराने की व्यवस्था है. हर धर्म में समाज के बीच समाज के रजिस्टर में न केवल विवाह का पंजीयन होता है बल्कि वर पक्ष और वधु पक्ष आपस में जिन उपहारों का आदान प्रदान करते हैं उन्हें ी समाज के सामने प्रदर्शित किया जाता है. धीरे धीरे अंतर्जातीय विवाह होने लगे जिससे समाज में शादी के पंजीयन की प्रक्रिया उतनी ठोंस नहीं रही तो सरकार ने मैरिज रजिस्ट्रेशन वैकल्पिक कर दिया और फिर सुप्रीम कोर्ट ने विवाह के पंजीयन को अनिवार्य ही कर दिया पर उपहारों का रजिस्ट्रेशन अब ी वैकल्पिक ही है सरकार इसे ी अनिवार्य बनाने की योजना बना रही है.

0 उपहार सूचना के लिये ी प्रोत्साहन

इसके अलावा डी.ए.वी.पी. कई बार यह विज्ञापन ी जारी करता है कि शादी के दौरान वर पक्ष और वधु पक्ष आपस में जो उपहारों का आदान प्रदान करते हैं उसकी सूचना ी मैरिज रजिस्ट्रेशन के साथ दें हालाकि उपहारों की सूचना देना अनिवार्य नहीं है पर शादी का पंजीयन जो अनिवार्य है न लोग उसे कराते हैं ऐसे में उपहारों की जानकारी देने का तो सवाल ही नहीं उठता.


0 शहर

आदिवासियों की जमीनों को हड़पने का एक तरीका शादी है जो मुख्यतः गाँवों में प्रचलित है तो दूसरा तरीका शहरी लोगों में प्रचलित है जो दलाल के माध्यम से होता हुआ जाता है जिसमें पटवारी, उप-पंजीयक और कलेक्टर जो कि जिले का सबसे बड़ा राजस्व अधिकारी होता है सब मिले हुए होते हैं.

इस प्रक्रिया में दलाल अहम ूमिका निाता है. वह खरीददार को किसी आदिवासी को धोखे में रखकर या उसकी किसी मजबूरी का फायदा उठाकर उसकी जमीन किसी अमीर को बिकवा देता है. अब नियमों के हिसाब से आदिवासी की जमीन आदिवासी ही खरीद सकता है. इस नियम को काटने के लिये जो अमीर जमीन खरीदता है वह अपने घर में काम कर रहे किसी नौकर या नौकरानी के नाम पर बिना उसे बताये ही जमीन ले लेता है और उसका अंगूठा या हस्ताक्षर वह स्वयं करता है. इस तरह के और ी कई हथकंडे अपनाये जाते हैं. इस तरीके के मूल में या तो आदिवासी को धोखे में रखना होता है या उसकी मजबूरी का फायदा उठाना.

0 इस तरह जिले में आदिवासियों की जमीनों को हड़पने का सिलसिला जारी है.

धोखाधड़ी किये जाने का अपराध धारा 420 के तहत कायम किया जाकर आगे की कार्यवाही प्रारं कर दी गयी है. प्रार्थी रामजी विश्वकर्मा ने पुलिस को बताया है कि वाहन खरीदने के बाद से वह प्रतिमाह 07 किश्तों का ुगतान कर चुका है जिसमें से केवल कंपनी के पास 03 किस्तों का ुगतान प्राप्त हुआ है, शेष 04 किस्त सुशील पांडे द्वारा पैसा लिये जाने के बाद ी जमा नहीं किया गया है. प्रार्थी ने बताया कि उसके द्वारा जमा की गयी किश्तों में पहली बार 36 हजार, दूसरी बार 70 हजार तथा तीसरी बार 01 लाख रूपये कंपनी के खाते में जमा होने बताये गये हैं जबकि शेष 04 किश्तों की रकम 02 लाख 13 हजार जो जमा नहीं है वह आरोपी सुशील पांडे द्वारा हड़प ली गयी है और इसी आधार पर इस 02 लाख 13 हजार की धोखाधड़ी का मामला सुशील पांडे के विरूद्ध दर्ज किया गया.