शनिवार, 25 जून 2011

रिलायंस की बैटरी से चमक रहा जोशी का लट्टू!



रिलायंस की बैटरी से चमक रहा जोशी का लट्टू!

राहुल नहीं मुकेश की जननी के आगे नतमस्तक हैं जोशी

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। सत्ता के गलियारों में यह चर्चा आम है कि केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री सी.पी.जोशी मंत्रीमण्डल में हैं तो युवराज राहुल गांधी की बदौलत। राहुल की पसंद ही उन्हें अब तक टिकाए रखे हुए है, वरना उनका विकेट तो कभी का उड़ चुका होता। अब कांग्रेस की सियासी फिजां में यह सवाल तैर गया है कि क्या जोशी वाकई में राहुल गांधी के आदमी हैं?

कांग्रेस के वरिष्ठ पदाधिकारी ने नाम उजागर न करने की शर्त पर रहस्य पर से पर्दा उठाते हुए कहा कि केंद्रीय मंत्री सी.पी.जोशी मंत्रीमण्डल में अगर स्थान पा सके हैं तो इसके पीछे राहुल गांधी नहीं वरन् मुकेश अंबानी की माता कोकिला बेन हैं। उन्होंने कहा कि जोशी मूलतः नाथ द्वार से हैं। राजस्थान में नाथद्वार मंदिरों के लिए मशहूर है जहां विशेष तौर पर वैष्णव संप्रदाय का एक मंदिर है जिसकी पूजा अर्चना हेतु कोकिला बेन विशेष तौर पर जाया करती हैं।

उक्त नेता ने कहा कि जोशी सालों से अंबानी परिवार के पे रोलपर हैं। यह अलग बात है कि जब वे नाथ द्वार से विधानसभा चुनाव लड़े थे, तब उन्हें पराजय ही हाथ लगी थी। बाद में भीलवाड़ा संसदीय क्षेत्र से वे चुने गए। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा जब भी अंबानीज के व्यवसायिक हितों पर कुठाराघात किया गया तब जोशी ही उनकी ढाल बनकर सामने आए।

कहा जा रहा है कि बेहतरीन परफारर्मेंस दिखाने के बाद भी भूतल परिवहन जैसा मलाईदार विभाग भी कोकिला बेन के इशारे पर ही कमल नाथ के हाथों से लेकर जोशी को दिया गया है। जोशी के करीबी सूत्रों का दावा है कि लोगों को यह भ्रम जोशी मण्डली ने ही फैला रखा है कि जोशी वाकई राहुल गांधी के विशेष कृपा पात्र हैं जबकि असलियत कुछ ओर है।

राजनैतिक इच्छा शक्ति का अभाव से उपजा एमपी का आद्योगिक पिछडापन


राजनैतिक इच्छा शक्ति का अभाव से उपजा एमपी का आद्योगिक पिछडापन

(लिमटी खरे)

देश के हृदय प्रदेश में उद्योग धंधों के लिए उपजाऊ जमीन और माहोल होने के बाद भी सूबे में उद्योग धंधों के नाम पर चंद फेक्टरियां ही हैं। आवागमन के साधन, खनिज संपदा, जल, भौगोलिक स्थिति आदि के बाद भी उद्योगपति मध्य प्रदेश की ओर आकर्षित ही नहीं हो पा रहे हैं। दरअसल मध्य प्रदेश में जनसेवकों और लोकसेवकों का अपना निहित स्वार्थ टेक्सइतना भारी भरकम है कि उद्योगपति चाह कर भी एमपी की ओर रूख नहीं कर पाते हैं, जो अपना निवेश कर चुके हैं उनके अनुभव इतने कसैले हैं कि वे दूसरों को इस सूबे से दूर रहने का ही मशविरा देते हैं। मध्य प्रदेश में छुटभैया राजनेता, मीडिया के दुकानदार, कथित समाज सेवी इन उद्योगपतियों के सूबे में कदम रखते ही उनका दम तोड़ देते हैं। कुछ अनजान बनकर लो प्रोफाईल मंे काम करने वाले कम सेवा करमें ही मलाई ले उड़ते हैं,, पर अनेक उद्योगपति इस काकस में फंसकर दम तोड़ ही देते हैं।

अपने आंचल में आकूत वन एवं खनिज सम्पदा, पर्याप्त जल स्त्रोत और उत्कृष्ट भौगोलिक स्थिति, आवागमन के बेहतरीन संसाधन के बावजूद मध्यप्रदेश राज्य जन प्रतिनिधियों की दुर्बल इच्छााशक्ति चलते औदयोगिक रुप से पिछडता जा रहा है। जबकि मध्यप्रदेश से हाल ही में अलग हुये समीपवर्ती नौनिहाल राज्य छत्तीसगढ खनिज आधारित उद्योगों के बल पर सबसे ज्यादा निवेशक आकर्षित करने में सफल रहा है। आज छत्तीसगढ राज्य गुजरात के बाद निवेषकों की पहली पसंद बना हुआ है जो निश्चित ही प्रतिनिधियों की सकारात्मक सोच और दृढ इच्छाशक्ति से संभव हो सका है।

राज्य सरकार भले ही प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर तथा राजनैतिक राजधानी भोपाल के इर्द गिर्द निवेशकों को आकर्षित करने में सफल हो रही हो पर आजादी के उपरांत मध्य प्रदेश औद्योगिक दृष्टि से पूरी तरह पिछड़ा माना जा सकता है। पीथमपुर, देवास, मंडीदीप आदि कस्बों में औद्योगिक विकास केंद्र (इंडस्ट्रीयल ग्रोथ सेंटर) बने हैं पर बावजूद इसके यह नहीं माना जा सकता है कि मध्य प्रदेश औद्योगिक रूप से समृद्ध हो गया है।

किसी भी उद्योग का आधार मूलतः आवश्यक कच्चा माल ही होता है। मध्यप्रदेश में मुख्यतः कोयला, बाक्साइट, मैग्नीज, हीरा, जिंक, लाइमस्टोन, डोलोमाहट, ग्रेनाइट और लौह अयस्क भरपूर मात्रा में उपलब्ध है किंतु इन खनिजों के खासतौर पर लौह अयस्क के पर्याप्त दोहन की कोई स्थायी नीति या कार्ययोजना आज तक उपलब्ध नहीं है, और इनका दोहन आज भी बंदरबॉट पर आधारित है। मेग्नीज ओर इंडिया लिमिटेड (मायल) के एकाधिकार के कारण सतपुड़ा में छिंदवाड़ा, सिवनी और बालाघाट में निजी कंपनियां कदम रखने से थर्राती हैं।

कुछ थोडे बहुत उद्योग लगे भी तो वे निवेशकों की कार्ययोजना का परिणाम है। प्रदेश में अधिकांश उद्योग आज बीमारू हालत में हैं। सरकारी छूट का लाभ उठाकर प्रदेश में उद्योगपतियों ने दस्तक तो दी किन्तु जैसे ही छूट की अवधि समाप्त हुई वैसे ही निवेशकों ने अपना बोरिया बिस्तर समेट लिया। अस्सी के दशक में राजाधिराज इंडस्ट्रीज ने सिवनी जिले में वनस्पिति घी का उत्पादन आरंभ किया था। सांसदों और विधायकों के असहयोग के चलते इसका कारखाना आज अनाज रखने के लिए वेयर हाउस का काम कर रहा है। इसे जयललिता के करीबी समझे जाने वाले अग्नि ग्रुप ने खरीदा था। बीमारू उद्योगों को पटरी पर लाने के लिए सरकारी इमदाद का फायदा उठाने के बाद अब इस कारखाने में महज शेड ही रह गया है।

जबकि आवश्यक्ता इस बात की थी कि छत्तीसगढ राज्य बनने के बाद राज्य सरकार प्रदेश के खनिज दोहन की कोई स्थायी नीति बनाती और उस पर आधारित उद्योगों को बढावा देती। वर्तमान सरकार का खनिज साधन मंत्रालय इस बात से भी अनभिज्ञ है कि राज्य में वास्तव में किस-किस तरह का कितना खनिज उपलब्ध है। सतपुड़ा की घनी वादियों में इतने प्रकार की औषधियां विद्यमान हैं जिनका उपयोग कर मानव के लिए जीवन रक्षक आयुर्वेदिक औषधियों का कारखाना खोलने उद्योगपतियों को अकर्षित किया जा सकता है। विडम्बना ही कही जाएगी कि सतपुड़ा में छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र के सांसद कमल नाथ ने केंद्र में वाणिज्य और उद्योग मंत्री रहते हुए भी आदिवासी बाहुल्य अपने संसदीय क्षेत्र के आदिवासियों के लिए भी इस तरह का कोई प्रयास नहीं किया।

प्रदेश में बेलगाम दौड़ती अफसरशाही की एक बानगी यह भी है कि ‘‘डेस्टिनेशन मध्यप्रदेश‘‘ में खनिज साधन विभाग द्वारा जारी आंकडों में भी लौह अयस्क की उपलब्धता प्रदर्षित नहीं की गई है,। जो इस बात का घोतक है कि शासन इस दिशा में गंभीर नहीं है, जबकि इस पर आधारित बडे उद्योगों को लगाने के लिये लगभग 4 निवेशक अपनी मंशा जाहिर कर चुके हैं। भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा जारी ‘‘मध्यप्रदेश का भू-विज्ञान एवं खनिज संसाधन‘‘ संख्या 30, भाग 11, द्वितीय परिशोधित संस्करण जो भारत सरकार के आदेश से प्रकाशित है के अनुसार राज्य के ग्वालियर और जबलपुर जिले में क्रमशः 132.25 मिलियन टन और 38.9 मिलियन टन लौह अयस्क भंडार उपलब्ध है।

इसी तरह सागर जिले में उपलब्ध लौह अयस्क में लौह प्रतिशत 67 तक है इसके अलावा बैतूल, देवास, खरगौन, मंदसौर, नरसिहपुर, रायसेन, राजगढ, शिवपुरी एवं सीधी जिलों में भी पुष्ट लौह भंडार उपलब्ध है जिनका दोहन इस पर आधारित उद्योग ना होने से नहीं किया जा सका है।

मध्य प्रदेश राज्य के कटनी एवं जबलपुर जिले मेें बांटे गये खनिपट्टो से बडी मात्रा में लौह अयस्क निर्यात हो रहा है जो निश्चित एवं निर्विवाद रूप से स्थापित करता है कि उपलब्ध खनिज आद्योगिक उपयोग का है। इन्ही जिलों में ‘‘बलू डस्ट‘‘ भी उपलब्ध है जिसका उपयोग विदेशों में ‘‘सिंटर प्लांट‘‘ के माध्यम से इस्पात बनाने में ही रहा है। मध्य प्रदेश सरकार द्वारा आदिवासी बाहुल्य सिवनी जिले की विशुद्ध आदिवासियों की जमात वाली कहानीपास (घंसौर) तहसील में उद्योग जगत के सिरमोर थापर ग्रुपके लिए एक पावर प्लांट की अनुमति दी गई है। रानी अवंती सागर परियोजना (बरगी बांध) के मुहाने पर बनने वाले इस प्लांस से उड़ने वाली राख निश्चित तौर पर बरगी बांध के जल भराव क्षेत्र में रोजाना 3416 टन राख तलहटी में समाती जाएगी जिसकी परवाह किसी को भी नहीं है। कुछ ही सालों में बरगी बांध एक उथले तालाब मे तब्दील हो जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

वैसे अगर यदि राज्य सरकार अन्य समीपवर्ती राज्यों की नीतियों के अनुरुप प्रयास करे और इसका निर्यात प्रलिबंधित करे तो उपलब्ध लौह अयस्क पर आधारित वृहद कारखाने 30 सालों तक निरंतर चल सकते है । इन पर आधारित उद्योेग लग जाने पर इस खनिज के छोटे-छोटे ‘‘पॉकेट्स‘‘ भी व्यवहारिक हो जाऐंगे और खनन और दोहन से राजस्व और रोजगार बढेगा। हो सकता है सरकार का मानना हो कि उपलब्ध लौह अयस्क भंडारों में अधिकांश में लौह प्रतिशत कम है किंतु आज उद्योगों के पास विकसित तकनीक उपलब्ध है जैसे बेनीफिशिएशन प्लांट लगाकर इसका प्रतिशत प्रयोगानुरुप किया जा सकता है एवं बेकार जाने वाली ‘‘फाइन्स‘‘ को सिंटर प्लांट लगाकर पुर्नउपयोग किया जा सकता है।

इन सभी संसाधनों को अंगीकार करने वाले उद्योगों को इसके उत्खनन की जिम्मेदारी सौपी जा सकती है। राज्य में महाकौशल का कटनी  और बुंदेलखण्ड का छतरपुर जिला इन उद्योगों के लिये एक उपयुक्त स्थल हों सकता है जहां पानी, बिजली, सडक एवं कोयला 100 किमी. के दायरे में उपलब्ध है। इन पर आधारित संयंत्रो में कैप्टिव पावर प्लांट अनिवार्य करके सरकार अपनी विद्युत उपलब्ध कराने की बाध्यता से भी बच सकती है।

राज्य के लगभग 200 मिलियन टन लौह अयस्क भंडार को विधिवत ढंग से कार्ययोजना बनाकर इस पर आधारित उदयोगों को प्रश्रय देने से राज्य सरकार को अप्रत्याशित लाभ हो सकता है मजे की बात तो यह है कि इस संपदा के बारे में सरकार को जानकारी ही नहीं है।

राज्य में लौह अयस्क पर आधारित कोई भी वृहद संयंत्र कार्यरत नही है जबकि पडोसी राज्यो छत्तीसगढ, महाराष्ट्र और उडीसा में अनेक संयंत्र कार्यरत है। राज्य के शहडोल जिले में उत्कृष्ट दर्जे का कोकिंग कोल उपलब्ध है, संलग्न क्षेत्र मे लौह अयस्क भी उपलब्ध है, यदि जन प्रतिनिधि एक जुट हो जाए और दृढ इच्छााशक्ति प्रदर्शित कर सकें, तो इस क्षेत्र में इन खनिजों पर आधारित एक वृहद ‘‘पिग आयरन‘‘ संयत्र स्थापित हो सकता है।

हालात देखकर लगता तो है कि केंद्र सरकार की मंशा भी कमोबेश यही है। यदि सरकार इस क्षेत्र में सकारात्मक रवैया अपनाती है तो मध्यप्रदेश राज्य क्षेत्रीय असंतुलन से भी बचा रहेगा और विकास का सारा श्रेय वर्तमान नेतृत्व को ही प्राप्त होगा। आशा की जानी चाहिये राज्य शासन 200 मि.टन लौह अयस्क भंडार के दोहन से प्राप्त होने वाले राजस्व की दिशा में सुनियोजित और कारगर पहल करते हुऐ उस पर आधारित उदयोगों को बढावा देगी।
मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार चुनावों के आसपास निवेशकों को आकर्षित करने की गरज से कुछ बैठकों का आयोजन कर जबर्दस्त प्रपोगंडा करती है, किन्तु जब इन्हें अमली जामा पहनाने की बारी आती है तो शिव सरकार मौन साध लेती है। मध्य प्रदेश सरकार का जनसंपर्क महकमा इस बारे में खामोशी अख्तिायार कर लेता है कि शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में जितने एमओयू पर हस्ताक्षर हुए उनमें से कितने पर काम आरंभ हुआ और कितनों पर पूरा हो सका है? जाहिर है इसमें दस फीसदी भी लक्ष्य को नहीं पाया जा सका है इसलिए सरकार की उपलब्धियों के बखान हेतु पाबंद जनसंपर्क विभाग मुंह पर पट्टी ही बांधे हुए है।

कमल नाथ बन सकते हैं रेल मंत्री


मदाम तय करेंगी फेरबदल का आकार!

फ्री हेण्ड न मिल पाने से दुखी हैं मनमोहन

सहयोगियों ने मनमोहन की छवि कर दी मटियामेट

अनेक मंत्रियों को बदलना चाह रहे वजीरे आजम

एमपी कोटा भी हो सकता है जबर्दस्त तरीके से प्रभावित

विस्तार तय करेगा राहुल का भविष्य का रोड़ मेप

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह और कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी के बीच हुई लगभग ढाई घंटे की मुलाकात के बाद अब मंत्रीमण्डल में फेरदबल की सुगबुगाहट एक बार फिर तेज हो गई है। वजीरे आजम चाहते हैं कि वे भ्रष्ट और नाकार मंत्रियों को हटाकर अपनी छवि को पुनः साफ सुथरा बनाएं किन्तु इसके लिए उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष से फ्री हेण्ड की दरकार है। उधर कहा जा रहा है कि यह तो मदाम (श्रीमति सोनिया गांधी) की इच्छा पर ही है कि यह फेरबदल बड़ा होगा या छोटा। इस मंत्रीमण्डल विस्तार से इस बात के संकेत मिल सकेंगे कि कांग्रेस महासचिव राजा दिग्विजय सिंह की राहुल को पीएम बनाने की बयानबाजी कब आकार ले सकेगी।

प्रधानमंत्री कार्यालय के सूत्रों का कहना है कि वजीरे आजम चाह रहे हैं कि पवन बंसल, पलनिअप्पम चिदम्बरम, वीरप्पा माईली, आनंद शर्मा, गुलाम नवी आजाद, कांतिलाल भूरिया, सी.पी.जोशी, अश्विनी कुमार आदि को या तो बाहर का रास्ता दिखा दिया जाए या विभागों में फेरबदल कर कम महत्व के मंत्रालय सौंपे जाएं। इसके अलावा कपिल सिब्बल से भी मानव सांसाधन मंत्रालय वापस ले लिया जाए।

चिदम्बरम पर बाबा रामदेव से निपटने में असफल होने का आरोप है जिससे सरकार की खासी किरकिरी हुई है। इसके साथ ही साथ उन पर टूजी मामले में दाग भी लग रहे हैं। चिदंबरम का स्थान लेने के लिए गुलाम नवी आजाद आतुर दिख रहे हैं। उधर सुशील कुमार शिंदे चाह रहे हैं कि वे गृह मंत्रालय की कमान संभालें। सोनिया मण्डली चाह रही है कि कपिल सिब्बल से मानव संसाधन विभाग वापस लेकर परिवार के वफादार जनार्दन द्विवेदी या अस्कर फर्नाडिस के हाथों सौंप दिया जाए ताकि राहुल के प्रधानमंत्री बनने के मार्ग शनैः शनैः प्रशस्त किए जा सकें।

पीएम को वीरप्पा मोईली फूटी आंख नहीं सुहा रहे हैं, किन्तु वे दस जनपथ के करीबी हैं सो पीएम का उन पर बस नहीं चल पा रहा है। हिमाचल चुनाव तक वीरभद्र को झेलना मनमोहन की मजबूरी है। यूपी मंे बहिराईच से दलित सांसद कमल किशोर को कैबनेट मंत्री बनवाना चाह रहे हैं युवराज राहुल गांधी साथ ही बेनी प्रसाद वर्मा को भी कैबनेट का दर्जा दिलवाना चाह रहे है वे। इसके लिए वर्मा को इस्पात मंत्रालय से रूख सती डालनी होगी।

रिलायंस से करीबी का भोगमान मुरली देवड़ा को भोगना पड़ सकता है। उनके स्थान पर किसी अन्य को उपकृत किया जा सकता है। उधर पीएम चाहते हैं कि गुजरात की सांसद अलका क्षत्री को मंत्री मण्डल में शामिल किया जाए, किन्त अलका का ऋणात्मक पहलू यह है कि वे सोनिया के आंख नाक और कान बने अहमद पटेल के विरोधी खेमे से हैं।

सूत्रों की मानें तो इस फेरबदल में मध्य प्रदेश कोटा काफी हद तक प्रभावित होने की उम्मीद है। वर्तमान में मध्य प्रदेश से लोकसभा के चार सदस्य कमल नाथ, कांति लाल भूरिया, ज्योतिरादित्य सिंधिया और अरूण यादव केंद्र में मंत्री हैं। कहा जा रहा है कि इस फेरबदल में कांतिलाल भूरिया को ड्राप किया जा सकता है तथा कमल नाथ का विभाग एक बार फिर बदला जा सकता है, भूतल परिवहन मंत्रालय के उनके परफारमंेस को देखकर त्रणमूल कांग्रेस से रेल मंत्रालय वापस लेकर कमल नाथ को सौंपा जा सकता है। इसके साथ ही साथ चार बार राज्यसभा के रास्ते संसदीय सौंध पहुंचने वाले सुरेश पचौरी को भी सरकार में शामिल कराकर उन्हें पांचवी बार भी राज्य सभा से संसद में भेजा जा सकता है।

उधर कांग्रेस की नजरों में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी की नजरें उत्तर प्रदेश महासमर पर टिकी हुईं हैं इसलिए वे यूपी से आधिक चेहरों को लाल बत्ती से नवाजने में विश्वास रख रहे हैं। कांग्रेस के सियासी गलियारों के भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि सलमान खुर्शीद को बेहतर विभाग दिलवाने के लिए जबर्दस्त लाबिंग चल रही है, क्योंकि वे अल्पसंख्यक मामलों से आजिज आ चुके हैं। उधर मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष एवं पूर्व राज्य सभा सांसद सुरेश पचौरी भी पुनर्वास के लिए दिन रात एक किए हुए हैं। उनके लिए भी लाल बत्ती के जुगाड़ में अहमद पटेल संभावनाएं टटोल रहे हैं।
युवाओं (राजनीति में युवा अर्थात 45 से 65) को आगे लाने के राहुल और दिग्विजय सिंह के संयुक्त एजेंडे के तहत राजीव शुक्ला, जगदंबिका पाल, कमल किशोर, मनीष तिवारी आदि के नामों पर चर्चाएं गर्म हैं। कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ के सूत्रों का कहना है कि मनमोहन सिंह ने अपनी समस्याओं से सोनिया गांधी को आवगत कराकर, अपनी और पार्टी की गिरती साख पर चिंता जताते हुए उनसे फ्री हेण्ड मांगा है, जिस पर सोनिया ने मौन रहना ही उचित समझा है।