मंगलवार, 17 मई 2011

कर्नाटक प्रकरण: कटघरे में राजनैतिक शुचिता



कर्नाटक प्रकरण: कटघरे में राजनैतिक शुचिता

 (लिमटी खरे)


हाशिए में गए कांग्रेस के पूर्व कानून मंत्री हंसराज भारद्वाज पुनः सक्रिय राजनीति में लौटने लालायित दिखाई दे रहे हैं। जानकारों का मानना है कि वे अनाप शनाप फैसले इसलिए ले रहे हैं, ताकि कांग्रेस आलाकमान उनका राजनैतिक वनवास समाप्त कर केंद्रीय मंत्री मण्डल में उन्हें वापस बुला ले। गौरतलब होगा कि पूर्व मंे बूटा सिंह ने राज्यपाल रहते कांग्रेस को नीचा दिखाया बाद में उन्हंे वापस बुला लिया गया था। यह अलहदा बात है कि उनका राजनैतिक पुनर्वास पूरी तरह से नहीं हो सका था। भाजपा जिस तरह से आक्रमक हो रही है, उसे देखकर लगने लगा है कि जल्द ही भारद्वाज की राजभवन से बिदाई तय है। इस घिनौने खेल में राजनैतिक शुचिता और राजभवन की गरिमा तार तार हुए बिना नहीं है। विधि मामलों के महारथी हंसराज भारद्वाज से इस तरह के कदम की उम्मीद कतई नहीं की जा सकती है।

कर्नाटक में जो कुछ हो रहा है, उसे समूचा देश देख रहा है। पांच राज्यों के चुनाव भी समाप्त हो चुके हैं इसलिए इस वक्त बर्निंग टापिक कर्नाटक ही है। अगर चुनाव के चलते यह हुआ होता तो देश की निगाहें इस पर ज्यादा न जाती और मीडिया भी इस खबर को ज्यादा तवज्जो नहीं देता। वस्तुतः जल्दबाजी में कर्नाटक के महामहिम राज्यपाल हंसराज भारद्वाज ने सूबे में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर डाली,जिसे आश्चर्यजनक ही माना जा रहा है। भारद्वाज ने येदियुरप्पा को हटाने की कोशिश तीसरी मर्तबा की है, इससे साफ है कि उनका एक सूत्रीय एजेंडा कर्नाटक में तख्ता पलट ही है।

अमूमन माना जाता है कि महामहिम राज्यपाल अपने विवेक के हिसाब से ही काम करते हैं। पिछले दो तीन दशकों का इतिहास खंगालने पर यह तथ्य उभरकर सामने आता है कि केंद्र सरकार या अपने आकाओं को प्रसन्न करने की गरज से राज्यपाल आकाओं के इशारे पर ठुमके लगाते नजर आए हैं। इस बार भी बिना सोनिया गांधी या उनकी कोटरी की हरी झंडी के यह संभव नहीं दिखता। हंसराज भारद्वाज कानून मंत्री रहे हैं, और खुद भी कानून के खासे जानकार हैं। इसलिए यह कहना गलत होगा कि उन्होंने इस मामले के सारे पहलुओं पर विचार न किया हो।

एक नेता के रूप में हंसराज भारद्वाज काफी सजग, होशियार और सोच समझकर कदम उठाने वालों में गिने जाते हैं। हो सकता है कि कर्नाटक प्रकरण से वे एक तीर से कई निशाने साध रहे हों। वैसे भी किसी भी नेता को अगर राज्यपाल बनाकर भेजा जाता रहा है तो यह माना जाता था कि उसका राजनैतिक कैरियर समाप्त हो गया है। पूर्व केंद्रीय मंत्री कुंवर अर्जुन सिंह ने इस मिथक को तोड़ा था। मध्य प्रदेश में दूसरी मर्तबा मुख्यमंत्री बनने के उपरांत जब उन्हें दूसरे ही दिन पंजाब का गर्वनर बनाया गया था, तब लोग यही कह रहे थे कि अर्जुन सिंह का खेल खत्म, किन्तु बाद में वे सक्रिय राजनीति में लौटे और सालों तक केंद्र की राजनीति की।

बहरहाल उच्चतम न्यायालय द्वारा भाजपा के 11 विद्रोही और पांच निर्दलीय विधायकों को अयोग्य करार करने संबंधी विधानसभा अध्यक्ष के फैसले को खारिज कर दिया, जिससे युदियुरप्पा को कड़ा झटका लगा। इस फैसले के हिसाब से कर्नाटक के लाट साहेब को सूबे में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश करना अनुचित इसलिए है क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने अपना फैसला सुनाया है अब कोई सरकार अल्पमत में है या बहुमत में इसका फैसला करने का अधिकार सदन को ही है।

विधि अनुसार अगर राज्यपाल को लग रहा था कि येदियुरप्पा सरकार अल्पमत में है तो महामहिम राज्यपाल को चाहिए था कि वे मुख्यमंत्री को बहुमत साबित करने को कहते। कथित रूप से हड़बड़ी में हंसराज भारद्वाज ने राष्ट्रपति शासन की सिफारिश ही कर डाली। इस बात में कोई संदेह की गुंजाईश नहीं है कि राज्यपाल के इस कदम से राजनैतिक शुचिता और राजभवन की गरिमा को ठेस पहुंची है।

इस पूरे प्रहसन में न्यायालय के आदेश के बाद जिस तेजी और तत्परता से राज्यपाल हंसराज भारद्वाज ने विशेष रिपोर्ट तैयार कर राष्ट्रपति शासन की सिफारिश की है उसी मुस्तैदी के साथ बागी विधायकों ने कथित तौर पर बिना शर्त युदियुरप्पा को समर्थन देने की चिट्ठी तैयार कर दी। कहते हैं राज्यपाल ने अपनी रिपोर्ट में छः अक्टूबर 2010 के उस ज्ञापन को आधार बनाया है जिसमें विधायकों ने युदियुरप्पा से समर्थन वापस लेने की बात कही थी। 10 अक्टूबर को राज्यपाल भारद्वाज ने सरकार की बर्खास्तगी की सिफारिश की थी, जिसे केंद्र ने लौटा दिया था।

इस बार चूंकि भाजपा पर यह सीधा वार किया गया है तो भाजपा तिलमिला गई है। वैसे भी गड़करी के पुत्र के विवाह समारोह की सारी जवाबदारियां (आर्थिक तौर पर) येदियुरप्पा द्वारा उठाए जाने के आरोप लगते रहे हैं, इस आधार पर गड़करी का येदियुरप्पा प्रेम बढ़ना स्वाभाविक ही है। भाजपा इस मामले में फ्रंट फुट पर आ गई है तो कांग्रेस अब रक्षात्मक मुद्रा में दिखाई पड़ रही है। कांग्रेस द्वारा भी विधि विशेषज्ञों से इस मामले में राय शुमारी की जा रही होगी। इस बात का रास्ता निकालने का प्रयास किया जा रहा होगा कि लाट साहेब हंसराज भारद्वाज के कदम को जायज ठहराया जा सके। 

भारद्वाज के इस तरह के कदम से नितिन गड़करी को कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोलने का मौका अवश्य ही मिल गया है, किन्तु भाजपा कांग्रेस को घेरने मंे कितने सफल हो पाते हैं यह बात भविष्य के गर्भ में ही है। फिलहाल तो गड़करी ने कांग्रेस को मशविरा दिया है कि बेहतर होगा भारद्वाज को राज्यपाल पद से हटाकर कांग्रेस कार्यसमिति का विशेष आमंत्रित बना दिया जाए। 

उमश्री के स्वास्थ्य में गिरावट


उमश्री के स्वास्थ्य में गिरावट

अंतिम सांस तक गंगा के लिए संघर्ष का कौल

नई दिल्ली (ब्यूरो)। गंगा की सफाई के लिए अनशनरत फायर ब्रांड साध्वी उमा भारती के स्वास्थ्य में गिरावट दर्ज की गई है। हरिद्वार में चंडी घाट पर अनशनरत उमा भारती ने अंतिम सांस तक गंगा के लिए संघर्ष करने की बात कही है। उमा ने आरोप लगाया है कि गंगा की सफाई के प्रति कांग्रेसनीत केंद्र और राज्य सरकर गंभीर नहीं है।
प्रेम सेवा मिशन के अनशन स्थल पर मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने कहा कि गंगा माता के लिए अगर उन्हें अपने प्राणों की आहूति भी देनी पड़ी तो उन्हें गर्व होगा। उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड से बड़ी तादाद में आए लोगों को संबोधित करते हुए उमा भारती ने कहा कि देश की सरकारें गंगा के साथ लंबे अर्से से घिनौना खिलवाड़ कर रही हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि इस मामले में आश्वासनों की तो लंबी फेहरिस्त है किन्तु कार्य रूप में परिणित आश्वासनों की तादाद नगण्य ही है। उमा भारती ने कहा कि इस मामले में उनका मकसद राजनीति करना नहीं वरन् गंगा को बचाना है।

सत्ता के कंेद्र से मलयाली लाबी का दबदबा घटा


शीर्ष पदों की दौड़ से एमपी बाहर

मध्य प्रदेश के नौकरशाहों के लिए लामबंद नहीं हैं जनसेवक

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। भारतीय प्रशासनिक सेवा की एमपी काडर की वरिष्ठ अधिकारी अलका सिरोही अब कैबनेट सचिव की दौड़ में पिछड़ती दिख रही हैं। वहीं गृह और रक्षा सचिव पदों के लिए जोड़तोड़ में एमपी काडर के आईएएस पिछड़ते ही नजर आ रहे हैं। इस बार जो नाम सामने आ रहे हैं, उसे देखकर आभास होने लगा है कि देश के की पोस्ट पर अब मलयाली लाबी का दबाव कम होता जा रहा है।
हाल में कैबनेट, रक्षा और गृह सचिव के रिक्त होने वाले पदों के लिए जो नाम सामने आए हैं उनमंे कैबनेट सचिव के.एम.चंद्रशेखर के स्थान पर अलका सिरोही से आगे पुलक चटर्जी और अजित सेठ के नामों की चर्चा हो रही है। वहीं गृह सचिव जिस पर जी.के.पिल्लई विराजे हैं जैसे महत्वपूर्ण पद के लिए बिहार काडर के 1975 बैच के अधिकारी राज कुमार सिंह, मणिपुर काडर के 76 बैच के अनवर अहमद, हरियाणा काडर की 76 बैच की अनिता चैधरी, सी बैच के बिहार काडर क शशिकांत शर्मा के नामों की चर्चाएं हैं।
जुलाई में प्रदीप कुमार की सेवानिव्त्ति के कारण रिक्त होने वाले रक्षा सचिव पद के लिए शशि कांत शर्मा, यूपी के 76 बैच के पी.के.मिश्रा के नाम दौड़ में सबसे आगे हैं। कैबनेट सेकेरेटरी चंद्रशेखर 13 जून, गृह सचिव पिल्लई 30 जून तो रक्षा सचिव प्रदीप कुमार 31 जुलाई को सेवानिवृत होने वाले हैं।

राजमार्गों पर अब चैबीसों घंटे एम्बूलेंस सेवा


राजमार्गों पर अब चैबीसों घंटे एम्बूलेंस सेवा

पिछले साल डेढ़ लाख से अधिक लोग मारे गए सड़क हादसों में

हर पचास किलोमीटर पर तैनात होंगी एम्बूलेंस

नई दिल्ली (ब्यूरो)। स्वर्णिम चतुर्भुज और उत्तर दक्षिण एवं पूर्व पश्चिम चतुष्गामी पथ भले ही अटल सरकार की महात्वाकांक्षी परियोजना रही हो पर कांग्रेसनीत संप्रग सरकार के कार्यकाल में यह परवान चढ़ रही है। हेमा मालिनी के गाल के मानिंद बनने वाली इन सड़कों के बारे में कहा जाता है कि इन पर चलने में पेट का पानी भी नहीं हिलता। जाहिर है गति बढ़ेगी और दुर्घटनाएं भी। इन दुर्घटनाओं से बचने के लिए केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्रालय ने नई कार्ययोजना तैयार की है जो 30 मई से लागू हो जाएगी।
सरफेस ट्रांसपोर्ट मिनिस्ट्री के सूत्रों का कहना है कि सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों की तादाद में तेजी से होने वाले इजाफे पर विभाग चिंतित है और विभाग ने इस हेतु चैबीसों घंटे राष्ट्रीय राजमार्ग पर एडवांस लाईफ सपोर्ट एंबूलेंस की तैनती करने का मन बनाया है। नई योजना के अनुसार हर पचास किलोमीटर पर इस तरह की एंबूलेंस तैनात होगी। इसके लिए 400 एम्बूलेंस को अस्पतालों से निकालकर सड़कों पर पहुंचाया जाएगा।
इन एंबूलेंस की सही स्थिति का पता लगाने के लिए इन्हें जीपीएस से सुसज्जित किया जाएगा। इनमें आक्सीजन, डाक्टर, नर्स, पैरामेडिकल स्टाफ और अन्य उपकरण भी होंगे। सड़कों की लंबाई को देखते हुए विभाग बड़ी तादाद में एम्बूलेंस खरीदने का मन बना रहा है।
गौरतलब है कि 2009 में भारत में लगभग साढ़े चार लाख सड़क हादसों में एक लाख 25 हजार 864 लोग मारे गए थे। वर्ष 2010 में यह आंकड़ा पौने दो लाख तक पहुचने का अनुमान है। यहां उल्लेखनीय होगा कि एक अनुमान के अनुसार दुनिया के चैधरी अमरिका में हर साल पांच लाख के करीब सड़क दुर्घटनाएं होती हैं, किन्तु उनमें मरने वालों की तादाद महज पचास हजार के लगभग ही होती है।