सोमवार, 24 जनवरी 2011

भारद्वाज के तीर के मायने

कहां जाकर लगेगा भारद्वाज का तीर

(लिमटी खरे)

कर्नाटक में महामहिम राज्यपाल हंसराज भारद्वाज ने मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा के खिलाफ तलवार तानकर भले ही कांग्रेस का हित साधा हो पर उनके इस तरह के कदम से संवैधानिक विवाद आरंभ होना स्वाभाविक है। भारत गणराज्य की स्थापना के साथ ही साथ देश के अंदर जिस तरह की संवैधानिक व्यवस्था को लागू किया गया है, उसके तहत लाट साहेब यानी राज्यपाल को इस तरह की सिफारिश करने का अधिकार शायद नहीं हैं। मूलतः राज्यपाल मंत्रीमण्डल की सिफारिश पर ही काम करता है, मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा के मंत्रीमण्डल ने राज्यपाल से गुहार लगाई थी कि मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति न दी जाए। इसके पीछे मंत्रीमण्डल का तर्क था कि कर्नाटक के लोकायुक्त के साथ ही साथ सूबाई सरकार द्वारा गठित एक न्यायिक जांच आयोग भी इसकी जांच में लगा हुआ है। कर्नाटक के लाट साहेब हंसराज भारद्वाज मंझे हुए राजनेता हैं, इस बात में कोई शक नहीं, वे मध्य प्रदेश कोटे से राज्य सभा सदस्य रहते हुए केंद्र में कानून मंत्री रह चुके हैं। उनके अनुभव और काबिलियत पर किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए, किन्तु विधि द्वारा स्थापित परंपराओं का पालन उन्हें हर हाल में करना ही होगा। भारद्वाज ने दो अधिवक्ताओं द्वारा दायर याचिका के आधार पर मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति प्रदान कर दी है। हो सकता है भारद्वाज का निर्णय नैतिकता के तकाजे पर खरा उतरे पर भारत गणराज्य में स्थापित विधि मान्यताओं के अनुसार विशेषज्ञ इस पर उंगली उठा ही रहे हैं। पहले भी कुछ लाट साहबों द्वारा इसी तरह के प्रयास किए जा चुके हैं। वस्तुतः राज्यपाल को जनसेवक के खिलाफ मुकदमा चलाने देने की अनुमति देने का अधिकार है, पर आम धारणा है कि राज्यपाल चूंकि राजनैतिक परिवेश से आते हैं अतः वे पूरी ईमानदारी से इस तरह की अनुमति देने के बजाए पूर्वाग्रह से ग्रसित ज्यादा नजर आते हैं।

मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा के मामले में अब कांग्रेस और भाजपा एक दूसरे के सामने ही दिखाई पड़ रही हैं। कांग्रेस के तेवर तीखे हैं, उसका कहना है कि राज्यपाल ने सही किया है। कांग्रेस के अनुसार किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री या मंत्रीमण्डल के किसी भी सदस्य के अनाचार, कदाचार या भ्रष्टाचार अथवा अनैतिक आचरण के मामलों में भारत का संविधान सूबे के राज्यपाल को स्वविवेक से फैसला लेने की इजाजत देता है। दूसरी तरफ भाजपा भी मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा के बचाव में खड़ी दिखाई दे रही है। भाजपा की दलील है कि राज्य का राज्यपाल हर हाल में हर काम के लिए मंत्रीमण्डल की सलाह से बंधा हुआ है। जब मंत्रीमण्डल ने मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा पर मुकदमा न चलाने की सिफारिश की थी, तब राज्यपाल हंसराज भारद्वाज ने कैसे मंत्री मण्डल की सिफारिश को दरकिनार कर दिया। कुछ भी हो पर यह मसला बड़ा ही गंभीर है और इस पर राष्ट्रव्यापी बहस की दरकार है कि कोई राज्यपाल किसी भी मुख्यमंत्री के भ्रष्टाचार अथवा अनैतिक आचरण को आखिर किस सीमा तक बर्दाश्त करे। भाजपा मानसिकता के लोग लाट साहेब के इस कदम को गलत तो कांग्रेसी पृष्ठभूमि वाले इसे सही ठहरा रहे होंगे। आज आवश्यक्ता इस बात की है कि बहस इस पर हो कि क्या राज्यपाल को मंत्री मण्डल की सिफारिश से इतर जाकर स्व विवेक से स्वतंत्र तौर पर फैसला लेने का हक है?

मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा के खिलाफ जिस तरह का वातावरण कांग्रेस बनाना चाह रही है, राज्य की स्थितियां देखकर लगता नहीं कि कांग्रेस अपने मंसूबों में कामयाब हो पा रही है। मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा के समर्थन में राज्य की भाजपा द्वारा शनिवार को आहूत कर्नाटक बंद को मिली आशातीत सफलता ने कांग्रेस के रणनीतिकारों के होश उड़ा दिए होंगे। भले ही राज्य में सरकारी मशीनरी पुलिस और प्रशासन के सहयोग से बंद कराने की बातें प्रकाश में आ रहीं हों पर कर्नाटक राज्य की जनता ने जिस तरह का जनता कफर््यू लगाया उससे लगने लगा है कि मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा पर लगे आरोंपों में बहुत दम नहीं है, या जनता को उन आरोपों से बहुत सरोकार नहीं है। कमोबेश यही स्थिति मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ कांग्रेस द्वारा उठाए गए डंपर मामले में हुआ था। कांग्रेस ने एम पी की जनता को शिवराज के डंपर मामले से रूबरू करवाया। कमोबेश हर किसी की राय बनी कि महज चार डंपर के लिए कोई मुख्यमंत्री इस स्तर तक नहीं जाएगा। बाद में कांग्रेस की अपनी ही कार्यप्रणाली के चलते मध्य प्रदेश में डम्पर मामले की हवा ही निकल गई थी।

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा पर आरोप है कि उन्होंने अपने अनेक रिश्तेनातेदारों को मंहगी सरकारी जमीन सस्ती दरों पर बांट दी है। मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा ने अपने उपर लगे आरोपों को न केवल स्वीकारा वरन् उन जमीनों को वापस भी करवा दिया। मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा का दावा है कि उन्होंने अपने रिश्तेदारों को जमीनें बांटकर कोई अनैतिक काम नहीं किया है। कोई भी मुख्यमंत्री अपने विशेषाधिकार का प्रयोग कर सरकारी जमीन किसी को भी आवंटित कर सकता है, यह गैरकानूनी किसी भी दृष्टिकोण से नहीं कहा जा सकता है। इसके साथ ही साथ उनके मंत्रीमण्डल ने तो यहां तक कहा है कि अभी जांच जारी है, किसी को भी दोषी करार नहीं दिया गया है। प्रथम दृष्टया यह भ्रष्टाचार का मामला बनता ही नहीं है। इन सारी स्थिति परिस्थितियों में महामहिम राज्यपाल द्वारा किस बिनहा पर मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दे डाली।

बहरहाल जो भी हो राज्यपाल हंसराज भारद्वाज ने मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा के खिलाफ जांच की अनुमति देकर अनेक अनुत्तरित प्रश्न खड़े कर दिए हैं। अब यक्ष प्रश्न तो ये हैं कि क्या राज्य के मंत्रीमण्डल की सलाह को धता बताकर राज्यपाल स्वविवेक से निर्णय ले सकता है? क्या मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा के खिलाफ अनुमति मिलने के बाद वे अपने पद पर बने रह सकते हैं? मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा निर्वाचित नेता हैं और सूबे की जनता ने बंद रखकर उन पर भरोसा जताया है, तब क्या राज्यपाल का निर्णय सही है?, एक तरफ लगता है कि राज्यपाल का भरोसा मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा की सरकार पर से उठ गया है दूसरी और भाजपा के आव्हान पर जनता द्वारा किया गया बंद दर्शा रहा है कि वह अब भी अपने निजाम पर पूरा भरोसा जता रही है। कुल मिलाकर अच्छा मौका है, केंद्र सरकार को चाहिए कि सूबों में बिठाए जाने वाले राज्यपालों को कठपुतली न बनने दे, संविधान में संशोधन कर राज्यपाल के अधिकारों को बढ़ाए ताकि वे हाथी के दिखाने वाले दांतों के बजाए खाने वाले दांत बनें। अगर एसा नहीं है तो फिर किसी भी राज्य में रबर स्टेंप संवैधानिक पद का आखिर मतलब ही क्या है?

टीम सोनिया में दिखेगी राहुल की परछाईं

सोनिया बना रहीं हैं राहुल के लिए रोड़मेप

सरकार के फेरबदल पर एलायंस का साया, किन्तु संगठन में सोनिया दिखाएंगी अपनी ताकत

केरल, तमिलनाडू, बंगाल, असम और पाण्डिचेरी चुनाव होंगे निशाने पर

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी जल्द ही अपनेी कार्यकारणी का गठन करने वाली हैं। मंत्रीमण्डल के आधे अधूरे विस्तार ने सोनिया की टीम के गठन में शूल बो दिए हैं। अभी सोनिया गांधी कांग्रेस कार्यकारिणी तय करने में पशोपेश में ही दिखाई पड़ रही हैं। सोनिया गांधी के करीबी सूत्रों का दावा है कि फरवरी के पहले सप्ताह तक सोनिया गांधी कांग्रेस की कार्यसमिति की घोषणा कर सकती हैं, इसके लिए कवायद लगभग हो चुकी है।

सूत्रों का कहना है कि अगले कुछ माहों में पश्चिम बंगाल, तमिलनाडू, असम, पाण्डिचेरी, केरल के चुनावों को मद्देनजर सोनिया गांधी ने अपनी टीम में चेहरों को चुना है। कांग्रेस अध्यक्ष के अलावा 23 सदस्यों वाली कांग्रेस कार्यसमिति के बनने के बाद चुनावी राज्यों के प्रभारियांे की तैनाती नए सिरे से होने की उम्मीद है। कहा जा रहा है कि राहुल गांधी के लिए भविष्य का रास्ता बनाने के लिए युवाओं के साथ ही साथ अनुभवी लोगों को संगठन में लाकर सोनिया गांधी उनके प्रधानमंत्री बनने के मार्ग प्रशस्त करने वाली हैं।

सोनिया गांधी के सामने सबसे बड़ी चुनौति राज्यों के अध्यक्षों को चुनने की हैै। बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश सहित अनेक राज्यों में कांग्रेस संगठन दम तोड़ चुका है। इन राज्यों में कांग्रेस संगठन मंे जान फूंकने के लिए युवा तुर्को की जरूरत महसूस की जा रही है। संगठन में राहुल गांधी के बेदाग छवि और युवाओं को आगे लाने के फार्मूले पर गंभीरता के साथ विचार किया जा रहा है। इसके अलावा एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत को भी कड़ाई से लागू किया जा सकता है। वर्तमान में मुकल वासनिक, गुलाम नवी आजाद, वी, नारायणसामी केंद्र सरकार में तो पृथ्वीराज चव्हाण महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री होने के साथ ही साथ संगठन में महती जवाबदारी निभा रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि सोनिया गांधी इस बारे में भी विचार कर रही हैं कि वर्तमान में छोटे से विस्तार के उपरांत बजट सत्र के उपरांत सरकार की बड़ी सर्जरी होने के बाद ही वे अपनी टीम का असली स्वरूप कार्यकर्ताओं के सामने लाएंगी।

राजमाता के घर में ही है अंधेर

ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)

अपने घर की हालत तो सुधरिए राजमाता

देश की सबसे ताकतवर महिला श्रीमति सोनिया गांधी को सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस द्वारा राजमाता के रूप में देखा जाता है। श्रीमति सोनिया गांधी महिला हैं, पर महिला आरक्षण विधेयक वे पिछले छः से अधिक सालों में पारित नहीं करवा सकीं हैं। राजमाता की रियासत अर्थात लोकसभा के हाल बेहाल हैं। राजमाता के संसदीय क्षेत्र में प्राईमरी स्तर पर शिक्षकों की जबर्दस्त कमी है, पर राजमाता हैं कि अपनी रियाया की ओर देखने की जहमत ही नहीं उठा रही है। आंकड़ों पर अगर गौर फरमाया जाए तो रायबरेली जिले में विद्यालयों में तीन लाख चालीस हजार 274 विद्यार्थी पंजीकृत हैं, जिनमें से प्राईमरी स्तर पर दो लाख 59 हजार 130 का आंकड़ा है। अगर देखा जाए तो सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र में प्राथमिक स्तर पर दो हजार दो सौ 39 और माध्यमिक स्तर पर एक हजार 143 शिक्षकों की कमी है। एक तरफ कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार द्वारा शिक्षा के अधिकार कानून को लागू कर दिया गया है, वहीं दूसरी और इस सरकार की चाबी अघोषित तौर पर अपने हाथों में रखने वाली श्रीमति सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र का यह हाल है, जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि केंद्र सरकार की महात्वाकांक्षी योजनाएं और कानून सूदूर ग्रामीण अंचलों में किस तरह अमली जामा पहन रहे होंगे।

राजा, राडिया, कलमाड़ी बने भ्रष्टाचारियों के आईकान

लगता है संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की दूसरी पारी में एक प्रतिस्पर्धा चल रही है, वह है कि कौन कितना अधिक भ्रष्टाचार कर सकता है। जनता के गाढ़े पसीने की कमाई को घोलकर पी जाओ, कोई कुछ भी कहने वाला नहीं है। देश की पुलिस हो या दूसरी जांच एजेंसियां सब के सब आंख और मुंह पर पट्टी बांधकर ध्रतराष्ट्र के मानिंद बैठे हैं। हिन्दुस्तान की तो छोडिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुरेश कलमाड़ी, नीरा राडिया, ए.राजा जैसे लोगों ने धूम मचा रखी है। सभी हत्प्रभ हैं कि आखिर भारत गणराज्य में यह क्या हो रहा है, सरेआम भ्रष्टाचार, घपले, घोटाले फिर भी इसमंे लिप्त लोग मिस्टर क्लीन बने बैठे हैं। अब तो इंटरनेशनल लेबल पर कहा जाने लगा है कि एक हजार करोड़ का भ्रष्टाचार मतलब कलमाड़ी, दस हजार करोड़ रूपए का हुआ तो नीरा राडिया और अगर एक लाख करोड़ के उपर गया तो उसे ए.राजा के नाम से ही पुकारा जाए तो बेहतर होगा। देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस इससे ज्यादा दुर्दिन आम हिन्दुस्तानी को और क्या दिखाएगी!

थर्ड ग्रेड की है मध्य प्रदेश की झांकी

गणतंत्र दिवस परेड में मध्य प्रदेश द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली बिना आकर्षण वाली है, जिसके बल बूते एमपी इस परेड में अव्वल की बजाए फिसड्डी ही बना रहेगा। दिल्ली के छावनी इलाके में बन रही इस झांकी को जिस तरीके से बनाया जा रहा है, उससे इस बात में संशय ही लग रहा है कि इसे कोई पुरूस्कार मिल सके। बाघ प्रिंट पर आधारित इस झांकी में विदिशा जिले की शाल भंजिका की प्रतिमा को अगर छोड़ दिया जाए तो शेष में कुछ भी एसा नहीं प्रतीत हो रहा है, जो दर्शकों को बांधे रखे। झांकी की तैयारियों को देखकर लगता है मानो अफसरान ने बला टालने के उद्देश्य से किसी अनाड़ी कलाकार को इसे तैयार करने के काम में लगा दिया है। इस तरह बेरौनक और आकर्षण विहीन झांकी के माध्यम से मध्य प्रदेश सरकार आखिर क्या संदेश देना चाहती है, यह बात तो एमपी के नौकरशाह और जनसेवक ही जाने पर यह तय है कि इस तरह की झांकियों से सूबे की नाक उंची होने के बजाए सूबा उपहास का ही पात्र बनकर रह जाएगा।

ज्योतिषी नहीं राजनेता हैं मनमोहन

मंत्रीमण्डल के बहुचर्चित किन्तु नीरस फेरबदल के उपरांत वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह ने मंहगाई के मामले में अप्रत्याशित जवाब देते हुए कहा कि वे ज्योतिषी नहीं हैं, कि बता सकें कि मंहगाई कब कम होगी, वैसे उन्होंने भरोसा दिलाया कि मार्च तक महंगाई काबू में आ जाएगी। वजीरे आजम की हैसियत से बोलते वक्त डॉ.मनमोहन सिंह यह भूल जाते हैं कि वे प्रसिद्ध अर्थशास्त्री हैं, अर्थशास्त्र के गणित को वे बेहतर समझते हैं। सारी स्थितियां परिस्थितियां उनके सामने हैं। सहयोगी दल यहां तक कि कांग्रेस के मंत्री भी आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे हैं। मनमोहन क्या करें? वे भी तो पिछले सदन के भरोसे ही हैं। कठोर कदम उठाते हैं तो सरकार गिरने का डर, नहीं उठाते हैं तो मंत्री और सहयोगी दल कालर पकड़ने पर आमदा हैं। मनमोहन यह बात भी भूल गए कि उन्होंने पिछले साल आरंभ में कहा था कि मंहगाई अक्टूबर तक काबू में आ जाएगी। फिर क्या हुआ मनमोहन जी, आप भी वालीवुड के चर्चित चलचित्र ‘दामिनी‘ की तरह ‘‘तारीख पर तारीख‘ ही दिए जा रहे हैं। देश की जनता की कमर मंहगाई से टूट रही है, आपके मंत्री शरद पवार कहते हैं कि मंहगाई है कहां? अरे आप या पवार साहेब एकाध मर्तबा बाजार जाएं और वहां खीसे से पैसा निकालकर कुछ खरीदें तब तो ‘आटे दाल का भाव‘ पता चलेगा।

राहुल की जमानत पर छूटे मोईली

केंद्रीय कानून मंत्री वीरप्पा मोईली की बिदाई तय थी। आश्चर्यजनक तरीके से उनकी कुर्सी बच गई। प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह उनसे आजिज आ चुके थे। अब लोग पतासाजी में लगे हैं कि आखिर क्या कारण था कि माईली बच गए। राहुल के करीबी सूत्रों का कहना है कि अमेरिका में उच्च शिक्षा प्राप्त मोईली के दमाद आनंद इनके अघोषित जमानतदार बने जो राहुल गांधी के बचपन के अंतरंग मित्र हैं। फेरबदल के दो घंटे पहले तक संशय बरकरार रहा। कांग्रेस आलाकमान भी मोईली के आंध्र के कारनामों से नाखुश हैं, वे भी उनकी रूखसती की हिमायती थीं। फेरबदल के दो घंटे पहले मोईली को दस जनपथ का बुलावा आया। वहां प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह तब तक मोईली की बिदाई का सारा ताना बाना बुन चुके थे। सूत्र बताते हैं कि इसके पहले कि प्रधानमंत्री और सोनिया गांधी कोई फैसला ले पाते, कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने फच्चर फसा दिया, और मोईली के तारणहार बनकर उभरे। सूत्रों ने बताया कि मोईली का कद और पद दोनों ही बचाए रखने में वीरप्पा माईली के दमाद आनंद अदकोली की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। मोईली ने भी आनंद के माध्यम से राहुल को साधा और हो गए अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब।

इस नौटंकी का क्या मतलब हुआ जैन साहेब

केंद्रीय मंत्री प्रदीप जैन पिछले दिनों लखनउ में रिक्शे पर चले और उनके पीछे पीछे उनकी सुरक्षा में चल रहा स्कार्ट चलता रहा। दरअसल यूपी की निजाम मायावती ने एक फरमान जारी किया है कि अगर कोई केंद्रीय मंत्री अपने निजी या पार्टी के काम से उत्तर प्रदेश आता है तो उसे राजकीय अतिथि का दर्जा नहीं दिया जाएगा, न उसे सरकारी वाहन मिलेगा और न ही सरकारी खर्च पर रूकने खाने की व्यवस्था ही की जाएगी। इस व्यवस्था के लागू होने के साथ ही मंत्री जतिन प्रसाद और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति, जनजाति के अध्यक्ष पी.एल.पूनिया को भी अपनी जेबें हल्की करनी पड़ी थीं, पर उन्होंने तो बवाल नहीं काटा। प्रदीप जैन का यह आडंबर समझ से परे है, क्योंकि वे अपनी पार्टी के काम से लखनउ गए थे। बतौर सांसद रेल में उनका किराया नहीं लगा, जब वे वहां पहुंचे तो उन्हें कम से कम एक टेक्सी ही कर लेना था। मगर अगर जैन एसा करते तो मीडिया की सुर्खियां कैसे बटोर पाते। मायावती का कदम एकदम न्यायसंगत है, आप सरकारी खर्चे पर अपनी पार्टी कैसे मजबूत कर सकते हैं, आखिर वह पैसा जनता के गाढ़े पसीने की कमाई का जो ठहरा।

हाईटेक भ्रष्टाचार हुआ है कामन वेल्थ में

कामन वेल्थ गेम्स को भ्रष्टाचार का महाकुंभ कहा जाने लगा है। इसके शिकंजे में आते ही आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी ने चिंघाड़ा कि वे अकेले नहीं हैं इस दलदल में। कलमाड़ी ने परोक्ष तौर पर कह दिया था कि हमाम में बड़े बड़े निर्वस्त्र खड़े हुए हैं। सीबीआई ने जांच चालू की, नेताओं की सांसें थमी हुईं हैं। इसमें ज्यादा कुछ निकलकर आने की उम्मीद इसलिए नहीं है क्योंकि यह सर्वदलीय भ्रष्टाचार का नायाब नमूना था। चंद दिनों में लोग इसके बारे में भूल जाएंगे और फिर फाईलें धूल खाती फिरंेगी। वैसे सूत्रों ने बताया कि सीबीआई ने अब तक इस महाघोटाले में 154 ईमेल को खंगाला है। बताते हैं कि ईमेल के माध्यम से ही ठेकेदारों से सौदेबाजी होती थी, फिर उस हिसाब से ही बजट बनाकर पास करवा लिया जाता था। सूत्र बताते हैं लगभग पांच दर्जन ईमेल आयोजन समिति और ठेकेदारांे के बीच हुई सांठगांठ की ओर इशारा कर रहे हैं। इनमें से कुछ मेल क्विंस बेटन से संबंधित भी हैं।

राहुल की गणेश परिक्रमा में जुटे जोगी

छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का जलजला एक बार फिर बढ़ सकता है। जोगी आजकल राहुल गांधी को प्रसन्न करने में जुटे हुए हैं। कांग्रेसियों की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी के लिए वरिष्ठ कांग्रेसी अपने अपने हिसाब से रोड़ मेप तैयार करने में जुटा हुआ है, ताकि कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र दस जनपथ का आर्शीवाद उसे मिल सके। इसी तारतम्य में अजीत जोगी द्वारा राहुल बिग्रेड के प्रचार प्रसार का जिम्मा अपने कांधों पर ले रखा है। अजीत जोगी द्वारा राहुल बिग्रेड की शाख देश के हर सूबे में खुलवाई जा रही है। इसके जरिए कमजोर तबके के लोगों की मदद, अन्न, वस्त्र वितरण के साथ ही साथ कांग्रेस शासित राज्यों और केंद्र सरकार की विकासोन्मुखी योजनाओं की जानकारियां देने का काम प्रमुख तौर पर किया जाएगा। कांग्रेस के अंदरखाने में यह चर्चा भी जोर पकड़ रही है कि राहुल बिग्रेड के नाम पर कांग्रेस की राजनीति में हाशिए पर ला दिए गए अजीत जोगी हर राज्य में अपने समर्थकों की खासी फौज खड़ी करने की तैयारी में हैं, ताकि आने वाले समय में वे कांग्रेस के आला नेताओं के साथ बारगेनिंग करने की स्थिति में आ जाएं।

फिर उलझे बाबा रामदेव!

बाबा रामदेव और विवादों का चोली दामन का साथ है। न बाबा बयान बाजी छोड़ते हैं, और न ही विवाद उनका दामन। इक्कीसवीं सदी के स्वयंभू योग गुरू बाबा रामदेव ने जगन्नाथ पुरी में मंदिर में सबके प्रवेश की वकालत कर डाली। फिर क्या था पुरी में मच गया धमाल। लोगों ने बाबा के खिलाफ जमकर नारेबाजी की, बाबा रामदेव के पुतले फूंके यहां तक कि उनकी गिरफ्तारी की मांग तक कर डाली। लोगों का कहना है कि मंदिर में प्रवेश के मसले पर निर्णय लेने का अधिकार पुरी के शंकराचार्य को है, न कि स्वयंभू योग गुरू बाबा रामदेव को। गौरतलब है कि इस मंदिर में गैर हिन्दुओं का प्रवेश वर्जित है। स्वाभिमान पार्टी के जरिए देश की सत्ता हथियाने के लिए लालायित बाबा रामदेव राजनीति में अभी कच्चे खिलाड़ी हैं। किस वक्तव्य का क्या असर होगा इस बात से वे अनजान हैं, साथ ही बाबा के पास राजनैतिक समझ बूझ वाले कुशल प्रबंधक और रणनीतिकारों की कमी है, जिससे वे आए दिन उल जलूल बयानबाजी कर मीडिया की सुर्खियां अवश्य ही बटोर लेते हैं, पर ये सारी बातें बाबा रामदेव के खाते में उनकी लोकप्रियता में इजाफा तो कतई नहीं कर रही हैं।

दुलर्भ जीवों की तस्करी कर रही हैं कार्गो विमान कंपनियां

एक तरफ केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश द्वारा वन्य जीवों को बचाए रखने के लिए अनेक मंत्रियों से दो दो हाथ किए जा रहे हैं वहीं दूसरी और पूर्व उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल और वर्तमान वायलर रवि के नेतृत्व वाला नागरिक उड्डयन मंत्रालय इस बात से अनजान है कि देश के कार्गाे विमान संचालकों द्वारा इनके माध्यम से दुर्लभ वन्य जीवों की तस्करी की जा रही है। मध्य प्रदेश काडर की भारतीय पुलिस सेवा की अधिकारी एवं वन्य जीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो की निदेशक रीना मित्रा कहती हैं कि वन्य जीवों की तस्करी करने वाली दो कार्गाे एयरलाईंस के बारें में जांच जारी है, जब तक शक यकीन में नहीं बदल जाता तब तक इनके नाम उजागर नहीं किए जा सकते। वन एवं पर्यावरण मंत्री को जैसे ही इस बात की भनक लगी, उन्होंने तत्काल ही इस मामले को नागरिक उड्डयन मंत्री के समक्ष रखने का मन बना लिया है, अब देखना यह है कि फेरबदल के बाद जयराम रमेश की पहली भिडंत वायलर रवि से किस तरह और किस स्तर पर होती है।

भाजपा के गांधी ने पीछे छोड़ा युवराज को

भले ही कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी भाजपा के वरूण गांधी से उमर में दस साल बड़े हों पर एक मामले में राहुल गांधी को वरूण गांधी ने मात दे दी है, और वह है शादी का मसला। 19 जून 1970 को जन्मे राहुल गांधी की शादी की आधिकारिक घोषणा अभी नहीं हो सकी है, पर दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी के वरूण गांधी शादी की तैयारियां सप्तपुरियों में से एक पवित्र नगरी वाराणसी के हनुमान घाट पर कांची मठ में आरंभ हो गई हैं। सूत्रों का कहना है कि मेनका गांधी की तमन्ना है कि यह विवाह शास्त्रोक्त विधि से संपन्न हो एवं इसके साक्षी बनें स्वयं कांची कामकोटी पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती। काशी में विवाह के उपरांत दिल्ली में एक प्रीतिभोज का आयोजन भी किया जाने वाला है। राहुल गांधी को महिमा मण्डित करने के कारण भले ही उनका ग्लेमर सर चढ़कर बोल रहा हो, किन्तु देश की निगाहें इस बात पर लगी हैं कि वरूण की शादी में उनकी ताई सोनिया, बहन प्रियंका वढ़ेरा और बड़े भाई ‘‘कुंवारे जेठ‘ राहुल गांधी शामिल होते हैं या नहीं!

पुच्छल तारा

देश के वजीरे आजम ने आखिरकार अपने उन्नीस माह पुराने मंत्रीमण्डल को मथ दिया है। इस मंथन के बाद जो निकलकर आया है वह विष है या अमृत यह तो भविष्य के गर्भ में ही छिपा हुआ है। आज के समय में मनमोहन सिंह मजाक का विषय बने हुए हैं। मध्य प्रदेश के दमोह से शुभी ने एक ईमेल भेजा है, शुभी लिखती हैं कि एक बूढ़े पहलवान ने दावा किया कि आज भी उनके अंदर उतनी ही ताकत है, जितनी कि जवानी में थी। लोगों ने पूछा कैसे भई? पहलवान बोला -‘‘वो बड़ा पत्थर देख रहे हो न, में उसे जवानी में भी नहीं उठा पाता था, और आज भी नहीं उठा पाता हूं। इसी तर्ज पर मनमोहन सिंह ने मंत्रीमण्डल फेरबदल के बाद सोचा होगा कि वे आज भी उतने ही ताकतवर हैं जितने कि चंद साल पहले थे। वे आज भी कड़े फैसले नहीं ले सके और चंद साल पहले भी कड़े फैसले नहीं ले पाए थे।

नर्मदा कुंभ की तैयारियां जोरों शोरों से

नर्मदा सामाजिक कुम्भ की तैयारियां

(मनोज मर्दन त्रिवेदी)

सिवनी आगामी फरवरी माह में १०-११ एवं १२ फरवरी को मंडला मे आयेाजित नर्मदा सामाजिक कुम्भ की तैयारियां अपने अंतिम चरण में है। सामाजिक कुम्भ में व्यवस्था की दृष्टि से अन्न एवं धन संग्रह समाज द्वारा किया जा रहा है। राष्ट्रीय स्वयं सेंवक संघ सहित कुम्भ के आयोजन में सक्रिय येागदान करने वाले संगठनों द्वारा नर्मदा सामाजिक कुम्भ में प्रशासनिक व्यवस्थाओं के अतिरिक्त व्यवस्थाएं कुम्भ में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को प्रदान करने के लिए बड़ी तैयारियां की गई हैं अनुमान है कि नर्मदा सामाजिक कुम्भ में २० से ३० लाख श्रद्धालुओ शामिल होंगे, इस सामाजिक महाकुम्भ में देश भर से श्रद्धालु पहुंचेेगे जिसके लिए व्यापक तैयारियां की गई हैं म.प्र. में महाकाल की नगरी उज्जेन में कुम्भ लगने की परम्परा सनातन काल से रही है यह पहला अवसर है जब आदिवासी क्षेत्र के गोण्डवाना क्षत्रपों के गढ़ मण्डला में नर्मदा सामाजिक कुम्भ का आयोजन किया जा रहा है नर्मदा सामाजिक कुम्भ की सारी तैयारियां लगभग पुरी कर ली गई है श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए ५१ उपनगरों का निमार्ण किया गया है। जिन्हे छ: महानगरों में विभाजित किया जायेगा। यह महानगर देश के महापुरूषों के नाम पर बसाये जा रहे हैं त्रि दिवसीय समाजिक महाकुम्भ में देश भर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए छ: भोजनालय अलग-अलग महानगरों में बनाये जायेंगे महा कुम्भ आयोजन समिति द्वारा भिन्न मार्गों से आनेवाले श्रद्धालुओ को अलग-अलग क्षेत्रों में विभाजित कर मार्गो के अनुसार व्यवस्थाएं प्रदान की जा रही हैं, मंडला में सामाजिक कुम्भ धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण तो है ही यह ऐतिहासिक और म.प्र. की जीवन रेखा का उदगम क्षेत्र है इसके साथ ही आदिवासी समुदाय जो प्रकृति के पूजक हैं उस संस्कृति से देश की जनता को परिचित करना भी सामाजिक महाकुम्भ का उद्देश्य है। सामाजिक महाकुम्भ को लेकर प्रदेश में एक धार्मिक वातावरण निर्मित हो रहा है, पूरे प्रदेश में नर्मदा सामाजिक कुम्भ को लेकर आम जनता में व्यापक उत्साह देख जा रहा है। मंडला से लगे हुए जिलों में कुम्भ में जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए यात्री वाहनों की अतिरिक्त व्यवस्था भी की जा रही है, जिस प्रकार की व्यवस्थाएं नर्मदा सामाजिक कुम्भ में की गई हैं उससे स्पष्ट होता है कि यह सामाजिक महाकुम्भ मण्डला जिले को ही नहीं पूरे प्रदेश को एक अलग पहचान प्रदान करेगा। सामाजिक कुम्भ की कल्पना ही मण्डला के धार्मिक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व को प्रतिपादित करने की है मण्डला जिले में निवास करने वाली जनजातियां विभिन्न प्रकार की समस्याओं से जुझ रही है। प्रकृति से आगाध प्रेम रखने वाली पराक्रमी ये जनजातियां शिक्षा के पर्याप्त अवसर प्राप्त न होने के कारण विकास की मुख्य धारा से कटी हुई नजर आती हैं इन्हें शिक्षा का पर्याप्त अवसर मिल जाये तो इनके प्रकृति सम्बन्धी ज्ञान का व्यापक उपयोग देश में सार्थक परिणाम देने वाला सिद्ध होगा। सामाजिक कुम्भ देश की एकता अखण्डता और राष्ट्रीयभक्ति जागृत करने के उद्देश्य से महत्वपूर्ण हैं पूरे प्रदेश में कुम्भ में शामिल होने के लिए हिन्दुवादी संघठनों के कार्यकर्ता और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्वयं सेवक कुम्भ में पहुंचने का संदेश दे रहे हैं। अनेक जिलो एवं प्रदेशो से कुम्भ के लिए धन संग्रह और अनाज संग्रह हो रहा है। ट्रकों से भरकर अनाज व्यवस्था के लिए पहुंच रहा है हर दिन कुम्भ स्थल पर दो लाख व्यक्तियों को लिए भोजनालयों में भोजन बनाया जायेगा। कुम्भ में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को शुद्ध पेयजल प्राप्त हो, रूकने की बेहतर व्यवस्था, स्नान,आदि की व्यवस्थाएं, चिकित्सा व्यवस्था बेहतर ढंग से की गई है राज्य सरकार भी कुम्भ के सफल आयोजन के लिए व्यवस्थाएं जुटा रही हैं इस धार्मिक कुम्भ में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघचालक मोहन राव भागवत, सरकार्यवाह भैयाजी जोशी, निर्वतमान संघचालक कुप्पसी सुदर्शन, सरकार्यवाह सुरेश सोनी, दत्ता होसबोले, गोविंद गिरी महाराज, जगत्गुरूबद्रीपीठ, वासुदेवानंद सरस्वती, पूज्य दीदी मां ऋतम्भरा, भारतमाता मंदिर के संस्थापक, स्वामी सत्यमित्रानंद जी, आचार्य महामण्डलेश्वर श्यामदास जी महाराज जबलपुर, सुखदेवानंद जी अमरकंठक, जगत्गुरू राज-राज सेवा आश्रम, हरिद्वार रामानंदचार्य जी स्वामी, सहित बड़ी संख्या में विद्वान एवं साधु संतों का सानिध्य प्राप्त होगा।