सोमवार, 31 जनवरी 2011

900वीं पोस्‍ट

कांग्रेस में वंशवाद पसारेगा पैर

 

कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी द्वारा युवाआंे को आगे लाने की हिमायत भले ही जोर शोर से की जा रही हो, किन्तु जाने अनजाने मेें वे अपनी ही तरह महाराष्ट्र प्रदेश में राजपुत्रों को सियासत में आने के मार्ग प्रशस्त करते नजर आ रहे हैं। सूबे में अमित देशमुख,सत्यजीत तांबे, राव साहेब शेखावत, प्रणिती शिंदे, नितेश राणे जैसे नेताआंे के पुत्र जल्द ही सियासत की बिसात पर कदम ताल करते नजर आएंगे। राहुल गांधी चाहते हैं कि गैर राजनैतिक पृष्ठभूमि वाले युवाओं को राजनीति में उभरने का मौका दिया जाए। इसके लिए निष्पक्ष तरीके से चुनाव करवाकर लोकसभा, विधानसभा, प्रदेशाध्यक्ष जैसे पदों के लिए युवाओं का चयन किया जाना है। 16 फरवरी तक महाराष्ट्र में सदस्यता अभियान चलाया जा रहा है, इसके उपरांत चुनाव कराया जाना सुनिश्चित है। राजनैतिक पंडितों का मानना है कि राज्य में स्थापित इन घाघ नेताओं के वारिसान अपने अपने पिताओं की लोकप्रियता का फायदा उठाकर उनके समर्थकों की फौज कार्यकर्ता के तौर पर खड़ी कर लेंगे, फिर अपने पक्ष में मतदान करवाकर अध्यक्ष के साथ ही साथ लोकसभा, विधानसभा की टिकिट भी हथिया लेंगे। हो सकता है राहुल गांधी को इस तरह का मशविरा देने वालों ने पहले ही अपनी अगली पीढ़ी का भविष्य सुरक्षित कर लिया गया हो। राहुल गांधी को सियासत भले ही विरासत मे मिली हो, पर वे राजनैतिक ककहरा से अभी अनिभिज्ञ ही लग रहे हैं।

इटली का नाम न लो, अच्छा नहीं होगा



इटली का नाम न लो, अच्छा नहीं होगा
इटली का नाम आते ही कांग्रेस के नेताओं की भवें तन जाती हैं। इसका कारण कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी का इटली मूल का होना है। राकापां के प्रवक्ता डीपी त्रिपाठी ने जब इटली को गठबंधन सरकारों का घर बताया तो कांग्रेसी बिफर गए। दरअसल कांग्रेसी अपनी सुप्रीमो सोनिया को इटली से दूर रखना चाह रहे हैं। इतिहास साक्षी है कि युद्ध के बाद इटली में चार दर्जन गठबंधन सरकारें अस्तित्व में आई हैं, और सफल भी रही हैं। कांग्रेस के युवराज मंहगाई को गठबंधन सरकार से जोड़कर बयानबाजी कर रहे हैं जो केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार की राकांपा को रास नहीं आ रहा है। युवराज भूल जाते हैं कि सत्तर के दशक में इंदिरा गांधी के कार्यकाल में जब कांग्रेस का एकछत्र राज कायम था तब मंहगाई ने पैर पसारे और जेपी आंदोलन का आगाज हुआ था। देखा जाए तो त्रिपाठी का कथन सही है, उन्होंने एक ही तीर से अनेक निशाने साध लिए हैं, जिनका जवाब कांग्रेस खोजने में लगी हुई है।

प्रणव के लिए ममता को मनाया सोनिया ने
कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी को प्रणव मुखर्जी का साथ देना मजबूरी ही माना जाता है, क्योंकि प्रणव दा ने उनके पति राजीव गांधी के मार्ग में अनेक मर्तबा शूल बोए थे। हाल ही में प्रणव मुखर्जी के पुत्र अभिजीत के लिए पश्चिम बंगाल की नोनहाटी या लवपुर सीट को सुरक्षित रखने अर्थात वहां से त्रणमूल कांग्रेस के प्रत्याशी को खड़ा न करने के मसले को लेकर सोनिया गांधी और ममता बनर्जी के बीच लंबी गुफ्त गू हुई। कांग्रेस की सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10, जनपथ के सूत्रों का कहना है कि सोनिया के आग्रह को ममता ने मान लिया है, पर किस शर्त पर? इसके जवाब में सूत्रों ने कहा कि पेट्रोल की बढ़ी हुई कीमतों को लेकर त्रणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी खासी खफा हैं। उन्होंने अपनी नाराजगी से सोनिया गांधी को आवगत करा दिया है। कोलकता की रायटर बिल्डिंग पर कब्जा जमाने का ख्वाब देख रहीं ममता के सामने पेट्रोल की बढ़ी कीमतें एक अवरोध बनकर उभर रही हैं। सूत्रों ने बताया कि दोनों ही महारानियों के बीच चर्चा का दौर जारी ही था कि अचानक ममता को खबर मिली कि मेदिनीपुर क्षेत्र में मकपा के कार्यकर्ताओं ने त्रणमूल कार्यकर्ताओं पर हमला बोल दिया। ममता ने वहीं चर्चा को विराम देते हुए वहां से रूखसती डाल दी। ममता की नाराजगी के उपरांत सोनिया ने तत्काल ही पेट्रोलियम मंत्री जयपाल रेड्डी को तलब किया। अब देखना है कि ममता के गुस्से के चलते देशवासी पेट्रोल की बढ़ी कीमतें देते हैं या फिर . . .।

तुम्हारा गोल गोल, हमारा गोल हाफ साईड
न्यायधीशों द्वारा ब्लाग्स और सोशल नेटवर्किंग वेव साईट के माध्यम से अपने विचार प्रस्तुत करना कंेद्र के गले नहीं उतर रहा है। केंद्रीय विधि मंत्रालय ने आचार संहिता का हवाला देकर सुप्रीम कोर्ट और समस्त उच्च न्यायलयों को पत्र लिखकर जवाब तलब किया है। गौरतलब होगा कि कर्नाटक के न्यायधीश शैलेंद्र कुमार ने सबसे पहले अगस्त 2009 में एक ब्लाग आरंभ किया था, जिस पर उन्होने सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम की आलोचना की थी। कोलेजियम वस्तुतः पांच न्यायधीशों का एक दल होता है, जो न्यायधीशों के स्थानांतरण और नियुक्ति करता है। केंद्र सरकार का मानना है कि अगर माननीय न्यायधीशों ने यह सिलसिला नहीं रोका तो आने वाले समय में इस बारे में केंद्र को कठोर कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ सकता है। केंद्रीय विधि मंत्रालय द्वारा इस तरह के तुगलकी फरमान जारी करने के पहले यह बात जेहन में अवश्य ही लानी चाहिए थी कि केंद्र सरकार के पूर्व विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर ने आचार संहिता की चिंदी चिंदी उड़ाते हुए एक सोशल नेटवर्किंग वेब साईट पर अपने प्रशंसकों से न जाने क्या क्या शेयर किया था, यहां तक कि बतौर केंद्रीय मंत्री उन्होंने अपने आप को काम का बोझ तले दबे होने की बात भी कह दी थी। सवाल यह उठता है कि माननीय जनसेवक गोल मारे तो गोल और अगर कोई दूसरा गोल मारने जाए तो इन्हीं जनसेवकों में से एक उठकर सीटी बजा देगा और उसे हाफ साईड बताकर फाउल करार दे देगा।

विलास के सर पर कांटों भरा गिलास
आदर्श घोटाले में नाम आने के बाद भी ग्रामीण विकास सरीखा मलाईदार विभाग पाने वाले विलास राव देशमुख की पेशानी पर पसीनें की बूंदे देखकर लगने लगा है कि उनके सर पर कांटों भरा ताज रख ही दिया गया है। बजट सत्र में विलास राव देशमुख की अग्नि परीक्षा है। भूमि अधिग्रहण के मौजूदा कानून में उन्हें संशोधन करना ही है, वह भी उत्तर प्रदेश चुनावों के मद्देनजर। इसमें सबसे बड़ी अड़चन यह है कि त्रणमूल कांग्रेस इसके लिए किसी भी कीमत पर राजी होती नहीं दिख रही है। भूमि सुधार काननू में जरा भी बदलाव किया गया तो उसका असर पश्चिम बंगाल के चुनावों पर अवश्य ही पड़ेगा। इसके पहले विभाग के मुखिया रहे सी.पी.जोशी ने ममता बनर्जी को हरियाणा और गुजरात माडल भी दिखाया पर ममता इसमें हेरफेर को तैयार नहीं हैं। उधर ममता को बताया गया है कि मध्य प्रदेश में भूमि सुधार कानून में तब्दीली की तैयारी है, जिसमें किसान को उसकी भूमि पर लगने वाले उद्योग में भागीदारी सुनिश्चित की जा रही है। इससे उद्योग धंधे तो फलेंगे फूलेंगे ही साथ ही किसान के हितों का पूरा पूरा संरक्षण भी हो जाएगा। अब देशमुख पशोपेश में हैं कि वे आखिर ममता को मनाएं तो कैसे?
एमसीडी चुनाव: कशमकश जारी
अगले साल दिल्ली में नगर निगम चुनाव होने वाले हैं। देश की राजनैतिक राजधानी के निगम पर कब्जे के लिए सियासत बहुत तेज हो गई है। प्रमुख राजनैतिक दल कांग्रेस और भाजपा ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना ही लिया है। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने कांग्रेस की कमान संभाल ली है। इसी तारतम्य में उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी से भेंट कर भावी रणनीति से उन्हें आवगत कराया। उधर भारतीय जनता पार्टी की वेतरणी को पार करवाने के लिए भाजपा के कद्दावर नेता वेंकैया नायडू ने दूसरा सिरा संभाल लिया है। नायडू ने साफ कह दिया है कि इस बार टिकिट उन्हीं पार्षदों को दी जाएगी, जिनकी कार्यप्रणाली से क्षेत्र की जनता संतुष्ट हो। 272 सीटांे वाली दिल्ली नगर निगम पर वर्तमान में भाजपा का कब्जा 170 सीटों के साथ है, वहीं कांग्रेस के खाते में महज 76 सीट ही हैं। चुनाव मई 2012 के पहले होना है। उन भाजपाई पार्षदों की रातों की नींद उड़ी हुई है, जिन्होंने इन चार सालों में सिर्फ मलाई ही काटी है। दिल्ली में प्रबुद्ध वर्ग आधिक्य में है, इसलिए कामन वेल्थ घोटाला, टूजी घोटाला और भ्रष्टाचार, अनाचार, दुराचार के साथ ही साथ दिल्ली में बढ़ता अपराध का ग्राफ कांग्रेस के लिए नकारात्मक ही साबित होने वाला है।

कहां गायब हो रहे हैं हरियाणावासी
हरियाणा सूबे से हर रोज पांच लोगों की ‘गुमइंसान‘ रिपोर्ट दर्ज हो रही है। हरियाणा पुलिस की आधिकारिक वेब साईट के आंकड़े बताते हैं कि सूबे से गायब होने वाले महिला और पुरूषों में साठ फीसदी से ज्यादा लोग 15 से 30 वर्ष की आयु वर्ग के हैं। पिछले आधे साल में सूबे से 800 से ज्यादा लोग गायब हैं, जिनमें सबसे ज्यादा फरीदाबाद से 91 हैं। आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो 16 जुलाई से 16 दिसंबर तक हिसार से 60, झज्जर, जींद से 45-45, सिरसा से 44, कुरूक्षेत्र से 39, पानीपत से 39, रोहतक से 29, पंचकुला से 26, कैथल से 24, भिवानी से 23, रेवाड़ी से 20, पलवल से 16 एवं मेवात से 2 लोग गायब हुए हैं। इतने व्यापक पैमाने पर लोगों के गायब होने से लोग हैरान और पुलिस परेशान है। माना जा रहा है कि प्रेम प्रसंग के चलते युवा हरियाणा से भाग रहे हैं, वहीं दूसरी ओर मानव तस्करी की संभावनाओं से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। दिल्ली से सटे हरियाणा राज्य की पुलिस का अन्य सूबों की पुलिस के साथ बेहतर तालमेल न होने के चलते लोगों की पतासाजी का काम मंथर गति से ही चल रहा है।

पश्चिम बंगाल चुनावों का खामियाजा भुगत रही है रेल्वे
ममता बनर्जी भारत गणराज्य की रेल मंत्री हैं। जब से उन्हें रेल मंत्रालय का प्रभार संभाला है तब से वे पश्चिम बंगाल का ही भ्रमण कर रही हैं। ममता की अनदेखी का खामियाजा भारतीय रेल को बुरी तरह भुगतना पड़ रहा है। भारतीय रेल गंभीर अर्थिक संकट के दौर से गुजर रही है, और कांग्रेस नीत संप्रग सरकार के कानों में जूं भी नहीं रेंग रही है। यह रेल बजट तो यात्रियों और माल ठुलाई के हिसाब से ठीक रहेगा, क्योंकि ममता को चुनावों की चिंता है, किन्तु आने वाले दिनों में रेल की यात्रा और माल ढुलाई इतनी मंहगी होने वाली है, जिसकी कल्पना देशवासियों को नहीं है। रेल मंत्रालय को पिछले बजट में 15 हजार 875 करोड़ रूपए मिले थे, जो फंुक चुके हैं। रेल कर्मियों और ठेकेदारों के अनेक भुगतान रोके जा रहे हैं। रेल महकमे ने वित्त मंत्रालय से तत्काल ही चालीस हजार करोड़ की मांग कर डाली है। छटवें वेतन आयोग के चलते रेल्वे पर 55 करोड़ का अतिरिक्त भार पड़ा जिसमें से 36 करोड़ रूपए तो महज एरियर का ही था। रेल्वे की आय में 1,142 करोड़ रूपयों की गिरावट आई है जबकि खर्च 1,330 करोड़ रूपए बढ़ गया है।
यूपी में राहुल फेल
कांग्रेस के की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी और युवराज राहुल गांधी उत्तर प्रदेश से हैं, और उनके निर्वाचन क्षेत्र वाले सूबे में ही कांग्रेस औंधे मुंह पड़ी है। देश को सबसे अधिक प्रधानमंत्री देने वाले इस सूबे में कांग्रेस की सांसें उखड़ने लगी हैं। राज्य में कांग्रेस का आलम यह है कि कांग्रेस के आला नेता ही सूबे में मुकाबले में खड़े होने में ही हिचक रहे हैं। पिछले दिनों राहुल गांधी ने राज्य के नेताओं से रायशुमारी की। रायशुमारी में केंद्र सरकार के घपले घोटाले की ही गूंज रही। थक हार कर राहुल गांधी को यह कहने पर मजबूर होना पड़ा कि पुरानी बातों पर धूल डालिए, नए एजेंडे और नए हौसले के साथ जनता के बीच जाया जाए। उधर कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि जनता का भरोसा कांग्रेस पर से उठ चुका है। पिछले आम चुनावों में जनता ने मनमोहन सिंह की साफ सुथरी छवि को ही वोट दिया था, जो अब पूरी तरह दागदार हो चुकी है। आसमान छूती मंहगाई से जनता बुरी तरह त्रस्त दिख रही है। कांग्रेस के केंद्रीय नेताओं का मत है कि जनता के बीच जाकर उसे बताया जाए कि मंहगाई का असली कारण राज्य सरकार की नीतियां हैं, जिस पर कार्यकर्ता सहमत होते नजर नहीं आ रहे हैं। कार्यकर्ताओं का मानना है कि अगर अभी चुनाव हो गए तो कांग्रेस चारों खाने चित्त ही नजर आएगी।
बाबा रामदेव हो गए सियासी
इक्कीसवीं सदी के स्वयंभू योग गुरू बाबा रामदेव को सियासत का पाठ पढ़ाने वाले वाकई कुशल प्रबंधक हैं। राम किशन यादव उर्फ बाबा रामदेव दो सालों से देश भर में घूम घूम कर स्विस बैंक में जमा काला धन वापस लाने और भ्रष्टाचार मुक्त सियासत की वकालात कर रहे हैं। पहले तो उनकी बातें लोगों के दिमाग पर असर नहीं डाल पा रही थीं, किन्तु अब कांग्रेस और भाजपा के भ्रष्टाचारी चेहरे के खिलाफ जमीनी स्तर पर माहौल बनना आरंभ हो चुका है। लगता है बाबा रामदेव के सियासी गुरूओं की पढ़ाई पट्टी पर चलकर बाबा रामदेव ने जमीनी स्तर पर अपना एक प्लेट फार्म तैयार कर ही लिया है। बाबा की सभा में चालीस से पचास हजार की भीड़ जुटना आम बात है, लोग बाबा रामदेव से इसलिए भी जुड़ रहे हैं, क्योंकि बाबा दो सालों से भ्रष्टाचार को केंद्र बनाकर ही बयानबाजी कर रहे हैं। बाबा की बातों को कामनवेल्थ, टूजी, आदर्श सोसायटी, नीरा राडिया, तेल माफिया के घोटालों के कारण खासी हवा मिल रही है। कांग्रेस और भाजपा के रणनीतिकार चुनाव प्रबंधन पर जोर दे रहे हैं तो बाबा रामदेव इनका रायता फैलाने में लगे हैं। अब देखना महज इतना है कि बाबा रामदेव का अस्त्र आम चुनावों में चलता है या फिर चुनाव प्रबंधन के जरिए सरकार का गठन होता है?
सियासी मित्रों की नो एंट्री है सिंधिया दरबार में
यूं तो युवा तुर्क बनकर उभरे केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के सियासी मित्रों की कमी नहीं है, किन्तु जब उनके दरबार की बारी आती है तो सियासी मित्रों का प्रवेश वहां वर्जित ही है। 1 जनवरी 1971 को जन्मे सिंधिया ने नए साल की पहली किरण के साथ ही अपना चालीसवां जन्मदिन मनाया। यह क्या उनके जन्म दिन के जश्न में एक भी सियासी चेहरा नहीं दिखा। इस पार्टी में सिर्फ उनके मित्र ही शामिल हुए वे भी देश विदेश से आए हुए। सियासी हल्कों में इसकी गहरी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। लोगोें का कहना है कि राजनैतिक मित्रों को वे अपना मित्र नहीं मानते हैं, यहां तक कि इसके पहले उन्होंने अपने विभाग के कबीना मंत्री आनंद शर्मा तक को अपने जन्म दिन के जश्न में बुलाना मुनासिब नहीं समझा। आखिर ज्योतिरादित्य जनाधार वाले नेता हैं, सो उन्हें राजनैतिक मित्रों की बैसाखी की भला क्या जरूरत!
पुच्छल तारा
देश में मंहगाई आसमान छू रही है। चीजों के भाव कई गुना बढ़ चुके हैं। कहीं भी चाय पान या खाना खाने जाईए तो जेब हल्की होना स्वाभाविक ही है। एसी स्थिति में क्या देश में कोई जगह एसी है, जहां कम कीमत पर खाने को मिल जाए। आपका उत्तर होगा नहीं। नहीं जनाब, एसा नहीं है देश में एक जगह एसी भी है जहां माटी मोल खान पान की सामग्री बिकती है। पूना से अनुपम बहल ने ईमेल भेजकर यह जताया है। अनुपम लिखते हैं कि देश में एक जगह एसी है जहां आपको एक रूपए में चाय, साढ़े पांच रूपए में सूप, डेढ़ रूपए में दाल, एक रूपए की चपाती, साढ़े चोबीस रूपए में चिकन, चार रूपए का दोशा, आठ रूपए की वेज बिरयानी, तेरह रूपए की मछली एक प्लेट मिल सकती है। क्या आप जानना चाहेंगे कहां? यह सब कुछ गरीब लोगों के लिए है। यह है इंडियन पार्लियामेंट की केंटीन का रेट कार्ड, जहां देश के वे गरीब खाते हैं, जिन्हें रहने के लिए आवास, आने जाने के लिए एयर कंडीशन सफर सब कुछ निशुल्क के अलावा अस्सी हजार रूपए मासिक वेतन के साथ अनाप शनाप भत्ते मिलते हैं। यह सब देश के हर नागरिक से वसूले गए कर से ही निकलता है। मतलब साफ है कि मजे उड़ाएं देश के गरीब जनसेवक और भोगमान भोगे उन्हें चुनने वाली जनता।

चुनाव सुधार को लेकर संजीदा है चुनाव आयोग

मतदान की उम्र हो सकती है सोलह साल! 
अपराधियों को भी नहीं मिलेगा चुनाव लड़ने का मौका!
 
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। भारत गणराज्य में चुनाव आयोग द्वारा पहली मर्तबा चुनाव सुधार की कवायद की जा रही है। चुनाव आयोग की अगर चली तो आने वाले समय में अपराधी चुनाव मैदान से बाहर हो सकते हैं, साथ ही साथ मतदान की आयु सीमा 18 से घटाकर 16 भी की जा सकती है।
चुनाव आयोग के उच्च पदस्थ सूत्रों ने संकेत दिए हैं कि चुनाव सुधार की गरज से बनाई गई अनेक समितियों की सिफारिशों पर जल्द ही सरकार कदम उठाने जा रही है। माना जा रहा है कि चुनाव आयोग के नए दिशानिर्देर्शों के उपरांत भारतीय लोकतंत्र की काली छवि को निर्मल, उजली और स्वच्छ बनाया जा सकता है।
सूत्रों ने आगे बताया कि अपराधियों के प्रवेश रोकने के अलावा अब सोलह साल के युवाओं को भी अपना मनपसंद उम्मीदवार चुनने का मौका मिलने जा रहा है। इसके साथ ही साथ मतदाताओं को लुभावने आकर्षक मतदाता पहचान पत्र भी उपलब्ध कराए जाने की शुरूआत होने वाली है।
चुनाव के दौरान थैलियों के मुंह खोले जाने पर भी सख्ती होने की उम्मीद जताई जा रही है। कहा जा रहा है कि मौजूदा लोकसभा की तय सीमा 25 लाख और विधान सभा की दस लाख को अनेक प्रत्याशी वैसे ही पार कर जाते हैं, प्रस्तावित चुनाव सुधार विधेयक में इस पर कड़ाई से पालन करवाना भी प्रस्तावित बताया जा रहा है।
उधर कानून मंत्रालय के सूत्रों ने संकेत दिए हैं कि कानून मंत्रालय द्वारा चुनाव सुधार के संबंध मंे लोगों से रायशुमारी की जा रही है। इसके अलावा बजट सत्र के उपरांत राष्ट्रीय स्तर पर विचार विमर्श के उपरांत जो स्वरूप निकलकर आएगा उसका मसौदा तैयार कर इसे इस साल के अंत तक विधेयक की शक्ल में संसद में पेश किए जाने की उम्मीद जताई जा रही है।

एमपी के कलाकारों ने की रक्षा मंत्री से भेंट

एमपी के कलाकारों ने की रक्षा मंत्री से भेंट
भगौरिया नृत्य का प्रदर्शन
नई दिल्ली, (ब्यूरो)। रक्षामंत्री ए.के. एंटनी के समक्ष आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में मध्यप्रदेश के भगौरिया नृत्य की भी आकर्षक प्रस्तुति की गई। नई दिल्ली के केन्टोनमेंट के राष्ट्रीय रंगशाला शिविर के प्रांगण में आयोजित कार्यक्रम में भगौरिया नृत्य प्रस्तुत किया गया जिसकी श्री एंटनी सहित उपस्थित लोगों ने सराहना की।
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश के धार जिले के बाघ प्रिंट पर आधारित झांकी गणतंत्र दिवस परेड में शामिल हुई थी। झांकी के साथ धार-झाबुआ जिले का प्रसिद्ध भगौरिया नृत्य प्रस्तुत किया गया। रक्षामंत्री के साथ मध्यप्रदेश के कलाकारों का ग्रुप फोटो भी हुआ। बाघ प्रिंट के दस्तकार मोहम्मद युसुफ ने रक्षामंत्री श्री एंटनी को बाघ प्रिंट का शाल भंेट किया।

शनिवार, 29 जनवरी 2011

भारत की यह मजबूरी है भ्रष्टाचार जरूरी है

भारत की यह मजबूरी है भ्रष्टाचार जरूरी है
 
(लिमटी खरे)

एक समय में सामाजिक बुराई समझे जाने वाले भ्रष्टाचार ने आजाद हिन्दुस्तान में अब शिष्टाचार का रूप धारण कर लिया है। बिना रिश्वत दिए लिए कोई भी काम संभव नहीं है, यह हमारा नहीं देश की सबसे बड़ी अदालत का मानना है। अस्सी के दशक के मध्य तक भ्रष्टाचार को सामाजिक बुराई समझा जाता था, उस समय भ्रष्टाचार करने वालांे को समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता था। कालान्तर में भ्रष्टाचार की जड़े इस कदर गहरी होती गईं कि हर सरकारी कार्यालय में भ्रष्टाचार अब रग रग में बस चुका है। सरकारी कार्यालयों के बाबू, अफसर और चपरासी बेशर्म होकर ‘कुछ चढ़ावा तो चढ़ाओ‘, ‘बिना वजन के फाईल उड़ जाएगी‘, ‘बिना पहिए के फाईल कैसे चलेगी‘, ‘अरे सुविधा शुल्क तो दे दो‘ आदि जुमले पूरी ईमानदारी के साथ बोलते नजर आते हैं। याद नहीं पड़ता कि पूर्व प्रधानमंत्री स्व.राजीव गांधी के उपरांत किसी जनसेवक ने भ्रष्टाचार के बारे में अपनी चिंता जाहिर की हो। आज कम ही जनसेवक एसे बचे हैं, जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप न हों। यह अलहदा बात है कि भ्रष्टाचार के आरोप सिद्ध होने में बरसों बरस लग जाते हैं, तब तक मूल मामला लोगों की स्मृति से विस्मृत ही हो जाता है। लालू प्रसाद यादव और सुरेश कलमाड़ी इस बात के जीते जागते उदहारण कहे जा सकते हैं जिन पर भ्रष्टाचार के संगीन आरोपों के बावजूद भी कांग्रेसनीत कंेद्र सरकार ने उन्हंे गले लगाकर ही रखा है। विडम्बना यह है कि जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग अक्सर ही खुद को सत्यवादी हरिशचंद के वंशज बताकर भ्रष्टाचार पर लंबे चौंड़े भाषण पेलते रहते हैं, पर जब उसे अमली जामा पहनाने की बारी आती है तब भ्रष्टाचार ही शिष्टाचार बनकर उभर जाता है।

भारत गणराज्य की आने वाली पीढ़ी नब्बे के दशक और इक्कीसवीं सदी के पहले दशक को किसी रूप में जाने या न जाने किन्तु भ्रष्टाचार के गर्त में भारत को ढकेलने के लिए अवश्य ही याद करेगी। नई दिल्ली के एक समाचार पत्र समूह द्वारा इसी साल अगस्त माह के पहले पखवाड़े में कराए गए सर्वे में यह तथ्य उभरकर आया है कि उमर दराज हो चुके दिल्ली के 65 फीसदी लोगों का मानना है कि आजाद भारत में भ्रष्टाचारियों को अधिक ‘आजादी‘ नसीब हुई है। रिश्वत खोरों के लिए सजा का प्रावधान नगण्य ही है। बिना रिश्वत की पायदान चढ़े देश में कोई भी काम परवान नहीं चढ सकता है। लोगों का मानना था कि इस मामले का सबसे दुखद पहलू यह है कि भ्रष्टाचार की जांच करने वाले लोग खुद भी भ्रष्टाचार की जद में हैं। देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली के पेंशनर्स का मानना हृदय विदारक माना जा सकता है कि उन्होंने अपने जीवन में सरकारी सेवा के दौरान जनता की सेवा पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ की किन्तु अब उन्हंे भी रिश्वत की सीढ़ी पर चढ़ने पर मजबूर होना पड़ता है। यह है गांधी नेहरू के देखे गए आजाद भारत की इक्कीसवीं सदी की भयावह तस्वीर।
 
अस्सी के दशक के मध्य तक कमोबेश हर कार्यालय की दीवार पर ‘‘घूस (रिश्वत) लेना और देना अपराध है, दोनों ही पाप के भागी हैं‘‘ भावार्थ के जुमले लिखे होते थे। उसके पहले तक रिश्वत लेने वाले को समाज में बेहद बुरी नजर से देखा जाता था। आज चालीस की उमर को पार करने वाले प्रौढ़ भी इस बात को लेकर चिंतित हैं कि भ्रष्टाचार का तांडव अगर इसी तरह जारी रहा तो आने वाले भारत की तस्वीर कितनी बदरंग और बदसूरत हो जाएगी।
 
जनसेवक, सरकार, न्यायालय हर जगह भ्रष्टाचार को लेकर तरह तरह की बहस होती है। बावजूद इसके जब भी जमीनी हकीकत को देखा जाता है तो भ्रष्टाचार का बट वृक्ष और विशालकाय होकर उभरता दिखाई पड़ता है। इसकी परछाईं इतनी डरावनी होती है कि आम आदमी ईमानदारी से जीने की कल्पना कर ही सिहर जाता है। आज ईमानदार सरकारी कर्मचारी फील्ड पोस्टिंग के बिना मन मसोसकर रह जाते हैं। अनेक विभागों में न जाने एसे कितने कर्मचारी अधिकारी होंगे जो भ्रष्ट व्यवस्था से समझौता न कर पाने के चलते जिस पद पर भर्ती हुए उसी से सेवानिवृत होने पर मजबूर होंगे।
 
हद तो तब हो गई जब देश की सबसे बड़ी अदालत की एक पीठ ने भ्रष्टाचार पर अपनी तल्ख टिप्पणी कर डाली। सुप्रीम कोर्ट की पीठ का कहना था कि अगर सरकार भ्रष्टाचार को रोक नहीं सकती तो उसे कानूनन वैध क्यों नहीं बना देती है। सुप्रीम कोर्ट ने सही कहा है कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश में भ्रष्टाचार पर कोई लगाम नही लग रही है। अगर यही सही है तो सरकार भ्रष्टाचार को कानूनी स्वरूप दे दे।
 
सर्वोच्च न्यायालय की यह टिप्पणी अपने आप में अत्यंत महात्वपूर्ण और आत्मावलोकन करने के लिए पर्याप्त मानी जा सकती है, किन्तु धरातल की हकीकत को अगर देखा जाए तो यह टिप्पणी आम आदमी की लाचारी को ज्यादा परिलक्षित करती है। सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार पर कोर्ट की टिप्पणी भले ही आबकारी, आयकर और बिक्रकर विभाग के बारे में हो पर यह सच है कि संपूर्ण सरकारी तंत्र को भ्रष्टाचार का लकवा मार चुका है। भ्रष्ट सरकारी तंत्र पूरी तरह पंगु हो चुका है। हमें यह कहने में कतई संकोच नहीं है कि सरकार चलाने वाले जनसेवक नपुंसक हो चुके हैं, उनकी मोटी चमड़ी पर नैतिकता के पाठ की सीख का कोई असर नहीं होने वाला है।
 
देश में भ्रष्टाचार का आलम यह है कि ‘‘सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का‘‘ की तर्ज पर जब भ्रष्टाचार पर अकोड़ा और अंकुश कसने वाले ही भ्रष्टाचार के समुंदर में डुबकी लगा रहे हों, तब आम आदमी की बुरी गत होना स्वाभाविक ही है। विजलेंस विभाग आकंठ भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है, पर सरकार में बैठे शीर्ष अधिकारी अपने निहित स्वार्थों के लिए अपने खुद के लिए बस धृतराष्ट की भूमिका को ही उपयुक्त मान रहे हैं।
 
भारत गणराज्य की स्थापना के साथ ही यहां का प्रजातंत्र तीन स्तंभों पर टिका बताया गया था। न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका। इसके अलावा इन तीनों पर नजर रखने के लिए ‘‘मीडिया‘‘ को प्रजातंत्र के चौथे स्तंभ के तौर पर अघोषित मान्यता दी गई थी। विडम्बना यह है कि मीडिया भी इन्हीं भ्रष्टाचारियों की थाप पर मुजरा करते आ रहा है। अपने निहित स्वार्थों के लिए मीडिया ने भी अपनी विश्वसनीयता को खो दिया है। देश भर मंे हर जगह नेता विशेष के चंद टुकड़ों के आगे मीडिया ने अपनी पहचान मिटा दी है। नेताओं द्वारा मीडिया को अपनी इस सांठगांठ में मिलाने के लिए उन्हें राजनैतिक दलों का सदस्य बना लिया जाता है फिर वह मेनेज्ड मीडिया सरकार की वह उजली छवि पेश करता है कि लोगों को लगने लगता है कि फलां नेता भ्रष्टाचारी हो ही नहीं सकता यह उसके खिलाफ विरोधियों का षणयंत्र ही है।
 
इस समय सरकार में शामिल न होकर भी सरकार का रिमोट कंट्रोल अपने हाथ में रखने वाली कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के पति मरहूम राजीव गांधी ने बतौर प्रधानमंत्री कहा था कि केंद्र सरकार से भेजा जाने वाले एक रूपए में से पंद्रह पैसे ही जनता तक पहुंचते हैं। यह बात उन्होंने अस्सी के दशक के पूर्वाध में कही थी। अगर उस वक्त यह आलम था तो आज तो सारी योजनाएं ही कागजों पर सिमटकर रह जाती हैं।
 
विचित्र किन्तु सत्य की बात भी सरकारें ही चरितार्थ करती हैं। राज्य या केद्र सरकार ही योजनाएं बनाती है, उन योजनाओं के लिए धन जुटाकर आवंटित करती हैं, योजनाओं को अमली जामा भी सरकारों द्वारा पहनाया जाता है। योजनाएं पूरी होने पर उनकी समीक्षा भी सरकारों द्वारा ही की जाती है। इस समीक्षा में अंत में निश्कर्ष यही आता है कि उस योजना में वह खामी थी या फिर उस योजना का पूरा लाभ जनता को नहीं मिल पाया। यक्ष प्रश्न तो यह है कि योजना किसने बनाई और किसने क्रियान्वित की? जाहिर है सरकारी सिस्टम ने, तब इसके लिए जवाबदेही तय होना चाहिए या नहीं और अगर पूरा लाभ नहीं मिल पाया तो इस तरह पानी मंे बहाई गई राशि को सरकारी तन्खवाह पाने वालों के वेतन से उसे वसूल क्यों नहीं किया जाना चाहिए?
 
भ्रष्टाचार की अनुगूंज के मध्य भ्रष्टाचार रोकने के लिए तैनात लोकायुक्त ने भी एक सुर से संवैधानिक अधिकारों की मांग आरंभ कर दी है। लोकायुक्त चाहते हैं कि केंद्र सरकार संसद में एक विधेयक लाकर लोकायुक्त संगठन को समेचे देश में एकरूपता प्रदान करे। अब तक अमूमन लोकायुक्त के पद पर किसी बड़ी अदालत के ही सेवानिवृत न्यायधीश को लोकायुक्त बनाया गया है। पिछले चार दशकों का इतिहास इस बात का गवाह माना जा सकता है कि लोकायुक्त द्वारा अब तक छोटे मोटे शिकार के अलावा कौन सी बड़ी मछली को पकड़कर सजा दिलाई हो।
 
महज रस्म अदायगी के लिए तृतीय या चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी पर प्रकरण बनाकर लोकायुक्त संगठन द्वारा भी रस्म अदायगी ही की जाती रही है। भारत गणराज्य के हर सूबे में लोकायुक्त संगठन ने मंत्री, बड़े अधिकारियों नौकरशाहों या दिग्गजों को दागी करार दिया है, बावजूद इसके किसी के खिलाफ भी कार्यवाही न किया जाना भारत के ‘‘सिस्टम की गुणवत्ता‘‘ की ओर इशारा करने के लिए पर्याप्त माना जा सकता है।
 
भारत सरकार के कानून मंत्री भले ही भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए वचनबद्ध होने का स्वांग रच रहे हों, लोकायुक्त संगठनों को अधिक ताकतवर बनाने का प्रयास करने का दिखावा कर रहे हों, पर क्या उनमें इतना माद्दा है कि वे स्वयं इस बात की ताकीद लोकायुक्त संगठनों से करें कि उनके पास कितने प्रकरण लंबित हैं, और कितनी शिकायतों पर लोकायुक्त संगठनों ने क्या कार्यवाही की, किन प्रकरणांे को किस आधार पर नस्तीबद्ध किया गया। दरअसल लोकायुक्त के पास जाने का साहस आम आदमी जुटा नहीं पाता है, इसलिए कम ही लोगों को इस बात की जानकारी हो पाती है कि किसके खिलाफ शिकायत हुई और क्या कार्यवाही हुई।
 
रही बात देश के चौथे स्तंभ मीडिया की तो मीडिया के पास जब लोकायुक्त में दर्ज प्रकरणों की जानकारी आती है, तो मीडिया भी उसका इस्तेमाल ‘‘अंधा बांटे रेवड़ी चीन्ह चीन्ह कर देय‘‘ की तर्ज पर ही करता है। हर सूबे में भ्रष्टाचार के आरोपी मंत्री, नौकरशाहों, दिग्गजों की लंबी फेहरिस्त होगी पर कार्यवाही अंजाम तक किसी भी मामले में नहीं पहुंच पाना निश्चित तौर पर मंशा में कमी को ही परिलक्षित करता है।
 
जो पकड़ा गया वो चोर, बाकी सब साहूकार का सिस्टम आज सरकारी तंत्र में पसरा है। जो भी रिश्वत लेते पकड़ा जाए उसे ही चोर माना जाता है बाकी सारे तंत्र में भ्रष्टाचार को शिष्टाचार की तरह अंगीकार कर लिया गया है। इस मामले में एक वाक्ये का जिकर लाजिमी होगा। मध्य प्रदेश में पंचायती राज की स्थापना के उपरांत प्रदेश मंत्रालय के एक उपसचिव स्तर के अधिकारी स्व.आर.के.तिवारी द्वारा पूूर्व प्रधानमंत्री स्व.राजीव गांधी से भेंट के दौरान त्रिस्तरीय पंचायती राज की व्यख्या की गई थी। उन्होंने स्व. राजीव गांधी से कहा था कि मध्य प्रदेश में तीन स्तर पर पंचायती (भ्रष्टाचार) राज कायम है।
 
पहला है सचिवालय जहां नीति निर्धारक बैठते हैं इसे अंग्रेजी में ‘‘सेकरेटरिएट‘‘ कहते हैं इसका नाम बदलकर ‘सीक्रेट रेट‘ कर देना चाहिए, क्योंकि यहां हर काम का रेट सीक्रेट है। हो सकता है आपका काम एक दारू की बॉटल में हो जाए न काहो कि दस लाख में हो। यहां हर काम का रेट सीक्रेट यानी गुप्त ही है।
 
दूसरा है संचालनालय जिसे आंग्ल भाषा में ‘‘डायरेक्ट रेट‘‘ कहते हैं। संचालनालय में सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए हर विभाग के आला अधिकारी की तैनाती होती है। अपने आंग्ल नाम को मूर्त रूप देता है यह सरकारी कार्यालय। अर्थात यहां हर बात का डारेक्ट यानी सीधा रेट है। फलां काम में डेढ़ परसेंट लगेगा, फलां काम में आवंटन के लिए तीन परसेंट देना होगा वरना आप अपनी व्यवस्था देख लीजिए।
 
अब दो स्तर के बाद तीसरा स्तर आता है जिलों का। हर जिले में इन सरकारी योजनाओं को मैदानी अफसरान द्वारा अमली जामा पहनाया जाता है। हर जिले में जिलाध्यक्ष का कार्यालय होता है। जिलाध्यक्ष का नियंत्रण समूचे जिले पर होता है। जिलाध्यक्ष का काम ही हर बात पर नजर रखना होता है। अंग्रेजी में जिलाध्यक्ष के कार्यालय को ‘‘कलेक्ट रेट‘‘ कहा जाता है। अर्थात जिलांे में प्रदेश या केंद्र सरकार से आने वाली राशि को कलेक्ट किया जाता है, इधर रेट का सवाल ही पैदा नहीं होता है, यहां तो बस कलेक्ट करने का काम ही होता है।
 
हर सूबे में राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो अर्थात ईओडब्लू अपनी अपनी तर्ज और नाम से काम कर रहे हैं। यह पुलिस का ही एक विंग है, जिसका काम आर्थिक तौर पर हो रहे अपराधों पर नजर रखने का है। सरकारी सिस्टम में आर्थिक तौर पर होने वाले अपराधों की जानकारी ईओडब्लू को देने पर उनका फर्ज तत्काल कार्यवाही करने का है। अमूमन देखा गया है कि ईओडब्लू के मातहत सूचना मिलने पर आरोपी से ही भावताव करने जुट जाते हैं। शायद ही कोई सूबा एसा बचा हो जिसमें आर्थिक अपराध रोकने वाली शाखा में दागी अफसर कर्मचारियों की तैनाती न हो। इन परिस्थितियों मंे अगर इन्हें और अधिक साधन संपन्न बना दिया गया तो निश्चित तौर पर भ्रष्टाचार का ग्राफ और अधिक बढ़ जाएगा, क्योंकि भ्रष्टाचारी को बचने के लिए इन संगठनों को अधिक राशि रिजर्व स्टाक में रखना पड़ेगा जो उसे अलग से कमानी होगी।
 
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के पहले कार्यकाल में प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह और रसायन मंत्री राम विलास पासवान के बीच भ्रष्टाचार को लेकर हुए कथित संवाद को सियासी गलियारों में चटखारे लेकर सुनाया जाता था। यह वार्तालाप उनके बीच हुआ अथवा नहीं यह तो वे दोनों ही जाने पर चटखारे लेकर किस्से अवश्य सुनाए जाते रहे। कहा जाता है कि जब राम विलास पासवान के मंत्रालय में भ्रष्टाचार चरम पर पहुंचा तो डॉ. मनमोहन सिंह ने उन्हें बुला भेजा, और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की बात कही। इस पर पासवान भड़क गए और बोले आप हमें मंत्री मण्डल से बाहर कर दें तो बेहतर होगा, हम इसे रोक नहीं सकते, क्योंकि हमें पार्टी चलाना है। पार्टी का खर्च हम आखिर कहां से निकालेंगे?
 
अस्सी के दशक तक शैक्षणिक संस्थानों में नैतिकता का पाठ सबसे पहले पढ़ाया जाता था। अस्सी के दशक के उपरांत जब से शिक्षा का व्यवसाईकरण हुआ है, तब से आने वाली पौध को नैतिकता का पाठ ही नहीं पढ़ाया जा रहा है। इस बात का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब सरकारी स्कूलों का शैक्षणिक स्तर घटिया हो, देश का भविष्य तैयार करवाने वाले शिक्षक शालाओं के बजाए निजी तौर पर ट्यूशन पर जोर दे रहे हों, निजी स्कूलों ने शिक्षा को व्यवसाय बना लिया हो, तब बच्चों को आदर्श और नेतिकता कौन सिखाएगा।
 
वैसे भ्रष्ट नेताओं, भ्रष्ट नौकरशाहों और मीडिया के भ्रष्ट लोगों के गठजोड़ ने देश को भ्रष्टाचार की अंधी सुरंग में ढकेल दिया है। नैतिकता की दुहाई देकर उसे अपने से कोसों दूर रखने वाले लोगांे ने भारत को अंधेरे में बहुत दूर ले जाया गया है। आज आप किसी भी सरकारी दफ्तर में चले जाएं बिना रिश्वत के आपका कोई काम नहीं हो सकता है। और तो और अब तो मंत्रीपद पाने के लिए भी रिश्वत का सहारा लिया जाने लगा है। देश के अनेक जिलों के कलेक्टर्स के पद भी बिकने लगे हैं। देश में परिवहन, आयकर, विक्रयकर, वाणिज्य आदि जैसे मलाईदार विभागों में तो बिना रिश्वत के एक भी तैनाती नहीं हो सकती है।
 
बहरहाल माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भ्रष्टाचार के बारे में अपनी चिंता जताकर सरकार को जगाने का प्रयास किया है। न्यायालय का कहना सही है अगर भ्रष्टाचार का खत्मा नहीं किया जा सकता है तो कम से कम इसे कानूनी जामा पहना दिया जाए, ताकि काम कराने वाले को किसी भी काम के लिए सरकार द्वारा निर्धारित शुल्क की तर्ज पर यह बात तो पता हो कि किस काम के लिए कितनी राशि बतौर ‘चढ़ावा‘, ‘सुविधा शुल्क‘, ‘चढोत्री‘, ‘वजन‘ अथवा ‘शिष्टाचार‘ आदि के लिए अदा करनी है।
 
जरूरत इस बात की है कि सरकार एक नई व्यवस्था को बनाए, जिसमें हर एक व्यक्तिक की जवाबदेही तय हो, जो इस व्यवस्था का पालन ईमानदारी से न करे, उससे राशि वसूली जाए और उसे आर्थिक और सामाजिक तौर पर दण्डित भी किया जाए। इसके लिए महती जरूरत सरकारी तंत्र में शीर्ष में बैठे लोगों को ईमानदार होने की है। अगर वे ईमानदारी से प्रयास करेंगे तो देश को भ्रष्टाचार के केंसर की लाईलाज बीमारी से मुक्त कराने में समय नहीं लगने वाला, किन्तु पुरानी कहावत है कि ‘‘जगाया उसे जाता है, जो सो राहा हो, किन्तु जो सोने का स्वांग रचे उसे आप चाहकर भी नहीं जगा सकते हैं।‘‘

शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

यह कैसा गणतंत्र

यह कैसा गणतंत्र, तंत्र में गण प्रताडि़त

(मनोज मर्दन त्रिवेदी)


गणतंत्र के ६२ वर्ष हो चुके हैं यदि भारतीय दर्शन की दृष्टि से देखा जाये तो ६२ वर्ष बहुत अधिक समय नहीं माना जाता ऐसे कई ६२ हजार वर्ष निकल जाने की बात हमारे धर्म ग्रंथ बखान करते हैं परंतु जिस भौतिक वादी यथार्त युग में हम जीवित हैं उसके लिए ६२ वर्ष एक पूर्ण आयु मानी गई है भारत भी ६२ वर्ष के परिपक्व गणतंत्र का इतिहास समेटे हुए है। दुनिया में काफी प्रतिष्ठित स्थान भी प्राप्त कर चुका है। परंतु आत्म अवलोकन करने पर हमें सोचने पर मजबूर होना पड़ता है, कि जिस गणतंत्र पर हम गर्व करते हैं और सारी दुनिया हमारी पीठ थप-थपाती है वह वास्तविक धरातल में हमे लज्जा का अनुभव कराता है। जिस गण के लिए तंत्र है बहुसंख्यक गण उस तंत्र से अपने अधिकारों से वंचित हैं उन पर उन्ही के निर्वाचित जनप्रतिनिधि और जो तंत्र की व्यवस्था के अनुरूप उनके सेवक हैं जिन्हेे अधिकारी कर्मचारी माना गया है।
ऐसी नौकर शाही देश के बहुसंख्यक गण पर अपने अधिकारों का सिक्का जमाये हुए है, और उनका शोषण कर रही है। इस देश का वास्तविक मालिक कृषक मजदूर जो बहुसंख्यक है, उन पर सत्ताधारी एवं नौकरशाही हावी है दिन रात खेतों में पसीना बहाकर देश की जनता के उदर-पोषण की व्यवस्था करने वाला किसान हर प्रकार की आपदाओं को झेलने के लिए स्वयं संघर्ष करते हुए दिखाई देता है। बड़ी आपदा पर राजनैतिक दलों के नेता उनकी भावनाओं का शोषण करते हैं, और सहयोगी होते हैं इस देश के नौकरशाह दो तरह का उत्पादन प्रमुख रूप से होता है। आम जनता की क्षुधा मिटाने के लिए जमीन का सीना फाड़कर किसान अन्न का उत्पादन करता है, दूसरा उत्पादन वनों का होता है, जमीन के इस दो प्रकार के उत्पादन में कितना बड़ा अन्तर है यह स्पष्ट समझा जा सकता है। लोगों को जीवन देने वाले अन्न का उत्पादन कर्ता अन्नदाता प्राकृति अप्राकृतिक आपदाओं पर स्वयं संघर्ष करता है, या क्षति पूर्ति के रूप में शासकीय तौर पर उसे राहत प्राप्त होती है। जबकि इसी जमीन पर जो शासकीय स्तर पर वन विभाग का अमला उत्पादन करता है उसे शासन द्वारा  बड़ी भारी फौज उपलब्ध करायी गई है, जिसका छोटे-से छोटा कर्मचारी भी  दस हजार रूपये मासिक वेतन पाता है, किसी भी प्रकार की आपदा पर बड़ी-से-बड़ी नुकसानी होने पर उसकी जिम्मेदारी नहीं बनती और उसकी कोई व्यक्तिगत क्षति नहीं होती। दोनो इसी जमीन पर उत्पादन कर रहे हैं परन्तु लाभ - हानि के बीच दोनो के कैसे सम्बन्ध हैं यह स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है। क्या ऐसे तंत्र में सुधार की आवश्यकता नहीं है? बिना सुधार के बहुसंख्यक गणों के लिए तंत्र त्रुटिपूर्ण नजर आता है । कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए इतनी महंगी तकनिकी अपनाने के लिए आकर्षक रंगीन पोस्टरों ने प्रेरित कर दिया है कि कृषकों का जीवन बदरंग हो गया है। बेशक उत्पादन बढ़ा है,परंतु लागत जिस हिसाब से खेती में बढ़ी है किसान निरंतर कर्ज में डूबते जा रहा है और सरकारी कानून मुद्दतों के बने हुए हैं। आपदाओं पर किसानों को शासकीय कोष से मिलने वाली मदद पुराने कानूनों के कारण नहीं मिल पाती। राजनैतिक व्यक्तियों की फसल अवश्य इस प्रकार की कानूनी विसंगति से लहलहा जाती है। किसानों की पीड़ा की चीतकार जितनी तेज होती है,राजनैतिक व्यक्ति उस चीतकार को अपनी फसल में इजाफा मानते हैं और ऐंसे ही नपुंसक नेताओं के कारण अन्नदाता किसान मौत को गले लगाने पर मजबूर हो रहा है। 
     वहंीं यही स्थिति देश की छोटी से लेकर बड़ी-बड़ी व्यवस्थाओं को व्यवस्थित करने में जुटा हुआ,मजदूर जो भिन्न क्षेत्रों में कार्य करता है। जिसकी अपनी कोई पहचान भी नहीं होती कार्य करते हुए यदि वह काल के गाल में समा जाये, तो उसका परिवार उसका अंतिम संस्कार भी कर पायेगा या नहीं इसकी इस तंत्र ने ६२ वर्षो में व्यवस्था नहीं की है जो व्यक्ति पूरे देश के निर्माण में अपना खून पसीना लगा रहा है उसके एवं उसके परिवार को आर्थिक सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है।  ऐसे तंत्र को गणों के लिए परिपक्व गणतंत्र मान लेना क्या हमारी समझदारी है जहां देश में अंगुलियों पर गिने जाने वाले ऐसे पूंजीपति हैं जिनका  नाम दुनिया के बड़े पंूंजीपतियों में शामिल हैं। वहीं असंख्य लोग ऐसे भी हैं जिन्हें दोनो टाईम भरपेट भोजन भी नहीं मिल रहा है ऐसी सफलता पर क्या हम गर्व कर सकते हैं? तंत्र की विसंगति के चलते कुपोषण से निजात नहीं मिल पा रही है। आज भी शिक्षा का प्रकाश अनेक क्षेत्रों में नहीं पहुंचा है। अनेक कठोर कानूनों के बावजूद भी बालश्रम नहीं रूक रहा है। गरीबों के नाम पर बनने वाली योजनाओं  में लूट साधारण बात हो गई है। इस प्रकार की विसंगतियों को जब तक विराम नहीं मिलता,गणतंत्र की सफलता नहीं कही जा सकती। गणतंत्र की सफलता के लिए जब तक बहुसंख्यक गण जागृत नहीं होगा मु_ी भर अवसरवादी लोग गणतंत्र के  नाम पर अपने हितों की पूर्ति के लिए गणतंत्र को कलंकित करते रहेंगे।

किसानों के लिए पचौरी ने मांगा विशेष राहत पैकेज

किसानों के हिमायती बनकर उभरे पचौरी

पीएम और कृषि मंत्री से केंद्रीय दल भेजने का किया आग्रह
 
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सुरेश पचौरी ने आज प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह और केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार से अनुरोध किया है कि मध्य प्रदेश में पाले एवं तुषार के कारण हुए फसलों के नुकसान का आंकलन करने हेतु एक केंद्रीय दल मध्य प्रदेश भेजा जाए ताकि एमपी के किसानों का हुआ फसलों का नुकसान का सही जायजा लगाया जा सके। उन्होने किसानों के लिए विशेष राहत पैकेज तत्काल जारी करने की मांग भी केंद्र से की है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी ने बताया कि उन्होंने इस संबंध में आज कृषि मंत्री शरद पवार से भेंट कर उनसे इस बावत आग्रह किया है। साथ ही साथ श्री पचौरी ने पीएम डॉ.मनमोहन सिंह को इस बावत पत्र भी लिखा है। जनवरी के पहले सप्ताह में पाले और तुषार की अधिकता के कारण हुए फसलों के नुकसान से व्यथित सुरेश पचौरी ने कहा कि प्राकृतिक आपदा के कारण चना, तुअर, मटर, गन्ना, गेंहूं आदि के साथ ही साथ फल एवं सब्जियां पूरी तरह से चौपट हो गई हैं। इन परिस्थितियों में हताश और निराश किसान आत्महत्या पर मजबूर हो रहा है, जिसका सिलसिला अनवरत जारी है।
श्री पचौरी ने कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री और कृषि मंत्री से अनुरोध किया है कि मध्य प्रदेश के किसानों को वित्तीय मदद शीघ्र उपलब्ध कराई जाए। उन्होंने केंद्र से अनुरोध किया है कि इसके सही आंकलन के लिए एक केंद्रीय दल तत्काल मध्य प्रदेश भेजा जाए ताकि फसलों की तबाही का सही मूल्यांकन किया जा सके। साथ ही साथ सुरेश पचौरी ने प्रभावित किसानों के लिए मुआवजा और अंतरिम राहत सहायता के बतौर विशेष राहत पैकेज अविलंब जारी करने की मांग की है।

मंगलवार, 25 जनवरी 2011

मध्य प्रदेश मूल के शेखर सोनी के चित्रों ने मचाया धमाल

सराही जा रही है सलवा जुडूम पर आधारित फोटो प्रदर्शनी

नई दिल्ली (ब्यूरो)। नई दिल्ली के इंडिया हेबीटेट सेंटर में इन दिनों देश भर के चुनिंदा प्रेस फोटोग्राफर्स की छाया चित्र प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है। नेशनल फाउंडेशन फार इंडिया द्वारा हर साल दो फोटोग्राफर्स को चुनकर उन्हें एक लाख रूपए की फैलोशिप प्रदान की जाती है। इस साल मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के उदयपुरा ग्राम निवासी शेखर सोनी को यह प्रदान की गई है।
इस बार इंडिया हेबीटेट सेंटर की ओपन आर्ट गैलरी में शेखर सोनी के अलावा मुंबई के अमित मधोशिय जिनकी फोटो का विषय मुंबई का फुटपाथ है और कोलकता की सुचेता दास जिन्होनंे बाल बीडी मजदूरों के संघर्ष को रेखांकित किया है, की फोटो प्रदर्शित की गई हैं। इस प्रदर्शनी में कुल 76 फोटो प्रदर्शन हेतु लगाई गई हैं।
श्री शेखर सोनी ने बताया कि उन्होंने नक्सलवाद के सलवा जुडूम अर्थात शांति मार्च पर आधारित छाया चित्रों को प्रदर्शन हेतु उपलब्ध कराया है। इस विषय पर उन्हंे प्रेरणा कहां से मिली इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं कि 2005 में एक यात्री बस को नक्सलियों द्वारा उड़ा दिया गया था, उसके बाद ही उन्होंने इस विषय पर काम करने की ठानी। उन्होंने कहा कि पांच साल में उन्होंने नक्सलवाद के प्रभाव को छत्तीसगढ़ जाकर काफी करीब से देखा है।
श्री सोनी ने कहा कि नक्सवादियों के बीच जाकर उनके विरोध में चल रहे इस अभियान के बारे में जानकारी और छायाचित्र लेना बहुत ही कठिन काम था, पर जान हथेली पर रखकर उन्होंने इसे अंजाम दिया। महाराष्ट्र की संस्कारधानी नागपुर को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले शेखर सोनी कहते हैं कि वे हर छः महीने में नक्सल प्रभावित क्षेत्र मंे जाकर अपने काम को अंजाम देते थे।
वे कहते हैं कि उन्होंने अपनी पत्नि को सदा ही भरोसे में लेकर अपने इस अभियान के बारे मेें बताया। उन्होंने कहा कि हर बार वे एक ही बात अपनी अर्धांग्नी को बताकर जाते थे कि अगर वे नहीं लौटे तो उनके दस लाख रूपए के बीमें की राशि से ही आगे गुजर बसर करना।
उनका कहना है कि रमन सरकार द्वारा अगर थोडी और ईमानदारी से इस काम को अंजाम दिया जाता तो आज छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद की जड़ें उखड़ चुकी होतीं। सरकारों की अनदेखी के चलते ही आज नक्सलवाद देश के 22 राज्यों में फैल चुका है। हर राज्य को सलवा जुडुम लागू करे तो इसके सकारात्मक परिणाम सामने आ सकते हैं। इस प्रदर्शनी को केंद्रीय मंत्री मुकुल वासनिक सहित अनेक गणमान्य नागरिकों, पत्रकारों, नेताओं द्वारा सराहा जा रहा है।

सोमवार, 24 जनवरी 2011

भारद्वाज के तीर के मायने

कहां जाकर लगेगा भारद्वाज का तीर

(लिमटी खरे)

कर्नाटक में महामहिम राज्यपाल हंसराज भारद्वाज ने मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा के खिलाफ तलवार तानकर भले ही कांग्रेस का हित साधा हो पर उनके इस तरह के कदम से संवैधानिक विवाद आरंभ होना स्वाभाविक है। भारत गणराज्य की स्थापना के साथ ही साथ देश के अंदर जिस तरह की संवैधानिक व्यवस्था को लागू किया गया है, उसके तहत लाट साहेब यानी राज्यपाल को इस तरह की सिफारिश करने का अधिकार शायद नहीं हैं। मूलतः राज्यपाल मंत्रीमण्डल की सिफारिश पर ही काम करता है, मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा के मंत्रीमण्डल ने राज्यपाल से गुहार लगाई थी कि मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति न दी जाए। इसके पीछे मंत्रीमण्डल का तर्क था कि कर्नाटक के लोकायुक्त के साथ ही साथ सूबाई सरकार द्वारा गठित एक न्यायिक जांच आयोग भी इसकी जांच में लगा हुआ है। कर्नाटक के लाट साहेब हंसराज भारद्वाज मंझे हुए राजनेता हैं, इस बात में कोई शक नहीं, वे मध्य प्रदेश कोटे से राज्य सभा सदस्य रहते हुए केंद्र में कानून मंत्री रह चुके हैं। उनके अनुभव और काबिलियत पर किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए, किन्तु विधि द्वारा स्थापित परंपराओं का पालन उन्हें हर हाल में करना ही होगा। भारद्वाज ने दो अधिवक्ताओं द्वारा दायर याचिका के आधार पर मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति प्रदान कर दी है। हो सकता है भारद्वाज का निर्णय नैतिकता के तकाजे पर खरा उतरे पर भारत गणराज्य में स्थापित विधि मान्यताओं के अनुसार विशेषज्ञ इस पर उंगली उठा ही रहे हैं। पहले भी कुछ लाट साहबों द्वारा इसी तरह के प्रयास किए जा चुके हैं। वस्तुतः राज्यपाल को जनसेवक के खिलाफ मुकदमा चलाने देने की अनुमति देने का अधिकार है, पर आम धारणा है कि राज्यपाल चूंकि राजनैतिक परिवेश से आते हैं अतः वे पूरी ईमानदारी से इस तरह की अनुमति देने के बजाए पूर्वाग्रह से ग्रसित ज्यादा नजर आते हैं।

मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा के मामले में अब कांग्रेस और भाजपा एक दूसरे के सामने ही दिखाई पड़ रही हैं। कांग्रेस के तेवर तीखे हैं, उसका कहना है कि राज्यपाल ने सही किया है। कांग्रेस के अनुसार किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री या मंत्रीमण्डल के किसी भी सदस्य के अनाचार, कदाचार या भ्रष्टाचार अथवा अनैतिक आचरण के मामलों में भारत का संविधान सूबे के राज्यपाल को स्वविवेक से फैसला लेने की इजाजत देता है। दूसरी तरफ भाजपा भी मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा के बचाव में खड़ी दिखाई दे रही है। भाजपा की दलील है कि राज्य का राज्यपाल हर हाल में हर काम के लिए मंत्रीमण्डल की सलाह से बंधा हुआ है। जब मंत्रीमण्डल ने मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा पर मुकदमा न चलाने की सिफारिश की थी, तब राज्यपाल हंसराज भारद्वाज ने कैसे मंत्री मण्डल की सिफारिश को दरकिनार कर दिया। कुछ भी हो पर यह मसला बड़ा ही गंभीर है और इस पर राष्ट्रव्यापी बहस की दरकार है कि कोई राज्यपाल किसी भी मुख्यमंत्री के भ्रष्टाचार अथवा अनैतिक आचरण को आखिर किस सीमा तक बर्दाश्त करे। भाजपा मानसिकता के लोग लाट साहेब के इस कदम को गलत तो कांग्रेसी पृष्ठभूमि वाले इसे सही ठहरा रहे होंगे। आज आवश्यक्ता इस बात की है कि बहस इस पर हो कि क्या राज्यपाल को मंत्री मण्डल की सिफारिश से इतर जाकर स्व विवेक से स्वतंत्र तौर पर फैसला लेने का हक है?

मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा के खिलाफ जिस तरह का वातावरण कांग्रेस बनाना चाह रही है, राज्य की स्थितियां देखकर लगता नहीं कि कांग्रेस अपने मंसूबों में कामयाब हो पा रही है। मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा के समर्थन में राज्य की भाजपा द्वारा शनिवार को आहूत कर्नाटक बंद को मिली आशातीत सफलता ने कांग्रेस के रणनीतिकारों के होश उड़ा दिए होंगे। भले ही राज्य में सरकारी मशीनरी पुलिस और प्रशासन के सहयोग से बंद कराने की बातें प्रकाश में आ रहीं हों पर कर्नाटक राज्य की जनता ने जिस तरह का जनता कफर््यू लगाया उससे लगने लगा है कि मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा पर लगे आरोंपों में बहुत दम नहीं है, या जनता को उन आरोपों से बहुत सरोकार नहीं है। कमोबेश यही स्थिति मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ कांग्रेस द्वारा उठाए गए डंपर मामले में हुआ था। कांग्रेस ने एम पी की जनता को शिवराज के डंपर मामले से रूबरू करवाया। कमोबेश हर किसी की राय बनी कि महज चार डंपर के लिए कोई मुख्यमंत्री इस स्तर तक नहीं जाएगा। बाद में कांग्रेस की अपनी ही कार्यप्रणाली के चलते मध्य प्रदेश में डम्पर मामले की हवा ही निकल गई थी।

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा पर आरोप है कि उन्होंने अपने अनेक रिश्तेनातेदारों को मंहगी सरकारी जमीन सस्ती दरों पर बांट दी है। मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा ने अपने उपर लगे आरोपों को न केवल स्वीकारा वरन् उन जमीनों को वापस भी करवा दिया। मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा का दावा है कि उन्होंने अपने रिश्तेदारों को जमीनें बांटकर कोई अनैतिक काम नहीं किया है। कोई भी मुख्यमंत्री अपने विशेषाधिकार का प्रयोग कर सरकारी जमीन किसी को भी आवंटित कर सकता है, यह गैरकानूनी किसी भी दृष्टिकोण से नहीं कहा जा सकता है। इसके साथ ही साथ उनके मंत्रीमण्डल ने तो यहां तक कहा है कि अभी जांच जारी है, किसी को भी दोषी करार नहीं दिया गया है। प्रथम दृष्टया यह भ्रष्टाचार का मामला बनता ही नहीं है। इन सारी स्थिति परिस्थितियों में महामहिम राज्यपाल द्वारा किस बिनहा पर मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दे डाली।

बहरहाल जो भी हो राज्यपाल हंसराज भारद्वाज ने मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा के खिलाफ जांच की अनुमति देकर अनेक अनुत्तरित प्रश्न खड़े कर दिए हैं। अब यक्ष प्रश्न तो ये हैं कि क्या राज्य के मंत्रीमण्डल की सलाह को धता बताकर राज्यपाल स्वविवेक से निर्णय ले सकता है? क्या मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा के खिलाफ अनुमति मिलने के बाद वे अपने पद पर बने रह सकते हैं? मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा निर्वाचित नेता हैं और सूबे की जनता ने बंद रखकर उन पर भरोसा जताया है, तब क्या राज्यपाल का निर्णय सही है?, एक तरफ लगता है कि राज्यपाल का भरोसा मुख्यमंत्री बी.एस.येदयुरप्पा की सरकार पर से उठ गया है दूसरी और भाजपा के आव्हान पर जनता द्वारा किया गया बंद दर्शा रहा है कि वह अब भी अपने निजाम पर पूरा भरोसा जता रही है। कुल मिलाकर अच्छा मौका है, केंद्र सरकार को चाहिए कि सूबों में बिठाए जाने वाले राज्यपालों को कठपुतली न बनने दे, संविधान में संशोधन कर राज्यपाल के अधिकारों को बढ़ाए ताकि वे हाथी के दिखाने वाले दांतों के बजाए खाने वाले दांत बनें। अगर एसा नहीं है तो फिर किसी भी राज्य में रबर स्टेंप संवैधानिक पद का आखिर मतलब ही क्या है?

टीम सोनिया में दिखेगी राहुल की परछाईं

सोनिया बना रहीं हैं राहुल के लिए रोड़मेप

सरकार के फेरबदल पर एलायंस का साया, किन्तु संगठन में सोनिया दिखाएंगी अपनी ताकत

केरल, तमिलनाडू, बंगाल, असम और पाण्डिचेरी चुनाव होंगे निशाने पर

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी जल्द ही अपनेी कार्यकारणी का गठन करने वाली हैं। मंत्रीमण्डल के आधे अधूरे विस्तार ने सोनिया की टीम के गठन में शूल बो दिए हैं। अभी सोनिया गांधी कांग्रेस कार्यकारिणी तय करने में पशोपेश में ही दिखाई पड़ रही हैं। सोनिया गांधी के करीबी सूत्रों का दावा है कि फरवरी के पहले सप्ताह तक सोनिया गांधी कांग्रेस की कार्यसमिति की घोषणा कर सकती हैं, इसके लिए कवायद लगभग हो चुकी है।

सूत्रों का कहना है कि अगले कुछ माहों में पश्चिम बंगाल, तमिलनाडू, असम, पाण्डिचेरी, केरल के चुनावों को मद्देनजर सोनिया गांधी ने अपनी टीम में चेहरों को चुना है। कांग्रेस अध्यक्ष के अलावा 23 सदस्यों वाली कांग्रेस कार्यसमिति के बनने के बाद चुनावी राज्यों के प्रभारियांे की तैनाती नए सिरे से होने की उम्मीद है। कहा जा रहा है कि राहुल गांधी के लिए भविष्य का रास्ता बनाने के लिए युवाओं के साथ ही साथ अनुभवी लोगों को संगठन में लाकर सोनिया गांधी उनके प्रधानमंत्री बनने के मार्ग प्रशस्त करने वाली हैं।

सोनिया गांधी के सामने सबसे बड़ी चुनौति राज्यों के अध्यक्षों को चुनने की हैै। बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश सहित अनेक राज्यों में कांग्रेस संगठन दम तोड़ चुका है। इन राज्यों में कांग्रेस संगठन मंे जान फूंकने के लिए युवा तुर्को की जरूरत महसूस की जा रही है। संगठन में राहुल गांधी के बेदाग छवि और युवाओं को आगे लाने के फार्मूले पर गंभीरता के साथ विचार किया जा रहा है। इसके अलावा एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत को भी कड़ाई से लागू किया जा सकता है। वर्तमान में मुकल वासनिक, गुलाम नवी आजाद, वी, नारायणसामी केंद्र सरकार में तो पृथ्वीराज चव्हाण महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री होने के साथ ही साथ संगठन में महती जवाबदारी निभा रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि सोनिया गांधी इस बारे में भी विचार कर रही हैं कि वर्तमान में छोटे से विस्तार के उपरांत बजट सत्र के उपरांत सरकार की बड़ी सर्जरी होने के बाद ही वे अपनी टीम का असली स्वरूप कार्यकर्ताओं के सामने लाएंगी।

राजमाता के घर में ही है अंधेर

ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)

अपने घर की हालत तो सुधरिए राजमाता

देश की सबसे ताकतवर महिला श्रीमति सोनिया गांधी को सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस द्वारा राजमाता के रूप में देखा जाता है। श्रीमति सोनिया गांधी महिला हैं, पर महिला आरक्षण विधेयक वे पिछले छः से अधिक सालों में पारित नहीं करवा सकीं हैं। राजमाता की रियासत अर्थात लोकसभा के हाल बेहाल हैं। राजमाता के संसदीय क्षेत्र में प्राईमरी स्तर पर शिक्षकों की जबर्दस्त कमी है, पर राजमाता हैं कि अपनी रियाया की ओर देखने की जहमत ही नहीं उठा रही है। आंकड़ों पर अगर गौर फरमाया जाए तो रायबरेली जिले में विद्यालयों में तीन लाख चालीस हजार 274 विद्यार्थी पंजीकृत हैं, जिनमें से प्राईमरी स्तर पर दो लाख 59 हजार 130 का आंकड़ा है। अगर देखा जाए तो सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र में प्राथमिक स्तर पर दो हजार दो सौ 39 और माध्यमिक स्तर पर एक हजार 143 शिक्षकों की कमी है। एक तरफ कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार द्वारा शिक्षा के अधिकार कानून को लागू कर दिया गया है, वहीं दूसरी और इस सरकार की चाबी अघोषित तौर पर अपने हाथों में रखने वाली श्रीमति सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र का यह हाल है, जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि केंद्र सरकार की महात्वाकांक्षी योजनाएं और कानून सूदूर ग्रामीण अंचलों में किस तरह अमली जामा पहन रहे होंगे।

राजा, राडिया, कलमाड़ी बने भ्रष्टाचारियों के आईकान

लगता है संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की दूसरी पारी में एक प्रतिस्पर्धा चल रही है, वह है कि कौन कितना अधिक भ्रष्टाचार कर सकता है। जनता के गाढ़े पसीने की कमाई को घोलकर पी जाओ, कोई कुछ भी कहने वाला नहीं है। देश की पुलिस हो या दूसरी जांच एजेंसियां सब के सब आंख और मुंह पर पट्टी बांधकर ध्रतराष्ट्र के मानिंद बैठे हैं। हिन्दुस्तान की तो छोडिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुरेश कलमाड़ी, नीरा राडिया, ए.राजा जैसे लोगों ने धूम मचा रखी है। सभी हत्प्रभ हैं कि आखिर भारत गणराज्य में यह क्या हो रहा है, सरेआम भ्रष्टाचार, घपले, घोटाले फिर भी इसमंे लिप्त लोग मिस्टर क्लीन बने बैठे हैं। अब तो इंटरनेशनल लेबल पर कहा जाने लगा है कि एक हजार करोड़ का भ्रष्टाचार मतलब कलमाड़ी, दस हजार करोड़ रूपए का हुआ तो नीरा राडिया और अगर एक लाख करोड़ के उपर गया तो उसे ए.राजा के नाम से ही पुकारा जाए तो बेहतर होगा। देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस इससे ज्यादा दुर्दिन आम हिन्दुस्तानी को और क्या दिखाएगी!

थर्ड ग्रेड की है मध्य प्रदेश की झांकी

गणतंत्र दिवस परेड में मध्य प्रदेश द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली बिना आकर्षण वाली है, जिसके बल बूते एमपी इस परेड में अव्वल की बजाए फिसड्डी ही बना रहेगा। दिल्ली के छावनी इलाके में बन रही इस झांकी को जिस तरीके से बनाया जा रहा है, उससे इस बात में संशय ही लग रहा है कि इसे कोई पुरूस्कार मिल सके। बाघ प्रिंट पर आधारित इस झांकी में विदिशा जिले की शाल भंजिका की प्रतिमा को अगर छोड़ दिया जाए तो शेष में कुछ भी एसा नहीं प्रतीत हो रहा है, जो दर्शकों को बांधे रखे। झांकी की तैयारियों को देखकर लगता है मानो अफसरान ने बला टालने के उद्देश्य से किसी अनाड़ी कलाकार को इसे तैयार करने के काम में लगा दिया है। इस तरह बेरौनक और आकर्षण विहीन झांकी के माध्यम से मध्य प्रदेश सरकार आखिर क्या संदेश देना चाहती है, यह बात तो एमपी के नौकरशाह और जनसेवक ही जाने पर यह तय है कि इस तरह की झांकियों से सूबे की नाक उंची होने के बजाए सूबा उपहास का ही पात्र बनकर रह जाएगा।

ज्योतिषी नहीं राजनेता हैं मनमोहन

मंत्रीमण्डल के बहुचर्चित किन्तु नीरस फेरबदल के उपरांत वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह ने मंहगाई के मामले में अप्रत्याशित जवाब देते हुए कहा कि वे ज्योतिषी नहीं हैं, कि बता सकें कि मंहगाई कब कम होगी, वैसे उन्होंने भरोसा दिलाया कि मार्च तक महंगाई काबू में आ जाएगी। वजीरे आजम की हैसियत से बोलते वक्त डॉ.मनमोहन सिंह यह भूल जाते हैं कि वे प्रसिद्ध अर्थशास्त्री हैं, अर्थशास्त्र के गणित को वे बेहतर समझते हैं। सारी स्थितियां परिस्थितियां उनके सामने हैं। सहयोगी दल यहां तक कि कांग्रेस के मंत्री भी आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे हैं। मनमोहन क्या करें? वे भी तो पिछले सदन के भरोसे ही हैं। कठोर कदम उठाते हैं तो सरकार गिरने का डर, नहीं उठाते हैं तो मंत्री और सहयोगी दल कालर पकड़ने पर आमदा हैं। मनमोहन यह बात भी भूल गए कि उन्होंने पिछले साल आरंभ में कहा था कि मंहगाई अक्टूबर तक काबू में आ जाएगी। फिर क्या हुआ मनमोहन जी, आप भी वालीवुड के चर्चित चलचित्र ‘दामिनी‘ की तरह ‘‘तारीख पर तारीख‘ ही दिए जा रहे हैं। देश की जनता की कमर मंहगाई से टूट रही है, आपके मंत्री शरद पवार कहते हैं कि मंहगाई है कहां? अरे आप या पवार साहेब एकाध मर्तबा बाजार जाएं और वहां खीसे से पैसा निकालकर कुछ खरीदें तब तो ‘आटे दाल का भाव‘ पता चलेगा।

राहुल की जमानत पर छूटे मोईली

केंद्रीय कानून मंत्री वीरप्पा मोईली की बिदाई तय थी। आश्चर्यजनक तरीके से उनकी कुर्सी बच गई। प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह उनसे आजिज आ चुके थे। अब लोग पतासाजी में लगे हैं कि आखिर क्या कारण था कि माईली बच गए। राहुल के करीबी सूत्रों का कहना है कि अमेरिका में उच्च शिक्षा प्राप्त मोईली के दमाद आनंद इनके अघोषित जमानतदार बने जो राहुल गांधी के बचपन के अंतरंग मित्र हैं। फेरबदल के दो घंटे पहले तक संशय बरकरार रहा। कांग्रेस आलाकमान भी मोईली के आंध्र के कारनामों से नाखुश हैं, वे भी उनकी रूखसती की हिमायती थीं। फेरबदल के दो घंटे पहले मोईली को दस जनपथ का बुलावा आया। वहां प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह तब तक मोईली की बिदाई का सारा ताना बाना बुन चुके थे। सूत्र बताते हैं कि इसके पहले कि प्रधानमंत्री और सोनिया गांधी कोई फैसला ले पाते, कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने फच्चर फसा दिया, और मोईली के तारणहार बनकर उभरे। सूत्रों ने बताया कि मोईली का कद और पद दोनों ही बचाए रखने में वीरप्पा माईली के दमाद आनंद अदकोली की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। मोईली ने भी आनंद के माध्यम से राहुल को साधा और हो गए अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब।

इस नौटंकी का क्या मतलब हुआ जैन साहेब

केंद्रीय मंत्री प्रदीप जैन पिछले दिनों लखनउ में रिक्शे पर चले और उनके पीछे पीछे उनकी सुरक्षा में चल रहा स्कार्ट चलता रहा। दरअसल यूपी की निजाम मायावती ने एक फरमान जारी किया है कि अगर कोई केंद्रीय मंत्री अपने निजी या पार्टी के काम से उत्तर प्रदेश आता है तो उसे राजकीय अतिथि का दर्जा नहीं दिया जाएगा, न उसे सरकारी वाहन मिलेगा और न ही सरकारी खर्च पर रूकने खाने की व्यवस्था ही की जाएगी। इस व्यवस्था के लागू होने के साथ ही मंत्री जतिन प्रसाद और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति, जनजाति के अध्यक्ष पी.एल.पूनिया को भी अपनी जेबें हल्की करनी पड़ी थीं, पर उन्होंने तो बवाल नहीं काटा। प्रदीप जैन का यह आडंबर समझ से परे है, क्योंकि वे अपनी पार्टी के काम से लखनउ गए थे। बतौर सांसद रेल में उनका किराया नहीं लगा, जब वे वहां पहुंचे तो उन्हें कम से कम एक टेक्सी ही कर लेना था। मगर अगर जैन एसा करते तो मीडिया की सुर्खियां कैसे बटोर पाते। मायावती का कदम एकदम न्यायसंगत है, आप सरकारी खर्चे पर अपनी पार्टी कैसे मजबूत कर सकते हैं, आखिर वह पैसा जनता के गाढ़े पसीने की कमाई का जो ठहरा।

हाईटेक भ्रष्टाचार हुआ है कामन वेल्थ में

कामन वेल्थ गेम्स को भ्रष्टाचार का महाकुंभ कहा जाने लगा है। इसके शिकंजे में आते ही आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी ने चिंघाड़ा कि वे अकेले नहीं हैं इस दलदल में। कलमाड़ी ने परोक्ष तौर पर कह दिया था कि हमाम में बड़े बड़े निर्वस्त्र खड़े हुए हैं। सीबीआई ने जांच चालू की, नेताओं की सांसें थमी हुईं हैं। इसमें ज्यादा कुछ निकलकर आने की उम्मीद इसलिए नहीं है क्योंकि यह सर्वदलीय भ्रष्टाचार का नायाब नमूना था। चंद दिनों में लोग इसके बारे में भूल जाएंगे और फिर फाईलें धूल खाती फिरंेगी। वैसे सूत्रों ने बताया कि सीबीआई ने अब तक इस महाघोटाले में 154 ईमेल को खंगाला है। बताते हैं कि ईमेल के माध्यम से ही ठेकेदारों से सौदेबाजी होती थी, फिर उस हिसाब से ही बजट बनाकर पास करवा लिया जाता था। सूत्र बताते हैं लगभग पांच दर्जन ईमेल आयोजन समिति और ठेकेदारांे के बीच हुई सांठगांठ की ओर इशारा कर रहे हैं। इनमें से कुछ मेल क्विंस बेटन से संबंधित भी हैं।

राहुल की गणेश परिक्रमा में जुटे जोगी

छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का जलजला एक बार फिर बढ़ सकता है। जोगी आजकल राहुल गांधी को प्रसन्न करने में जुटे हुए हैं। कांग्रेसियों की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी के लिए वरिष्ठ कांग्रेसी अपने अपने हिसाब से रोड़ मेप तैयार करने में जुटा हुआ है, ताकि कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र दस जनपथ का आर्शीवाद उसे मिल सके। इसी तारतम्य में अजीत जोगी द्वारा राहुल बिग्रेड के प्रचार प्रसार का जिम्मा अपने कांधों पर ले रखा है। अजीत जोगी द्वारा राहुल बिग्रेड की शाख देश के हर सूबे में खुलवाई जा रही है। इसके जरिए कमजोर तबके के लोगों की मदद, अन्न, वस्त्र वितरण के साथ ही साथ कांग्रेस शासित राज्यों और केंद्र सरकार की विकासोन्मुखी योजनाओं की जानकारियां देने का काम प्रमुख तौर पर किया जाएगा। कांग्रेस के अंदरखाने में यह चर्चा भी जोर पकड़ रही है कि राहुल बिग्रेड के नाम पर कांग्रेस की राजनीति में हाशिए पर ला दिए गए अजीत जोगी हर राज्य में अपने समर्थकों की खासी फौज खड़ी करने की तैयारी में हैं, ताकि आने वाले समय में वे कांग्रेस के आला नेताओं के साथ बारगेनिंग करने की स्थिति में आ जाएं।

फिर उलझे बाबा रामदेव!

बाबा रामदेव और विवादों का चोली दामन का साथ है। न बाबा बयान बाजी छोड़ते हैं, और न ही विवाद उनका दामन। इक्कीसवीं सदी के स्वयंभू योग गुरू बाबा रामदेव ने जगन्नाथ पुरी में मंदिर में सबके प्रवेश की वकालत कर डाली। फिर क्या था पुरी में मच गया धमाल। लोगों ने बाबा के खिलाफ जमकर नारेबाजी की, बाबा रामदेव के पुतले फूंके यहां तक कि उनकी गिरफ्तारी की मांग तक कर डाली। लोगों का कहना है कि मंदिर में प्रवेश के मसले पर निर्णय लेने का अधिकार पुरी के शंकराचार्य को है, न कि स्वयंभू योग गुरू बाबा रामदेव को। गौरतलब है कि इस मंदिर में गैर हिन्दुओं का प्रवेश वर्जित है। स्वाभिमान पार्टी के जरिए देश की सत्ता हथियाने के लिए लालायित बाबा रामदेव राजनीति में अभी कच्चे खिलाड़ी हैं। किस वक्तव्य का क्या असर होगा इस बात से वे अनजान हैं, साथ ही बाबा के पास राजनैतिक समझ बूझ वाले कुशल प्रबंधक और रणनीतिकारों की कमी है, जिससे वे आए दिन उल जलूल बयानबाजी कर मीडिया की सुर्खियां अवश्य ही बटोर लेते हैं, पर ये सारी बातें बाबा रामदेव के खाते में उनकी लोकप्रियता में इजाफा तो कतई नहीं कर रही हैं।

दुलर्भ जीवों की तस्करी कर रही हैं कार्गो विमान कंपनियां

एक तरफ केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश द्वारा वन्य जीवों को बचाए रखने के लिए अनेक मंत्रियों से दो दो हाथ किए जा रहे हैं वहीं दूसरी और पूर्व उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल और वर्तमान वायलर रवि के नेतृत्व वाला नागरिक उड्डयन मंत्रालय इस बात से अनजान है कि देश के कार्गाे विमान संचालकों द्वारा इनके माध्यम से दुर्लभ वन्य जीवों की तस्करी की जा रही है। मध्य प्रदेश काडर की भारतीय पुलिस सेवा की अधिकारी एवं वन्य जीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो की निदेशक रीना मित्रा कहती हैं कि वन्य जीवों की तस्करी करने वाली दो कार्गाे एयरलाईंस के बारें में जांच जारी है, जब तक शक यकीन में नहीं बदल जाता तब तक इनके नाम उजागर नहीं किए जा सकते। वन एवं पर्यावरण मंत्री को जैसे ही इस बात की भनक लगी, उन्होंने तत्काल ही इस मामले को नागरिक उड्डयन मंत्री के समक्ष रखने का मन बना लिया है, अब देखना यह है कि फेरबदल के बाद जयराम रमेश की पहली भिडंत वायलर रवि से किस तरह और किस स्तर पर होती है।

भाजपा के गांधी ने पीछे छोड़ा युवराज को

भले ही कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी भाजपा के वरूण गांधी से उमर में दस साल बड़े हों पर एक मामले में राहुल गांधी को वरूण गांधी ने मात दे दी है, और वह है शादी का मसला। 19 जून 1970 को जन्मे राहुल गांधी की शादी की आधिकारिक घोषणा अभी नहीं हो सकी है, पर दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी के वरूण गांधी शादी की तैयारियां सप्तपुरियों में से एक पवित्र नगरी वाराणसी के हनुमान घाट पर कांची मठ में आरंभ हो गई हैं। सूत्रों का कहना है कि मेनका गांधी की तमन्ना है कि यह विवाह शास्त्रोक्त विधि से संपन्न हो एवं इसके साक्षी बनें स्वयं कांची कामकोटी पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती। काशी में विवाह के उपरांत दिल्ली में एक प्रीतिभोज का आयोजन भी किया जाने वाला है। राहुल गांधी को महिमा मण्डित करने के कारण भले ही उनका ग्लेमर सर चढ़कर बोल रहा हो, किन्तु देश की निगाहें इस बात पर लगी हैं कि वरूण की शादी में उनकी ताई सोनिया, बहन प्रियंका वढ़ेरा और बड़े भाई ‘‘कुंवारे जेठ‘ राहुल गांधी शामिल होते हैं या नहीं!

पुच्छल तारा

देश के वजीरे आजम ने आखिरकार अपने उन्नीस माह पुराने मंत्रीमण्डल को मथ दिया है। इस मंथन के बाद जो निकलकर आया है वह विष है या अमृत यह तो भविष्य के गर्भ में ही छिपा हुआ है। आज के समय में मनमोहन सिंह मजाक का विषय बने हुए हैं। मध्य प्रदेश के दमोह से शुभी ने एक ईमेल भेजा है, शुभी लिखती हैं कि एक बूढ़े पहलवान ने दावा किया कि आज भी उनके अंदर उतनी ही ताकत है, जितनी कि जवानी में थी। लोगों ने पूछा कैसे भई? पहलवान बोला -‘‘वो बड़ा पत्थर देख रहे हो न, में उसे जवानी में भी नहीं उठा पाता था, और आज भी नहीं उठा पाता हूं। इसी तर्ज पर मनमोहन सिंह ने मंत्रीमण्डल फेरबदल के बाद सोचा होगा कि वे आज भी उतने ही ताकतवर हैं जितने कि चंद साल पहले थे। वे आज भी कड़े फैसले नहीं ले सके और चंद साल पहले भी कड़े फैसले नहीं ले पाए थे।

नर्मदा कुंभ की तैयारियां जोरों शोरों से

नर्मदा सामाजिक कुम्भ की तैयारियां

(मनोज मर्दन त्रिवेदी)

सिवनी आगामी फरवरी माह में १०-११ एवं १२ फरवरी को मंडला मे आयेाजित नर्मदा सामाजिक कुम्भ की तैयारियां अपने अंतिम चरण में है। सामाजिक कुम्भ में व्यवस्था की दृष्टि से अन्न एवं धन संग्रह समाज द्वारा किया जा रहा है। राष्ट्रीय स्वयं सेंवक संघ सहित कुम्भ के आयोजन में सक्रिय येागदान करने वाले संगठनों द्वारा नर्मदा सामाजिक कुम्भ में प्रशासनिक व्यवस्थाओं के अतिरिक्त व्यवस्थाएं कुम्भ में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को प्रदान करने के लिए बड़ी तैयारियां की गई हैं अनुमान है कि नर्मदा सामाजिक कुम्भ में २० से ३० लाख श्रद्धालुओ शामिल होंगे, इस सामाजिक महाकुम्भ में देश भर से श्रद्धालु पहुंचेेगे जिसके लिए व्यापक तैयारियां की गई हैं म.प्र. में महाकाल की नगरी उज्जेन में कुम्भ लगने की परम्परा सनातन काल से रही है यह पहला अवसर है जब आदिवासी क्षेत्र के गोण्डवाना क्षत्रपों के गढ़ मण्डला में नर्मदा सामाजिक कुम्भ का आयोजन किया जा रहा है नर्मदा सामाजिक कुम्भ की सारी तैयारियां लगभग पुरी कर ली गई है श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए ५१ उपनगरों का निमार्ण किया गया है। जिन्हे छ: महानगरों में विभाजित किया जायेगा। यह महानगर देश के महापुरूषों के नाम पर बसाये जा रहे हैं त्रि दिवसीय समाजिक महाकुम्भ में देश भर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए छ: भोजनालय अलग-अलग महानगरों में बनाये जायेंगे महा कुम्भ आयोजन समिति द्वारा भिन्न मार्गों से आनेवाले श्रद्धालुओ को अलग-अलग क्षेत्रों में विभाजित कर मार्गो के अनुसार व्यवस्थाएं प्रदान की जा रही हैं, मंडला में सामाजिक कुम्भ धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण तो है ही यह ऐतिहासिक और म.प्र. की जीवन रेखा का उदगम क्षेत्र है इसके साथ ही आदिवासी समुदाय जो प्रकृति के पूजक हैं उस संस्कृति से देश की जनता को परिचित करना भी सामाजिक महाकुम्भ का उद्देश्य है। सामाजिक महाकुम्भ को लेकर प्रदेश में एक धार्मिक वातावरण निर्मित हो रहा है, पूरे प्रदेश में नर्मदा सामाजिक कुम्भ को लेकर आम जनता में व्यापक उत्साह देख जा रहा है। मंडला से लगे हुए जिलों में कुम्भ में जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए यात्री वाहनों की अतिरिक्त व्यवस्था भी की जा रही है, जिस प्रकार की व्यवस्थाएं नर्मदा सामाजिक कुम्भ में की गई हैं उससे स्पष्ट होता है कि यह सामाजिक महाकुम्भ मण्डला जिले को ही नहीं पूरे प्रदेश को एक अलग पहचान प्रदान करेगा। सामाजिक कुम्भ की कल्पना ही मण्डला के धार्मिक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व को प्रतिपादित करने की है मण्डला जिले में निवास करने वाली जनजातियां विभिन्न प्रकार की समस्याओं से जुझ रही है। प्रकृति से आगाध प्रेम रखने वाली पराक्रमी ये जनजातियां शिक्षा के पर्याप्त अवसर प्राप्त न होने के कारण विकास की मुख्य धारा से कटी हुई नजर आती हैं इन्हें शिक्षा का पर्याप्त अवसर मिल जाये तो इनके प्रकृति सम्बन्धी ज्ञान का व्यापक उपयोग देश में सार्थक परिणाम देने वाला सिद्ध होगा। सामाजिक कुम्भ देश की एकता अखण्डता और राष्ट्रीयभक्ति जागृत करने के उद्देश्य से महत्वपूर्ण हैं पूरे प्रदेश में कुम्भ में शामिल होने के लिए हिन्दुवादी संघठनों के कार्यकर्ता और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्वयं सेवक कुम्भ में पहुंचने का संदेश दे रहे हैं। अनेक जिलो एवं प्रदेशो से कुम्भ के लिए धन संग्रह और अनाज संग्रह हो रहा है। ट्रकों से भरकर अनाज व्यवस्था के लिए पहुंच रहा है हर दिन कुम्भ स्थल पर दो लाख व्यक्तियों को लिए भोजनालयों में भोजन बनाया जायेगा। कुम्भ में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को शुद्ध पेयजल प्राप्त हो, रूकने की बेहतर व्यवस्था, स्नान,आदि की व्यवस्थाएं, चिकित्सा व्यवस्था बेहतर ढंग से की गई है राज्य सरकार भी कुम्भ के सफल आयोजन के लिए व्यवस्थाएं जुटा रही हैं इस धार्मिक कुम्भ में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघचालक मोहन राव भागवत, सरकार्यवाह भैयाजी जोशी, निर्वतमान संघचालक कुप्पसी सुदर्शन, सरकार्यवाह सुरेश सोनी, दत्ता होसबोले, गोविंद गिरी महाराज, जगत्गुरूबद्रीपीठ, वासुदेवानंद सरस्वती, पूज्य दीदी मां ऋतम्भरा, भारतमाता मंदिर के संस्थापक, स्वामी सत्यमित्रानंद जी, आचार्य महामण्डलेश्वर श्यामदास जी महाराज जबलपुर, सुखदेवानंद जी अमरकंठक, जगत्गुरू राज-राज सेवा आश्रम, हरिद्वार रामानंदचार्य जी स्वामी, सहित बड़ी संख्या में विद्वान एवं साधु संतों का सानिध्य प्राप्त होगा।

शनिवार, 22 जनवरी 2011

Offering comfort


Offering comfort

Jan 22, 2011  PTI.Share..
Madhya Pradesh BJP president Prabhat Jha seeks the blessings of senior leader Sushma Swaraj at her residence in Bhopal on Friday. Mr Jha met Ms Swaraj to express his condolences over the demise of her brother. PHOTO : PTI

शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

एपी कांग्रेस अध्‍यक्ष की तलाश तेज

भूरिया के हाथों होगी एमपी कांग्रेस की बागडोर

दिग्विजय सिंह खड़े हैं कांतिलाल के पीछे चट्टान की तरह

सिंधिया, पचौरी को प्रदेश में नहीं पसारने देना चाहते पैर

अरूण यादव पर लग सकता है दांव

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। मनमोहन सिंह मंत्रीमण्डल में फेरबदल के उपरांत अब कांग्रेस संगठन की बारी है। मध्य प्रदेश में कांग्रेस में जान फूंकने के लिए कांग्रेस आलाकमान ने आदिवासी मामलों के मंत्री कांतिलाल भूरिया को एमपी कांग्रेस कमेटी का नया निजाम बनाने का मन बना लिया है। पिछले दिनों कांतिलाल भूरिया को मंत्री मण्डल से रूखसत होने खबरों को धता बताते हुए उन्होंने अपनी कुर्सी सलामत रखी है। कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि विस्तार के पहले मंगलवार को भूरिया ने प्रणव मुखर्जी के साथ कांग्रेस अध्यक्ष के निवास पर जाकर भेंट की थी, और श्रीमति गांधी को राजनैतिक समीकरणों से आवगत कराया था, जिससे उनकी लाल बत्ती बच गई।

गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में जमुना देवी के अवसान के उपरांत आदिवासी नेतृत्व को उभारने के लिए आलाकमान किसी योग्य आदिवासी नेता के चयन में लगा हुआ है। कांग्रेस के संगठन के सूत्रों का कहना है कि कांतिलाल भूरिया के विभाग में राजस्थान के सीकर से चुने गए महादेव सिंह खंडेला को बतौर राज्यमंत्री इसलिए शामिल किया गया है ताकि अगर भूरिया मध्य प्रदेश में ज्यादा समय दें तो विभाग का कामकाज ज्यादा प्रभावित न हो पाए। उधर कांतिलाल भूरिया के सर पर कांग्रेस के ताकतवर महासचिव राजा दिग्विजय सिंह का वरद हस्त है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस के वर्तमान प्रदेशाध्यक्ष सुरेश पचौरी और युवा तुर्क ज्योतिरादित्य सिंधिया दोनों ही दिग्विजय सिंह की आखों में खटक रहे हैं। दिग्विजय सिंह की कोशिश है कि इन दोनों ही नेताओं को मध्य प्रदेश से बाहर ही रखा जाए।

कांग्रेस मुख्यालय से छन छन कर बाहर आ रही खबरों पर अगर यकीन किया जाए तो आलाकमान की नजरों में एमपी के लिए भूरिया के अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया और अरूण यादव सबसे उपयुक्त दावेदार नजर आ रहे हैं, किन्तु तीनों के साथ सबसे बड़ी समस्या यह आ रही है कि तीनों ही मंत्री अपनी लाल बत्ती को तजकर प्रदेश कांग्रेस कमेटी का कांटों भरा ताज पहनने में दिलचस्पी नहीं रख रहे हैं। भूरिया के नाम पर एमपी के क्षत्रप कमल नाथ और अर्जुन सिंह को भी आपत्ति नहीं होगी। मंत्रीमण्डल विस्तार में सुरेश पचौरी का नाम नहीं आने से अब उनके भविष्य के बारे में भी अटकलों अफवाहों का बाजार गर्मा गया है। कहा जा रहा है या तो उन्हें टीम सोनिया में बतौर महासचिव शामिल किया जा सकता है या फिर उन्हें किसी सूबे में राज्यपाल बनाकर भी भेजा जा सकता है। वैसे मनमोहन सिंह ने बजट के बाद बड़े विस्तार के संकेत देकर साफ कर दिया है कि आने वाले समय में कुछ और चेहरों को लाल बत्ती से नवाजा जा सकता है।

प्रभात झा पर गरजे भूरिया

झा के आरोप तथ्यहीन: भूरिया

नई दिल्ली, (ब्यूरो)। केंद्रीय जनजाति मंत्री कांतिलाल भूरिया ने मध्य प्रदेश भाजपाध्यक्ष प्रभात झा के उन आरोपों को सिरे से नकार दिया है, जिसमें भाजपाध्यक्ष ने एमपी के चारों केंद्रीय मंत्रियों को नमक हराम बताया था। भूरिया के अतिरिक्त निज सचिव आर.बी.शर्मा के हस्ताक्षरों से जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि प्रभात झा के आरोप तथ्यहीन है, वास्तविकता इससे बिल्कुल उलट है। प्रभात झा का कथन उनकी ‘विकृत मानसिकता‘ का घोतक है। भूरिया ने आरोप लगाया कि मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार केंद्र द्वारा दी जा रही धनराशि को ही खर्च नहीं कर पा रही है।

केंद्रीय मंत्री भूरिया का कहना है कि उन्हीं के मंत्रालय द्वारा छः सालों में 13,408 करोड़ रूपए की राशि आवंटित की है, जबकि एनडीए की सरकार ने छः सालों में महज 5,865 करोड़ रूपए ही जारी किए थे। उन्होंने कहा कि आदिवासियों के हितों को देखकर यूपीए सरकार द्वारा ऐतिहासिक वन अधिकार अधिनियम 2006 पारित किया है। इसके तहत पिछले साल दिसंबर तक मध्य प्रदेश से 4 लाख 19 हजार 226 दावे प्राप्त हुए जिसमें से 1 लाख 12 हजार 148 अधिकार पत्र वितरित कर दिए गए एवं 2,58,402 दावों को निरस्त कर दिया गया।

विज्ञप्ति में भूरिया के हवाले से कहा गया है कि आदिवासियों के लिए केंद्र सरकार ने अपना खजाना खोल दिया गया है। आदिवासी विकास के लिए बजट में 3 हजार 936 करोड़ रूपए का प्रावधान करते हुए 1367 करोड़ रूप्ए आवंटित भी कर दिए गए, इसके जवाब में एमपी गर्वमेंट ने महज 672 करोड़ रूपयों का ही उपयोग किया जा सका है। अनुसूचित जाति उपयोजना में दो हजार 714 करोड़ 16 लाख के बजट के एवज में 1262 करोड़ 92 लाख रूपए आवंटित करने के बाद भी मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 471 करोड़ रूपए ही व्यय किए जा सके हैं। भूरिया ने आरोप लगाया कि खर्च न हो पाने के कारण हर साल चार पांच सौ करोड़ रूपए लेप्स हो रहे हैं। भूरिया ने मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष प्रभात झा को नसीहत देते हुए कहा है कि वे किसी पर टीका टिप्पणी करने के पहले एक बार अपनी गिरेबान में जरूर झांक लें।

मध्यप्रदेश की झांकी ’बाघ प्रिन्ट’ पर आधारित

गणतंत्र दिवस परेड: मध्यप्रदेश की झांकी ’बाघ प्रिन्ट’ पर आधारित

नई दिल्ली, (ब्यूरो)। वर्ष 2011 की गणतंत्र दिवस परेड में इस वर्ष मध्यप्रदेश के बाघ प्रिन्ट पर आधारित झांकी राजपथ की शोभा बढ़ायेगी। झांकी के आगले हिस्से में शाल भंजिका की विशाल मूर्ति दिखायी गयी है। झांकी के मध्य में बाघ के छापे की कारीगरी को दर्शाया गया है।

गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में वस्त्रों की बुनाई और छापे की परम्परा सदियों पुरानी है। बाघ की छापाकला देश में लकड़ी के छापों से कपड़े पर होने वाली छपाई परम्परा की कड़ी है। कपड़ों की छपाई के प्रमाण प्राचीन कला की मूर्ति शिल्पों मंे भी दिखायी देते हैं। जैसे 11वीं शताब्दी की विख्यात शाल भंजिका प्रतिमा में छपे वस्त्र स्पष्ट दिखते हैं।

बाघ वह स्थान है जहां वस्त्र छपाई की परम्परा अपने शीर्ष पर दिखायी देती है। इसमें क्षेत्र की विशेष भौगोलिक स्थितियों की भी भूमिका है। इस क्षेत्र के कारीगरों ने वर्षों अपनी कला को निखारा है, यहां की भूगर्भीय स्थितियों को भी समझा है और अभिव्यक्ति का अनुपम उदाहरण बाघ के वस्त्र छपाई के रूप में दुनिया को दिया है। लाल और काले रंगों के प्रयोग से बने बाघ के वस्त्र अपनी साड़ी अभिव्यक्ति में अद्भुत रचना होते हैं। वस्त्रों पर रंगों की यह चमक कहीं और सम्भव नहीं है। यह छपाई रासायनिक रंगों की विशेष प्रकृति के कारण होता है। ज्यामितीय रूपकारों और रंगों का अद्भुत प्रयोग बाघ की वस्त्र छपाई मध्यप्रदेश को विशेष पहचान देता है।

M P TABLEAU ON BAGH PRINT

Republic Day Parade 2011: Madhya Pradesh Tableau on Bagh Prints







New Delhi, January 21, Madhya Pradesh Tableau on Bagh Prints will grace the Republic Day Parade 2011at Rajpath. The front portion of the float shows a huge Shal Bhanjika which depicts the celestial beauty of 11th Century droped in printed cloth.


Bagh prints of Madhya Pradesh represents one of the most ancient traditions of wooden block printings on cloths. Weaving and block printing traditions goes back to centuries.


Bagh with its unique geographical locations and is the place where the craft and art of block printing has reached its pinnacle. The use of colours red and black create a wondrous effect, which is impossible to get any where else. This is possible only because of chemical properties of the area.


Geometric designs and imaginative use of colours give Bagh prints a distinct identity.

गुरुवार, 20 जनवरी 2011

राष्ट्रधर्म के बजाए गठबंधन धर्म निभाया कांग्रेस ने

आजाद भारत के सबसे बेबस प्रधानमंत्री साबित हुए मनमोहन

इससे बेहतर तो पुराना चेहरा ही था

कांग्रेस के अंदर ही उबल रहा है असंतोष

(लिमटी खरे)

भारत गणराज्य भ्रष्टाचार, अनाचार, दुराचार की आग में जल रहा है, उधर कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी और वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह नीरो के मानिंद चैन की बंसी बजा रहे हैं। कांग्रेस के युवराज ने कुछ दिन पहले गठबंधन की मजबूरियों पर प्रकाश डाला था। देशवासियों के जेहन में एक बात कौंध रही है कि बजट सत्र के ठीक पहले हुए इस फेरबदल और विस्तार के जरिए कांग्रेस क्या संदेश देना चाह रही है? संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की दूसरी पारी में जितने घपले घोटाले सामने आए हैं, वे अब तक का रिकार्ड कहे जा सकते हैं। मंत्रियों, अफसरशाही की जुगलबंदी के चलते लालफीताशाही के बेलगाम घोड़े ठुमक ठुमक कर देशवासियों के सीने पर दली मूंग के मंगौड़े तल रहे हैं। महंगाई आसमान छू रही है, आम आदमी मरा जा रहा है, प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि वे ज्यांतिषी नहीं हैं कि बता सकें कि आखिर कब महंगाई कम होगी। मनमोहन भूल जाते हैं कि वे भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री हैं। भारत के संविधान में भले ही महामहिम राष्ट्रपति को सर्वोच्च माना गया हो किन्तु ताकतवर तो प्रधानमंत्री ही होता है। अगर मनमोहन सिंह चाहें तो देश में मंहगाई, घपले घोटाले, भ्रष्टाचार पलक झपकते ही समाप्त हो सकता है, किन्तु इसके लिए मजबूत इच्छा शक्ति की आवश्यक्ता है, जिसकी कमी डॉ.मनमोहन सिंह में साफ तौर पर परिलक्षित हो रही है।

उन्नीस माह पुरानी मनमोहन सरकार में पिछले लगभग अठ्ठारह माह से ही फेरबदल की सुगबुगाहट चल रही थी। तीन नए मंत्रियों को शामिल करने, तीन को पदोन्नति देने और चंद मंत्रियों के विभागों में फेरबदल के अलावा मनमोहन सिंह ने आखिर किया क्या है? हमारी नितांत निजी राय में यह मनमोहनी डमरू है, जो देश की मौजूदा समस्याओं, घपलों, घोटालों, भ्रष्टाचार, नक्सलवाद, अलगाववाद, आतंकवाद की चिंघाड़ से देशवासियों का ध्यान बंटाने का असफल प्रयास कर रहा है। संप्रग दो में असफल और अक्षम मंत्रियों को बाहर का रास्ता न दिखाकर प्रधानमंत्री ने साबित कर दिया है कि वे दस जनपथ (श्रीमति सोनिया गांधी के सरकारी आवास) की कठपुतली से ज्यादा और कुछ नहीं हैं। आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे मंत्रियों को बाहर करके मनमोहन सिंह अपनी और सरकार की गिरती साख को बचाने की पहल कर सकते थे, वस्तुतः उन्होंने एसा किया नहीं है। आज देश प्रधानमंत्री से यह प्रश्न पूछ रहा है कि जो मंत्री अपने विभाग में अक्षम, अयोग्य या भ्रष्टाचार कर रहा था, वह दूसरे विभाग में जाकर भला कैसे ईमानदार, योग्य और सक्षम हो जाएगा? साथ ही साथ प्रधानमंत्री को जनता को बताना ही होगा कि आखिर वे कौन सी वजह हैं जिनके चलते मंत्रियों के विभागों को महज उन्नीस माह में ही बदल दिया गया है। क्या वजह है कि सीपीजोशी को ग्रामीण विकास से हटाकर भूतल परिवहन मंत्रालय दिया गया है?

दरअसल विपक्ष द्वारा शीत सत्र ठप्प किए जाने के बाद अब बजट सत्र में अपनी खाल बचाने के लिए मंत्रियों के विभागों को आपस में बदलकर देश के साथ ही साथ विपक्ष को संदेश देना चाह रही है कि अब भ्रष्ट मंत्रियों की नकेल कस दी गई है। वैसे कांग्रेस की नजरों में भविष्य के प्रधानमंत्री और युवराज राहुल गांधी की युवा तरूणाई को इस मंत्रीमण्डल में स्थान न देकर कांग्रेस ने एक संदेश और दिया है कि आने वाले फेरबदल में भ्रष्टों को स्थान नहीं दिया जाएगा, बजट सत्र के बाद जो फेरबदल होगा वह राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने का रोडमेप हो सकता है। इसी बीच इन तीन चार माहों में भ्रष्ट और नाकारा मंत्रियों को भी अपना चाल चलन सुधारने का मौका दिया जा रहा है, किन्तु मोटी खाल वाले मंत्रियों पर इसका असर शायद ही पड़ सके। इसी बीच मंहगाई पर काबू पाने के लिए भी कुछ प्रयास होने की उम्मीद दिख रही है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी की जो छवि है, वह भी बचाकर रखने के लिए कांग्रेस के प्रबंधकों ने देशी छोड़ विदेशी मीडिया को साधना आरंभ कर दिया है। कांग्रेस के प्रबंधक जानते हैं कि देश में मीडिया को साधना उतना आसान नहीं है, क्योंकि न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के बाद अघोषित चौथे स्तंभ ‘‘मीडिया‘‘ के पथभ्रष्ट होने के उपरांत ‘ब्लाग‘ ने पांचवे स्तंभ के बतौर अपने आप को स्थापित करना आरंभ कर दिया है।

इस फेरबदल में वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी, कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी को भारी मशक्कत करनी पड़ी है। एक दूसरे के बीच लगातार संवाद कराने में कांग्रेस अध्यक्ष के राजनैतिक सलाहकार अहमद पटेल की महती भूमिका रही। किसी को इस फेरबदल का लाभ हुआ हो अथवा नहीं किन्तु इसका सीधा सीधा लाभ अहमद पटेल को होता दिख रहा है, जिन्होंने एक बार फिर कांग्रेस सुप्रीमो की नजर में अपनी स्थिति को मजबूत बना लिया है। दस जनपथ और सात रेसकोर्स के बीच अहमद पटेल ने सेतु का काम ही किया है। बताते हैं कि फेरबदल में मंत्रियों को बाहर का रास्ता न दिखाने का सुझाव अहमद पटेल का ही था। पटेल ने कांग्रेस अध्यक्ष को मशविरा दिया कि अगर मंत्रियों को हटाया गया तो वे पार्टी के अंदर असंतोष को हवा देंगे, तब बजट सत्र में टू जी स्पेक्ट्रम, विदेशों में जमा काला धन वापस लाना, नामों के खुलासे, महंगाई, सीवीसी की नियुक्ति आदि संवेदनशील मुद्दों पर पार्टीजनों को संभालना बड़ी चुनौती बनकर सामने आएगा। भले ही कांग्रेस प्रबंधकों ने यह सोचा होगा कि टीम मनमोहन से आक्रोश को शांत किया जा सकता है, किन्तु अभी भी पार्टी के अंदर लावा उबल ही रहा है।

मनमोहन ने देश की वर्तमान चुनौतियों को दरकिनार कर गठबंधन का धर्म ही निभाया है। भारत में गठबंधन सरकार का श्रीगणेश सत्तर के दशक में हुआ था। आपातकाल के उपरांत 1977 में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था, उस समय मोरारजी देसाई के नेतृत्व में पहली गठबंधन सरकार केंद्र पर काबिज हुई थी। इसके बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, नरसिंम्हाराव, अटल बिहारी बाजपेयी, एच.डी.देवगौड़ा, इंद्रकुमार गुजराल पुनः अटल बिहारी बाजपेयी के बाद डॉ.मनमोहन ंिसह की सरकार द्वारा दो बार गठबंधन के जरिए केंद्र पर राज किया है। इक्कीसवीं सदी में सरकार में शामिल सहयोगी दलों द्वारा जब तब कांग्रेस या भाजपा की कालर पकड़कर उसे झझकोरा है। बिना रीढ़ के प्रधानमंत्रियों ने सहयोगी दलों के इस रवैए को भी बरदाश्त किया है। बहरहाल जो भी हो गठबंधन धर्म निभाते हुए कांग्रेस हो या भाजपा दोनों ही ने सत्ता की मलाई का रस्वादन अवश्य किया है पर गठबंधन के दो पाटों के बीच में पिसी तो आखिर देश की जनता ही है।