मंगलवार, 7 दिसंबर 2010

इक्कीसवीं सदी का ‘लोकतंत्र‘ मतलब ‘हिटलरशाही‘

हिटलरशाही हो गए हैं भारत गणराज्य में लोकतंत्र के मायने

(लिमटी खरे)

आजादी के लगभग सवा छः दशकों बाद अब चुनिंदा लोग ही बचे होंगे जिन्हें वास्तव में पता होगा कि ब्रितानियों के जुल्मों को सहकर कितनी मशक्कत के उपरांत भारत ने आजादी हासिल की थी। कितने अरमान के साथ भारत गणराज्य की स्थापना की गई थी। क्या क्या सपने देखे थे, उस वक्त जवान होती पीढ़ी ने। उनकी कल्पनाओं को साकार करने के लिए सरकारों ने पूरे जतन से कोशिश की। आज तक की सरकारों की कोशिशें कितनी ईमानदार थीं, इस बारे में हालात देखकर ज्यादा कुछ कहना अतिश्योक्ति ही होगी। इक्कीसवीं सदी की कल्पना कांग्रेस के पूर्व प्रधानमंत्री स्व.राजीव गांधी ने कुछ और की थी, किन्तु उनके परिजनों की अगुआई में आगे बढ़ने वाली कांग्रेस ने इक्कीसवीं सदी में लोकतंत्र की परिभाषा ही बदल दी है। वर्तमान में ‘‘लोकतंत्र‘‘ के मायने ‘‘हिटलरशाही‘‘ हो गए हैं।

सवा सौ साल पुरानी और आजादी के उपरांत आधी सदी से ज्यादा इस देश पर राज करने वाली कांग्रेस पार्टी की अगुआई वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की छवि साफ, स्पष्ट, सच्चे और ईमानदार इंसान की है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है, किन्तु पिछले कुछ सालों मंे उनकी आखों के सामने जो भी घटा है, उसे देखकर उनकी छवि धूल धुसारित ही हुई है। घोटाले दर घोटाले सामने आने के बाद भी वे मूकदर्शक बने बैठे हैं। जब भी समाचार चेनल्स पर वजीरे आजम दिखाई देते हैं, आम आदमी के मानस पटल पर उनके निरीह और बेबस होने का भाव आ ही जाता है।

हाल ही में केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) के संवैधानिक पद पर पी.जे.थामस की नियुक्ति के उपरांत जो बवाल मचा है, वह थमता नहीं दिख रहा है। संसद लगातार ठप्प ही पड़ी हुई है। विपक्ष भी अपनी मांग पर अडिग ही है। 2004 के उपरांत पहला मौका होगा जब विपक्ष ने सशक्त भूमिका निभाई हो, हो भी क्यों न, आखिर किसी दागी के हाथ में खजाने की चाबी जो सौंपी जा रही है।

देश की सबसे बड़ी अदालत ने मुख्य सतर्कता आयुक्त थामस को उनका पक्ष रखने के लिए नोटिस जारी कर साफ कर दिया है कि सितम्बर महीने में डॉ.मन मोहन सिंह ने उनक नियुक्ति जिस तरह की थी, उसमें कहीं न कहीं कुछ तो असंवैधानिक हुआ है। वैसे भी सीवीसी का पद कोई राजनैतिक लालीपाप नहीं है, कि कांग्रेस इसमें सारे नियम कायदों को धता बताते हुए मनमानी कर ले।

वस्तुतः सीवीसी का पद संवैधानिक है, जिसकी पहली अहर्ता ही ईमानदारी और विश्वसनीयता है। इस पद के लिए नियुक्ति हेतु तीन सदस्यीय टीम का गठन किया गया है, जिसमें स्वयं प्रधानमंत्री के अलावा गृहमंत्री और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का समावेश किया गया है। इस मामले में वजीरे आजम मनमोहन सिंह और गृह मंत्री पलनिअप्पम चिदम्बरम की एक राय तो मानी जा सकती है, कि वे टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले को दबाना चाह रहे हों, किन्तु जब इस मसले में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने आपत्ति दर्ज की तो उनकी आपत्ति को प्रधानमंत्री ने दरकिनार कैसे कर दिया।

यक्ष प्रश्न तो आज भी यही सामने आ रहा है कि क्या भारत गणराज्य का कलश ईमानदार अफसरान से रीत गया है, जो पामोलिन आयात घोटाले के अभियुक्त पी.जे.थामस को इस पद पर बिठाया गया है। वस्तुतः इस पद के लिए एक एसे नौकरशाह की दरकार थी जिसकी कालर स्वच्छ हो। थामस के भ्रष्ट होने के बारे में सुषमा स्वराज की चीख पुकार बेकार ही साबित हुई। भाजपा ने इस मसले मंे महामहिम राष्ट्रपति को ज्ञापन भी सौंपा, मगर हमारे निरीह, ईमानदार, सच्चे, अर्थशास्त्री, साफ, स्पष्ट, मौन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने मामला बिगड़ता देख आनन फानन ही महामहिम से थामस को पद की शपथ दिलवा दी।

स्पेक्ट्रम मामले में संसद की कार्यवाही बाधित है, यही कारण है कि संसद में थामस की नियुक्ति पर शोर शराबा नहीं हो पा रहा है। इतना सब बवाल होने के बाद भी मोटी चमड़ी वाले कांग्रेस के नेताओं ने इतना साहस भी नहीं जुटाया कि वे थामस की नियुक्ति के बारे में कहीं भी स्पष्टीकरण दे सकें। चहुंओर एक ही बयार बह रही है कि सारे नियम कायदों को धता बताकर कांग्रेसनीत केंद्र सरकार ने पी.जे.थामस को केंद्रीय सतकर्ता आयुक्त बना दिया, इससे यही मैसेज जा रहा है कि कांग्रेस और उसकी सरकार को लोकतंत्र की परवाह ही नहीं रही। विपक्ष के विरोध पर भी कांग्रेस का नेतृत्व शर्म हया को त्यागकर अड़ा हुआ है।

बेशर्मी का लबादा ओढने वाली कांग्रेस को इस बात की परवाह तक नहीं है कि देश की सबसे बड़ी अदालत की बार बार फटकार के बाद भी वह मुंह खोलकर यह नहीं कह पा रही है कि आखिर थामस के बारे में सरकार की कार्ययोजना क्या है? देखा जाए तो कांग्रेस द्वारा प्रत्यक्ष तौर पर ही थामस का बचाव किया जा रहा है, अगर एसा नहीं है तो इन आरोपों को जवाब क्यों नहीं दे पा रही है कांग्रेस? साथ ही अगर कांग्रेस एसा नहीं कर रही है तो कांग्रेस को तत्काल ही थामस को पदच्युत कर देना चाहिए था। हो सकता है कांग्रेस के तेज दिमाग रणनीतिकार चाणक्य इस बात की खोज में लगे हों कि पामोलिन आयात घोटाले के अभियुक्त पी.जे.थामस को इस तरह के जिम्मेदार संवैधानिक पद पर बिठाने की तोड़ क्या हो सकती है! इस विलंब के पीछे इससे ज्यादा तर्कसंगत कारण और हमारी समझ में नहीं है।

गौरतलब होगा कि सीवीसी का गठन देश में भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के दरम्यान राजनैतिक दबाव और हस्ताक्षेप को दूर रखने के उद्देश्य को केंद्रित कर किया गया था। इतना ही नहीं भारत गणराज्य की सबसे बड़ी जांच एजेंसी केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के प्रमुख का चयन सीवीसी की अध्यक्षता में गठित समिति द्वारा ही किया जाता है। यह समिति देश के योग्य पुलिस अधिकारियों में से एक का चयन सीबीआई चीफ के तौर पर करती है। क्या इस तरह के दागी के हाथों में कमान सौंपे जाने पर ईमानदारी की परंपरा का निर्वहन किया जा सकेगा?

यहां गुजरे जमाने के सुपर स्टार राजेश खन्ना, मुमताज अभिनीत चलचित्र ‘‘रोटी‘‘ के एक गाने का जिकर लाजिमी होगा -‘‘यार हमारी बात सुनो, एसा इक इंसान चुनो, जिसने पाप न किया हो, जो पापी न हो . . . .।‘‘ अर्थात कल थामस अगर किसी के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच करते हैं तो वह भ्रष्टाचारी यह नहीं कह सकेगा कि थामस जिनका अपना दामन दागदार है, उन्हें क्या नैतिक अधिकार है किसी की जांच करने का। सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा थामस को अपना पक्ष रखने का नोटिस मिलने पर वे गदगद हैं। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि थामस की नैतिकता भी कांग्रेस के मानिंद पूरी तरह से मर चुक है। उनके उपर पामोलिन आयात घोटाला करने का आरोप है। यह आरोप आजकल का नहीं बरसों पुराना है। अगर वे इस मामले में बेदाग थे, तो अब तक उन्होंने अपना पक्ष रखते हुए मामले में क्लीन चिट क्यों नहीं ले ली। आज वे अभियुक्त हैं, और उन्हें सीवीसी जैसे संवैधानिक पद पर बैठने का कोई अधिकार नहीं बचा है।

हंसी तो इस बात पर आती है कि भारत गणराज्य के गृहमंत्री पलनिअप्पम चिदंबर खुद पेशे से वकील हैं। कोई भी लॉ ग्रेजुएट कानून की बारीकियों से बहुत अच्छे से वाकिफ होता है। इस लिहाज से चिदम्बरम की सोच समझ, ईमानदारी, सच्चाई पर भी प्रश्नचिन्ह लगने लाजिमी हैं। सीवीसी के पद पर नियुक्ति के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करते समय आखिर किस आधार पर चिदम्बरम ने मान लिया कि थामस निर्दोष हैं? क्या प्रधानमंत्री के तौर पर डॉ.मनमोहन सिंह और गृहमंत्री के तौर पर चिदम्बरम द्वारा ली गई शपथ बेमानी थी? क्या यह राष्ट्र के साथ सरेआम धोखाधड़ी की श्रेणी में नही आएगा?

जब भारत गणराज्य की स्थापना की गई थी, तब लोकतंत्र की परिभाषा थी, जनता का, जनता द्वारा, जनता के लिए शासन। इस व्यवस्था में विपक्ष को अपनी बात कहने का, गलत बात का विरोध करने का पूरा पूरा अधिकार दिया गया था। पर सवा सौ साल पुरानी और आधी सदी से ज्यादा इस देश पर शासन करने वाली कांग्रेस की अगुआई वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने इक्कसवीं सदी में लोकतंत्र की नई परिभाषा गढ़ी है, जिसे एक शब्द में अगर कहा जाए तो वर्तमान में ‘‘लोकतंत्र‘‘ का समानार्थी शब्द कांग्रेस की नजर में ‘‘हिटलरशाही‘‘ है। विपक्ष चाहे जो कहते, चीखे चिल्लाए, पर सरकार वही करेगी जो उसके मन को भा रहा हो। अगर यही लोकतंत्र है तो इससे बेहतर तो ब्रितानियों की गुलामी ही थी।

कक्षाओं में 40 से अधिक बच्चे होने पर होगी कार्यवाही

सीबीएसई बोर्ड कसेगा शालाओं की लगाम

सूचना आयोग के निर्देशों का होगा कड़ाई से पालन

सरकारी शालाओं पर भी गिर सकती है गाज

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। अभिभावकों और विद्यार्थियों को आकर्षित करने की गरज से निजी तौर पर संचालित होने वाले शैक्षणिक संस्थाओं द्वारा केंद्रीय शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) से संबद्धता लिए जाने के बाद बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध न कराने के मामले में सीबीएसई बोर्ड का रवैया सख्त होने वाला है। राईट टू एजूकेशन कानून के प्रावधानों के तहत एक कक्षा में विद्यार्थियों की संख्या 35 होना चाहिए किन्तु सीबीएसई ने इस नियम को शिथिल करते हुए विद्यार्थियों की संख्या 40 करने की बात कही गई है।

सीबीएसई बोर्ड के सूत्रों का कहना है कि बोर्ड ने एक परिपत्र जारी कर अपने समस्त स्कूलों को ताकीद किया है कि शाला में एक कक्षा में विद्यार्थियों की संख्या 40 से अधिक नहीं होना चाहिए। गौरतलब होगा कि बोर्ड ने शिक्षा के स्तर में सुधार की गरज से कंटिन्यूअस एण्ड कॉम्प्रिहेंसिव इवैल्यूएशन स्कीम (सीसीई) लागू की गई है। इसमें पढ़ाई में किताबों के अलावा एक्सट्रा केरिकुलर एक्टीविटीज पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है, किन्तु एक कक्षा में छात्रों की संख्या अधिक होने पर इस योजना के सफल होने पर संदेह ही व्यक्त किया जा रहा है। इसके तहत आर्ट, डांस, म्यूजिक आदि के मामले में भी शाला को ध्यान देना होगा। इसके लिए प्रथक से क्लास रूम की व्यवस्था भी शाला को ही सुनिश्चित करनी होगी। हर शाला को एक खेल का कालखण्ड रखना भी अनिवार्य होगा, इसके लिए शाला के पास खेल का मैदान होना भी अनिवार्य किया गया है।

इसके साथ ही साथ केंद्रीय सूचना आयोग द्वारा भी निर्देश जारी किए गए हैं कि शालाओं में पूरी पारदर्शिता अपनाई जाए। इसके लिए आयोग का कहना है कि हर शाला की अपनी एक वेव साईट होना आवश्यक है। इस वेव साईट में शाला का सीबीएसई एफीलेशन स्टेटस, आधारभूत अधोसंरचना (इंफ्रास्टक्चर), शिक्षकों के नाम, पद, उनकी शैक्षणिक योग्यताएं, प्रत्येक कक्षा में विद्यार्थियों की संख्या, शाला का ईमेल आईडी, शाला प्रबंधन समिति के सदस्यों का विवरण, शाला का दूरभाष नंबर वेव साईट पर होना आवश्यक है। इसके साथ शाला को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि यह वेव साईट लगातार अद्यतन (अपडेट) की जाए, ताकि अभिभावकों को सारी जानकारियां मिल सकें।

सीबीएसई के दिशा निर्देशों में साफ किया गया है कि प्रत्येक शाला को अपना वार्षिक प्रतिवेदन भी वेव साईट पर डालना अनिवार्य होगा। इस प्रतिवेदन के साथ शाला को अपने इंफ्रास्टक्चर के अलावा वार्षिक गतिविधियां, रिजल्ट आदि को भी अद्यतन किया जाना अनिवार्य किया गया है। सीबीएसई के मान्यता प्राप्त स्कूलों के पास प्राणी विज्ञान, रसायन शास्त्र, भौतिकी विज्ञान, गणित एवं कम्पयूटर की प्रयोगशाला को अनिवार्य किया गया है।

सीबीएसई के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि इन नियमों के उल्लंघन को गंभीरता से लिया जाएगा। इसके लिए सीबीएसई बोर्ड के निरीक्षण दल समय समय पर जाकर शालाओं का निरीक्षण करेंगे और बच्चों की संख्या निर्धारित से अधिक पाए जाने पर या पारदर्शिता का अभाव मिलने पर कठोर कार्यवाही भी करने का प्रावधान किया जा रहा है।

उधर दूसरी ओर सीबीएसई से मान्यता प्राप्त शासकीय शालाओं के हाल बेहाल ही हैं। अनेक शासकीय शालाओं में एक कक्षा में विद्यार्थियों की तादाद सैकड़ा पार कर चुकी है। इन शालाओं में राईट टू एजूकेशन के नियम का पालन सुनिश्चित करवाना टेडी खीर ही साबित होने वाला है। वहीं निजी तौर पर संचालित होने वाली शालाओं में जहां एक एक कक्षा में चालीस से अधिक बच्चे अध्ययनरत हैं, वहां अतिरिक्त बच्चों के लिए दूसरा सेक्शन बनाना शाला की बाध्यता होगी, किन्तु इसके साथ ही साथ उन शालाओं को सीबीएसई के नार्मस के हिसाब से योग्य शिक्षकों की तैनाती सबसे बड़ी समस्या बनकर उभर सकती है।

अखिल भारतीय अभिभावक संघ के अध्यक्ष अशोक अग्रवाल का कहना है कि निजी शालाओं में एक कक्षा में 60 से अधिक बच्चे मिलना आम बात है। अनेक निजी शिक्षण संस्थाओं में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। अनेक शालाएं शहरी आबादी से बहुत दूर स्थापित की गई हैं, जिससे बच्चों को आवागमन में तो अभिभावकों को आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ता है। श्री अग्रवाल का कहना है कि सरकार और सीबीएसई दोनों को चाहिए कि शालाओं के इन्फ्रास्टक्चर पर विशेष ध्यान दिया जाए।

दलितों में क्रिकेट का जुनून जगाएगी भाजपा

खेल के माध्यम से दलितों पास जाएगी भाजपा

(ब्यूरो कार्यालय)

नई दिल्ली। 2014 में होने वाले आम चुनावों के पहले भारतीय जनता पार्टी ने अपनी फील्डिंग आरंभ कर दी है। पहले असंगठित मजदूरों को लुभाने और भाजपा से जोड़ने के लिए एक मंच बनाकर भाजपा ने दिल्ली फतह का आगाज कर दिया है। अब दिल्ली भाजपा ने खेल के माध्यम से दलितों को जोड़ने की अभिनव योजना को अंजाम दिया है। अम्बेडकर जयंती तक चलने वाले इस कार्यक्रम की शुरूआत गत दिवस दिल्ली के जनकपुरी से हुई

दिल्ली में भाजपा ने इस काम के लिए अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेटर और सांसद नवजोत सिंह सिद्दू को आगे किया है, ताकि युवाओं को क्रिकेट के माध्यम से आकर्षित कर भाजपा से जोड़ा जा सके। वैसे भी राष्ट्रमण्डल खेलों में दलित फंड के उपयोग को लेकर भाजपा द्वारा पहले ही कांग्रेस को आड़े हाथों लिया जा चुका है।

भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता के अनुसार दिल्ली के 279 मण्डलों में यह प्रतियोगिता आयोजित की जा रही है। इस प्रतियोगिता को डॉ.अम्बेडकर क्रिकेट प्रतियोगिता का नाम दिया गया है। इसके तहत दलित बस्तियों के इर्द गिर्द वाले मैदानों में ये प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएंगी। 14 अप्रेल तक चलने वाली इस प्रतियोगिता में विजेता टीम को 51 हजार रूपए का पुरस्कार देने की घोषणा की गई है।
राष्ट्रपति से मिले राज्यपाल

(ब्यूरो कार्यालय)

नई दिल्ली। मध्यप्रदेश के राज्यपाल रामेश्वर ठाकुर ने आज यहां राष्ट्रपति भवन में महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल को अपनी प्रकाशित पुस्तक ’’कर्मयोगी की डायरी’’ के तीन खण्ड भेंट किये। इन डायरियों के साथ राज्यपाल की ’रामेश्वर ठाकुर इन पार्लियामेंट, सेलेक्टेड स्पीचिज’ और अन्य भाषण संग्रह की प्रतियां भी राष्ट्रपति को दी गई।

डायरियों में न केवल एक राष्ट्रीय सार्वजनिक जीवन के व्यक्ति की जीवनी का सचित्र वर्णन है, बल्कि पिछले छह दशकों के राष्ट्रीय राजनैतिक व सामाजिक क्षेत्रों की अंतर्गाथा का बहुत संयत तथा सटीक लेखा-जोखा है। इस अवसर पर मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा ने ’कर्मयोगी की डायरी’ की विशेषताओं के विषय में विस्तार से अपने विचार रखे। राष्ट्रपति ने रामेश्वर ठाकुर को शाल ओढ़ाकर अभिनन्दन करते हुए उन्हें देश का एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय पुरुष के रूप में सम्मानित किया।