बुधवार, 6 अक्तूबर 2010

आदिवासी बाहुल्य सिवनी को तिरस्कार की नजरों से देख रही कांग्रेस

फोरलेन, संभाग के बाद अब मेडीकल कालेज की बारी
 
आखिर सिवनी के साथ सौतेला व्यवहार क्यों कर रहे हैं महाकौशल के क्षत्रप कमल नाथ
 
(लिमटी खरे)

मध्य प्रदेश में भगवान शिव का जिला सिवनी पिछले लगभग दो दशकों से अपने भाग्य पर आंसू बहा रहा है। सदा से कांग्रेस का परचम लहराने वाले इस जिले ने नब्बे के दशक के आगाज के साथ ही कांग्रेस का साथ छोड़ना आरंभ कर दिया। जैसे ही पूर्व केंद्रीय मंत्री सुश्री विमला वर्मा के हाथों से कांग्रेस की कमान गई वैसे ही सिवनी में कांग्रेस का सूरज अस्ताचल की ओर अग्रसर हो गया। महाकौशल के इकलौते क्षत्रप कमल नाथ द्वारा सिवनी के खाते में आने वाले सारी सौगातों को एक एक कर अपने संसदीय क्षेत्र में ले जाने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है। सिवनी की कोख उजाड़ कमल नाथ छिंदवाड़ा की झोली में एक के बाद एक सौगातों को ले जाने का प्रयास कर रहे हैं और सिवनी में राजनैतिक बिसात बिछाने वाली भाजपा और कांग्रेस मूकदर्शक ही बनी बैठी है। यहां तक कि मध्य प्रदेश भाजपा द्वारा 05 से 07 अक्टूबर तक एनएच पर पड़ने वाले सारे कस्बों में कमल नाथ के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान के मामले में भी विज्ञप्तिवीर भाजपा ने अब तक मौन साध रखा है।

गौरतलब है कि छिंदवाड़ा, सिवनी और बालाघाट को मिलाकर संभाग बनाने की घोषणा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने काफी पहले कर दी थी। इस संभाग का संभागीय मुख्यालय क्या होगा इस बारे में अनिश्चितता का कुहासा छट नहीं सका है। कमल नाथ कांग्रेस के कद्दावर नेता और महाकौशल के क्षत्रपों में उनका शुमार है। शिवराज की संभाग बनाने की घोषणा परवान नहीं चढ़ सकी। सिवनी वासी चाहते हैं चूंकि बालाघाट, छिंदवाड़ा का केंद्र सिवनी है, अतः संभाग सिवनी में बने, किन्तु कमल नाथ की चाहत छिंदवाड़ा में बनाने की है, जिससे यह मामला एक साल से भी अधिक समय से अधर में लटका है।
 
संभाग के मसले के उपरांत दूसरा मुख्य मसला अटल बिहारी बाजपेयी के कार्यकाल की महात्वाकांक्षी स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना का है। इस परियोजना के अभिन्न अंग उत्तर दक्षिण गलियारे के नक्शे से सिवनी जिले को गायब करने के षणयंत्र का तान बाना बुना जा रहा है। सिवनी की फिजां में तैर रही चर्चाओं में इस ताने बाने के लिए समीपस्थ जिला छिंदवाडा के संसद सदस्य और केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ (जिनके मंत्रालय द्वारा इस सड़क के निर्माण का काम करवाया जा रहा है) को ही दोषी माना जा रहा है। कहा जा रहा है कि इस सड़क को सिवनी के बजाए छिंदवाड़ा से ले जाने के लिए वे लालायित हैं।
 
फोरलेन के विवाद में कमल नाथ का नाम इसलिए प्रमुखता से लिया जा रहा है, क्योकि उन्होंने राज्य सभा में एक बयान देकर सभी को चौंका दिया था कि वे इस उत्तर दक्षिण गलियारे को सिवनी के बजाए अपने संसदीय क्षेत्र जिला छिंदवाड़ा से होकर गुजारने के ख्वाईशमंद थे। कमल नाथ की दो टूक बात पर भी भाजपा के मध्य प्रदेश के रखवाले संसद सदस्य, विधायक और संगठन भी धृतराष्ट्र की भूमिका में रहा। कहा जा रहा है कि सियासी जादूगर कमल नाथ ने अपने कारिंदों के जरिए भाजपा की एक एक सीढ़ी को सेट कर लिया, तभी मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की किसी भी इकाई, किसी भी विधायक, किसी भी संसद सदस्य, पूर्व विधायक सांसद ने कमल नाथ के खिलाफ मुंह खोलने का साहस नहीं जुटाया।
 
बाद में खबर आई कि भाजपा अब कमल नाथ को घेरने का प्रयास करेगी। भाजपा का कहना है कि वह 5 से 7 अक्टूबर तक नेशनल हाईवे पर पड़ने वाले कस्बों और ग्रामों में हस्ताक्षर अभियान चलाएगी फिर 22 से 24 अक्टूबर तक इन्ही ग्रामों में मानव श्रंखला बनाई जाने के उपरांत 10 नवंबर को भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष 10 नवंबर को प्रधानमंत्री को ज्ञापन सौंपेंगे। भाजपा के इस निर्णय से कमल नाथ और भाजपा के बीच नूरा कुश्ती और तेज हो गई है, इसका कारण यह है कि भाजपाध्यक्ष प्रभात झा इन दिनों प्रदेश के दौरे पर हैं, वे राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे अवस्थित जिला, तहसील, विकासखण्ड मुख्यालयों के अलावा गांवों और कस्बों से भी विचर रहे हैं और उन्होंने कहीं भी अपने कार्यकर्ताओं को प्रदेश पदाधिकारियों के इस महत्वपूर्ण निर्णय की जानकारी देकर इसे सफल बनाने का आव्हान नहीं किया है। आश्चर्य तो इस बात पर हो रहा है कि प्रभात झा खुद भी सड़क मार्ग से गुजर रहे हैं, और सड़कों पर हिचकोले खाती चलती उनकी आलीशान विलासिता पूर्ण गाड़ी के बाद भी उनकी तंद्रा नहीं टूट पा रही है।
 
मध्य प्रदेश भाजपा के इस निर्णय और आदेश के बाद भी प्रदेश में भाजपा ने 06 अक्टूबर तक इस अभियान के बारे में मौन साध रखा है। कल इस मामले में अभियान का अंतिम दिन है। सत्ता के मद में मदमस्त भाजपा का आलम यह है कि भाजपा द्वारा प्रदेश से होकर गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर पड़ने वाले कस्बों की स्थानीय भाजपा इकाईयों को इस मामले में ताकीद तक नहीं किया है। प्रदेश मंे अनेक कस्बाई भाजपाईयों को प्रदेश सरकार के इस पोल खोल अभियान के बारे में पता तक नही है, जबकि भाजपा के मुख्य निजाम नितिन गड़करी खुद कस्बाई राजनीति से चलकर देश के शिखर पर पहुंचे हैं। कहा जा रहा है कि चूंकि यह मामला केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ और उनके मंत्रालय के खिलाफ है, और माना जाता है कि भाजपा के नेता कमल नाथ से पूरी तरह ‘सेट‘ हैं, अतः वे कमल नाथ का खुलकर विरोध करने में अपने आप को असहज ही महसूस कर रहे हैं।
 
वरना और क्या कारण हो सकता है कि कांग्रेस के महासचिव सिवनी प्रवास पर आएं और फोरलेन मामले में स्थानीय भाजपा खामोशी अख्तियार करे। फोरलेन का प्रकरण भले ही माननीय सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन हो, किन्तु भाजपा के साथ ही साथ सभी इस बात से भली भांति परिचित हैं कि इस मामले में मुख्य दोषी भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ और वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश का अपना राग ही माना जा रहा है। राहुल गांधी के आगमन के दिन ही इस मामले में हमने जिला भाजपाध्यक्ष सुजीत जैन एवं पूर्व विधायक नरेश दिवाकर से इस मसले पर चर्चा कर भाजपा का स्टेंड जानना चाहा था, किन्तु बाद में भाजपा का मौन सबसे अधिक आश्चर्यजनक ही लगा। हो सकता है सियासी जादूगर कमल नाथ का दांव स्थानीय स्तर पर भी कारगर हो रहा हो। गौरतलब है कि हमने अपने पूर्व आलेख में इस बात का उल्लेख किया था कि सिवनी में राजनीति करने वालों ने अगर सिवनी के हितों को कमल नाथ के पास गिरवी रख दिया हो तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
 
इसके अलावा पेंच परियोजना से सिवनी जिले के किसानों को लाभ होने वाला है, किन्तु पेंच सिंचाई परियोजना में भी कमल नाथ द्वारा फच्चर फसाया बताया जाता है। मध्य प्रदेश सरकार द्वारा केंद्र को भेजे गए सिंचाई विभाग के 1560 करोड़ रूपयों के प्रस्तावों पर कुंडली मारकर बैठा जा रहा है। केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ और सूबे के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अपने अपने क्षेत्रों के सबसे अधिक प्रस्ताव केंद्र के पास लंबित पड़े हुए हैं।
 
इंडो जर्मन बायलेटरल डेव्हलपमेंट को ऑपरेशन के तहत पेंच वृहद परियोजना, तीन मध्यम परियोजना और 28 लघु सिंचाई योजनाओं के 853 करोड़ 20 लाख रूप्ए के प्रस्ताव राज्य सरकार द्वारा केंद्र सरकार को भेजे गए हैं। छिदवाड़ा संसदीय क्षेत्र की पेंच व्यपवर्तन परियोजना की निवेश निकासी की स्वीकृति भी केंद्रीय जल संसाधन विभाग के मंत्रालय की सीढीयां चढ और उतर रही है। इन प्रस्तावों को स्वीकृत करने में स्थानीय जनसेवकों की मंशाएं आड़े आ रही हैं, जिससे समूचा खेल ही बिगड गया है। छिंदवाड़ा जिले की महात्वाकांक्षी पेंच परियोजना पर तो छिंदवाड़ा जिले और संसदीय क्षेत्र पर 1980 से (1997 के जबरिया उपचुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के हाथों पटखनी खाने वाले तत्कालीन किंगमेकर कमल नाथ की पराजय को छोड़कर) कब्जा जमाने वाले कमल नाथ द्वारा ही अड़ंगा लगाने के आरोप छिंदवाड़ा के भाजपाईयों द्वारा खुले तौर पर लगाए जाते रहे हैं।
 
आश्चर्य का विषय तो यह है कि किसान हितैषी होने का दावा करने वाली कांग्रेस द्वारा मध्य प्रदेश के सिवनी और छिंदवाड़ा सहित महाराष्ट्र के लाखों किसान परिवारों के फायदे वाली पेंच परियोजना को हरी झंडी न दिखाई जा रही हो। पेंच परियोजना में कांग्रेस के क्षत्रपों द्वारा फच्चर पिछले पंद्रह सालों से फंसाए जाते रहे हैं। कहा जा रहा है कि मनमानी फर्म को इसका ठेका न दिए जाना भी एक प्रमुख कारण है।
 
बहरहाल कांग्रेस की वयोवृद्ध नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुश्री विमला वर्मा ही अंतिम कांग्रेसी रहीं हैं, जिन्होंने सिवनी जिले को कुछ न कुछ प्रदान किया है, अंतिम कांग्रेसी इसलिए क्योंकि उनके द्वारा प्रदत्त सारी सौगातों में ईमानदारी की सौंधी गंध आज भी बरकरार है। मामला चाहे संजय सरोवर परियोजना (भीमगढ़ बांध) का हो, क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी कार्यालय का, सिंचाई विभाग के मुख्य अभियंता कार्यालय का, नेशनल हाईवे के कार्यपालन यंत्री, लोक निर्माण विभाग के अधीक्षण यंत्री, राज्य सड़क परिवहन निगम के संभागीय कार्यायल और वर्कशाप आदि का, हर मामले में सुश्री विमला वर्मा ने सबसे पहले सिवनी वासियों का हित ही साधा।
 
सुश्री वर्मा के सक्रिय राजनीति से किनारा करते ही मध्य प्रदेश राज्य सड़क परिवहन का संभागीय वर्कशाप सिवनी से उठकर छिंदवाड़ा स्थानांतरित कर दिया गया। कहते है। यह कमल नाथ की मंशा पर हुआ, चलिए मान लिया जाए कि कमल नाथ कद्दावर और ताकतवर हैं, वे चाहें तो अपने संसदीय क्षेत्र जिला छिंदवाड़ा में सोने की सड़कें, लोगों के लिए चांदी के महल बनवा लें, किन्तु उन्हें क्या हक बनता है कि वे सिवनी वासियों के हलक में हाथ डालकर निवाला निकालें और छिंदवाड़ा वासियों का उदर पोषण करें? दुख का विषय तो यह है कि कमल नाथ सिवनी वासियों की सौगातें ब्रितानियों की तर्ज पर लूटते रहे और सिवनी के उस समय के जिले के क्षत्रप माने जाने वाले कांग्रेसी नेता बरसाती मेंढक के मानिंद सुसुप्तावस्था में ही पड़े रहे।
 
सुश्री विमला वर्मा ने भगवान शिव की नगरी को सबसे बड़ी सौगात के तौर पर प्रियदर्शनी के नाम से सुशोभित इंदिरा गांधी जिला चिकित्सालय दिया है। इतना विशाल जिला चिकित्सालय आसपास के जिलों में भी देखने को नहीं मिलता है। इतना साफ सुथरा सर्वसुविधायुक्त चिकित्सालय देखकर आसपास के जिलों के लोग सिवनी वासियों की किस्मत पर रश्क करते थे। फिर दुर्भाग्य कहा जाएगा कि सुश्री वर्मा के बाद जिन भी सियासतदारों ने सियासत की कमान संभाली है, उन्होंने इस अस्पातल की गरिमा को बढ़ाने के बाजाए उसे ध्वस्त ही किया है।
 
एक के बाद एक करके जिला चिकित्सालय से चिकित्सकों का मोहभंग होता रहा। यहां पदस्थ रहने वाले चिकित्सकों द्वारा अस्पताल से ज्यादा अपनी निजी चिकित्सा पर ही ध्यान रमाया गया। गरीब गुरबे बीमारी में लुटते पिटते रहे। अस्पताल में संसाधनों का अभाव साफ दिखाई देने लगा। समीपस्थ महाराष्ट्र प्रदेश की संसकारधानी नागपुर के फाईव स्टार नर्सिंग होम्स के संचालक चिकित्सकों के दलाल बन गए सिवनी के नीम हकीम। जरा सी बात पर हर मरीज को नागपुर ही रिफर कर दिया जाता है। अगर यही सच्चाई है तो इतने विशाल अस्पताल के बजाए यहां एक सिटी डिस्पेंसरी खोलना ही मुनासिब होगा।
 
सुश्री विमला वर्मा ने उस दर्मयान प्रयास किए थे कि इंदिरा गांधी जिला चिकित्सालय के पास ही आर्युविज्ञान महाविद्यालय (मेडीकल कालेज) की स्थापना कर दी जाए, ताकि इस अस्पताल को मेडीकल कालेज अस्पताल का दर्जा दिलाया जा सके। दुर्भाग्य से सुश्री वर्मा का सपना आकार नहीं ले सका। हाल ही में जिला मुख्यालय की विधायिका श्रीमति नीता पटेरिया ने सुश्री वर्मा के सपने को आगे बढ़ाने का उपक्रम किया है, वे साधुवाद की पात्र हैं।
 
श्रीमति पटेरिया ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से अनेक मर्तबा सिवनी में मेडीकल कालेज खोलने की मांग की है। सीएम ने निजी क्षेत्र के कालेज को खोलने की मंशा भी व्यक्त कर दी है। जैसे ही सिवनी की किस्मत का तारा कुछ चमचमाया, एक बार फिर केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ ने इस मामले को अपने बाहुपाश में लेने का प्रयास आरंभ कर दिया है। केंद्रीय राजमार्ग मंत्री कमल नाथ अब अपनी कर्मभूमि छिंदवाड़ा में आर्युविज्ञान महाविद्यालय की स्थापना के लिए प्रयासरत हो गए हैं।
 
जाहिर सी बात है कि जब महाकौशल अंचल में जबलपुर के अलावा सिवनी से मेडीकल कालेज की मांग उठी फिर कांग्रेस के एक कद्दावर नेता ने छिंदवाड़ा में इसकी मांग कर दी तब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तवज्जो सिवनी के बजाए छिंदवाड़ा की ओर होना स्वाभाविक ही है। वैसे भी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कांग्रेस पर खासे मेहरबान हैं, उन्होंने भाजपा के पीएम इन वेटिंग एल.के.आड़वाणी की परवाह न करते हुए कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी को राज्य अतिथि का दर्जा देकर सभी को चौंका दिया है।
 
कमल नाथ का प्रयास है कि राज्य सरकार गांधी मेडीकल कालेज भोपाल, एमवाय इंदौर, नेताजी सुभाष चंद बोस जबलपुर, श्याम शाह मेडीकल कालेज रीवा, ग्वालियर और सागर की तर्ज पर छिंदवाड़ा में भी सरकारी तौर पर मेडीकल कालेज की स्थापना कर दे। मूलतः उद्योगपति राजनेता कमल नाथ चाहें तो निजी तौर पर मेडीकल कालेज की स्थापना छिंदवाड़ा में चुटकियों में करवा सकते हैं, किन्तु वे चाहते हैं कि एक बार फिर भाजपा के शीर्ष नेता उनके सामने नतमस्तक नजर आएं कि उन्होंने भाजपा की प्रदेश सरकार को अपनी मंशा के अनुरूप ढाल लिया है। वैसे भी अनेक मामलों में राज्य सरकार और सूबे की भाजपा कमल नाथ की तान पर ही मनमोहक आकर्षक नृत्य करती नजर आई है।
 
बताते हैं कि कमल नाथ के कार्यालय ने इस आशय का एक प्रस्ताव शिवराज सिंह चौहान को प्रेषित भी किया है। इस मामले में कमल नाथ ने राज्य सरकार के सामने एक जलेबी फिर लटकाई है, कि अगर राज्य सरकार छिंदवाड़ा मे मेडीकल कालेज खोलना प्रस्तावित करती है तो केंद्र सरकार हर तरह से इस मामले में मदद को आगे आ सकती है। दूध का जला छांछ और कचौड़ी का जला समोसा भी फूंक फूंक कर खाता है की तर्ज पर अगर राज्य सरकार कमल नाथ को यह जवाब दे दे कि पहले राज्य से गुजरने वाले नेशनल हाईवे के संधारण और निर्माण के मसले को सार्वजनिक तौर पर हल किया जाए तब ही इस संबंध में कोई चर्चा संभव है! तब भाजपा की साख भी बच सकती है और कमल नाथ के इस जहर बुझे तीर से भाजपा के साथ ही साथ भगवान शिव की नगरी के वासियों को भी निजात मिल सकती है।
 
महाकौशल के आदिवासी बाहुल्य सिवनी जिले के साथ दुर्भाग्य जुडा नहीं है, वरन हमारे जनसेवकों ने ही इसे हमारे उपर लादा है। लोकसभा सीट के अवसान को भी छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र को बचाने के बदले बली चढ़ाने से देखा जा रहा है। घंसौर विधानसभा सीट का नियमविरूद्ध विलोपन भी कुछ कहता रहा। इस मामले में भाजपा पूरी तरह खामोश रही, भाजपा की खामोशी काफी कुछ बयां करने के लिए पर्याप्त कही जा सकती है। आदिवासी बाहुल्य सिवनी जिले के हितों के साथ खिलवाड़ आरंभ हुआ है नब्बे के दशक के उपरांत जब राजनीति में स्वार्थपरक राजनीति हावी हुई है। अब तो नेताओं को खुद को स्थापित करने और अपनी जेब भरने के अलावा दूसरा कोई काम नहीं बचा है। यक्ष प्रश्न फिर वही है कि इन नेताओं के भुलावे, बहकावे में आकर कब तक छले जाते रहेंगे हम सिवनीवासी?