मंगलवार, 5 अक्तूबर 2010

युवराज के औचक रात्रि विश्राम!

कितने औचक होते हैं युवराज के अचानक रात्रि विश्राम!
 
(लिमटी खरे)
 
दलित आदिवासियों के बीच रात बिताकर मीडिया की सुर्खियां बटोरने वाले कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के अचानक दलित बस्तियों में जाने की बात कितनी औचक होती है, इस बात से आम आदमी अब तक अनजान ही है। राहुल बाबा का सुरक्षा घेरा स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप (एसपीजी) का होता है, जिसमें परिंदा भी पर नहीं मार सकता है, फिर अचानक किसी अनजान जगह पर कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी का रात बिताना आसानी से गले नहीं उतरता है। वास्तविकता तो यह है कि राहुल गांधी के प्रस्तावित दौरों के स्थानों की खाक खुफिया एजंेसियों द्वारा लंबे समय पहले ही छान ली जाती है, जजमान को भी पता नहीं होता है कि उसके घर भगवान (युवराज) पधारने वाले हैं। मीडिया को भी अंतिम समय में ही ज्ञात होता है कि राहुल बाबा फलां के घर रात्रि विश्राम करने वाले हैं। कांग्रेस की राजमाता और राहुल गांधी की माता श्रीमति सोनिया गांधी को राहुल की सुरक्षा की चिंता सदा ही खाए जाती है, किन्तु एसपीजी के निदेशक की देखरेख में राहुल की सुरक्षा से वे खासी संतुष्ट नजर आती हैं। कहा जाता है कि राहुल को इस तरह के दौरों की अनुमति श्रीमति सोनिया गांधी द्वारा प्रदत्त है, ताकि कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी की छवि आम आदमी से जुड़ने, उनकी समस्याओं से रूबरू होने और उसके निदान की योजनाएं बनाने की बन सके। सवाल अब भी यही खड़ा है कि राहुल गांधी की इन यात्राओं से देश का क्या भला हो रहा है? एक साधारण से संसद सदस्य और कांग्रेस के महासचिव के दौरों पर भारत और सूबों की सरकार सरकारी खजाने से पानी की तरह पैसा क्यों बहाती है?

नेहरू गांधी परिवार में मोतीलाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू, श्रीमति इंदिरा गांधी, राजीव गांधी के उपरांत आगे बढ़ी पीढ़ी में तीन ही सितारे आकाश में खिले नजर आते हैं। इनमें से राजीव और सोनिया की पुत्री प्रियंका अब गांधी से वढ़ेरा हो चुकी हैं, तथा देश की सियासत से प्रत्यक्ष तौर पर एक दूरी बना चुकी हैं। इसके अलावा स्व.श्रीमति इंदिरा गांधी की आखों के तारे रहे राहुल और वरूण गांधी ने अपने अपने रास्ते अलग अलग चुन रखे हैं। एक ही परिवार के दो वारिसों को अलग अलग सुरक्षा श्रेणियां सिर्फ और सिर्फ हिन्दुस्तान में ही संभव है। लोग प्रियंका में उनकी नानी स्व.श्रीमति इंदिरा गांधी तो राहुल में ‘‘दुश्मनों को नानी याद दिलाने वाले‘‘ स्व.राजीव गांधी की छवि देखते हैं। भारत का पूर्वाग्रही मीडिया भी अजीब है, किसी को उसी खानदान के संजय मेनका के पुत्र वरूण गांधी में किसी की छवि नहीं दिखाई देती है। स्व.संजय गांधी के बाल सखा और उनके अभिन्न मित्रों जिन्होंने राजनीतिक पायदान भी संजय गांधी के सहारे से ही चढ़ी हैं, भी वरूण गांधी से इस तरह का बरताव करते हैं जैसा कि अठ्ठारहवीं शताब्दी में सवर्णों द्वारा अछूतों से किया जाता था।
 
देश के ‘कांग्रेस और लक्ष्मीभक्त‘ दोनों ही तरह के मीडिया ने नेहरू गांधी परिवार की एक शाख जिसमें श्रीमति सोनिया और राहुल बंधे हैं, को अर्श पर इतना उपर चढ़ा दिया है कि कांग्रेस के लोग उन्हें भगवान से कम नहीं मानते हैं। राहुल गांधी जब भी जहां भी जाते हैं वहां भीड़ जुट जाती है, कांग्रेस का जनाधार बढ़ता है, युवाओं के मानस पटल पर कांग्रेस की अमिट छाप लग जाती है, कांग्रेस की गिरती साख को बचाया जा सकता है। सारी बातें मंजूर हैं, पर यह सब किस कीमत पर हो रहा है? क्या राहुल की एक यात्रा का भोगमान कांग्रेस ने भोगा है? क्या गांधी के नाम का गर्व के साथ उपयोग करने वाले राहुल ने अपनी यात्राएं महात्मा गांधी की सादगी से की हैं? जाहिर है नहीं। बापू रेल गाडी के साधारण डिब्बे में यात्रा करते थे, उन्होंने अपना पूरा जीवन सादगी के साथ बिता दिया, आधी लंगोटी में ही बापू ने अपना जीवन काटकर उन ब्रितानियों को जिनके बारे में कहा जाता था कि उनका सूरज कभी डूबता नहीं है, को डेढ़ सौ बरस के राज पाट को छोड़कर जाने पर मजबूर कर दिया। राहुल गांधी एक यात्रा में उपयोग में आने वाले विमान और हेलीकाप्टर का किराया ही अगर जोड़ लिया जाए तो एक शहर के गरीबों को एक महीना भोजन कराया जा सकता है। इसके अलावा राहुल की सुरक्षा में लगी एजेंसियों, प्रदेश सरकार का सुरक्षा बल आदि का खर्च जोड़ लिया जाए तो मंहगाई के बोझ से दबे आम आदमी की मानो चीख ही निकल जाएगी। इस कीमत पर आम आदमी के गाढ़े पसीने की कमाई से कांग्रेस द्वारा अपने आप को मजबूत करने के लिए झोंका जा रहा है राहुल गांधी को। कांग्रेस को चाहिए कि वह अपने व्ही.व्ही.आई.पी. पर होने वाले व्यय को आना पाई से केद्र और राज्य सरकार को चुकाए, क्योंकि सोनिया या राहुल की यात्राओं से देश का नहीं कांग्रेस का भला हो रहा है।
 
आज कांग्रेस की नजरों में गरीबों के मसीहा राहुल गांधी के सिर्फ जूतों पर ही गौर फरमाया जाए तो उनकी कीमत पांच अंको में होगी। राहुल गांधी की संपत्ति के बारे में देश के लोग कम ही जानते हैं। सैकड़ों करोड़ रूपयों की संपत्ति के मालिक हैं राहुल गांधी जिनकी संपत्ति में हर साल दस बीस फीसदी नहीं डेढ़ से दो सौ फीसदी का इजाफा होता है। आखिर एक संसद सदस्य के पास कौन सी एसी मशीन है कि वह अपनी संपत्ति में इस तरह हर साल बेतहाशा बढ़ोत्तरी करते जा रहे हैं। अगर उनके पास आकूत दौलत है तो उन्हें बतौर सांसद मिलने वाली तनख्वाह और वेतन को अस्वीकार कर एक नजीर पेश करना चाहिए।
 
बहरहाल कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी की अचानक ही दलित बस्तियों की यात्राएं, दलित आदिवासियों के घरों पर रात बिताना उनके साथ भोजन करना, जैसी खबरों से देश के आम लोग, प्रशासन और मीडिया चकित ही रह जाता है। लोग दांतों तले उंगली दबा लेते हैं कि राहुल गांधी जैसा ‘‘सुकुमार युवराज‘‘ आम आदमी के घर कैसे? आम आदमी यह सौच कर हैरान होता है कि कांग्रेस आखिर राहुल गांधी इस तरह की यात्राओं के माध्यम से भला क्या संदेश देना चाहती है।
 
राहुल गांधी की औचक यात्राआंे से सबसे ज्यादा खौफजदा अगर कोई है तो वह हैं यूपी की निजाम मायावती। मायावती को लगने लगा है कि राहुल की इस तरह की यात्राएं उनके दलित आदिवासी वोट बैंक में सेंध लगाने का काम कर रही है। उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी के मनमाने दौरों से आजिज आकर यूपी के चीफ सेक्रेटरी ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर अपनी अपत्ति दर्ज कराई है। यूपी सरकार का कहना है कि राहुल गांधी द्वारा यूपी प्रशासन और स्थानीय प्रशासन को सूचना दिए बिना की जाने वाली यात्राएं राहुल गांधी को प्रदत्त सुरक्षा के साथ खिलवाड़ है। केंद्रीय गृह मंत्री पलनिअप्पम चिदम्बरम राज्य की आपत्ति को सिरे से खारिज करते हैं। चिदम्बरम का कहना है कि राहुल द्वारा अपनी यात्राओं में सुरक्षा व्यवस्था के साथ कोई खिलवाड़ नहीं किया जा रहा है। राहुल की यात्राओं में सुरक्षा मनदण्डों का पूरा पूरा पालन किया जा रहा है। चिदम्बरम ने साफ किया है कि राहुल की यात्राओं के पहले एसपीजी द्वारा सुरक्षा के पर्याप्त इंतजामात कर दिए जाते हैं।
 
राहुल गांधी की इन औचक यात्राओं के बारे में हकीकत कुछ और बयां करती है। दरअसल, राहुल गांधी के इस तरह के औचक कार्यक्रम स्थानीय लोगों, प्रशासन, कांग्रेस पार्टी और मीडिया के लिए कोतुहल एवं आश्चर्य का विषय होते हैं, लेकिन सुरक्षा एजेंसियां इससे कतई अनजान नहीं होती हैं। सुरक्षा एजेंसियों के सूत्रों का कहना है कि इस तरह के औचक कार्यक्रमों में सुरक्षा एजेंसियों की लंबी कवायद के बाद ही इन्हें हरी झंडी दी जाती है। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी जब भी जहां भी जाते हैं वहां जाने की योजना महीनों पहले ही बना दी जाती है।
 
राहुल गांधी के करीबी सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी के इस तरह के दौरों की तैयारी एक से दो माह पहले ही आरंभ हो जाती है। सर्वप्रथम राहुल गांधी की कोर टीम यह तय करती है कि राहुल गांधी कहां जाएंगे। उस क्षेत्र की भौगोलिक, राजनैतिक, सामाजिक स्थिति के बारे में विस्तार से जानकारी जुटाई जाती है। इसके बाद राहुल गांधी के बतौर सांसद सरकारी आवास 12, तुगलक लेन में उनकी निजी टीम इसे अंतिम तौर पर अंजाम देने का काम करती है। यहां बैठे राहुल के सहयोगी कनिष्क सिंह, पंकज शंकर, सचिन राव आदि इन सारी जानकारियों को एक सूत्र में पिरोकर एसपीजी के अधिकारियों से इस बारे में विचार विमर्श करते हैं। इन सारी तैयारियों और सूचनाओं को केंद्रीय जांच एजेंसी ‘इंटेलीजेंस ब्योरो‘ द्वारा खुद अपने स्तर पर अपने सूत्रों के माध्यम से जांचा जाता है। आई बी की हरी झंडी के उपरांत ही राहुल गांधी के दौरे की तारीख तय की जाती है। राहुल गांधी के कार्यालय, एसपीजी और आईबी के अधिकारियों के बीच की कवायद को इतना गुप्त रखा जाता है कि मीडिया तक उसे पता नही कर पाती।
 
इस तरह गोपनीय तौर पर कांग्रेस की नजर में देश के भावी प्रधानमंत्री का दौरा कार्यक्रम तय होता है और राहुल गांधी अचानक ही किसी दलित आदिवासी के घर पर जाकर रात बिताकर सभी को हतप्रभ कर देते है। देखा जाए तो राहुल गांधी जिस भी गांव में रात बिताने का उपक्रम करते हैं, उस गांव में एसपीजी और आईबी के कर्मचारी सादे कपड़ों में हर गतिविधि पर नजर रखते हैं। इस सारे घटनाक्रम की भनक स्थानीय प्रशासन तक को नहीं हो पाती है। राहुल के रात बिताने वाले क्षेत्र में व्हीव्हीआईपी सुरक्षा के लिए अत्यावश्यक एएसएल (एडवांस सिक्यूरिटी लेयर) अर्थात अग्रिम सुरक्षा कवच को पूरी तरह चाक चौबंद कर लिया जाता है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि जिस भी गांव में देश के युवराज रात बिताते हैं उस गांव में उस दिन आरजी (राहुल गांधी) की पसंद की सब्जी भी बिकती है, ताकि वे रात के खाने में उसका स्वाद ले सकें।

यक्ष प्रश्न आज भी अनुत्तरित ही है कि राहुल गांधी की इस तरह की यात्राओं से देश का क्या भला हो रहा है? क्या राहुल गांधी के नेतृत्व में आज तक कोई बड़ा आंदोलन अंजाम ले सका है जिसने देश की दिशा और दशा को बदला हो? राहुल की यात्राओं से सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस का ही भला हो रहा है। यही सच्चाई है, और इसके लिए राहुल गांधी की सुरक्षा में लगी एसपीजी, आईबी, प्रदेश सरकार का सुरक्षा अमला और सुरक्षा एजेंसियों पर होने वाले खर्च को कांग्रेस से ही वसूला जाना चाहिए, क्योंकि कांग्रेस ही वह है जो राहुल गांधी के दौरों से अपना जनाधार बढ़ाकर राहुल गांधी को महिमा मण्डित कर रहे हैं। सबसे अधिक आश्चर्य तो तब होता है जब विपक्ष में बैठी भाजपा और राहुल फेक्टर से सबसे अधिक घबराने वाली उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती तक इस मामले में मौन धारण कर लेती हैं।