गुरुवार, 16 सितंबर 2010

गरीब गुरबों का माखौल उडाती कांग्रेस

गरीबों से दूर कांग्रेस

स्कूल के मामले में पालक छात्र बैचेन, जनप्रतिनिधि मौन

स्कूल के मामले में पालक छात्र बैचेन, जनप्रतिनिधि मौन
(मनोज मर्दन त्रिवेदी)

सिवनी जिले के बखारी में हायर सेकन्ड्री स्कूल खोलने को लेकर पालक और विद्यार्थियों में रोष और असंतोष की स्थिति निश्चित तौर पर चिन्ता का विषय मानी जा सकती है। शासन प्रशासन को इस मामले को हल्के में कतई नहीं लेना चाहिए। सिवनी विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा पहले केवलारी विधानसभा का अभिन्न अंग रहा है। क्षेत्र में पिछले चार दिनों से शालाओं में अध्ययन अध्यापन कार्य ठप्प पड़ा हुआ है। चार दिनों में जिला प्रशासन को इस बात की भनक न लग पाना निश्चित तौर पर जिला प्रशासन के सूचना तंत्र पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगाने के लिए पर्याप्त माना जा सकता है। बखारी की जिला मुख्यालय से दूरी महज 25 किलोमीटर ही है। 25 किलोमीटर के औरे में अगर इस तरह की कोई घटना घट रही हो और जिला प्रशासन को उसकी भनक न मिले तो इसे प्रशासन की संवेदनहीनता की श्रेणी मंे रखा जा सकता है।
 
पूर्व में मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह के शासनकाल में हर तीन किलोमीटर पर माध्यमिक शाला खोलने का निर्णय लिया गया था। एक तरफ तो सरकार बच्चों को शिक्षित करने के लिए जनता के गाढ़े पसीने की कमाई को हवा में उड़ाती है। हवा में उड़ाना इसलिए क्योंकि जमीनी हकीकतें कुछ और बयान करती हैं। वैसे भी प्रायमरी शालाओं के उपरांत माध्यमिक शालाएं, माध्यमिक के उपरांत हाई स्कूल और फिर हायर सेकन्ड्री के उपरांत कालेज की शिक्षा की व्यवस्था करना शासन प्रशासन की महती जवाबदारी है।
 
बंडोल के करीब बखारी में हाई स्कूल का संचालन पिछले 26 सालों से हो रहा है। यहां हायर सेकंन्ड्री स्कूल अगर खोला जाता है तो इस हायर सेकन्ड्री स्कूल के भरोसे 3 हाई स्कूल, 8 माध्यमिक शालाएं हैं। वैसे भी यहां हायर सेकन्ड्री स्कूल खोला जाना तर्क संगत है। क्षेत्र के विद्यार्थियों और पालकांे का गुस्सा नाजायज किसी भी दृष्टिकोण से नहीं माना जा सकता है।
 
रही बात जनप्रतिनिधियों की तो उनकी नपुंसकता किसी से छिपी नहीं है। पूर्व में सिवनी जिले की अंतिम सांसद रहीं श्रीमति नीता पटेरिया वर्तमान में सिवनी विधानसभा क्षेत्र की विधायक हैं। पिछले साल लोकसभा चुनाव के दौरान प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने साफ तौर पर यह घोषणा की थी कि बखारी में हायर सेकन्ड्री स्कूल को हर हाल में खोला जाएगा। यद्यपि चुनाव के दरम्यान शिवराज सिंह ने यह कहा था कि आचार संहित के चलते वे आधिकारिक घोषणा नहीं कर सकते हैं अतः वे बाद में इस बारे में प्रयास अवश्य ही करेंगे। सिवनी बालाघाट संसदीय क्षेत्र के सांसद के.डी.देशमुख का कहना था कि ‘‘ भले ही उरिया का पानी बरेंडी में चढ़ाना पडे पर वे बखारी में हायर सेकन्ड्री स्कूल अवश्य ही खुलवाएंगे।‘‘ कालांतर में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और सांसद के.डी.देशमुख के प्रलाप चुनावी वादे ही साबित हुए हैं।
 
जब स्थिति गंभीर हो चली है तब स्थानीय विधायक श्रीमति नीता पटेरिया की तंद्रा टूटी है। श्रीमति पटेरिया का शिक्षा मंत्री के हवाले से कहना है कि इस सत्र के बजाए अब अगले सत्र से बखारी में हायर सेकन्ड्री स्कूल खोला जा सकता है। कुल मिलाकर पालकों और विद्यार्थियों को एक साल और झुनझुना पकड़वाने का प्रयास किया जा रहा है। बखारी में हायर सेकन्ड्री की मांग नई नहीं है। वैसे भी जनप्रतिनिधि चाहे वह विधायक हो या सांसद उसका यह फर्ज होता है कि वह क्षेत्र में जाकर रियाया के दुख दर्द को देखे, जरूरतों को समझे, एसा करके वह जनता पर कोई एहसान नहीं करता है। इसके लिए सांसद विधायक को बाकायदा भत्ता भी मिलता है। हालात देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि जनप्रतिनिधियों को जनता के दुखदर्द से कोई सरोकार ही नहीं बचा है।
 
पालक और विद्यार्थियों ने अगर स्कूल बंद करवा दिया है तो मान लेना चाहिए कि स्थिति गंभीर है। जिला शिक्षा अधिकारी कहते हैं कि उनके कार्यालय द्वारा बखारी में हायर सेकन्ड्री स्कूल खोलने का प्रस्ताव पूरी ईमानदारी के साथ बनाकर शासन को भेज दिया है। वैसे भी किसी भी शाला के उन्नयन या अन्य मामलों को बजट में शामिल करवाने के लिए जनप्रतिनिधि को एडी चोटी एक करनी होती है। शाला का अगर उन्नयन किया जाता है तो इसमें सिर्फ और सिर्फ जनता का ही भला होगा। इसमें न तो जनप्रतिनिधि को कोई कमीशन खाने का मौका ही मिलेगा और न ही वह अपने किसी लग्गू भग्गू को उपकृत करने की स्थिति में ही होगा। शाला के उन्नयन के स्थान पर अगर शाला भवन निर्माण की बात होती तो सांसद विधायक पूरी दिलचस्पी दिखाते क्योंकि उसमें आवंटन जो प्राप्त होता है।

इस मामले में जिला मुख्यालय की विधायक श्रीमति नीता पटेरिया की लापरवाही को अनदेखा नहीं किया जा सकता है, क्योंकि वे सत्ता और संगठन के बीच की बनी समन्वय समिति में हैं। इस लिहाज से उनकी बात को तवज्जो देना शिवराज सरकार की मजबूरी है। वैसे भी श्रीमति नीता पटेरिया पूर्व सांसद और सिटिंग एमएलए एवं महिला मोर्चा की प्रदेशाध्यक्ष हैं, तो उनके द्वारा कही गई बात को सरकार पूरा पूरा वजन देगी ही। विडम्बना है कि उन्होंने भी इस मामले में कोई ध्यान नहीं दिया है। श्रीमति नीता पटेरिया के विधानसभा क्षेत्र में हायर सेकन्ड्री स्कूल की मांग को लेकर अनेक शैक्षणिक संस्थान अगर बंद हैं तो यह निश्चित तौर पर श्रीमति नीता पटेरिया को मिले जनादेश का अपमान ही माना जाएगा।

आखिर हम कहाँ जा रहे हैं?

आखिर हम कहाँ जा रहे हैं?

(हरीष शहरी)

दुनियाँ कहती है कि भारत विकसित राष्ट्र बनने जा रहा है। हर भारतवासी बड़े गर्व से कहता है कि भारत निरन्तर विकास के रास्ते पर अग्रसर है।  स्वतन्त्रता के बाद हमने अभूतपूर्व सफलता पायी है और दुर्लभ उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं।  आज हम चाँद पर अपना परचम लहरा चुके हैं और मंगल ग्रह पर जाने के लिए तैयार हैं।  हमारे पास दुर्लभ आयुध भंडार है जिसमें दूर तक मारक क्षमता रखने वाली मिसाइलें, ध्वनि की गति से भी तेज चलने वाले लड़ाकू विमान तथा पानी के भीतर शत्रुओं की खोज कर दूर तक मार करने वाली पन्डुब्बियाँ हैं।  इतना ही नहीं हमने अनेक रोगों के इलाज ढूंढने एवं उनके निरन्तर विकास में भी सफलता पायी है। 

कुल मिलाकर भौतिक उपलब्धियों की खोेज एवं उनके निरन्तर विकास में हम बहुत आगे आ चुके हैं किन्तु इस अन्धी दौड़ में हम अपनी मान्यताओं, अपनी संस्कृति एवं अपने मूल्यों को कितने पीछे छोड़ आये हैं इसका हमें जरा भी एहसास नहीं है। जिस भारतवर्ष में यह कहावत प्रसिद्ध थी कि घर आये दुष्मन का भी स्वागत करना चाहिए और जिसके अनेक उदाहरण हमारे इतिहास में दर्ज हैं जैसे हमने मुसलमानों को, अंग्रेजों को एवं अन्य न जाने कितने विदेषी लोगों को अपने सर आंखों पर बिठाया भले ही उन्होंने हमारे साथ बुरा सुलूक किया उसी भारतवर्ष में आज यदि सगा भाई भी घर आ जाये तो लोग उसके जल्द से जल्द जाने की तरकीबें सोचते हैं। 

यह वही देष है जिसमें परायी स्त्री को उम्र के हिसाब से माँ बहन या बेटी का दर्जा दिया जाता था उसी देष में आज प्रतिदिन महिलाओं के साथ छेड़छाड़ एवं बलात्कार जैसी घटनायें सुनने को मिलती हैं।  कुछ हद तक इसके लिए महिलायें भी उत्तरदायी हैं क्योंकि भारतीय परिधानों, जिनसे शरीर के सभी अंग पूरी तरह ढके रहते हैं, को छोड़कर वे पष्चिमी परिधानों, जिनमें शरीर ढकता कम है और दिखता ज्यादा है प्राथमिकता देने लगीं हैं। जिस देष में लोग दूसरों की मदद करने या दूसरों को कुछ देने में खुषी का अनुभव प्राप्त करते थे आज उसी देष में लोग दूसरों से छीनकर खुष होते हैं और इसी का परिणाम है कि भारत जैसे देष जिसमें दधीचि एवं कर्ण जैसे महादानी हुए उसी देष की मिट्टी में आज दाऊद, अबू सलेम, छोटा राजन एवं बबलू श्रीवास्तव जैसे लोग फल-फूल रहे हैं।  आज पश्चमी देषों की नकल में हम इतने आगे निकल आये हैं कि अपनी मान्यताओं, अपनी संस्कृति एवं अपने मूल्यों को तो जैसे भूल ही गये हैं।

मेरा हर भारतवासी से यह विनम्र अनुरोध है कि वह एक बार फिर से सोचे कि आखिर हम कहाँ जा रहे हैं? ये हमारी कैसी उन्नति है जो धीरे-धीरे हमें अपनी सभ्यता एवं संस्कृति से दूर कर रही है और हमें गर्त के मार्ग पर अग्रसर कर रही है।  क्या हमारे पूर्वजों एवं स्वतन्त्रता सेनानियों ने यही सपना देखा था और इसी दिन के लिए अपने प्राणों की आहूति दी थी?  यदि हम अभी भी नहीं चेते और अपने आचार-व्यवहार में जल्द ही परिवर्तन नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं जब हम केवल विकास के रास्ते में गुम होकर रह जायेंगे।