बुधवार, 1 सितंबर 2010

22-23 अक्टूबर को खजुराहो में ग्लोबल इनवेस्टर्स मीट में भाग लेने का आग्रह


उद्योगपतियांे से मध्यप्रदेश में उद्योग लगाने के लिए मंत्री श्री विजयवर्गीय का आमंत्रण

नई दिल्ली, 1 सितम्बर 2010 मध्यप्रदेश के उद्योग मंत्री श्री कैलाश विजयवर्गीय ने आज यहां नई दिल्ली में पीएचडी हाउस में आयोजित उद्योगपतियों के सम्मेलन में उद्योगपतियों को प्रदेश में उद्योग लगाने के लिए आमंत्रित किया। श्री विजयवर्गीय ने बताया कि उद्योगों को 24 घंटे बिजली और पानी दिया जा रहा है। प्रदेश में उद्योगों की स्थापना के लिए सड़कों सहित अधोसंरचना का तेजी से विकास किया गया है। अब प्रदेश में उद्योगों की स्थापना के लिए अनुकूल वातावरण है। 

श्री विजयवर्गीय ने उद्योगपतियों से कहा कि 6 वर्ष पहले अधोसंरचना के अभाव में उद्योगों को आमंत्रित करने में संकोच होता था।  अब सड़कों सहित सभी सुविधायें उपलब्ध कराने के कारण हमारे पास उद्योग लगाने के लिए सभी मूलभूत सुविधाओं सहित बहुत कुछ है। हर जिले में उद्योग स्थापित करने के लिए जमीन चिन्हित कर लैंड बैंक बनाये गये हैं। प्रदेश में कुशल एवं अकुशल मानव संसाधन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। प्रदेश में उद्योग लगाने की अपार संभावनाओं के लिए प्रचुर मात्रा में खनिज साधन, प्राकृतिक संसाधन और खाद्य प्रसंस्करण के लिए फल एवं सब्जियां उपलब्ध हैं। कानून एवं व्यवस्था बहुत अच्छी होने के कारण पूंजी निवेश के लिए अच्छा वातावरण है। श्रमिक शांति भी पूरे देश में सबसे अच्छी है। राज्य में डाकूओं की फिल्में बनती थीं किन्तु अब प्रदेश में एक भी डाकू नहीं है। प्रदेश की पारदर्शी उद्योग नीति में मेगा प्रोजेक्ट स्थापित करने के लिए विशेष सुविधाएं दी जा रही हैं। नागपुरी संतरे के नाम से बिकने वाला 80 प्रतिशत संतरा तथा भुसावली केले के नाम से बिकने वाला 80 प्रतिशत केला मध्यप्रदेश में पैदा होता है। धनिया और मिर्ची मध्यप्रदेश की श्रेष्ठ गुणवत्ता की है। सोयाबीन मध्यप्रदेश में सर्वाधिक पैदा होता है। प्रदेश के गेहूं की क्वालिटी भी देश में सर्वश्रेष्ठ है। इन सभी अनुकूल परिस्थितियों में मध्यप्रदेश में पूंजी निवेश में अपार संभावनाएं हैं। श्री विजयवर्गीय ने उद्योगपतियों से खजुराहो में 22 और 23 अक्टूबर को ग्लोबल इनवेस्टर्स मीट में सम्मिलित होने का आग्रह किया। 

प्रारम्भ में पीएचडी चैम्बर ऑफ कामर्स एण्ड इंडस्ट्रीज के वाइस प्रेसीडेंट श्री सलिल भंडारी और पीएचडी के एम.पी. कमेटी के चेयरमेन श्री अनिल अग्रवाल ने उद्योगपतियों की ओर श्री विजयवर्गीय का स्वागत किया। श्री सलिल भंडारी ने इस अवसर पर उद्योगपतियों को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि प्रदेश में उद्योगों की स्थापना के लिए सस्ती जमीन, प्राकृतिक संसाधन और  कुशल मानव संसाधन की उपलब्धता के कारण मध्यप्रदेश उद्योगों की स्थापना के लिए सबसे उपयुक्त स्थान है। मध्यप्रदेश की सरकार उद्योग मित्र होने के कारण हमेशा सहयोग करती है। प्रदेश की औद्योगिक नीति भी उद्योगों के अनुकूल है। श्री भंडारी ने कहा कि अगर अभी प्रदेश में उद्योग लगाने में पीछे रह गये तो आगे आने वाले समय में मध्यप्रदेश में उद्योग लगाने के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। 

प्रारम्भ में प्रमुख सचिव श्री पी.के. दास और मध्यप्रदेश औद्योगिक विकास निगम के प्रबंध संचालक श्री अनिल जैन ने उद्योगपतियों को उद्योग लगाने के लिए प्रदेश में दी जा रही सुविधाओं की जानकारी दी। इस अवसर पर अनेक उद्योगपतियों ने उद्योग लगाने के संबंध में जानकारी चाही। इस सम्मेलन में जे.के. टायर की ओर से श्री मनोज मुदानी, साइबर मीडिया उद्योग के श्री राज पाठक,उद्योगपति श्री आशीष विज, श्री हरीश चावला, ओमेक्स ग्रुप की ओर से श्री के.सी. चावला, इंटरकान्टीनेन्टल कन्सलटेन्ट की ओर से श्री एम.एस. बालकृष्णनन, आई.सी. आर. ए. उद्योग के श्री राशि ग्रोवर, एसाराम बिजनेस ग्रुप की ओर से श्री एस.के. नेमानी सहित लगभग 50 उद्योगपति उपस्थित थे।

गरीबों के मुंह से निवाला छीनने पर आमदा क्यों है कांग्रेस

मत भूलिए! न्याय पालिका सर्वोच्च है पवार साहेब
 
आईसीसी के साथ गरीब गुरबों की तरफ भी देखें कृषि मंत्री
 
अनाज सडता है सडता रहे पर गरीबों में नहीं बटेगा!
 
संसद को बनना था जनता की आवाज, पर अदालत में उठी हक की आवाज
 
(लिमटी खरे)

हर साल लाखों टन अनाज सड़ता रहता है, और हर साल करोड़ों लोग दो वक्त की रोटी की जद्दोजहद में रहते हैं! ये दो तस्वीरें हैं भारत गणराज्य की जिसे ब्रितानियों की गुलामी से मुक्ति मिले छः दशक से ज्यादा समय हो चुका है। साठ साल की उमर में सरकार भी अपने कर्मचारी को सेवानिवृत कर देती है। माना जाता है कि साठ साल की उमर में आदमी अपनी सारी अभिलाषाएं लगभग पूरी कर चुकता है। भारत का दुर्भाग्य कहा जाएगा कि साठ सालों के बीतने के बाद भी भारत में बुनियादी समस्याएं न केवल जस की तस बनी हुई हैं, वरन बढ़ी ही हैं।
 
देश में लाखों टन अनाज सड़ने की बात पर भारत की सबसे बड़ी अदालत ने अपनी तल्ख नाराजगी जाहिर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर सरकार अनाज को ठीक तरीके से संरक्षित नहीं कर सकती है तो वह उसे गरीब और भुखमरी के शिकार लोगों के बीच बटवा दे। कृषि प्रधान भारत देश में वैसे भी अनाज सड़ने या खराब होकर फेंके जाने को सबसे बड़ी बुराई के तौर पर देखा जाता है।
 
इधर अनाज के सड़ने की खबर से देश की सबसे बड़ी अदालत का आक्रोश लोगों को दिखा वहीं सियासत के धनी केंद्रीय कृषि मंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मुखिया शरद पवार ने मीडिया को ही इसके लिए दोषी बताकर कह दिया कि खाद्यान्न सड़ने की खबरों को बढ़ा चढ़ा कर पेश किया जा रहा है। शरद पवार का कथन और राज्य सभा में कृषि राज्य मंत्री प्रो.के.वी.थामस के दिए वक्तव्य में असमानता ही दिख रही है। केंद्रीय कृषि मंत्री का कहना था कि भले ही बर्बाद हो जाए अनाज पर गरीबों के मुफ्त में इसे नहीं बांटा जा सकता है। खुद कृषि मंत्री ने पिछले महीने ही लोकसभा में जानकारी दी थी कि 6 करोड़ 86 लाख रूपए मूल्य का 11 हजार 700 टन अनाज बर्बाद हो गया।
 
देश का कृषि मंत्रालय निर्दलीय पी.राजीव और के.एन.बालगोपाल के पूछे प्रश्न पर उत्तर देते हुए कहता है कि देश में एफसीआई के गोदामों में कुल 11 लाख 708 टन अनाज खराब हुआ है। 01 जुलाई 2010 की स्थिति के अनुसार भारतीय खाद्य निगम के विभिन्न गोदामों में 11,708 टन गेंहू और चावल खराब हो गया। पिछले साल 2010 टन गेहूं और 3680 टन चावल खराब हुआ था। 2008 - 2009 में 947 टन गेंहू और 19,163 टन चावल बरबाद हुआ था। वर्ष 2007 - 2008 में 924 टन गेंहू और 32 हजार 615 टन चावल खराब हुआ था। इस तरह देखा जाए तो तीन सालों में देश के एफसीआई के गोदाम कुल 3881 टन गेंहू और 55 हजार 458 टन चावल खराब हुआ था। इस तरह इस साल 01 जुलाई तक के खराब हुए अनाज को अगर मिला लिया जाए तो चार सालांे में देश में सरकारी स्तर पर कुल 71 हजार 47 टन अनाज बरबाद हुआ है।
 
शीर्ष अदालत की टिप्पणी के बाद शरद पवार ने उसे कोर्ट की सलाह मानकर इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया। इससे नाराज अदालत ने साफ किया है कि उन्होंने अनाज के बारे में सरकार को सलाह नहीं दी है, यह कोर्ट का आदेश है। शरद पवार को यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत गणराज्य में न्यायपालिका को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। हर देशवासी का यह नैतिक दायित्व है कि वह अदालत के हर फैसले का पूरा पूरा सम्मान करे।
 
गत दिवस सदन में इस मामले को लेकर गर्मा गरम बहस भी छेड दी गई थी। विपक्ष ने सरकार को आड़े हाथों लेकर सरकार से स्पष्टीकरण तक मांग डाला। सदन में शरद पवार का यह वक्तव्य बचकाना ही माना जाएगा कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश की प्रति हासिल करने का प्रयास कर रही है, इसके बाद कोर्ट की मंशा के अनुरूप ही सरकार द्वारा कदम उठाए जाएंगे। गौरतलब है कि कोर्ट ने अतिरिक्त सालीसिटर जनरल की उपस्थिति में ही सरकार की मश्कें कसीं थीं। सरकार की ओर से खड़े एडीशनल सालीसिटर जनरल चाहते तो तत्काल ही उन्हें कोर्ट के आदेश की प्रति उपलब्ध हो जाती।
 
देखा जाए तो आजाद भारत में जनता की आवाज, संसद या विधानसभा को बनना चाहिए, किन्तु विडम्बना यह है कि ये दोनों ही अपने दायित्वों के निर्वहन में अक्षम ही प्रतीत हो रही हैं, इसका कारण इनमें बैठे जनता के प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर चुने गए नुमाईंदों की बदलती प्राथमिकताएं हैं। जनता अपना अमूल्य वोट देकर जिन्हें चुनती है, जनता को चुनाव के वक्त लोक लुभावने वायदों से पाट देते हैं, वे ही नुमाईंदे जीतने के बाद जनता के द्वारा दिए जनादेश को सबसे पहले ही भूलकर अपने निहत स्वार्थों को प्राथमिकता बना लेते हैं।
 
सत्तर के दशक तक जनता के दुख दर्द के लिए सदन के किसी कोने में हमदर्दी और संवेदनशीलता दिखाई पड़ती थी, किन्तु अब तो सदन में बैठे जनता के नुमाईंदे पूरी तरह निष्ठुर ही नजर आ रहे हैं। देश की शीर्ष अदालत के फैसले को केंद्रीय मंत्री शरद पवार ने जिस तरह हवा में उड़ा दिया और बाकी सांसद चुप्पी साधे बैठे रहे उससे इन सभी की जनता के प्रति संवदेनहीनता साफ साफ दिखाई पड़ी। होना यह चाहिए था कि जनता के चुने हुए नुमाईंदों को शरद पवार के केंद्रीय कृषि मंत्री रहते हुए सड़े अनाज का ब्योरा मांगना चाहिए था। दरअसल शरद पवार की प्राथमिकता देश की सेवा से ज्यादा क्रिकेट की सेवा की बन चुकी है। पिछले कई सालों से पवार ने अपना पूरा पूरा ध्यान देश की बजाए क्रिकेट में लगाया हुआ है।
 
हाल ही में शरद पवार ने प्रधानमंत्री से कहा भी था कि उनका बोझ कुछ कम किया जाए, इसके पीछे यही कारण नजर आ रहा था कि पवार को अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद का अध्यक्ष चुन लिया गया था। आईसीसी एक मलाईदार संस्था है, इसके अध्यक्ष बनने पर शरद पवार को मान सम्मान, धन और रूतबे की कमी कतई नहीं रहती किन्तु लाल बत्ती का प्रेम उनसे शायद छोड़ा नहीं जा रहा है। यही कारण है कि वे चाहते हैं कि उन्हें एकाध महत्वहीन विभाग की जवाबदारी सौंप दी जाए ताकि वे मंत्री पद की सुविधाएं और सम्मान पृथक से पाते रहें।
 
आजाद भारत में इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या होगा कि आधी सदी से ज्यादा देश पर शासन करने वाली कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी को ‘‘विदेशी मूल‘‘ का कहने वाले शरद पवार ने कांग्रेस से हटकर अपनी एक नई पार्टी बनाई और सत्ता की मलाई खाने के लिए उसी कांग्रेस को अपने सामने घुटनों पर बैठने पर विवश किया। अब पवार सरेआम अपना मंत्रालय बदलने और मंत्रालय न बदल पाने की स्थिति में शीर्ष अदालत के फैसले को सलाह का रूप देने पर तुले हुए हैं। क्या यह कांग्रेस की भद्द पिटवाने के लिए पर्याप्त नहीं है।
 
बहरहाल अब शरद पवार के कांधों पर इंटरनेशलन क्रिकेट की कमान आ गई है। पवार के कांधे वैसे भी अब तक देश के लगभग सवा सौ करोड़ लोगों का बोझ उठाकर थक चुके होंगे अतः उन्हें आराम की दरकार है। कांग्रेस को चाहिए कि पवार जैसे मंझे हुए राजनेता को मंत्रीमण्डल से बाहर का रास्ता दिखाए ताकि वे इंटरनेशनल लेबल पर करिश्मा दिखा सकें। वैसे भी अब तक पवार की प्राथमिकता की सूची में देश के गरीब गुरबे रहे ही कहां हैं।
 
शरद पवार के गृह राज्य में गरीब किसान एक के बाद एक आत्महत्या करते रहे, सूबे में उनकी और कांग्रेस की जुगल बंदी की सरकार रही, केंद्र में वे खुद ही कृषि मंत्री हैं। इसके बावजूद सब कुछ होता रहा। हालात देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि अब तक पवार के लिए चिंता का विषय गरीब गुरबे, आत्महत्या करते किसान, भूख से मरते गरीब, आधे पेट सोते आम भारतीय कभी नहीं रहे हैं, पवार के लिए सबसे बड़ी चिंता तो विभिन्न देशों विशेषकर पाकिस्तान के बेईमान खिलाड़ियों की जांच है।

केंद्रीय स्तर पर अनाज के भंडारण के लिए वेयर हाउस बनाने हेतु न जाने कितनी सुविधा, सब्सीडी केंद्र सरकार द्वारा दी गई है। अनेक स्थानों पर वेयर हाउस आज भी कागजों पर ही बने दिखाई दे रहे हैं। नेताओं और पहुंच संपन्न लोगों ने सरकारी इमदाद का बंदरबांट तबियत से किया है। क्या केंद्र सरकार का यह दायित्व नहीं है कि सरकारी मदद से बने वेयर हाउस का मौका मुआयना कर दोषियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराए। हर जिले में तैनात जिला कलेक्टर अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी ही होते हैं, जो सीधे सीधे कार्मिक मंत्रालय (डीओपीटी) के अधीन आते हैं। केंद्र सरकार अगर चाहे तो दो माह की निश्चित समयावधि देकर जिलों के कलेक्टर्स को आदेशित कर वस्तुस्थिति का पता लगवाकर गफलत करने वालों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करवाए तो दूध का दूध पानी का पानी हो सकता है। यह सब करने के लिए सरकार को अपनी मंशा साफ करके ही ‘क्लीन हेण्ड‘ से आगे आना होगा, वरना बरबादी का जो सिलसिला चल रहा है, वह कालांतर में और भयवह स्परूप में आकर जारी ही रहेगा।

700वीं पोस्ट फोरलेन विवाद का सच ------------------- 20

उसी से ठंडा उसी से गरम!

मिडिल स्कूल में अंग्रेजी की एक कहानी जिसका भावार्थ था कि मुट्ठी बंद कर फूंक मारने से ठंड के समय में गरमी किन्तु उबले आलू को ठंडा करते समय फूंक मारने से वह ठंडा हो जाता है, कमोबेश हर किसी ने पढ़ी होगी। बचपन में कोतुहल अवश्य ही हुआ करता होगा कि उसी काम को करने से चीज ठंडी हो जाती है, पर ठंड के दिनों में फूंक मारने से मुट्ठी गरम कैसे हो जाती है। उसी तर्ज पर वाईल्ड लाईफ के काल्पनिक कारीडोर को आधार बनाकर किसी एनजीओ ने सर्वोच्च न्यायालय में सिवनी खवासा से होकर जाने वाले चतुष्गामी मार्ग को रोकने की अपील दायर की है, जबकि दूसरी ओर प्रस्तावित एनएच छिंदवाड़ा सौंसर सावनेर नागपुर मार्ग को तो अस्तित्व में आने वाला सतपुड़ा टाईगर कारीडोर दो जगह बाधित कर रहा है, फिर भी सब ओर खामोशी ही पसरी नजर आ रही है।

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 01 सितम्बर। स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना के अंग उत्तर दक्षिण गलियारे से सिवनी जिले का नामोनिशान मिटाने का षणयंत्र किसका है इस बात से अभी तक कुहासा हट नहीं सका है। लखनादौन से सिवनी होकर नागपुर जाने वाले 1545 में शेरशाह सूरी द्वारा निर्मित मार्ग का अस्तित्व मिटाने की सजिश की जा रही है। वाईल्ड लाईफ ट्रस्ट नामक एक गैर सरकारी संगठन इस साजिश में एक इंस्टूमंेट की तरह सामने आया है। इस एनजीओ को सिवनी जिले से क्या बुराई है, यह बात अभी तक साफ नहीं हो सकी है।
 
बताया जाता है कि उक्त एनजीओ द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर सिवनी से खवासा के बीच सड़क मार्ग में पड़ने वाले रक्षित वन एवं पेंच नेशनल पार्क के हिस्से से सड़क न गुजारने का अनुरोध किया है। इसके उपरांत का जो घटनाक्रम प्रकाश में आया उसके अनुसार सर्वोच्च न्यायालय की साधिकार समिति (सीईसी) ने गुपचुप तरीके से विवादित स्थलों का निरीक्षण किया। चूंकि उस समय तक चतुष्गामी सड़क के निर्माण का काम मोहगांव तक पहुंच चुका था, अतः सीईसी ने संभवतः आगे के काम को रूकवाने की गरज से तत्कालीन जिला कलेक्टर पिरकीपण्डला नरहरि से इस मार्ग में पेड़ कटाई की अनुमति न देने का अनुरोध किया।
 
तत्कालीन कलेक्टर नरहरि ने सीईसी के अनुरोध को यह कहकर स्वीकार कर लिया कि इस संबंध में राज्य शासन से निर्देश प्राप्त होना अभी बाकी है, पर मोहगांव से खवासा तक वन एवं गैर वन क्षेत्र में पेड़ कटाई की पूर्व कलेक्टर द्वारा दी गई अनुमति को निरस्त कर दिया गया। प्रपत्रों में सार्वजनिक दिखने वाला यह आदेश इतने गोपनीय तरीके से जारी किया गया कि सिवनी वासियों और उनका प्रतिनिधित्व करने वाले जनसेवकों को भी इसकी भनक नहीं लग पाई।
 
बताया जाता है कि मोहगांव से खवासा तक के सड़क निर्माण के काम को इसलिए रोका गया है क्योंकि यह सड़क रिजर्व फारेस्ट के साथ ही साथ पेंच और कान्हा के बीच के काल्पनिक वाईल्ड लाईफ कारीडोर को बाधित कर रही है, जिससे यहां से गुजरने वाले वाहन वन्य जीवों की आजादी में खलल डालेंगे, साथ ही साथ शिकारियों के लिए वन्य जीवों का शिकार बहुत ही आसान होगा।
 
वहीं दूसरी ओर वर्ष 2009 में केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने मध्य प्रदेश के सतपुड़ा और पेंच नेशनल पार्क के साथ ही साथ महाराष्ट्र के मेलघाट को मिलाकर सतपुड़ा टाईगर कॉरीडोर पर काम आरंभ करवा दिया गया है। इसके बन जाने से आने वाले समय में तीनों नेशनल पार्क के वन्य जीव विशेषकर बाघों का दायरा बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है।
 
इस मामले में सबसे हैरानी वाली बात यह सामने आ रही है कि वन्य जीवों के प्रति एकाएक हमदर्दी जताकर सिवनी के साथ अपना प्रत्यक्ष बैर दर्शाने वाले वाईल्ड लाईफ ट्रस्ट की नजरें अब तक सतपुड़ा टाईगर कॉरीडोर पर इनायत क्यों नहीं हो सकी हैं। गौरतलब होगा कि छिंदवाड़ा से नागपुर रेलमार्ग के अमान परिवर्तन और नरसिंहपुर छिंदवाड़ा, सौंसर नागपुर मार्ग इस टाईगर कॉरीडोर को दो मर्तबा बाधित कर रहा है। एक साल से अधिक समय से चालू की गई उक्त परियोजना में अब तक उक्त पर्यावरण और वन्य जीव प्रेमी एनजीओ की चुप्पी आश्चर्य का विषय ही मानी जा रही है।
 
\उक्त एनजीओ की चुप्पी से उन अफवाहों को बल मिल रहा है, जिनमे यह कहा जा रहा है कि किसी नेता विशेष द्वारा सिवनी के नागरिकों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार कर उत्तर दक्षिण चतुष्गामी फोरलेन को छीनने का प्रयास किया जा रहा है। पेंच कान्हा के काल्पनिक कॉरीडोर को आधार बनाकर सिवनी से नागपुर के मार्ग का काम रोका गया है, उससे गंभीर प्रकृति तो छिंदवाड़ा जिले से होकर गुजरने वाले प्रस्तावित नरसिंहपुर छिंदवाड़ा सौंसर, सावनेर नागपुर सड़क मार्ग और छिंदवाड़ा नैनपुर के ब्राडगेज की है।
 
अगर एनजीओ ने सिर्फ सिवनी के मामले में दिलचस्पी दिखाई है तो उससे इस मामले का कुहासा कुछ साफ होने लगा है कि किसी नेता विशेष के निर्देश या इशारों पर सिवनी जिले को एनएचएआई के उत्तर दक्षिण गलियारे के नक्शे से गायब करने का प्रयास पूरी शिद्दत और गंभीरता के साथ किया जा रहा है, जिस मामले में सिवनी के नेतृत्व कर्ता या तो अनजान हैं या फिर अनजान बनने का स्वांग रच रहे हैं।

उसी फॅूक (वाईल्ड लाईफ करीडोर) से सिवनी से नागपुर के मार्ग को रोकने का जतन किया जाता है, किन्तु उसी फॅूक (सतपुड़ा टाईगर कारीडोर) के मामले में एनजीओ सहित सांसद, विधायक और अन्य नेताओं के खेमे में खामोशी पसर जाती है, तो कहा जा सकता है कि ‘‘उसी से ठंडा, उसी से गरम।‘‘