सोमवार, 30 अगस्त 2010

ममता से वसूले जाएं 11 लाख

ये है दिल्ली मेरी जान
(लिमटी खरे)

ममता से वसूले जाएं 11 लाख
केंद्र में रेल मंत्री का दायित्व संभालने वाली पश्चिम बंगाल की क्षत्रप सुश्री ममता बनर्जी ने नैतिकता की सारी हदें पार कर दी हैं। उन्होंने देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली को छोड़कर पश्चिम बंगाल में ज्यादा समय बिताया जा रहा है। ममता बनर्जी ने सबसे पहले तो दिल्ली से हटकर कोलकता में पदभार ग्रहण कर सुर्खियां बटोरी थीं। इसके बाद उन्होंने त्रणमूल कांग्रेस के कोटे के मंत्रियों को साफ तौर पर हिदायत दी कि वे पश्चिम बंगाल में अपना ज्यादा समय व्यतीत करें। ममता शायद भूल जातीं हैं कि पश्चिम बंगाल के साथ ही साथ देश के अन्य सूबों को भी उनकी ममता की आवश्यक्ता है, पर ममता हैं कि पश्चिम बंगाल की सत्ता पर काबिज होने के जतन में न जाने कितनी वर्जनाओं को क्षतिग्रस्त करती जा रही हैं। अब भारतीय रेल के अफसरों पर 11 लाख रूपए खर्च किए जाने की खबरें प्रकाश में आईं हैं, यह खर्च ममता के पश्चिम बंगाल में रहने के कारण उनके मातहत अफसरान को उनसे फाईल क्लियर करवाने के लिए पश्चिम बंगाल की यात्राओं पर किया गया व्यय है। सवाल यह उठता है कि आम जनता के गाढ़े पसीने की कमाई को अगर इस तरह हवा में ही उड़ाया जाएगा और गरीब गुरबों की खैर ख्वाह बनने का ढोंग करने वाली कांग्रेस चुपचाप सब कुछ देखे सुने तो अपराधी किसे माना जाएगा?
अमिताभ हैं झारखण्ड के मुखबिर!
सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने रूपहले पर्दे पर अपने लंबे केरियर में न जाने कितने किरदार किए होंगे, फिल्म ‘मजबूर‘ मंे उन्होंने मुखबिर का किरदार जीवंत किया था। उमरदराज हो चुके अमिताभ बच्चन अब झारखण्ड में खुफिया सेवा के ‘मुखबिर‘ की भूमिका में हैं। जी हां, यह सच है, आपको आश्चर्य हो रहा होगा। झारखण्ड के पूर्व पुलिस महानिदेशक और वर्तमान में नगर सेना के महानिदेशक वी.डी.राम ने अमिताभ बच्चन को न केवल पुलिस का मुखबिर ही बना दिया वरन उनके नाम से 21 लाख छः हजार पांच सौ रूपए की राशि का आहरण भी करवा दिया। आश्चर्य तो तब हुआ जब इक्कीस लाख रूपए की रकम को पुलिस ने मुखबिर के लिए 17 मार्च 2006 को एक ही दिन में महज दो ही रसीदें बनवाकर भुगतान करवा दिया। एक रसीद अठ्ठारह लाख रूपए तो दूसरी तीन लाख साढ़े छः हजार की है। अब तो जनता जनार्दन समझ ही सकती है कि लालू प्रसाद यादव चारा, सुखराम दूरसंचार, कामन वेल्थ का सुरेश कलमाड़ी जैसे नेता कर सकते हैं तो भला फिर नौकरशाह पीछे क्यों रहें?
समग्र स्वच्छता अभियान का जमीनी सच
केंद्र सरकार द्वारा जनता से करों के माध्यम से वसूले गए अरबों रूपए समग्र स्वच्छता अभियान में झोंक दिए जाते रहे हैं, बावजूद इसके देश में समग्र स्वच्छता अभियान परवान नहीं चढ़ सका है। यह बात हम नहीं कह रहे हैं, केंद्रीय शहरी विकास राज्यमंत्री सौगत राय ने लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में बताया है कि संयुक्त राष्ट्र की जलापूर्ति और सफाई के लिए गठित संयुक्त निगरानी समिति का प्रतिवेदन कहता है कि दुनिया भर में खुले में शौच करने वालें की कुल आबादी का साढ़े उननचास फीसदी हिस्सा भारत गणराज्य में है। बिडम्बना है कि 1999 से देश में आरंभ किए गए आवास एवं शहरी गीबी उन्नमूलन मंालय एकीकृत कम लागत सफाई प्रोग्राम का क्रियान्वयन केंद्र सरकार द्वारा किया जा रहा है। अब तक खरबों रूपए से ज्यादा व्यय करने के बाद भी देश में खुले में दिशा मैदान अर्थात शौच जाने वालों की बढ़ी तादाद निश्चित तौर पर भारत गणराज्य पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस के लिए शर्म की बात है, किन्तु मोटी खाल ओढ़े जनसेवकों को इस बात से शर्म शायद ही आए। ग्यारह साल से चलने वाले समग्र स्वच्छता अभियान की कलई खुलने के बाद भी कांग्रेसनीत केंद्र सरकार मदमस्त हाथी के मानिंद ही चल रही है।
ऑफ द रिकार्ड नेताओं की शामत आई भाजपा में
मीडिया से गलबहियां कर ऑफ द रिकार्ड बात कहकर अपनी भड़ास निकालने और दूसरों के मुसीबत बनने वाले नेताओं पर अब भारतीय जनता पार्टी के नए आलाकमान ने नजर रखना आरंभ कर दिया है। भाजपा की गत बनाने वाले इन बड़बोले नेताओं की मश्कें कसती साफ नजर आ रही हैं। अपने किसी ‘‘खासुल खास‘‘ के मशविरे पर भाजपा के निजाम नितिन गडकरी ने खुफिया विभाग के एक सेवानिवृत वरिष्ठ अधिकारी को इन नेताओं की कारगुजारियों से आवगत कराने का जिम्मा दिया है। उक्त अधिकारी की सालाना पगार बहत्तर लाख रूपए सालाना है। इतनी मोटी पगार से साफ जाहिर है कि भाजपा के सिरमोर चाहते हैं कि उनके नेतृत्व में पार्टी की बेहतर छवि जनता के सामने आए। उक्त सेवानिवृत अधिकारी आजकल भाजपा के नेशनल हेडक्वार्टर 11 अशोक रोड़ में चहलकदमी करते दिख जाते हैं। बताते हैं कि उक्त अधिकारी द्वारा अपने प्रभावों का इस्तेमाल कर बड़बोले घर के भेदी नेताओं और पत्रकारों के बीच हुई फोन या मोबाईल की चर्चा के काल डिटेल आसानी से निकलवा लिए जाते हैं, फिर उन्हें खबरों के साथ जोड़कर अपनी रिपोर्ट सौंप दी जाती है गडकरी को। भाजपा के नेता भयाक्रांत ही नजर आ रहे हैं इससे। आलम यह है कि भाजपा बीट को कव्हर करने वाले पत्रकारों से इस तरह के नेताओं द्वारा पर्याप्त दूरी बनाकर रखी जा रही है।
कलमाडी ही नहीं शीला, रेड्डी, गिल भी हैं निशाने पर
कामन वेल्थ गेम्स में जनता के गाढ़े पसीने की कमाई का पैसा पानी की तरह उड़ाया जा रहा है। इसके लिए खेलों की आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी पर ठीकरा फोड़ा जा रहा है। मीडिया को मैनेज कर अनेक चेहरों को बचाने का प्रयास किया जा रहा है। देखा जाए तो इस मामले में शीला दीक्षित को 16 हजार पांच सौ साठ करोड़ रूपए राजधानी को अपग्रेड करने के लिए दिए गए थे। शीला ने पहले भी कहा था कि समय की कमी को देखकर उनके हाथ पांव फूल रहे हैं। यमुना के साथ अक्षरधाम के करीब बने खेल गांव को खेल मंत्री मनोहर सिंह गिल ने नेहरू स्टेडियम के पास लोधी रोड़ के पास बनाने का प्रस्ताव दिया था। अगर यह वहां बन जाता तो करदाताओं के पैसों में आग लगने से बच जाती। शीला के गुदड़ी के लाल संदीप दीक्षित के लोकसभा क्षेत्र को संवारने के लिए सारी बातों पर धूल डाल दी गई। इसी तरह शहरी विकास मंत्री जयपाल रेड्डी की देखरेख में लगभग अठ्ठाईस हजार करोड़ रूपए को पानी में बहा दिया गया। यह सच्चाई जनता के सामने इसलिए नहीं आ सकी क्योंकि इन सभी के मीडिया मेनेजमंेट तारीफे काबिल रहे।
मुखर्जी की मौत का दस्तावेज गायब!
भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत के दस्तावेज भारत सरकार के पास हैं ही नहीं। मजे की बात तो यह है कि भारतीय जनसंघ की बैसाखियों पर चलने वाली भारतीय जनता पार्टी ने अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में तीन बार देश पर राज किया फिर भी किसी को इस बात की सुध नहीं आई कि अपने पितृपुरूष श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत के बारे में मालुमात कर सकें। गौरतलब है कि मुखर्जी का निधन 55 वर्ष पूर्व काश्मीर की एक जेल में हुआ था। गृह मंत्रालय के अधिकारियों के पास भी इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं है, सूचना के अधिकार में चाही गई जानकारी के जवाब में गृह मंत्रालय का कोई स्पष्ट जवाब नहीं आना आश्चर्यजनक ही माना जा रहा है। इंडिया लीगल एड फोरम से जुडे आवेदक जयदीप मुखर्जी के सवाल का जवाब उन्हें नहीं मिल सका है। मुखर्जी ने पूछा था कि क्या श्यामा प्रसाद मुखर्जी के निधन से संबंधी दस्तावेज गोपनीय थे, इस बारे में भी केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मौन ही साधा हुआ है।
रिक्शा खीचने पर मजबूर बूढ़ी हड्डियां
पांच पांच पुत्रों के होने के बावजूद भी मुजफ्फरपुर के सकल राम को 85 साल की उमर में रिक्शा खीचना मजबूरी बन गया है, हो क्यों न? उन्हें अपना और अपनी अर्धांग्नी का पेट जो भरना है। पेट की आग बुझाने को सकल राम रोज सुबह रिक्शा लेकर सवारियों का इंतजार करते रहते हैं। कभी कभी तो यह स्थिति भी आती है कि वे अचानक ही चक्कर खाकर गिर जाते हैं। कभी कभी देखने वाले उन पर तरस खाकर वैसे ही उनकी रोजी रोटी का इंतजाम कर देते हैं, पर सकल राम चाहते हैं कि जब तक उनके शरीर में जान है तब तक वे अपनी आजीविका की व्यवस्था खुद ही करेंगे। इस मंहगाई के जमाने में भी सकल राम बस बीस तीस रूपए जमा होते ही अपने घर को लौट जाते हैं। सकल राम जैसे न जाने कितने व्यक्ति होंगे भारत में जो अपनी आजीविका के लिए दर दर भटकने पर मजबूर होंगे। भारत सरकार और सूबाई सरकारों की निराश्रित पेंशन योजना की कलई खोलने के लिए इस तरह के वाक्ये पर्याप्त माने जा सकते हैं।
अंडरवर्ल्ड की नई नामवाली!
कल तक अंडरवर्ल्ड में मुच्छड़ के नाम से पहचाना जाने वाला दाउद इब्राहिम का नया नामकरण हो गया है। पुलिस को छकाने के लिए अंडरवर्ल्ड के लोगों ने नई नामावली को अंजाम दिया है। यह बात मुंबई पुलिस की क्राईम ब्रांच द्वारा कुछ संदिग्ध फोन और मोबाईल की टेपिंग के उपरांत सामने आई है। पुलिस के सूत्रों ने बताया कि फोन पर अपनी बात कहने और किसी को समझ न आने के डर से गुर्गांे द्वारा तरह तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं। बताया जाता है कि पुलिस वालों को पूर्व में बाबू या पांडू कहा जाता था जो अब उलिस्पा के नाम से जाना जाने लगा है। लंबी दाढ़ी के कारण दाउद को अब हाजी साहेब, बंदूक को मां तो गोलियों को चाकलेट की जगह अब बेटा, छोटा शकील को सीएसबी अर्थात छोटा शकील भाई और उसकी हेयर स्टाईल के कारण उसे पाउ टकला भी कहा जाने लगा है, नाना के नाम से जाना जाने वाला छोटा राजन को सेठ, मुखबिर को जीरो कहा जा रहा है।
दिल्ली में इंदौरी पोहा!
मूलतः मध्य प्रदेश के मालवा और महाराष्ट्र के हल्के नाश्ते चावल के पोहे के स्वाद से अब दिल्ली वासी भी रूबरू हो चले हैं। चटपट बनने वाला कम तेल आहर का पोष्टिक पोहा एमपी के मालवा विशेषकर इंदौर की शान माना जाता है। राजधानी दिल्ली में यमुना पार लक्ष्मी नगर के मंगल मार्केट में स्टेट बैंक के सामने रेहडी लगाने वाले मुरैना निवासी रवि ने दिल्ली में हल्के नाश्ते के शौकीनों को इंदौरी पोहा का स्वाद दिलाया। लक्ष्मी नगर में रहने वाले विद्यार्थियों को इंदौर का पोहा इतना भाया कि आसपास में स्कूल ब्लाक, पड़पड़गंज, प्रीत विहार कड़कड़डूमा आदि क्षेत्र के लोग भी इस पोहे का स्वाद लेने लालायित दिखने लगे हैं। वैसे दिल्ली में सुबह के नाश्ते में मूलतः ब्रेड पकौड़ा, समोचा, कचौड़ी, छोले भटूरे का ही रस्वादन किया जाता है, किन्तु इन सबमें तेल की मात्रा बहुत अधिक रहती है, कम तेल के पोष्टिक आहार पोहे की दीवानगी दिल्ली में शनैः शनैः बढ़ती दिखने लगी है।
बाबा की अदालत का इंसाफ
क्या आप यकीन कर सकते हैं कि किसी गांव का एक भी आपराधिक प्रकरण पुलिस थाने में दर्ज नहीं हो। जी हां, जालंधर जिले का एक ऐसा गांव है जहां एक भी मामला पुलिस के रोजनामचे में दर्ज नहीं है। होशियारपुर मार्ग पर अवस्थित ग्राम लेसड़ी वाल में यह कारनामा हो रहा है। यह क्षेत्र थाना आदमपुर के इलाके में आता है। यहां पीर मियां मिट्ठे शाह की दरगाह है। यह दरगाह सड़क से 20 फिट की उंचाई पर है। कहते हैं कि गांव का एक भी घर इसे अधिक उंचाई का नहीं है। जो भी इससे उंचा मकान बनाने का प्रयास करता है, उसका मकान अपने आप ही ध्वस्त हो जाता है। यह दरगाह मुगल काल में स्थापित हुई थी। यहां सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि गांव में चोरी होती ही नहीं है, अगर किसी ने धोखे से चोरी कर भी ली तो चोर सामान लेकर गांव के बाहर जा ही नहीं पाता है, धारणा है कि अगर वह बाहर गया तो उसे दिखना बंद हो जाएगा। इक्कीसवीं सदी में भी इस तरह के चमत्कार अगर हों तो उन्हें नमस्कार ही करना होगा।
पीएम ने जताई पटेल से नाराजगी
भारत के प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह ने संभवतः पहली बार किसी मंत्री के प्रति अपनी नाराजगी का इजहार किया है। पीएम ने नागर विमानन मंत्री प्रफुल्ल पटेल के मंत्रालय के एक नीतिगत निर्णय पर कड़ा रूख अपनाया है। दरअसल नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने इस साल मार्च में अपने सभी पूर्व सचिवों को एयर इंडिया की घरेलू और समुद्र पारीय उड़ानों में परिवार सहित मुफ्त टिकिट अपग्रेडेशन सुविधा का नीतिगत निर्णय लिया है। दिल्ली से लंदन की रिटर्न टिकिट का किराया इकानामी क्लास में पचास हजार रूपए तो प्रथम श्रेणी में यह दो लाख रूपए के करीब है। पीएमओ के सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री ने इस मामले में अपनी नाराजगी जाहिर की है। सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री इस बाते से खासे नाराज हैं कि नौकरशाहों को इस तरह जनता के गाढ़े पसीने की कमाई को उड़ाने के लिए स्वतंत्र कैसे छोड़ा जा सकता है। प्रफुल्ल पटेल का मंत्रालय है कि प्रधानमंत्री के खफा होने का उस पर कोई असर होता दिख नहीं रहा है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री के आदेश के बाद भी नागर विमानन मंत्रालय ने इस मामले में खामोशी ही अपनाई हुई है।
अंततः झुकना ही पड़ा साई बाबा के संस्थान को
शिरडी के फकीर साई बाबा के अनन्य भक्तों की कमी इस देश और विदेशों में कहीं भी नहीं है। सत्तर के दशक में मनोज कुमार ने शिरडी के साई बाबा पर वालीवुड में चल चित्र बनाकर साई बाबा की कीर्ति को कोने कोने में पहुंचा दिया था। चालीस सालों में महाराष्ट्र के अहमदपुर जिले के शिरडी कस्बे के हालात बहुत बदल चुके हैं। बाबा के भक्तों की तादाद में अचानक ही बहुत तेजी से बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। बाबा के भक्त मुक्त हस्त से बाबा के लिए सब कुछ अर्पण करने को आमदा प्रतीत होते हैं। बाबा की प्रसिद्धि को देखकर साई बाबा संस्थान शिरडी ने कुछ सदस्य बाबा की चरण पादुकाओं को भारत गणराज्य पर दो सौ साल राज करने वाले ब्रितानियों के देश की राजधानी लंदन में 19 सितम्बर को होने वाले साई भक्त सम्मेलन में ले जाने पर आमदा थे। जब यह बात उजागर हुई तब साई भक्तों के बीच रोष और असंतोष की स्थिति बन गई। साई भक्तों के विरोध के आगे अंततः साई बाबा संस्थान को झुकना पड़ा और साई पादुका को लंदन ले जाने का प्रोग्राम निरस्त ही करना पड़ा।
पुच्छल तारा
भारत के लोग क्या नहीं कर सकते, हर कुछ है भारतीयों के बस में। हिन्दुस्तानियों के नाम और हुनर का डंका आज दुनिया भर में बज रहा है। देश के मीडिया को आज देश के गौरव से ज्यादा प्रियंका की साड़ी या उनकी हेयर स्टाईल को स्व.श्रीमति इंदिरा गांधी के समान बताने में ज्यादा दिलचस्पी है। इसी बात को रेखांकित करते हुए बनारस से समीर शर्मा ने एक ईमेल भेजा है। वे लिखते हैं कि वक्त वक्त की बात है। ब्रितानियों की ईस्ट इंडिया कंपनी ने देश पर दो सौ साल से अधिक राज किया, वह आज एक भारतीय द्वारा खरीद ली गई है। संजीव मेहता ने इस कंपनी को डेढ़ सौ बिलियन डालर में खरीदा है। मीडिया को इस खबर में ज्यादा दिलचस्पी नहीं है कि जिसने देश पर राज किया उसे ही आज एक भारतीय ने खरीद लिया। समीर शर्मा कहते हैं कि मीडिया को भले ही फुर्सत न हो पर हम ही मीडिया बनकर एक दूसरे को ईमेल भेजकर मीडिया का रोल अदा करें।

फोरलेन विवाद का सच ------------------- 19

छिंदवाड़ा होकर जा ही नहीं सकता उत्तर दक्षिण गलियारा

मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के निवासी भले ही इस भ्रम में हों कि भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ द्वारा स्वर्णिम चतुर्भज सड़क परियोजना के अंग उत्तर दक्षिण चतुष्गामी सड़क को छिंदवाडा से होकर ले जाने का प्रयास किया जा रहा हो, पर कमल नाथ अपने प्रयासों में इसलिए सफल नहीं हो सकते हैं क्योंकि जिस क्षेत्र से होकर यह सड़क या नरसिंहपुर छिंदवाड़ा नागपुर नेशनल हाईवे का गुजरना प्रस्तावित है, वहां से तो केंद्र सरकार द्वारा सतपुड़ा टाईगर कॉरीडोर का काम एक साल पहले ही आरंभ किया जा चुका है। इतना ही नहीं छिंदवाड़ा से नागपुर अमान परिवर्तन का काम भी इसी कॉरीडोर के मध्य से होकर गुजर रहा है। इस हिसाब से कमल नाथ के प्रयास बेकार ही जाया हो सकते हैं, क्योंकि वन एवं पर्यावरण मंत्रालय एक ही मामले में दो तरह की नीति को अपना नहीं सकता है। भारत गणराज्य में प्रजातंत्र है कोई हिटलरशाही नहीं कि एक मामले में हां और उसी तरह के दूसरे मामले में न।
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 30 अगस्त। ईंधन और समय की बचत को लेेकर केंद्र सरकार की अभिनव परियोजना के अंग स्वर्णिम चतुर्भुज के अंग बने उत्तर दक्षिण गलियारे में सिवनी और खवासा मानचित्र पर रहेगा या नहीं इसे लेकर तरह तरह की भ्रांतियां बन चुकी हैं। लोगों को यह बताया गया कि इस मार्ग को भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ अपने संसदीय क्षेत्र जिला छिंदवाड़ा से होकर गुजारने के लिए प्रयासरत हैं। राज्य सभा में कमल नाथ ने कुछ इस तरह का बयान भी दिया था।
 
पिछले साल जून माह में जब यह बात सिवनी की फिजां में तैरी कि उत्तर दक्षिण गलियारे का काम सिवनी जिले में किसी षणयंत्र के तहत रोक दिया गया है, तो सिवनी के निवासियों के दिलो दिमाग में रोष और असंतोष जबर्दस्त तरीके से उबल पड़ा। इसकी परिणिति जनता के मंच के रूप में अस्तित्व में आए ‘‘जनमंच‘‘ के द्वारा 21 अगस्त 2009 को आहूत सिवनी बंद के रूप मंे सामने आई। उस समय सारे दिन लोगों के हुजूम शहर भर में यत्र तत्र अपना विरोध प्रदर्शित करते नजर आए।
 
21 अगस्त 2009 को रूष्ठ सिवनी के नागरिकों ने अपनी शांति और अमन चैन के स्वभाव से विपरीत अपना रोद्र रूप दिखाया। इस दिन लोगों ने कमल नाथ के अनेक पुतले फूंके और उनकी शव यात्रा तक निकाल दी। मजे की बात तो यह है कि किसी ने भी यह जताने का प्रयास नहीं किया कि एक जनप्रतिनिधि अपने संसदीय क्षेत्र के लिए चाहे जो कर सकता है। इस मामले में जवाबदेह सिवनी के जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही के प्रति किसी का ध्यान न जाना और न ही आकर्षित कराना आश्चर्य का ही विषय माना जा रहा है।
 
मूलतः तत्कालीन जिला कलेक्टर सिवनी के आदेश के तहत यह काम रोका गया था, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की साधिकार समिति ने मध्य प्रदेश शासन से एसा करने का आग्रह किया था। तत्कालीन जिला कलेक्टर के आदेश से यह स्पष्ट हो जाता है कि उक्त काम को राज्य शासन से निर्देश प्राप्त होने की प्रत्याशा में रोका गया था। राज्य शासन द्वारा इस संबंध में जिला कलेक्टर को कोई निर्देश दिए गए हैं या नहीं यह बात भी अब तक स्पष्ट नहीं हो सकी है।
 
‘कौआ ले गया कान, चले कौए के पीछे‘ की तर्ज पर कथित तौर पर इस आंदोलन का नेतृत्व करने वालों ने भी यह जताने का प्रयास नहीं किया कि चूंकि वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से इस भाग में से वन क्षेत्र की अनुमति नहीं मिली है, अतः यह काम आरंभ नहीं किया जा पा रहा है। मंत्रालय द्वारा वन भूमि पर सड़क निर्माण की अनुमति दी जाना प्रस्तावित थी, किन्तु गैर वन क्षेत्रों के बारे में तो कोई संशय की स्थिति शायद ही बनी हो।
 
इसके बाद शनैः शनैः यह आंदोलन ठंडे बस्ते के हवाले ही होने लगा। कुछ नेता मीडिया की भूमिका पर ही प्रश्न चिन्ह लगाने लगे कि उनकी खबरों को जानबूझकर सेंसर किया जा रहा है। अगर देखा जाए तो किस खबर को कितनी प्राथमिकता से और किसी कितना स्थान देकर छापना है यह मूल अधिकार संपादक का ही होता है। संपादकों और पत्रकारों के अधिकारों और कर्तव्यों को सरेआम चुनौति दी जाती रही और मीडिया मूकदर्शक बना सब कुछ देखता सुनता रहा।
 
बहरहाल अब इस मामले पर से कुहासा हटता सा दिख रहा है। पिछले साल मध्य प्रदेश के सतपुड़ा नेशनल पार्क, पेंच नेशनल पार्क और महाराष्ट्र के मेलघाट को मिलाकर सतपुड़ा टाईगर कॉरीडोर का काम आरंभ किया जा चुका है। जब इस मार्ग का काम आरंभ किया ही जा चुका है तब नरसिंहपुर से बरास्ता छिंदवाड़ा, सौंसर, सावनेर नागपुर मार्ग को नेशनल हाईवे के तौर पर बनाना असंभव ही प्रतीत हो रहा है, क्योंकि संभवतः इसी आधार पर ही सिवनी से खवासा नागपुर मार्ग के बीच का काम रोका गया है, क्योंकि एसा कहा जा रहा है कि यह उत्तर दक्षिण गलियारा वर्तमान में पेंच नेशलन पार्क और कान्हा नेशनल पार्क के बीच के प्रस्तावित किन्तु काल्पनिक वाईल्ड लाईफ कारीडोर के बीच से गुजर रहा है।

अगर वाईल्ड लाईफ के आवागमन और पर्यावरण असंतुलन के आधार पर सिवनी जिले में काम रोका जा सकता है तो फिर क्या वजह होगी कि वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा नरसिहपुर छिंदवाड़ा नागपुर के स्टेट हाईवे को नेशनल हाईवे में तब्दील करने में अपनी आनापत्ति प्रदान की जाएगी? जबकि यह मार्ग सतपुड़ा टाईगर कॉरीडोर को दो जगहों पर बाधित कर रहा है। इस कॉरीडोर के अंदर से छिंदवाड़ा नागपुर रेलमार्ग का काम भी युद्ध स्तर पर ही जारी है।

मुख्यमंत्री चौहान राष्ट्रीय खेल प्रोत्साहन पुरस्कार 2010 से पुरस्कृत

मध्यप्रदेश खेलों के लिये रोल मॉडल बना
नई दिल्ली, । मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल द्वारा ’’राष्ट्रीय खेल प्रोत्साहन पुरस्कार’’ से पुरस्कृत किया गया। ’’राष्ट्रीय खेल दिवस के अवसर पर गरिमामय समारोह राष्ट्रपति भवन में आयोजित किया गया। पुरस्कार समारोह में मध्यप्रदेश के खेल मंत्री तुकोजीराव पवार एवं विभागीय अधिकारी मौजूद थे। 
 
देश में उत्कृष्ट खेल अकादमियों की स्थापना और खेलों को प्रोत्साहन देने के लिये मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को राष्ट्रपति श्रीमती पाटिल ने पुरस्कृत किया। पुरस्कृत करते हुए जो प्रशस्ति पत्र दिया गया उसमें कहा गया कि मध्यप्रदेश सरकार द्वारा किये गये इस प्रशंसनीय कार्य से मध्यप्रदंेश सरकार अन्य राज्यों द्वारा अनुकरण करने योग्य एक रोल मॉडल बन गया है। उत्कृष्ट खेल अकादमियों की स्थापना और प्रबंधन में मध्यप्रदेश के योगदान को मान्यता प्रदान करते हुए भारत सरकार ने मध्यप्रदेश को वर्ष 2010 के राष्ट्रीय खेल प्रोत्साहन पुरस्कार से पुरस्कृत किया है। 
 
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री चौहान ने इस अवसर पर बताया कि प्रदेश में 16 खेल अकादमियां स्थापित की गयी हैं। इन अकादमियों के लिये 15 करोड़ रूपये की राशि आवंटित की गयी है। इन 16 अकादमियों में 369 बच्चों को बोर्डिंग एवं डे बोर्डिंग में प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इन अकादमियों में सभी खेल उपकरण और अन्य सुविधायें उपलब्ध करायी गयी हैं।  गोपीचंद फुलेला और अनेक अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों को कोच नियुक्त किया गया है। खिलाड़ियों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सभी खेल सुविधायें उपलब्ध करायी जा रही हैं। इसके कारण प्रदेश के 700 खिलाड़ियों को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पदक मिले हैं। प्रदेश के खेल बजट में भी वृद्धि करके 70 करोड़ रूपये किया गया है। श्री चौहान ने बताया कि मध्यप्रदेश के लिये यह खुशी की बात है कि राष्ट्रीय खेल प्रोत्साहन पुरस्कार पहली बार किसी राज्य सरकार को प्राप्त हुआ है।