गुरुवार, 19 अगस्त 2010

चुका नहीं है कांग्रेस की राजनीति का चाणक्य

भोपाल गैस कांड में अर्जुन सिंह आखिर साबित क्या करना चाहते हैं?

राजीव को कथित क्लीन चिट, ठीकरा स्व.नरसिंहराव पर

(लिमटी खरे)

बीसवीं सदी के अंतिम तीन दशकों में कांग्रेस की राजनीति के चाणक्या का अघोषित तमगा मिल चुका है पूर्व केंद्रीय मंत्री कुंवर अर्जुन सिंह को। कुंवर अर्जुन सिंह के जहर बुझे तीरों के चलने के बाद जब घाव रिसने लगते हैं, तब लोगों को पता चल पाता है कि कुंवर साहब ने घाव कहां दिया है। यूपीए सरकार की दूसरी पारी में कुंवर अर्जुन सिंह को दूध में से मख्खी के मानिंद निकालकर फंेक दिया गया है। कुंवर अर्जुन सिंह की खामोशी से कांग्रेस के आला नेता परेशान दिख रहे थे। राज्य सभा में जब अर्जुन सिंह ने अपना बयान दिया तब लोगों को लगा भई वाह कुंवर साहेब ने तो राजीव गांधी को सिरे से बरी कर पूरा का पूरा ठीकरा तत्कालीन गृह मंत्री नरसिंहराव पर फोड दिया है। हर कांग्रेसी चैन की सांस ले रहा था कि अब कोई जाकर स्व. नरसिंहराव से पूछने तो रहा कि उनके कार्यालय ने गैस कांड के वक्त मध्य प्रदेश के निजाम रहे कुंवर अर्जुन सिंह को फोन पर भोपाल गैस कांड के आरोपी वारेन एंडरसन को छोड़ने का फरमान दिया था या नहीं।

देखा जाए तो कुंवर अर्जुन सिंह ने इस मामले में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी को बरी नहीं किया है, वरन् राजीव गांधी की भूमिकाओं पर प्रश्न चिन्ह लगा दिए हैं? बकौल कुंवर अर्जुन सिंह उन्होंने 03 दिसंबर को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की हैसियत से तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को घटना की पूरी जानकरी दे दी थी। इसके उपरांत यूनियन कार्बाईड के वारेन एण्डरसन की 07 दिसंबर की गिरफ्तारी और रिहाई के बारे में भी मध्य प्रदेश के हरदा में चुनावी कार्यक्रम में सविस्तार बता दिया था। कुंवर अर्जुन सिंह ने साफ कहा कि उन्होंने एण्डरसन की गिरफ्तारी के आदेश दिए और हरदा के लिए रवाना हो गए, जहां राजीव गांधी से उनकी इस संबंध में पूर्ण चर्चा हुई। इस मामले में वर्तमान केंद्रीय गृह मंत्री ने यह कहकर मामला और संगीन कर दिया है कि गृह मंत्रालय के पास एसा कोई रिकार्ड ही मौजूद नहीं है, जिससे साबित हो सके कि उस वक्त गृह मंत्रालय इस बात के लिए इच्छुक था कि एंडरसन की रिहाई की जाए।

अर्जुन सिंह ने बड़ी ही सफाई से कांग्रेस जनों को प्रसन्न कर एक एसा दस्तावेज उजगर कर दिया है जिसमें कांग्रेसियों को यह मुगालता होने लगा है कि कुंवर अर्जुन सिंह ने बड़ी ही सफाई के साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व.राजीव गांधी को इस मामले से पूरी तरह बरी कर दिया है। वस्तुतः एसा है नहीं। जानकारों का साफ मानना है कि कुंवर अर्जुन सिंह ने जहर बुझे तीर के माध्यम से यह बात जनता के बीच छोड़ दी है कि जब संवेदनशील प्रधानमंत्री राजीव गांधी मध्य प्रदेश में होते हुए भी सारी हकीकत से ‘‘बेखबर‘‘ नहीं ‘‘बाखबर‘‘ तब उन्होंने कोई कदम उठाने के कुंवर अर्जुन सिंह को यह क्यों कहा कि अगली सभा की ओर कूच किया जाए? इसके पीछे राजीव गांधी की संवेदनहीनता ही सामने आ रही है, जो निश्चित तौर पर कांग्रेस के लिए एक मुश्किल पैदा कर सकती है, बशर्ते विपक्ष कुंवर अर्जुन सिंह के जहर बुझे तीरों को संभाल कर उठाए और उसे वापस कांग्रेस के खेमे में फंेके।

कल तक भोपाल गैस कांड के सच को अपनी आत्मकथा के माध्यम से उजागर करने की घोषणा करने वाले कुंवर अर्जुन सिंह का हृदय अचानक ही परिवर्तित हुआ और उन्होंने बजाए किताब के माध्यम से इस मसले में सदन में बयान देना ही उचित समझा। कुंवर अर्जुन सिंह का कहना है कि पूरी बात सुनने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इस बारे में तो एक शब्द भी नहीं कहा लेकिन अगली चुनावी सभा में जाने का आदेश दे दिया। राजीव गांधी के बारे में जो और जितना भी लोग जानते हैं उनके गले यह बात नहीं उतर सकती कि स्व.राजीव गांधी इतने संवेदनहीन थे कि इस तरह की घटना के बाद वे चुप्पी साधे रहते। स्व. राजीव गांधी जैसा जिन्दादिल और संवेदनशील नेता सच जानने के उपरांत कुछ न कुछ प्रतिक्रिया अवश्य ही व्यक्त करता। हो सकता है कि उस समय राजीव गांधी को कुंवर अर्जुन सिंह द्वारा घटना का मार्मिक पक्ष पेश ही न किया हो या यह भी संभव है कि कुंवर अर्जुन सिंह अभी गलत बयानी कर रहे हों।

कुंवर अर्जुन सिंह बार बार एक ही बात फरमा रहे हैं कि केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा उस समय बार बार फोन करके वारेन एण्डसरन को भगाने की बात कही जा रही थी। अगर यह सच है तो क्या यह कुंवर अर्जुन सिंह की मुख्यमंत्री के तौर पर जवाबदेही नहीं थी कि उन्हें सीधे तत्कालीन गृह मंत्री नरसिंहराव से चर्चा करना था। 26 साल बाद गड़े मुर्दे उखाड़ने का फायदा ही क्या? इतिहास में संभवतः पहली बार कुंवर अर्जुन सिंह अपने बिछाए जाल में खुद ही फंसते नजर आ रहे हैं। इस मामले में वे तत्कालीन प्रधानमंत्री के बारे में बयानबाजी कर अपना बदला अवश्य ही निकाल रहे हों पर यह तीर उन्हें भी घायल करता ही प्रतीत हो रहा है।

जनता जनार्दन के मानस पटल पर यह प्रश्न कौंधना स्वाभाविक ही है कि आखिर कुंवर अर्जुन सिंह जैसा राजनीतिज्ञ इतना बड़ा बोझ लेकर 26 साल तक शांत कैसे बैठा रहा? आखिर क्या वजह थी कि इतने सालों में कुंवर अर्जुन सिंह ने अपनी जुबान खोलने की जहमत नहीं उठाई। विधायक और सांसद रहते हुए क्या कुंवर अर्जुन सिंह को कभी नहीं लगा कि वे एक जनसेवक हैं, और वे यह बात छुपाकर जनता के साथ ही धोखा कर रहे हैं।

अब कुंवर अर्जुन सिंह 26 सालों बाद फरमा रहे हैं कि उस समय वारेन एण्डरसन को राजकीय विमान उपलब्ध कराना बेतुका था। राजनैतिक समझबूझ वाला व्यक्ति यह बात अच्छी तरह समझता है कि किसी भी सूबे में तभी सरकारी विमान किसी को मुहैया करवाया जा सकता है, जबकि मुख्यमंत्री या विमानन मंत्री इसकी अनुमति दें। इन दोनों विशेषकर मुख्यमंत्री की इजाजत के बिना सरकारी उड़न खटोला एक इंच भी सरक नहीं सकता है। सवाल यह उठता है कि आखिर इतना सब अन्याय होते देखने के बाद कुंवर अर्जुन सिंह के हृदय परिवर्तन में 26 साल का लंबा समय कैसे लग गया? इसके पहले उनका जमीर क्यों नहीं जागा?

बहरहाल इस पूरे मामले में छब्बीस साल बाद तथ्यों को सामने लाना एक तरह से अप्रासंगिक ही प्रतीत हो रहा है। ढाई दशक पहले निकले सांप की धुंधली या मिट चुकी लकीर को पीटने का आखिर फायदा क्या है? आज साफ सफाई आरोप प्रत्यारोप से ज्यादा आवश्यक यह है कि गैस त्रासदी के पीडितों को मुकम्मल इंसाफ मिले। इस मसले में सरकार के साथ ही साथ देश की न्याय व्यवस्था को आत्मावलोकन की महती आवश्यक्ता है। जनता को खुद ही यह प्रश्न पूछना चाहिए कि छब्बीस साल पहले घटी अब तक की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी से भला भारत गणराज्य ने क्या सबक सीखा?

भारत गणराज्य की नीति विहीन सरकार की कार्यप्रणाली की एक बानगी है, देश के बड़े और छोटे बांध। इन बांधों के साथ आपदा प्रबंध कितना पुख्ता है, इस बारे मंे सरकरें पूरी तरह मौन हैं। आपदा प्रबंध के मसले पर स्थानीय लोगों को कुछ भी जानकारी न होना आश्चर्यजनक ही है, साथ ही साथ आपदा प्रबंध के मामले में स्थानीय लोगों को शामिल न किया जाना भी आश्चर्यजनक इसलिए माना जाएगा, क्योंकि दुर्घटना की स्थिति में सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले स्थानीय लोग ही होते हैं।

अभी कुछ माह पहले ही पायलट ट्रेनिंग संस्थान के ससेना विमान के मध्य प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर के पास बरगी में डूबने की खबर मिली थी। जिला प्रशासन जबलपुर और सिवनी ने रानी अवंती सागर परियोजना में गोताखोरों की मदद से उक्त विमान और गायब पायलट रितुराज को खोजने का नाकाम अभियान चलाया। इसके बाद जब प्रशासन ने हाथ खड़े कर दिए तब रितुराज के परिजनों ने अपने स्तर पर बांध के अथाह पानी में अपने लाड़ले को खोज ही निकाल। इस तरह की घटनाएं आपदा प्रबंध की पोल खोलने के लिए पर्याप्त मानी जा सकती हैं।

कितने आश्चर्य की बात है कि यूनियन काबाईड को संचालित करने वाली डाउ केमिकल आज भी शान से भारत में अपना व्यवसाय संचालित कर रही है। यह सब कुछ भारत के लचर प्रशासनिक तंत्र के कारण ही संभव हुआ है। हमारी नजर में इस सबके लिए एसी व्यवस्था सुनिश्चित करना आवश्यक होगा जिससे दुर्घटना के लिए जवाबदार लोगों को तत्काल कटघरे मंे खडा किया जा सके।

भारत सरकार को चाहिए कि हाल ही में ब्रिटिश पेट्रोलियम के कुएं में हुए तेल रिसाव से सबक ले। दुनिया के चौधरी अमेरिका के प्रथम पुरूष बराक ओबामा ने इस त्रासदी को पर्यावरण का भीषणतम नुकासन बताकर न केवल ब्रिटिश पेट्रोलियम को जवाबदार ठहराया वरन् आना पाई से मुआवजा देने पर विवश भी किया है। विडम्बना है कि भारत में घटने वाली दुर्घटनाओं में संबंधित जवाबदार लोगों को जनसेवक, नौकरशाह और प्रशासनिक तंत्र हाथों हाथ लेकर उन्हें हीरो बनाने में जुट जाता है, जिसका खामियाजा आम जनता को ही भुगतना पड़ता है, इस बात में कोई संदेह नहीं होना चाहिए।

यमुना एक्‍सप्रेस वे पर राहुल ने ली कमल नाथ से जानकारी

राहुल ने ली कमल नाथ की क्लास!

यमुना एक्सप्रेस वे भूमि अधिग्रहण विवाद

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 19 अगस्त। कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गाध्ंाी ने गत दिवस संसद भवन में केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ से उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में यमुना एक्सप्रेस सड़क मार्ग के भूमि अधिग्रहण विवाद की पूरी जानकारी ली। दोनों के बीच लगभग बीस मिनिट तक चर्चा हुई।

भरोसे मंद सूत्रों का कहना है कि सदन में शून्यकाल में हुए जबर्दस्त हंगामे के बाद सभापति ने सदन को दो बजे तक के लिए स्थगित कर दिया था। इसी दौरान उत्तर प्रदेश के कांग्रेसी सांसदों जगदंबिका पाल, केंद्रीय भूतल परिवहन राज्य मंत्री अर.पी.एन.सिंह और पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस राज्य मंत्री जतिन प्रसाद ने युवराज राहुल गांधी को अलगढ़ के टप्पा गांव में हो रहे किसानों के आंदोलन के बारे में विस्तार से जानकारी दी।

राहुल गांधी उत्तर प्रदेश के सांसदों से चर्चा के साथ ही जब सदन से बाहर आ रहे थे, तभी दूसरी ओर से आ रहे भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ को देख राहुल गांधी ने उन्हें रोककर उनसे इस विषय पर चर्चा की। सूत्र बताते हैं कि भूतल परिवहन और राजमार्ग मंत्री कमल नाथ ने कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी को बताया कि जमीन का अधिग्रहण किसी सार्वजनिक कारणों से नहीं वरन् निजी तौर पर किसी निजी क्षेत्र की कालोनी या टाउनशिप बनाने के उद्देश्य से किया जा रहा है।

सूत्रों ने आगे कहा कि यमुना एक्सप्रेस वे के मामले में भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ ने काग्रेस के महासचिव राहुल गांधी को तर्क दिया कि यमुना एक्सप्रेस वे की अवधारणा ही गलत है। बकौल कमल नाथ यमुना एक्सप्रेस वे एक तो राष्ट्रीय राजमार्ग के समानांतर ही बन रहा है, दूसरे यह अनेक महत्वपूर्ण राजमार्गों को अवरूद्ध भी कर रहा है।

फोरलेन विवाद का सच -------------- 12

जनमंच ने ली थी फोरलेन मामले को सर्वोच्च न्यायालय में उठाने की जवाबदारी

लोगों ने मुक्त हस्त से दिया था सहयोग

लोगों की भड़ास निकली थी पहली बैठक में

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 19 अगस्त। उत्तर दक्षिण फोरलेन गलियारा सड़क परियोजना के नक्शे से सिवनी जिले का नामोनिशान मिटाने के मामले मंे लोगों के दिलों में जल रही आग शोले में तब्दील होने लगी थी। स्थानीय लोगों की उपस्थिति में हुई पहली बैठक में लोगों ने इस मामले में तबियत से अपनी अपनी भड़ास निकली थी। वक्ताओं के आक्रोश को देखकर लगने लगा था कि चाहे जो भी हो जाए अगली छः माही में फोरलेन मुद्दा सुलटा ही लिया जाएगा।

बैठक में राजनैतिक दलों से जुड़े सदस्यों ने हिस्सा लिया था किन्तु पहली बैठक में जब वक्ताओं की भड़ास सामने आई तो यह बात स्थापित होती नजर आ रही थी कि जनता का मंच जनमंच पूरी तरह गैर राजनैतिक ही है। सभी वक्ताओं ने इस बैठक में अपने अपने दलों और नेताओं के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के आगे सिवनी के हित को सर्वोपरि माना था। वक्ताओं के इस रवैए की सर्वत्र भूरी भूरी प्रशंसा भी हुई थी।

बताया जाता है कि वक्ताओं के उद्बोधन के उपरांत यह बात निकलकर सामने आई कि फोरलेन परियोजना को सिवनी न न होकर गुजारने के पीछे ‘वाईल्ड लाईफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया‘ की एक याचिका है, जिसमें वन्य जीवों और पर्यावरण को बचाने की दुहाई देते हुए इस सड़क को सिनी से होकर न गुजारना प्रस्तावित किया गया था, क्योंकि सिवनी से खवासा के बीच के सड़क के मार्ग में रक्षित वन और पेंच राष्ट्रीय उद्यान का हिस्सा पड़ता है।

जब यह बात सामने आई कि उक्त गैर सरकारी संस्था ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की है, तब केंद्रीय साधिकार समिति ने आकर तत्कालीन जिला कलेक्टर से पेड़ो की कटाई रोकने का आग्रह किया था, जिसे तत्कालीन जिला कलेक्टर पिरकीपण्डला नरहरि द्वारा राज्य शासन से आदेश आने हैं की प्रत्याशा में स्वीकार कर लिया था। इस पर आम सहमति यह बनी कि मामले में सिवनी का जनमंच ‘हस्तक्षेपकर्ता‘ की हैसियत से अपना पक्ष रखेगा।

इसी बीच बैठक में सुझाव आया कि दिल्ली आने जाने और सर्वोच्च न्यायालय मंे वकील करने में काफी पैसा व्यय होने वाला है, तब शहर के लोगों ने मुक्त हस्त से अपना अपना आर्थिक सहयोग इस मामले के लिए दिया था। जनमंच की ओर से इकलौते अधिकृत पदाधिकारी महेंद्र देशमुख को इसका प्रवक्ता नियुक्त कर दिया गया। इस हेतु कितनी राशि एकत्र हुई थी इसका ब्योरा भी अगले दिन कुछ समाचार पत्रों ने प्रकाशित कर दिया था।

(क्रमशः जारी)

कौन कर रहा है सिवनी के साथ धोखा

किसका था वो षणयंत्र