सोमवार, 9 अगस्त 2010

विधान सभा उपाध्‍यक्ष बरसे जनमंच पर

जनमंच राजनैतिक पार्टी का मंच न बनेः हरवंश

सिवनी। केन्द्रीय मंत्री कमल नाथ श्ूतल परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय क® हटाने एवं उनकी सेवाये कहा ली जाये इस बात का फैसला श्रीमति स®निया गांधी एवं डा मनम®हन सिह करेगे जनमंच नही इसी तरह माननीय जयराम रमेश केन्द्रीय मंत्री वन एवं पर्यावरण मंत्रालय क® आदेश देने की बात कहने वाला जनमंच राजनैतिक पार्टी का मंच न बने फ®रलेन निर्माण की और हमारे नेताअ® क® अपमानित करने की बात ज्यादा करने वाले ऐसे मंच मे शामिल कांग्रेस नेताअ® क® अव अपने विवेक का उपय®ग करना चाहिए कि ऐसे मंच मे उन्हे रहना है या नही? उक्ताशय की बात म¤ प्र¤ विधानसश के उपाध्यक्ष एवं जिले के कद्दावर कांग्रेसी नेता ठा¤ हरवंश ने जारी एक विज्ञप्ति मे कही है। फ®रलेन निर्माण क® लेकर गठित जनमंच द्वारा केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ की सेवाऐ अन्य विशग मे लेने के अलावा जयराम रमेश क® आदेश देने हेतु अखवार® मे छपे जनमंच के बयान पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करत्® हुए जिले के सर्वमान्य नेता ठा¤ हरवंश ने अपनी विज्ञप्ति मे कहा है कि समाचार पढने से ऐसा लगता है कि फ®रलेन के लिए बना सर्वदलीय जनमंच जिसे पूर्व मे सिवनी जिले की सश्ी राजनैतिक पार्टिय® और जिले की जनता एवं जिले के सश्ी जनप्रतिनिधिय® का सहय®ग मिला इसी का परिणाम है कि 21 अगस्त 2009 क® फ®रलेन बनाने के नाम पर सम्पूर्ण जिला बंद रहा। श्री सिह ने कहा है कि फ®रलेन पूर्व प्रस्तावित एवं स्वीकृत सिवनी से ह®कर ही बने इस मांग के लिए सश्ी एकमत है और इसके लिए समय समय पर सश्ी की तरफ से प्रयास किये गये मैने श्ी प्रारंश् से ही श्रपूर प्रयास किये है तथा द® बार कांग्रेस के प्रतिनिधि मण्डल के साथ इस मांग क® लेकर दिल्ली गया हूं संश्वतः आज श्ी कांग्रेस पार्टी का एक प्रतिनिधि मंडल फ®रलेन की मांग क® लेकर दिल्ली गया है। श्री सिह ने कहा है कि जनमंच मे अन्य दल® के साथ साथ कांग्रेस पार्टी के श्ी 3-4 सदस्य है सम्पूर्ण जनमंच की अ®र से जनमंच क प्रवक्ता द्वारा जारी की गयी विज्ञप्ति क® हास्यापद बतात्® हुए श्री सिह ने कहा कि यह विज्ञप्ति फ®रलेन निर्माण के आंद®लन और शवनाअ® क® धक्का देन वाली है। जहां तक कमलनाथ की बात है हम जव श्ी व्यक्तिगत या सामूहिक रुप से मिले है उन्ह®ने सदैव इस फ®रलेन के निर्माण कराने की बात कही है और प्रयास किये है छिन्दवाड़ा दिल्ली एवं नागपुर मे उन्ह®ने समय समय पर स्पष्ट ज®रदारी से यह बात श्ी कही है कि उनका इरादा सिवनी क® नुकसान पहुंचाने का नही है और उक्त फ®रलेन सिवनी से ही बनेगी। श्री सिह ने विज्ञप्ति मे बताया है कि उन्ह®ने अनेक® बार कहा है कि जहां तक नरसिहपुर-छिन्दवाडा-नागपुर फ®रलेन की बात है वह सिवनी से ह®कर गुजरने वाले फ®रलेन की कास्ट पर नही बनायी जा रही है उसके लिए अलग से धन और बजट की व्यवस्था की है। अश्ी हाल ही मे खवासा से नागपुर तक के टेण्डर हुए है और निर्माण कार्य श्ी शीघ्र प्रारंश् ह®गा। खवासा-नगझर-लखनादौन-नरसिहपुर तक 75 प्रतिशत कार्य पूर्ण किया जा चुका है पेंच पार्क म®हगांव से कुरई एवं छपारा से बंजारी क्रमशः 9 एवं 10 ¤िक मी¤ म ज® रिजर्व वन क्ष्®त्र आता है उसमे से एक की स्वीकृति वन मंत्राल तथा मोंहगांव से रुखड 9 ¤िक मी¤ का प्रकरण माननीय सुप्रीम क®र्ट की उच्चाधिकार समिति के समझ विचाराधीन है जिसके लिये सश्ी तरफ से ज® प्रयास ह®ना चाहिए व® ह® रहे है। श्री सिह ने बताया है कि इसके साथ साथ सबसे आवश्यक बात यह है कि तत्कालीन जिलाध्यक्ष पी नरहरि द्वारा म.प्र. राज्य सरकार के निदेंश पर ज® निर्माण कार्य पर र®क लगायी गयी है अगर वह तत्काल हटा ली जाती है त® फ®रलेन निर्माण की रुकावटे 90 प्रतिशत खुद व खुद खत्म ह® जायेगी बाकी 9 कि मी¤ पेंच पार्क से लगा रिजर्व वन क्ष्®त्र का प्रकरण बचेगा वह माननीय सवोंच्च न्यायालय की उच्चाधिकार समिति के निर्णय तक लंबित रहता है अ®र अगर 9 ¤िक मी¤ सड़क वैसी की वैसी रहती है त® विश्®ष क®ई फर्क नही पड़ेगा। श्री सिह ने कहा है कि केन्द्रीय मंत्रिय® के पुतले जलाने उनके खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने विशग बदलने ज्ौसी बात्® करने वाले ल®ग या मंच न त® सिवनी जिले के हित की बात कर रहे है और न ही फ®रलेन निर्माण की। उन्ह®ने कहा है कि जनमंच मे शामिल कांग्रेस के साथिय® से श्ी उनका आग्रह है कि जिस मंच मे फ®रलेन निर्माण की बात कम और हमारे नेताअ® क® अपमानित करने की बात ज्यादा ह®ने लगी है ऐसे मंच मे उन्हे रहना चाहिए या नही इस पर श्ी उन्हे अपने विवेक का उपय®ग करना चाहिए।

बच्चों को शिक्षा देना क्या सिर्फ केंद्र की जवाबदारी!

गुरू बिन गोविंद दर्शन हों तो कैसे?

केंद्रीय विद्यालयों का स्तर भी होगा सुधारना

गरीब गुरबों के बच्चों की कौन करेगा फिकर?

(लिमटी खरे)

बहुत पुराना दोहा है -‘‘गुरू गोविंद दोउ खडे, काके लागू पाय! बलिहारी गुरू आपकी, गोविंद दियो बताए!!‘‘ इस दोहे के भावार्थ बचपन में गुरूजनों द्वारा बडे ही चाव से बताए जाते थे, कि जब गुरू और ईश्वर दोनों खडे हों तो किसके पैरों को स्पर्श कर आर्शीवाद लिया जाना चाहिए। गुरू को ईश्वर से बडा मानकर उसके पैर स्पर्श पहले करने की बात कही जाती थी, क्योंकि गुरू के बिना ईश्वर के बारे में ज्ञात कैसे हो सकेगा? आज के दौडते भागते युग में गुरूओं का टोटा साफ दिखाई पड रहा है, यही कारण है कि गोविंद अर्थात ईश्वर के प्रति आस्था कम सी होती प्रतीत हो रही है।

देश को दशा और दिशा देने का जिम्मा केंद्र सरकार पर है। केंद्र सरकार ही जब सदन में यह स्वीकार कर ले कि देश में छः से चौदह साल के बच्चों को शिक्षा देने के लिए बारह लाख गुरूओं का टोटा है तब फिर देश का भगवान ही मालिक कहा जाएगा। सरकारी तौर पर संचालित होने वाली शालाओं में अध्ययापन के स्तर, बुनियादी ढांचे को लेकर सदा से ही बहस और चिंता जताई जाती रही है।

केंद्र सरकार आरोप प्रत्यारोपों के जरिए यह कह देती है कि वह पर्याप्त धन मुहैया करवा रही है, पर राज्य सरकारें इस मामले में सहयोग प्रदान नहीं कर रही हैं, यही कारण है कि देश में शिक्षा का स्तर प्राथमिक कक्षाओं में गिरता जा रहा है। वैसे देखा जाए तो केंद्र सरकार का आरोप अपनी जगह सही है कि राज्यों की सरकारें इस दिशा में पर्याप्त ध्यान नहीं दे रही हैं।

आंकडों की बाजीगरी करने वाली केंद्र सरकार का तर्क है कि राज्यों के पास लगभग सवा पांच लाख शिक्षकों के पद आज भी रिक्त हैं, जिन्हें भरने में सूबों की सरकारें दिलचस्पी नहीं दिखा रही हैं। राज्यों पर आरोप मढते वक्त केंद्र सरकार यह भूल जाती है कि केंद्रीय विद्यालयों की स्थिति क्या है। क्या केंद्रीय विद्यालयों में शिक्षकों की पर्याप्त संख्या है? केंद्र सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन संचालित होने वाले सेंट्रल स्कूल में शिक्षकों की कमी से अब पालकों का केंद्रीय विद्यालय के प्रति रूझान कम हो गया है।

केंद्रीय विद्यालयों में केंद्रीय शिक्षा बोर्ड का पाठ्यक्रम लागू है। सीबीएसई के नार्मस बहुत ही सख्त हैं। अगर शिक्षकों की तादाद कक्षाओं और विद्यार्थियों के हिसाब से नहीं है तो उसकी मान्यता रद्द की जा सकती है। केंद्रीय विद्यालयों में अस्थाई या तदर्थ तौर पर शिक्षकों की नियुक्ति के विज्ञापन जब तब समाचार पत्रों में दिख जाते हैं। मतलब साफ है कि केंद्रीय स्तर पर ही शिक्षकों की नियुक्ति पूर्णकालिक के स्थान पर अंशकालिक करने पर ही जोर दिया जा रहा है।

वैसे शिक्षकों की कमी से जूझ रहे भारत गणराज्य में शिक्षा का अधिकार लागू करना किसी चुनौति से कम नहीं है। शिक्षा की नीति तय करने वाले केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सामने भी प्रशिक्षित शिक्षकों को पदस्थ करना टेडी खीर ही साबित हो रहा है। शिक्षकों की नियुक्ति के दौरान ही उसे वांछित आहर्ताएं पूरी करना होता है। अगर वह इसे पूरा करने में असमर्थ रहता है तो उसे नौकरी से हाथ धोना पडता है।

वहीं दूसरी ओर पहुंच के अभाव में अनेक प्रतिभाशाली बीएड डीएड की डिग्रीधारी शिक्षक आज भी ओवर एज होकर निजी शालाओं में दो से चार हजार की नौकरी करने पर मजबूर हैं। सरकार को चाहिए कि आयू बंधन में शिथिलता देकर विश्वविद्यालयों से बीएड या डीएड कर चुके शिक्षकों की नियुक्ति हेतु नियमों का सरलीकरण कर उनके निवास के आसपास के केंद्रीय विद्यालय में ही उन्हें नियुक्ति प्रदान करे ताकि शिक्षा के स्तर को सुधारा जा सके।

आज देश में बीएड कराने वाले निजी कालेज की बाढ देखकर लगने लगा है कि आने वाले समय में जो शिक्षक कथित तौर पर प्रशिक्षित की श्रेणी में आएंगे वे देश का भविष्य शायद ही संवार पाएं। कालेज से निकलने वाले युवा अनुभव के न होने पर बच्चों को क्या पाठ पढाएंगे यह बात तो अपने आप में शोध का विषय ही मानी जा सकती है। वस्तुतः बीएड या डीएड कालेज सिर्फ और सिर्फ पैसा बनाने की दुकान बनकर रह गए हैं। विचारणीय प्रश्न तो यह है कि जो शिक्षक भारी भरकम फीस देकर डिग्री लेगा, फिर चढोत्री देकर नौकरी पाएगा, क्या वह बच्चों को पढाने की स्थिति में होगा? जाहिर है इसका उत्तर नकारात्मक ही आएगा।

इन शिक्षकों के भरोसे केंद्र सरकार ‘‘सबको शिक्षा‘‘ का सपना कैसे साकार कर सकती है? देखा जाए तो देश में सरकारी स्कूलों में ढांचागत सुविधाओं का साफ अभाव दिखता है। अनेक शालओं के पास अपने भवन नहीं हैं, अनेक की बाउंड्रीवाल नहीं हैं, कहीं खप्पर हैं तो बारिश में चू रहे हैं, कहीं शाला प्रभावशाली लोगों के भैंसों का तबेला बन गई है, कही छात्राओं के लिए अलग से शौचालय की व्यवस्था नहीं है। सत्तर फीसदी शालाओं में तो बिजली ही नहीं है। 88 फीसदी शालाएं कम्पयूटर विहीन हैं।

वैसे सर्वशिक्षा अभियान, मध्यान भोजन आदि के चलते शालाओं में बच्चों की उपस्थिति बढी है, जिससे केंद्र सरकार अपनी पीठ ठोंक सकती है, पर सवाल वहीं जस का तस ही खडा हुआ है कि क्या महज शालाओं में बढती उपस्थिति की औपचारिकता को पूरा करके ही शिक्षा के अधिकार को परवान चढया जा सकता है? जमीनी हकीकत कहती है कि देश के साठ फीसदी स्कूल आज भी महज एक या दो शिक्षकों के भरोसे ही चल रहे हैं।

जैसे ही शिक्षा का अधिकार कानून केंद्र सरकार की महात्वाकांक्षी परियोजना में शामिल हुआ वैसे ही राज्य सरकारों के मुंह खुलने आरंभ हो गए। राज्यों ने इसे लागू करने के लिए और अधिक धन की मांग रख दी। हालात देखकर एसा प्रतीत होता है मानो देश की आने वाली पीढी को शिक्षा देने का ठेका सिर्फ केंद्र सरकार ने ले लिया हो। भारत की युवा होने वाली पीढी को शिक्षित करने के मामले में राज्य सरकारों का कोई नेतिक दायित्व मानो बनता ही न हो।

वस्तुतः देश के हर बच्चे को शिक्षा देने का काम केंद्र और राज्य सरकारों का है। केंद्र और राज्य सरकारें अगर इस मामले में ही आपसी तालमेल न बना पाएं तो उन्हें देश या राज्यों पर राज करने का हक नहीं है। जनसेवकों और नौकरशाहों के बच्चे तो नामी गिरामी स्कूलों मंे उम्दा और महंगी शिक्षा पा सकते हैं, पर गरीब गुरबे की फिकर करना भी इन्हीं जनसेवकों और नौकरशाहों का ही काम है, जिस महती जवाबदारी से वे बच ही रहे हैं।

फोरलेन विवाद का सच ------------04

क्या जनसेवक हैं फोरलेन मामले में दोषी!

2008 में जब उत्तर दक्षिण गलियारे के सिवनी पेच का काम रोक दिया गया था, तब सिवनी के पांच विधानसभा सीट पर जनादेश से चुने गए नुमाईंदों और परिसीमन में अवसान हुई लोकसभा सीट के सांसद ने जनादेश का सम्मान क्यों नहीं किया गया यह यक्ष प्रश्न आज भी अनुत्तरित ही है। लोकसभा चुनावों के बाद अचानक ही सिवनी की फिजां में यह बात तैर गई थी कि उत्तर दक्षिण गलियारे में फोरलेन का काम रोक दिया गया है। जनता का आक्रोश इस बात की जानकारी मिलने के साथ ही चरम पर पहुंच गया था। मजे की बात तो यह है कि जिला प्रशासन द्वारा उठाए गए कदम मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनावों की कार्यवाही के चलते आचार संहिता के दौरान ही उठाए गए थे।

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। उपलब्ध अभिलेखों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि केंद्र सरकार की महात्वाकांक्षी योजना स्वर्णिम चतुर्भुज के अंग उत्तर दक्षिण गलियारे का काम वन विभाग के एक आदेश के साथ ही अक्टूबर 2008 में रूक गया था, जिसके तहत वन विभाग ने एनएचएआई को पेड काटने पर उसके खिलाफ वन अधिनियम के तहत प्रकरण पंजीबद्ध करना आरंभ कर दिया था। वैसे छोटी छोटी बातों पर बारीक नजर रखने वाले सिवनी जिले के सांसद और विधायकों की इस मामले में चुप्पी भी आश्चर्यजनक ही मानी जा रही है।

गौरतलब होगा कि वन उत्तर सिवनी सामान्य वन मण्डलाधिकारी द्वारा 25 अक्टूबर 2008 को मुख्य वन संरक्षक सिवनी को लिखे पत्र में यह उल्लेख किया गया था कि एनएच ने वन विभाग की भूमि को अपना बताकर इस पर खडे पेड काटने की निविदा जारी कर पेड कटाई का काम आरंभ कर दिया था, जिसे वन विभाग ने अवैध माना, और वन विभाग द्वारा इस कटाई को अवैध मानते हुए पीपरखुंटा वन खण्ड के कक्ष नंबर पी - 266 में राष्ट्रीय राजमार्ग के अनाधिकृत ठेकेदार द्वारा 26 पलाश और 47 सागौन के वृक्ष काटने पर दिनांक 15 अक्टूबर 2008 को वन अपराध नंबर 1897/22 के तहत मामला दर्ज कर लिया था। यही वह समय माना जा सकता है, जब उत्तर दक्षिण गलियारे में सिवनी जिले में काम को रोका गया था।

जिला मुख्यालय सिवनी से उत्तर दिशा में बंजारी माता के आगे वाले हिस्से में जो काम बंद पडा हुआ है, उस बारे में न तो एनएचएआई और न ही जिला प्रशासन या वन विभाग कुछ स्पष्ट करने की स्थिति में ही नजर आ रहा है। कुल मिलाकर इस समूचे काम के बंद होने में षणयंत्र की बू साफ तौर पर आ रही है। तत्कालीन जिला कलेक्टर पिरकीपण्डला नरहरि द्वारा भी इस सडक से पेड की कटाई का आदेश रोकने के नए आदेश जिस वक्त जारी किए गए उस वक्त मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव की मुनादी पिटी हुई थी और आचार संहिता चल रही थी। जाहिर सी बात है कि राजनेता उस वक्त अपने अपने उम्मीदवार को जिताने या हराने का उपक्रम ही कर रहे थे।

आश्चर्य की बात तो यह है कि विधानसभा अथवा लोकसभा चुनावों के दौरान जब जिला प्रशासन को दम लेने की फुर्सत भी नहीं होती है, उस दौरान सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा गठित केंद्रीय साधिकार समिति के अनुरोध पर मध्य प्रदेश सरकार के निर्देशों की प्रत्याशा में तत्कालीन जिला कलेक्टर पिरकीपण्डला नरहरि ने यह आदेश जारी कर दिया कि पूर्व में जिला कलेक्टर द्वारा जारी पेड कटाई के समस्त आदेश इस आदेश से निरस्त किए जाते हैं।

इस मामले में षणयंत्र की बू इसलिए भी आती है, क्योंकि जिला कलेक्टर का 18 दिसंबर 2008 का उक्त आदेश जिसे 19 दिसबर को पृष्ठांकित किया गया है, की एक प्रति जिला जनसंपर्क अधिकारी के पास इसलिए भेजी गई थी कि वे इस मामले का प्रचार प्रसार स्थानीय मीडिया के माध्यम से करें। विडम्बना यह है कि जिला जनसंपर्क विभाग ने भी इस मामले में मौन अख्तियार करना ही बेहतर समझा। पीआरओ कार्यालय का मौन निश्चित तौर पर किसी वरिष्ठ अधिकारी के डंडे के चलते ही रंग लाया होगा।

आचार संहिता की समाप्ति के उपरांत सरकार बनाने गिराने का सिलसिला आरंभ हुआ, और विधायक सांसदों के लिए सिवनी की जनता का जनादेश गौड होकर निहित स्वार्थ पहली प्राथमिकता बन गए। विधानसभा के उपरांत जब लोकसभा चुनाव हुए तो सिवनी जिले को दो पालकों के हाथों में सौंप दिया गया। सिवनी और बरघाट विधानसभा के लोगों के पालनहार बने बालाघाट के सांसद के.भाजपा के डी.देखमुख तो केवलारी और लखनादौन के खिवैया बने मण्डला के कांग्रेस के बसोरी मसराम।

पूरा एक साल बीत चुका है, किन्तु आज तक न तो सिवनी के विधायक कांग्रेस के हरवंश सिंह, भाजपा के कमल मस्कोले, श्रीमति शशि ठाकुर, श्रीमति नीता पटेरिया ने विधानसभा में इस बात को नहीं उठाया है। इतना ही नहीं सांसद द्वय मसराम और देशमुख ने भी इस मामले से अपने आप को दूर ही रखा है।

देश क कीमत पर निभ रह गठबंधन धर्म


कम हो सकती है पुलिस की दादा गिरी

ये है दिल्ली मेरी जान


(लिमटी खरे)


अब पुलिस पर लगी कसाम सबसे बडी अदालत ने


पुलिस जो चाहे सो कर सकती है। पुलिस की अगाडा, घोडे का पिछाडा और मौत का नगाडा इन तीनों चीजों से बचने की सलाह हर वक्त ही दी जाती है। आजादी के बाद भारत में पुलिस को इतना अधिकार समपन्न बना दिया गया है कि कोई भी पुलिस से टकराने की हिमाकत नहीं करता सिवाय जनसेवकों के। पुलिस के कहर से आम आदमी बुरी तरह खौफ जदा है। वैसे एक तरह से देखा जाए तो पुलिस का खौफ लोगों के मानस पटल से उड जाए तो देश में अराजकता की स्थिति बन जाएगी। वैसे तो पुलिस के पर अदालतोे ने कई मर्तबा कतरे हैं, पर प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) के मामले में पहली दफा पुलिस को आडे हाथों लिया है देश की सबसे बडी अदालत ने। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को पलटते हुए एक हत्याकांड में तीन आरोपियों को मृत्युदण्ड से बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि एफआईआर सच्चाई का एनसाईक्लोपीडिया नहीं है, यह पुलिस को सिर्फ अपराध के प्रति आश्वस्त करने का काम करता है। जस्टिस हरजीत सिंह बेदी और जे.एम.पंचाल ने उच्च न्यायालय के आदेश को पलटते हुए कहा कि किसी आरोपी को इसलिए बरी नहीं किया जा सकता है क्योंकि उसका नाम एफआईआर मंे नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश से पुलिस की कार्यप्रणाली में अगर बदलाव आ जाए तो आम आदमी कुछ सुकून महसूस अवश्य ही कर सकेगा।






कैंसर मरीज से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं व्हीआईपी


लगता है कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार की संवेदनाएं पूरी तरह मर चुकी हैं। यही कारण है कि उसकी नजरों में बीमार की तीमारदारी से ज्यादा महत्वपूर्ण अब अतिविशिष्ट लोग लगने लगे हैं। जी हां, यह सोलह आने सच है, केंद्र सरकार के अधीन कार्यरत त्रणमूल कांग्रेस की रेलमंत्री के नेतृत्व वाले रेल मंत्रालय ने भारतीय रेल में कैंसर मरीजों की सीटों का कोटा घटा दिया है। आपातकालीन कोटे के तहत अब उन्हें आवंटित होने वाली बर्थ की संख्या की सीमा पूरी तरह तय कर दी गई है। बेशर्म केंद्र सरकार ने यह कदम अतिविशिष्ट लोगों को ज्यादा सीटें मुहैया करवाने की गरज से उठाया है। रेल राज्य मंत्री के.एच.मणियप्पा ने लोकसभा में यह जानकारी दी है। मणियप्पा का तर्क था कि रेल्वे के जोनल कार्यालयों से उन्हें एसी सूचना मिली है कि कैंसर के मरीजों का पूरा कोटा प्रयोग में आने से रेल्वे को अतिविशिष्ट लोगों को जरूरत पडने पर सीट मुहैया नहीं करवाई जा पा रही हैं। यह है भारत गणराज्य की कांग्रेसनीत केंद्र की सरकार जिसकी नजर में कैंसर जैसे गंभीर रोग से पीडित के बजाए अतिविशिष्ट लोगों की अहमियत ज्यादा है। मजे की बात तो यह है कि इस तरह के कदम में विपक्ष ने भी अपना मौन समर्थन देकर जता दिया है कि उसकी नजरों में भी बीमार की अहमियत कितनी है।






मतलब गुजरात दुश्मन देश का हिस्सा है


सीबीआई क्या कांग्रेसनीत केंद्र सरकार के घर की लौंडी बन चुकी है? यह सवाल देश के हर नागरिक के जेहन में आज भारत की आजादी के छः दशकों बाद भी कौंध रहा है। इसका कारण कांग्रेस और भाजपा के बीच सोहराबुद्दीन की फर्जी मुटभेड के मामले में चल रही चिल्ल पों और आरोप प्रत्यारोप के बाद उपजी परिस्थितियां ही हैं। सोहराबुद्दीन मामले में एक मंत्री का त्यागपत्र ले चुके सूबे के निजाम नरेंद्र मोदी सीबीआई के कडे रूख से खासे आहत नजर आ रहे हैं। मोद ने कंेद्र सरकार से पूछा है कि क्या भारत गणराज्य के गुजरात सूबे को दुश्मन देश का हिस्सा मान लेना चाहिए? गौरतलब है कि खबरें आ रही हैं कि इस मामले की सुनवाई में सीबीआई को आशंका है कि गुजरात में अगर इसकी सुनवाई हुई तो निष्पक्ष नहीं हो सकती है। सीबीआई के स्टेंड से नरेंद्र मोदी हत्थे से उखड गए हैं। मोदी का मानना है कि सीबीआई का दुरूपयोग कांग्रेस द्वारा जमकर किया जा रहा है।






कोर्ट ने मंगवाई नेता जी की केस डायरी


परिसीमन में विलोपित हुई मध्य प्रदेश की लोकसभा सीट की अंतिम सांसद और जिला मुख्यालय को अपने में समाहित करने वाली सिवनी विधानसभा सीट की विधायक के उपर हुए प्राणघातक हमले के मामले में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने पुलिस से केस डायरी प्रस्तुत करने को कहा है। 26 दिसंबर 2007 को तत्कालीन सांसद श्रीमति नीता पटेरिया के सारथी राजदीप चौहान की शिकायत पर सिवनी जिले के बंडोल पुलिस थाने में एक शिकायत दर्ज की गई थी, जिसका लब्बो लुआब यह था कि मध्य प्रदेश के वर्तमान विधानसभा उपाध्यक्ष और उस वक्त के केवलारी विधायक ठाकुर हरवंश सिंह के इशारे पर उनके समर्थकों ने श्रीमति पटेरिया के वाहन पर पत्थरों से हमला किया था। राजदीप का आरोप था कि तत्कालीन सांसद के वाहन पर जमकर पत्थर बरसाए जिससे सांसद श्रीमति पटेरिया अपने पुत्र सहित किसी तरह जान बचाकर भागे। मजे की बात है कि उस वक्त प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा सरकार थी जो अब तक कायम है। श्रीमति पटेरिया भी भाजपा से सांसद रहीं और वर्तमान में वे भाजपा से विधायक भी हैं। बावजूद इसके भाजपा शासनकाल में अगर केस डायरी कोर्ट में पेश न करवाई जा सके तो यह नूरा कुश्ती की श्रेणी में ही आएगा।






देश में एक करोड़ अनाथ बच्चे हैं सोनिया जी


देश की सबसे ताकतवर महिला श्रीमति सोनिया गांधी विदेशों की शक्तिशाली महिलाओं की फेहरिस्त में अपना स्थान बना चुकी हैं। नेहरू गांधी परिवार की पहली विदेशी बहू सोनिया गांधी के दो बच्चे राहुल और प्रियंका हैं, इस लिहाज से वे बच्चों का सुख और दर्द दोनों ही बातों से अच्छी तरह वाकिफ होंगी। देश में आज लगभग सवा करोड बच्चे अनाथ हैं, यह बात सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एक प्रकरण की सुनवाई में सामने आई। एक विदेश दम्पत्ति द्वारा भारतीय बच्चे को गोद लेने के मामले में जब निचली अदालतों द्वारा हाथ खडे कर दिए गए तब दुनिया के चौधरी समझे जाने वाले अमेरिका से आए केग एलन कोट्स और उनकी अर्धांग्नी सिंथिया ने सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे खटखटाए। निचली अदालतों का मानना था कि इस दंपत्ति के पहले से ही तीन बच्चे हैं अतः वे संभवतः घरेलू काम के लिए इस बच्चे को नोकर बनाकर ले जाना चाह रहे हैं। बडी अदालत ने इस मामले को संजीदगी से लिया और केंद्र सरकार से कहा है कि देश के लगभग सवा करोड अनाथ बच्चों के विदेशियों द्वारा गोद लेने के लिए कानून बनाया जाए। माना जाता है कि जब केंद्र सरकार श्रीमति सोनिया गांधी के इशारों पर ही कत्थक कर रही है, और वे भी एक मां हैं तो बेसहारा अनाथ बच्चों के लिए कानून बनाने के लिए वे पहल अवश्य ही करेंगी।






कहां गए लाट साहब को मिले उपहार!


कहा जाता है कि भारत गणराज्य में महामहिम राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री या मंत्री को मिले उपहार उनकी व्यक्तिगत संपत्ति नहीं होते हैं। यह सब कुछ सरकारी संपत्ति की श्रेणी में आते हैं। जब भी इन पदों पर आसीन कोई भी जनसेवक कहीं भी जाता है तो उसे उपकृत और उनका सम्मान करने की गरज से महानुभावों को उपहार दिए जाते हैं। इन उपहारों का लेखा जोखा रखना भी जरूरी होता है। अमूमन लोग इसका हिसाब किताब रखना जरूरी नहीं समझते हैं। देश के हृदय प्रदेश में राज्य सूचना आयोग का एक आदेश राजभवन सचिवालय के गले की फांस बनता जा रहा है। आयोग ने अधिकारियों को निर्देशित किया है कि वे एक पखवाडे के अंदर मध्य प्रदेश के राज्यपालों को दस साल में मिले उपहारों की सूची बनाकर उनका भौतिक सत्यापन करवाएं, एवं इसकी एक प्रति निशुल्क ही आवेदक को सौंपें। उल्लेखनीय होगा कि हर सरकारी कार्यालय में प्रत्येक वर्ष उपलब्ध सामग्री का स्टाक मिलान कर उसका भौतिक सत्यापन करवाना आवश्यक होता है, ताकि यह साबित हो सके कि कार्यालय मंे सरकारी संपत्ति मौजूद है अथवा गायब कर दी गई है। अमूमन सरकारी कार्यालयों में एसा किया नहीं जाता है। राज्य सूचना आयोग के आदेश के बाद शायद सरकारी अमला चेते और हर साल भौतिक सत्यापन का रिवाज आगे बढाया जा सके।










मुंबई पर मच्छर राज!


पूर्व विदेश मंत्री ‘शशि थरूर‘ फेम सोशल नेटवर्किंग वेवसाईट ‘‘ट्विटर‘‘ एक बार फिर चर्चाओं में है। इस बार यह किसी राजनेता नहीं वरन राजनैतिक कारण से ही चर्चा में आई है। दरअसल विख्यात गायिका आशा भौसले द्वारा ट्विटर पर एक टिप्पणी कर दी जिससे मुंबई के स्वयंभू शेर राज ठाकरे गुर्राने लगे। आशा दी ने कह दिया कि मुंबई पर मच्छर राज कायम है। बस क्या था ‘राज‘ का नाम आते ही मनसे कार्यकर्ता आपे से बाहर हो गए। गौरतलब होगा कि पूर्व में राज ठाकरे ने कहा था कि मुंबई में अन्य प्रांतों से आने वाले लोग मलेरिया जैसी बीमारी लेकर आते हैं जिससे यह यहां फैल रही है और अस्पताल भरे पडे हैं। आशा दी ने जैसे ही मच्छर राज वाली बात कही वैसे ही मनसे कार्यकर्ताआंे को लगा मानो आशा भौसले ने राज ठाकरे पर टिप्पणी कर दी हो। मामला तूल पकडते देख आशा भौसले ने बात को संभाला और कहा कि उनकी भावनाओं को अन्यथा न लिया जाए उनका तातपर्य महज मुंबई के मच्छरों से था, जिनकी बहुतायत को उन्होंने मच्छर राज कहा था। अगर मनसे कार्यकर्ता भडकते हैं तो फिर वे धन्यवाद, नमस्कार, थेंक्य यू जैसे शब्द ही ट्विटर पर इस्तेमाल करेंगी। धन्य है देश की व्यवसायिक राजधानी मुंबई का ‘मच्छर राज‘।






मंहगाई पर सुषमा ने दिखाए तीखे तेवर


राजग के पीएम इन वेटिंग एल.के.आडवाणी ने जब से लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद तजा है तब से भाजपा की धार लोकसभा में बोथरी ही दिख रही थी। काफी अरसे बाद अब आडवाणी का स्थान लेने वाली भाजपा नेता सुषमा स्वराज ने तल्ख तेवर का आगाज किया है। सुषमा ने मंहगाई के मामले मंे सरकार को कटघरे में खडा किया है। सत्तर के दशक के बाद पहली बार विपक्ष में बैठे किसी नेता ने इस सच्चाई को जनता के सामने लाने का प्रयास किया है कि सरकार जनता का ध्यान भटकाने के लिए मंहगाई को अस्त्र की तरह इस्तेमाल करती है। सुषमा का आरोप सौ फीसदी सही है कि सरकार धोखेबाज इसलिए है क्योंकि वह चुनाव के पहले कीमतें नहीं बढाती है, पर चुनाव निपटते ही आम आदमी को भूलकर मनमाने तरीके से कीमतों में इजाफा कर देती है। यह सोलह आने सच है, और राजनेता इस सच से वाकिफ भी हैं। विडम्बना यह है कि चुनाव में जनादेश पाने के लिए तरह तरह के प्रलोभन दिए जाते हैं। आम आदमी के प्रति फिकरमंद होना और कीमतों का न बढाना भी इसी रणनीति का ही एक हिस्सा होता है। जैसे ही चुनाव के बाद पार्टियां सत्तारूढ होती हैं मंहगाई का मुंह अपने आप ही खुल जाता है।






खेल ने निकाला रियाया का तेल


कामन वेल्थ गेम्स वैसे तो भारत गणराज्य की कांग्रेसनीत संप्रग सरकार के लिए नाक का सवाल बन चुकी है, किन्तु इस खेल से भला किसका हो रहा है या होने वाला है, इस बारे में सोचने की फुर्सत किसी को भी नहीं दिख रही है। सभी अपनी ढपली अपना राग ही बजा रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार तीस हजार करोड रूपयों को कामन वेल्थ की हवन वेदी में स्वाहा करने की तैयारी है। आयोजन महज 13 दिनों का भले ही हो किन्तु इस आयोजन के पहले अब तक दो तिहाई पैसा बह चुका है, फिर भी तैयारियां ढाक के तीन पात ही नजर आ रही हैं। खेल मंत्री एम.एस.गिल कह रहे हैं कि इसमें गफलत तो हुई है, किन्तु समय कम है अब कुछ नहीं किया जा सकता है। जांच एजंेसियां अपना मुंह खोले बैठी हैं। सारे प्रहसन को जनता के साथ ही साथ विपक्ष भी मूकदर्शक बनकर ही देखने पर मजबूर है। जनता की मजबूरी तो समझ में आती है पर विपक्ष की मजबूरी किसी दिशा विशेष की ओर इशारा कर रही है। आयोजन समिति के अध्यक्ष ने यह कहकर सोनिया गांधी की परेशानी बढा दी है कि अगर सोनिया चाहें तो वे त्यागपत्र दे सकते हैं। इसके अनेक मतलब निकाले जा रहे हैं, जिनमें से एक यह भी है कि सोनिया के इशारे पर ही तीस हजार करोड रूपयों का बंदरबांट किया जा रहा है!






यूपी मिशन 2012 पर युवराज


कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी की नजरें अब उत्तर प्रदेश में 2012 में होने वाले विधानसभा चुनावों पर आकर टिक गईं हैं। राहुल गांधी यूपी चुनावों को महत्वपूर्ण समझने लगे हैं। सूत्रों का कहना है कि राहुल की सलाह पर ही कांग्रेस ने यूपी के चुनावों के मद्देनजर ‘‘यूपी मिशन 2012‘‘ नाम से तैयारियां आरंभ कर दी हैं। राहुल गांधी की मण्डली ने उन्हें मशविरा दिया है कि अगर यूपी को 2012 में कब्जे में नहीं लिया गया तो आने वाले समय में राहुल गांधी की गत भी राजग के पीएम इन वेटिंग एल.के.आडवाणी की सी होने से कोई नहीं रोक सकता है। यही कारण है कि राहुल गांधी अब यूपी में ज्यादा से ज्यादा समय देने लगे हैं। कांग्रेस जानती है कि यादवी संगठित वोट बैंक को मुलायम सिंह के बलशाली पंजे से छुडाना बहुत आसान नहीं है, सो अब गैर यादवी वोट बैंक पर कांग्रेस ने अपनी नजरें गडा रखी हैं। राहुल बाबा के एक करीबी का कहना है कि उन्हें मशविरा दिया गया है कि आने वाले समय में अगर यूपी और बिहार जैसे सूबों में अगर दलित, पिछडे और अल्पसंख्यक वोट बैंक में सेंध नहीं लगाई गई तो समय काफी मुश्किल हो सकता है। यही कारण है कि अब कांग्रेस की नजरें गैर यादवी वोट बैंक की ओर इनायत होने लगी हैं।






सवा करोड खर्च पर एड्स है कि मानता ही नहीं!


एड्स को गंभीर बीमारी की श्रेणी में रखा गया था अस्सी के दशक के आरंभ के साथ ही। तीस सालों में अरबों खर्च करने के बाद भी सरकार एड्स को नियंत्रण में लेने में असफल ही रही है। पिछले साल लगभग 121 करोड रूपए खर्च करने के बाद भी भारत गणराज्य में एड्स के 3 लाख 85 हजार से अधिक मामले प्रकाश में आए हैं। यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि सरकार की मंशा इस रोग के नियंत्रण के प्रति क्या और कैसी है। एड्स मूलतः संक्रमित सुई के लगाने या इस तरह के खून के चढाने अथवा संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में असुरक्षित यौन संपर्क से ही फैलता है। जब यह बात सार्वजनिक तौर पर समझाई जा चुकी है, फिर भी अगर एड्स का पहिया थमने की बजाए अपनी ही गति से घूम रहा हो तब सरकार द्वारा पानी में बहाई जा रही धनराशि का क्या ओचित्य है।






पुच्छल तारा


अब जबकि कामन वेल्थ गेम्स के आरंभ होने में चंद सप्ताह ही बचे हैं, और इसके आयोजनों में हजारों करोड रूपए स्वाहा हो गए हों, तब पुराना एक लतीफा प्रसंगिक ही लगता है। कोलकता से राजुली सेन एक ईमेल भेजती हैं कि जब सानिया मिर्जा ने पाकिस्तानी मूल के व्यक्ति से विवाह किया तब श्रीराम सेना के चीफ प्रमोद मुथालिक जैसे अनेक लोगों ने यह पूछा था कि क्या सानिया मिर्जा को सवा सौ करोड भारतियों में एक भी योग्य व्यक्ति विवाह के लिए नहीं मिला। इसका जवाब यह था कि जब एशियाड, ओलंपिक आदि में भारयितों को एक भी स्वर्ण पदक नहीं मिलता तब भला एसा प्रश्न इन लोगों के दिमाग में क्यों नहीं कौंधता। अब कामन वेल्थ गेम्स होने वाले हैं सो ‘‘नाई नाई कितने बाल‘‘ अभी देख लेते हैं हजूर।
1 जून 2008 को दिया था अरूणाचल स्कूल ने एफीलेशन का आवेदन


सिवनी। जिला मुख्यालय सीर दीवान में बरघाट नाके के समीप संचालित होने वाले अरूणाचल पब्लिक स्कूल (पूर्व में टाईनी टाट्स स्कूल) ने केंद्रीय शिक्षा बोर्ड अर्थात सीबीएसई से एफीलेशन के लिए 01 जून 2008 को पंजीकरण हेतु आवेदन दिया था, जिसे सीबीएसई बोर्ड ने 06 अगस्त 2008 को स्वीकार किया था। इसके उपरांत इसके लिए आंकडे 04 जुलाई 2009 को जनरेट किए गए थे। इसका पंजीकरण नंबर एसएस - 00490 - 0910 प्रदान किया गया था। उक्ताशय की जानकारी सीबीएसई बोर्ड उच्च पदस्थ सूत्रों द्वारा उपलब्ध कराई गई है।

गौरतलब होगा कि टाईनी टाट्स स्कूल पूर्व में बारापत्थर में पूर्व विधायक नरेश दिवाकर के आवास के बाजू में संचालित होता था, जिसे कालांतर में डॉ.सलिल त्रिवेदी के आवास के सामने होमगार्ड कार्यालय मार्ग पर स्थानांतरित कर दिया गया था। बताया जाता है कि शाला प्रबंधन ने नब्बे के दशक के आरंभ में अपने यहां अध्ययनरत विद्यार्थियों से पांच सौ रूपए सालाना केपीटेशन फीस वसूलकर बरघाट नाके के समीप जमीन खरीदी गई, एवं इसमें शाला का निर्माण करवाया गया।

बरघाट नाके के समीप चलने वाला टाईनी टाट्स स्कूल एकाएक इतिहास की बात हो गया, और इसका स्थान अरूणाचल पब्लिक स्कूल ने ले लिया। यह सब पलक झपकते कैसे और क्यों हो गया, यह आज भी शोध का विषय ही बना हुआ है। कल तक जो विद्यार्थी टाईनी टाट्स स्कूल के छात्र थे, उनसे अगर पूछा जाए कि वे किस स्कूल के छात्र हैं तो उनकी जुबान पर आज भी टाईनी टाट्स का नाम ही रटा हुआ है। उक्त शाला भवन के लिए खरीदी गई जमीन किस नाम से खरीदी गई है और शाला भवन किसके स्वामित्व में है, किस अनुबंध के आधार पर टाईनी टाट्स स्कूल के बजाए रातों रात इसका नाम अरूणाचल पब्लिक स्कूल कर दिया गया यह गुत्थी या तो जिला एवं पुलिस प्रशासन ही सुलझा सकता है या फिर स्वयं टाईनी टाट्स शाला प्रबंधन।

बहरहाल सूत्रों ने आगे कहा कि इसी तारतम्य में सीर दीवान सिवनी में संचालित अरूणाचल पब्लिक स्कूल के प्रबंधक को सीबीएसई बोर्ड द्वारा पत्र क्रमांक सीबीएसई / एफी / एसएस - 00490 - 0910 (1030442) / 2009 दिनांक सात जुलाई 2007 को जारी किया गया था। इस पत्र में उक्त शाला के लिए फ्रेश कंपोजिट प्रोवीजनल एफीलेशन अर्थात नवीन मिश्रित अस्थाई मान्यता को सीनियर सेकन्डरी स्तर तक स्टेट बोर्ड से स्विच ओवर विषय से जारी किया गया था।

अरूणाचल पब्लिक स्कूल (पूर्व में टाईनी टाट्स स्कूल) को एफीलेशन विभाग के डिप्टी सेकेरेटरी जोसफ एम्मूअल के हस्ताक्षरों से जारी इस पत्र में उल्लेख किया गया है कि उक्त शाला के आवेदन दिनांक 26 मई 2008 के तारतम्य में उन्हें निर्देशित किया गया है कि वे शाला को यह जानकारी दें कि शाला को 01 अप्रेल 2009 से 31 मार्च 2012 तक की तीन साल की अवधि के लिए सशर्त प्रोवीजनल एफीलेशन दिया गया है।

सीबीएसई के सूत्रों ने आगे कहा कि इस पत्र में उल्लेख किया गया है कि शाला को अंग्रेजी और हिन्दी वेकल्पिक एवं कोर तथा संस्कृत के साथ ही साथ वेकल्पिक विषयों के तौर पर ज्योगरफी, इकोनोमिक्स, मेथामेटिक्स, फिजिक्स, केमिस्ट्री, बायोलाजी, फिजीकल एजूकेशन, बिजनिस स्टेडीज, एकाउंटेंसी, इंफरमेटिक्स प्रेक्टिस, कंप्यूटर साईंस को शामिल किया गया है।

अरूणाचल पब्लिक स्कूल (पूर्व में टाईनी टाट्स स्कूल) को सीबीएसई द्वारा दी गई मान्यताओं की शर्तों में उल्लेखित है कि शाला को मिडिल क्लास में एनसीईआरटी द्वारा निर्धारित किताबों को शामिल किया जाएगा। इसके साथ ही साथ अन्य विषयों की किताबें सीबीएसई बोर्ड द्वारा निर्धारित और समय समय पर परिवर्तित होंगी। तीसरी शर्त के रूप में यह उल्लेख किया गया है कि शाला अपने विद्यालय में विद्यार्थियों की संख्या शिक्षकों के निर्धारित अनुपात में ही रखेगी। यह बोर्ड के बाय लाज के हिसाब से ही होगी एवं उससे अधिक विद्यार्थियों को दाखिला नहीं दिलवाएगा।

अरूणाचल पब्लिक स्कूल (पूर्व में टाईनी टाट्स स्कूल) को जारी पत्र की चौथी शर्त के तौर पर यह बाध्यता रखी गई है कि शाला किसी अन्य शाला जो बोर्ड से एफीलेटेड न हो में विद्यार्थियों को स्पासंर नहीं करेगा। पांचवी शर्त के तौर पर कहा गया है कि शाला पर्याप्त मात्रा में क्वालिफाईड और शिक्षित स्टाफ को नियमित आधार पर एफीलेशन बायलाज के हिसाब से रखेगा। अगली शर्त में कहा गया है कि शाला अपने कर्मचारियों की सेवा शर्तें, वेतन भत्ते और अन्य सुविधाएं कम से कम उस राज्य में कार्यरत करस्पांडेंट श्रेणी के सरकारी स्कूल के स्टाफ से देगा, जहां वह स्थापित होगा, इस तरह की एक अंडरटेकिंग तत्काल प्रभाव से सीबीएसई को भेजना अनिवार्य है।

सूत्रों का आगे कहना है कि राज्य सरकार के हिसाब से कर्मचारियों की सेवा शर्तें निर्धारित की जाएं यह इसकी सातवीं शर्त है। ग्यारहवीं कंडिका मंे साफ तौर पर उल्लेख किया गया है कि शाला बोर्ड के निर्धारित नार्मस के हिसाब से प्रयोगशालाएं, पुस्तकालय और अन्य सुविधाएं उपलब्ध करवाएगा। इसकी महत्वपूर्ण कंडिका 13 में कहा गया है कि शाला कम से कम दस कम्पयूटर वाली कम्पयूटर लेब या विद्यार्थियों की 1: 20 के अनुपात में कंप्यूटर लेब उलब्ध कराएगा। अगर किसी शाला में 1000 छात्र हैं तो वहां कम से कम 50 कम्पयूटर वाली कम्पयूटर लेब का होना आवश्यक है। यह कंडिका कम्पयूटर छात्रों की संख्या के हिसाब से ही होगी। इसमें साफ तौर पर उल्लेखित किया गया है कि कम्पयूटर में निर्धारित साफ्टवेयर विद ब्राडबेण्ड कनेक्शन वह भी ‘‘इंटरनेट आलवेज आन‘‘ की स्थिति में होना आवश्यक है।

अरूणाचल पब्लिक स्कूल (पूर्व में टाईनी टाट्स स्कूल) को जारी पत्र की कंडिका नंबर 14 में कहा गया है कि शाला विशेष ध्यान देने वाले बच्चों या अक्षम डिसेबल्ड बच्चों को डिसेबलटी एक्ट 1995 के तहत प्रमोट करेगी। इसकी कंडिका 15 में कहा गया है कि शाला अपने रिकार्ड को बोर्ड या राज्य शासन के शिक्षा विभाग और उसके प्राधिकृत प्रतिनिधि के लिए खुला रखेगा, जब चाहे तब ये इस रिकार्ड का अवलोकन कर सकते हैं। गौरतलब होगा कि जिला शिक्षा अधिकारी सिवनी द्वारा पूर्व में यशोन्नति से चर्चा के दौरान कहा गया था, कि मामला सीबीएसई बोर्ड का है, इस मामले में वे क्या कर सकते हैं।

अरूणाचल पब्लिक स्कूल (पूर्व में टाईनी टाट्स स्कूल) को जारी पत्र की कंडिका 16 कहती है कि शाला में विद्यार्थियों से वसूल की जाने वाली ट्यूशन और अन्य फीस भी वहां उपलब्ध सुविधाओं के अनुरूप होनी चाहिए। कंडिका 17 में उल्लेख किया गया है कि शाला में प्रवेश के दौरान धार्मिक, जाति आधार या जन्म स्थान का कोई बंधन नहीं होना चाहिए। शाला इस आधार पर किसी का प्रवेश प्रतिबंधित नहीं कर सकती है।

अरूणाचल पब्लिक स्कूल (पूर्व में टाईनी टाट्स स्कूल) को जारी पत्र की कंडिका 18 कहती है कि किसी भी तरह की अनरिकर्जनाईज्ड क्लास शाला के प्रांगड में संचालित नहीं हो सकती है, और न ही शाला के नाम से ही संचालित हो सकती है। कंडिका 19 के अनुसार शाला इन नियमों का पालन सख्ती से करे कि विद्यार्थियों के लिए सुरक्षा उपकरण एवं व्यवस्थाएं पर्याप्त हों, शाला में अग्निशमन यंत्र, पीने का स्वच्छ पानी, शौचालय एवं ट्रांसपोर्टेशन की पर्याप्त व्यवस्था हो। इस एफीलेशन के लिए सालाना फीस पंद्रह सौ रूपए प्रतिवर्ष के हिसाब से तीन साल के लिए चार हजार पांच सौ रूपए ही होगी।

सूत्रों का कहना है कि कंडिका 27 में कहा गया है कि शाला का प्रांगण का क्षेत्रफल 8260 स्कव्यर मीटर, बिल्ट अप एरिया 5648.36 स्केयर मीटर, खेल के मैदान का क्षेत्रफल 2968 स्केयर मीटर, कुल कक्षाएं 19, प्रयोगशालाओं में बायोलाजी, फिजिक्स, रसायनशास्त्र, गणि, कम्यूटर साईंस की एक एक उपलब्ध होना आवश्यक है। इसके अलावा शाला के पुस्कालय मंे 20 गुणा 22 साईज की कुल तीन हजार एक सौ छियत्तर किताबें होना आवश्यक है। इसकी कंडिका 29 कहती है कि स्पेशल कंडीशन्स को तीन माह के अंदर ही पूरा करना अनिवार्य है।

(क्रमशः जारी)