सोमवार, 26 जुलाई 2010

कांग्रेस भी है बेचलर पावर के सहारे

ये है दिल्ली मेरी जान
(लिमटी खरे)

अभी और दिखेगा राहुल का बेचलर पावर!
कांग्रेस की नजर में देश के युवराज और भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी बहुत जल्द परिणय सूत्र में आबद्ध नहीं हो पाएंगे, यह कहना है देश के प्रख्यात ज्योतिषियों का। देश के हृदय प्रदेश की राजधानी भोपाल में बीते दिनों हुए शैक्षणिक ज्योतिष सम्मेलन में देश भर से आए ज्योतिष के प्रकांड विद्वानों ने एक राय से इस बात को कहा
कि राहुल गांधी के विवाह का योग 49 वर्ष की अवस्था में ही बन रहा है। राहुल गांधी की कुंडली में चल रहीं ग्रह दशाओं के अनुसार अनेक ग्रह राहुल गांधी को शादी के मण्डप से दूर रखे हुए हैं। कुछ ज्योतिष इस बात पर अडिग रहे कि राहुल गांधी का विवाह लगभग डेढ वर्ष तक तो कतई संभव नहीं है। इसके उपरांत के साढे सात साल फिर राहुल गांधी शादी के मण्डप से दूर ही रहेंगे। ज्योतिषियों की मानें तो राहुल बाबा की कुंडली में बनने वाले ‘‘पात करकरी योग‘‘ के चलते कांग्रेस की नजर में देश के प्रधानमंत्री की शादी में विलंब प्रतीत हो रहा है। अगर ज्योतिषाचार्य सही फरमा रहे हैं, और वे प्रधानमंत्री बनते हैं तो कांग्रेस के युवराज पहले कांग्रेसी प्रधानमंत्री होंगे जो अविवाहित अवस्था में वजीरे आजम बने हों। वैसे अटल बिहारी बाजपेयी भी अविवाहित ही प्रधानमंत्री बनने का गौरव पा चुके हैं।
7 रेसकोर्स की ओर बढते दिग्विजयी कदम
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सबसे ताकतवर महासचिव दिग्विजय सिंह ने एक बार फिर परोक्ष तौर पर इशारा करने का प्रयास किया है कि उनकी दिलचस्पी अब देश के हृदय प्रदेश अर्थात मध्य प्रदेश में राजनीति में लौटने की नहीं है, वे अब 7 रेसकोर्स रोड (प्रधानमंत्री का सरकारी आवास) को अपना आशियाना बनाने में ज्यादा दिलचस्पी रखते हैं। मध्य प्रदेश में दस साल लगातार राज करने वाले राजा दिग्विजय सिंह का कहना है कि वे अब प्रदेश के बजाए केंद्र की राजनीति में ज्यादा इच्छुक हैं। बकौल दिग्गी राजा वे 2013 में होने वाले मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों के बजाए 2014 में होने वाले आम चुनावों में किस्मत आजमाने में ज्यादा दिलचस्पी रख रहे हैं। गौरतलब है कि 2003 में सत्ता के गलियारे से बाहर फंेक दिए जाने के पूर्व उन्होंने कौल लिया था कि अगर कांग्रेस मध्य प्रदेश में सत्ता में नही आई तो वे दस साल तक के लिए सक्रिय राजनीति से सन्यास ले लेंगे। उनका कौल 2013 में पूरा होने वाला है। अब तक नपे तुले सधे कदमों से चलने वाले राजा दिग्विजय सिंह ने कांग्र्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10, जनपथ और राहुल गांधी के दरबार में दमदार भूमिका बना ली है।
आखिर ममता के बचाव में क्यों आगे आए प्रणव?
डॉ.मनमोहन सिंह की दूसरी पारी का एक साल पूरा हो चुका है। इस बार रेल विभाग का दारोमदार स्वयंभू प्रबंधन गुरू लालू प्रसाद यादव के बजाए त्रणमूल की सुप्रीमो ममता बनर्जी के कांधों पर है। ममता बनर्जी का पूरा ध्यान रेल के बजाए पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों पर है। सारा देश चीख चीख कर इस ओर इशारा कर रहा है, पर देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस है कि आंखों पर पट्टी बांधे बैठी है। ममता के कार्यकाल में रेल गाडियां आपस में इस कदर टकरा रहीं हैं, मानो किसी सिनेमा में दुर्घटनाओं को फिल्माया जा रहा हो। हाल ही में पश्चिम बंगाल के सैंथिया में हुई रेल दुर्घटना के बाद कांग्रेस के तारणहार समझे जाने वाले पश्चिम बंगाल मूल के केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने ममता के पक्ष में बयान देकर सभी को चौंका दिया। लोग हतप्रभ इसलिए हैं, क्योंकि पश्चिम बंगाल पर कांग्रेस भी निशाना साधे बैठी है। प्रणव दा ने इस बात को सिरे से नकार दिया कि देश को एक पूर्णकालिक रेल मंत्री की दरकार है। माना जा रहा है कि कांग्रेस पश्चिम बंगाल के चुनावों तक त्रणमूल सुप्रीमो ममता को छेडने के मूड में नहीं दिख रही है।
काम न आई पीएम की लंच डिप्लोमेसी
भारत गणराज्य की राजनीति में लंच या डिनर डिप्लोमेसी का अपना महत्व है। अपने प्रतिद्वंदी दलों के सदस्यों को लंच या डिनर पर बुलाकर उनके कान फूंककर काम निकालने के अनेक उदहारण मौजूद हैं, पर लगता है कि भारतीय जनता पार्टी द्वारा कांग्रेसनीत संप्रग सरकार के प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह के दोपहर के भोज को ठुकराकर नई इबारत लिखी है। भारत गणराज्य के इतिहास में एसे उदहारण कम ही होंगे जब देश के वजीरेआजम को अपना दोपहर का भोज मेहमानों के न आने के चलते निरस्त करना पडा हो। गुजरात के गृह राज्य मंत्री अतिम शाह के मामले में केंद्र सरकार पर सीबीआई के दुरूपयोग के आरोप लगाती आ रही है भाजपा। कांग्रेस इस बात को भली भांति समझ भी रही है। मानसून सत्र के पहले प्रधानमंत्री ने भाजपा के तीन नेताओं एल.के.आडवाणी, सुषमा स्वराज और अरूण जेतली को दोपहर के भोज पर बुलवाया। शीर्ष स्तर के तीनों भाजपाई नेताओं ने पीएम के बुलावे का बहिष्कार कर दिया और फिर क्या था, मेजबान मनमोहन सिंह को भोज निरस्त कर अकेले ही भोजन करना पडा।
क्या गुल खिलाएगा अर्जुन का जहर बुझा तीर
बीसवीं सदी के अंतिम दशकों में कांग्रेस के चाणक्य की अघोषित उपाधि से नवाजे गए कुंवर अर्जुन सिंह के दुर्दिन अब शायद छटने वाले ही हैं। प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह ने उन्हें अपनी दूसरी पारी में मंत्रीमण्डल से बाहर का रास्ता दिखाया है। सदा चर्चा में रहने वाले अर्जुन सिंह एक साल से अधिक समय से राजनैतिक वनवास भोग रहे हैं। उनके प्रबल भाग्य ने एक बार फिर जोर मारा और उनके हाथ भोपाल गैस कांड में तुरूप का इक्का लग गया। जब यह कांड हुआ तब वे मुख्यमंत्री थे और राजीव गांधी की सरकार के कथित इशारे या आदेश के चलते यूनियन कार्बाईड प्रमुख एण्डरसन को पूरी शानो शौकत से देश से विदा कर दिया गया था। राज्य सभा में अर्जुन के बयान का इंतजार सभी को है। राजीव गांधी के समय मंत्रीमण्डल सदस्य रहे प्रणव मुखर्जी और राजीव गांधी के बीच बाद में संबंधों में जबर्दस्त खटास आ गई थी। यह अलहदा बात है कि वर्तमान में प्रणव दा कांग्रेस के तारणहार की भूमिका में हैं। प्रणव दा और अर्जुन सिंह के बीच चर्चा के दौर हो चुके हैं, पर कहा जा रहा है कि राजीव गांधी से खार खाए प्रणव मुखर्जी ने अर्जुन सिंह को राजीव गांधी सरकार को बचाने के लिए कुछ भी गुजारिश नहीं की है।
तीन साल में ले लो न्याय!
भारत गणराज्य में न्याय के नाम पर मुवक्किल के हिस्से में कोर्ट कचहरी की चौखट को ही घिसना आता है। साल दर साल चलने वाले मुकदमों से देश की जनता आजिज आ चुकी है। वालीवुड के अनेक चलचित्रों में तारीख पर तारीख के डायलाग भी चीख चीख कर सुनाए गए पर शासकों के कान में जूं तक नहीं रेंगी। अब भारत के कानून मंत्री वीरप्पा माईली ने कहा है कि आने वाले 11 सालांे में अर्थात 2021 तक देश में एक हजार अतिरिक्त अदालतों का गठन किया जाना प्रस्तावित है, इसके लिए पंद्रह हजार करोड रूपयों का अतिरिक्त भार आने का अनुमान लगाया गया है। यह अतिरिक्त भार आज के हिसाब से जोडा गया है। ग्यारह साल की अवधि के साथ ही यह कितने गुना बढ जाएगा इसका अनुमान वर्तमान में लगाना बहुत ही दुष्कर है। विडम्बना तो इस बात की है कि न्यायालयों के समय को बढाने के बाद भी तारीख पर तारीख का आलम आज भी बदस्तूर जारी है। पहले सरकार ने ठेके पर न्यायधीशों को रखने की बात कही थी। आज आवश्यक्ता इस बात की है कि न्याय व्यवस्था में अमूल चूल परिवर्तन लाया जाए ताकि लोगों को त्वरित न्याय मिल सके।
गौर निकले काबिले गौर!
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान नगरीय प्रशासन और विकास मंत्री बाबू लाल गौर एक अनूठे मंत्री हैं, यह बात पिछले दिनों ही सामने आई है। गौर को डायरी लिखने का बहुत शौक है। वे अपने दैनिक कार्यों में मुलाकात करने वालों के नाम और उनसे हुई चर्चा को भी अपनी डायरी में स्थान देते हैं। पोखरण विस्फोट की बात उजागर करते हुए गौर ने मीडिया में खुलासा किया था कि पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंहराव ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी को एक पुर्जा थमाया था जिसमें लिखा था कि वे अर्थात नरसिंहराव तो विस्फोट नहीं कर सके, तुम अर्थात अटल पोखरण में विस्फोट अवश्य करना। भाजपा में उमा भारती की पुर्नवापसी के घुर विरोधी क्यों बने गौर? इस बात का खुलासा भी इसी तरह होता है कि 2003 के चुनावों में उमा भारती के विरोध के चलते गौर की टिकिट संकट में पड गई थी। बाद में अटल बिहारी बाजपेयी के हस्ताक्षेप से उनकी टिकिट वापस उन्हें मिल सकी।
विकास के पैसों का खेल
भारत में सुबह उठकर रात के सोने तक देश का प्रत्येक नागरिक हर एक बात के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर कर देता है। यह कर की राशि से ही देश में राज काज चलता है। इसी टेक्स से देश में विकास की योजनाएं संचालित होती हैं। करों से प्राप्त होने वाले राजस्व को विभिन्न मदों में बांटकर केंद्र सरकार खुद के लिए और राज्यों को आवंटित करती है। दिल्ली की कांग्रेस की सरकार ने विकास के लिए आए पैसे को कामन वेल्थ गेम्स की मद में खर्च कर नया चमत्कार किया है। अनुसूचित जाति की मद में आई लगभग आठ सौ करोड रूपए की राशि को राष्ट्रमण्डल खेलों के लिए निकाल कर खर्च कर दिया है, शीला दीक्षित के नेतृत्व वाली सरकार ने। केंद्र सरकार द्वारा कामन वेल्थ गेम्स के लिए पर्याप्त मात्रा में धनराशि देने के बावजूद भी शीला दीक्षित को पता नहीं कौन सी जरूरत आन पडी कि उन्होंने इस मद के लिए अतिरिक्त राशि वह भी अनुसूचित जाति के मद से आहरित कर ली।
फर्जी शस्त्र लाईसेंस का गढ बना हिमाचल
देश भर में हथियारों के प्रयोग का चलन तेजी से बढा है। हथियार अवैध हैं या वैध यह कहा नहीं जा सकता है। अवैध हथियारों के जखीरों को जब तब बरामद किया जाता रहा है। अवैध हथियार का लाईसेंस भी बन जाता है, यह है भारत गणराज्य की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था। भारत गणराज्य के हिमाचल प्रदेश को देवभूमि के नाम से जाना जाता है। हिमाचल प्रदेश में फर्जी शस्त्र लाईसेंस बनाने का भाण्डाफोड किया है हरियाणा पुलिस ने। फरीदाबाद पुलिस ने हिमाचल प्रदेश से फर्जी शस्त्र लाईसेंस लाकर बनाकर बेचने का मामला पकडा है। इस मामले में तफ्तीश जारी है। एक संदिग्ध आरोपी के पास से हिमाचल के धर्मशाला की सील लगा लाईसेंस पकडा है। इस तरह के अनेक मामले हरियाणा पुलिस अगर पकड ले तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली से सटे फरीदाबाद और हरियाणा के अन्य कस्बों में इन दिनों शस्त्रों का चलन काफी हद तक अधिक बताया जा रहा है।
पांच करोड रूपए में लगा एक उद्योग
देश के हृदय प्रदेश में मुख्यमंत्री बार बार मध्य प्रदेश के नागरिकों के गाढे खून पसीने की कमाई को हवा में उडाते जा रहे हैं, और उसका लाभ न तो प्रदेश की जनता को ही मिल पा रहा है, और न ही उस राशि का सही उपयोग हो पा रहा है। यह बात कोई और नहीं मध्य प्रदेश के उद्योग मंत्री तथा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के घुर विरोधी कैलाश विजयवर्गीय कह रहे हैं। विजयवर्गीय ने कांग्रेस के विधायक डॉ.गोविंद सिंह के एक प्रश्न के जवाब में साफ किया है कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बाबू लाल गौर और शिवराज सिंह चौहान ने मई 2005 से जून 2010 तक अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, सिंगापुर, मलेशिया, बेल्जियम, हालेंड, इटली, जर्मनी आदि देशों का दौरा किया है। इस पर लगभग पांच करोड रूपए स्वाहा हो चुके हैं। विदेशों के ये दौरे वहां के निवेशकों को आकर्षित करने की गरज से किए गए थे, किन्तु 20 एमओयू हस्ताक्षरित होने के बाद अमल में आए महज पांच ही। मजे की बात तो यह है कि इनमें से इकलौता उद्योग पीथमपुर में कापरो इंजीनियरिंग इंडिया के नाम से ही स्थापित हो सका है।
फिर निकला फोरलेन का जिन्न
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के कार्यकाल की महात्वाकांक्षी योजना स्वर्णिम चतुर्भुज के अंग उत्तर दक्षिण गलियारे में मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के साथ अन्याय होने की बात यहां की जनता चीख चीख कर कह रही है। केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ और वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश के बीच छिडी रार के चलते इसका काम रूका हुआ बताया जा रहा है। पिछले साल 21 अगस्त को सिवनी जिले की जनता ने एतिहासिक जनता कर्फ्यू लगाया था। इस दौरान कमल नाथ की न केवल सांकेतिक शवयात्रा निकाली गई थी, वरन उनके पुतले भी बडी तादाद में जलाए गए थे। सिवनी के साथ अन्याय का सिलसिला जारी है। पहले बिना किसी प्रस्ताव के सिवनी लोकसभा को विलोपित कर दिया गया। इसके उपरांत अब स्वीकृत और निर्माणाधीन उत्तर दक्षिण गलियारे के नक्शे से सिवनी का नाम विलोपित करने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है। सिवनी जिले से सटा है कमल नाथ का संसदीय क्षेत्र छिंदवाडा। माना जा रहा है कि अपने आशियाने अर्थात संसदीय क्षेत्र को हर तरह से संपन्न बनाने की गरज से कमल नाथ द्वारा सिवनी के मुंह से निवाला छीना जा रहा है।
पुच्छल तारा
मानसून की फुहार के साथ ही साथ दिल्ली में अघोषित बिजली कटौती पर एसएमएस की बौछार सी होने लगी है। दिल्ली के लक्ष्मी नगर इलाके से विनोद कुमार एसएमएस भेजते हैं कि दिल्ली में पावर कट ने लोगों का जीना मुहाल कर रखा है। एक सरदार जी का परिवार इसी पावर कट के चलते 48 घंटे तक फसा रहा, क्यांेकि वह एस्केलेटर (बिजली द्वारा स्वचलित सीढियां) पर से उपर चढ रहा था। पावर कट से एस्केलेटर बंद हो गया और बेचारे वे दो दिन तक लाईट आने का इंतजार करते रह गए।

सीबीएसई पर हावी शिक्षा माफिया (5)

पालक खुद सोच समझकर शाला में प्रवेश दिलाएं, किसी शाला के लिए हमारी कोई जवाबदेही नहीं: पटले

सिवनी। किस शाला में प्रवेश दिलाना है कौन सी शाला बच्चों के लिए अच्छा और स्वच्छ वातावरण देने में सक्षम है, कौन सी शाला सीबीएसई या मध्य प्रदेश माध्यमिक शिक्षा मण्डल बोर्ड की मान्यता लिए है या लेने वाली है, या इसका प्रलोभन दे रही है?, इस बारे में हम क्या कर सकते हैं, यह सोचना पालकों का अपने विवेक का काम है. उक्ताशय के गैरजिम्मेदाराना कथन नवागत जिला शिक्षा अधिकारी श्री पटले ने मीडिया से चर्चा के दौरान कहे.
 
गौरतलब है कि पिछले दो तीन सालों से सिवनी जिले में कुकरमुत्ते की तरह चलने वाले निजी शिक्षण संस्थानों द्वारा मध्य प्रदेश माध्यमिक शिक्षा मण्डल के स्थान पर केंद्रीय शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) का प्रलोभन सरेआम दिया जा रहा है. चूंकि सीबीएसई बोर्ड की पढाई एमपी बोर्ड से लाख दर्जे उच्च स्तर की होती है, एवं इनके प्रोडक्टस को आगे आने वाले समय में उच्च शिक्षा में काफी हद तक लाभ मिल सकता है. इसी के चलते पालकों का आकर्षण सीबीएसई स्कूलों की तरफ होना स्वाभाविक ही है. नगर में संचालित होने वाली शालाओं में मुख्यत सेंट फ्रांसिस स्कूल, अरूणाचल पब्लिक स्कूल (पूर्व में टाईनी टाटस), मार्डन नर्सरी, मिशन इंगलिश स्कूल आदि का प्रबंधन चाह रहा है कि उन्हें सीबीएसई की मान्यता मिल जाए.
 
इन शालाओं में से टाईनी टाटस स्कूल ने अपने विद्यार्थियों से केपीटेशन फीस (बिल्डिंग फंड, एवं अन्य मदों में ली जाने वाली राशि) के बलबूते बरघाट नाके पर अपना शाला भवन तैयार कर लिया, इसी तरह सेंट फ्रांसिस स्कूल ने जबलपुर रोड पर अपना शाला भवन बनाना आरंभ किया है. शहर में व्याप्त चर्चाओं के अनुसार इन शालाओं में प्रवेश लेने के उपरांत जब पालकों को वास्तविकता का पता चला तो उनके पास पछताने के अलावा कुछ और नहीं बचा.
 
इस संबंध में जब जिला शिक्षा अधिकारी श्री पटले से संपर्क साधा गया तो उन्होंने मोबाईल पर चर्चा के दौरान कहा कि नई नीति के अनुसार कोई भी शाला नवमी कक्षा में तब तक प्रवेश नहीं आरंभ करवा सकती है, जब तक कि उसे मध्य प्रदेश माध्यमिक शिक्षा बोर्ड या केंद्रीय शिक्षा बोर्ड द्वारा मान्यता न दी जाए. जिला शिक्षा अधिकारी श्री पटले ने आगे यह भी कहा कि किस शाल में प्रवेश दिलाना है किसमें नहीं यह फैसला नितांत तौर पर विद्यार्थी के पालक का ही होता है, किन्तु जब उनसे यह पूछा गया कि अगर सीबीएसई का दिखावा करने वाली शालाओं के पास सीबीएसई की मान्यता न हो तब पालकों को इस छल से बचाने की जवाबदेही किस पर आती है? इस प्रश्र के जवाब में जिला शिक्षा अधिकारी श्री पटले ने कहा कि इस मामले में  जिला शिक्षा अधिकारी भला क्या कर सकता? समूचा मामला पालक और शिक्षण संस्थाओं के संचालकों के बीच का है, इसमें हस्ताक्षेप करने वाला  जिला शिक्षा अधिकारी कौन होता है?
 
जहां तक रही शाला के द्वारा विद्यार्थियों को आवागमन के साधन, स्वच्छ हवादार वातावरण, खेल का अच्छा मैदान, भौतिक रसायन, रसायन शास्त्र, प्राणी विज्ञान की प्रयोगशालाओं, कम्पयूटर लेब, शौचालय, पुस्तकालय आदि की बात, तो इस मामले में  जिला शिक्षा अधिकारी श्री पटले का कहना है कि व्यक्ति को चुना जाएगा, फिर उसे लिखित में निरीक्षण करने का निर्देश जारी किया जाएगा, उसके उपरांत वह व्यक्ति जाकर इन शालाओं का निरीक्षण करने की तिथि निर्धारित करेगा, जब उसे समय मिलेगा तब वह जाकर उसका निरीक्षण कर अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगा. जिला शिक्षा अधिकारी श्री पटले के अनुसार कागजी कार्यवाही में समय लगता है, सो समय का इंतजार करने के अलावा और क्या किया जा सकता है.
 
मीडिया द्वारा जिला शिक्षा अधिकारी श्री पटले से जब यह जानना चाहा कि जब तक सीबीएसई बोर्ड द्वारा मान्यता नहीं दी जाती है, तब तक के समय अर्थात ट्रांजिट टाईम में शाला किसके नियंत्रण में रहेगी? इस प्रश्र के जवाब में  जिला शिक्षा अधिकारी श्री पटले अपनी बात पर ही अडिग रहे कि नए नियमों के हिसाब से जब तक सीबीएसई बोर्ड की मान्यता नहीं मिल जाती है, तब तक वह शाला नवमीं या ग्यारहवीं कक्षा में प्रवेश नहीं दे सकती है.
 
शहर में सीबीएसई के लिए कतारबद्ध खडी शालाओं के प्रबंधन के सूत्रों का कहना है कि उन सिवनी में अभी तक किसी भी शाला को सीबीएसई से मान्यता नहीं मिली है. इस मामले में सीबीएसई बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय अजमेर के सूत्रों का कहना है कि मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में किसी भी शाला को सीबीएसई ने अब तक मान्यता नहीं दी है. शाला प्रबंधन नवमी में विद्यार्थियों को अगर प्रवेश देने की प्रक्रिया कर रहा है, तो यह वह शाला अपनी जवाबदारी पर कर रही है. अगर मान्यता शैक्षणिक सत्र २०१० - २०११ में नहीं दी जाती है तो फिर इन बच्चों को सीबीएसई में एनरोल ही नहीं किया जाएगा. गौरतलब है कि सीबीएसई में नामांकन कक्षा नवमी में ही किया जाता है. बाद में बच्चे को कक्षा दसवीं में सीबीएसई बोर्ड की परीक्षा देने की पात्रता होगी. अगर मान्यता का काम अधर में रोक दिया जाता है तो अगले साल दसवीं में प्रवेश पाने वाले बच्चों का भविष्य अंधकार में भी लटक सकता है.
(क्रमशः जारी)

खेल बने नेताओं की जागीर

खेल बन गए हैं खिलवाड़
 
दबदबे के चक्कर में राजनेता नहीं छोडना चाहते कुर्सी
 
सरकार भी बोनी नजर आती है राजनेताओं के आगे
 
नेताओं की मनमानी से खेल जा रहे रसातल की ओर
 
बीमारी या निधन ही छुडवा सके हैं कुर्सी
 
(लिमटी खरे)

भारत गणराज्य विश्व का अनूठा देश होगा जहां खेल संघों की कुर्सी छुडवाना आसान बात नहीं है। रसूख का पर्याय बन चुकी खेल संघों की कुर्सी पर राजनेता बरसों बरस चिपके ही रहते हैं, और सरकार है कि इन राजनेताओं की मनमानी के आगे घुटने टेककर बेबस ही नजर आती है। राजनेताओं, नौकरशाहों, उद्योगपतियों को खेल संघों की कुर्सी से हटाना सरकार के बस की बात नहीं दिखती। नेता हैं कि दिशा निर्देशांे को भी ठेंगा दिखाने से बाज नहीं आते हैं।
 
खेल मंत्री की लाख कोशिशें भी परवान न चढ पाना इसका साफ उदहारण माना जा सकता है। खेल मंत्रालय ने इन नेताओं को कुर्सी से दूर रखने के लिए नए दिशा निर्देश (गाईड लाईन) तय कर दिए हैं, पर नेता हैं कि मानने को तैयार नहीं है। भारत में बचपन में खिलवाड शब्द का प्रयोग बहुतायत में किया जाता है। आज के खेल संघों को देखकर यह कहा जा सकता है कि देश में खेल अब खिलवाड बन गए हैं। नए दिशा निर्देशों के अनुसार कोई भी अध्यक्ष अधिकतम तीन और पदाधिकारी दो कार्यकाल ही पूरा कर सकता है।
 
महाराष्ट्र प्रदेश के पुणे से सांसद सुरेश कलमाडी पिछले 14 सालों से भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष बने हुए हैं। वर्ष 2000 से एशियाई एथलेटिक्स संघ के अध्यक्ष का पद भी कलमाडी के पास ही है। कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी भी कलमाडी पर खासी मेहरबान नजर आती हैं, यही कारण है कि वे संसद की रक्षा मामलों की स्थाई समिति के सदस्य भी हैं। इसी तरह विवादों से गहरा नाता रखने वाले जगदीश टाईटलर भारतीय जूडो फेडरेशन के अध्यक्ष पद पर बीस साल से काबिज हैं। वे भारतीय आलंपिक संघ के उपाध्यक्ष का ताज भी अपने ही सर पर रखे हुए हैं। कांग्रेस के इन वरिष्ठ नेता के सर पर जूडो की दिशा और दशा सुधारने की महती जवाबदारी है, पर आज भारतीय जूडो किस मुकाम पर है यह बात किसी से छिपी नहीं है।
 
अखिल भारतीय फुटबाल संघ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और केंद्रीय उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल अब इस संघ के अध्यक्ष की कुर्सी पर विराजमान हैं। इसी तरह भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा दस सालों से अखिल भारतीय टेनिस संघ के अध्यक्ष हैं। भारतीय ओलंपिक संघ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष विजय कुमार मलहोत्रा ने तो सारे रिकार्ड ध्वस्त कर दिए हैं, वे 1973 से भारतीय तीरंदाज संघ के अध्यक्ष पद पर जमे हुए हैं।
 
भारतीय बेडमिन्टन संघ के अध्यक्ष वी.के.वर्मा चौथी बार इसके अध्यक्ष बने हैं। वर्मा इसके अलावा एशियन बेडमिन्टन कनफडरेशन के सचिव और विश्व बेडमिन्टन फेडरेशन के उपाध्यक्ष भी हैं। हरियाणा के विधायक अजय सिंह चौटाला हरियाणा टेबिल टेनिस संघ पर अपना कब्जा 1987 से बनाए हुए हैं, वे सन 2000 से अखिल भारतीय टेबिल टेनिस संघ में अपनी जोरदार उपस्थिति भी दर्ज कराए हुए हैं। इसी तरह अभय सिंह चौटाला पिछले नौ सालों से भारतीय बाक्सिंग संघ पर अपनी दावेदारी बनाए हुए हैं। इन नियम कायदों को धता बताते हुए नानावटी ने भारतीय तैराकी संघ के सचिव की कुर्सी छटवीं बार संभाली है, वे 1984 से इस संघ में हैं।
 
कभी भारत गणराज्य की आन बान और शान का प्रतीक मानी जाने वाली भारतीय हाकी की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। अनेकानेक वर्षों से मठाधीशों के कब्जे से मुक्ति के लिए छटपटाती हाकी दम तोड चुकी है। आलम यह है कि अब लोगों के मानस पटल में इस महत्वपूर्ण राष्ट्रीय खेल के प्रति भावनाएं नगण्य ही मानी जा सकती हैं। 1994 में जब के.पी.एस.गिल ने भारतीय हाकी की बागडोर संभाली थी, जब से अब तक भारतीय हाकी टीम में एक दर्जन से ज्यादा कोच आकर चले गए पर हाकी का स्तर जस का तस ही बना हुआ है।
 
भारतीय हाकी की दुर्दशा इस कदर हो चुकी है कि सेड्रिक डिसूजा से लेकर वासुदेव भास्करन तक को उनके नाकाम रहने के लिए कटघरे में खडा न कर सका भारतीय हाकी संघ। इनमें एम.के.कौशिक ही सौभाग्यशाली माने जा सकते हैं, जिन्होंने 1998 में भारतीय हाकी को एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक दिलाया था, विडम्बना यह कि भारतीय हाकी पर कब्जा जमाए मठाधीशों ने उन्हें भी बर्खास्त कर दिया। भारतीय हाकी संघ इस बात से भी विचलित नहीं हुआ कि जर्मन कोच गेहार्ड रेच ने 2005 में भारतीय हाकी के कोच का पद यह कहकर त्याग दिया था कि हाकी संघ एक पागलखाना है।

जब भी फुटबाल की बात की जाती है तो वर्ल्ड कप के शोकीन रातों की नींद गवां देते हैं, यह कहीं और नहीं वरन भारत में ही होता है। बावजूद इसके भारत में फुटबाल का स्तर काफी नीचे ही माना जा सकता है। इस संघ पर भाई भतीजावाद के आरोप नए नहीं हैं। संघ के सचिव अल्वर्टो कोलाको ने आर्मोडो कोलाको की पुत्री जेनेविव को इस संघ में शामिल करने के साथ ही उसे नेशनल टीम का कोआर्डिनेटर तक बना दिया, जबकि जेनेविव का कहना है कि वे इस पद के लिए अभी अपरिपक्व ही हैं। संघ में यह चर्चा आम हो चुकी है कि कोलाको अब तानाशाह बनकर सामने आ रहे हैं।

इसी तरह भारतीय टेनिस संघ खन्ना बंधुओं के चंगुल से मुक्त होने छटपटा रहा है। खन्ना परिवार का टेनिस संघ पर कब्जा 1988 से बरकरार है। 1988 से 1993 तक राजकुमार खन्ना टेनिस संघ के सचिव तो 2000 तक इसके अध्यक्ष रहे। इसके बाद राजकुमार खन्ना ने अपनी विरासत अपने पुत्र अनिल खन्ना को सौंप दी जो आज तक सचिव पद पर कायम हैं। पुरूष एकल में शीर्ष एक सौ की सूची में एक भी भारतीय का न होना क्या टेनिस संघ की नाकामी को दर्शाने के लिए काफी नहीं है। पर्याप्त धन होने के बाद भी अगर सालों में सानिया मिर्जा आगे आएं वह भी तीन दशक बाद तो इसे क्या कहा जाएगा? महेश भूपति, लियंडर पेस और सोमदेव बर्मन ही टेनिस के आकाश में चमकते सितारे हैं।

निशानेबाजी के मामले में कभी अव्वल रहने वाला भारत आज इस क्षेत्र में दुर्दशा के आंसू बहाने पर मजबूर है। मशहूर निशानेबाज अभिनव बिंद्रा कई बार देश के खेल ढांचे पर न केवल बरसे हैं, वरन उन्होंने बीजिंग ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने का श्रेय भारतीय रायफल संघ को नहीं दिया। इस साल भी बिंद्रा और संघ के बीच काफी तकरार हुई इसका कारण यह था कि बिंद्रा नहीं चाहते थे कि उन्हंे ट्रायल के लिए बार बार हिन्दुस्तान न आना पडे।

इसी तरह निशाने बाजी के मसले पर एथेंस ओलंपिक में रजत पदक जीतने वाले राजवर्धन राठौर, और विश्व विजेता रोंजन सोढी पहले ही संघ की दादागिरी का शिकार हो चुके हैं। इन दोनों को कामनवेल्थ प्रतियोगिता से महज इसलिए बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था, क्योंकि दोनों ने पटियाला में ट्रायल का बहिष्कार इसलिए कर दिया था क्योंकि शाटगन रेंज तैयार नहीं थी।
 
एथलेटिक्स का जब भी नाम आता है तो हर किसी को स्कूली दिनों की याद आना स्वाभाविक है। स्कूली दिनों में हर कोई एथलेटिक्स का लुत्फ जरूर उठाता है। भले ही वह इस खेल में हिस्सेदार न बने पर दर्शक की भूमिका में जरूर ही रहता है। भारतीय एथलेटिक्स संघ के अध्यक्ष सुरेश कलमाडी के कार्यकाल में 90 के दशक में एथलेटिक्स संघ ने कुछ परचम लहराए पर अनेक एथलीट्स ने देश को शर्मसार किया है।

2000 में हरियाणा की डिस्क थ्रो खिलाडी सीमा अंतिल ने वर्ल्ड जूनियर चेंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता किन्तु डोप टेस्ट में पाजिटिव पाए जाने पर उन्हें बाद में अपना पदक लौटाना भी पडा था। बुसान एशियन गेम्स में सुनीता रानी का प्रकरण काफी चर्चित रहा। सुनीता रानी को डोप टेस्ट और लंबी जांच में पाजिटिव पाए जाने पर अपना पदक लौटाना पडा था। इसी तरह 2005 में हेलसिंकी में हुई विश्व प्रतियोगिता में नीलम जसवंत सिंह डोप टेस्ट में पाजिटिव पाई गईं और भारत का सर शर्म से झुक गया था।
भारत में खेल संघ एक दशक से पूरी तरह से राजनेता, नौकरशाह और उद्योगपतियों के घरों की लौंडी बनकर रह गए हैं। शानो शौकत और स्टेटस सिंबाल का प्रतीक बने खेल संघों से इन मोटी चमडी वालों को हटाना अब आसान बात नहीं रह गई है। लंबी असाध्य बीमारी और निधन के चलते ही ये लोग संघ से विदा होते हैं।

पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रियरंजन दासमुंशी 1986 से भारतीय फुटबाल संघ के अध्यक्ष थे। जब वे 2008 में गंभीर रूप से बीमार हुए तब जाकर उनके स्थान पर संघ के ही उपाध्यक्ष एवं केंद्रीय उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल को अध्यक्ष बनाया गया। इसी तरह पूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह जिनका निधन पिछले ही माह हुआ है, वे भी 1999 से नेशनल रायफल संघ के अध्यक्ष रहे हैं। कुल मिलाकर स्थिति परिस्थिति को देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि भारत गणराज्य में खेल अब खिलवाड बनकर रह गए हैं।

अनबोला चल रहा है शिवराज और विधायकों में

शिवराज और भाजपा विधायकों के बीच संवेदनहीनता की स्थिति निर्मित!

फोरलेन मामले में ग्यारह माह में नहीं हो सका विधायक सीएम संवाद

परांपरागत वोटर्स तक की परवाह नहीं भाजपा को

(लिमटी खरे)

सिवनी। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के कार्यकाल की महात्वाकांक्षी स्वर्णिम चतुभुर्ज सडक परियोजना के अंग बने उत्तर दक्षिण और पूर्व पश्चिम गलियारे में से एक नार्थ साउथ कारीडोर के सिवनी से होकर गुजरने के मामले में चल रहे विवादों के बारे में पिछले साल 22 अगस्त को भाजपा विधायकों के एक प्रतिनिधिमण्डल को आश्वासन देने के उपरांत आज तक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पलटकर विधायकों की ओर नहीं देखा है।

गौरतलब होगा कि पिछले साल 21 अगस्त को भगवान शिव के नाम पर बसे सिवनी जिले की भोली भाली जनता ने उत्तर दक्षिण गलियारे की फोरलेन के यहां से गुजरने को लेकर आशंकाओं कुशंकाओं के प्रकाश में आने के उपरांत अपना रोद्र रूप दिखाया था, और 21 अगस्त 2009 को सिवनी जिले के नागरिकों ने एतिहासिक जनता कर्फयू का आगाज किया था।

जनता का आक्रमक चेहरा देखकर भाजपा के विधायक श्रीमति नीता पटेरिया, कमल मस्कोले, श्रीमति शशि ठाकुर और सांसद के.डी.देशमुख सहित कांग्रेस के सांसद सदस्य बसोरी मसराम और विधायक ठाकुर हरवंश सिंह घबरा गए। भाजपा विधायकों ने अगले ही दिन मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को सिवनी वासियों की भावनाओं से आवगत कराया था।

इसके उपरांत भारतीय जनता पार्टी की सिवनी इकाई के माध्यम से एक पत्र विज्ञप्ति सिवनी की मीडिया की फिजां में तैर गई थी जिसमें उल्लेख किया गया था कि विधायकों ने सिवनी वासियों की भावनाओं से मुख्यमंत्री को आवगत कराया गया है, मुख्यमंत्री ने विधायकों की बात सुनकर सिवनी वासियों की भावनाओं का सम्मान करते हुए मध्य प्रदेश शासन की ओर से माननीय सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन इस प्रकरण के बारे में एक अधिवक्ता खडा करने और सिवनी वासियों का पक्ष रखने का आश्वासन दिया था।
अगस्त 2009 के उपरांत जुलाई 2010 तक फोरलेन विवाद के मसले में भारतीय जनता पार्टी के विधायकों ने पूरी तरह खामोशी अख्तियार कर रखी है। लगभग एक साल तक अगर मध्य प्रदेश में सत्ताधारी भाजपा के विधायक व्यक्तिगत तौर पर अगर अपने ही मुख्यमंत्री से सिवनी के हितों की बातों के बारे में चर्चा न कर पाएं हों तो इसे यही माना जा सकता है कि मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और उनके दल के विधायकों के बीच संवादहीनता की स्थिति बन चुकी है।

सिवनी जिले के जागरूक विधायकों ने इस बारे में विधानसभा में भी प्रश्न लगाना उचित नहीं समझा है। सिवनी जिले की जनता को आज भी इस बात की जानकारी नहीं है कि फोरलेन विवाद के मसले में मध्य प्रदेश की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी द्वारा देश के हृदय प्रदेश के सिवनी जिले के लोगों की भावनाओं के अनुरूप किस वकील को माननीय सर्वोच्च न्यायलय मंे खडा किया है, और उसने क्या कार्यवाही की है। यह प्रसंग साबित करता है कि सिवनी में सालों से भाजपा का परचम लहराने वाली भारतीय जनता पार्टी को उसके परंपरागत वोटर्स की कितनी फिकर है।