सोमवार, 19 जुलाई 2010

सीबीएसई के ताने बाने में उलझे विद़यार्थी


0 सीबीएसई मान्यता की कतार में खडे स्कूलों की तथा कथा
मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में सीबीएसई के नाम पर गोरखधंधा जमकर मचा हुआ है। सीबीएसई के नाम पर सुविधाओं के अभाव में संचालित हो रही शालाओं और गैर मान्यता प्राप्त शालाओं द्वारा सीबीएसई के नाम पर पालकों और विद्यार्थियों को जमकर लूटा जा रहा है। मध्य प्रदेश सरकार का शिक्षा विभाग ध्रतराष्ट्र की भूमिका मंे दोनों आंखों पर पट्टी बांधे सब कुछ देख सुन रहा है। न तो जिला प्रशासन को ही इस बारे में कार्यवाही करने का होश है और न ही जिला शिक्षा अधिकारी ही कोई रूचि ले रहे हैं। सांसद, विधायकों के साथ सारे जनसेवक सुसुप्तावस्था में ही सब कुछ होता देख रहे हैं। सीबीएसई का क्षेत्रीय कार्यालय राजस्थान के अजमेर में है सो वहां तक इसकी आवाज पहुंचना मुश्किल ही प्रतीत होता है। यही कारण है कि सिवनी में राज्य शासन के स्कूल बोर्ड और केंद्रीय शिक्षा बोर्ड के अधीन संचालित शालाओं में जबर्दस्त तरीके से लूट मची हुई है।
--------------------------------------- 

दस घंटे उलझाए रखा सेंट फ्रांसिस स्कूल ने अपने बच्चों को

सिवनी. वर्ष २०१० - २०११ के शैक्षणिक सत्र के आरंभ होने के साथ ही नगर में ईसाई मिशनरी द्वारा संचालित किए जाने वाले सेंट फ्रांसिस स्कूल द्वारा मंगलवार को अपने स्कूल में अध्ययनरत विद्यार्थियों को अकारण ही लगभग दस घंटे तक अटकाए रखा. मासूब अबोध बच्चे भूखे प्यासे स्कूल प्रबंधन के तुगलकी रवैए के चलते मंगलवार को सारा दिन हलाकान ही होते रहे.

प्राप्त जानकारी के अनुसार सेंट फ्रांसिस स्कूल द्वारा इस साल सीबीएसई बोर्ड से मान्यता की प्रक्रिया की जा रही है. इसी प्रक्रिया के तहत शाला प्रबंधन द्वारा जबलपुर मार्ग पर लगभग सात किलोमीटर दूर एक भूखण्ड पर भवन निर्माण का काम आरंभ किया गया था. कच्छप गति से चलने वाले उक्त निर्माण कार्य में अचानक पंख उस वक्त लगे जब सीबीएसई बोर्ड का जांच दल सेंट फ्रांसिस स्कूल में निरीक्षण को आया.

बताया जाता है कि उक्त जांच दल ने नए शैक्षणिक सत्र के आरंभ होने के साथ ही शाला को नए भवन में स्थानांतरित करने का आदेश दिया था. संभवतरू उसी के चलते शाला प्रबंधन ने आनन फानन ही बिना किसी ठोस कार्ययोजना को पालकों को पिछले शिक्षा सत्र की समाप्ति के समय ही नए शैक्षणिक सत्र को नए आधे अधूरे भवन में आरंभ कराने का तुगलकी फरमान सुना दिया था.
मजे की बात तो यह है कि सेंट फ्रांसिस स्कूल प्रबंधन द्वारा इसके उपरांत भी नए शाला भवन के निर्माण का काम मंथर गति से ही चलाया गया. आलम यह था कि शाला का नवीन शिक्षण सत्र आरंभ हो गया और शाला भवन के दक्षिणी दिशा में बहने वाले नाले के पास बाउंड्री वाल का काम आरंभ ही नहीं किया गया था. दैनिक यशोन्नति द्वारा पूर्व में जब इस मामले को प्रमुखता के साथ प्रकाशित किया था, तब जिला प्रशासन हरकत में आया. बताया जाता है कि जिला कलेक्टर सहित अनेक आला अफसरान ने मौके का मुआयना कर आवश्यक दिशा निर्देश भी सेंट फ्रांसिस स्कूल के शाला प्रबंधन को दिए थे.

यहां उल्लेखनीय होगा कि जब तक यह शाला सीबीएसई के हवाले नहीं हो जाती है तब तक राज्य शासन का पूरा नियंत्रण इस पर रहेगा. यह होने के बाद भी जिला शिक्षा अधिकारी के कानों में जूं भी नहीं रेंगी और उन्होंने शाला भवन की ओर रूख करना मुनासिब नहीं समझा. वर्तमान में भी शाला भवन पूरी तरह तैयार नहीं है.

आनन फानन में स्थानांतरित शाला भवन में तैयारियां पूरी न होने के कारण इस सेंट फ्रांसिस शाला के प्रबंधन को शुक्रवार से सोमवार तक का अवकाश घोषित करना पडा था. मंगलवार को जब शाला क सत्र आरंभ हुआ तब शहरी सीमा से लगभग पांच किलोमीटर दूर स्थित इस शाला भवन में स्टाफ और विद्यार्थियों को लाने ले जाने के लिए तीन यात्री बसों का इंतजाम किया गया था. विडम्बना ही कही जाएगी कि सेंट फ्रांसिस के प्रबंधन की अकुशलता और अदूरदर्शिता के परिणाम स्वरूप मंगलवार को दुधमुहे बच्चों को सुबह साढे छरू बजे घरे से निकलने पर मजबूर होना पडा और उनकी घर वापसी साढे चार बजे शाम तक बदस्तूर जारी रही.

जैसे ही दो बजने के बाद बच्चे घर नहीं पहुंचे बच्चों के अभिभावकों के मन में तरह तरह की शंकाएं आशंकाएं घुमडने लगीं. घडी का कांटा जैसे ही तीन बजने को स्पर्श किया वैसे ही पालकों के धैर्य और संयम का बांध टूट ही गया. चूंकि सेंट फ्रांसिस शाला के नए भवन में वर्तमान में दूरभाष है ही नहीं या है तो उसका नंबर किसी भी पालक के पास नहीं है, इसलिए पालकों की सांसे उपर की उपर नीचे की नीचे ही लटक गईं. अनेक पालकों द्वारा अपना जरूरी काम छोडकर शाला की ओर रूख करना आरंभ कर दिया. बाद में पता चला कि तीन बस के बाद भी बच्चों की संख्या अधिक होने के कारण एक बस दो फेरे करेगी अतरू बच्चों को अकारण ही शाला में रोका गया है.

उधर सीबीएसई के भरोसमंद सूत्रों का दावा है कि सीबीएसई का जांच दल इसी माह शाला भवन का निरीक्षण करने आने वाला है. सूत्रों ने आगे बताया कि सीबीएसई की आधिकारिक वेव साईट www.cbse.nic.in पर यह जानकारी भी उपलब्ध हो सकेगी कि इस शाला के निरीक्षण के लिए आने वाले जांच दल में किस केंद्रीय या नवोदय विद्यालय के प्राचार्य आने वाले हैं.
सेंट फ्रांसिस शाला में अध्ययनरत बच्चों के अभिभावकों के बीच चल रही चर्चाओं के अनुसार उनके द्वारा यह प्रयास किया जा रहा है कि शाला के निरीक्षण को आने वाले जांच दल से किसी प्रकार संपर्क हो जाए और वे उन्हें इस हकीकत से आवगत करा सकें कि शाला प्रबंधन द्वारा उनके बच्चों के साथ किस कदर अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है. साथ ही साथ कुछ अभिभावक तो बाकायदा वीडियो केमरा लेकर निरीक्षण के लिए आने वाले जांच दल से इस बारे में पूछताछ करेंगे कि जो भवन उन्होंने मौके पर देखा है वह सीबीएसई बोर्ड के मानकों के हिसाब से है कि नहीं अगर नहीं है तो क्या वे अपने प्रतिवेदन में इसका उल्लेख करेंगे. चर्चा तो यहां तक भी है कि सीबीएसई का एफीलेशन लेने के लिए सैटिंग का सहारा भी लिया जाता है. इस मामले में अभिभावकों सहित अनेक नागरिेकों ने सीबीएसई बोर्ड की वेव साईट को भी कई बार खंगाला है. चर्चा है कि अगर वाकई निरीक्षण दल के सदस्यों से पहले ही चर्चा कर वस्तुस्थिति बता दी गई तो शाला प्रबंधन की मुश्किलें बढने में देर नहीं लगेगी.
(क्रमशः जारी)

देश के शहीद सपूत को भूले कमल नाथ

ये है दिल्ली मेरी जान
(लिमटी खरे)

कांग्रेस ने नकारा शहीद मेजर को!
सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस पार्टी के पास जम्मू में आतंकवादियों से मुटभेड के दौरान शहीद हुए मध्य प्रदेश के छिंदवाडा जिले के वीर सपूत मेजर अमित ठेंगे को श्रृद्धासुमन अर्पित करने का वक्त तक नहीं है। शुक्रवार को जब मेजर का शव उनके गृह जिले छिंदवाडा पहुंचा तब उन्हें श्रृद्धांजली अर्पित करने भाजपा के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित बडी संख्या में भाजपा विधायक और कार्यकर्ता मौजूद रहे, अपने लाडले सपूत की अंतिम यात्रा में समूचा जिला उमड पडा, नहीं पहुंचे तो छिंदवाडा संसदीय क्षेत्र का तीस साल से प्रतिनिधित्व करने वाले केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ। मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर छिंदवाडा में शहीद मेजर का स्मारक और उनके नाम पर सडक का नामकरण करने की घोषणा भी की। मेजर के अंतिम दर्शन और यात्रा में हजारों लोगों की उपस्थिति इस बात का घोतक रही कि जिला अपने सपूत की शहादत पर नाज कर रहा था। इस अवसर पर कांग्रेस का रूख लोगों में चर्चा का विषय बना रहा। बात बात पर छिंदवाडा को अपने दिल में बसाने की दुहाई देने वाले केंद्रीय मंत्री कमल नाथ का उपस्थित न होना भी खासा चर्चित रहा। कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिए कि यह शहादत किसी भाजपा के कार्यकर्ता की नहीं वरन् देश के सिपाही की थी, जिसे अंतिम सलाम पहुंचाने कांग्रेस के विधायकों विशेषकर तीन दशक से इस जिले का प्रतिनिधित्व करने वाले कमल नाथ को तो उपस्थित होना था। हो सकता है कमल नाथ की प्रतिबद्धताओं और प्राथमिकताओं में छिंदवाडा जिला निचली पायदान पर खिसक गया हो, और फिर यह मामला तो छिंदवाडा नहीं देश के सपूत का था।
उमा फेक्टर ले डूबेगा सोनी को
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के वरिष्ठ नेता और भाजपा के मध्य प्रदेश के राजनैतिक पर्यवेक्षक सुरेश सोनी का कद कम होने के आसार दिखने लगे हैं। उमा भारती की घर वापसी में अडंगा लगाने की खबरों के चलते सुरेश सोनी पर संघ की नजरें इनायत होने की संभावना जताई जा रही है। संघ के आला दर्जे के सूत्रों का दावा है कि उमा भारती की भाजपा में वापसी के मामले में सुरेश सोनी ‘‘क्लीन हेण्ड‘‘ से कोई काम नहीं कर रहे हैं। सोनी जानते हैं कि उमा भारती की वापसी कोई और नहीं संघ ही चाह रहा है, फिर भी सोनी के द्वारा परोक्ष तौर पर की जाने वाली उठापटक से संघ बुरी तरह खफा है। सूत्रों का कहना है कि संघ नेतृत्व इस बात पर आश्वस्त हो गया है कि उमा भारती की वापसी से हिन्दु हितों को साधने वाली ताकतों को मजबूती मिलेगी और इसका प्रत्यक्ष और परोक्ष लाभ भाजपा को ही मिलेगा। संघ अब सोनी की पुरानी फाईल को भी खंगाल रहा है। सोनी पर आरोप लग रहे हैं कि वे राजनैतिक तौर पर स्वयं ही सक्रिय भूमिका निभाकर अपना ही एक धडा खडा करने के लिए प्रयास रत थे। सूत्रों का कहना है कि सुरेश सोनी का स्थान मदन दास देवी ले सकते हैं।
बाबा आदम के जमाने की लेबर मिनिस्ट्री
कांग्रेसनीत संप्रग सरकार का सर उस वक्त शर्म से नीचा हुआ होगा जब संचार क्रांति के जनक समझे जाने वाले कांग्रेस के ही पूर्व प्रधानमंत्री स्व.राजीव गांधी के इक्कसवीं सदी के सपनों को इसी कांग्रेस ने तार तार होते देखा होगा। इक्कसवीं सदी का पहला दशक बीतने को है, और भारत गणराज्य का श्रम मंत्रालय आज भी बाबा आदम के जमाने में ही सांसे ले रहा है। विमल कुमार खेमानी नामक एक व्यक्ति ने सूचना के अधिकार के तहत श्रम मंत्रालय से जानकारी चाही थी। इस जानकारी में उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और उद्यमों की सूची मांगी थी, जिन पर ठेका श्रमिक कानून के तहत दण्डित किया गया हो या मुकदमा चलाया गया हो। खेमानी को देश भर की जानकारी तो मिली पर आधी अधूरी। इस पर उन्होंने सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया। पूरे मामले को देखकर आयोग की भवें तनीं और उन्होंने श्रम मंत्रालय को फटकारते हुए टिप्पणी की कि एसा प्रतीत होता है कि मंत्रालय आज भी इक्कीसवीं सदी मंे नहीं पहुंचा है, और अपने रिकार्ड कम्पयूटरीकृत नहीं किए हैं। गौरतलब है कि कांग्रेसनीत संप्रग सरकार 2004 से सत्ता पर काबिज है, और कांग्रेस की अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी और कोई नहीं वरन् स्व.राजीव गांधी की पत्नि हैं।
थरूर के बाद फिर चर्चा में ट्विटर
राजनयिक से जनसेवक बने पूर्व विदेश मंत्री शशि थरूर के विदेश राज्य मंत्री रहते हुए सोशल नेटवर्किंग वेव साईट ट्विटर का जादू भारत गणराज्य में सर चढकर बोल रहा था। थरूर के मंत्री मण्डल से बिदा होते ही ट्विटर की ट्विट ट्विट खामोश हो गई। एक बार फिर ट्विटर चर्चा में आ गया है, वह भी योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया और भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ के आमने सामने आते ही। हुआ यूं कि कमल नाथ और अहलूवालिया के बीच चल रहे बयान युद्ध में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अनिल शास्त्री ने भी अपनी तलवार ढाल उठा ली है। वे कमल नाथ के समर्थन में सामने आ गए हैं। ट्विटर पर लिखे अपने विचारों में शास्त्री कहते हैं कि सरकार चलाने की जवाबदारी निर्वाचित प्रतिनिधियों की होती है, संसद में माध्यम से वह निर्वाचकों के प्रति जवाबदेह होता है। शास्त्री का कहना है कि यह जनादेश योजना आयोग को प्राप्त नहीं होता है। अब अनिल शास्त्री को जनादेश का मतलब भला कौन समझाए और कौन उन्हें समझाए कि निर्वाचित प्रतिनिधि अपने निर्वाचकों के प्रति कितने जवाबदेह रह गए हैं?
शिव के राज में 26 तरह के कर्ज से दबे हैं लोग
भारत गणराज्य के हृदय प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली सरकार के राज में मध्य प्रदेश के निवासी 26 तरह के करों के बोझ से दबे कराह रहे हैं, और शिवराज हैं कि नीरो की तरह चैन की बंसी बजा रहे हैं। आसमान छूती मंहगाई में मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार करों की वसूली में तो पूरी तरह मुस्तैद है, किन्तु जब सूबे की जनता को सुख सुविधाओं को देने की बात आती है तो सरकार खाली खजाने का रोना लेकर बैठ जाती है। सवाल यह उठता है कि आखिर करों के माध्यम से वसूला गया राजस्व जाता कहां है? इसका उत्तर भी साफ है नौकरशाह और जनसेवकों के वेतन भत्तों और सुख सुविधाओं के लिए इस खजाने को खोला जाता है। प्रदेश में इन दिनों वेट, सेवाकर के आलवा सरचार्ज के रूप में शिक्षा, चुंगी, भूमि, भवन, संपत्ति, मनोरंजन, प्रवेश कर, विलासिता कर, टोल टेक्स, पथ कर, मंडी कर, स्टाम्प डियूटी, तेल पर सेस, एयर पेसेेजर कर, पेशेवर कर, केंद्रीय कर, केंद्रीय आबकारी शुल्क, गुमास्ता, प्रकाश, सफाई, पानी, एयर फ्यूल कर आदि के रूप में आम आदमी की जेब हल्की ही की जा रही है। शिव के राज में यह आलम है भारत के हृदय प्रदेश की जनता का।
दिल्ली वाकई दिलवाालों की
देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली वाकई दिलवालों की ही है। भारत ही नहीं वरन् समूची दुनिया के लोगों को लुभा रहा है देश में दिल्ली शहर। यह बात केंद्रीय पर्यटन विभाग, राजस्थान पर्यटन विभाग और फिक्की द्वारा संयुक्त तौर पर कराए एक प्रोग्राम में उभरकर सामने आई है। वर्ष 2008 में दिल्ली में 23 लाख 40 हजार पर्यटकों ने दिल्ली में आमद दी, जबकि महाराष्ट्र प्रदेश में इसकी संख्या 26 लाख 60 हजार थी। दिल्ली वैसे भी मुगल सल्तनत के वक्त से सत्ता का केंद्र ही रही है। मुगलों के उपरांत ब्रितानियों को भी दिल्ली बहुत भाई। दिल्ली में आज भी मुगलकालीन और ब्रितानी हुकूमत की दास्तान कहती इमारतें मौजूद हैं, जो सैलानियों को लुभाने में कारगर साबित हो रही हैं। यहां की इमारतें, हेल्थ केयर सेंटर और बिजनेस हब के साथ ही साथ दिल्ली से सटे इलाके, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) नोएडा, गुडगांव, गाजियाबाद, ग्रेटर नोएडा और फरीदाबाद शहर भी लोगोें के आकर्षण का केंद्र बिन्दु बन गए हैं।
मोनी बाबा की चुप्पी से राजमाता भयाक्रांत
पिछले कुछ सालों से मोनी बाबा का अवतार ओढने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री कुंवर अर्जुन सिंह की चुप्पी से कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी काफी विचलित दिखाई पड रही हैं। मनमोहन सिंह की दूसरी पारी में दूध में से मलाई की तरह निकाल दिए गए पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री कुंवर अर्जुन सिंह ने पिछले एक साल से अपना मौन नहीं तोडा है। इसी बीच बिल्ली के भाग से छीका टूटा की तर्ज पर भोपाल गैस कांड में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की भूमिका पर प्रश्न चिन्ह लग गए। संयोग से उस वक्त मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री हुआ करते थे कुंवर अर्जुन सिंह। इस मामले मंे अर्जुन सिंह का बयान आया कि वे भोपाल गैस कांड का सच अपनी आत्मकथा में लिखेंगे। अब सियासी फिजां में यह तैर गया है कि राज्य सभा के 20 जुलाई से आहूत सत्र में वे भोपाल गैस कांड के सच को उजागर करेंगे। जैसे ही यह बात राजनैतिक वीथिकाओं में गूंजी, वैसे ही कांग्रेस के प्रबंधकों की पेशानी पर पसीने की बूंदे छलक गईं। प्रबंधकों ने कुंवर अर्जुन सिंह जैसे राजनेता के पूर्व के कदम तालों को देखकर कांग्रेस की राजमाता को इसके अच्छे और बुरे परिणामों से आवगत करा दिया है। कांग्रेस की कोशिश होगी कि उन्हें राज्य सभा में कांग्रेस की ओर से बोलने का मौका न दिया जाए, पर अगर विपक्ष के किसी सदस्य ने उनका नाम लेकर टिप्पणी कर दी जाती है तो सदन के सदस्य होने के नाते वे इसका जवाब देने स्वतंत्र होंगे।
दादा भाई की चाहत ले डूबी छोटे राजा को
अपने बडे भाई दिग्विजय सिंह से अनबन होने पर 2004 में कांग्रेस की रीतियों नीतियों से रूष्ट होकर भारतीय जनता पार्टी का दामन संभालने वाले छोटे राजा अर्थात लक्ष्मण सिंह को उनके बडे भाई राजा दिग्विजय सिंह की चाहत ले डूबी है। भाजपा के निजाम नितिन गडकरी और कांग्रेस के महासचिव राजा दिग्विजय सिंह के बीच अफजल गुरू को कांग्रेस का ‘‘दमाद‘‘ कहने पर वाक युद्ध छिडा हुआ है। दोनों ही एक दूसरे को तबियत से लानत मलानत भेज रहे हैं। इन दोनों का झगडा स्तरहीनता तक उतरकर असंसदीय होता जा रहा है। खून आखिर खून को ही पुकारता है। इस झगडे में अपने दादा भाई अर्थात दिग्विजय सिंह की किरकिरी होती देख पूर्व सांसद लक्ष्मण सिंह का भातृप्रेम जागृत हुआ और उन्होने गडकरी के खिलाफ ही बयानबाजी कर डाली और उन्हें माफी मांगने तक को कह दिया। फिर क्या था, गडकरी के निर्देश पर सूबे के अध्यक्ष प्रभात झा ने अनुशासनात्मक कार्यवाही करते हुए छोटे राजा को पार्टी से बार का रास्ता दिखा दिया। भाजपा से निष्काशित होते ही लक्ष्मण सिंह ने भाजपा पर हिटलरशाही का कब्जा होना बताकर नई बहस छेड दी है।
महाराज को प्रोजेक्ट करने की तैयारी
देश के हृदय प्रदेश में लगातार दूसरी बार विधानसभा चुनावों में औंधी गिरी कांग्रेस अब अपनी साख बचाने की रणनीति पर काम कर रही है। कांग्रेस के प्रबंधक इस जुगत में लगे हुए हैं कि मध्य प्रदेश की कमान किसके हाथों सौंपी जाए ताकि खोई साख को वापस लाया जा सके। मध्य प्रदेश के कद्दवर नेता कुंवर अर्जुन सिंह अब काफी उमर दराज हो चुके हैं। कमल नाथ ने पिछले कई सालों में प्रदेश से कोई मोह नहीं दिखाया है। सुरेश पचौरी का नेतृत्व कोई चमत्कार नहीं कर सका। राजा दिग्विजय सिंह के दस साल चुनाव न लडने के कौल के चलते वे इस दौड से बाहर हैं। इसके अलावा प्रदेश में पहली पंक्ति मंे सबकी नजरें आकर टिक जाती हैं, ग्वालियर के महराज और युवा तुर्क ज्योतिरादित्य सिंधिया पर। वैसे तो कांग्रेस के सबसे ताकतवर महासचिव राजा दिग्विजय सिंह की ज्योतिरादित्य से बनती नहीं है, पर बाकी सभी को ठिकाने लगाने के लिए राजा द्वारा सिंधिया को समर्थन दिया जा सकता है। हो सकता है अपनी गहरी चाल और जहर बुझे तीरों के द्वारा राजा एक बार महाराजा को एमपी कांग्रेस का चीफ बनवाकर उन्हें ही सीएम प्रोजेक्ट कर चुनाव लडवाने में अपनी सहमति दे दें, फिर आने वाले समय में . . .।
10 के सिक्के बाजार से गायब!
भारत गणराज्य के रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने भारतीय बाजार में दस रूपए सममूल्य के सिक्कों को लगभग एक साल पहले बाजार में उतारा था। आश्चर्य की बात यह है कि इस तरह के सिक्के बाजार से एकदम गायब ही हैं। आरबीआई के दावे को अगर सच माना जाए तो उसने बाजार में अस्सी करोड रूपए सममूल्य के आठ करोड सिक्के बाजार में भेजे थे। सवा सौ करोड की आबादी में ये आठ करोड सिक्के किस कोने में जाकर खो गए हैं, यह गुत्थी सुलझ नहीं सकी है। कुछ लोगों का मानना है कि जिस तरह पूर्व में यूरो बाजार से गायब हुआ था, उसी तर्ज पर लोगों ने इसे यादगार के तौर पर अपने पास सहेजकर रख लिया है। आज आलम यह है कि बाजार में आठ ग्राम के इस सिक्के को खोजे से लोग ढूंढने में नाकाम ही हैं। माना जा रहा है कि एक और दो रूपए के नोट की हालत बेहद जर्जर हो चुकी है, और इस सममूल्य के सिक्कों की मांग जबर्दस्त तरीके से है। पांच रूपए सममूल्य के सिक्के भी बाजार में दिखाई पड जाते हैं, पर दस रूपए के नोट अच्छी हालत में होने के कारण लोग इसके विकल्प के तौर पर सिक्के को ज्यादा स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं।
गर्मा सकता है भोपाल गैस कांड मामला
26 साल पहले भारत गणराज्य के हृदय प्रदेश में हुए विश्व के सबसे बडे औद्योगिक हादसे के बाद इस मामले में इस साल फैसला आने के बाद एकाएक उबाल आया था, किन्तु तेल की कीमतों में उछाल लाकर केंद्र सरकार ने इस गुब्बारे की हवा पूरी तरह से निकाल दी है। बीस हजार से अधिक लोगों के कातिल यूनियन कार्बाईड के तत्कालीन प्रमुख वारेन एण्डरसन को व्हीव्हीआईपी ट्रीट मेंट देने के बाद भी सीना तानकर खडे देश के नौकरशाह और राजनेताओं को क्या कहा जाए। हाल ही में भारत के प्रधान न्यायधीश जस्टिस जे.एस.वर्मा का दिल इस मामले में पसीजा है। दिल्ली में एक कार्यक्रम में शिरकत के दरम्यान उन्होंने कहा कि भोपाल गैस कांड में न्याय दिलाना हर देशवासी की सामूहिक जिम्मेवारी बनती है, और इसको निभाने के लिए वे तैयार हैं। जस्टिस वर्मा के अनुसार इस हादसे के किसी भी व्यक्ति को वे अपनी कानूनी सेवाएं देने को तैयार हैं। जस्टिस वर्मा के इस जज्बे को सलाम किया जाना चाहिए।
हाथों हाथ लिया पीएम के फर्जी सलाहकार को!
अतिसंवेदनशील जम्मू काश्मीर पुलिस का कारनामा इतना जोरदार है कि हर कोई देश की आंतरिक सुरक्षा को लेकर फिकर मंद हो सकता है। भारत के प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह के एक फर्जी सलाहकार को जम्मू काश्मीर पुलिस ने हाथों हाथ लिया और दो दिन तक उसकी मिजाज पुरसी में व्यस्त रही। बताते हैं कि भारत गणराज्य के प्रधानमत्री डॉ.मनमोहन सिंह की नाम रािश दिल्ली के हरिनगर के निवासी किसी मनमोहन सिंह के त्रिकुटा पर्वत पर विराजीं माता वेष्णो देवी के दर्शन के पूर्व जम्मू पुलिस को एक फोन आया। फोन पंजाब पुलिस मुख्यालय से आना बताया गया था, जिसमें पीएम के सलाकार मनमोहन सिंह का वेष्णो देवी के दर्शन का कार्यक्रम बताया गया था। फिर क्या था जम्मू पुलिस ने अपने जवानों को उस फर्जी सलाहकार की सेवा टहल में लगा दिया। माता के दर्शनों के लिए उसे बेटरी चलित कार भी मुहैया करवा दी गई, वह भी प्रथक से। मामला तब बिगडा जब माता रानी श्राईन बोर्ड ने उनसे बिल का भोगमान भोगने की बात कही। बात में पता चला कि वे तो नकली सलाहकार हैं, तब उन्हें जेल में डाल दिया गया। यह आलम है संवेदनशील जम्मू पुलिस का।
बदल सकता है फिल्मों का ग्रेडिंग सिस्टम
केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा रूपहले पर्दे के चलचित्रों का ग्रेडिंग सिस्टम तय करने की गरज से सिनेमेटोग्राफी अधिनियम 2010 का मसौदा तैयार कर लिया है, जो पुराने बिल 1952 का स्थान ले सकता है। यह मसौदा अंतर्राष्ट्रीय मानकों को ध्यान मंे रखकर तैयार किया गया है। वर्तमान में भारत में सभी के लिए यू श्रेणी की, व्यस्क के साथ यू/ए तथा सिर्फ व्यस्क के लिए ए श्रेणी की रेटिंग तय है। नवीन व्यवस्था में यू, 12 प्लस, 15 प्लस और ए श्रेणी का प्रावधान किया जाने वाला है। गौरतलब है कि वर्तमान में यू श्रेणी के चलचित्र भी नग्नता से परिपूर्ण ही हुआ करते हैं। वैसे चलचित्र के ग्रेडिंग सिस्टम को सुधारने के पहले सूचना और प्रसारण मंत्रालय को छोटे पर्दे के सीरियल पर लगाम कसना आवश्यक है, क्योंकि पिछले कुछ सालों से टीवी पर दिखाए जाने वाले सीरियल से परिवार में विघटन के साथ ही साथ लोगों में नशे की प्रवृति मंे तेजी से इजाफा ही हुआ है।
पुच्छल तारा
देश में जनसेवा, देशसेवा जैसी बातें अब इतिहास की बात हो गईं हैं। सरकार पर भी इन सारी बातों का कोई असर होता नहीं दिख रहा है। चहुं ओर सिर्फ और सिर्फ क्रिकेट का जादू सर चढकर बोल रहा है। इसी बात को रेखांकित करते हुए छत्तीसगढ रायुपर से फिरोज खान ने एक एसएमएस भेजा है। वे लिखते हैं कि क्या आप जानते हैं कि बिना जीते ही ट्वंटी ट्वंटी क्रिकेट में इंडियन क्रिकेटर को तीन तीन करोड रूपए दिए गए हैं। विडम्बना देखिए कि नक्सलवादियों से लडते हुए शहीद हुए 76 जवानों को इसी भारत गणराज्य की सरकार ने एक एक लाख रूपए देने की सिर्फ घोषणा ही की है। फिरोज खान का अनुरोध है कि इस एसएमएस को तब तक फारवर्ड किया जाए जब तक यह भारत के प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह तक न पहुंच जाए।