गुरुवार, 8 जुलाई 2010

एमपी के मंत्रियों की मौजां ही मौजां


पगार बढवाने के बाद सरकार, अब चाहिए बंगला और कार

चुसता तो आखिर रियाया का ही खून

सरकारी बंगले हैं पर चाहिए भव्य और बडी अट्टालिकाएं

आप जनसेवक हैं, राजा समझने की भूल न करें मंत्रीवर

शिव राज में जनता बेहाल

चुनाव के वक्त जनता भगवान, चुनाव बाद नेता पहलवान

(लिमटी खरे)

भारत गणराज्य की स्थापना के उपरांत देश में प्रजातंत्र की स्थापना की गई थी। प्रजातंत्र का अर्थ है, जनता का, जनता द्वारा और जनता के लिए शासन। इसकी अवधारणा जिस वक्त रखी गई थी तब एसा सोचा गया था। आज के समय में यह अवधारणा बदल चुकी है। अब यह मामला जनसेवक का, जनसेवक द्वारा जनसेवक के लिए बन चुकी है। आज के समय में सांसद और विधायक पूरी तरह से अपने ही आप पर केंद्रित निहित स्वार्थों की राह पर खुद को देश को ले जाने लगे हैं। देश पर राज करने वाले जनसेवक अपने आप को जनता का सेवक बताकर बर्ताव राजा के मानिंद कर रहे हैं, देश और प्रदेशों के मंत्री अपने आप को जनसेवक के बजाए राज करने वाला समझकर यह सोच रहे हैं कि देश में आज भी आजादी पूर्व की सामंतशाही जीवित है। मंत्रियों के लिए नौकरशाह उनके लिए उनके गण और जनता उनकी जरखरीद गुलाम हो चुकी है, वे जो चाहें वो कर सकते हैं।

माले मुफ्त अर्थात सब कुछ निशुल्क पाने वाले जनसेवकों ने अपने सेवाकाल में भारी भरकम पगार और सेवानिवृत्ति के उपरांत खासी पेंशन की व्यवस्था करने के बाद अब मंत्रियों को भव्य अट्टालिका और मंहगी विलासिता भरी गाडियों की दरकार होना आश्चर्यजनक है। एक ओर देश के हृदय प्रदेश की शिवराज के नेतृत्व वाली सरकार के राज में आवाम करों के बोझ से बुरी तरह कराह रही है, वहीं दूसरी ओर मंत्रियों के दबाव में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा मंत्रियों के लिए करोडों की लागत से बनने वाले बंगलों के लिए स्थान चयन की हरी झंडी देना निश्चित तौर पर उनका दुस्साहस ही माना जाएगा।

गौरतलब है कि वर्तमान में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में मंत्रियों के लिए चोहत्तर बंगला, चार इमली, करबला, पेंतालीस बंगला, पुराना सचिवालय, प्रोफेसर कालोनी, श्यामला हिल्स आदि इलाकों में हैं। नए भोपाल से लेकर पुराने भोपाल तक मंत्रियों के आवास छितरे पडे हुए हैं। मंत्री को जब पद और गोपनीयता की शपथ दिलवाने के बाद उसे आवास आवंटित किया जाता है तब उसके सरकारी आवास में पिन टू प्लेन सब कुछ सरकारी खर्च पर होता है। अर्थात कप प्लेट गिलास चम्मच से लेकर बिस्तर तोलिया तक सरकार मुहैया करवाती है। मंत्री को तो बस अपने कपडे का बक्सुआ (सूटकेस) लेकर उस आवास में जाना होता है। सवाल यह है कि जब मंत्री को एक सूटकेस उठाकर ही दूसरे आवास में जाना है तो फिर इन आवासों को वर्तमान में एक जगह पर ही क्यों नहीं कर दिया जाता है? क्यों किसी मंत्री के आवास को नई नवेली दुल्हन की तरह सजाने में लाखों करोडों रूपए हर बार फूंके जाते हैं।

हमारे कहने का तात्पर्य महज इतना है कि जिस तरह जिला मुख्यालय में पुलिस अधीक्षक और जिला दण्डाधिकारी के मकान ईयर मार्क होते हैं, राज्य की राजधानी में महामहिम राज्यपाल और मुख्यमंत्री के आवास चिन्हित होते हैं, उसी तरह विभागों के आवास चिन्हित कर दिए जाने चाहिए जिससे जिस विभाग का मंत्री उसे वही आवास मिले। विभाग बदले जाने पर वह मंत्री अपना बक्सुआ लेकर दूसरे आवास में चला जाए। वस्तुतः एसा होता नहीं है। मंत्रीगण तो सरकारी आवास को अपनी जागीर समझ लेते हैं। एक बार मंत्री पद से हटने के बाद भी वे आवास को अपनी मिल्कियत समझकर उसको छोडने से कतराते हैं, अनेेक जनसेवक तो बंगले से भावनात्मक लगाव को दर्शाकर इमोशनल अत्याचार करने से नहीं चूकते हैं।

मध्य प्रदेश के गृहमंत्री उमाशंकर गुप्ता का यह सुझाव स्वागत योग्य कहा जाएगा कि अगर मंत्रियों के आवास एक ही स्थान पर होंगे तो आगंतुकों को आने में कोई असुविधा नहीं होगी। सच है आज कोई मंत्री करबला में रह रहा है तो दूसरा उससे लगभग दस किलोमीटर दूर चार इमली में। आगंतुकों का इन मंत्रियों के घरों में जाने से तेल निकल जाता है। हमारा सुझाव है कि उमा शंकर गुप्ता की बात पर अमल करते हुए 74 बंगला या चार इमली के आवासों को विभागीय मंत्रियों के लिए चिन्हित कर दिया जाए। वैसे 45 बंगले के आवास भी मंत्रियों के हिसाब से उचित हैं, हां इन आवासों में रहने से उनके रूतबे में कमी जरूर हो सकती है।

वस्तुतः मंत्रियों के मन में ‘‘तेरी साडी मेरी साडी से सफेद कैसे?‘‘ की भावना रहती है। बडा भव्य बंगला, हरा भरा लान, लाल बत्ती का काफिला यह सब आजकल मंत्रियों के लिए शो ऑफ मेटेरियल बन चुका है। एक मंत्री के बंगला दफ्तर के बारे में दूसरे मंत्री के सामने अगर तारीफ कर दी जाए तो सुनने वाला मंत्री तत्काल पहले मंत्री से अच्छा कार्यालय बनाने का फरमान जारी कर देता है। मंत्री के आवासीय कार्यायल का रंग रोगन आखिर किस मद से किया जाता है। लोक निर्माण विभाग के पास सीमित बजट ही होता है, लोक कर्म विभाग का बजट इन मंत्रियों की फेहरिस्त के सामने उंट के मुंह में जीरा ही साबित होता है। फिर टोपी उछलकर विभाग के उपर ही आती है। विभाग में होशियार, चालाक और चपल (भ्रष्टतम समझे जाने वाले चापलूस अधिकारी कर्मचारी) मुलाजिमों द्वारा अपने मंत्री की मंशा को समझकर उनके हिसाब से सारा काम करवा देते हैं। इस तरह भ्रष्टाचार का अनवरत चलने वाला यह चक्र कभी टूट ही नहीं पाता है। चुनाव के दौरान जनता जनार्दन को सर पर बिठाकर भगवान मान लुभावने वादों से पाट देते हैं सारे माहौल को, किन्तु चुनाव के उपरांत नेताजी को अपनी जनता की कोई कदर नहीं रहती है।

पगार और पेंशन तो बढ गई, अब ‘‘इक बंगला बने न्यारा‘‘ की फरमाईश भी पूरी होने वाली है तो लगे हाथ क्यों न वाहन को भी सजीला सा अपना लिया जाए। भारत के इथोपिया माने जाने वाले मध्य प्रदेश में यहां राज करने वाली भाजपा सरकार और उसके मंत्रियों को देखिए। एक समय था जब एम्बेसडर कार को राजा गाडी माना जाता था। ‘स्टेटस सिंबल‘ होती थी इसकी सवारी। मंत्रियों मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्रियों सभी की पहली पसंद हुआ करती थी एम्बेसेडर कार। कालांतर में नई मंहगी विलासिता भरी गाडियों के सडकों में उतरने के बाद जनसेवकों की नीयत इस पर डोलने लगी।

अगर आप विधायक या सांसद हैं तो आप निजी तौर पर मंहगी विलासिता भरी गाडी में फर्राटा भर सकते हैं, पर अगर आप मंत्री हैं तो आपको निश्चित तौर पर प्रोटोकाल को निभाना ही होगा। स्टेट गैरेज से आपको आवंटित वाहन में सफर करना आपकी मजबूरी होगी। भले ही आप दूसरे वाहन में सफर करें किन्तु आपके काफिले में वह वाहन होना अनिवार्य है। स्टेट गैरिज की मजबूरी है कि उसके पास एम्बेसेडर कार की भरमार है। मंत्रीपद ग्रहण करने के बाद मध्य प्रदेश पर्यटन विकास निगम द्वारा किराए के लग्जरी वाहन चंद दिनों के लिए मंत्रियों को मुहैया करवाए जाते हैं, किन्तु बाद में उन्हें स्टेट गैरेज की पुरानी एम्बेसडर कार से ही संतोष करना होता है। अरे इन मंत्रियों को छोडिए, स्टेटस सिंबाल के लिए ‘‘जेड प्लस‘‘ केटेगरी की सुरक्षा लेने वाले जनसेवक भी जब कहीं दौरे पर जाते हैं तो वे बुलट प्रूफ एम्बेसेडर में बेठने से बचते ही हैं, क्योंकि इसके कांच नहीं खुलते और कांच नहीं खुलेंगे तो नेता जी अपने समर्थकों का हाथ हिलाकर अभिवादन कैसे कर पाएंगे। इस बारे में राज्य शासन के गृह विभाग द्वारा कभी केंद्रीय गृह विभाग को नहीं बताया जाता कि जिसे अपने ही देश के नागरिकों से खतरा होने के कारण आपने जेड प्लस केटगरी की सुरक्षा दी है, उसे जनता के बीच जाते समय उस जेड प्लस की आवश्यक्ता नहीं है। अनेक माननीयों को सरकार द्वारा दिए गए गनमेन उनके लिए खलासी का काम करते हैं।

एम्बेसेडर से उब चुके मध्य प्रदेश के मंत्रियों को अब इनोवा और सफारी जैसी विलासिता भरी गाडियों की दरकार है। राज्य शासन इस बारे में गंभीरता से विचार भी कर रहा है। भव्य अट्टालिकाएं, विलासिता भरी गाडियां, मोटी पगार वेतन भत्ते, सब कुछ निशुल्क क्या आप इन परिस्थितियों में कह सकते हैं कि देश का हृदय प्रदेश मध्य प्रदेश गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहा है। हालात तो बता रहे हैं कि गरीब भारत गणराज्य के अंदर सोने की चिडिया कहीं चहक रही है तो वह देश के हृदय प्रदेश अर्थात मध्य प्रदेश में।

मीडिया की ताकत को सलाम