बुधवार, 19 मई 2010

राज्‍यसभा के लिए मारामारी चरम पर

पिछले दरवाजे से प्रवेश के लिए रस्साकशी

सोनिया के सिपाहसलारों में गलाकाट स्पर्धा आरंभ

शर्मा पचोरी आमने सामने

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 19 मई। सत्ता की मालई खाने के बाद जनसेवक दुबारा उसे पाने किस कदर आतुर रहते हैं, इसकी बानगी है मध्य प्रदेश और हरियाणा में रिक्त होने वाली राज्य सभा सीटों के लिए मचा घमासान। दोनों ही सीटों पर दावेदारों की संख्या देखकर कहा जा सकता है कि एक अनार सौ बीमार। केंद्रीय वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा हरियाणा तो पूर्व केंद्रीय मंत्री और मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सुरेश पचौरी मध्य प्रदेश से रिक्त होने वाली सीट पर काबिज होकर पिछले दरवाजे (राज्यसभा) से संसदीय सौंध तक पहुंचने का जतन कर रहे हैं। पचौरी और शर्मा दोनों ही दस जनपथ (सोनिया गांधी का सरकारी आवास) के नौ रत्नों में समझे जाते हैं।

मध्य प्रदेश और हरियाणा से रिक्त होने वाली एक एक राज्य सभा सीट से किसकी लाटरी निकलेगी इसके लिए सोनिया गांधी के सिपाहसलारों में छिडी जंग देखते ही बन रही है। एक ओर वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा के लिए राज्य सभा से भेजने के लिए सूबे की तलाश तेजी से की जा रही है तो दूसरी ओर सोनिया के नाक कान समझे जाने वाले पूर्व कार्मिक मंत्री सुरेश पचौरी को पुनः संसद में लाने की तैयारियों की बिसात बिछाई जा रही है। आनंद शर्मा का कार्यकाल इसी साल दो अप्रेल को समाप्त हुआ है तो सुरेश पचौरी का कार्यकाल 2008 में अप्रेल में समाप्त हुआ था, इसके बाद उन्हें मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी का प्रमुख बनाकर भेज दिया गया था।

आनंद शर्मा का नाम हरियाणा से रिक्त होने वाली सीट के लिए चल पडा है। वहीं दूसरी ओर शर्मा विरोधियों ने एक समय मुख्यमंत्री पद के दावेदार रहे चौधरी वीरेंद्र सिंह का नाम आगे कर दिया है। वीरेंद्र के नाम पर आलाकमान असमंजस में पड गया है, क्योंकि चौधरी वीरेंद्र सिंह एक तरह से दस जनपथ की पसंद माने जाते हैं, पर आनंद शर्मा को दुबारा चुनकर लाना सरकार और कांग्रेस के लिए प्राथमिकता बन गई है। अगर हरियाण में शर्मा की दाल नहीं गली तो उन्हें भेजने के लिए महाराष्ट्र पर विचार किया जा सकता है। पर हरियाणा शर्मा को सूट करेगा, क्योंकि भले ही वे हिमाचल में जाकर बस गए हों पर उनके पिता हरियाणा में रहे हैं, इसलिए बाहरी का ठप्पा उन पर नहीं लग सकेगा।

रही बात मध्य प्रदेश की तो यहां प्यारे लाल खंडेलवाल और लक्ष्मीनारायण शर्मा के निधन के कारण दो सीट रिक्त हैं, साथ ही साथ अनिल माधव दुबे का कार्यकाल जून महीने में समाप्त हो रहा है। इन परिस्थितियों में रिक्त होने वाली तीन सीटों में से दो पर भाजपा का कब्जा होगा और एक कांग्रेस के खाते में जा सकती है। मध्य प्रदेश में सूबे के कांग्रेसी मुखिया सुरेश पचौरी की नजरें इस सीट पर हैं। पचौरी विरोधियों ने सूबे की वयोवद्ध तर्जुबेकार आदिवासी बेबाक नेता जमुना देवी का नाम आगे कर पचौरी की मुश्किलें काफी हद तक बढा दी हैं। जमुना देवी वर्तमान में मध्य प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं, और महिला होने के साथ ही साथ आदिवासी समुदाय से हैं। जमुना देवी के ब्रम्हास्त्र के आगे पचौरी के पास कोई काट दूर दूर तक दिखाई ही नहीं पड रही है।

स्कूलों से चमडे के जूतों की बिदाई जल्द

स्कूलों से चमडे के जूतों की बिदाई जल्द

चमडे के बजाए कपडे के जूतों में नजर आएंगे विद्यार्थी

मेनका गांधी ने किया शंखनाद

विद्यार्थियों के गणवेश में बदलाव जरूरी
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 19 मई। औपनिवेशिक दासता का प्रतीक स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह चमडे के चमचमाते जूतों से लैस विद्यार्थियों के पैरों में अब कपडे के पीटी शू नजर आएंगे। आने वाले दिनों में केनवास के कपडे वाले जूते ही स्कूली विद्यार्थियों के पैरों की शोभा बढाएंगे। शालेय संस्थाओं में इस मामले में सैद्धांतिक सहमति बना ली गई है, अब इंतजार है सरकार के औपचारिक आदेश का। अभी तक इस तरह के जूतों को बच्चे व्यायाम यानी पीटी या खेलकूद के दौरान ही पहना करते थे, अब रोजाना ही बच्चे अपनी यूनीफार्म के साथ इसे पहने दिखेंगे।

पशुओं के बचाने के मसले पर बेहद संजीदा रहने वाली नेहरू गांधी परिवार की बहू श्रीमति मेनका गांधी द्वारा इस तरह का प्रस्ताव दिया था, जिसे सीबीएसई, सीआईएससीई, के अलावा अनेक स्कूल बोर्ड द्वारा स्वीकार कर लिया गयाहै। श्रीमति मेनका गांधी द्वारा जुलाई 2009 में इस आशय का एक प्रस्ताव केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय को पत्र के माध्यम से दिया था। मेनका का कहना था कि स्कूल की वर्दी के साथ औपनिवेश दासता का प्रतीक चमडे के जूते की अनिवार्यता को समाप्त किया जाना चाहिए।

मेनका ने अपने पत्र में लिखा था कि हिन्दुस्तान के लोगों को चमडे के जूते पहनने का फैसला ब्रितानियों ने जबरिया थोपा था। मेनका कहतीं हैं कि फिरंगियों का यह फैसला न केवल बच्चों के स्वास्थ्य के लिए हानीकारक है, वरन् पर्यावरण की दृष्टि से भी उचित नहीं कहा जा सकता है। बकौल मेनका केनवास के जूतें से एक ओर जहां बच्चों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड पाएगा, वहीं दूसरी ओर अभिभावकों के पैसों की बचत भी हो सकेगी।

देश में शिक्षा नीति के निर्धारक माने जाने वाले मानव संसाधन विकास मंत्रालय से अनुरोध किया था कि वह एक आदेश जारी कर शालाओं से चमडे के जूतों को बेदखल कर दे। मेनका के पत्र को मंत्रालय ने भी हल्के में नहीं लिया। मंत्रालय ने इस बारे में शालाओं से संबंधित बोर्ड से बाकायदा रायशुमारी भी की थी। मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि सीआईएससीई और सीबीएसई बोर्ड ने मेनका के प्रस्ताव से इत्तेफाक जताया है। दोनों ही शिक्षा बोर्ड चमडे के जूतों को पर्यावरण विरोधी और बच्चों की सेहत के लिए बहुत ही ज्यादा नुकसानदेह मानते हैं। बोर्ड का मानना है कि चमडे के जूते पसीना नहीं सोख पाते तथा उसके अंदर गंदगी पनपती रहती है, जबकि कपडे के जूते एक ओर पसीना सोख लेते हैं, वहीं दूसरी और केनवास शूज को धोकर साफ किया जा सकता है।

एक अनुमान के अनुसार आज निन्यानवे फीसदी सरकारी और गैर सरकारी शालाओं में गणवेश के साथ चमडे के जूतों का प्रयोग किया जाता है। जानवरों के हितों के लिए काम करने वाली संस्था पीपुल फार एनिमल (पीएफए) द्वारा भी चमडे जूतों को बच्चों के लिए हानीकारक ही माना गया है। संस्था का मानना है कि इससे ज्यादा चमडे की आवश्यक्ता होती है और पशुओं के प्रति क्रूरता को बढावा ही मिलता है। पीएफए के इस अभियान को देश भर में खासा समर्थन मिल रहा है, चेन्नई शहर में सोलह स्कूलों ने गणवेश के साथ चमडे के जूतों पर प्रतिबंध लगा दिया है।

केंद्रीय विदयालय के साथ नित नए प्रयोग