बुधवार, 28 अप्रैल 2010

राजधानी की फिजां में जहर!

राजधानी की फिजां में जहर!

साढे तीन सौ गुना ज्यादा हैं सूक्ष्म कण
 
श्वसन तन्त्र, किडनी, लीवर की बज रही है बारह
 
कामन वेल्थ के नाम पर शीला सरकार का नंगा नाच
 
लोगों के स्वास्थ्य की कीमत पर कैसी तैयारी
 
किसने दिया लोगों के स्वास्थ्य के साथ खेलने का लाईसेंस
 

 
(लिमटी खरे)

राष्ट्रमण्डल खेल की तैयारियों में विलंब को लेकर सन्देह के दायरे में आई शीला सरकार के हाथ पैर फूलना स्वाभाविक ही है। तीन चार साल तक सोने के बाद जब समय कम बचा तब कम समय में युद्ध स्तर पर कार्यवाही को अंजाम देने के लिए काम कराया जा रहा है, जिससे दिल्लीवासियों का दम फूलने लगा है। समूची दिल्ली का सीना खुदा पडा है। जहां तहां तोडफोड और गेन्ती फावडे, जेसीवी मशीन का शोर सुनाई पड रहा है। हालात इतने बदतर हैं कि स्वास, किडनी और लीवर के रोगियों की तादाद में आने वाले समय में तेजी से इजाफा हो सकता है।
 
प्रदूषण के लिए दिल्ली का नाम सबसे उपर ही आता है। एक समय में डीजल पेट्रोल से चलने वाले वाहनों ने लोगों का जीना दुश्वार कर रखा था। दिल्ली में सडक किनारे लगे पेड पौधे तक काले पड गए थे। न्यायालय के आदेश के बाद दिल्ली में डीजल पेट्रोल के व्यवसायिक वाहनों को सीएनजी के माध्यम से चलाने का निर्णय लिया गया। उस समय भी खासी हायतौबा मची थी। शनै: शनै: मामला पटरी पर आया और दिल्ली में प्रदूषण का स्तर कुछ हद तक काबू में आ गया।
 
कामन वेल्थ गेम्स इसी साल के अन्त में होने हैं। 2006 में इसकी तैयारियां आरम्भ कर दी गईं थीं। विडम्बना देखिए कि पांच सालों तक दिल्ली की गद्दी पर राज करने वाली शीला दीक्षित के नेतृत्व वाली सरकार सोती रही और जब अन्तिम समय आया तब जागकर इसकी तैयारियों के लिए कमर कस रही है। आज हालात यह है कि दिल्ली के किसी भी इलाके में अगर साफ प्लेट रख दी जाए तो बमुश्किल घंटे भर के अन्दर ही उस पर गर्त चढी हुई मिलेगी।
 
दिल्ली के दिल कहलाने वाले कनाट सर्कस (कनाट प्लेस) में पिछले साल रंगरोगन और निखारने का काम आरम्भ हुआ था। साल भर से यहां खुदाई और तोडफोड का काम चल रहा है। समय की कमी के चलते कनाट प्लेस के तीनों सिर्कल का काम एक साथ ही आरम्भ किया गया था। इससे लोगों को बेहद असुविधा का सामना करना पड रहा है। यहां चलने वाले निर्माण कार्य के चलते कनाट प्लेस के आउटर सिर्कल में वाहन रेंगते ही नज़र आते हैं। इन वाहनों से निकलने वाला धुंआ भी लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना नहीं है।
 
दिल्ली के दिल में वायू प्रदूषण के चलते नई दिल्ली महानगर पलिका निगम ने इटली की एक कंपनी के सहयोग से यहां सिस्टम लाईफ (सीआईटीटीए) नामक मशीन संस्थापित की। यह मशीन वातावरण के वायू प्रदूषण को खींचकर वातावरण में स्वच्छ हवा को छोडती है। कहा जाता है कि उक्त मशीन 95 फीसदी तक प्रदूषण मुक्त कर देती है। इस साल 06 मार्च को लगी इस मशीन के बारे में कहा जाता है कि यह मशीन चालीस एकड क्षेत्र की आबोहवा को साफ कर देती है।
 
27 अप्रेल को जब इटली की कंपनी ने मशीन में एकत्र हुए जहरीले और हानिकारक तत्वों के बारे में मोडेना विश्वविद्यालय इटली में हुए शोध के परिणामों को उजागर किया तो सभी की सांसे थम गईं। प्रतिवेदन बताता है कि कनाट सर्कस की आबोहवा में पाए गए तत्व इंसान के लिए बहुत ही ज्यादा घातक हैं। पीएम एक, दो दशमलव पांच और दस की श्रेणी में विभाजित इन तत्वों में पीएम एक सबसे अधिक नुकसानदेह बताया जाता है। बताते हैं कि सूक्ष्म कण (पीएम एक) की अधिकतम मात्रा 60 होनी चाहिए जो कनाट प्लेस में बीस हजार है।
 
जानकार चिकित्सकों का कहना है कि इतनी अधिक मात्रा में सूक्ष्म कण के पाए जाने से इंसान के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पडने से इंकार नहीं किया जा सकता है। इस तरह के कण सीधे सीधे स्वशन तन्त्र, तन्त्रिका तन्त्र, लीवर, फेंफडे, दिल, किडनी पर सीधा हमला करते हैं। इससे आम आदमी को लीवर, रक्त और फैंफडों के कैंसर के होने से इंकार नहीं किया जा सकता है। सबसे ज्यादा फजीहत तो यहां काम करने वाले श्रमिकों की है, जिन्हें बिना किसी सुरक्षा उपकरणों के सीधे मौत के मुंह में धकेला जा रहा है। इसके अलावा कनाट प्लेस और आसपास काम करने वाले कर्मचारियों के साथ ही साथ यहां के दुकानदार मुनाफे में ही इस तरह की संगीन बीमारियों को गले लगाने पर मजबूर हैं। कमोबेश यही आलम समूची दिल्ली का है।
 
हमारा कहना महज इतना ही है कि जब समय था तब अगर मन्थर गति से ही सही तैयारियां की जातीं तो आज सरकार को आनन फानन में दिल्ली को एक साथ नहीं खोदना पडता। दिल्लीवासियों के स्वास्थ्य की कीमत पर राष्ट्रमण्डल खेल करान कहां की समझदारी है। यक्ष प्रश्न तो यह है कि आखिर दिल्ली और केन्द्र सरकार को दिल्ली के निवासियों और बाहर से आने जाने वाले लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड करने का लाईसेंस किसने दिया। वह तो भला हो सिस्टम लाईफ मशीन का जिसने इस खतरे से आगाह कर दिया, वरना सरकार तो लोगों को बीमार बनाने का पुख्ता इन्तजाम कर चुकी थी। वैसे मशीन के चेताने से भी भला क्या होने वाला है, सरकार को अपना काम करना है, ठेकेदार को अपना, पर सदा की तरह पिसना तो आम जनता को ही है।

अन्तत: मध्य प्रदेश का ताज प्रभात झा को


अन्तत: मध्य प्रदेश का ताज प्रभात झा को
 
उमाश्री मामले के चलते शिवराज ने दी अपनी सहमति
 
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 28 अप्रेल। लंबी जद्दोजहद के बाद अन्तत: मध्य प्रदेश भाजपाध्यक्ष के लिए प्रभात झा का नाम तय हो ही गया है। 02 मई को प्रदेश के प्रभारी कालराज मिश्र देश के हृदय प्रदेश की राजधानी भोपाल में उनके नाम की औपचारिक घोषणा करेंगे। मध्य प्रदेश में लंबे समय तक संगठन के लिए काम करने वाले प्रभात झा मूलत: पत्रकार हैं, और उन्होंने विभिन्न समाचार पत्रों के लिए काम भी किया है।
 
भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक मध्य प्रदेश संगठन के लिए अध्यक्ष का चुनाव आसान नहीं था। प्रदेश में अस्तित्व वाले अनेक गुटों द्वारा अपने अपने पसन्द के नेता का नाम इसके लिए उछाला जा रहा था। जैसे ही प्रभात झा का नाम सामने आया वैसे ही उनके बिहार मूल के होने की बात राजनैतिक फिजां में तैरा दी गई। सूत्रों ने बताया कि संघ और भाजपा नेतृत्व को बताया गया कि भले ही प्रभात झा बिहार के रहने वाले हों पर उनकी कर्मभूमि तो मध्य प्रदेश ही रही है।
 
प्रभात झा का नाम सामने आते ही एक गुट द्वारा इन्दौर की संसद सदस्य सुमित्रा महाजन का नाम जोर शोर से उछाला जाने लगा। तब लगने लगा था कि महिलाओं को प्रसन्न करने तेन्तीस फीसदी आरक्षण की हिमायत करने वाली भाजपा द्वारा कहीं प्रदेश के निजाम के बतौर सुमित्रा महाजन को न बिठा दिया जाए। इसके अलावा इन्दौर के ही दूसरे क्षत्रप और मध्य प्रदेश के एक वजनदार गायक मन्त्री कैलाश विजयवर्गीय के खिलाफ सामने आए मामलों से उन्हें कमजोर करने के लिए भी सुमित्रा महाजन की ताजपोशी की खबरें चल पडी थीं।
 
सूत्रों ने बताया कि उमा भारती के फेक्टर के चलते शिवराज सिंह चौहान बुरी तरह खौफजदा थे, और वे चाहते थे कि संगठन की बागडोर उनके किसी पिट्ठू को ही सौंपी जाए। उन्होंने प्रभात झा को अध्यक्ष की कुर्सी से दूर रखने के लिए एडी चोटी लगा दी थी। सूत्रों के अनुसार जब पार्टी नेतृत्व द्वारा शिवराज सिंह चौहान को भरोसा दिलाया गया कि प्रभात झा के अध्यक्ष बनने से मध्य प्रदेश में संगठन को काफी लाभ पहुंचेगा तब जाकर उन्होंने अपनी सहमति जताई। वैसे भी संघ के सह सरकार्यवाहक सुरेश सोनी ने प्रभात झा को अध्यक्ष बनने के लिए अभैद्य दीवार का काम ही किया है।
प्रभात झा के करीबी बताते हैं कि राजमाता सिंधिया के गृह जिले ग्वालियर में प्रभात झा द्वारा स्वदेश अखबार में काम करने के दौरान ही संध की रीतियों नीतियों से प्रभावित होकर वे बरास्ता संघ भाजपा में सक्रिय भूमिका में आए। इसके बाद उनकी कर्मभूमि चंबल से हटकर राजधानी भोपाल हो गई, जहां वे संवाद और संपर्क प्रमुख के बतौर काम करने लगे। राजनाथ सिंह के अध्यक्ष बनने के उपरान्त उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर सचिव बना दिया गया। प्रभात झा को मध्य प्रदेश से राज्य सभा में भेजा गया है। सूत्रों का कहना है कि 02 मई को उनके नाम की औपचारिक घोषणा के बाद वे किसी भी दिन अपना कार्यभार ग्रहण कर लेंगे।

और अब केन्द्रीय विद्यालय निजी हाथों में


और अब केन्द्रीय विद्यालय निजी हाथों में
 
पीपीपी के तहत होगा क्रियान्वयन
 

सिब्बल का एक और महाप्रयोग
 

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 28 अप्रेल। केन्द्रीय विद्यालयों में अब पढाई से इतर कामों के लिए विद्यालय प्रशासन को भागदौड नहीं करनी होगी। मानव संसाधन विकास मन्त्रालय एक एसी योजना पर विचार कर रहा है, जिससे समूचे देश में केन्द्रीय विद्यालयों को स्कूल के रखरखाव की समस्या से निजात मिलने की उम्मीद है। केन्द्रीय विद्यालय प्रबंधन अब अपना समूचा ध्यान सिर्फ और सिर्फ पढाई पर ही केन्द्रित करेगा, विद्यालय भवनों के रखरखाव की जवाबदारी अब निजी हाथों को दी जाने वाली है।
 
केन्द्रीय विद्यालय संगठन के उच्च पदस्थ सूत्रों का दावा है कि जब भी कोई नया मानव संसाधन मन्त्री आकर जवाबदारी सम्भालता है, वह एक नया प्रयोग अवश्य ही करता है। कभी शिक्षा का भगवाकरण हो जाता है, तो कभी भारतवर्ष के इतिहास से ही छेडछाड होने लगती है। हाल ही में एचआरडी मिनिस्टर कपिल सिब्बल द्वारा ग्रेडिंग सिस्टम को लागू करवाकर एक नया प्रयोग किया है, और अब विद्यालय भवनों के रखरखाव की जिम्मेदारी विद्यालय प्रबंधन के हाथ से लेकर निजी हाथों में देने पर विचार किया जा रहा है।

एचआरडी मिनिस्टर कपिल सिब्बल के करीबी सूत्रों का कहना है कि सिब्बल का मानना है कि एसा करने से विद्यालय प्रशासन अपना पूरा ध्यान शैक्षणिक गतिविधियों पर केन्द्रित कर सकेंगे। वैसे इमारतों के रखरखाव आदि का काम पब्लिक प्राईवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के तहत दिए जाने पर जोर शोर से विचार किया जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि सिब्बल मानते हैं कि इस अभिनव प्रयोग से शालाओं की दिशा और दशा दोनों ही में सुधार की उम्मीद है।

गौरतलब है कि वर्तमान में केन्द्रीय विद्यालय वैसे भी माडल स्कूल के तौर पर जाने जाते हैं। इन शालाओं में दाखिला आज भी प्रतिष्ठा का ही प्रश्न बना हुआ है। इसमें प्रवेश के लिए केटेगरी निर्धारित की गई है, जिसके चलते निजी या व्यवसाय में रत लोगों के बच्चे इसमें प्रवेश से वंचित रह जाते हैं। माना जा रहा है कि पढाई से इतर अन्य प्रबंधन निजी हाथों में आ जाने से एक ओर जहां विद्यालय प्रशासन का ध्यान पढाई में ही केन्द्रित होगा जिससे पढाई का गिरता स्तर सुधरेगा, वहीं दूसरी ओर रखरखाव का काम भी योजनाबद्ध तरीके से समयसीमा में पूरा किया जा सकेगा।