मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

योग गुरू नहीं परिपक्व राजनेता हैं बाबा रामदेव

योग गुरू नहीं परिपक्व राजनेता हैं बाबा रामदेव

राजनीति के दांव पेंच भली भान्ति जानते हैं बाबा

योग तो एक बहाना था असल मकसद राजनीति में आना था

गांधी बनने की जुगत में हैं रामदेव

(लिमटी खरे)

देश में कथित अध्यात्म गुरू, ज्योतिषविद, प्रवचनकर्ताओं आदि की कमी किसी भी दृष्टिकोण से नहीं है। इन सबके बीच धु्रव तारा बनकर उभरे योग गुरू बाबा रामदेव बडे ही सधे कदमों से चल रहे हैं। एक परिपक्व राजनेता के मानिन्द पहले उन्होंने देश के बीमारों को स्वस्थ्य बनाने का बीडा उठाया। देश के प्राचीन अर्वाचीन योग को एक नई पेकिंग में बाजार में लांच किया, फिर समाचार और दूसरे चेनल्स के माध्यम से घरों घर में अपनी आमद दी। अब जबकि उनके अनुयायियों की खासी तादाद हो गई है, तब उन्होंने लोहा गरम देख राजनीति में आने का हथौडा जड दिया है।

पिछले चन्द दिनों से बाबा रामदेव के मुंह से योग के माध्यम से लोगों को स्वस्थ्य बनाने के बजाए राजनीति में आने की महात्वाकांक्षाएं ज्यादा कुलांचे मारती प्रतीत हो रहीं हैं। बाबा के मुंह से निकली यह बात किसी को भी आश्चर्यजनक इसलिए नहीं लग रही होगी क्योंकि बाबा रामदेव ने बहुत ही करीने से सबसे पहले अपने आप को महिमा मण्डित करवाया फिर अपनी इस महात्वाकांक्षा को जनता पर थोपा है।

बाबा रामदेव का कहना है कि अब राजनीति नहीं वरन योग नीति का वक्त आ गया है। स्वयंभू योगाचार्य बाबा रामदेव ने देश में केंसर की तरह फैल चुके भ्रष्टाचार को योगनीति के माध्यम से दुरूस्त करने का मानस बनाया है। बाबा ने बहुत सोच समझकर गरीब और अविकसित भारत देश में भ्रष्टाचार के साथ ही साथ विदेशों में फैले भारत के काले धन को भारत लाने का कौल उठाया है। बाबा का कहना है कि देश में अनेक प्रकार के अपराधों के लिए तरह तरह के कानून बने हैं, लेकिन भ्रष्टाचारियों पर अंकुश लगाने के लिए एक भी कठोर कानून नहीं है। बाबा यह भूल जाते हैं कि भ्रष्टाचार करते पकडे जाने पर न जाने कितने जनसेवक जेल की हवा भी खा चुके हैं।

बाबा का कहना सही है कि जनता की गाढी कमाई पर एश करने वालों के लिए सिर्फ और सिर्फ मृत्युदण्ड का प्रावधान होना चाहिए। बाबा के इस कथन से सत्तर के दशक में आई उस समय के सुपर डुपर स्टार राजेश खन्ना और मुमताज अभिनीत चलचित्र ``रोटी`` का ``यार हमारी बात सुनो, एसा एक इंसान चुनो जिसने पाप न किया हो जो पापी न हो. . . `` की याद ताजा हो जाती है। बाबा रामदेव देश के अनेक शहरों में अपने योग शिविर की दुकानें लगा चुके हैं इस हिसाब से वे भली भान्ति जानते होंगे कि देश में गरीब गुरबे किस तरह रहते हैं। यह बात भी उतनी ही सच है जितना कि दिन और रात कि बाबा के पास वर्तमान में अकूत दौलत का भण्डार है। बाबा अगर चाहें तो गरीब गुरबों के लिए एकदम निशुक्ल योग शिविर और चिकित्सा शिविर लगाकर दवाएं बांट सकते हैं। वस्तुत: बाबा रामदेव एसा नहीं कर रहे हैं, क्योंकि यह भी जानते हैं कि राजनेताओं का काम सिर्फ भाषण देना है, उसे अमली जामा पहनाना नहीं।

बाबा रामदेव के एजेण्डे में तीसरा तथ्य यह उभरकर सामने आया है कि उन्होंने ``हिन्दी की चिन्दी`` पर अफसोस जाहिर किया है। बाबा का कहना है कि आजादी के इतने समय बाद भी हम ब्रितानी मानसिकता के गुलाम हैं। आज भी न्यायालयों में हिन्दी के बजाए अंग्रेजी का ही बोल बाला है। बाबा रामदेव के इस कथन से हम पूरा इत्तेफाक रखते हैं, पर सवाल यह है कि समूची ब्यूरोक्रेसी में ही अंग्रेजी का बोलबाजा है, बाबा रामदेव बहुत चतुर खिलाडी हैं, वे अगर नौकरशाहों पर वार करते तो वे देश पर राज करने का जो रोडमेप तैयार कर रहे हैं उसके मार्ग में शूल ही शूल बिछा दिए जाते, यही कारण है कि बाबा रामदेव नौकरशाहों पर परोक्ष तौर पर निशाना साध रहे हैं।

बाबा रामदेव के कदम ताल को देखकर यह माना जा सकता है कि वे आजादी के उपरान्त महात्मा गांधी की छवि को अपने अन्दर सिमटाना चाह रहे हैं। चाहे देश आजाद हुआ हो तब या वर्तमान परिदृश्य हो, राजनीति की धुरी गांधी के इर्द गिर्द ही सिमटी रही है। तब मोहन दास करमचन्द गांधी बिना किसी पद पर रहते हुए राजनीति के केन्द्र थे तो आज कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के हाथों राजकाज की कमान है। लगता है बाबा रामदेव चाहते हैं कि वे सोनिया गांधी की तरह ही सबसे शक्तिशाली बने रहें और सक्रिय राजनीति में न रहें। बाबा रामदेव यह भूल जाते हैं कि आदि अनादी काल से राजकाज में सहयोग का काम राजगुरूओं का होता रहा है न कि कथित योग गुरू का। न तो बाबा रामदेव राजगुरू हैं और न ही वे धर्म गुरू। रही बात अपने आप को सबसे श्रेष्ठ समझने की तो शंकराचार्य के बारे में टिप्पणी करने के उपरान्त उन्हें माफी भी मांगनी पडी थी यह बात किसी से छिपी नहीं है।

हमारा अपना मानना है कि बाबा रामदेव पूरी तरह मुगालते में हैं। हमने अपने पिछले आलेखों ``राष्ट्रधर्म की राह पर बाबा रामदेव`` और ``बाबा रामदेव का राष्ट्रधर्म`` में बाबा रामदेव की भविष्य की राजनैतिक बिसात के बारे में इशारा किया था। उस दौरान बाबा रामदेव के अंधे भक्तों ने तरह तरह की प्रतिक्रियाएं व्यक्त की थीं। राजनेताओं को कोसना बहुत आसान है। जनसेवकों की मोटी खाल पर इसका कोई असर नहीं होता है। बाबा रामदेव ने भी जनसेवकों को पानी पी पी कर कोसा है। रामदेव यह भूल जाते हैं कि जैसे ही बाबा रामदेव उनकी कुर्सी हथियाने का साक्षात प्रयास करेंगे वैसे ही ये सारे राजनेता एक सुर में तान छेड देंगे और फिर आने वाले समय में बाबा रामदेव को अपनी योग की दुकान भी समेटना पड सकता है।

बाबा रामदेव के पास अकूत दौलत है। यह दौलत उन्होंने पिछले लगभग डेढ दशक में ही एकत्र की है। मीडिया की ताकत से बाबा रामदेव भली भान्ति परिचित हो चुके हैं। मीडिया चाहे तो किसी को फर्श से उठाकर अर्श पर तो किसी को आसमान से जमीन पर उतार सकता है। आने वाले समय में बाबा रामदेव अगर कोई समाचार चेनल खोल लें तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए, साथ ही प्रिंट की दुनिया में भी बाबा रामदेव उतर सकते हैं। हमें यह कहने मेें कोई संकोच नहीं कि मीडिया के ग्लेमर को देखकर इस क्षेत्र में उतरे लोग सरेआम अपनी कलम का सौदा कर रहे हैं। मीडिया को प्रजातन्त्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। प्रजातन्त्र के तीन स्तंभ तो गफलत, भ्रष्टाचार, अनैतिकता के दलदल में समा चुके हैं। लोगों की निगाहें अब मीडिया पर ही हैं, और मीडिया ही अगर अंधकार के रास्ते पर निकल गया तो भारत में प्रजातन्त्र के बजाए हिटलर राज आने में समय नहीं लगेगा।

बहरहाल बाबा के एक के बाद एक सधे हुए कदम से साफ जाहिर होने लगा है कि बाबा रामदेव के मन मस्तिष्क में देश पर राज करने की इच्छा बहुत पहले से ही थी। उन्होंने योग का माध्यम चुना और पहले लोगों को इसका चस्का लगाया। जब लोग योग के आदी हो गए तो योग गुरू ने अपना असली कार्ड खोल दिया। भारत स्वाभिमान ट्रस्ट की स्थापन के पीछे यही उद्देश्य प्रतीत हो रहा है। अब बाबा रामदेव ने इसके कार्यकर्ताओं से ज्यादा से ज्यादा सदस्य बनाने का आव्हान कर डाला है। बाबा के कदमों को देखकर यही कहा जा सकता है कि ``योग तो एक बहाना था, बाबा रामदेव का असल मकसद तो राजनीति में आना था।``