रविवार, 7 फ़रवरी 2010

क्या इसीलिए कहलाते हैं ये जनसेवक!

क्या इसीलिए कहलाते हैं ये जनसेवक!
रियाया को बुनियादी सुविधाएं जुटाने फिसड्डी हैं जनसेवक 
अन्तिम छोर के आदमी को दो सौ साल लगेंगे बुनियादी सुविधाएं मिलने में
(लिमटी खरे)
तीन दशक पहले माल वाहक वाहनों पर ``लोक वाहक`` लिखा होता था, इन अंधी रफ्तार से चलने वाले ट्रक से होने वाली दुघZटनाओं को देखकर कवि सम्मेलनों में इन्हें ``परलोक वाहक`` का नाम दिया गया था। इसी तरह जनता की सेवा करने का प्रण लेने वालों को जनसेवक कहा जाता है। जनसेवक का काम अपने निहित स्वार्थों को हाशिए पर रखकर जनता की सेवा करना होता है, विडम्बना यह है कि नब्बे के दशक से जनसेवकों ने अपने निहित स्वार्थ साधने के चक्कर में रियाया को ही हाशिए पर कर दिया है।
केन्द्र सरकार ने देश के आखिरी आदमी तक के लिए स्चच्छ पेयजल और साफ सुथरे शौचालयों के इन्तजाम के लिए मियाद तय की है, और यह मियाद 2012 अर्थात आने वाले दो साल में समाप्त हो जाएगी। आज की जमीनी हालात को देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि आने वाले एक दशक के पूरा होने पर अर्थात विजन 2020 के पूरा होने के बाद भी देश में इन दोनों बुनियादी जरूरतों को पूरा नहीं किया जा सकेगा। एक एन जी ओ द्वारा किए गए सर्वे के अनुसार आने वाले दो सौ सालों के उपरान्त ही इस अभियान को शत प्रतिशत पूरा किया जा सकता है।
कितने आश्चर्य की बात है कि देश पर हुकूमत करने वालों को अपनी रियाया की जरा भी फिकर नहीं है। कम से कम बुनियादी सुविधाएं तो जनता को उपलब्ध होनी ही चाहिए। एक समय था जब शासक भेष बदलकर अपने राज्य की जनता के दुख दर्द को जाना करते थे, पर आज के निजाम तो दुखदर्द को जानते बूझते आंख बन्द किए हुए हैं। रही बात विपक्ष की तो, सरकार निरंकुश न हो पाए इसकी जवाबदारी विपक्ष की हुआ करती है। वर्तमान परिदृश्य में विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों ही मिलकर दोनों हाथों से लड्डू खाने में मशगूल हैं।
भारत का प्रजातन्त्र विश्व का सबसे बडा प्रजातन्त्र माना जाता है, और इसको सही मार्ग दिखाने के लिए इसके चौथे स्तंभ के तौर पर मान्यता दी गई है मीडिया को। वर्तमान समय में मीडिया पूरी तरह से औद्योगिक घरानों की जरखरीद गुलाम बनकर रह गया है। मीडिया के मालिकों से अगर कहा जाए कि वे किसी विषय पर दो शब्द लिखकर या बोलकर बताएं तो उनकी पेशानी पर पसीने की बून्दे छलक जाएंगी। सत्ता और विपक्ष की जुगल बन्दी में मीडिया के तडके ने तो जनता की जान ही निकाल दी है।
बहरहाल, समग्र स्वच्छता अभियान का लक्ष्य पूरा करने में प्रधानमन्त्री डॉ.एम.एम.सिंह, लोकसभा के निर्वतमान नेता प्रतिपक्ष एल.के.आडवाणी, कांग्रेस की नज़रों में भविष्य के प्रधानमन्त्री राहुल गांधी, केन्द्रीय ग्रामीण विकास मन्त्री सी.पी.जोशी, केन्द्रीय स्वास्थ्य मन्त्री गुलाम नवी आजाद जैसे दिग्गजों के चुनाव क्षेत्रों में इस अभियान के धुरेZ उडते दिखाई दे रहे हैं। गौरतलब है कि समग्र स्वच्छता अभियान केन्द्र सरकार की एक महात्वाकांक्षी योजना है, जिसके तहत 2012 तक देश के सभी ग्रामीण इलाकों में स्वच्छ पेयजल और साफ सुथरे शौचालयों की शत प्रतिशत व्यवस्था सुनिश्चित की जानी है।
हाल ही में एक गैर सरकारी संगठन द्वारा जुटाए गए आंकडे बहुत ही निराशाजनक माने जा सकते हैं। संस्था की मानें तो कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली में तो 2012 तक इसे कुछ हद तक पूरा माना जा सकता है, किन्तु कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र में काम की गति को देखकर कहा जा सकता है कि 2016 तक भी इसे शत प्रतिशत पूरा नहीं किया जा सकता है।
मजे की बात तो यह है कि प्रधानमन्त्री जो असम से राज्यसभा सदस्य हैं वहां उनके दर्शाए गए स्थायी निवास ``कामरूपा`` जिले में यह अभियान 2030 तक पूरा नहीं किया जा सकता है। समग्र स्वच्छता अभियान की बागडोर केन्द्रीय ग्रामीण विकास मन्त्रालय के जिम्मे है, और चमत्कार देखिए कि विभाग के मन्त्री सी.पी.जोशी के संसदीय क्षेत्र राजस्थान के भीलवाडा में यह अभियान 2023 तक पूरा होने की उम्मीद दिख रही है। यह आलम तब है जबकि राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार काबिज है।
राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबंधन के पीएम इन वेटिंग रहे लोकसभा के पूर्व नेता प्रतिपक्ष लाल कृष्ण आडवाणी के संसदीय क्षेत्र गांधी नगर जैसे इलाके में यह अभियान 2017 तक परवान चढ सकेगा। सासाराम से जीतकर पहली महिला लोकसभाध्यक्ष बनने का गौरव पाने वालीं मीरा कुमार के संसदीय क्षेत्र में यह योजना 2022 तक ही पूर्ण होने की उम्मीद है। इसी तरह केन्द्रीय मन्त्री शरद पवार, कमल नाथ, एम.एस.गिल, मिल्लकार्जुन खडगे, बी.के.हाण्डिक, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज आदि के संसदीय क्षेत्रों का कमोबेश यही आलम है।
इस तरह की निराशाजनक स्थिति तब सामने आ रही है जबकि मनमोहन सिंह के नेतृत्व में पिछली बार सरकार ने केन्द्र पोषित केन्द्रीय योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन को मद्देनज़र रख देश के हर संसद सदस्य को उनके संसदीय क्षेत्र के जिलों में निगरानी समिति का अध्यक्ष बनाया था। इतना ही नहीं सांसदों से यह उम्मीद की गई थी कि हर तीन माह में केन्द्रीय योजनाओं का आंकलन करेंगे। विडम्बना एक बार फिर वही है कि सांसदों ने इसे सीधा सीधा नज़र अन्दाज कर दिया, जिससे केन्द्र पोषित योजनाअों में आने वाली भारी भरकम राशि भ्रष्टाचार की भेंट चढने से न बच सकी।
राष्ट्रपिता बापू का भी मानना था कि वास्तविक भारत गांवों में बसता है। आज भारत की आजादी के साठ सालों बाद भी गांव की बदरंग तस्वीर से कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी, पूर्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी बाजपेयी, वजीरेआजम डॉ.एम.एम.सिंह सहित सत्ता और विपक्ष के हर जनसेवक वाकिफ है, फिर भी वह अपने समर्थकों, अनुयाईयों, परिजनों के लिए केन्द्र और राज्य पोषित योजनाओं में भ्रष्टाचार करने के मार्ग प्रशस्त करने से नहीं चूकता है।
एक जमान में जनता की सेवा को धर्म समझने वाले को जनसेवक कहा जाता था, किन्तु लगता है आज जनसेवक के मायने बदल चुके हैं। आज जनता को दुत्कार कर हाशिए पर रखकर अपने निहित स्वार्थों को पूरा कर अंटी में माल इकट्ठा करने वाले  जनसेवक कहलाते हैं। इस तरह के जनता के गाढे खून पसीने की कमाई के शोषक किस तरह सर उठाकर चलते हैं, यह देखते ही बनता है। पता नहीं इनका जमीर कैसे गवारा कर पाता है कि जिस जनता की जेब पर ये डाका डालते हैं उसी जनता से सीधे आंख मिलाने का दुस्साहस भी कर पाते हैं।