शुक्रवार, 15 जनवरी 2010

कैसे बचेगी भारत की साख

कैसे बचेगी भारत की साख

कामन वेल्थ गेम्स के लिए तैयार नहीं हैं स्टेडियम!

(लिमटी खरे)

पिछले चार सालों से भारत सरकार द्वारा राष्ट्रमण्डल खेलों के लिए जोर शोर से तैयारियां किए जाने का दावा किया जा रहा है। अब जबकि कामन वेल्थ गेम्स के लिए उल्टी गिनती आरंभ हो चुकी है, तब भी इन खेलों के लिए निर्धारित देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली के एक भी क्रीडांगन के हाल खेलों के लिहाज से उपयुक्त नहीं कहे जा सकते हैं। देश के खेल मंत्री एम.एस.गिल ने 25 नवंबर को देश की सबसे बडी पंचायत ``संसद`` में देश की जनता को भरोसा दिलाया था कि कम से कम चार स्टेडियम तो 31 दिसंबर तक बनकर तैयार हो जाएंगे।

विडम्बना ही कही जाएगी कि सत्ता के मद में चूर देश की सरकार और सभी ``जनसेवक`` सिर्फ निहित स्वार्थाें को ही तवज्जो दे रहे हैं। किसी को भी इस बात की कतई परवाह नहीं है कि इस साल के अंत में होने वाले कामन वेल्थ गेम्स में शिरकत करने वाले विदेशी महमान देश की राजनैतिक राजधानी और खेलों की क्या तस्वीर लेकर वापस जाएंगे। वैश्विक स्तर पर भारत की छवि किस तरह की बनेगी इस मामले से देश के नीति निर्धारकों को कतई लेना देना नही है।

दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने भी कई बार ``हांथ पांव फूलने`` जैसे मुहावरों का इस्तेमाल कर अपनी पीडा का इजहार कर दिया है कि वे कामन वेल्थ गेम्स की कच्छप गति से कतई संतुष्ट नही हैं। पैसों की कमी का रोना कामन वेल्थ की तैयारियों के बीच जबर्दस्त तरीके से रोया है शीला दीक्षित ने। समय सीमा में काम पूरा न होने का ठीकरा शीला दीक्षित पर फूटना तय है। इससे बचने के लिए वे नित नए बहाने बनाकर अपनी खाल बचाने का प्रयास कर रहीं हैं।

जहां तक इन खेलों के लिए क्रीडांगन का सवाल है, तो औसत तौर पर देखा जाए तो अभी पचास फीसदी काम अधूरा ही पडा हुआ है। कामन वेल्थ गेम्स के तहत 17 तरह के खेलों के लिए 14 क्रीडांगनों का निर्माण प्रस्तावित है। पिछले चार सालों में केंद्र और दिल्ली दोनों ही में सत्तारूढ कांग्रेस की सरकारें पैर पसारकर बैठीं थीं। अब जब काउंटडाउन आरंभ हो गया है तो सभी अपनी अपनी खाल बचाने की जुगत लगा रहे हैं।

गौरतलब है कि स्टेडियम निर्माण की मंथर गति को लेकर अक्टूबर में कामन वेल्थ गेम्स फेडरेशन के सम्मेलन में जबर्दस्त हंगामा हुआ था। इसके बाद केंद्र सरकार की आंखें खुलीं और प्रधानमंत्री ने कामन वेल्थ गेम्स की तैयारियों की जवाबदारी केंद्रीय खेल मंत्री के कांधों पर डाल दी।

देश की अस्मत बनने जा रहे कामनवेल्थ गेम्स में भी अफसरशाही के बेलगाम घोडे जबर्दस्त तरीके से बेखटके दौड रहे हैं। लाल फीताशाही का आलम यह है कि 25 नवंबर को संसद में खेलमंत्री गिल ने इन 14 स्टेडियम के निर्माण के लिए नई डेड लाईन घोषित कर दी थी। इनमें से लगभग पौन दर्जन स्टेडियम के निर्माण में साठ से नब्बे दिन का विलंब ही बताया गया था।

मजे की बात तो यह है कि देश के खिलाडियों का भविष्य गढने वाले खेल मंत्री ने जो कोल दिया था उसके अनुसार त्यागराज और तालकटोरा दोनों ही स्टेडियम को 31 दिसंबर 2009 तक तथा ध्यानचंद स्टेडियम और कर्ण सिंह शूटिंग रेंज को 15 दिसंबर तक पूरा होना था। अधिकारियों और जनसेवकों की मदमस्त चाल के चलते 2009 बीत गया और 2010 का आधा माह भी, पर नतीजा वही ढाक के तीन पात ही है।

कामन वेल्थ गेम्स की तैयारियों को लेकर जो खबरें छन छन कर बाहर आ रहीं हैं, उन पर अगर यकीन किया जाए तो पता चलता है कि इन चारों की डेड लाईन समाप्त होने के बाद भी अभी इनकी पूर्णता में कम से कम एक माह की अवधि की और दरकार है।

जिम्नास्टिक, साईकिलिंग, कुश्ती आदि के लिए निर्धारित इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम का काम अभी महज साठ फीसदी ही हुआ है। इसी तरह श्यामा प्रसाद मुखर्जी तरणताल का काम जिस गति से चल रहा है वह निश्चित तौर पर शर्मनाक ही कहा जा सकता है।

कामन वेल्थ गेम्स के लिए आधार माने जाने वाले नेहरू स्टेडियम का काम अभी आधे से ज्यादा बाकी पडा हुआ है। इस महत्वपूर्ण स्टेडियम की तैयारियां कितनी हो पाईं हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जिस स्टेडियम में एथलेटिक्स, भारोत्तोलन आदि स्पर्धाओं के उद्घाटन और समापन होने हैं, उसके निर्माण के लिए डेडलाईन जून तय की गई है।

सवाल यह उठता है कि अगर खेल मंत्री एम.एस.गिल के द्वारा निर्धारित की गई समय सीमा के अंदर क्रीडांगनों का निर्माण पूरा नहीं किया जा सका तो हालात किस कदर शर्मनाक और चिंताजनक होंगे यह बात सोचकर ही रीड की हड्डी में पसीना आ जाता है। और अगर पूरा कर भी लिया गया तो भी यक्ष प्रश्न तो यह है कि क्या इनमें टेस्ट इवेंट के लिए समय बच पाएगा।

यह तो एक बानगी है भारत के द्वारा मेजबानी किए जाने वाले कामन वेल्थ गेम्स की। इसमें अभी दिल्ली की सूरत को संवारना बहुत जरूरी है। इसके अलावा विदेशी महमानों के रहने खाने की व्यवस्था करना भी एक बडी समस्या बनकर उभरेगा। दिल्ली में जगह जगह पसरी गंदगी, बेलगाम और बिगडेल यातायात के साधन, सडकों पर लगते जाम, जब तब आग लगने के चलते धुंआ उगलतीं डीटीसी की बस, सडांध मारते सार्वजनिक शौचालय आदि के साथ क्या दिल्ली अपने आप को कामन वेल्थ गेम्स की मेजबानी के लिए तैयार है। जी हां कागजों पर तो यह तैयारी पूरी ही मानी जाएगी, पर यथार्थ के धरातल पर हकीकत कुछ और ही है।