सोमवार, 11 जनवरी 2010

अपने क्षेत्र में महज पच्चीस फीसदी लोगों को ही जोड पाए युवराज!


ये है दिल्ली मेरी जान



(लिमटी खरे)

अपने क्षेत्र में महज पच्चीस फीसदी लोगों को ही जोड पाए युवराज!

आजाद हिन्दुस्तान पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी अब ``उंची दुकान फीका पकवान`` ही साबित होते जा रहे हैं। कहने को तो वे देश भर में युवाओं को कांग्रेस से जोडने का बीडा अपने युवा से अधेड होते कांधों पर उठाए हुए हैं, पर वे अपने संसदीय क्षेत्र में ही इस मामले मेें बहुत पीछे नजर आने लगे हैं। बीते 12 नवंबर से 15 दिसंबर तक अपने संसदीय क्षेत्र में उन्होंने कांग्रेस से युवाओं को जोडने का लक्ष्य रखा था एक लाख का, किन्तु इसके एवज में वे जोड पाए महज 24 हजार 862 युवाओं को ही। उनके संसदीय क्षेत्र की गोरी गंज विधानसभा में 5200, अमेठी में 5888, तिलोई में 5307 के साथ ही साथ ही साथ जगदीशपुर में महज 4667 युवाओं को ही कांग्रेस की रीतियों और नीतियोें से लुभा सके। गौरतलब है कि अमेठी में 14 लाख 30 हजार 857 मतदाता हैं, जिसमें से पचास फीसदी ही मतदान के प्रति जागरूक हैं। पिछले दिनों अपने चाचा और कांग्रेस के वास्तविक भविष्यदृष्टा स्व.संजय गांधी के नाम पर मुंशीगंज में बने अस्पताल के अतिथिगृह में युवक कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से रूबरू राहुल गांधी की पेशानी पर चिंता की लकीरें साफ जाहिर कर रहीं थीं कि वे अपने ही संसदीय क्षेत्र में अपने इस महात्वाकांक्षी अभियान की हवा निकलने से कितने परेशान हैं। जब राहुल बाबा अपने ही संसदीय क्षेत्र में निर्धारित लक्ष्य से एक चौथाई से भी कम पर आकर रूक गए हों तब देश के अन्य हिस्सों की जमीनी हालात पर चर्चा बेमानी ही होगी।


िढंढोरा 14 का पहुंचे महज 3!
इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में स्वयंभू योग गुरू बाबा रामदेव ने खुद को महिमा मण्डित करने के ढेर सारे जतन किए। इनमें अनेक में वे कामयाब भी हुए। कभी हिन्दुस्तान के हर आदमी को निरोग करने के लक्ष्य के उपरांत ही भारत की धरा के बाहर कदम रखने का कौल लेने वाले बाबा रामदेव ने बीच में ही अपनी बात को काटकर विदेशों की सैर कर डाली। धर्मनगरी हरिद्वार में बाबा रामदेव के भव्य और पांच सितारा आश्रम में मेगाफुड और हर्बल पार्क के उद्घाटन के लिए िढंढोरा पीटा गया था कि इसमें देश के 14 सूबों के निजाम शिरकत करेंगे। जब उद्घाटन हुआ तो वहां मौजूद थे महज भाजपा शासित मध्य प्रदेश, उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री। तीन मुख्यमंत्रियों के बीच केंद्रीय मंत्री सबोध कांत सहाय भी कुछ ज्यादा सहज नजर नहीं आ रहे थे। उन्होंने भी बाबा रामदेव के खुद के महिमा मण्डन पर परोक्ष तौर पर कटाक्ष कर ही दिया। सहाय ने कहा कि अगर बाकी के 11 राज्यों के सीएम भी वहां होते तो वे एक साथ सभी उपस्थित मुख्यमंत्रियों के सूबों में एक साथ हर्बल पार्क की स्थापना की घोषणा भी लगे हाथ कर ही देते। गौरतबल है कि रांची में स्थापित एसे ही फुड पार्क की स्थापना बाबा के सहयोग से की गई है जिसके लिए केंद्र सरकार द्वारा पचास लाख रूपए का अनुदान भी दिया जा रहा है। भाजपाई सूबों के मुख्यमंत्रियों की उपस्थिति से कांग्रेस को समझ में आ गया है कि बाबा रामदेव कहीं न कहीं संघ के हिमायती ही हैं, सो कन्नी काट ली कांग्रेसी निजामों ने।


नहीं चाहिए हमें पुरूस्कार!

यदि किसी को सम्मान से नवाजा जाए तो भला कौन बेवकूफ होगा जो इससे इंकार करेगा। आज के युग में खुद को महिमा मण्डित करने का एसा चलन चल पडा है कि लोग प्रायोजित कर पुरूस्कार ग्रहण करते हैं। इन परिस्थितियों में केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ के समक्ष बीते दिनों बडी ही दुविधा की स्थिति बन गई। पांचवे राष्ट्रीय सडक सुरक्षा पुरूस्कार के लिए चुने गए सामाजिक कार्यकर्ताओं में से महाराष्ट्र के कोल्हापुर में सडक सुरक्षा के लिए री विमलेश्वरी रोड सेफ्टी नामक एक गैर सरकारी संस्था के विनायक खेलकर ने यह कहते हुए मंच पर ही सम्मान लेने से इंकार कर दिया कि जब तक सउक दुघZटनाओं को रोकने के लिए विभिन्न केंद्रीय और राज्यों के मंत्रालयों तथा विभागों के बीच तालमेल नहीं बनता तब तक वे सम्मान ग्रहण नहीं करेंगे। खेलकर की बात सुनकर सकते में आ गए कमल नाथ। उन्होंने कुछ देर चर्चा के दौरान खेलकर को मनाने की नाकाम कोशिश की। बाद में उन्होंने स्वीकार किया कि केंद्र और राज्य के सडक से जुडे महकमों में तालमेल का अभाव है। चलो खेलकर के माध्यम से ही सही कम से कम केंद्र सरकार के महकमे के हाकिमों की नींद तो टूटी।


मोदी को नहीं जम रहा है गडकरी का अध्यक्ष बनना

भाजपा के कद्दावर नेता और भाजपाध्यक्ष पद के सबसे सशक्त दावेदार रहे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को महाराष्ट्र की राजनीति से राजनैतिक परिदृश्य में धूमकेतू बनकर उभरे नितिन गडकरी का भाजपाध्यक्ष बनना शायद गले नहीं उतर रहा है। यही कारण है कि मोदी के पास अपनी ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष से मिलने की फुर्सत भी नहीं है। गौरतलब है कि दिसंबर के मध्य में भाजपा के अध्यक्ष बनाए गए गडकरी से औपचारिक मुलाकात हेतु राजग और भाजपा शासित सूबों के मुख्यमंत्री और अध्यक्ष के अलावा अन्य पदाधिकरी उनकी देहरी पर दस्तक दे चुके हैं। नरेंद्र मोदी के मामले में पार्टी अब बचाव की मुद्रा में ही दिखाई पड रही है। मोदी और गडकरी के बीच क्या अदावत है यह तो वे ही जानें पर पार्टी के प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर ने अवश्य इस मामले में सफाई देते हुए कहा कि समय की कमी के चलते मोदी पार्टी अध्यक्ष गडकरी से मिलने नहीं आ सके हैं, पर फोन पर मोदी ने गडकरी को बधाई दे दी है।

चाणक्य पहुंचे बालाजी की शरण में!

कांग्रेस की राजनीति के चाणक्य रहे कुंवर अर्जुन सिंह की राजनीति का सूरज भले ही अस्ताचल की ओर हो पर वे अगर कहीं आते जाते हैं तो सियासतदारों के कान खडे होना स्वाभाविक ही है। पूजन पाठ, अनुष्ठान के लिए मशहूर अर्जुन सिंह ने दिल्ली की सियासी गर्माहट को छोडकर नए साल में मध्य प्रदेश के बेतूल जिले में एक सप्ताह से अधिक का समय बिताया तो राजनेताओं की नींद में खलल पडना आरंभ हो गया। अर्जुन सिंह के करीबी सूत्रों का कहना है कि बैतूल शहर के पास स्थित बालाजीपुरम के मंदिर और ताप्ती के तट पर कुंवर साहेब ने कुछ पूजन और अनुष्ठानों को कराया है। चलने फिरने में असमर्थ हो चुके अर्जुन सिंह अब वहील चेयर के माध्यम से आना जाना करते हैं। जब यह बात राजनेताओं को पता चली कि वे एक हफ्ते से अधिक समय तक एमपी के बैतूल में रहे और उनके समर्थकों से भी सिंह के दौरे को गोपनीय रखा गया तो सभी चौकन्ने हो गए। इसके पहले गुमनामी के अंधेरे में उत्तराखण्ड में सिंह ने लंबा समय पहाडों की वादियों में गुजारा था। राजनैतिक फिजां में कयास लगाए जा रहे हैं कि अर्जुन सिंह की इस खामोशी के पीछे कहीं आने वाले तूफान के संकेत तो नहीं।


अब कौन सी ताकत पकडेगी बापू को!
पिछले दो दशकों में हिन्दुस्तान की धर्मभीरू जनता का जमकर शोषण किया है स्वयंभू आध्याित्मक गुरूओं ने। अपने वाकजाल और तरह तरह के चमत्कारों के माध्यम से बाबाओं ने जनता को अपना मुरीद बना लिया है। गुजरात के स्वयंभू संत आशाराम बापू पर वहां की सरकार का कडा रूख काफी हद तक भारी पड रहा है। कल तक चिंघाडने वाले आशाराम बापू पिछले कुछ दिनों से शांति का जीवन व्यतीत कर रहे थे। मध्य प्रदेश में उन्होंने एक बयान देकर नया बखेडा खडा कर दिया। गुपचुप मध्य प्रदेश की सैर पर गए बापू के सम्मान में राज्य सरकार द्वारा पलक पांवडे बिछा दिए गए। एमपी के हरदा जिले के चारखेडा स्थित अपने आश्रम में बापू ने कहा कि गुजरात के मुख्यमंत्री अब तक बापू से सात बार माफी मांग चुके हैं। अपने अहं में चूर बापू ने यह तक कह डाला कि दुनिया में कोई ताकत एसी नहीं है, जो उन्हें गिरफ्तार कर सके। अपनी तुलना जगतगुरू शंक्राचार्य जयेंद्र सरस्वती से करते हुए बापू यह तक कह गए कि जिस तरह जयेंद्र सरस्वती को गिरफ्तार करने से जयललिता का तख्ता पलट हुआ था, ठीक उसी तरह उनके खिलाफ षणयंत्र करने वालों की सत्ता पलट हो जाएगी।


नशा शराब में होता तो नाचती बोतल . . .
देश के शासक चाहे जितने कानून कायदे बना ले, उसका पालन जितनी भी मुस्तैदी से करवा ले पर मयकशों को तो पीने का बहाना चाहिए। इसके लिए वे कानून को ताक पर रखने से भी पीछे नहीं रहते। 2009 में दिल्ली की यातायात पुलिस की सुस्त चाल के बावजूद शराब पीकर वाहन चलाने वालों ने एक नया रिकार्ड बना दिया है। वर्ष 2008 से साठ फीसदी ज्यादा लोगों के चालान शराब पीकर वाहन चलाने के जुर्म में काटे गए हैं। यातायात पुलिस के लिए सरदर्द बनने वाले शराबी वाहन चालकों की संख्या में जबर्दस्त इजाफा कोई अच्छा संकेत कतई नहीं माना जा सकता है। वर्ष 2008 में जहां शराबी वाहनों चालकों के 7579 मामले दर्ज किए गए थे, वहीं बीते साल 12,109 लोगों के चालान इस मद में काटे गए हैं। यह कमाल तब हुआ जब साल भर यातायात पुलिस का अमला यातायात नियमों की अनदेखी के लिए प्रसिद्धि पा चुका था। सच है नशा शराब में होता तो नाचती बोतल . . .।


नए साल पर डेढ सौ करोड के एसएमएस!
क्या भारत देश अभी पिछडा हुआ है, क्या हिन्दुस्तान आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है, इस तरह के सवाल भले ही आम हों किन्तु जमीनी हालात देखकर किसी भी दृष्टिकोण से यह नहीं लगता कि इन बातों में बहुत ज्यादा दम है। सवा सौ करोड की आबादी वाले इस भारतवर्ष में करीब 50 करोड फोन उपभोक्ता हैं, जिनमें से 43 करोड मोबाईल धारक हैं। अब यह आंकडा साबित करता हैं कि हर दूसरे आदमी के पास फोन है। हैरानी तब बढ जाती है जब पता चलता है कि 31 दिसंबर से 01 जनवरी के बीच महज एक दिन में डेढ सौ करोड रूपए के एसएमएस भेजे गए। यद्यपि यह आंकडा पिछली दीपावली के आंकडे को पार नहीं कर सका है, फिर भी डेढ सौ करोड रूपए मायने रखते हैं। जिस देश में सत्तर फीसदी लोगों को दो टाईम का भोजन नसीब न हो, जहां तन ढांकने लोगों के पास पर्याप्त कपडे न हों, वहां एक दिन में वह भी अंग्रेजी कलेंडर के नए साल में डेढ सौ करोड रूपए फूंकने का ओचित्य समझ से परे ही है।


सादगी की मिसाल बने अरूण यादव!
मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष सुभाष यादव के पुत्र एवं केंद्रीय भारी उद्योग राज्यमंत्री अरूण यादव ने सादगी की गजब मिसाल कायम की है। मध्य प्रदेश के खण्डवा से चुनाव लोकसभा चुनाव जीते अरूण यादव ने नया साल दलितों के बीच मनाया। यद्यपि वे दो जनवरी को खरगोन के सनावद क्षेत्र के लोधी ग्राम पहुंचे पर नए साल में अपने जनसेवक को अपने बीच देखकर गांव के लोग फूले नहीं समाए। गांव में वे एक दलित देवराम के घर पहुंचे और भोजन किया। इस भोज की विशेषता यह रही कि चर्चा के दौरान ही अरूण यादव ने देवराम को कहा कि वे उसी के घर भोजन करेंगे। देवराम अचंभित होकर कभी अपने झोपडे तो कभी केंद्रीय मंत्री को निहारता रहा। भोजन तैयार होने तक लगभग आधे घंटे से भी अधिक समय तक वे देवराम के घर पर ही रूके रहे, और ग्रामीणों से चर्चा की। अरूण यादव की सादगी देखकर देवराम के मुंह से बरबस ही निकल पडा कि जिस तरह भगवान राम शबरी के घर गए थे, उसी तरह अरूण यादव उनके घर पहुचे हैं।


अपरंपार ही है साई की लीला

महाराष्ट्र प्रदेश के अहमद नगर जिले में एक अनजान कस्बा था, शिरडी, जब इस गांव में साई नाम का बालक आया तबसे यह कस्बा भारत के मानचित्र में विशेष स्थान रखने लगा है। शिरडी के फकीर साई बाबा के आज देश विदेश में न जाने कितने भक्त फैले हैं। साई बाबा ने अपना सारा जीवन परमार्थ के लिए बडी ही सादगी से गुजार दिया। बाबा के भक्तों को बाबा की कृपा से अपार सुख और समृद्धि मिलती है इस बात में भी संदेह नही है। हर साल बाबा के भक्त बाबा के लिए कुछ न कुछ नया कर ही जाते हैं। कोई सोने का सिंहासन देता है तो कोई भक्तों को ठहरने के लिए विशाल भक्त निवास की स्थापना करवाता है। बीते साल के अंतिम सप्ताह में बाबा के संस्थान को 10 करोड रूपए का दान मिला है। 23 से 31 दिसंबर के बीच के दान में यह सबसे अधिक दान है। इसके पूर्व 2007 में सात करोड तो 2008 में इसी अवधि में बाबा के मंदिर को 8 करोड का दान मिला था। 2009 के साल में बाबा के शिरडी संस्थान को 240 करोड की राशि दान में मिली है। बाबा के संस्थान को चाहिए कि शिरडी में एक एसा भव्य अस्पताल बनाए जहां हर प्रकार के रोगों का निशुल्क इलाज हो सके। शायद बाबा की मंशा सभी को स्वस्थ्य और संपन्न रखने की ही हो।

ये दिल्ली का जाम है लवली जी

दिल्ली को मयकशों और यातायात दोनों के जाम के लिए पहचाना जाने लगा है। यहां दिन उगते ही पैग (जाम) लगाने वालों और इसी समय से सडकों पर यातायात जाम लगाने वालों की कमी नहीं है। कल तक इस तरह की बातें दिल्ली सरकार के परिवहन मंत्री अरविंद कुमार लवली ने मीडिया के माध्यम से ही सुनी होंगी पर पहली मर्तबा वे इस जाम से रूबरू हो ही गए। वाक्या यमुना बैंक से आनन्द विहार मेट्रो रूट के उदघाटन का है। बुधवार को बारह बजे केंद्रीय शहरी विकास मंत्री जयपाल रेड्डी और मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने इस मार्ग पर मेट्रो रेल को हरी झंडी दिखाकर इसका शुभारंभ किया। जब हरी झंडी दिखाई जा रही थी तब लवली दिल्ली के जाम से जूझ रहे थे। फिर क्या था, अतिथि इस रेल में सवार होकर आनन्द विहार पहुंचे। आनन्द विहार में लवली इनके साथ हुए और फिर वहां से मेट्रो से वापस यमुना बैंक पहुंचे। अब शायद दिल्ली सरकार के एक मंत्री को समझ में आ ही गया होगा कि दिल्ली की जनता कितनी सहनशील है कि घंटों जाम में फंसे रहने के बावजूद भी अपना आपा नहीं खोती।

कांग्रेस के बस की बात नहीं महिला आरक्षण
कांग्रेस भले ही देश के सर्वोच्च पद महामहिम राष्ट्रपति पर पहली महिला श्रीमति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, लोकसभाध्यक्ष मीरा कुमार को बिठाकर अपनी पीठ थपथपा रही हो पर लगता नहीं है कि कांग्रेस के बस की बात रह गई है महिलाओं को आगे लाना। जिस पार्टी की कमान पिछले दस सालों से श्रीमति सोनिया गांधी के हाथ में रही हो, उस पार्टी की राजस्थान इकाई को एक अदद महिला भी नहीं मिल सकी है, पंचायत चुनाव के प्रभारी बनाने के लिए। राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस सत्ता पर काबिज है। कांग्रेस भले ही महिलाओं को बढावा देने और उन्हें आरक्षण देने के छद्म दावे करे किन्तु पार्टी के अंदर उसकी सोच इससे उलट ही है। राजस्थान में आरक्षण के बाद के परिदृश्य में अब 33 जिला परिषदों में से 16 की कमान इस मर्तबा महिलाओं के हाथों में होगी। महिला आयोग की राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ.गिरिजा व्यास, महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रभा ठाकुर के राजस्थान मूल के होने के बाद भी कांग्रेस को सूबे में प्रभारी बनाने के लिए एक भी योग्य महिला नेत्री का न मिलना आश्चय जनक ही माना जाएगा।

पुच्छल तारा
दिल्ली भीषण ठंड और कोहरे की जद में है। आवागमन मानों थम सा गया हो। दिल्ली की रफ्तार में बे्रक लग गए हैं। सडकों पर दिन रात गाडियां मानों रेंग रहीं हों। दिल्ली से ही रोशनी भार्गव ने मेल भेजा है कि इन हालातों में सालों बाद दिल्ली में वाहन चालकों में ट्रेफिक सेंस जागा है। पहली बार गाडी चलाने वाले रेड लाईट पर बहुत संभलकर चल रहे हैं, कोई भी रेड लाईट जंप नहीं कर रहा है। यह वाकई सुखद अनुभूति है कि कोहरे में ही सही दिल्ली में यातायात नियमों का अक्षरश: पालन होता दिख रहा है। एसा कुछ भी नहीं है। दरअसल जान सबको प्यारी है। कोई भी कोहरे में रेड लाईट जम्प कर एक्सीडेंट का जोखिम नही उठाना चाहता है। पता नहीं कब कौन सी गाडी सामने से आ जाए और ठोककर चली जाए। सो बेहतरी इसी में है कि चौक चौराहों पर हरी लाईट होने पर ही अपनी गाडी आगे बढाएं।