शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

माधुरियों से पटा पडा है देश

माधुरियों से पटा पडा है देश

आखिर कब जागेगा देशप्रेम का जज्बा

क्यों बन्द हो गए देशप्रेम के गीत

किस रास्ते पर ले जा रही है सरकार आवाम को

(लिमटी खरे)

उच्च स्तर पर बैठे एक राजनयिक और भारतीय विदेश सेवा की बी ग्रेड की अफसर माधुरी गुप्ता ने अपनी हरकतों से देश को शर्मसार कर दिया है, वह भी अपने निहित स्वार्थों के लिए। माधुरी गुप्ता ने जो कुछ भी किया वह अप्रत्याशित इसलिए नहीं माना जा सकता है क्योंकि जब देश को चलाने वाले नीतिनिर्धारक ही देश के बजाए अपने निहित स्वार्थों को प्रथमिक मान रहे हों तब सरकारी मुलाजिमों से क्या उम्मीद की जाए। आज देश का कोई भी जनसेवक करोडपति न हो एसा नहीं है। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि और इतिहास खंगाला जाए और आज की उनकी हैसियत में जमीन आसमान का अन्तर मिल ही जाएगा। देश के सांसद विधायकों के पास आलीशान कोठियां, मंहगी विलसिता पूर्ण गाडिया और न जाने क्या क्या हैं, फिर नौकरशाह इससे भला क्यों पीछे रहें।

नौकरशाहों के विदेशी जासूस होने की बात कोई नई नहीं है। जासूसी के ताने बाने में देश के अनेक अफसरान उलझे हुए हैं। पडोसी देश पाकिस्तान के लिए जासूसी करने के आरोप में पकडी गई राजनयिक माधुरी गुप्ता पहली अधिकारी नहीं हैं, जिन पर जासूसी का आरोप हो। इसके पहले भी अनेक अफसरान इसकी जद में आ चुके हैं, बावजूद इसके भारत सरकार अपनी कुंभकणीZय निन्द्रा में मगन है, जो कि वाकई आश्चर्य का विषय है। लगता है इससे बेहतर तो ब्रितानी हुकूमत के राज में गुलामी ही थी।

भारतीय नौ सेना के एक अधिकारी सुखजिन्दर सिंह पर एक रूसी महिला के साथ अवैध सम्बंधों की जांच अभी भी चल रही है। 2005 से 2007 के बीच उक्त अज्ञात रूसी महिला के साथ सुखजिन्दर के आपत्तिजनक हालात में छायाचित्रों के प्रकाश में आने के बाद सेना चेती और इसकी बोर्ड ऑफ इंक्वायरी की जांच आरम्भ की। इस दौरान सुखजिन्दर पर विमानवाहक पोत एडमिरल गोर्शकेश की मरम्मत का काम देखने का जिम्मा सौंपा गया था। सुखजिन्दर पर आरोप है कि उसने पोत की कीमत कई गुना अधिक बताकर भारत सरकार का खजाना हल्का किया था।

बीजिंग में भारतीय दूतावास के एक वरिष्ठ अधिकारी मनमोहन शर्मा को 2008 में चीन की एक अज्ञात महिला के साथ प्रेम की पींगे बढाने के चलते भारत वापस बुला लिया गया था। भारत सरकार को शक था कि कहीं उक्त अधिकारी द्वारा उस महिला के मोहपाश में पडकर गुप्त सूचनाएं लीक न कर दी जाएं। सरकार मान रही थी कि वह महिला चीन की मुखबिर हो सकती है। 1990 के पूर्वार्ध में नेवी के एक अधिकारी अताशे को आईएसआई की एक महिला एजेंट ने अपने मोहपाश में बांध लिया था। उक्त महिला करांची में सेन्य नर्सिंग सर्विस में काम किया करती थी। बाद में अताशे ने अपना गुनाह कबूला तब उसे नौकरी से हटाया गया।

इसी तरह 2007 में रॉ के एक वरिष्ठ अधिकारी (1975 बेच के अधिकारी) को हांगकांग में एक महिला के साथ प्रगाढ सम्बंधों के कारण शक के दायरे में ले लिया गया था। उस महिला पर आरोप था कि वह चीन की एक जासूसी कंपनी के लिए काम किया करती थी। रॉ के ही एक अन्य अधिकारी रविन्दर सिह जो पहले भारत गणराज्य की थलसेना में कार्यरत थे पर अमेरिकन खुफिया एजेंसी सीआईए के लिए काम करने के आरोप लग चुके हैं। रविन्दर दक्षिण पूर्व एशिया में रॉ के एक वरिष्ठ अधिकारी के बतौर कर्यरत था। इस मामले में भारत को नाकमी ही हाथ लगी, क्योकि जब तक रविन्दर के बारे में सरकार असलियत जान पाती तब तक वह बरास्ता नेपाल अमेरिका भाग चुका था। 80 के दशक में लिट्टे के प्रकरणों को देखने वाले रॉ के एक अफसर को एक महिला के साथ रंगरेलियां मनाते हुए पकडा गया। उक्त महिला अपने आप को पैन अमेरिकन एयरवेज की एयर होस्टेस के बतौर पेश करती थी। इस अफसर को बाद में 1987 में पकडा गया।

इस तरह की घटनाएं चिन्ताजनक मानी जा सकतीं हैं। देशद्रोही की गिरफ्तारी पर सन्तोष तो किया जा सकता है, पर यक्ष प्रश्न तो यह है कि हमारा सिस्टम किस कदर गल चुका है कि इनको पकडने में सरकारें कितना विलंब कर देतीं हैं। भारत पाकिस्तान के हर मसले वैसे भी अतिसंवेदनशील की श्रेणी में ही आते हैं, इसलिए भारत सरकार को इस मामले में बहुत ज्यादा सावधानी बरतने की आवश्यक्ता है। वैसे भी आदि अनादि काल से राजवंशों में एक दूसरे की सैन्य ताकत, राजनैतिक कौशल, खजाने की स्थिति आदि जानने के लिए विष कन्याओं को पाला जाता था। माधुरी के मामले में भी कमोबेश एसा ही हुआ है।

माधुरी गुप्ता का यह बयान कि वह अपने वरिष्ठ अधिकारियों से बदला लेने के लिए आईएसआई के हाथों की कठपुतली बन गई थी, वैसे तो गले नही उतरता फिर भी अगर एसा था कि वह प्रतिशोध की ज्वाला में जल रही थी, तो भारत की सडांध मारती व्यवस्था ने उसे पहले क्यों नहीं पकडा। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि भारत का गुप्तचर तन्त्र (इंटेलीजेंस नेटवर्क) पूरी तरह भ्रष्ट हो चुका है। आज देश को आजाद हुए छ: दशक से ज्यादा बीत चुके हैं, और हमारे ``सम्माननीय जनसेवकों`` द्वारा खुफिया तन्त्र का उपयोग अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने के लिए ही किया जा रहा है। क्या यही है नेहरू गांधी के सपनों का भारत!

गडकरी के लिए मुसीबत बने हेवीवेट नेता

गडकरी के लिए मुसीबत बने हेवीवेट नेता

राज्यों के अध्यक्षों में देरी का कारण नेताओं का एकमत न होना

पूर्व अध्यक्षों ने भी चलाया असयोग आन्दोलन

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 30 अप्रेल। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के वरदहस्त के बावजूद भी भारतीय जनता पार्टी के नए निजाम नितिन गडकरी को पार्टी के हेवीवेट नेताओं को एक सूत्र में पिरोने में पीसना आने लगा है। यही कारण है कि जनाधार वाले सूबों में भी राज्य इकाई के अध्यक्षों के नामों पर अन्तिम मोहर नहीं लगाई जा सकी है। बाहर से तो पार्टी में मतभेद और मनभेद नहीं दिखाई पड रहे हैं, पर अन्दरूनी तौर पर सर फटव्वल की नौबत आ रही है। पार्टी के अन्दर के झगडे अब सडकों पर आने लगे हैं।

भाजपा के स्वयंभू लौहपुरूष का तगमा लेने वाले राजग के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आडवाणी को अब संघ के निर्देश पर शनै: शनै: पाश्र्व में ढकेलने की कवायद की जा रही है। आडवाणी की नाराजगी का आलम यह है कि भाजपा के स्थापना दिवस के कार्यक्रम में ही उन्होंने देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में रहते हुए किसी भी प्रोग्राम में शिरकत करना मुनासिब नहीं समझा। इतना ही नहीं टीम गडकरी की पहली बैठक में भी उन्होंने अपना मुंह सिल रखा था। इस दौरान उन्होंने उद्बोधन देने में दिलचस्पी नहीं दिखाई। अमूमन आडवाणी एसे मौकों पर पार्टी का मार्गदर्शन अवश्य ही किया करते हैं।

गडकरी के सामने सबसे बडी समस्या यह है कि वे सूबाई राजनीति से एकाएक उछलकर राष्ट्रीय परिदृश्य में आ गए हैं, जहां के रस्मो रिवाज से वे भली भान्ति परिचित नहीं हैं। अब तक हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष भी गडकरी के कदमताल से खुश नहीं हैं। आडवाणी के सुर में सुर मिलाते हुए राजनाथ सिंह, वेंकैया नायडू, मुरली मनोहर जोशी ने भी अघोषित तौर पर असहयोग आन्दोलन चलाया हुआ है। राजनाथ अपनी पूरी ताकत यूपी में अपने पसन्द के व्यक्ति को अध्यक्ष बनाने में झोंक रहे हैं तो मीडिया के दुलारे रहे नायडू ने भी मीडिया से पर्याप्त दूरी बना रखी है। एक समय में एक दिन में तीन तीन सूबों की मीडिया से रूबरू होने वाले नायडू अब अपने आप को आईसोलेटेड रखे हुए हैं। इसी तरह पूर्व अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी अपनी उपेक्षा से दुखी ही नज़र आ रहे हैं। वे भी पार्टी के कामों में दिलचस्पी लेने के बजाए अब अकादमिक सेमीनारों में अपना वक्त व्यतीत कर रहे हैं।

उधर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज और राज्य सभा में विपक्ष के नेता अरूण जेतली के बीच चल रहे कोल्ड वार के चलते भी गडकरी बुरी तरह परेशान नज़र आ रहे हैं। अरूण जेतली के लिए पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी का प्यार जगजाहिर है, यही कारण है कि सुषमा स्वराज ने पार्टी के कामकाज से अपने आप को अलग थलग ही कर रखा है। कुल मिलाकर हेवीवेट नेताओं ने अपने अहम के चलते नए निजाम नितिन गडकरी की राह में शूल ही शूल बो दिए हैं।

उमा नहीं तो भाजपा के गांधी कूदेंगे राहुल के खिलाफ

उमा नहीं तो भाजपा के गांधी कूदेंगे राहुल के खिलाफ

युवाओं के मोहभंग के खतरे से खौफजदा है नेतृत्व

वरूण की अधिक से अधिक सभाएं कराने का प्रयास

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 30 अप्रेल। भारतीय जनता पार्टी से नाता तोडकर भारतीय जनशक्ति पार्टी बनाकर उसके अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देने वाली उमा भारती की भाजपा में वापसी की राह बहुत ही कटीली नज़र आ रही है। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने उमा की वापसी के मार्ग प्रशस्त होने तक भाजपा के गांधी (वरूण गांधी) को कांग्रेस के गांधी (राहुल गांधी) के खिलाफ मैदान में उतारने की रणनीति पर काम आरम्भ कर दिया है। भाजपा अध्यक्ष के करीबी सूत्रों का कहना है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को डर सता रहा है कि कहीं कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के मोह में फंसकर उत्तर प्रदेश के युवा भाजपा से किनारा न कर लें।

वैसे भी भाजपा का पूरा ध्यान अब उत्तर प्रदेश की ओर केन्द्रित होकर रह गया है। पार्टी नेतृत्व चाहता है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा अपनी खोई साख फिर से वापस पा ले। यही कारण है कि नेतृत्व द्वारा उमा भारती, कल्याण सिंह के अभाव में राहुल गांधी की वैकल्पिक काट के तौर पर वरूण गांधी को आगे कर दिया है। वरूण गांधी के भाषणों में हिन्दुत्व को लेकर जो तल्ख तेवर संघ ने देखे हैं, वह चाहता है कि उत्तर प्रदेश में वरूण का भरपूर उपयोग कर युवाओं को भाजपा के और करीब लाया जाए।

गौरतलब है कि दिसम्बर से अब तक यूपी में वरूण गांधी की तीन सभाएं करवाई जा चुकी हैं। सूत्रों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में वरूण गांधी को युवा, उर्जावान स्टार प्रचारक के तौर पर स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है। अगामी दो मई को वरूण की एक सभा जौनपुर के सुजानगंज तो जल्द ही अलीगढ के सिकन्दराराउ में कराने की तैयारी चल रही है। वहीं खबर है कि अनेक नेता अब वरूण गांधी की सभाएं अपने अपने क्षेत्र में करवाने के लिए प्रयासरत हैं। वरूण गांधी के पास से छन छन कर बाहर आ रही खबरों पर अगर यकीन किया जाए तो उनके राजनैतिक गुरू के तौर पर वे अपनी मां मेनका गांधी का पूरा सम्मान करते हैं, और उन्ही की रणनीति पर वे आगे बढ रहे हैं। कहा जा रहा है कि वे भी उत्तर प्रदेश को लेकर खासे चिन्तित नज़र आ रहे हैं।

उत्तर प्रदेश की सियासत में चल पडी बयार ने कांग्रेस के प्रबंधकों की पेशानी पर पसीने की बून्दे छलका दी हैं। यूपी के भाजपाई चाहते हैं कि वरूण गांधी को यूपी में बतौर मुख्यमन्त्री प्रोजेक्ट किया जाना चाहिए, इससे युवाओं में अच्छा मैसेज जाएगा। यह सच है कि उत्तर प्रदेश की जनता पुराने चेहरों से उब चुकी है, और वह नया चेहरा देखना चाह रही है। यही कारण है कि पिछले लोकसभा चुनावों के उपरान्त वरूण गांधी एकाएक स्टार प्रचारक बनकर उभरे थे, सूबे में उनकी डिमाण्ड अन्य किसी भी नेता से बहुत ज्यादा थी।

उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्यों के बीच चल रही चर्चाओं में भी वरूण गांधी को प्रदेश के हर इलाके में जाने की बात कही जा रही है। गोण्डा, बहराइच, आजमगढ, बनारस, सीतापुर, बस्ती, सिद्धार्थनगर, गोरखपुर आदि इलाकों से तो वरूण की सभाओं की मांग जबर्दस्त तरीके से आ चुकी है। विधायक तो यहां तक कह रहे हैं कि अगर उनकी सीट बरकार रहेगी तो सिर्फ और सिर्फ वरूण गांधी की सभाओं के चलते। अनेक विधायक तो वरूण गांधी को तारणहार के तौर पर देख रहे हैं।

गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

सत्ता सदा ही फिसली है गुरूजी के हाथ से

सत्ता सदा ही फिसली है गुरूजी के हाथ से

राजनैतिक अस्थिरता नियति बन गई है झारखण्ड की

विवाद और सोरेन का चोली दामन का साथ

(लिमटी खरे)

झारखण्ड के मुख्यन्त्री शिबू सोरेन कहीं रहें और वे विवादित और चर्चित न हों एसा कैसे हो सकता है। सोरेन और विवाद का तो चोली दामन का साथ है। केन्द्र हो या सूबाई सरकार। जब कभी भी सोरेन की ताजपोशी की गई उसके बाद से ही उनके पदच्युत होने की खबरें फिजां में तैरती रहीं हैं। चार माह पूर्व भाजपा की मदद से सोरेन तीसरी मर्तबा झारखण्ड के मुख्यमन्त्री की कुर्सी पर बैठे थे। चूंकि वे सदन (विधानसभा) के सदस्य नहीं थे, अत: नियमानुसार उन्हें छ: माह के भीतर विधायक बनना बहुत जरूरी था। सोरेन को विधायक बनने के लिए अपने ही दल के 18 सदस्यों में से एक का त्यागपत्र चाहिए था, जहां से उपचुनाव करवाकर वे सदन के सदस्य बनते। लोगों के आश्चर्य का तब ठिकाना नहीं रहा जब सोरेन संसद मेें अचानक सांसद की हैसियत से ही प्रकट हो गए। अपने ही दल में सोरेन को एक भी सीट खाली करने वाला नहीं मिला। वे जामा सीट पर किस्मत आजमाना चाहते थे, पर यहां से उनके बेटे स्वर्गीय दुगाZ की पित्न सीता विधायक हैं, और उन्होंने अपने ससुर को दो टूक शब्दों में जवाब दे दिया कि वे सीट खाली करने तैयार नहीं हैं। रही बात उनके पुत्र हेमन्त की तो दुमका सीट हेमन्त छोडने को तैयार हैं, पर सोरेन को लगता है कि अगर उन्होंने कुर्सी छोडी तो राजपाट सम्भालने के लिए हेमन्त से मुफीद और कोई नहीं होगा, सो पुत्रमोह में वे इस सीट से हेमन्त का त्यागपत्र नहीं दिलवाना चाहते हैं।

इतिहास साक्षी है कि सोरेन इसके पहले भी दो बार मुख्यमन्त्री बन चुके हैं पर निजाम की कुर्सी पर वे ज्यादा दिन काबिज नहीं रह पाए थे। 2005 में सोरेन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के सहयोग से मुख्यमन्त्री बन पाए थे, इस समय वे महज नौ दिन में ही टें बोल गए थे। इसके बाद एक बार फिर 2008 में यूपीए ने ही सहयोग कर उन्हें मुख्यमन्त्री बनाया इस बार भी महज चार महीनों का ही राजपाट उन्हें नसीब हुआ था। इस बार उन्होंने तमाड सीट से उपचुनाव लडा, पर हारने के कारण उन्हें कुर्सी त्यागनी पडी थी। सोरेन केन्द्र में कोयला मन्त्री रहे हैं, कोयला मन्त्री रहते हुए उन पर लदे प्रकरणों के चलते उनका आधा समय अदालत की दहलीज पर ही गुजर रहा है। इतना ही नहीं सोरेन पर हत्याओं के जघन्य आरोप भी हैं। उनके निजी सचिव शशिकान्त झा हत्याकाण्ड, कुडको हत्याकाण्ड, चीरूडीह नरसंहार जेसे मामलों से सोरेन उबर नहीं पाए हैं।

11 जनवरी 1944 में जन्मे सोरेन की राजनैतिक यात्रा 1971 से आरम्भ हुई। इस साल वे झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के महासचिव बने और 1980 में वे सातवीं लोकसभा के लिए चुने गए। इसके छ: साल बाद 1986 में वे झामुमो के अध्यक्ष बने और 1989, 1996, 2002, 2004 में लोकसभा सदस्य बने। मई 2004 में वे कोयला और खान मन्त्री बने और जुलाई 2004 में उन्होंने यह पद त्यागकर सूबाई राजनीति की ओर कदम बढा लिए। सोरेन 01 जनवरी से अपने 61 वें जन्म दिन 11 जनवरी 2005 तक झारखण्ड के सीएम बने। इसके बाद वे 29 जनवरी 06 से 28 नवंबर 2006 तक कोयला मन्त्री रहे। 2009 में एक बार फिर लोकसभा के लिए चुने जाने के बाद गुरूजी 30 दिसम्बर 2009 को झारखण्ड के मुख्यमन्त्री बने।

गुरूजी की चालों को समझ पाना असान नहीं है। झारखण्ड में सोरेन भाजपा के पेरोल पर ही टिके हुए हैं। बावजूद इसके लोकसभा में कटौती के प्रस्ताव पर भाजपा के खिलाफ ही अपना वोट डालने के बाद सोरेन ने रात का भोजन भाजपा के निजाम नितिन गडकरी के घर पर ही किया। सोरेन के लिए मेजबानी करने वाले नितिन गडकरी को जब पता चला कि गुरूजी ने भाजपा की पीठ पर ही खंजर घोंप दिया है, तो उनके पैरों के नीचे से जमीन ही निकल गई।

गठबंधन धर्म से हटकर अपने निहित स्वार्थों की बलिवेदी पर शिबू सोरेन ने झारखण्ड जैसे छोटे राज्य में राजनैतिक अस्थिरता पैदा कर दी है। भाजपा के समर्थन वापस लेने से अब जेवीएम के बाबूलाल मराण्डी के साथ मिलकर सरकार बनाने के रास्ते साफ नहीं दिखाई पड रहे हैं। कांग्रेस के मैनेजरों ने अगर उन्हें तैयार भी कर लिया तो भी यह गठबंधन बहुत ज्यादा दिन टिक नहीं पाएगा। समूचा घटनाक्रम गुरूजी की राजनैतिक महात्वाकांक्षा की ओर ही इशारा कर रहा है। गुरूजी चाहते हैं कि वे अपनी राजनैतिक विरासत को अपने पुत्र हेमन्त के हाथों सौंप सकें। इसके लिए वे जमीन तैयार करने में जुटे हुए हैं। उन पर लदे मुकदमों के बोझ से उनकी कमर टूटने की कगार पर है। अगर वे संसद में कांग्रेस का साथ न देते तो जांच एजेंसियों की धार पैनी होना स्वाभाविक ही था। अब सोरेन को जांच में कुछ हद तक राहत मिलने की उम्मीद है। यह है भारत गणराज्य का इक्कीसवीं सदी का प्रजातन्त्र, जिसमें सरकारी एजेंसियों को देश के निजाम अपने नफा नुकसान के हिसाब से इस्तेमाल करने से नहीं चूकते हैं।

कितने आश्चर्य की बात है कि नए राज्य के अस्तित्व में आने के दस सालों बाद भी सूबे के मतदाता किसी भी एक दल को पूर्ण बहुमत देने को तैयार नहीं हैं। झारखण्ड में उपजी परिस्थितियों में अब राष्ट्रपति शासन एक विकल्प के तौर पर उभरकर सामने आया है। केन्द्र सरकार के लिए यह विकल्प काफी हद तक सरल होगा, क्योंकि इसमें परोक्ष तौर पर शासन की बागडोर कांग्रेस के हाथ में होगी। इसके अलावा कांग्रेस द्वारा मरांउी और सोरेन के साथ गठबंधन कर सरकार चलाई जा सकती है। इसमें सोरेन को केन्द्र में मन्त्रीपद तो मराण्डी को सीएम और हेमन्त सोरेन को उपमुख्यमन्त्री पद से नवाजना विकल्प है। कुल मिलाकर हर पहलू से देखने से यही प्रतीत होता है कि आने वाले दिनों में सोरेन की राह बहुत आसान तो प्रतीत नहीं होती है।

वजीरे आजम पेश करेंगे रिपोर्ट कार्ड


वजीरे आजम पेश करेंगे रिपोर्ट कार्ड

यूपीए 2 की पहली सालगिरह 22 को

पीएमओ कर रहा जोर शोर से तैयारियां

अंग्रेजी में होगा मन्त्रालयों का लेखा जोखा

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 29 अप्रेल। गांधी नेहरू परिवार से इतर पहले कांग्रेसी प्रधानमन्त्री होने का खिताब पाने वाले डॉ.मनमोहन सिंह जिन्होंने लगातार दूसरी बार 7 रेसकोर्स रोड (प्रधानमन्त्री का सरकारी आवास) पर अपना कब्जा बरकरार रखा है, के द्वारा अब अपनी दूसरी पारी के पहले साल में कुछ नया करने की ठानी है। 22 मई को एक साल का कामकाज पूरा होने पर प्रधानमन्त्री कार्यालय (पीएमओ) द्वारा सरकार का रिपोर्ट कार्ड जनता के समक्ष रखा जा सकता है, ताकि जनता फैसला कर सके कि यह सरकार काम करने वाली सरकार है, न कि बतोले बाजी में वक्त जाया करने वाली।

पीएमओ के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि प्रधानमन्त्री के प्रमुख सचिव टी.के.ए.नायर द्वारा अनेक मन्त्रियों और मन्त्रालय को पत्र लिखकर समय सीमा (टाईम लिमिट) में उनके मन्त्रालयों की उपलब्धियां भेजने के लिए खत लिख चुके हैं। सूत्रों के अनुसार भारत गणराज्य की भाषा हिन्दी है, पर यह रिपोर्ट कार्ड अंग्रेजी में ``रिपोर्ट टू द प्यूपिल`` के नाम से जारी किया जाएगा। कहा जा रहा है कि जनता के बजाए इसे एलीट क्लास के लोगों को समझाने के लिए जारी की जा रही है। आखिर सरकार चलती भी तो उन्हीं के इशारों पर ही है।

भले ही मन्त्रालयों पर काबिज मन्त्री भ्रष्टाचार के तराने गा रहे हों, आसमान छूती मंहगाई के चलते जनता की कमर टूटी हो, शशि थुरूर के कारण कांग्रेस की भद्द पिट रही हो पर प्रधानमन्त्री चाहते हैं कि उनकी सरकार का उजला पक्ष जनता के सामने आए। वैसे इस प्रतिवेदन में महिला आरक्षण बिल, शिक्षा का अधिकार, फुड सिक्यूरिटी बिल को प्रमुखता के साथ शामिल किए जाने की खबर है। गौरतलब है कि प्रधानमन्त्री ने शिक्षा के अधिकार के लागू होने वाले दिन प्रधानमन्त्री ने लीक से हटकर राष्ट्र को संबोधित किया था।

प्रधानमन्त्री की मंशा के चलते अनेक मन्त्रियों की सांसे थम गई हैं। दूसरी पारी में नए विभागों से सजे धजे मन्त्रियों द्वारा अपना पूरा समय मौज मस्ती और पुरानी रंजिशें निकालने में गंवा दिया है, अत: उनके पास अब नया करने को कुछ खास नहीं है, जिसे वे अपनी उपलब्धि के बतौर बता सकें। कहा जा रहा है कि विभाग की सूरत और सीरत को रंग रोगन कर संवारने के लिए मन्त्रियों ने कुछ प्रोफेशनल्स की मदद भी ली जा रही है, ताकि पुरानी उपलब्धियों को नए मन्त्रियों के खाते में डालकर अपनी जान छुडाई जा सके।

आडवाणी की ओर से आंखें फेरी संघ ने

आडवाणी की ओर से आंखें फेरी संघ ने
 
गडकरी भी नहीं दे रहे आडवाणी को ज्यादा भाव
 
सिंघल भी दिखा चुके हैं तीखे तेवर
 
संघ चाहता है कमल एक बार फिर देश में छा जाए
 
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 29 अप्रेल। मुरझाए कमल के फूल की पंखुडियों को एक बार फिर नई उर्जा देकर खडा करने की कोशिश में लगे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अब अपना रोड मेप तय कर लिया है। पिछले कुछ सालों में हुई गिल्तयों पर मनन करने के बाद संघ ने अब आत्मकेन्द्रित घाघ नेताओं के पर कतरने की कार्ययोजना बना ली है। लगता है कि इस मुहिम में सबसे पहले राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबंधन के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आडवाणी की लाटरी लगी है, वे आजकल संघ के निशाने पर बताए जा रहे हैं।
 
संघ के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि अटल बिहारी बाजपेयी के सक्रिय राजनीति से सन्यास लेते ही पार्टी के स्वयंभू नए खिवैया बनकर उभरे एल.के.आडवाणी ने खुद को प्रधानमन्त्री बनवाने के लिए पार्टी का बंटाधार करने में कोई कोर कसर नहीं रख छोडी थी। आडवाणी की कीर्तन मण्डली ने उन्हीं को उपकृत किया था, जो आडवाणी की चरण वन्दना में विश्वास रखते थे, एसी परिस्थितियों में पार्टी के अनेक कुशल नेताओं ने अपने आप को एक दायरे में समेटकर रख लिया था।
 
संघ ने आडवाणी के पर करतने के उपक्रम में उन नेताओं को एक छतरी के नीचे लाना आरम्भ कर दिया है, जो कभी आडवाणी के कट्टर विरोधी रहे हैं। सूत्रों की माने तो संघ का शीर्ष नेतृत्व इन दिनों उमा भारती, गोविन्दाचार्य, सुब्रहामण्यम स्वामी, अशोक सिंघल, मदन लाल खुराना, कल्याण सिंह, यशवन्त सिन्हा जैसे वरिष्ठ नेताओं से सतत संपर्क बनाए हुए है। इन्ही के साथ रायशुमारी कर संघ अपने अगले कदम तय कर रहा है। संघ के नेतृत्व की इच्छा है कि कालराज मिश्र जैसे सीजन्ड नेताओं को देश में कमल को खिलाने के लिए एक बार फिर जवाबदारी दी जा सकती है। सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि मोहन भागवत सहित भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने आडवाणी को हाशिए में ढकेलने के अभियान की कमान सम्भाल रखी है।
 
भाजपा से बिछुडे कल्याण सिंह और उमा भारती अब गोविन्दाचार्य के अगले कदम की बाट जोह रहे हैं। कल्याण सिंह की घर वापसी के लिए भाजपा के नए निजाम नितिन गडकरी ने कल्याण पुत्र राजवीर को दाना डाला हुआ है। हरिद्वार में सन्तों के बीच विहिप के वरिष्ठ नेता अशोक सिंघल भी आडवाणी के खिलाफ जहर बुझे तीर चला चुके हैं। बकौल सिंघल आडवाणी की रथ यात्रा के कारण मन्दिर नहीं बन पाया था। सिंघल ने तो आडवाणी को आडे हाथों लेते हुए यह तक कह दिया कि उनकी रथयात्रा वोट बैंक के लिए थी। कहा जा रहा है कि गडकरी और संघ का शीर्ष नेतृत्व मिलकर कुछ नए एक्सपेरीमेंट करने की तैयारी में हैं। इस तरह के प्रयोग एल.के.आडवाणी, सुषमा स्वराज, वेंकैया नायडू, अरूण जेतली आदि को शायद ही रास आएं।

बुधवार, 28 अप्रैल 2010

राजधानी की फिजां में जहर!

राजधानी की फिजां में जहर!

साढे तीन सौ गुना ज्यादा हैं सूक्ष्म कण
 
श्वसन तन्त्र, किडनी, लीवर की बज रही है बारह
 
कामन वेल्थ के नाम पर शीला सरकार का नंगा नाच
 
लोगों के स्वास्थ्य की कीमत पर कैसी तैयारी
 
किसने दिया लोगों के स्वास्थ्य के साथ खेलने का लाईसेंस
 

 
(लिमटी खरे)

राष्ट्रमण्डल खेल की तैयारियों में विलंब को लेकर सन्देह के दायरे में आई शीला सरकार के हाथ पैर फूलना स्वाभाविक ही है। तीन चार साल तक सोने के बाद जब समय कम बचा तब कम समय में युद्ध स्तर पर कार्यवाही को अंजाम देने के लिए काम कराया जा रहा है, जिससे दिल्लीवासियों का दम फूलने लगा है। समूची दिल्ली का सीना खुदा पडा है। जहां तहां तोडफोड और गेन्ती फावडे, जेसीवी मशीन का शोर सुनाई पड रहा है। हालात इतने बदतर हैं कि स्वास, किडनी और लीवर के रोगियों की तादाद में आने वाले समय में तेजी से इजाफा हो सकता है।
 
प्रदूषण के लिए दिल्ली का नाम सबसे उपर ही आता है। एक समय में डीजल पेट्रोल से चलने वाले वाहनों ने लोगों का जीना दुश्वार कर रखा था। दिल्ली में सडक किनारे लगे पेड पौधे तक काले पड गए थे। न्यायालय के आदेश के बाद दिल्ली में डीजल पेट्रोल के व्यवसायिक वाहनों को सीएनजी के माध्यम से चलाने का निर्णय लिया गया। उस समय भी खासी हायतौबा मची थी। शनै: शनै: मामला पटरी पर आया और दिल्ली में प्रदूषण का स्तर कुछ हद तक काबू में आ गया।
 
कामन वेल्थ गेम्स इसी साल के अन्त में होने हैं। 2006 में इसकी तैयारियां आरम्भ कर दी गईं थीं। विडम्बना देखिए कि पांच सालों तक दिल्ली की गद्दी पर राज करने वाली शीला दीक्षित के नेतृत्व वाली सरकार सोती रही और जब अन्तिम समय आया तब जागकर इसकी तैयारियों के लिए कमर कस रही है। आज हालात यह है कि दिल्ली के किसी भी इलाके में अगर साफ प्लेट रख दी जाए तो बमुश्किल घंटे भर के अन्दर ही उस पर गर्त चढी हुई मिलेगी।
 
दिल्ली के दिल कहलाने वाले कनाट सर्कस (कनाट प्लेस) में पिछले साल रंगरोगन और निखारने का काम आरम्भ हुआ था। साल भर से यहां खुदाई और तोडफोड का काम चल रहा है। समय की कमी के चलते कनाट प्लेस के तीनों सिर्कल का काम एक साथ ही आरम्भ किया गया था। इससे लोगों को बेहद असुविधा का सामना करना पड रहा है। यहां चलने वाले निर्माण कार्य के चलते कनाट प्लेस के आउटर सिर्कल में वाहन रेंगते ही नज़र आते हैं। इन वाहनों से निकलने वाला धुंआ भी लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना नहीं है।
 
दिल्ली के दिल में वायू प्रदूषण के चलते नई दिल्ली महानगर पलिका निगम ने इटली की एक कंपनी के सहयोग से यहां सिस्टम लाईफ (सीआईटीटीए) नामक मशीन संस्थापित की। यह मशीन वातावरण के वायू प्रदूषण को खींचकर वातावरण में स्वच्छ हवा को छोडती है। कहा जाता है कि उक्त मशीन 95 फीसदी तक प्रदूषण मुक्त कर देती है। इस साल 06 मार्च को लगी इस मशीन के बारे में कहा जाता है कि यह मशीन चालीस एकड क्षेत्र की आबोहवा को साफ कर देती है।
 
27 अप्रेल को जब इटली की कंपनी ने मशीन में एकत्र हुए जहरीले और हानिकारक तत्वों के बारे में मोडेना विश्वविद्यालय इटली में हुए शोध के परिणामों को उजागर किया तो सभी की सांसे थम गईं। प्रतिवेदन बताता है कि कनाट सर्कस की आबोहवा में पाए गए तत्व इंसान के लिए बहुत ही ज्यादा घातक हैं। पीएम एक, दो दशमलव पांच और दस की श्रेणी में विभाजित इन तत्वों में पीएम एक सबसे अधिक नुकसानदेह बताया जाता है। बताते हैं कि सूक्ष्म कण (पीएम एक) की अधिकतम मात्रा 60 होनी चाहिए जो कनाट प्लेस में बीस हजार है।
 
जानकार चिकित्सकों का कहना है कि इतनी अधिक मात्रा में सूक्ष्म कण के पाए जाने से इंसान के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पडने से इंकार नहीं किया जा सकता है। इस तरह के कण सीधे सीधे स्वशन तन्त्र, तन्त्रिका तन्त्र, लीवर, फेंफडे, दिल, किडनी पर सीधा हमला करते हैं। इससे आम आदमी को लीवर, रक्त और फैंफडों के कैंसर के होने से इंकार नहीं किया जा सकता है। सबसे ज्यादा फजीहत तो यहां काम करने वाले श्रमिकों की है, जिन्हें बिना किसी सुरक्षा उपकरणों के सीधे मौत के मुंह में धकेला जा रहा है। इसके अलावा कनाट प्लेस और आसपास काम करने वाले कर्मचारियों के साथ ही साथ यहां के दुकानदार मुनाफे में ही इस तरह की संगीन बीमारियों को गले लगाने पर मजबूर हैं। कमोबेश यही आलम समूची दिल्ली का है।
 
हमारा कहना महज इतना ही है कि जब समय था तब अगर मन्थर गति से ही सही तैयारियां की जातीं तो आज सरकार को आनन फानन में दिल्ली को एक साथ नहीं खोदना पडता। दिल्लीवासियों के स्वास्थ्य की कीमत पर राष्ट्रमण्डल खेल करान कहां की समझदारी है। यक्ष प्रश्न तो यह है कि आखिर दिल्ली और केन्द्र सरकार को दिल्ली के निवासियों और बाहर से आने जाने वाले लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड करने का लाईसेंस किसने दिया। वह तो भला हो सिस्टम लाईफ मशीन का जिसने इस खतरे से आगाह कर दिया, वरना सरकार तो लोगों को बीमार बनाने का पुख्ता इन्तजाम कर चुकी थी। वैसे मशीन के चेताने से भी भला क्या होने वाला है, सरकार को अपना काम करना है, ठेकेदार को अपना, पर सदा की तरह पिसना तो आम जनता को ही है।

अन्तत: मध्य प्रदेश का ताज प्रभात झा को


अन्तत: मध्य प्रदेश का ताज प्रभात झा को
 
उमाश्री मामले के चलते शिवराज ने दी अपनी सहमति
 
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 28 अप्रेल। लंबी जद्दोजहद के बाद अन्तत: मध्य प्रदेश भाजपाध्यक्ष के लिए प्रभात झा का नाम तय हो ही गया है। 02 मई को प्रदेश के प्रभारी कालराज मिश्र देश के हृदय प्रदेश की राजधानी भोपाल में उनके नाम की औपचारिक घोषणा करेंगे। मध्य प्रदेश में लंबे समय तक संगठन के लिए काम करने वाले प्रभात झा मूलत: पत्रकार हैं, और उन्होंने विभिन्न समाचार पत्रों के लिए काम भी किया है।
 
भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक मध्य प्रदेश संगठन के लिए अध्यक्ष का चुनाव आसान नहीं था। प्रदेश में अस्तित्व वाले अनेक गुटों द्वारा अपने अपने पसन्द के नेता का नाम इसके लिए उछाला जा रहा था। जैसे ही प्रभात झा का नाम सामने आया वैसे ही उनके बिहार मूल के होने की बात राजनैतिक फिजां में तैरा दी गई। सूत्रों ने बताया कि संघ और भाजपा नेतृत्व को बताया गया कि भले ही प्रभात झा बिहार के रहने वाले हों पर उनकी कर्मभूमि तो मध्य प्रदेश ही रही है।
 
प्रभात झा का नाम सामने आते ही एक गुट द्वारा इन्दौर की संसद सदस्य सुमित्रा महाजन का नाम जोर शोर से उछाला जाने लगा। तब लगने लगा था कि महिलाओं को प्रसन्न करने तेन्तीस फीसदी आरक्षण की हिमायत करने वाली भाजपा द्वारा कहीं प्रदेश के निजाम के बतौर सुमित्रा महाजन को न बिठा दिया जाए। इसके अलावा इन्दौर के ही दूसरे क्षत्रप और मध्य प्रदेश के एक वजनदार गायक मन्त्री कैलाश विजयवर्गीय के खिलाफ सामने आए मामलों से उन्हें कमजोर करने के लिए भी सुमित्रा महाजन की ताजपोशी की खबरें चल पडी थीं।
 
सूत्रों ने बताया कि उमा भारती के फेक्टर के चलते शिवराज सिंह चौहान बुरी तरह खौफजदा थे, और वे चाहते थे कि संगठन की बागडोर उनके किसी पिट्ठू को ही सौंपी जाए। उन्होंने प्रभात झा को अध्यक्ष की कुर्सी से दूर रखने के लिए एडी चोटी लगा दी थी। सूत्रों के अनुसार जब पार्टी नेतृत्व द्वारा शिवराज सिंह चौहान को भरोसा दिलाया गया कि प्रभात झा के अध्यक्ष बनने से मध्य प्रदेश में संगठन को काफी लाभ पहुंचेगा तब जाकर उन्होंने अपनी सहमति जताई। वैसे भी संघ के सह सरकार्यवाहक सुरेश सोनी ने प्रभात झा को अध्यक्ष बनने के लिए अभैद्य दीवार का काम ही किया है।
प्रभात झा के करीबी बताते हैं कि राजमाता सिंधिया के गृह जिले ग्वालियर में प्रभात झा द्वारा स्वदेश अखबार में काम करने के दौरान ही संध की रीतियों नीतियों से प्रभावित होकर वे बरास्ता संघ भाजपा में सक्रिय भूमिका में आए। इसके बाद उनकी कर्मभूमि चंबल से हटकर राजधानी भोपाल हो गई, जहां वे संवाद और संपर्क प्रमुख के बतौर काम करने लगे। राजनाथ सिंह के अध्यक्ष बनने के उपरान्त उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर सचिव बना दिया गया। प्रभात झा को मध्य प्रदेश से राज्य सभा में भेजा गया है। सूत्रों का कहना है कि 02 मई को उनके नाम की औपचारिक घोषणा के बाद वे किसी भी दिन अपना कार्यभार ग्रहण कर लेंगे।

और अब केन्द्रीय विद्यालय निजी हाथों में


और अब केन्द्रीय विद्यालय निजी हाथों में
 
पीपीपी के तहत होगा क्रियान्वयन
 

सिब्बल का एक और महाप्रयोग
 

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 28 अप्रेल। केन्द्रीय विद्यालयों में अब पढाई से इतर कामों के लिए विद्यालय प्रशासन को भागदौड नहीं करनी होगी। मानव संसाधन विकास मन्त्रालय एक एसी योजना पर विचार कर रहा है, जिससे समूचे देश में केन्द्रीय विद्यालयों को स्कूल के रखरखाव की समस्या से निजात मिलने की उम्मीद है। केन्द्रीय विद्यालय प्रबंधन अब अपना समूचा ध्यान सिर्फ और सिर्फ पढाई पर ही केन्द्रित करेगा, विद्यालय भवनों के रखरखाव की जवाबदारी अब निजी हाथों को दी जाने वाली है।
 
केन्द्रीय विद्यालय संगठन के उच्च पदस्थ सूत्रों का दावा है कि जब भी कोई नया मानव संसाधन मन्त्री आकर जवाबदारी सम्भालता है, वह एक नया प्रयोग अवश्य ही करता है। कभी शिक्षा का भगवाकरण हो जाता है, तो कभी भारतवर्ष के इतिहास से ही छेडछाड होने लगती है। हाल ही में एचआरडी मिनिस्टर कपिल सिब्बल द्वारा ग्रेडिंग सिस्टम को लागू करवाकर एक नया प्रयोग किया है, और अब विद्यालय भवनों के रखरखाव की जिम्मेदारी विद्यालय प्रबंधन के हाथ से लेकर निजी हाथों में देने पर विचार किया जा रहा है।

एचआरडी मिनिस्टर कपिल सिब्बल के करीबी सूत्रों का कहना है कि सिब्बल का मानना है कि एसा करने से विद्यालय प्रशासन अपना पूरा ध्यान शैक्षणिक गतिविधियों पर केन्द्रित कर सकेंगे। वैसे इमारतों के रखरखाव आदि का काम पब्लिक प्राईवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के तहत दिए जाने पर जोर शोर से विचार किया जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि सिब्बल मानते हैं कि इस अभिनव प्रयोग से शालाओं की दिशा और दशा दोनों ही में सुधार की उम्मीद है।

गौरतलब है कि वर्तमान में केन्द्रीय विद्यालय वैसे भी माडल स्कूल के तौर पर जाने जाते हैं। इन शालाओं में दाखिला आज भी प्रतिष्ठा का ही प्रश्न बना हुआ है। इसमें प्रवेश के लिए केटेगरी निर्धारित की गई है, जिसके चलते निजी या व्यवसाय में रत लोगों के बच्चे इसमें प्रवेश से वंचित रह जाते हैं। माना जा रहा है कि पढाई से इतर अन्य प्रबंधन निजी हाथों में आ जाने से एक ओर जहां विद्यालय प्रशासन का ध्यान पढाई में ही केन्द्रित होगा जिससे पढाई का गिरता स्तर सुधरेगा, वहीं दूसरी ओर रखरखाव का काम भी योजनाबद्ध तरीके से समयसीमा में पूरा किया जा सकेगा।

मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

कमल नाथ और कांग्रेसी सूबों के बीच ठनी रार

कमल नाथ और कांग्रेसी सूबों के बीच ठनी रार

सडक निर्माण में कांग्रेस शासित राज्य बने बाधक

भूमि अधिग्रहण बना सरदर्द

जयराम रमेश और नाथ का शीतयुद्ध बना अखाडा

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 27 अप्रेल। राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबंधन सरकार के कार्यकाल में तत्कालीन प्रधानमन्त्री अटल बिहारी बाजपेयी ने देश के गांव गांव को सडकों से जोडने का सपना देखा था। इसके बाद देश के ग्रामीण इलाकों में सडकों का जाल फैलना आरम्भ हो गया। सडक निर्माण में गफलत, भ्रष्टाचार, अनियमितताओं की शिकायतें आम हो गईं। इस सबसे बचने के लिए संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार द्वारा राजग शासित राज्यों से इस मामले में सहयोग न देने की आरोप लगाए जा रहे हों पर वास्तविकता यह है कि कांग्रेस शासित सूबों में सडकों के निर्माण में सबसे ज्यादा परेशानी महसूस की जा रही है।

कमल नाथ के नेतृत्व वाले भूतल परिवहन मन्त्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि राजमार्गों के निर्माण में हो रही देरी के पीछे केन्द्र की यूपीए सरकार नहीं वरन् राज्यों द्वारा भूमि अधिग्रहण में की जा रही देरी प्रमुख कारक बनकर उभरा है। सूत्रों ने बताया कि कांग्रेस शासित असम जिसके मुख्यमन्त्री तरूण गगोई की ताजपोशी पिछली मर्तबा कमल नाथ ने बतौर कंाग्रेस के असम सूबे के प्रभारी महासचिव की हैसियत से की थी में ही 18 मामले लंबित हैं। इसी तरह देश में राष्ट्रीय राजमार्ग के कुल 82 मामले आज भी लंबित ही हैं।

सूत्रों ने आगे बतायाि क राजमार्ग का काम आरम्भ होने में विलंब के अधिकतर ममाले भूमि अधिग्रहण से जुडे हुए हैं। अमूमन देखा गया है कि कृषि योग्य भूमि का अधिग्रहण सबसे अधिक तेजी से हो जाता है, पर उसकी प्रक्रिया पूरी होने में कम से कम छ: माह का समय लग जाता है। अगर कोई कानूनी बाधा आ जाती है तो मामला लंबा ही खिच जाता है। इसके अलावा राज्य सरकारों द्वारा सक्षम प्राधिकारों के नामांकन में विलंब, सक्षम भूमि अधिग्रहण प्राधिकारी का बारंबार स्थानान्तरण, संरचना में कमी, मुआवजा देने में देरी होने जैसी गफलतों के चलते विलंब हो जाता है।

राजग शासित दलों में मध्य प्रदेश में ही सात राष्ट्रीय राजमार्गों पर निर्माण काम बाधित पडा हुआ है। पंजाब में पांच, बिहार में चार, उत्तर प्रदेश में रिकार्ड 16 राजमार्गों का काम बाधित है। कुल मिलाकर देखा जाए तो लगभग एक हजार किलोमीटर सडक का काम रूका हुआ है। इनमें सबसे अधिक विलंब कांग्रेस शासित राज्यों में ही उभरकर सामने आ रहा है। कांग्रेस शासित राज्यों और केन्द्रीय भूतल परिवहन मन्त्री कमल नाथ के बीच समन्वय के अभाव के चलते केन्द्र सरकार की इस महात्वाकांक्षी परियोजना के काम में पलीता लगता जा रहा है।

रही सही कसर वन एवं पर्यावरण मन्त्री जयराम रमेश द्वारा पूरी की जा रही है। पिछली सरकार में तत्कालीन वाणिज्य मन्त्री कमल नाथ के मातहत रह चुके जयराम रमेश इस बार कमल नाथ के बराबरी वाले आसन पर विराजमान हैं। दोनों के बीच की तिल्खयां किसी से छिपी नहीं हैं। कमल नाथ के विभाग के कामों में वन एवं पर्यावरण विभाग द्वारा जमकर अडंगे लगाए जा रहे हैं। यही कारण है कि कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र जिला छिन्दवाडा से सटे सिवनी जिले से होकर गुजरने वाले शेरशाह सूरी के जमाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक सात के हिस्से को जिसे एनएचएआई ने टेक ओवर कर लिया है, का निर्माण का काम बाधित हो रहा है

अक्षय को मदद चाहिए....

अक्षय को मदद चाहिए....

एक युवा जो जीवन जीने के लिये संघर्ष कर रहा है जी हां मैं अक्षय कात्यानी जिसके इलाज़ हेतु मात्र दो लाख रुपयों की ज़रूरत है विस्तृत जानकारी इन लिंक्स पर प्राप्त की जाए और अविनाश जी की तरह हम मदद कर सकतें है

अविनाश वाचस्पति - कुछ दिनों से देख पढ़ रहा हूं। पर आज इस पोस्‍ट में खाता संख्‍या संबंधी निम्‍न जानकारी मिल गई है।

Name- Sudhir Kumar Katyayani,

Account No.- 09322011002264,

Bank Name- Oriental Bank of Commerce,

Branch- Arera Colony Branch, Bhopal (M.P.)

कल मतलब मंगलवार को ही मैं इसमें एक हजार रुपये जमा कर रहा हूं। एक शुरूआत है। आप भी अगर आर्थिक रूप से सक्षम हैं तो ऐसा ही नेक कदम उठाएं। मैं अतुल पाठक से तो परिचित नहीं हूं परन्‍तु मदद करने के लिए परिचितता आवश्‍यक नहीं है। मुझे यह भी नहीं लगता कि कोई सरकारी मदद मिल सकती है, मिल सकेगी। पर उसकी उम्‍मीद क्‍यों करें हम, हम तो बस शुरू हो जाएं अभी।

जो भी सक्षम हैं और मदद करने का जज्‍बा रखते हैं। हम अपनी बेमर्जी से अपनी जेब तो कटवा सकते हैं। अपना वर्षों से संचित माल-असबाब तो लुटवा सकते हैं। पर ऐसे मौकों पर चुप्‍पी क्‍यों साध लेते हैं ? वैसे निश्चित रूप से मदद पहुंचना आरंभ हो चुकी होगी।

तो हाथ मत बांधिए

कतार बांधिए

और बांधिए बंधन ऐसा

जिस पर मानवता

कर सके गर्व

ऐसा निभायें धर्म

सबसे बड़ा मानवधर्म

इसे अनदेखा मत कीजिए

अपने मन से पूछिए

वो आपकी नेक विचारों की

अवश्‍य तस्‍दीक करेगा।

यह मत सोचिए कि मेरे एक हजार रुपये से क्‍या होगा ? एक हजार भी नहीं चाहिए सिर्फ एक हजार रुपये देने वाले 200 इंसान चाहिएं। नुक्‍कड़ पर अवश्‍य ही 50 इंसान तो मिल सकेंगे। चाहते तो सब होंगे मदद करना। पर 50 ने भी कर दी तो हो गई है शुरूआत। न भी हो, पर मैं क्‍यों रूकूं, मैं तो अपना कर्म करता चलूं। मालूम नहीं दिन कितने हैं, पर दिनों की प्रतीक्षा क्‍यों करें, आज ही इस नेक काम को क्‍यों नहीं करें

BLOGER MITRA GIRESH BILLORE SAYS :

मेरी सारी उम्र ले ले यम राज़ किंतु एक मां को संतान का तिल तिल जीवन रसता न दिखाये आज सारे ब्लागर्स जो जितना भी कर रहें है उनको प्रणाम . अक्षय कौन है किसका बेता क्या है सब सेकण्डरी हो गया बस लगता है धन्वंतरी कहें:”आयुष्मान भव:” 
टीवी पत्रकार अक्षय को बचा लीजिए, वह जीना चाहता है

अक्षय कात्यानी की मदद हेतु एकाउंट नम्बर  09322011002264 of ORIENTAL BANK OF COMMERSE में सहयोग राशि जमा कीजिये


योगेश पाण्डेय - 09826591082,

सुधीर कत्यानी (अक्षय के पिता) - 09329632420,

अंकित जोशी (अक्षय के मित्र) - 09827743380,09669527866

जब भोपाल भर के पत्रकार इस साथी की हालत को लेकर निद्रामग्न थे....एक चैनल के पत्रकार की स्टोरी को उस क्षेत्रीय चैनल ने ड्रॉप कर दिया....तब सीएनईबी के भोपाल संवाददाता ने इस ख़बर को न केवल कवर किया....बल्कि चैनल ने अपने नैतिक दायित्व को भली भांति निभाते हुए इस मार्मिक व्यथा गाथा को अपील के साथ प्रसारित किया...जिसका असर भी दिखना शुरू हो गया है....सीएनईबी न्यूज़ के संवाददाता...से....सम्पादक तक सभी इसके लिए बधाई के पात्र हैं.....

सोमवार, 26 अप्रैल 2010

अडवाणी युग की समाप्ति का आगाज

ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)

अडवाणी युग की समाप्ति का आगाज

1980 में अस्तित्व में आई भाजपा ने अब अटल आडवाणी युग की बिदाई का आगाज कर ही दिया है। भाजपा के पितृ संगठन संघ को लगने लगा था कि अटल आडवाणी का नाम पार्टी से बडा होकर उभर रहा था, संघ काफी दिनों से इस प्रतीक्षा में था कि भाजपा के प्रतीक चिन्ह कमल के इन नेताओं के समक्ष बौने होते स्वरूप को एक बार फिर विशालकाय बनाकर समूचे दल को इसकी छत्रछाया में आकार दिया जाए। पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह के समय भी इस तरह के प्रयास किए गए पर सफल नहीं हो पाए। इस बार नितिन गडकरी के पहले प्रभावी प्रदर्शन में मंच पर पहली मर्तबा अटल आडवाणी सहित अन्य वरिष्ठ नेताओं के चित्रों के स्थान पर कमल का फूल ही दिखाई दिया, जिसे अटल आडवाणी युग के औपचारिक पूर्ण विराम के तौर पर देखा जा रहा है। पहली बार भाजपा के कार्यकर्ताओं ने किसी नेता विशेष के नारे लगाने से परहेज किया, और भाजपा ज़िन्दाबाद और भारत माता की जय के गगनभेदी नारे लगाए। इसके अलाव इस रैली में एक और महत्वपूर्ण बात उभर कर सामने आई है, वह है गडकरी का सबसे अन्त में दिया गया भाषण। अमूमन अन्त में सबसे वरिष्ठ नेता का उद्बोधन हुआ करता रहा है। यह पहला मौका था जबकि आडवाणी की उपस्थिति के बावजूद भी नितिन गडकरी ने सबसे अन्त में अपनी बात रखी। पार्टी में चल रही चर्चाओं के अनुसार अटल जी अब सक्रिय रहे नहीं और आडवाणी को उनकी मर्जी के खिलाफ ही बलात ही पाश्र्व में ढकेलने की तैयारी चल रही है।
 
कमल नाथ का दांव रमेश चित्त

जब देश के भूतल परिवहन मन्त्री कमल नाथ को सरफेस ट्रांसपोर्ट मिनिस्ट्री मिली तब लोग मान रहे थे कि यह नाथ के पर कतरने के लिए उनके कद से छोटा विभाग दिया गया है, साथ ही इस मन्त्रालय से जहाजरानी को अलग कर दिया गया था। कहा जा रहा है कि दस जनपथ में अपनी खासी दखल का लाभ उठाकर रमेश ने कमल नाथ के पर कतरने का प्रयास किया था। चूंकि पिछली बार नाथ वाणिज्य मन्त्री थे, तो रमेश उनके अधीन राज्य मन्त्री। अब रमेश वन एवं पर्यावरण मन्त्री जैसे महात्वपूर्ण विभाग को पाकर कमल नाथ के आगे वाली कुर्सी पर काबिज हो गए हैं। पीएमओ के सूत्रों का कहना है कि कमल नाथ ने अपनी राजनैतिक चाल से अब वन एवं पर्यावरण मन्त्रालय को दो फाड करने का बीजारोपण कर दिया है। पीएमओ ने इसके लिए सैद्धान्तिक सहमति दे दी है। आने वाले समय में रमेश के पास या तो वन बचेगा या पर्यावरण महकमा।
 
किसे सच माने किसे माने झूठ

देश का दुर्भाग्य है कि नौकरशाहों के भरोसे पर चलने वाले जनसेवकों द्वारा विरोधाभासी वक्तव्यों की बौछार की जाती है, देश की जनता संशय में है कि किस वक्तव्य को वह सच माने किसे माने झूठ। मामला देश के वन एवं पर्यावरण मन्त्री जयराम रमेश के श्रीमुख से निकले वक्तव्यों का है। कुछ दिनों पूर्व जयराम रमेश ने बिना दस्ताने पहने यूनियन काबाZईड के कचरे को हाथ में उठाकर मीडिया को फोटो जारी करते हुए कहा था कि इससे कोई खतरा नहीं है। अब राज्य सभा में अपनी ही उस बात से वे पलट गए हैं। रमेश ने राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा है कि केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड ने भोपाल गैस त्रासदी स्थल के आसपास की जमीन, भूमीगत जल में पाए जाने वाले तत्वों का अध्ययन किया और पाया है कि वहां धातुओं, कीटनाशकों और कुछ हानिकारक जैव योगिक मौजूद हैं। अब समझ में नहीं आता कि भारत गणराज्य के वन एवं पर्यावरण जैसे महत्वपूर्ण ओहदे पर बैठे एक जिम्मेदार मन्त्री के भोपाल यात्रा के दौरान दिए वक्तव्य को सच माना जाए या राज्य सभा में कही बात को।
 
मितव्ययता : मन्त्रियों का विदेश दौरा खटाई में

पहली बार विपक्ष सरकार को पूरी तरह घेरने के मूड में दिखाई दे रहा है। इस बार विपक्ष ने कटौती के प्रस्ताव की तैयारियां आरम्भ कर दी हैं। विपक्ष की इस कवायद ने सरकार के पसीने छुडा दिए हैं। सबसे ज्यादा वे जनसेवक मन्त्री खौफजदा हैं, जिनका आधे से ज्यादा समय सरकारी दौरों के नाम पर विदेशों के सैर सपाटे में गुजरता है। विपक्ष के तीखे तेवर देखकर लगने लगा है कि कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी की साख का प्रश्न बन चुके महिला आरक्षण बिल और प्रधानमन्त्री की प्रतिष्ठा से जुडे नाभिकीय क्षतिपूर्ति उत्तरदायित्व विधेयक शायद ही इस बार परवान चढ सके। सरकार की पहली प्राथमिकता इस बार वित्त विधेयक को पास करावाने की है। कांग्रेस के मैनेजरों को निर्देश दिए गए हैं कि वित्त विधेयक के पास होते समय एक एक मन्त्री सांसद को सदन में अनिवार्य तौर पर उपस्थित रखा जाए। वजीरे आजम 28 और 29 अप्रेल को दक्षेस सम्मेलन के लिए भूटान में तो विदेश मन्त्री कृष्णा 27 को थिंपू में और मिल्लकार्जुन खडगे भी विदेश यात्रा पर रहेंगे। इसके अलावा अनेक मन्त्रियों की विदेश यात्रा के प्रस्ताव पीएमओ के पास लंबित हैं। पीएमओ के सूत्रों का कहना है कि जब तक वित्त विधेयक पास नहीं होता किसी भी मन्त्री को सदन से किसी भी कीमत पर गैरहाजिर नहीं रहने दिया जाएगा।
 
रतन खत्री को पीछे छोडा मोदी ने

देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई से चलने वाले सट्टा न केवल महाराष्ट्र को अपनी जद में लिए हुए है, वरन् आसपास के सूबों में भी इसका जोर है। इसको चलाता है रतन खत्री नामका एक शख्स। रात नौ बजे ओपन तो बारह बजे क्लोज। एक अंक अगर लग गया तो एक का नौ गुना और अगर दोनों अंक अर्थात जोडी आ गई तो सवा रूपए के सौ रूपए। है न फायदे का सौदा। अरे हुजूर सवा रूपए में सौ कण्डे भी नहीं आते हैं। आईपीएल के विवादित कमिश्नर ललित मोदी के दमाद गौरव बर्मन ने सारे नियम कायदे ताक पर रख दिए हैं। आईपीएल के आधिकारिक मीडिया पार्टनर ग्लोबल क्रिकेट वेंचर्स (जीसीवी) की वेवसाईट पर सरेआम सट्टा खिलाया जा रहा है। जीसीवी की वेवसाईट क्रिकेट डाट काम पर चलने वाले सट्टे में टीमों के भाव अलग अलग तय किए जाते हैं, जो समय के साथ बदलते रहते हैं। मजे की बात यह है कि जीसीवी में ललित मोदी के दमाद गौरव बर्मन की बडी हिस्सेदारी है। अरे भई कहावत है न समरथ को नहीं दोष गोसाईं, सो मोदी और बर्मन पर कार्यवाही होने की उम्मीद करना बेमानी ही है।
 
अब लगा न तीर कलेजे पर

देश के गरीब गुरबे बिजली के बिना किस तरह की परेशानी झेलते हैं, इस बात का अहसास देश की सबसे बडी पंचायत में जनसेवकों को भी हुआ और उनका पसीने से हाल बेहाल हो गया। सोमवार 19 अप्रेल को संसद के चलते समय एक दर्जन से अधिक बार बिजली गोल हुई। कल तक गरमी की मार झेलने वाले आज एयर कण्डीशनर के बिना पग न धरने वाले जनसेवकों के तेवर इस दौरान देखते ही बने। यद्यपि यह कटौती सीपीडब्लूडी के बिजली स्टेशन में तकनीकि गडबडी के कारण हुई बताई जा रही है, पर गरमी में बिजली के बिना पसीने के दो चार सांसदों के हाल बेहाल हो गए। वैसे देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में बिजली की आंख मिचौली नई बात नहीं है। संसद में जब बिजली ने अपना ताण्डव दिखाया तो बिहार के सांसद के मुंह से बरबस ही निकल पडा ``अब तीर लगा कलेजे पर, अरे भई अब तो अहसास कर लो कि देश के गरीब गुरबे किस तरह बिजली के बिना परेशान होते होंगे।

आई पी के परिणाम : विद्या पास, कुलपति फेल!

जेसिका लाल प्रकरण में देश की सबसे बडी अदालत उधर अपना फैसला सुना रही थी, वहीं इससे महज एक किलोमीटर दूर गुरू गोविन्द सिंह इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय में जेसिका पर ही बन रही फिल्म ``नो वन किल्ड जेसिका`` पर जबर्दस्त हंगामा हुआ। दरअसल यूनिवर्सिटी के अन्दर निदेशक राज कुमार गुप्ता और अभिनेत्री विद्या बालान शूटिंग में व्यस्त थे। यूनिवर्सिटी का दरवाजा बन्द था, और वहां तैनात थे मसल मेन। इसी बीच वहां के कुलपति आन पहुंचे। काफी मशक्कत के बाद भी दरवाजा नहीं खोला गया। कुलपति प्रो.डी.के.बन्दोपाध्याय का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा। उन्होंने अन्दर बैठे अधिकारियों से संपर्क किया तब जाकर कुलपति को अपने ही विश्वविद्यालय में प्रवेश मिल सका। उधर चर्चा है कि सेंटर फार मीडिया स्टेडीज के एक कंसलटेंट ने शूटिंग के लिए पन्द्रह लाख रूपए लेकर विश्वविद्यालय प्रशासन को अंधेरे में रखकर इस कारनामे को अंजाम दिया है। बहरहाल जो भी हो विश्वविद्यालय के छात्र पूरे प्रसंग के बाद कुटिल मुस्कान के साथ यह कहते जरूर नज़र आए कि आईपी यूनिवर्सिटी का रिजल्ट आ गया। विद्या बालान पास और प्रो.डी.के.बन्दोपाध्याय फेल।
 
रेल में पानी नहीं था तो कौन सा पहाडा टूट गया!

देश के एक जिम्मेदार मन्त्री कमल नाथ कहते हैं कि देश के लोग ज्यादा खाने लगे हैं सो मंहगाई बढ रही है, मंहगी चीनी पर शरद पंवार कहते हैं कि ज्यादा चीनी खाने से शुगर हो जाती है, और अब रेल मन्त्री ममता बनर्जी ने भी इसी परंपरा को आगे बढाते हुए कह दिया कि रेल में अगर पानी नहीं था तो कौन सा पहाड टूट पडा है। मामला राज्यसभा में माकपा की वृन्दा करात ने उठाया कि विकलांग दिल्ली प्रदर्शन करने आ रहे थे, इसके लिए उन्होंने 17 लाख रूपए में विशेष रेलगाडी बुक की थी। इस गाडी में शौचालयों में पानी तक नहीं था, और वह 12 घंटे विलंब से पहुंची, इसके बावजूद भी ममता बनर्जी महादुरन्तो चलाने की बात करती हैं। वृन्दा के आरोप से बोखलाकर ममता बनर्जी तैश में आ गईं और बोली अगर रेल में पानी नहीं था तो कौन सी आफत आ गई। अरे कोई तो ममता दीदी को समझाए कि जब कोई पैसा देकर किसी चीज को लेता है तो वह उपभोक्ता हो जाता है और उपभोक्ता को पूरा सन्तोष देना किसी ओर का नहीं सेवा प्रदाता का ही काम है। अगर विकलांगों ने उपभोक्ता फोरम का सहारा ले लिया तो लेने के देने भी पड सकते हैं ममता दी।
 
मैं तो पीकर टुल्ली हो गया यारां

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सरमायादार प्रफुल्ल पटेल के अधीन काम करने वाले ड्राईवर और ट्रक चालकों के बीच अब कोई समानता नहीं रह गई है। ट्रक चलाने वाले भी दारू के नशे में टुन्न होकर गाडी चलाते हैं और आसमान में हवाई जहाज उडाने वाले पायलट भी नियम कायदों को ताक पर रखकर दारू में टुल्ली होकर हवाई यात्रियों की जान जोखम में डालने से नहीं चूक रहे हैं। जी हां यह बात झूठ नहीं है, संचालक नागर विमानन (डीजीसीए) ने पिछले साल विभिन्न एयर लाईंस के 42 पायलट्स को नशे में टुन्न होकर विमान उडाते पाया। सूचना के अधिकार कानून के तहत यह जानकारी सामने आई है। यद्यपि डीजीसीए ने एयरलाईंस के नामों का खुलासा नहीं किया है, पर यह गम्भीर चूक की श्रेणी में ही आता है। सावधानी घटी दुघZटना घटी का जुमला सडक, रेल, पानी या आकाश मार्ग से यात्रा करने पर चालकों के लिए ही लागू होता है। वैसे एयरक्रफ्ट नियम 24 के अनुसार उडान के 12 घंटे पहले क्रू के सदस्यों के लिए मद्यपान प्रतिबंधित है। और एसा करते पाए जाने पर न्यूनतम चार सप्ताह के लिए ग्राउण्डेड कर दिया जाता है।

प्रियंका से क्या पे्ररणा ली नलिनी ने

राजीव गांधी की हत्या के समय चर्चा में आई नलिनी धीरे धीरे चर्चाओं से गायब हो गई थी। वह एक बार फिर चर्चा में तब आई जब कांग्रेस की नज़रों में देश की युवरानी प्रियंका वढेरा उससे मिलने जेल में गई। प्रियंका किस उद्देश्य से वहां गई थी, यह बात तो वे ही जाने पर कांग्रेस के मीडिया मैनेजरों ने इस बात को खासी पब्लिसिटी दिला दी। फिर एक बार राजीव गांधी की हत्या के आरोप में उमर केद काट रही नलिनी वेल्लूर की उच्च सुरक्षा वाली जेल में गुमनामी में खो गई। हाल ही में वह एक बार फिर चर्चा में आ गई है, उच्च सुरक्षा वाली जेल की अभैद्य सुरक्षा में सेंध लग गई है। नियमित जांच के दौरान नलिनी के पास एक मोबाईल मिला है, जिससे उसने विदेशों में काल किया है। अब वह मोबाईल उसके पास प्रियंका की मुलाकात के पहले ही था या उसके बाद में आया यह प्रश्न शोध का विषय है। लोग तो यहां तक कहने से नहीं चूक रहे हैं कि प्रियंका ही उससे मिलने गई थी, दोनों सखियां बन गई होंगी सो अब नलिनी अपनी सखी प्रियंका वढेरा से ही बतियाती होगी।
 
नितीश का अंग्रेजी प्रेम

बिहार के मुख्यमन्त्री नितीश कुमार और ब्रितानी हुकूमतकर्ताओं में क्या सामनता है। दोनों में कम से कम एक समानता तो है कि ब्रितानी अपनी मातृभाषा अंग्रेजी को बहुत प्यार करते हैं और नितीश को भी अंग्रेजी से बेहद लगाव है। यकीन नहीं होता न। जनाब मुख्यमन्त्री नितीश कुमार ब्लागर बन गए हैं। वे भी ब्लाग लिखने या लिखवाने लगे हैं। नितीशस्पीक्स डाट ब्लागस्पाट डाट काम पर िक्लक करिए और बिहार के मुख्यमन्त्री नितीश कुमार से रूबरू होईए। हिन्दुस्तान में ब्लाग बहुत तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। देश के अनेक ब्लागरों के प्रयास से आज इंटरनेट पर हिन्दी खासी न केवल लोकप्रिय हुई है वरन् हिन्दी को अहम स्थान भी मिल चुका है। आज देश में हिन्दी में लिखने वालों ब्लागर्स की तादाद लाख की तीन दहाई तक पहुंच गई है। इस सबके बाद लोगों को अफसोस यह जानकर होगा कि नितीश ने अपना ब्लाग सिर्फ और सिर्फ एलीट क्लास के लिए बनाया है, मतलब साफ है कि यह आंग्ल भाषा में है। बिहार के गरीब गुरबे क्या इसे पढ पाएंगे इस पर संशय ही है।
 
सांसदों का विदेशी वस्तु प्रेम

महात्मा गांधी जिन्होंने आधी लंगोटी पहनकर देश को ब्रितानियों से मुक्त कराया और स्वदेशी अपनाने के लिए प्रेरित किया, क्या आप यकीन कर सकते हैं कि उसी गांधी के देश में आज के जनसेवक सांसद विदेशी वस्तुओं से प्रेम जताने से नहीं चूक रहे हैं। जी हां यह सच है, एक सैकडा से अधिक सांसदों ने विदेशी हथियारों को खरीदकर जता दिया है कि उन्हें देश में बने हथियारों पर कितना यकीन है। सूचना के अधिकार के तहत निकाली गई जानकारी में यह बात उभरकर सामने आई है। पिछले दस सालों में अपने विशेषाधिकार का प्रयोग कर जनसेवकों ने विदेशी हथियारों को जमकर खरीदा। केद्रीय मन्त्री जयप्रकाश जायस्वाल, जनार्दन द्विवेदी, विनोद खन्ना, परनीत कौर, योगानन्द शास्त्री, अबू आसिम आजमी आदि सहित एक सौ से अधिक सांसदों ने विदशी हथियारों पर इत्तेफाक जताया है। दरअसल विदेशों से अवैध तरीके से लाए जाने वाले हथियारों की जप्ती कर राजस्व खुफिया महानिदेशालय, सीमा शुल्क और पुलिस आदि द्वारा इन हथियारों को केवल सरकारी उपयोग के लिए अथवा वित्त मन्त्रालय की स्वीकृति के उपरान्त इनकी नीलामी की जाती है। मजे की बात यह है कि औने पौने दामों में मिलने वाले इन हथियारों को खरीदने के पहले सांसद को इस बात को लिखित तौर पर देना होता है कि उनके पास खरीदी के समय कोई हथियार नहीं है।
 
क्या गौमांस अवैध है हिन्दुस्तान में!

गाय हमारी माता है, गाय की रक्षा के लिए राजनैतिक दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा जब तब बयानबाजी की जाती है, पर लगता है दिल्ली सरकार इससे इत्तेफाक नहीं रखती है। कामन वेल्थ गेम्स के दौरान अतिथियों को गोमांस परोसे जाने को लेकर पिछले दिनों दिल्ली विधानसभा में जमकर रार हुई। शीला दीक्षित सरकार पर विपक्ष ने आरोप लगाया कि सरकार ने गेम्स के दौरान आने वाले विदेशी महमानों को गोमांस परोसे जाने की सहमति गुपचुप तरीके से दे दी है। विपक्ष का तर्क था कि जब दिल्ली में गोमांस रखने और परोसने तक पर पाबन्दी है तब दिल्ली के मुख्य सचिव कैसे इसकी अनुमति दे सकते हैं। पहले भी गेम्स के दौरान गो मांस परोसे जाने को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष में काफी हद तक जद्दोजहद हो चुकी है।

पुच्छल तारा

देश में निर्वतमान विदेश राज्य मन्त्री शशि थुरूर और आईपीएल कमिश्नर ललित मोदी के आईपीएल को लेकर हुए विवाद की धूम मची हुई है। हर जगह आईपीएल आईपीएल का ही शोर नज़र आ रहा है। एसी परिस्थियों पर सटीक व्यंग्य करते हुए रायपुर से एन.के.श्रीवास्तव ने ईमेल भेजा है कि देश कह रहा है गरीबी रेखा के नीचे अर्थात बीपीएल बीपीएल, पर नेता हैं कि मानते ही नहीं वे चिल्ला रहे हैं आईपीएल, आईपीएल। गांधी तेरा देश महान।

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

फोर लेन प्रकरण में मेरा कोई हाथ नहीं :: कमल नाथ


फोर लेन प्रकरण में मेरा कोई हाथ नहीं :: कमल नाथ
 
राजेश ने समस्याओं से आवगत कराया भूतल परिवहन मन्त्री को
 
मुख्यमन्त्री ने किया सिवनी आने का वादा

(लिमटी खरे)
नई दिल्ली 23 अप्रेल। अटल बिहारी बाजपेयी के कार्यकाल की महात्वाकांक्षी स्विर्णम चतुभुZज परियोजना के अंग उत्तर दक्षिण गलियारे में सिवनी जिले में चल रही भ्रामक स्थिति के बारे में पहली बार किसी जनसेवक ने भूतल परिवहन मन्त्री कमल नाथ से बेबाक चर्चा करने का साहस किया है। नगर पालिका परिषद सिवनी के युवा एवं उत्साही अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी ने भाजपा की दिल्ली रेली के उपरान्त अगले दिन मध्य प्रदेश के मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान और भूतल परिवहन मन्त्री कमल नाथ से चर्चा की।
 
बुधवार को चाणक्यपुरी स्थित मध्य प्रदेश भवन में शाम को मध्य प्रदेश के मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह से राजेश त्रिवेदी के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमण्डल ने भेंट की। राजेश त्रिवेदी के साथ भाजपा के नगर उपाध्यक्ष सन्तोष नगपुरे एवं युवा भाजपाई पवन मेंहदीरत्ता ने मुख्यमन्त्री को सिवनी की स्थिति के बारे में आवगत कराया। इस दौरान प्रतिनिधमण्डल ने नगर पालिका परिषद द्वारा नगर विकास, अतिक्रमण विरोधी अभियान, पेयजल योजना, साफ सफाई आदि के बारे में सविस्तार जानकारी दी। राजेश त्रिवेदी द्वारा चिल्हर सब्जी मण्डी के लिए सरकार से दो करोड रूपयों की मांग भी की गई। साथ ही साथ प्रतिनिधिमण्डल ने मुख्यमन्त्री को सिवनी आने का आमन्त्रण दिया। मुख्यमन्त्री ने मुस्कुराते हुए इस आमन्त्रण स्वीकार कर भविष्य में जल्द ही सिवनी आने का आश्वासन दिया गया।
 
गुरूवार अपरान्ह नगर पालिका परिषद सिवनी के अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी ने केन्द्रीय भूतल परिवहन मन्त्री कमल नाथ से चर्चा भी की। कमल नाथ से चर्चा के दौरान सिवनी नगर में ट्रांसपोर्ट नगर की आवश्यकता पर बल देती हुए इसकी मांग रखी। कमल नाथ को सिवनी की सडकों की जानकारी विस्तार से देते हुए राजेश त्रिवेदी ने कहा कि नवीन बायपास के जबलपुर की ओर वाले सिरे से शहर के अन्दर होकर नागपुर वाले सिरे तक जाने वाली सडक को ``माडल रोड`` बनाकर उसका रखरखाव किया जाए। शहर की समस्या को वजनदारी से रेखांकित करते हुए राजेश त्रिवेदी ने कहा कि वर्तमान में चालू एस.के.बनर्जी द्वारा निर्मित बायपास से भारी वाहनों की रसीद काटकर विशेषकर रात में उन्हें शहर के अन्दर से होकर गुजरने की छूट प्रदान की जा रही है, जिससे शहर की सडकें का कचूमर निकल रहा है, इसलिए नवीन बायपास को तत्काल प्रभाव से आरम्भ कराने की मांग उनके द्वारा रखी गई।
 
कमल नाथ के करीबी भरोसेमन्द सूत्रों का दावा है कि सिवनी के दर्द को पहली बार किसी जनसेवक ने कमल नाथ के समक्ष रखा। नपा अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी ने कमल नाथ से कहा कि जिले की जनता फोरलेन विवाद के लिए कमल नाथ को दोषी मानती है। इस पर कमल नाथ ने छूटते ही कहा कि इस प्रश्न का उत्तर अगर चाहिए तो सिवनी वालों को वन एवं पर्यावरण मन्त्री जयराम रमेश से इसका जवाब लेना चाहिए। कमल नाथ ने कहा कि फोर लेन विवाद प्रकरण में उनका कोई हाथ नहीं है। वे चाहते हैं कि फोरलेन सिवनी से होकर ही जाए, पर पर्यावरण के अडंगे से मामला खटाई में है। इसके अलावा बंजारी घाट में फोंर लेन के रूके काम को जल्द ही आरम्भ कराने का आश्वासन भी कमल नाथ द्वारा दिया गया। कमल नाथ ने कहा कि लखनादौन से बरास्ता जबलपुर रीवा मार्ग के फोरलेन करने की स्वीकृति के बाद इसका प्राक्कलन तैयार करवाया गया है।

गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

मप्र के पांच अन्य अधिकारी पुरस्कृत

मध्यप्रदेश में वन अधिकार अधिनियम 2006 के उत्कृष्ट क्रियान्वयन के लिये

मप्र के पांच अन्य अधिकारी पुरस्कृत

प्रधानमन्त्री डा0 मनमोहन सिंह द्वारा सिविल सर्विस डे पर सात अधिकारी सम्मानित

(ब्यूरो कार्यालय)

नई दिल्ली, 21 अपै्रल। प्रधानमन्त्री डा0 मनमोहन सिंह ने सिविल सर्वित डे पर आज यहां विज्ञान भवन में उत्कृष्ट कायोंZ के लिये मध्यप्रदेश के सात अधिकारियों को सम्मानित किया। प्रधानमन्त्री डा0 सिंह ने जिन अधिकारियों को सम्मानित किया उनमें अपर मुख्य सचिव श्री ओ0पी0 रावत, प्रमुख सचिव

श्री जयदीप गोविन्द, श्री संजय दुबे, श्रीमती रिश्म शमी, श्री गुलशन बामरा, श्री अनिल ओबेराय और आदिम जाति कल्याण विभाग के अपर संचालक श्री अशोक उपाध्याय शामिल हैं। वन अधिकार अधिनियम 2006 के उत्कृष्ट क्रियान्वयन में श्री ओ0पी0 रावत के नेतृत्व में श्री जयदीप गोविन्द, श्रीमती रिश्म शमी, श्री अनिल ओबेराय और श्री अशोक उपाध्याय ने सराहनीय भूमिका निभाई। वन अधिकार अधिनियम 2006 का क्रियान्वयन मध्यप्रदेश में बहुत अच्छा हुआ है। मध्यप्रदेश में हुए अच्छे काम को देखने के लिए महाराष्ट्र और गुजरात की टीम ने भी मध्यप्रदेश का दौरा किया था और कार्य को सराहा था।

श्री ओ0पी0 रावत वन अधिकार अधिनियम के क्रियान्वयन के समय प्रमुख सचिव आदिम जाति कल्याण विभाग और श्री जयदीप गोविन्द, आयुक्त आदिम जाति कल्याण विभाग के पद पर कार्यरत थे। श्रीमती रिश्म शमी, श्री अनिल ओबेराय और श्री अशोक उपाध्याय वन अधिकार अधिनियम 2006 के क्रियान्वयन के समय आदिम जाति कल्याण विभाग में पदस्थ थे। इन सभी अधिकारियों को संयुक्त रूप से पुरस्कृत किया गया है।

व्यक्तिगत श्रेणी में तत्कालीन जबलपुर कलेक्टर श्री संजय दुबे को विभिन्न धमोंZ के बीच साम्प्रदायिक सौहार्द बनाने और धार्मिक इमारतों के अतिक्रमण हटाये जाने पर और तत्कालीन कलेक्टर बालाघाट श्री गुलशन बामरा को नक्सल प्रभावित क्षेत्र मेें राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के अन्तर्गत आम आदमी की सहभागिता करने पर प्रधानमन्त्री डा0 मनमोहन सिंह ने पुरस्कृत किया।

राष्ट्रपति से मिले चौहान और रोहाणी

राष्ट्रपति से मिले चौहान और रोहाणी

स्विर्णम मध्यप्रदेश बनाने विधानसभा के विशेष सत्र को सम्बोधन के लिए आमन्त्रण

(ब्यूरो कार्यालय)

नई दिल्ली, 22 अपै्रल। मुख्यमन्त्री श्री शिवराज सिंह चौहान और विधानसभा अध्यक्ष श्री ईश्वरदास रोहाणी ने आज यहां नई दिल्ली में राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल से सौजन्य भेंट की। राष्ट्रपति भवन में हुई मुलाकात के अवसर पर संसदीय कार्यमन्त्री श्री नरोत्तम मिश्रा भी उपस्थित थे।

श्री चौहान और श्री रोहाणी ने राष्ट्रपति श्रीमती पाटिल से स्विर्णम मध्यप्रदेश बनाने के लिए विशेष सत्र को सम्बोधित कर मार्गदर्शन देने का अनुरोध किया। राष्ट्रपति महोदया को अवगत कराया गया कि विधानसभा की सर्वदलीय कार्य मन्त्रणा समिति ने सर्वसम्मति से निर्णय कर राष्ट्रपति जी को विशेष सत्र में बुलाने का आग्रह किया है।

मुख्यमन्त्री श्री चौहान और विधानसभा अध्यक्ष श्री रोहाणी ने श्रीमती पाटिल को अवगत कराया कि मध्यप्रदेश विधानसभा की कार्यवाही के सुचारू संचालन में सभी दलों के नेता दलीय निष्ठा से ऊपर उठकर सहयोग करते हैं। इस कारण विधानसभा की कार्यवाही के दौरान मार्शल का उपयोग नहीं किया गया। सभी दलों के रचनात्मक सहयोग के कारण विधानसभा की कार्यवाही स्थगित करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। सभी दलों के विधायक लोकतन्त्रीय अनुशासन में रहकर जनहित की समस्याओं पर विधानसभा में व्यापक बहस करते हैं। राष्ट्रपति श्रीमती पाटिल ने मध्यप्रदेश विधानसभा की गौरवशाली परम्परा की सराहना की।

बुधवार, 21 अप्रैल 2010

पानी रे पानी तेरा रंग कैसा . . .

पानी रे पानी तेरा रंग कैसा . . .

कहां गई सुराही, छागल, मटके

पानी का व्यवसायीकरण बनाम राजनैतिक दिवालियापन

पानी माफिया की मुट्ठी में कैद है हिन्दुस्तान की सियासत

(लिमटी खरे)

ब्रितानी जब हिन्दुस्तान पर राज किया करते थे, तब उन्होंने साफ कहा था कि आवाम को पानी मुहैया कराना उनकी जवाबदारियों में शामिल नहीं है। जिसे पानी की दरकार हो वह अपने घर पर कुंआ खोदे और पानी पिए। यही कारण था कि पुराने घरों में पानी के स्त्रोत के तौर पर एक कुआ अवश्य ही होता था। ईश्वर की नायाब रचना है मनुष्य और मनुष्य हर चीज के बिना गुजारा कर सकता है, पर बिना पानी के वह जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता। आज चान्द या मंगल पर जीवन की खोज की जा रही है। इन ग्रहों पर यही खोजा जा रहा है कि अगर वहां पानी होगा तो वहां जीवन भी हो सकता है।

देश की विडम्बना तो देखिए आज देश को ब्रितानियों के हाथों से आजाद हुए छ: दशक से भी ज्यादा का समय बीत चुका है, किन्तु आज भी पानी के लिए सुदूर इलाकों के लोग तरस रहे हैं। अरे दूर क्यों जाते हैं, देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में अलह सुब्बह चार बजे से ही भोर होते होते लोग घरों के बर्तन लेकर नलों पर जाकर पानी भरकर लाने पर मजबूर हैं। दिल्ली के दो चेहरे आपको देखने को मिल जाएंगे। एक तरफ संपन्न लोगों की जमात है जिनके घरों पर पानी के टेंकर हरियाली सींच रहे हैं, तो दूसरी ओर गरीब गुरबे हैं जिनकी दिनचर्या पानी की तलाश से आरम्भ होकर वहीं समाप्त भी हो जाती है।

देश की भद्र दिखने वालीं किन्तु साधारण और जमीनी सोच की धनी रेलमन्त्री ममता बनर्जी ने रेल यात्रियों को सस्ता पानी मुहैया कराने की ठानी है। उनके इस कदम की मुक्त कंठ से प्रशंसा की जानी चाहिए कि कम से कम किसी शासक ने तो आवाम की बुनियादी आवश्यक्ता पर नज़रें इनायत की। देखा जाए तो पूर्व रेलमन्त्री और स्वयंभू प्रबंधन गुरू लालू प्रसाद यादव ने रेल में गरीब गुरबों के लिए जनता भोजन आरम्भ किया था। दस रूपए में यात्रियों को पुडी और सब्जी के पेकेट मिलने लगे। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि लालू प्रसाद यादव की कुल्हड में चाय और जनता भोजन की योजना सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह गई। वास्तविक धरातल पर अगर देखा जाए तो आम यात्री को न कुल्हड में चाय नसीब है और न ही जनता खाना ही मुहैया हो पा रहा है। चुंनिन्दा रेल्वे स्टेशन पर जनता खाना दिखाकर उसकी तस्वीरों से रेल मन्त्रियों को सन्तुष्ट किया जाता है।

कितने आश्चर्य की बात है कि रेल में जनता खाना कहने को दस रूपए का है, और पीने के पानी की बोतल 12 से 15 रूपए की। इस तरह की विसंगति की ओर किसी का ध्यान गया क्यों नहीं। बहरहाल रेल मन्त्री ने अपने यात्रियों को पांच या छ: रूपए में पानी की बोतल मुहैया करवाने के लिए वाटर फिल्टर और पैकेजिंग प्लांट की शुरूआत कर एक अच्छा कदम उठाया है। देखा जाए तो रेल मन्त्री ममता बनर्जी की इस पहल के दूसरे पहलू पर भी गोर किया जाना चाहिए। जब भारतीय रेल अपने यात्रियों को आधी से कम दर में पानी मुहैया कराने का सोच सकती है तो समझा जा सकता है कि देश में पानी का माफिया कितना हावी हो चुका है कि सरकार पानी जैसी मूल भूत सुविधा के सामने पानी माफिया के आगे घुटने टेके खडी हुई है।

चालीस के पेटे में पहुंच चुकी पीढी के दिलोदिमाग से अभी यह बात विस्मृत नहीं हुई होगी जब वे परिवार के साथ सफर किया करते थे तो साथ में पानी के लिए सुराही या छागल (एक विशेष मोटे कपडे की बनी थैली जिसमें पानी ठण्डा रहता था) अवश्य ही रखी जाती थी। राजकुमार अभिनीत मशहूर फिल्म ``पाकीजा`` में जब राजकुमार रेलगाडी में चढता है तो मीना कुमारी के पास रखी सुराही से पानी पीता है। कहने का तात्पर्य यह कि उस वक्त पानी बेमोल था, आज पानी अनमोल है पर इसका मोल बहुत ज्यादा हो गया है।

कितने आश्चर्य की बात है कि करोडों रूपयों के लाभ को दर्शाने वाली भारतीय रेल अपने यात्रियों पर इतनी दिलदार और मेहरबान नहीं हो सकती है कि वह उन्हें निशुल्क पानी जैसी सुविधा भी उपलब्ध करा सके। आईएसओ प्राप्त भोपाल एक्सपे्रस सहित कुछ रेलगाडियों में वाटर प्यूरीफायर लगाए गए थे, जिसमें एक रूपए में एक लीटर तो पांच रूपए में एक लीटर ठण्डा पानी उपलब्ध था। समय के साथ रखरखाव के अभाव में ये मशीनें अब शोभा की सुपारी बनकर रह गईं हैं।

देश के शासकों द्वारा अस्सी के दशक तक पानी के लिए चिन्ता जाहिर की जाती रही है। पूर्व प्रधानमन्त्री चन्द्रशेखर ने अपनी भारत यात्रा में स्वच्छ पेयजल को देश की सबसे बडी समस्या बताया था। स्व.राजीव गांधी ने तो स्वच्छ पेयजल के लिए एक मिशन की स्थापना ही कर दी थी। इसके बाद अटल बिहारी बाजपेयी ने पानी के महत्व को समझा और गांवों में पेयजल मुहैया करवाने पर अपनी चिन्ता जाहिर की थी। वर्तमान में कांग्रेस के नेतृत्व में ही सरकार चल रही है। इसके पहले नरसिंहराव भी कांग्रेस के ही प्रधानमन्त्री रहे हैं। आश्चर्य तो तब होता है जब राजीव गांधी द्वारा आरम्भ किए गए मिशन के बावजूद उनकी ही कांग्रेस द्वारा बीस सालों में भी स्वच्छ पेयजल जैसी न्यूनतम सुविधा तक उपलब्ध नहीं कराई गई है।

आज पानी का व्यवसायीकरण हो गया है। उद्योगपति अब नदियों तालाबों को खरीदने आगे आकर सरकार पर दबाव बनाने लगे हैंं क्या हो गया है महात्मा गांधी के देश के लोगों को! कहां गई नैतिकता, जिसके चलते आधी धोती पहनकर बापू ने उन अंग्रेजों केा खदेडा था, जिनके बारे में कहा जाता था कि ब्रितानियों के राज में सूरज डूबता नहीं है। सरकार अगर नहीं चेती तो वह दिन दूर नहीं जब देश में केंसर की तरह पनपता माफिया लोगों के सांस लेने की कीमत भी उनसे वसूल करेगा।

दिग्गी के जहर बुझे तीर के निहितार्थ

दिग्गी के जहर बुझे तीर के निहितार्थ

चिदम्बरम को साईज में लाने आलकमान ने की है कवायद

कांग्रेस की इंटरनल केमिस्ट्री से बेहतर वाकिफ हैं राजा

थुरूर प्रकरण से ध्यान हटाने की थी कोशिश

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 21 अप्रेल। व्यापार जगत की खबरों को देने वाले एक समाचार पत्र में नक्सलवाद पर अपना आलेख छपवाकर दिग्गी राजा ने ठहरे पानी में कंकर मारकर हलचल तो पैदा कर दी है। राजनैतिक विश्लेषक अब मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमन्त्री राजा दिग्विजय सिंह के इस जहर बुझे तीर के पीछे के मन्तव्य खोजने में लगे हैं। वैसे दिग्विजय सिंह के राजनैतिक जीवन के हिसाब से कहा जा सकता है कि राजा ने यह तीर भले ही निकाला अपने तरकश से हो, पर इसको रोशन करने वाले तार दस जनपथ की ही बैटरी में जाकर जुडेंगे, जहां से इसे उर्जा मिल रही है।

दस जनपथ के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी के बाद कांग्रेस के नंबर दो ताकतवर महासचिव राजा दिग्विजय सिंह ने यह कदम कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी और युवराज राहुल गांधी से विचार विमर्श के उपरान्त ही उठाया है। सूत्रों ने कहा कि गृह मन्त्री बनने के बाद पलनिअप्पम चिदम्बरम की लोकप्रियता का ग्राफ बहुत ही तेजी से उपर आया है। उनकी कार्यप्रणाली के चलते अब गुप्तचर संस्थाएं सीधे उन्हें रिपोर्ट करने लगीं हैं। सरकार में नंबर दो पोजीशन पा चुके चिदम्बरम के पर कतरकर उन्हें साईज में लाने आलाकमान ने अपने विश्वस्त राजा दिग्विजय सिंह के मार्फत यह कदम उठाया है।

इस मामले में यह तर्क भी दिया जा रहा है कि राजा दिग्विजय सिंह कांग्रेस की रग रग से वाकिफ हैं, यही कारण है कि कभी राजनीति में कांग्रेस के चाणक्य रहे कुंवर अर्जुन सिंह के शागिर्द राजा दिग्विजय सिंह ने तिवारी कांग्रेस के गठन के वक्त भी उस नाजुक दौर में न केवल अर्जुन सिंह को साधे रखा था, वरन् कांग्रेस में भी मध्य प्रदेश जैसे सूबे में अपनी कुर्सी सलामत रखी थी। राजा दिग्विजय सिंह के बारे में कहा जाता है कि वे कांग्रेस का अन्दरूनी रसायन शास्त्र बखूबी जानते हैं, वे जानते हैं कि किससे किसे मिलाने पर क्या समीकरण बन सकते हैं।

सूत्रों का कहना है कि शशि थुरूर प्रकरण में कांग्रेस की बुरी तरह भद्द पिट रही थी, इसी के चलते राजा दिग्विजय सिंह ने ही सोनिया गांधी को मशविरा दिया था कि इस तरह का एक आलेख अगर वे अपने नाम से प्रकाशित करवा देते हैं तो लोगों का ध्यान इससे बट जाएगा। राजा ने इसके लिए व्यापार की खबरों वाला अखबार इसलिए चुना क्योंकि राजनीति में रूचि रखने वाले लोग कम ही पढा करते हैं, और आलेख के प्रकाशन तक गोपनीयता बनी रहेगी। अगले दिन जब उस अखबार के रिफरेंस से बडे अखबारों में खबर छपी तक जाकर लोग चेते और मामले ने तूल पकडा।

इसके बाद एक के बाद एक खबरें मीडिया जगत में तय रणनीति के मुताबिक प्लांट की जाती रहीं ताकि चिदम्बरम को अहसास हो जाए कि आलाकमान उनकी सक्रियता से खफा है। लोगों को आश्चर्य तो तब हुआ जब सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस के एक जिम्मेदार महासचिव ने यह बात पार्टी फोरम के बजाए अखबार के माध्यम से की और उन पर अनुशासनात्मक कार्यवाही का नाम तक नहीं लिया गया, सिर्फ चेताया गया, वह भी इतने गम्भीर मसले पर। शनै: शनै: सबको समझ में आ गया कि राजा अगर गुर्राया है तो इसके पीछे चाबी कांग्रेस की सत्ता और शक्ति के शीर्ष केन्द्र 10 जनपथ से ही भरी गई है।

वैसे मीडिया में प्लांट की गई इस खबर में दम लगने लगा है कि छत्तीसगढ और उडीसा में नक्सली कार्यवाही की आड में चिदम्बरम खनन कंपनियों का हित साध रहे हैं। इन क्षेत्रों में खनन का काम करने वाली वेदान्ता कम्पनी के एक संचालकों में देश के गृह मन्त्री पलनिअप्पम चिदम्बरम भी रह चुके हैं। राज्य सभा के रास्ते संसदीय सौंध पहुंचे मणि शंकर अय्यर ने तो साफ तौर पर यह बात कह दी थी कि यूपीए सरकार की नक्सल नीति वेदान्ता, एस्सार, पोस्को और मित्तल जैसे बडे व्यवसायिक घरानों को लाभ पहुंचाने के लिए बनाई गई है।

मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

मील का पत्थर साबित होगी न्याय की यह जीत

मील का पत्थर साबित होगी न्याय की यह जीत
 
रसूखदारों के हाथ की लौण्डी नहीं है भारत की कानून व्यवस्था
 
फैसले से रियाया का कानून पर भरोसा बढा
 
जनसेवक बरकरार रखें जनता के भरोसे को
(लिमटी खरे)

जेसिका लाल हत्याकाण्ड मामले में देश की सबसे बडी अदालत द्वारा जो फैसला दिया गया, उससे भारत की न्याय व्यवस्था पर आम आदमी का भरोसा और अधिक बढ जाएगा। आम तौर पर यह माना जाता रहा है कि कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं, अनेक फिल्मों में भी इस डायलाग को सैकडों बार दुहराया जा चुका है। वहीं दूसरी ओर आजाद हिन्दुस्तान में लोगों के मन में एक और धारणा घर कर गई है कि काननू के हाथ चाहे जितने मर्जी लंबे हो पर वे हाथ रसूखदार, धनाड्य, संपन्न, ताकतवर लोगों को छू भी नहीं पाते हैं। इसी अवधारणा के चलते आम आदमी मान रहा था कि इस मामले में आरोपियों को सजा मिलना मुश्किल ही नहीं नामूमकिन ही है, वस्तुत: एसा हुआ नहीं। ग्यारह साल के लंबे इन्तजार के बावजूद ही सही पर न्याय मिलने पर सभी सन्तुष्ट नज़र आ रहे हैं।
जेसिका लाल जैसे हत्याकाण्ड दरअसल अधकचरी पश्चिमी संस्कृति की विकृति का लबादा ओढने की परिणीति ही हैं। महानगरों में परिवारों के अन्दर शर्म हया बची ही नहीं है। बाप बेटे के साथ शराब गटक रहा है तो बेटी मां के सामने ही सिगरेट के छल्ले उडा रही है। जब सांस्कृतिक रूप से हमारा नैतिक पतन होगा तो उसमें से पैदा होंगे जेसिका लाल हत्याकाण्ड जैसे वाक्ये।
 
29 अप्रेल 199 को भी यही हुआ था। दक्षिणी दिल्ली के कुतुब कोलोनेड रेस्टारेंट की मालिकिन बीना रमानी द्वारा दी गई पार्टी में माडल जेसिका लाल को शराब बांटने की जवाबदारी सौंपी गई थी। आधी रात बीतने के बाद मनु शर्म अपने दोस्तों के साथ वहां आया और दो बजे उसने शराब की मांग की। चौथे पहर के आगाज के साथ अगर कोई शराब मांगे तो उसकी और उसके परिवार की मानसिकता को बेहतर समझा जा सकता है। जेसीका द्वारा मना करने पर मनु ने हवाई फायर किया और फिर जेसिका के सिर में घुसा दी एक गोली। बाद में वे वहां से भाग निकले और चौथे पहर में ही अपनी टाटा सफारी को वहां से उठवा लिया। पुलिस ने 2 मई को बरामद किया। मामला पंजीबद्ध हुआ, गवाहों में अनेक लोग सामने आए, पर चूंकि मनु हरियाणा के बाहूबली नेता विनोद शर्मा के पुत्र हैं, इसलिए वही हुआ जिसका अन्दाजा था। अदालत में श्यान मुंशी, शिवदास, करन राजपूत सहित चश्मदीद अपने अपने दर्ज बयानों से मुकर गए।
 
इसके बाद लगने लगा था कि मामला ठण्डे बस्ते के हवाले ही होने वाला है। गवाही के अभाव में 21 फरवरी 2006 को सभी नौ आरोपियों को बरी कर दिया गया। दिल्ली पुलिस ने मामले को घटना के सात साल बाद 13 मार्च को उच्च न्यायालय में पेश किया। 18 दिसम्बर 2006 को एक बार फिर मनु शर्मा, विकास यादव और अमरदीप को दोषी करार देते हुए 20 दिसम्बर 2006 को फैसला सुनाया जिसमें मनु को उमर कैद और विकास एवं अमरदीप को चार चार साल की कैद की सजा सुनाई। 02 फरवरी 2007 को मनु शर्मा ने उच्चतम न्यायालय में अपनी अपील पेश की, और अन्त में सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा।
 
इस पूरे मामले में मीडिया और सामाजिक संस्थाओं की जितनी भी तारीफ की जाए कम होगी, क्योंकि इन्ही के माध्यम से यह प्रकरण लोगों की स्मृति से विस्मृत न हो सका। मीडिया अगर उस वक्त अभियान न छेडता तो आज मनु सहित विकास ओर अमरदीप खुले साण्ड की तरह तबाही मचा रहे होते। जेसिका को लगी गोली को बदलकर भी अदालत को गुमराह करने का कुित्सत प्रयास किया गया, पर उच्च न्यायालय ने पारखी नज़रों से सच्चाई का पता लगा ही लिया।
 
एसा नहीं कि रसूखदारों के द्वारा पहली बार इस तरह के प्रयास किए गए हों। इससे पहले 2 जुलाई 1995 को दिल्ली युवक कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुशील शर्मा ने अपनी पित्न नैना साहनी को मारकर तन्दूर में डाल दिया था, तब तन्दूर काण्ड जमकर उछला। 03 नवंबर 2003 को अदालत ने सुशील शर्मा को दोषी पाते हुए उसे फांसी की सजा सुनाई। उच्च न्यायालय ने भी निचली अदालत के फैसले का सम्मान करते हुए उसे बरकरार रखा।
 
इसी तरह 17 फरवरी को बहुचर्चित नेता डी.पी.यादव की बेटी भारती के मित्र नितीश कटारा की हत्या कर दी गई थी। अदालत ने दोनों को आजीवन कैद की सजा सुनाई। 23 जनवरी 1999 को इण्डियन एक्सपे्रस अखबार की पत्रकार शिवानी भटनागर की हत्या में शक की सुई दिल्ली में पदस्थ भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी आर.के.शर्मा के इर्द गिर्द घूमी। अदालत ने इस मामले में शर्मा और दो आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। जनवरी 1995 में कानून की पढाई करने वाली प्रियदर्शनी भट्ट के साथ बलात्कार कर उसकी हत्या कर दी गई थी। आरोपी सन्तोष कुमार सिंह पुलिस के रसूखदार का बेटा था। जाहिर था पुलिस ने उसका साथ दिया। कोर्ट ने सबूतों के अभाव में उसे छोड दिया। मीडिया ने जब हो हल्ला मचाया तब दुबारा केस खुला और दिल्ली उच्च न्यायालय ने उसे फांसी की सजा सुनाई।
 
कुल मिलाकर यह सब जागरूकता के चलते ही सम्भव हो सका। आज आवश्यक्ता इस बात की है कि अगर कहीं कोई अन्याय हो रहा है तो हम कम से कम उसके खिलाफ आवाज उठाने का साहस तो करें। प्रसिद्ध विचारक शिव खेडा द्वारा उद्यत एक कोटेशन का जिकर यहां लाजिमी होगा कि अगर कोई आपके पडोसी पर अत्याचार कर रहा है, और आप शान्त हैं तो उसके बाद नंबर आपका ही आने वाला है।